अधिगम यों तो वैयक्तिक क्रिया है और हर व्यक्ति अपने ढंग से अपनी शक्ति तथा क्षमता के साथ सीखता है, परन्तु यदि एक व्यक्ति एक शिक्षक से कुछ कौशल तथा ज्ञान प्राप्त करता है तो उसमें समय, शक्ति दोनो अधिक लगते हैं। यों व्यक्तिगत शिक्षण, शिक्षण के दृष्टिकोण से अधिक महँगा है। इसके विपरीत जब अधिगम, कक्षा शिक्षण के माध्यम से कराया जाता है तो एक साथ अनेक छात्र सामूहिक रूप से सीखते हैं और समय तथा शक्ति दोनों की बचत होती है। इसलिये सामूहिक अधिगम, अधिक मितव्ययी है। विश्व में यही प्रणाली शिक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक लोकप्रिय है।
अधिगम : मितव्ययता
अधिगम, मानव जीवन की सतत चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति जीवन भर एक दूसरे से कुछ न कुछ अनुभव प्राप्त करता है और इन अनुभवों का सकारात्मक अथवा नकारात्मक उपयोग करता है। अनुभवों का यह उपयोग ही अधिगम है।
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अधिगम में मितव्ययिता की अवधारणा, सीखने में लगने वाले समय तथा उपयोग के उपरान्त प्राप्त होने वाले परिणाम तथा उसमें लगने वाले समय से है। सीखने में लगने वाला समय तथा प्राप्त परिणाम में लगने वाला अधिगम की मितव्ययिता है। सीखना कोई विशेष क्रिया नहीं है। यह एक ऐसा परिवर्तन है जो प्राणियों की विभिन्न क्रियाओं में पाया जाता है।
अधिगम में मितव्ययिता का अधिकार परिपक्वता है। परिपक्वता के कारण होने वाले परिवर्तन स्थायी होते हैं। इन पर अभिप्रेरणा का प्रभाव पड़ता है। मानसिक क्षमता विकसित होती है। जितनी अधिक शारीरिक, मानसिक परिपक्वता होगी अधिगम में लगने वाला समय उतना ही कम होगा। इसलिये मितव्ययिता तथा अधिगम का सहसम्बन्ध धनात्मक है।
सामाजिक अधिगम
सामाजिक अधिगम का आधार समाज मनोविज्ञान (Social Psychology) है। एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं। यहाँ सकारात्मकता के कारण वे एक दूसरे से जुड़ते हैं और नकारात्मक प्रवृत्ति के कारण पृथक होते हैं। जन्म से ही शिशु माता के सम्पर्क में आता है और प्रतिक्रिया करता है।
मसल के अनुसार- "सामाजिक अधिगम की एक विशेषता यह है कि हम सारे समय इसकी प्रक्रिया में व्यस्त रहते हैं, पर हमको बहुधा इस बात का कोई ज्ञान नहीं होता है कि हम कुछ सीख रहे हैं।"
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ध्यान और रुचि का विस्तृत वर्णन
सामाजिक अधिगम के बारे में कहा है-"सामाजिक अधिगम की प्रक्रिया सम्पर्क के कारण आगे बढ़ती है।" कक्षा में सामाजिक अधिगम के माध्यम से शिक्षण कार्य चलता है। कक्षा शिक्षण, शिक्षक छात्र तथा पाठ्यक्रम द्वारा सम्पन्न होता है। शिक्षण तथा अधिगम दोनों ही सामूहिक अधिगम को सम्पन्न करते हैं। कक्षा शिक्षण में अन्तः क्रिया होती है। अन्तक्रियात्मक व्यवहार, उद्दीयन द्वारा प्रवलन उत्पन्न करते हैं।
कोलसनिक के शब्दों में-"अधिगम की मात्रा तथा गुणात्मकता का निर्धारण अन्तःक्रियात्मकता के द्वारा निर्धारित होता है। कक्षा-शिक्षण में अन्तःक्रिया के कारण छात्र एक-दूसरे से भी सीखते हैं। उनके सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन होता है।
विलियम एफ. व्हाइट के शब्दों में- "आधुनिक समय में अधिगम में अन्तःक्रिया का केन्द्रीय स्थान है जब छात्र दो या समूह की स्थिति में अपने व्यवहार से दूसरे को उद्दीप्त करता है तथा स्वयं उसका व्यवहार भी प्रबल बनता है।"
सामाजिक अधिगम में अनेक कारक योग देते हैं। इनमें प्रमुख हैं-
1. ध्यान द्वारा सामाजिक अधिगम को प्रखर बनाया जा सकता है।
2. अनुसरण के माध्यम से सामाजिक अधिगम दिया जा सकता है।
3. एकरूपता के द्वारा छात्रों के विचार, आचार तथा व्यवहार को दिशा दी जा सकती है।
4 मॉडलों द्वारा सामाजिक अधिगम दिया जा सकता है।
5. निरीक्षणकर्त्ता का व्यवहार भी सामाजिक अधिगम को प्रभावित करता है।
6. प्रबलन, पुरस्कार तथा दण्ड के माध्यम से सामाजिक अधिगम को बल देते हैं। सामाजिक अधिगम, मितव्ययी है। इसमें एक साथ अनेक व्यक्ति सीखते है।
व्हाइट (White) के शब्दों में, "कक्षा में सामाजिक अधिगम के प्रयोग से हममें यह आशा उत्पन्न हो जाती है कि अधिकांश व्यक्ति अपने व्यवहार सम्बन्धी प्रतिमान (मॉडल) के व्यवहार द्वारा प्रदान किये जाने वाले उद्दीपन और प्रबलन के विभिन्न प्रतिमानों के फलस्वरूप अर्जित करते हैं।"