प्रभावशाली अधिगम की अवधारणा :
मनोविज्ञान में समस्त पक्षों का आधार अधिगम है। वस्तुतः मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान माना गया है किन्तु व्यवहार सीखना ही तो है। हम व्यवहार करते हैं। व्यवहार का अर्थ है-क्रिया, प्रतिक्रिया तथा अंतः क्रिया । इन तीनों का समग्र स्वरूप व्यवहार कहलाता है।
अधिगम एक सतत् क्रिया है। कार्य, कारण का सम्बन्ध इससे पता चलता है। परन्तु यह कार्य तथा कारण का सम्बन्ध वांछित लक्ष्य को शीघ्र एवं सम्पूर्ण रूप से प्राप्त करना ही प्रभावकारी कहलाता है। ऑक्सफोर्ड डिक्सनरी में प्रभावकारी (Effective) का अर्थ इस प्रकार बताया गया है- "वांछित परिणाम प्राप्त करना, इच्छित परिणाम उत्पन्न करना, आनन्ददायक अनुभव उत्पन्न करना।"
इसी प्रकार अधिगम (Learning) के विषय में कहा गया है- "अध्ययन, अनुभव या शिक्षण के द्वारा ज्ञान तथा कौशल प्राप्त करना।"
सी. बी. गुड (C. V. Good) के शब्दों में- अधिगम, अनुक्रिया या व्यवहार (नवीनीकरण. पृथक्कीकरण, संशोधन) में परिवर्तन है। यह अंश या समग्र अनुभवों द्वारा होता है। ये अनुभव कई बार चेतना में निहित हो जाते हैं और कई बार अचेतन में व्याप्त हो जाते हैं।"
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प्राकृतिक प्रकटीकरण समूह (Unfoldment group) ने वातावरण के सन्दर्भ में सीखने की बात कही है। मानसिक अनुशासन (Mental Discipline) समूह, ज्ञान (Knowing), अनुभव (Feeling) तथा इच्छा (Willing) को अधिगम का आधार मानता है। मानसिक शक्तियों पर यह विश्वास करता है। आत्मबोध (Apperception) समूह नवीन विचारों का आत्मबोध करता है। व्यवहारवाद (Behaviourism) समूह व्यवहार में रूपान्तर अथवा परिवर्तन को प्रमुख मानता है। इसमें अधिगम संवेदनात्मक क्रियाओं के द्वारा होता है। समग्रतावादी (Gestalt) समूह सूझ के द्वारा सीखता है। ज्ञानात्मक (Cognitive) समूह सीखने को ज्ञानात्मक संरचना में परिवर्तन मानता है। टॉलमैन (Tolman) समूह अधिगम चिन्हों तथा संकेतों का अनुसरण करता है। मानवतावादी (Humanistic) समूह आत्म प्रत्यय (Self concept) पर बल देता है। सूचना संसाधन (Information processing) समूह सूचना संकलन पर बल देता है।
इन समूहों ने अधिगम के एक या अनेक पक्षों पर विचार किया है। अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये उदय पारीक ने कहा है- "अधिगम, गामक या व्यवहारात्मक निवेशों का आवश्यकता पड़ने पर उनके प्रभाव एवं विभिन्न प्रयोग हेतु अधिग्रहीत आत्मसात् एवं अन्तरण करने तथा स्वचालित अधिगम की अधिक क्षमता की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया है।"
प्रभावशाली अधिगम के लिये यह आवश्यक है-
1. यह अधिक मनोवैज्ञानिकों को मान्य है।
2. यह सूझ के प्रत्यय की सापेक्ष प्रक्रिया है।
3. यह प्रत्ययों का प्रयोग करते हैं।
4. यह मनो-सामाजिक व्यवहार है।
अधिगम को मानव जीवन पर्याय माना गया है। इसी क्रिया के द्वारा मनुष्य नित्य नवीन अनुभव प्राप्त करता है और उन अनुभवों का प्रयोग करके भविष्य को सुखमय बनाने का प्रयास करता है। अधिगम में व्यवहार परिवर्तन होते हैं, ये परिवर्तन कुछ समय तक बने रहते हैं और ये पूर्व अनुभवों पर आधारित होते हैं। ये परिवर्तन बाह्य तथा आन्तरिक होते हैं, ये अनुभव किये जाते हैं तथा दृष्टव्य भी होते हैं, कुल मिलाकर अधिगम ज्ञान, भावना तथा गत्यात्मक क्षेत्र में क्रियाशील होता है।
बाउने एवं एक्सटैंड के अनुसार- "अधिगम ज्ञान, दक्षता तथा चाहना की मूलभूत व्यावहारिक विशिष्टताओं से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित है। "
परिपक्वता भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है, सीखने का बोलिंग, लॉंगफील्ड और वील्ड के अनुसार- "परिपक्वता का अर्थ उस आय वृद्धि और विकास से है जो किसी विशेष प्रकार के व्यवहार करने में समर्थ व्यक्ति को समर्थ करते हैं।"
प्रभावशाली अधिगम के आयाम :
प्रभावशाली अधिगम के अनेक पक्ष है जिन पर गेने (R. M. Gagne) ने विचार किया है।
(1) संकेत अधिगम (Signal Learning ) - परम्परागत अनुकूलन प्रक्रिया द्वारा सीखी गई प्रतिक्रियायें तथा अनुक्रियायें इसके अन्तर्गत आती हैं।
(2) उत्तेजन-अनुक्रिया अधिगम (Stimulus Response Learning)- उत्तेजना प्रदान करके, प्राप्त की जाने वाली वांछित अनुक्रियाओं का सम्बन्ध उत्तेजना अनुक्रिया से है। थार्नडाइक तथा बी. एफ. स्किनर के अनुसार इस प्रकार का अधिगम आता है।
(3) श्रृंखला अधिगम (Chain Learning)- दो या अधिक उत्तेजना की अनुक्रिया वाला अधिगम इसके अन्तर्गत आता है।
(4) शाब्दिक-सम्बन्ध (Verbal Association)- अधिगम इसमें शब्दों द्वारा अनुक्रिया को पहचाना जाता है।
(5) बहुभिन्नी (Multi Discrimination) अधिगम - इसमें भिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाओं को पहचाना जाता है।
(6) प्रत्यय (Concept) अधिगम- दो उत्तेजनाओं से एक प्रतिक्रिया प्राप्त की जाती है।
(7) नियम (Rule) अधिगम- दो या अधिक प्रत्ययों को श्रृंखलाबद्ध किया जाता है।
(8) समस्या समाधान (Problem Solving) अधिगम-चिन्तनयुक्त अधिगम में समस्या समाधान किया जाता है।
प्रभावशाली अधिगम के घटक :
प्रभावशाली अधिगम से आशय स्थायी उपयोगी अनुक्रियाओं से है। ये अनुक्रियायें जीवन में व्यक्ति को सफलता के शीर्ष तक पहुँचाती हैं। इन घटकों से अधिगम प्रभावशाली बनता है।
(1) बहुविमितीय (Multi Dimensional)
घटक इस घटक में अनेक आयाम होते हैं जो प्रभावशाली अधिगम के प्रतीक होते हैं। ये इस प्रकार से हैं-
1. प्रत्यक्षात्मक (Perceptual),
2. प्रत्ययात्मक (Conceptual),
3. अभिवृत्यात्मक (Attitudinal),
4. संवेगात्मक (Emotional),
5. मौखिक (Verbal),
6. गामक (Motor),
7. दृश्य (Visual),
8. कौशल अधिग्रहण (Skill Acquisition),
9. अन्य परिस्थितिजन्य स्वरूप (Other Situational Factors)।
(2) स्वयं अनुभव (Self Experience)
प्रभावशाली अधिगम का महत्त्वपूर्ण घटक है, स्वयं अनुभव प्राप्त करना तथा भविष्य में उसका लाभ उठाना है। अनुभव के गुण, उसकी मात्रा पर सीखना निर्भर करता है। कोई व्यक्ति किसी अन्य के लिये नहीं सीखता अनुभव द्वारा सीखने में चिन्तन, कल्पना, संवेग, स्मृति तथा शारीरिक क्रियाओं को नवीन दिशा तथा संदर्भ में कार्य करने में सफलता मिलती है।
(3) प्रक्रिया (Process)
सीखना एक प्रक्रिया है। यह न तो उत्पादन है और न रचना उत्पादन तथा सृजन दोनों सीखने की प्रक्रिया के परिणाम हैं।
प्रभावशाली अधिगम के अवरोधक :
प्रभावशाली अधिगम का मूल घटक प्रेरणा (Motivation) है। यदि प्रेरणा नहीं है तो सीखना प्रभावशाली नहीं होगा। प्रभावशाली अधिगम में मुख्य अवरोधक इस प्रकार है-
1. प्रेरणा का अभाव (Lack of Motivation),
2. सीखने की परिस्थिति (Learning Situation).
3. उद्देश्यहीनता (Aimlessness),
4. शिक्षक की अदूरदर्शिता (Nonvimalization of Teacher)..
5. परिणाम से परिचयन कराना (Absconding Result),
6. जीवन से न जुड़ना (Not Relating to Life),
7. भाषा को अधिगम से जोड़ना (Relating Language to Learning)।
प्रभावशाली अधिगम के उपाय :
शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया का मूल उद्देश्य है, अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना।
प्रभावशाली अधिगम के लिये ये उपाय अपनाने चाहिये-
1. सीखने की इच्छा (Will to Leam),
2. सशक्त अभिप्रेरणा (Powerful Motivation),
3. सीखने के सिद्धान्त का प्रभावशाली उपयोग (Effective use of Principles of Learning).
4. मूलप्रवृत्तियों में शोधन (Sublimation of Instincts),
5. विद्यालय का उत्तम वातावरण (Best Environment of School).
6. अच्छी आदतों का निर्माण (Best Habit Formation),
7. स्थायीभावों का निर्माण (Formation of Sentiments),
8. खण्ड एवं पूर्ण विधि द्वारा सीखना (Learning through Part and Whole Method),
9. शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health),
10. रुचि तथा रुझान का विकास (Development of Interest and Aptitude),
11. विषय सामग्री को स्वरूप देना (Shaping the Learning Material),
12. सीखने की विधियों (Methods of Learning),
13. अभ्यास (Practice),
14. सफलता या परिणाम का ज्ञान (Knowledge of Result)।
शिक्षक तथा अभिभावकों का दायित्व सीखने को प्रभावशाली बनाने के लिये और भी बढ़ जाता है। उन्हें चाहिये कि बालकों को सीखने की प्रक्रिया के दौरान सन्तोषजनक अनुभव प्रदान करें।
अधिगम को प्रभावशील तथा सरल बनाने का दायित्व शिक्षक का है। शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान केवल ज्ञान के लिये नहीं है, यह तो व्यवहार का प्रयोग है। व्यवहार को तकनीकी के द्वारा वांछित सीखने की अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा करना है।
शिक्षक का दायित्व है कि वह प्रभावशाली अधिगम के लिये छात्रों में सीखने की इच्छा उत्पन्न करे उन्हें प्रेरणा दे। सीखने की मनोवैज्ञानिक तथा वैज्ञानिक शिक्षण विधियो का प्रयोग करे और शिक्षण सामग्री को वांछित स्वरूप प्रदान करे। छात्रों को परिणाम का ज्ञान कराता रहे और सफलता के लिये निरन्तर अभ्यास कराता रहे।