अधिगम क्या है | adhigam kya hai

अधिगम :

अधिगम : अधिगम या सीखना (Learning) शिक्षा की सार्वभौम प्रक्रिया है। जहाँ भी शिक्षा या एजूकेशन शब्द का प्रयोग किया जाता है, वहाँ उसका आशय बालक को इस योग्य बनाना है कि वह नवीन ज्ञान व कौशल को भली-भांति सीख सके। विद्वानों ने अधिगम की परिभाषाओं को दो वर्गों में बाँटा है-

(1) पारिभाषिक वर्ग (2) विशेषता वर्ग। 

पारिभाषिक वर्ग के अन्तर्गत रूसो, फ्रॉबेल आदि ने अधिगम की व्याख्या दार्शनिक आधार पर की है। ये विद्वान सीखने को स्व-घटित क्रिया मानते हैं। मानसिक अनुशासन वर्ग सीखने से मस्तिष्क के विभिन्न संकायों को अनुशासित करना मानते हैं आत्मबोध वर्ग में हरबार्ट आत्मबोध विकसित करने पर बल देता है। व्यवहारवादी अधिगम को व्यवहार परिमार्जन के रूप में स्वीकार करते हैं।

थार्नडाइक, गुथरी, पावलव. हल, स्किनर आदि ने व्यवहार के आधार पर अधिगम की परिभाषा की है। गेस्टाल्टवादी सीखने में सूझ में तथा विकास पर बल देते है ज्ञानात्मक संरचनाओं के अधिग्रहण को लेविन, बार्मर घूमर आदि ने स्वीकार किया है। टॉलमैन ने उत्तेजना प्रतिक्रिया, मानवतावादियों ने स्व-प्रत्यय (Self concept) पर बल दिया है और उदय पारीख ने सीखने को सूचना संसाधनों पर बल दिया है। इसी प्रकार विशेषता वर्ग में बहुआयामी, स्व-अनुभव, प्रक्रिया आदि के रूप में अधिगम को प्रभावित किया है। इस वर्ग में विशेष योग्यता या कौशल को सीखने पर बल दिया गया है।

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अधिगम की ये परिभाषायें सीखने के इन प्रकारों पर बल देती है। 

संकेत (Signal) अधिगम 

इसके अन्तर्गत पारम्परिक अनुकूलन की प्रक्रियाओं को सीखा जाता है। 

उत्तेजना प्रतिक्रिया (S.R.) अधिगम  

इसके अन्तर्गत अनुकूलित अनुक्रिया, उत्तेजना अनुक्रिया आदि आते हैं जिनका प्रतिपादन थार्नडाइक, पावलव तथा स्किनर आदि ने किया है। 

श्रृंखला (Chain) अधिगम 

दो या अधिक उत्तेजनाओं तथा उनकी प्रतिक्रियाओं में संबन्ध स्थापित किया जाता है। 

शाब्दिक सम्बंध (Verbal Association) अधिगम

शब्दों की श्रृंखला का अधिगम इस प्रकार में किया जाता है। 

बहुभिन्नीकरण (Multi-discrimination) अधिगम

इनमें प्रतिक्रियाओं की पहचान की जाती है।

प्रत्यय (Concept) अधिगम 

एक श्रेणी के उत्तेजक एक प्रतिक्रिया देते हैं तो यह प्रत्यय अधिगम कहलाता है। 

नियम (Role) अधिगम 

दो या अधिगम प्रत्ययों को श्रृंखलाबद्ध किया जाता है तो यह नियम अधिगम कहलाता है।

समस्या समाधान (Problem Solving) अधिगम 

इस अधिगम में समस्याओं का समाधान चिन्तन का विकास करके किया जाता है। ये सभी प्रकार के अधिगम अनेक कारकों से प्रभावित होते हैं। ये कारक अधिगम की गति को मात्रा को प्रभावित करते हैं।

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक

अधिगम यद्यपि प्राणी की सहज क्रिया है। जन्म से ही वह कुछ न कुछ सीखता रहता है। उसके सीखने की मात्रा तथा कुशलता पर अनेक कारकों का प्रभाव पडता है। सीखने को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं-

शारीरिक कारक 

शारीरिक कारकों में ज्ञानेन्द्रियों-दृष्टि, श्रवण, स्वाद, सूचना तथा स्पर्श, सीखने के आधार प्रदान करते हैं. शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य तथा परिपक्वता सीखने की क्रिया को प्रभावित करते हैं। 

सिम्पसन के अनुसार- "अन्य दशाओं के साथ-साथ अधिगम की कुछ दशायें है, उत्तम स्वास्थ्य, रहने की अच्छी आदतें, शारीरिक दोषों से मुक्ति, अध्ययन की अच्छी आदतें, संवेगात्मक सन्तुलन, मानसिक योग्यता कार्य सम्बन्ध परिपक्वता, वांछनीय दृष्टिकोण और रुचियाँ, उत्तम सामाजिक अनुकूलन, रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास से मुक्ति । "

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मनोवैज्ञानिक कारक 

मनोवैज्ञानिक कारकों में प्रेरणा, रुचि और समझकर सीखने की इच्छा तथा बुद्धि आदि सीखने के महत्त्वपूर्ण कारक है। ये कारक व्यक्ति को सीखने के लिये बाध्य करते हैं।

पर्यावरणीय कारक 

व्यक्ति, जिन क्षणों में सीखता है, वे क्षण उसके वातावरण का सृजन करते हैं, विषय सामग्री की प्रकृति, अधिगम विधियों, अभ्यास, शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया तथा परिणाम का ज्ञान भी सीखने के महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय कारक है।

सीखने के अन्य कारक

ध्यान (Attention)

डम्विल (Dumville) के अनुसार- "किसी दूसरी वस्तु के बजाय एक ही वस्तु पर चेतना को केन्द्रित करना ही ध्यान है।" 

मॉर्गन एवं गिलिलैन्ड (Morgan and Gilliland) के शब्दों में- "अपने वातावरण के किसी विशिष्ट तत्त्व की ओर उत्साहपूर्वक जागरुक होना ध्यान कहलाता है। यह किसी अनुक्रिया के लिये पूर्व समायोजन है।" 

अवधान या ध्यान में जानना (Knowing), अनुभव (Feeling) तथा इच्छा (Willing) का विशेष महत्त्व है।अधिगम की क्रिया को ध्यान प्रभावित करता है. कोई अध्यापक किस सीमा तक छात्रों का ध्यान आकर्षित करता है। इस पर अधिगम निर्भर करता है। ध्यान का विकास करने में शान्त वातावरण, पाठ की तैयारी, विषय में परिवर्तन, सहायक सामग्री का उपयोग, बालकों की रुचि का ध्यान, पूर्व ज्ञान का नवीन ज्ञान से सम्बन्ध, बालकों की प्रवृत्ति का ज्ञान एवं प्रोत्साहन का विशेष योग होता है।

थकान (FATIGUE)

ड्रेवर (Drever) के शब्दों में- "थकान का अर्थ है, कार्य करने में शक्ति के पूर्ण व्यय के कारण कार्य करने की कम कुशलता या योग्यता।" 

बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld and Weld) के अनुसार- "थकान की सर्वोत्तम परिभाषा निरन्तर कार्य करने के परिणामस्वरूप कुशलता के रूप में की जाती है।" 

थकान शारीरिक तथा मानसिक दोनों होती है। शारीरिक थकान में, शरीर के कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है और वह कार्य न करके विश्राम चाहता है। इसी प्रकार मानसिक थकान में मस्तिष्क की काम करने की शक्तियाँ मन्द पड़ जाती हैं।

शारीरिक थकान में शिथिलता, निस्तेजपन, जम्हाई, झपकी कंधे झुकाकर बैठना, आसन बदलना. उदासीनता आदि आते हैं। मानसिक थकान मे सिर में भारीपन नींद, झपकी, जम्हाई. आपस में बातचीत, कार्य में गलतियाँ आदि होने लगती हैं। 

ये सभी व्यवहार व्यक्ति की सीखने की क्रिया को प्रभावित करती है। विद्यालय में दोषपूर्ण पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियाँ, वातावरण, वायु प्रकाश, फर्नीचर, शारीरिक दोष आदि थकान उत्पन्न करते हैं, इन सभी कारणों को दूर करना आवश्यक है।

सिम्पसन ( Simpson) ने थकान को दूर करने के लिये कहा है-"अनावश्यक थकान उत्पन्न होने देने के लिये शिक्षकों द्वारा सामंजस्य स्थापित किये जाने वाले अनेक कार्यों में सर्वश्रेष्ठ यह है कि वे बालकों में आत्मविश्वास तथा सुरक्षा की भावना का विकास करे।"

स्मरण (MEMORY)

अधिगम को प्रभावित करने में स्मरण का विशेष योग है। हम जिन तथ्यों को शीघ्रतापूर्वक याद कर लेते हैं। उन्हें जल्दी अधिगम करना कहते हैं। पूर्व अनुभवों को अचेतन मन में संचित रखने की आवश्यकता पड़ने पर चेतन मन में लाने की शक्ति को स्मृति कहा गया है।

स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है। यह सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है। इसमें अतीत के अनुभवों को चेतना में लाया जाता है। स्मृति का पहला अंग है सीखना, धारण, पुनःस्मरण तथा पहचान इसके अन्य अंग है। 

अधिगम तथा स्मृति, दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। शीघ्र स्मरण, उत्तम धारण, शीघ्र पुनःस्मरण तथा शीघ्र पहचान की प्रक्रिया ही स्मृति के अधिगम पर प्रभाव को बताते हैं।

अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये स्मृति का प्रशिक्षण आवश्यक है। अच्छी स्मृति तथा अच्छा प्रशिक्षण परस्पर सम्बन्धित है। उत्तम अधिगम के लिये स्मृति को विकसित करने के लिये दृढ़ निश्चय, स्पष्ट ज्ञान, प्रोत्साहन, पहले से समझना, रुचि उत्पन्न करना, पूर्वज्ञान, स्मरण के अधिक अवसर, दोहराना, संवेगात्मक स्थिरता, एकाग्रता तथा सरल विधियों को अपनाकर अधिगम को प्रभावशाली बनाया जा सकता है।

विस्मरण (FORGETTING)

जब सीखी गई बात या क्रिया विस्मरण होने लगती है, तब अधिगम का हास होने लगता है। विस्मृति एक मानसिक क्रिया है। यह नकारात्मक क्रिया है। विस्मृति के कारण व्यवहार में असामान् आने लगती है। 

मन (Munn) के अनुसार- "सीखी हुई बात को स्मरण रखने या पुनःस्मरण करने की असफलता को विस्मृति कहते हैं।" 

ड्रेवर (Drever) के शब्दों में- "विस्मृति का अर्थ है किसी समय प्रयास करने पर भी पूर्व अनुभव का स्मरण करने या पहले सीखे हुए किसी कार्य को करने में असफलता।"

बाधा, दमन, अनभ्यास, रुचि एवं इच्छा का अभाव, विषय का स्वरूप, विषय की मात्रा, सीखने की कमी, सीखने की दोषपूर्ण विधि, मानसिक आघात, मानसिक क्षेत्र, मादक वस्तुओं का प्रयोग स्मरण न करने की इच्छा तथा सवेगात्मक असंतुलन विस्मृति के लिये उत्तरदायी है।

विस्मरण कम करने के लिये पाठ की विषय-वस्तु कम होनी चाहिये। पूरे पाठ का स्मरण कराना चाहिये। पाठ का स्मरण होने के बाद उसका धारण किया जाना आवश्यक है। स्मरण का ध्यान विकसित हो विचार साहचर्य के नियमन का पालन, पूर्ण व आंशिक विधि का उपयोग, सस्वर, स्मरण के बाद विश्राम, पाठ की पुनरावृत्ति तथा स्मरण के नियमों का प्रयोग किया जाना आवश्यक है।

अभिप्रेरणा  (MOTIVATION) 

अधिगम को गति प्रदान करने तथा उसे सफल बनाने में अभिप्रेरणा की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। 

मेहरान के. टॉमसन के शब्दों में- "छात्र की मानसिक क्रिया के बिना विद्यालय में अधिगम बहुत कम होता है। सबसे प्रभावशाली अधिगम उस समय होता है जब मानसिक क्रिया सर्वाधिक होती है। अधिकतम मानसिक क्रिया प्रबल अभिप्रेरणा के फलस्वरूप होती है।"

इसलिये प्रभावशाली अधिगम के लिये अभिप्रेरणा अत्यन्त आवश्यक है। हैरिस ने इसीलिये कहा है" अभिप्रेरणा की समस्या शिक्षा मनोविज्ञान तथा कक्षा भवन की प्रक्रिया, दोनों के लिये केन्द्रीय महत्त्व की है। " 

अधिगम के लिये अभिप्रेरणा एक अनिवार्य तत्त्व है। यह अधिगम को उसकी गुणवत्ता तथा मात्रा को प्रभावित करता है। प्रेरणा की परिभाषायें इस प्रकार हैं।

सी.वी. गुड के अनुसार- प्रेरणा कार्य को आरम्भ करने, जारी रखने और नियमित करने की प्रक्रिया है।

ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन के अनुसार- प्रेरणा एक प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाले की आन्तरिक शक्तियाँ या आवश्यकतायें, उसके वातावरण में विभिन्न लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती है।

कक्षा में दो प्रकार से प्रेरणा दी जाती है- सकारात्मक तथा नकारात्मक । सकारात्मक प्रेरणा से सुख एवं सन्तोष और नकारात्मक प्रेरणा से कष्ट होता है। कक्षा में सकारात्मक प्रेरणा का प्रयोग मनोविज्ञान की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है। कक्षागत प्रेरणा का आधार आवश्यकता (Needs), चालक (Drives), उद्दीपन (Incentives) तथा प्रेरक (Motives) हैं।

प्रेरणा प्रदान करने में रुचि, सफलता का ध्यान, असफलता का भय प्रतिद्वन्द्विता, सामूहिक कार्य, प्रशंसा, दण्ड, आवश्यकता का ज्ञान आदि का सहारा लिया जाता है।

प्रेरणा के द्वारा बालक की अधिगम प्रक्रिया में ये परिवर्तन किये जाते है-

1. बाल व्यवहार में परिवर्तन,

2. चरित्र निर्माण में सहायता, 

3. ध्यान केन्द्रित करने में सहायता,

4. मानसिक विकास में योग,

5. रुचि का विकास,

6. अनुशासन की भावना का विकास,

7. सामाजिक गुणों का विकास. 

8. अधिक ज्ञान का अर्जन,

9. अधिगम में तीव्रता.

10. व्यक्तिगत भिन्नता के अनुसार प्रगति।

कैली के शब्दों में- "अभिप्रेरणा, अधिगम प्रक्रिया के उचित व्यवस्थापन में केन्द्रीय कारक होता है। किसी प्रकार की भी अभिप्रेरणा सभी प्रकार के अधिगम में अवश्य उपस्थित रहनी चाहिये।"

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