आदत : आदत का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, निर्माण एवं महत्व

आदत का अर्थ 

जो कार्य हमें पहले कठिन जान पड़ता है, वह सीखने के बाद सरल हो जाता है। हम उसे जितना अधिक दोहराते हैं, उतना ही अधिक वह सरल होता चला जाता है। कुछ समय के बाद, हम उसे बिना ध्यान दिये बिना प्रयास किये बिना सोचे-समझे, ज्यों का त्यों करने लगते हैं। इसी प्रकार के कार्य को आदत कहते हैं। दूसरे शब्दों में आदत एक सीखा हुआ कार्य या अर्जित व्यवहार है, जो स्वतः होता है।

    आदत की परिभाषा 

    हम आदत के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं, जो प्रमुख इस प्रकार से हैं-

    गैरेट के अनुसार- "आदत उस व्यवहार को दिया जाने वाला नाम है, जो इतनी अधिक बार दोहराया जाता है कि यंत्रवत् हो जाता है।"

    लैडेल के अनुसार - "आदत, कार्य का वह रूप है, जो आरम्भ में स्वेच्छा से और जान-बूझकर किया जाता है, पर जो बार-बार किए जाने के कारण स्वतः होता है।"

    मरसेल के अनुसार- "आदतें, व्यवहार करने की और परिस्थितियों एवं समस्याओं का सामना करने की निश्चित विधियां होती हैं।" 

    विलियम जेम्स के अनुसार- "प्राणी के पूर्वकृत व्यवहारों की पुनरावृत्ति आदत है।"

    मार्गन एवं गिलीलैंड के अनुसार- "व्यवहार द्वारा अर्जित समस्त परिवर्तन जो अनुभव द्वारा प्राप्त होते है आदत कहलाते हैं।"

    मैरेट के अनुसार- "बराबर दोहराये जाने वाले स्वचालित व्यवहार का नाम आदत है।" 

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    आदतों के प्रकार 

    आदते अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की होती है। इनका सम्बन्ध-जानने, सोचने, कार्य करने और अनुभव करने से होता है। वैलेनटीन ने इनका वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया है-

    यान्त्रिक आदतें

    इनका सम्बन्ध शरीर की विभिन्न गतियों से होता है और हम इनको बिना किसी प्रकार के प्रयास के करते हैं; जैसे- कोट के बटन लगाना या जूते के फीते बांधना।

    शारीरिक अभिलाषा-सम्बन्धी आदतें

    इनका सम्बन्ध शरीर की अभिलाषाओं की पूर्ति से होता है; जैसे-सिगरेट पीना या पान खाना । 

    नाड़ी-मंडल सम्बन्धी आदतें 

    इनका सम्बन्ध मस्तिष्क के किसी प्रकार से होता है। ये व्यक्ति के संवेगात्मक असन्तुलन (Emotional Instability) को व्यक्त करती है, जैसे- नाखून या कलम चबाना।

    भाषा सम्बन्धी आदतें 

    इनका सम्बन्ध बोलने से होता है जिस प्रकार दूसरे बोलते हैं, उसी प्रकार बोलकर हम इन आदतों का निर्माण करते हैं। यदि शिक्षक शब्दों का गलत उच्चारण करता है, तो बालकों में भी वैसी ही आदत पड़ जाती है।

    विचार-सम्बन्धी आदतें 

    इनका सम्बन्ध आंशिक रूप से व्यक्ति के ज्ञान और आंशिक रूप से उनकी रुचियों एवं इच्छाओं से होता है; जैसे- समय तत्परता, कारण-सम्बन्धी विचार।

    भावना सम्बन्धी आदतें 

    इनका सम्बन्ध व्यक्ति की भावनाओं से होता है, जैसे- प्रेम, घृणा या सहानुभूति की भावना ।

    नैतिक आदतें

    इनका सम्बन्ध नैतिकता से होता है, जैसे-सत्य बोलना या पवित्र जीवन व्यतीत करना।

    आदतों का निर्माण 

    आदतों का निर्माण करने के लिए अनेक नियम, उपाय या सिद्धान्त हैं, जिनमें से मुख्य दृष्टव्य हैं- 

    संकल्प 

    हम जिस कार्य करने की आदत डालना चाहते हैं, उसके बारे में हमें दृढ संकल्प करना चाहिए। यदि हम प्रात:काल व्यायाम करने की आदत डालना चाहते हैं, तो हमें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम व्यायाम अवश्य करेंगे, चाहे कुछ भी क्यों न हो। जेम्स (James) का परामर्श है-"हमें नये कार्य को अधिक से अधिक सम्भव दृढ़ता और निश्चय से आरम्भ करना चाहिए।"

    क्रियाशीलता

    हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसके लिए केवल संकल्प ही पर्याप्त नहीं है। संकल्प को कार्य रूप में परिणत करना भी आवश्यक है। जेम्स का कथन है-"जो संकल्प आप करें, उसे पहले अवसर पर ही पूर्ण कीजिए।"

    निरन्तरता 

    हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसे हमें निरन्तर करते रहना चाहिए। उसमे कभी भी किसी प्रकार का विराम या शिथिलता नहीं आने देनी चाहिए। जेम्स (James) के अनुसार- "जब तक नई आदत आपके जीवन में पूर्ण रूप से स्थायी न हो जाय, तब तक उसमें किसी प्रकार का अपवाद नहीं होने देना चाहिए।"

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    अभ्यास 

    हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसका हमें प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए। जेम्स (James) का मत है- “प्रतिदिन थोड़े से ऐच्छिक अभ्यास के द्वारा कार्य करने की शक्ति को जीवित रखिए।" 

    इस मूल मंत्र को सदैव याद रखिए- "करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात पे सिल पर परत निशान।" 

    अच्छे उदाहरण 

    अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए अच्छे उदाहरण परम आवश्यक है। अतः शिक्षक को अच्छी आदतों के सम्बन्ध में उपदेश देने के बजाय बालकों के समक्ष अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए। जेम्स का शिक्षक को परामर्श है-"अपने छात्रों को बहुत अधिक उपदेश मत दीजिए।"

    पुरस्कार 

    अच्छी आदतों का निर्माण करने में पुरस्कार का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। अतः बालकों को अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए पुरस्कार देकर प्रोत्साहित करना चाहिए। भाटिया (Bhatia) के अनुसार- "बालकों को अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए पुरस्कार दिया जाना चाहिए।"

    बुरी आदतों को तोड़ना

    व्यक्ति समाज से अस्वीकृत व्यवहार को भी आदत बना लेता है। यह व्यवहार उसके जीवन का अंग बन जाता है। इस प्रकार की आदतों से उसका तथा समाज दोनों का नुकसान होता है। अतः ऐसी आदतों को तोड़ना भी पड़ता है। स्टर्ट व ओकडन के अनुसार- "शिक्षक का कार्य न केवल आदतों का निर्माण करना है, वरन् उसको तोड़ना भी है।"

    बुरी आदतों को तोड़ने के लिए शिक्षक और बालक निम्नलिखित विधियों का प्रयोग कर सकते हैं- 

    संकल्प 

    बालक को अपनी बुरी आदत को तोड़ने के लिए दृढ़ संकल्प करना चाहिए। जेम्स (James) का सुझाव है कि उसे यह संकल्प एकान्त में न करके अपने मित्रों, सम्बन्धियों, माता-पिता आदि के समक्ष करना चाहिए।

    आत्म सुझाव

    बालक आत्म-सुझाव द्वारा अपनी किसी भी बुरी आदत को तोड़ने में सफलता प्राप्त कर सकता है; उदाहरणार्थ, यदि वह सिगरेट पीने की आदत छोड़ना चाहता है, तो उसे अपने आप से यह कहते रहना चाहिए, सिगरेट पीने से कैंसर हो जाता है। इसलिए, मुझे सिगरेट पीना छोड़ देना चाहिए।

    ठीक अभ्यास

    नाईट डनलप (Knight Dunlop) के अनुसार- यदि बालक में कोई गलत कार्य करने की आदत पड़ गई है, तो वह उसका ठीक अभ्यास करके उसका अन्त कर सकता है; उदाहरणार्थ, यदि वह कुछ शब्दों को गलत बोलता या लिखता है, तो उसे उनको बोलने या लिखने का सही अभ्यास करना चाहिए।

    नई आदत का निर्माण 

    यदि बालक किसी बुरी आदत का परित्याग करना चाहता है, तो उसे उसके स्थान पर किसी नई और अच्छी आदत का निर्माण करना चाहिए। भाटिया (Bhatia) के शब्दों में- "अच्छी आदत, बुरी आदत के प्रकटीकरण को अवसर नहीं देती है। अतः उसका स्वयं ही अन्त हो जाता है।"

    पुरानी आदत पर ध्यान 

    जब तक बालक अपनी पुरानी आदत को बिल्कुल न तोड़ दे, तब तक उसे उस पर अपना ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए और उसके प्रति तनिक भी लापरवाह नहीं होना चाहिए। 

    बुरी आदत का एकदम या धीरे धीरे त्याग 

    जेम्स (Jaines) के अनुसार- बालक कुछ आदतों का परित्याग उनको एकदम तोडकर और कुछ को धीरे-धीरे तोडकर कर सकता है; उदाहरणार्थ, यदि उसमें किसी नशीली वस्तु का प्रयोग करने की आदत है तो वह उसका प्रयोग सदैव के लिए एकदम बन्द कर सकता है। यदि आदत इससे कम खराब है, तो वह धीरे-धीरे तोड़ सकता है। उदाहरणार्थ, वह चाय पीना धीरे-धीरे कम करके बिल्कुल समाप्त कर सकता है।

    अप्रत्यक्ष आलोचना

    बालक में कुछ आदते संवेगात्मक असन्तुलन के कारण होती हैं, जैसे- नाखून या कलम चबाना शिक्षक इस प्रकार की आदत की अप्रत्यक्ष आलोचना करके उसको छुड़वा सकता है; उदाहरणार्थ, वह बालक से यह कह सकता है-"नाखून चबाना हानिकारक आदत है, क्योंकि नाखूनों की गंदगी पेट में पहुँचकर हानि पहुंचाती है।"

    संगति में परिवर्तन

    कभी-कभी बालक में बुरे बालकों की संगति के कारण चोरी करने, झूठ बोलने, विद्यालय से भाग जाने आदि की कोई बुरी आदत पड़ जाती है। ऐसी दशा में शिक्षक को यह प्रयास करना चाहिए कि बालक बुरी संगति को छोड़ दे उसे इस कार्य में बालक के माता-पिता का सहयोग प्राप्त करना चाहिए।

    दण्ड 

    शिक्षक, दण्ड का प्रयोग करके बालक की बुरी आदत को छुड़वा सकता है। पर दण्ड गलत कार्य के तुरन्त बाद ही दिया जाना चाहिए। बहुत समय बाद दिये जाने वाले दण्ड को बालक अपने प्रति अन्याय समझता है। बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वेल्ड (Boring. Langfeld & Weld) का मत है- "कभी-कभी दण्ड, आदतों को तोड़ने में लाभप्रद होता है, पर दण्ड उचित अवसर पर ही दिया जाना चाहिए।"

    पुरस्कार 

    बालक की बुरी आदत छुड़वाने के लिए पुरस्कार का सफलता से प्रयोग किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में बोरिंग, लैंगफील्डवील्ड ने लिखा है-"पुरस्कार, दण्ड से उत्तम है, प्रशंसा निन्दा से उत्तम है। "

    शिक्षा के द्वारा हम व्यक्ति के व्यवहार को वांछित दिशा प्रदान कर उसमें स्थायित्व लाते हैं। शिक्षा में आदत का महत्त्व इस प्रकार है।

    आदतों का शिक्षा व सीखने में महत्व

    रायबर्न ने लिखा है-"सीखना, आदतों के निर्माण की प्रक्रिया है।"

    यह कथन, शिक्षा और सीखने में आदतों की उपयोगिता को प्रमाणित करता है। हम इसकी पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों से कर सकते है- 

    1. अच्छी आदतें, बालक के सन्तुलित शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास में योग देती है। 

    2. आदतें, बालक के चरित्र का निर्माण करती हैं। वह अपनी आदतों के कारण ही कर्मठ या अकर्मण्य, उदार या स्वार्थी, दयालु या कठोर बनता है। इसीलिए कहा गया है-"चरित्र आदतों का पुंज है।"

    3. आदतें बालक के व्यक्तित्व का निर्माण करती है। उनके अभाव में उसका व्यक्तित्व प्रभावहीन हो जाता है। क्लेपर ने ठीक ही लिखा है-"आदतें व्यक्तित्व की आवरण है।"

    4. आदतें बालक के स्वभाव का अंग बन जाती है। अतः उसे बाध्य होकर उन्हीं के अनुसार कार्य करना पड़ता है। ड्यूक आफ वेलिंगटन का विचार है-"आदत दूसरा स्वभाव है। आदत, स्वभाव से दस गुना अधिक शक्तिशाली है।" 

    5. आदत, बालक को निश्चित सीमाओं के अन्तर्गत रखती है। अतः वह अनैतिक, अधार्मिक या असामाजिक कार्य नहीं करता है।

    6. आदत बालक में जीवन के कठिनतम कार्यों के प्रति घृणा उत्पन्न नहीं होने देती है। यही कारण है कि मनुष्य अंधेरी खानों, हिमाच्छादित प्रदेशों और ऐसे ही अन्य स्थानों में कार्य करते हैं। 

    7. आदत, बालक को समाज से अनुकूलन और समाज-विरोधी कार्य न करने में सहायता देता है। इस प्रकार, आदत समाज के स्थायित्व में योग देता है जेम्स का यह कथन सत्य है- आदत, समाज का विशाल चक्र और उसकी परम श्रेष्ठ संरक्षिका है। 

    8. जब बालक को किसी कार्य को करने की आदत पड़ जाती है, तब उसे करने में उसको थकान का अनुभव नहीं होता है।

    9. जब कोई सीखी हुई बात बालक की आदत में आ जाती है, तब उसको स्मरण रखने में उसे किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं होता है।

    10. जब बालक में किसी कार्य को करने की आदत पड़ जाती है, तब वह उसे शीघ्रता, कुशलता और सरलता से कर लेता है। इससे होने वाले एक अन्य लाभ की ओर संकेत करते हुए रायबर्न (Ryburn) ने लिखा है- "आदत हममें जीवन के अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए समय और मानसिक शक्ति की बचत करने की क्षमता उत्पन्न करती है।"

    हमने उपर्युक्त पंक्तियों में शिक्षा और सीखने में आदत की उपयोगिता की पुष्टि अनेक तथ्यों से की है। किन्तु हाल के शैक्षिक प्रयोगों ने यह प्रमाणित किया है कि शिक्षकों को बालकों में आदतों का निर्माण करने के बजाय शिक्षण की अधिक प्रभावशाली विधियों को खोजना और प्रयोग करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए मरसेल ने लिखा है-"आदत का निर्माण केवल सन्तोष का चिन्ह है और जब आदतों का निर्माण हो जाता है तब अधिगम और उन्नति का कार्य अवरुद्ध हो जाता है।"


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