शिक्षण कौशल के प्रकार | Types of Teaching Skills
(1) खोजक प्रश्न कौशल
इसमें खोजक या अनुशीलन प्रकार के प्रश्न पूछकर शिक्षक छात्रों का ध्यान आकर्षित करता है। और उन्हें अभिप्रेरित करता है। वह छात्रों में रुचि एवं जिज्ञासा उत्पन्न करके उनके पूर्वज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ता है। छात्र चिन्तनशील होकर गराई में जाते हैं और विभिन्न पहलुओं पर ध्यानपूर्वक मंथन करते हैं।
"Probing questionning is a skill of going deep into the students responses by asking a senes of questions which lead the pupil towards the correct response or higher level of understanding"
खोजपूर्ण प्रश्न कौशल के घटक (Components)
इस कौशल के निम्नांकित घटक है-
1. संकेत देना (Prompting).
2. बिस्तृत सूचना प्राप्ति (Seeking further Information).
3 पुन: केन्द्रीयकरण (Refocussing);
4. पुनः प्रेषण (Redirection),
5. आलोचनात्मक सजगता (Critical Awareness)।
शिक्षक जब कक्षा में प्रश्न पूछता है तो उसे कई बार नकारात्मक (Negative) उत्तर प्राप्त होता है (जैसे मुझे नहीं पता, मैं नहीं जानता. ठीक उत्तर नहीं आता) तो शिक्षक संकेत देकर उन्हे सही उत्तर देने के लिए प्रेरित करता है।
जब छात्र अधूरा (Incomplete) उत्तर देते हैं तो शिक्षक पूर्ण उत्तर प्राप्ति हेतु प्रयास करता है। इसके लिए शिक्षक कहता है तुम ठीक कह रहे हो, हाँ यह बात स्पष्ट करो, कुछ और बताओ, इसमें एक महत्त्वपूर्ण बात और है. जरा सोचो वह कौन-सी है। इस प्रकार शिक्षक विस्तृत सूचना प्राप्ति घटक का प्रयोग करता है।
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जब शिक्षक पूर्ण उत्तर प्राप्त कर लेता है तब प्राप्त ज्ञान को नवीन विषय-वस्तु से जोड़ने का प्रयास करता है इसे पुन: केन्द्रीयकरण (Refocussing) कहा जाता है।
पुन:प्रेषण (Redirection) के अन्तर्गत शिक्षक एक ही प्रश्न को कई छात्रों से पूछता है इस प्रकार वह पुनः प्रेषण का कार्य करता है।
अन्त में शिक्षक सही उत्तर पाने के पश्चात् छात्रों से उत्तर की सार्थकता बताने के लिए कहता है, यही आलोचनात्मक सजगता कहलाती है।
(2) स्पष्टीकरण का कौशल
शिक्षण में अनेक प्रकार के सिद्धान्त प्रत्यय तथा नियमों आदि को समझाना पड़ता है। इसके लिए शिक्षक इनकी व्याख्या करता है। इस व्याख्या या स्पष्टीकरण के कौशल के अन्तर्गत "विषय-वस्तु पर आधारित परस्पर पूरी तरह से सम्बन्धित क्रमबद्ध तथा सार्थक कथन शिक्षक द्वारा दिये जाते हैं।''
"Explanation is defined as an activity to bring about an understanding about a concept. a principle or a phenomenon."
स्पष्टीकरण कौशल के घटक (Components)
1. प्रारम्भिक कथनों का स्पष्टता से प्रयोग।
2. निष्कर्षात्मक कथन स्पष्ट होना
3. भाषा में प्रवाह होना।
4. उपयुक्त शब्दों का प्रयोग।
5. कथनों में तारतम्यता होना।
6. असम्बद्ध कथनों की अनुपस्थिति ।
7. विचारों में परस्पर जोड़ने वाले शब्दों का प्रयोग।
8. छात्रों के बोध के परीक्षण हेतु बीच-बीच में पूछे गये प्रश्न ।
स्पष्टीकरण के कौशल को व्याख्या कौशल भी कहा जाता है। "यह कौशल शिक्षक व्यवहारों का वह समूह है जिसके द्वारा किसी सम्प्रत्यय, सिद्धान्त, नियम, पद, परिभाषा, विधि-प्रविधि तथा संरचना आदि को भलीभाँति समझाने के लिये अन्तःसम्बन्धित एवं अन्तः आश्रित कथनों का प्रयोग किया जाता है।"
अच्छा स्पष्टीकरण वह है, जिसे छात्र सरलता से समझ सकें, सुगमता से ग्रहण कर सकें और सहज ही उसे बता सकें। शिक्षक के कुछ व्यवहार प्रभावशाली व्याख्या में सहायक होते हैं और कुछ व्यवधान डालते हैं। स्पष्टीकरण या व्याख्या कौशल का प्रमुख उद्देश्य, स्पष्टीकरण के प्रभावशाली व्यवहारों में वृद्धि करना तथा व्यवधान अथवा बाधा डालने वाले व्यवहारों को कम करना होता है।
(3) उद्दीपन परिवर्तन कौशल
छात्रों का ध्यान आकर्षित करने के लिए तथा ध्यान को पाठ में लगाये रखने के लिए शिक्षक अपने व्यवहारों में जान-बूझकर जो परिवर्तन लाता है उसे उद्दीपन परिवर्तन कौशल कहते हैं।
शिक्षक शिक्षण को रोचक बनाये रखने के लिये विभिन्न प्रकार के उद्दीपनों का प्रयोग करता है, जैसे- सहायक सामग्री का प्रयोग, श्यामपट पर लेखन करना, छात्रों के पास जाकर प्रश्न पूछना, कभी चेहरे पर हाव-भाव बदलकर अपनी बात कहना हाथ से इशारे करना आदि।
प्रभावशाली शिक्षण के लिये इस उद्दीपन का प्रयोग किया जाना चाहिये।
उद्दीपन परिवर्तन कौशल के घटक (Components)
1. शरीर संचालन (Body Movements),
2. हाव-भाव, मुखमुद्रा, आँखों व हाथों के संकेत (Gestures),
3. स्वर में उतार चढ़ाव (Change in Speech Pattern),
4. भाव केन्द्रीयकरण (Focussing),
5. छात्र शिक्षक अन्त: क्रिया में परिवर्तन (Change in Interation Style),
6. मौन विराम (Pausce),
7. श्रव्य दृश्य क्रम परिवर्तन (Change in Audio and Visual Order),
8. छात्रों का सहयोग (Cooperation of Students)।
सी० पी० आर० भटनागर ने उद्दीपन परिवर्तन कौशल का विवरण प्रस्तुत करते हुये बताया है कि एक अच्छा शिक्षक सदैव प्रभावशाली शिक्षण के लिये उद्दीपन परिवर्तन कौशल का प्रयोग करता है। "कक्षा में पढ़ाते समय शिक्षक को एक स्थान पर खड़े न होकर आवश्यकतानुसार शरीर संचालन (Movements) करते रहना चाहिए। उसे अपने हाव-भाव (Gestures) तथा स्वर में उतार-चढ़ाव (Change in Speech Pattern) लाते रहना चाहिए। शिक्षण किसी विशेष बिन्दु पर अधिक बल का केन्द्रीकरण (Focussing) करके भी छात्रों का ध्यान आकर्षित कर सकता है। छात्र शिक्षक अन्तःक्रिया की शैली में भी परिवर्तन किया जाना चाहिए। कुछ कथनों के बाद शिक्षक मौन रहकर आवश्यक विराम (Pause) दे देता है। कभी-कभी वह श्रव्य-दृश्य क्रम (Change in Order) में परिवर्तन लाकर भी छात्रों का ध्यान आकर्षित कर विद्यार्थियों का सहयोग (Cooperation of the Students) प्राप्त कर सकता है।"
(4) पुनर्बलन कौशल
पुनर्बलन से हमारा अभिप्राय है ऐसे उद्दीपनों का प्रयोग करना जिनके प्रस्तुतीकरण या जिन्हें हटाने से किसी अनुक्रिया के होने की आशा बढ़ जाती है। इन उद्दीपनों में पुरस्कार, शाबाशी देना, प्रशंसा करना, कमियों को बताना आदि क्रियायें आती हैं। ये क्रियायें दो प्रकार की होतीं हैं-
(1) धनात्मक पुनर्बलन तथा (2) ऋणात्मक पुनर्बलन ।
(The skill of reinforcement implies giving positive reinforcers using appropriate schedule and avoiding negative reinforcer.)
धनात्मक पुनर्बलन द्वारा छात्रों के वांछित व्यवहारों को प्रबल बनाया जाता है और ऋणात्मक पुनर्बलन द्वारा छात्रों के गलत या अवांछित व्यवहारों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
शोध अध्ययन हमें यह बताते हैं कि धनात्मक पुनर्बलन का प्रभाव, ऋणात्मक पुनर्बलन की तुलना में ज्यादा अच्छा पड़ता है। अतः पुनर्बलन कौशल का अभ्यास इस प्रकार कराया जाता है कि शिक्षक धनात्मक पुनर्बलन का प्रयोग अधिक से अधिक तथा ऋणात्मक पुनर्बलन का प्रयोग कम से कम कक्षा शिक्षण के क्षेत्र में करे ।
पुनर्बलन कौशल के घटक (Components)
1. प्रशंसात्मक कथनों का प्रयोग।
2. हावभाव तथा अन्य अशाब्दिक संकेतों का प्रयोग।
3. छात्रों के विचारों एवं भावों से अपनी सहमति प्रकट करना।
4. नकारात्मक शाब्दिक कथनों का प्रयोग।
5. नकारात्मक अशाब्दिक कथनों का प्रयोग ।
6. छात्रों के सही उत्तरों को श्यामपट पर लिखना ।
7. पुनर्बलन का समुचित उपयोग।
8. छात्रों के सुझाव का समर्थन।
(5) दृष्टान्त कौशल
जब शिक्षण प्रक्रिया में सिद्धान्त, नियम या प्रत्ययों को शिक्षक व्याख्यान के द्वारा स्पष्ट नहीं कर पाते तब यह कई बार चित्रों, स्पष्टीकरणों तथा उदाहरणों का सहारा लेकर उन्हें स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं। दृष्टान्तों तथा उदाहरणों के माध्यम से शिक्षक नवीन जटिल व अमूर्त ज्ञान को सरलता से छात्रों तक पहुँचा देता है।
दृष्टान्त कौशल के माध्यम से शिक्षक जटिल सम्प्रत्ययों तथा अमूर्त ज्ञान को सरल, सहज तथा बोधगम्य बना देता है। इसके प्रयोग हेतु शिक्षक को विभिन्न सम्प्रत्यय सिद्धान्त या नियम आदि को समझाने के लिये पहले से ही समुचित उदाहरणों तथा दृष्टान्तों का चयन कर लेना चाहिये। फिर उन उदाहरणों एवं दृष्टान्तों को कक्षा में प्रभावशाली विधि से कक्षा के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। फिर इन उदाहरणों तथा दृष्टान्ती के माध्यम से शिक्षण के सम्प्रत्यय एवं सिद्धान्त आदि के साथ सम्बन्ध प्रदर्शित करते हुये उन्हें बोधगम्य बनाने का प्रयास करना चाहिये। यथासम्भव उदाहरण एवं दृष्टान्त सरल व सहज होने चाहिये तथा उनका सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूप से विषय वस्तु से दिग्दर्शित कराया जाना चाहिये।
दृष्टान्त या उदाहरणों के प्रकार
अशाब्दिक (Non-Verbal)
- वास्तविक उदाहरण
- माडल तथा चित्र
- मानचित्र व रेखाचित्र
- प्रायोगिक प्रदर्शन
शाब्दिक (Verbal)
- कहानी कथन
- घटना का वर्णन
- चुटकुले
- कविता
- लेख
दृष्टान्त कौशल के घटक (Components)
1. उदाहरणों की सार्थकता।
2. उदाहरणों की सरलता।
3. उदाहरणों की रोचकता।
4. आगमन उपागम का प्रयोग।
5 निगमन उपागम का प्रयोग।
6. छात्रों से उसी प्रकार के अन्य उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण।
(6) कक्षा-कक्ष प्रबन्ध कौशल
कक्षा-कक्ष प्रबन्ध कौशल से हमारा अभिप्राय ऐसे कौशल से है जो शिक्षक को कक्षा में अपने क्रियाकलापों को नियन्त्रण में रखकर प्रभावपूर्ण ढंग से कक्षा शिक्षण में मदद करे, जिससे शिक्षक अपने शिक्षण उद्देश्यों के अनुसार अनुशासनात्मक विधि से कक्षा कार्य संचालित कर सकें।
कक्षा-कक्ष-प्रबन्ध-कौशल, शिक्षक के ऐसे व्यवहार है जिनके द्वारा शिक्षक प्रभावशाली शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया हेतु उचित कक्षा-वातावरण उत्पन्न करने तथा छात्रों के व्यवहारों को नियन्त्रित करता हुआ उनका ध्यान विषय-वस्तु की ओर आकर्षित करता है तथा कक्षा के अंत तक उसे बनाये रखताहै।
एक सफल शिक्षक को कक्षा-कक्ष प्रबन्ध कौशल में दक्षता प्राप्त करना अति आवश्यक है।
कक्षा-कक्ष प्रबन्ध कौशल के प्रमुख घटक (Components)
(1) अधिगम रोचक बनाना (Making Learning Interesting )।
(2) अधिगम उद्देश्यपूर्ण बनाना (Making Learning Purposeful)।
(3) छात्रों को उद्देश्य प्राप्ति के लिए अभिप्रेरित करना (Motivating Pupils for Achieving Objectives)।
(4) छात्र-शिक्षक अन्तःक्रिया को प्रोत्साहन देना (To Encourage Student Teacher Interaction)।
(5) निर्देशों की स्पष्टता (Clarity of Instructions )।
(6) अनुशासनहीनता पर नियन्त्रण रखना (Controlling Indiscipline)।
(7) वांछित व्यवहारों का पुनर्बलन (Reinforcing Desired Behaviour)।