सीखने की प्रक्रिया, सीखने का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ

सीखने की प्रक्रिया

प्रत्येक व्यक्ति नित्यप्रति अपने जीवन में नये अनुभव एकत्र करता रहता है। ये नवीन अनुभव, व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं। इसलिये ये अनुभव तथा इनका उपयोग ही सीखना या अधिगम करना कहलाता है।

    मनोवैज्ञानिकों ने सीखने को मानसिक प्रक्रिया माना है। यह क्रिया जीवनभर निरन्तर चलती रहती है।

    सीखने की प्रक्रिया की दो मुख्य विशेषताएँ है- निरन्तरता और सार्वभौमिकता। यह प्रक्रिया सदैव और सर्वत्र चलती रहती है। इसलिए, मानव अपने जन्म से मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। उसकी सीखने की प्रक्रिया में विराम और अस्थिरता की अवस्था कभी नहीं आती है। हाँ, इतना अवश्य है कि उसकी गति कभी तीव्र और कभी मंद हो जाती है। इसके अतिरिक्त मानव के सीखने का कोई निश्चित स्थान और समय नहीं होता है। वह हर घड़ी और हर जगह कुछ न कुछ सीख सकता है। वह न केवल शिक्षा-संस्था में, वरन् परिवार, समाज, संस्कृति, सिनेमा, सड़क, पड़ोसियों, संगी-साथियों, अपरिचित व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों-सभी से थोड़ी या अधिक शिक्षा ग्रहण करता है। इस प्रकार वह आजीवन सीखता हुआ और इसके फलस्वरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करता हुआ, जीवन में आगे बढ़ता चला जाता है। इसलिए. वुडवर्थ ने कहा है-"सीखना, विकास की प्रक्रिया है। "

    सीखने का अर्थ 

    'सीखना' किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। हम अपने हाथ में आम लिए चले जा रहे हैं। कहीं से एक भूखे बन्दर की उस पर नजर पड़ती है। वह आम को हमारे हाथ से छीन कर ले जाता है। यह भूखे होने की स्थिति में आम के प्रति बन्दर की प्रतिक्रिया है। पर यह प्रतिक्रियाँ स्वाभाविक (Instinctive) है, सीखी हुई नहीं। इसके विपरीत, बालक हमारे हाथ में आम देखता है। वह उसे छीनता नही है, वरन हाथ फैलाकर माँगता है। आम के प्रति बालक की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक नहीं सीखी हुई है। जन्म के कुछ समय बाद से ही उसे अपने वातावरण में कुछ-न-कुछ सीखने को मिल जाता है। पहली बार आग को देखकर वह उसे छू लेता है और जल जाता है। फलस्वरूप उसे एक नया अनुभव होता है। अतः जब वह आग को फिर देखता है तब उसके प्रति उसकी प्रतिक्रिया भिन्न होती है। अनुभव ने उसे आग को न छूना सिखा दिया है। अतः वह आग से दूर रहता है। इस प्रकार, "सीखना अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।"

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    सीखने की परिभाषा

    हम सीखने के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं, जो निम्नलिखित हैं-

    स्किनर के अनुसार- "सीखना, व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।"

    वुडवर्थ के अनुसार- "नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया है।"

    क्रो व क्रो के अनुसार- "सीखना-आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है।"

    गेट्स व अन्य के अनुसार- "सीखना, अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।"

    क्रानबेक के अनुसार- "सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है।" 

    मार्गन एवं गिलीलैण्ड के अनुसार- "सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार में परिमार्जन है जो प्राणी द्वारा कुछ समय के लिये धारण किया जाता है।"

    कुप्पूस्वामी के अनुसार- "अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीव, एक परिस्थिति में उसके अन्तःक्रिया के परिणाम के रूप में व्यवहार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता है, जो कुछ अंश तक स्थिरोन्मुख रहता है तथा जीव के सामान्य व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता है।"

    थार्नडाइक के अनुसार- "उपयुक्त अनुक्रिया के चयन तथा उसे उत्तेजना से जोड़ने का अधिगम कहते हैं।"

    उदयपरीक के अनुसार- "अधिगम ज्ञानात्मक, गामक अथवा व्यवहारगत निवेशों की आवश्यकता पड़ने पर उनके प्रभावात्मक एवं विभिन्न प्रयोग हेतु अधिग्रहण, आत्मीकरण व आन्तरीकरण करने तथा आगामी स्वचालित अधिगम की बढ़ी हुई क्षमता की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया है।" 

    इन परिभाषाओं का विश्लेषण करके हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सीखना, क्रिया द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है, व्यवहार में हुआ यह परिवर्तन कुछ समय तक बना रहता है. यह परिवर्तन व्यक्ति के पूर्ण अनुभवों पर आधारित होता है। 

    सीखने की विशेषताएँ 

    योकम एवं सिम्पसन (Youkam & Simpson) के अनुसार सीखने की सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार से है-

    सीखना: सम्पूर्ण जीवन चलता है 

    सीखने की प्रक्रिया आजीवन चलती है। व्यक्ति अपने जन्म के समय से मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता रहता है।

    सीखना : परिवर्तन है 

    व्यक्ति अपने और दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार, विचारों, इच्छाओं, भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है। 

    गिलफोर्ड के अनुसार- "सीखना, व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।" 

    सीखना सार्वभौमिक है 

    सीखने का गुण केवल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुतः संसार के सभी जीवधारी पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े भी सीखते हैं। 

    सीखना विकास है 

    व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं और अनुभवों के द्वारा कुछ न कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है। सीखने की इस विशेषता को पेस्टालॉजी (Pestalozzi) ने वृक्ष और फ्रोबेल (Frobel) ने उपवन का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है।

    सीखना अनुकूलन है 

    सीखना, वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को इनके अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सीख पाता है।

    गेट्स एवं अन्य (Gates & Others) का मत है-"सीखने का सम्बन्ध स्थिति के क्रमिक परिचय से है। "

    सीखना नया कार्य करना है 

    वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार सीखना कोई नया कार्य करना है। पर उसने उसमें एक शर्त लगा दी है। उसका कहना है कि सीखना, नया कार्य करना तभी है, जबकि यह कार्य फिर किया जाय और दूसरे कार्यों में प्रकट हो।

    सीखना अनुभवों का संगठन है 

    सीखना न तो नये अनुभव की प्राप्ति है और न पुराने अनुभवों का योग, वरन् नये और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति नये अनुभवों द्वारा नई बातें सीखता जाता है, वैसे-वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता चला जाता है। 

    सीखना उद्देश्यपूर्ण है 

    सीखना, उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही अधिक तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है मर्सेल के अनुसार सीखने के लिए उत्तेजित और निर्देशित उद्देश्य की अति आवश्यकता है और ऐसे उद्देश्य के बिना सीखने में असफलता निश्चित है।

    सीखना विवेकपूर्ण है 

    मर्सेल (Mursell) का कथन है कि सीखना, यांत्रिक कार्य के बजाय विवेकपूर्ण कार्य है। उसी बात को शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे-समझे, किसी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है। मर्सेल के शब्दों में सीखने की असफलताओं का कारण समझने की असफलताएं है।"

    सीखना सक्रिय है 

    सक्रिय सीखना ही वास्तविक सीखना है। बालक सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डाल्टन प्लान, प्रोजेक्ट मेथड आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियों, बालक की क्रियाशीलता पर बल देती हैं।

    सीखना व्यक्तिगत व सामाजिक, दोनों है

    सीखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही, पर इससे भी अधिक सामाजिक कार्य है। योकम एवं सिम्पसन के अनुसार- "सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।"

    सीखना वातावरण की उपज है

    सीखना रिक्तता में न होकर, सदैव उस वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होता है, जिसमें व्यक्ति रहता है। बालक का सम्बन्ध जैसे वातावरण से होता है, वैसी ही बाते वह सीखता है। यही कारण है कि आजकल इस बात पर बल दिया जाता है कि विद्यालय इतना उपयुक्त और प्रभावशाली वातावरण उपस्थित करे कि बालक अधिक-से-अधिक अच्छी बातों को सीख सके। 

    सीखना खोज करना है 

    वास्तविक सीखना किसी बात की खोज करना है। इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम पर पहुँचता है। मर्सेल का कथन है-"सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है, जिसे एक व्यक्ति खोजता और जानना चाहता है।"

    अधिगम की ये विशेषताये, उनके प्रकार तथा उसकी परिभाषाओं की उपज है। अधिगम में व्यवहार परिवर्तन होता है. यह परिवर्तन स्थायित्व लिये होता है। अनुभव इन परिवर्तनों में योग देते हैं। होने वाले परिवर्तन अनुभव किये जाते हैं तथा उन्हें देखा भी जाता है। अधिगम में सम्बन्ध मूलकता पाई जाती है। यह व्यवहार का परिमार्जन कर ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मनोगत्यात्मक क्षेत्रों में वृद्धि करता है। यो व्यवहार विकास के महत्त्वपूर्ण सोपान के रूप में अधिगम महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।


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