Baalak ka Shaareerik Vikaas - बालक का शारीरिक विकास

 बालक के शारीरिक परिवर्तनों को व्यक्त करने के लिए तीन विभिन्न शब्दों का प्रयोग किया गया है - विकास, अभिवृद्धि और परिपक्वता (Development, Growth & Maturation) मेयरडिथ (Meredith) इस प्रकार के विभिन्न शब्दों का प्रयोग निरर्थक और इनको पर्यायवाची मानता है।

    कारमाइकेल (Carmichael)  कोलेसनिक ने भी यही मत प्रकट करते हुए लिखा है- “विकास, अभिवृद्धि, परिपक्वता और अधिगम ये सब शब्द उन शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक और नैतिक परिवर्तनों का उल्लेख करते हैं, जिनका व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़ते समय अनुभव करता है।"

    उक्त लेखकों का अनुगमन करके, हम बालक में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों के लिए विकास शब्द का प्रयोग करके विभिन्न अवस्थाओं में उसके शारीरिक विकास का परिचय दे रहे हैं; यथा-

    शैशवावस्था में शारीरिक विकास

    क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार- शैशवावस्था में शारीरिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है-

    भार (Weight) 

    जन्म के समय और पूरी शैशवावस्था में बालक का भार बालिका से अधिक होता है। जन्म के समय बालक का भार लगभग 7-15 पौड़ और बालिका का भार लगभग 7-13 पौढ होता है। पहले 6 माह में शिशु का भार दुगुना और एक वर्ष के अन्त में तिगुना हो जाता है। दूसरे वर्ष में शिशु का भार केवल 1/2 पौड़ प्रति मास के हिसाब से बढ़ता है और पाँचवे वर्ष के अन्त में 38 एवं 43 पौड के बीच में होता है।

    लम्बाई (Length) 

    जन्म के समय और सम्पूर्ण शैशवावस्था में बालक की लम्बाई बालिका से अधिक होती है। जन्म के समय बालक की लम्बाई लगभग 20.5 इंच और बालिका की लम्बाई 20-3 इंच होती है। अगले 3 या 4 वर्षों मे बालिकाओं की लम्बाई, बालको से अधिक हो जाती है। उसके बाद बालको की लम्बाई बालिकाओं से आगे निकलने लगती है। पहले वर्ष में शिशु की लम्बाई लगभग 10 इंच और दूसरे वर्ष में 4 या 5 इंच बढ़ती है। तीसरे चौथे और पाँचवे वर्ष में उसकी लम्बाई कम बढ़ती है।

    सिर व मस्तिष्क (Head & Brain)  

    नवजात शिशु के सिर की लम्बाई उसके शरीर की कुल लम्बाई की 1/4 होती है। पहले दो वर्षों में सिर बहुत तीव्र गति से बढ़ता है पर उसके बाद गति धीमी हो जाती है। जन्म के समय शिशु के मस्तिष्क का भार 350 ग्राम होता है और शरीर के भार के अनुपात में अधिक होता है। यह भार दो वर्ष में दुगुना और 5 वर्ष में शरीर के कुल भार का लगभग 80% हो जाता है। 

    हड्डियाँ (Bones) 

    नवजात शिशु की हड्डियों छोटी और संख्या में 270 होती है। सम्पूर्ण शैशवावस्था में ये छोटी, कोमल, लचीली और भली प्रकार जुड़ी हुई नहीं होती है। ये कैलशियम फास्फेट और अन्य खनिज पदार्थों की सहायता से दिन-प्रति-दिन कड़ी होती चली जाती है। इस प्रक्रिया को अस्थीकरण' या 'अस्थी निर्माण (Ossification) कहते है। बालकों की तुलना में बालिकाओं में अस्थीकरण की गति तीव्र होती है।

    दाँत (Teeth)

    छठे माह में शिशु के अस्थायी या दूध के दाँत निकलने आरम्भ हो जाते हैं। सबसे पहले नीचे के अगले दाँत निकलते है और एक वर्ष की आयु तक उनकी संख्या 8 हो जाती है। लगभग 4 वर्ष की आयु तक शिशु के दूध के सब दाँत निकल आते हैं।

    अन्य अंग (Other Organs) 

    नवजात शिशु की माँसपेशियों का भार उसके शरीर के कुल भार का 23% होता है। यह भार धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। जन्म के समय हृदय की धड़कन कभी तेज और कभी धीमी होती है। जैसे-जैसे ह्रदय बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे घड़कन में स्थिरता आती जाती है। पहले माह में शिशु के हृदय की धड़कन मिनट में लगभग 140 बार होती है। लगभग 6 वर्ष की आयु में इनकी संख्या घटकर 100 हो जाती है। शिशु के शरीर के ऊपरी भाग का लगभग पूर्ण विकास 6 वर्ष की आयु तक हो जाता है। टाँगों और भुजाओं का विकास अति तीव्र गति से होता है। पहले दो वर्षों में टाँगें ड्योढ़ी और भुजायें दुगुनी हो जाती हैं। शिशु के यौन सम्बन्धी अंगों का विकास अति मन्द गति से होता है।

    विकास का महत्त्व (Importance of Development) 

    तीन वर्ष की आयु में शिशु के शरीर और मस्तिष्क में सन्तुलन आरम्भ हो जाता है. उसके शरीर के लगभग सब अंग कार्य करने लगते हैं और उसके हाथ एवं पैर मजबूत हो जाते हैं। फलस्वरूप जैसा कि स्ट्रंग (Strang) ने लिखा है- "शिशु अपने नैतिक गृह कार्यों में लगभग आत्म-निर्भर हो जाते हैं। पाँच वर्ष के अन्त तक अनेक शिशु पर्याप्त स्वतन्त्रता और कुशलता प्राप्त कर लेते हैं।"

    बाल्यावस्था में शारीरिक विकास

    क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार- बाल्यावस्था में शारीरिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है- 

    भार (Weight) 

    बाल्यावस्था में बालक के भार में पर्याप्त वृद्धि होती है। 12 वर्ष के अन्त में उसका भार 80 और 95 पौंड के बीच में होता है। 9 या 10 वर्ष की आयु तक बालकों का भार बालिकाओं से अधिक होता है। इसके बाद बालिकाओं का भार अधिक होना आरम्भ हो जाता है।

    लम्बाई (Length) 

    बाल्यावस्था में 6 या 12 वर्ष तक शरीर की लम्बाई कम बढ़ती है। इन सब वर्षों में लम्बाई लगभग 2 या 3 इंच ही बढ़ती है। 

    सिर व मस्तिष्क (Head & Brain) 

    बाल्यावस्था में सिर के आकार में क्रमशः परिवर्तन होता रहता है। 5 वर्ष की आयु में सिर-प्रौढ़ आकार का 90% और 10 वर्ष की आयु में 95% होता है। बालक के मस्तिष्क के भार में भी परिवर्तन होता रहता है। 9 वर्ष की आयु में बालक के मस्तिष्क का भार उसके कुल शरीर के भार का 90% होता है।

    हड्डियाँ (Bones) 

    बाल्यावस्था में हड्डियों की संख्या और अस्थीकरण अर्थात् दृढता में वृद्धि होती रहती है। इस अवस्था में हड्डियों की संख्या 270 से बढ़कर 350 हो जाती है। 

    दाँत (Teeth)

     लगभग 6 वर्ष की आयु में बालक के दूध के दाँत गिरने और उनके बजाय स्थायी दाँत निकलने आरम्भ हो जाते हैं। 12 या 13 वर्ष तक उसके सब स्थायी दाँत निकल आते हैं, जिनकी संख्या लगभग 32 होती है। बालिकाओं के स्थायी दाँत बालकों से जल्दी निकलते हैं।

    अन्य अंग (Other Organs) 

    इस अवस्था में माँसपेशियों का विकास धीरे-धीरे होता है। 9 वर्ष की आयु में बालक की माँसपेशियों का भार उसके शरीर के कुल भार का 27% होता है। हृदय की धड़कन की गति में निरन्तर कमी होती जाती है। 12 वर्ष की आयु में धड़कन मिनट में 85 बार होती है। बालक के कन्धे चौड़े कूल्हे पतले और पैर सीधे और लम्बे होते हैं। बालिकाओं के कन्धे पतले कूल्हे चौड़े और पैर कुछ अन्दर को झुके हुए होते हैं। 11 या 12 वर्ष की आयु में बालकों और बालिकाओं के यौनांगों का विकास तीव्र गति से होता है।

    विकास का महत्त्व (Importance of Development) 

    बाल्यावस्था में बालक के लगभग सभी अंगों का विकास हो जाता है। फलस्वरूप, वह अपनी शारीरिक गति पर नियंत्रण करना जान जाता है, अपने सभी कार्य स्वयं करने लगता है और दूसरों पर निर्भर नहीं रह जाता है।

    किशोरावस्था में शारीरिक विकास

    किशोरावस्था में शारीरिक विकास, विकास की चरम गति है। यह चरम गति भविष्य के लिये उसकी शारीरिक रचना को स्थायी कर देती है। क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार, किशोरावस्था में शारीरिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है-

    भार (Weight)

    किशोरावस्था में बालकों का भार बालिकाओं से अधिक बढ़ता है। इस अवस्था के अन्त में बालकों का भार बालिकाओं से लगभग 25 पौंड अधिक होता है।

    लम्बाई (Length)

    इस अवस्था में बालक और बालिका की लम्बाई बहुत तेजी से बढ़ती है। बालक की लम्बाई 18 वर्ष तक और उसके बाद भी बढ़ती रहती है। बालिका अपनी अधिकतम लम्बाई पर लगभग 16 वर्ष की आयु में पहुँच जाती है।

    सिर व मस्तिष्क (Head and Brain)

    इस अवस्था में सिर और मस्तिष्क का विकास जारी रहता है। 15 या 16 वर्ष की आयु में सिर का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है एवं मस्तिष्क का भार 1.200 और 1,400 ग्राम के बीच में होता है।

    हड़ियाँ (Bones)

    इस अवस्था में अस्थीकरण की प्रक्रिया हो जाती है। हड्डियों में पूरी मजबूती आ जाती है और कुछ छोटी हड्डियाँ एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं। 

    दाँत (Teeth) 

    इस अवस्था में प्रवेश करने के समय बालकों और बालिकाओं के लगभग सब स्थायी दाँत निकल आते हैं। यदि उनके प्रज्ञादन्त (Wisdom Teeth) निकलने होते हैं, तो वे इस अवस्था के अन्त में या प्रौढ़ावस्था के आरम्भ में निकलते हैं।

    अन्य अंग (Other Organs) 

    इस अवस्था में माँसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है। 12 वर्ष की आयु में माँसपेशियों का भार कुल शरीर के भार का लगभग 33% और 16 वर्ष की आयु में लगभग 44% होता है। हृदय की धड़कन में निरन्तर कमी होती जाती है। जिस समय बालक प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करता है, उस समय उसके ह्रदय की धड़कन मिनट में 72 बार होती है। बालकों के सीने और कंधे एवं बालिकाओं के वक्षस्थल और कूल्हे चौड़े हो जाते हैं। बालक में स्वप्न-दोष और बालिकाओं में मासिक धर्म आरम्भ हो जाता है। दोनों के यौनांग पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं।

    विकास का महत्त्व (Importance of Development) 

    इस अवस्था के अन्त तक बालकों और बालिकाओं की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों का पूर्ण विकास हो जाता है और वे युवावस्था में प्रवेश करते हैं। स्ट्रंग (Strang) के शब्दों में- "किशोरावस्था, व्यक्ति के विकास का महत्त्वपूर्ण काल है। इस काल में अधिकांश बालकों और बालिकाओं में शारीरिक परिपक्वता आ जाती है, अर्थात् वे सन्तान उत्पन्न करने के योग्य हो जाते हैं और ये शारीरिक आकृति में प्रौढ़ों के समान हो जाते हैं।"

    Baalak ka Shaareerik Vikaas - बालक का शारीरिक विकास

    शारीरिक विकास की यह अवस्था किशोर को युवक तथा किशोरियों को महिला की छवि प्रदान करती है। यहीं से उनमें शारीरिक परिपक्वता दिखाई देती है।.

    शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

    क्रो व क्रो ने लिखा है-"स्वस्थ विकास का निवास की उत्तम दशाओं से घनिष्ठ सम्बन्ध है। उचित या अनुचित प्रकाश से आयोजित मनोरंजन और विश्राम, अपौष्टिक भोजन, कम हवादार निवास स्थान एवं दोषपूर्ण वंशानुक्रम के समान तत्व स्वस्थ विकास में बाधक होते हैं।"

    हम उपर्युक्त कारकों में से अधिक महत्त्वपूर्ण का परिचय दे रहे हैं, यथा-

    वंशानुक्रम (Heredity) 

    माता-पिता के स्वास्थ्य और शारीरिक रचना का प्रभाव उनके बच्चों पर भी पड़ता है। यदि वे रोगी और निर्बल हैं तो उनके बच्चे भी वैसे ही होते है। स्वस्थ माता-पिता की संतान का ही स्वस्थ शारीरिक विकास होता है।

    वातावरण (Environment) 

    क्रो व क्रो (Crow & Crow) ने लिखा है- "बालक के स्वाभाविक विकास में वातावरण के तत्व सहायक या बाधक होते हैं।" 

    इस प्रकार के कुछ मुख्य तत्व है, शुद्ध वायु, पर्याप्त धूप और स्वच्छता। तंग गलियों और बन्द मकानों में रहने वाले बालक किसी-न-किसी रोग के शिकार बनकर अपने स्वास्थ्य को खो देते हैं। पर्याप्त धूप का सेवन करने वाले बालकों को सर्दी, जुकाम, खाँसी और आँखों की कमजोरी आदि रोग कभी नहीं होते है। स्वच्छता, सुन्दर स्वास्थ्य का मुख्य आधार है। यदि बालक का शरीर पहनने के वस्त्र रहने का स्थान, खाने का भोजन आदि स्वच्छ होते हैं, तो उसका शारीरिक विकास द्रुत गति से होता चला जाता है।

    पौष्टिक भोजन (Balanced Dict) 

    सोरेनसन (Sorenson)  का कथन है- "पौष्टिक भोजन, थकान का प्रबल शत्रु और शारीरिक विकास का परम मित्र है।" अतः बालक के उत्तम शारीरिक विकास के लिए उसे पौष्टिक भोजन दिया जाना आवश्यक है।

    नियमित दिनचर्या (Daily Routine)  

    नियमित दिनचर्या, उत्तम स्वास्थ्य की आधारशिला है। बालक के खाने, सोने, खेलने, पढने आदि का समय निश्चित होना चाहिए। इन सब कार्यों के नियमित समय पर होने से उसके स्वस्थ विकास में बहुत ही कम बाचायें आती है। 5. निदा व विश्राम (Sleep and Rest)- शरीर के स्वस्थ विकास के लिए निद्रा और विश्राम अनिवार्य है। अतः शिशु को अधिक-से-अधिक सोने देना चाहिए। तीन या चार वर्ष के शिशु के लिए 12 घण्टे की निद्रा आवश्यक है। बाल्यावस्था और किशोरावस्था में क्रमशः लगभग 10 और 8 घण्टे की निद्रा पर्याप्त होती है। बालक को इतना विश्राम मिलना आवश्यक है, जिससे कि उसकी क्रियाशीलता से उत्पन्न होने वाली थकान पूरी तरह से दूर हो जाय, क्योंकि थकान उसके विकास में बाधक सिद्ध होती है।

    प्रेम (Love) 

    बालक के उचित शारीरिक विकास का आधार प्रेम है। यदि उसे अपने माता-पिता का प्रेम नहीं मिलता है, तो वह दुःखी रहने लगता है। यदि उसके माता-पिता की अल्पायु में मृत्यु हो जाती है, तो उसे असह्य कष्टों का सामना करना पड़ता है। दोनों दशाओं में उसके शरीर का सन्तुलित विकास होना असम्भव हो जाता है। शिक्षक को भी बालक के प्रति प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।

    सुरक्षा (Security) 

    शिशु या बालक के सम्यक विकास के लिए उसमें सुरक्षा की भावना होना अति आवश्यक है। इस भावना के अभाव में वह भय का अनुभव करने लगता है और आत्म-विश्वास खो बैठता है। ये दोनो बातें उसके विकास को अवरुद्ध कर देती है।

    खेल व व्यायाम (Play and Exercise) 

    शारीरिक विकास के लिए खेल और व्यायाम के प्रति विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। छोटा शिशु पलंग पर पड़ा पड़ा ही अपने हाथों और पैरों को चलाकर पर्याप्त व्यायाम कर लेता है, पर बालकों और किशोरों के लिए खुली हवा में खेल और व्यायाम की उचित व्यवस्था की जानी आवश्यक है।

     अन्य कारक (Other Fators) 

    शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारक हैं- 

    (1) रोग या दुर्घटना के कारण शरीर में उत्पन्न होने वाली विकृति या अयोग्यता, 

    (2) अच्छी और खराब जलवायु,

    (3) दोषपूर्ण सामाजिक परम्पराएँ जैसे- बाल-विवाह, 

    (4) गर्भिणी माता का स्वास्थ्य,

    (5) परिवार का रहन-सहन और आर्थिक स्थिति।

    उपसंहार

    हमने बालक के शारीरिक विकास और उसको प्रभावित करने वाले कारकों का विवेचन किया है। इन दोनों से अवगत होकर ही शिक्षक और अभिभावक- बालको के शरीर की रचना और स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यह ज्ञान प्राप्त करना उनके लिए आवश्यक क्यों है, इसका कारण बताते हुए क्रो व क्रो ने लिखा है- "बालक सर्वप्रथम शरीरधारी प्राणी है। उसकी शारीरिक रचना उसके व्यवहार और दृष्टिकोण के विकास का आधार है। अतः उसके शारीरिक विकास के रूपों का अध्ययन आवश्यक है।"

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