आधुनिक शिक्षा के लिए ग्रहणीय तत्व क्या हैं

आधुनिक शिक्षा के लिए ग्रहणीय तत्व 

प्राचीन भारतीय शिक्षा और आधुनिक भारतीय शिक्षा के मध्य अनेक शताब्दियों का अन्तर है। पर फिर भी प्राचीन शिक्षा के अनेक तत्व है, जिनको सिद्धान्त और व्यवहार दोनों दृष्टियों से आधुनिक शिक्षा में स्थान दिया जा सकता है। जो इस प्रकार के मुख्य तत्वों में से निम्नलिखित हैं- 

1. आदर्शवादिता 

आज हम आधुनिक युग में निवास कर रहे हैं। किन्तु हमें अपने पूर्वजों से जो सभ्यता और संस्कृति विरासत में मिली है, उन पर हमें आज भी गर्व है। हम आज भी धर्म, ईश्वर और निष्काम कर्म को महत्त्व देते हैं। हम आज भी धन की अपेक्षा चरित्र को भौतिकता की अपेक्षा आध्यात्मिकता को और विज्ञान की अपेक्षा दर्शन को श्रेष्ठतर समझते हैं। आज जबकि सम्पूर्ण विश्व धन, शक्ति, हिंसा और कूटनीति में आस्था रखता है, हम प्रेम, सत्य, अहिंसा, त्याग और तपस्या के समक्ष श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं।

उपर्युक्त सभी बातों का अभिप्राय यह है कि हम आज भी उस आदर्शवादिता को नहीं भूले हैं, जिसका प्राचीन शिक्षा द्वारा छात्रों के मन और मस्तिष्क में समावेश किया जाता था। इससे स्वाभाविक निष्कर्ष यही निकलता है कि प्राचीन आदर्शवादिता को आधुनिक शिक्षा में स्थान दिया जा सकता है और दिया जाना चाहिए। डॉ० महेशचन्द्र सिंघल ने राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित भारतीय शिक्षा की वर्तमान समस्याएँ नामक अपनी पुस्तक में लिखा है- "हम वैदिक कालीन शिक्षा की आदर्शवादिता को आधुनिक शिक्षा के एक मूल सिद्धान्त के रूप में ग्रहण कर सकते हैं और जीवन-निर्माण, चरित्र-निर्माण तथा सादा भोजन और उच्च विचार को शिक्षा के महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों में स्थान दे सकते हैं।"

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2. अनुशासन व गुरु-शिष्य सम्बन्ध 

प्राचीन काल की छात्रों की अनुशासन की भावना और गुरु एवं शिष्य का मधुर सम्बन्ध विश्वविख्यात है। आज इन दोनों बातों पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि शैक्षिक वातावरण अत्यन्त विषम हो चुका है और अनुशासनहीनता का ताण्डव नृत्य सर्वत्र हो रहा है। छात्रों में अनुशासन की भावना का विकास और वैदिक कालीन गुरु-शिष्य सम्बन्ध की पुनर्स्थापना करके ही इन दोनों दूषणों से मुक्ति पाने की आशा की जा सकती है।

मानव-सम्बन्धों को घनिष्ठता प्रदान करने के लिए पारस्परिक स्नेह और सम्मान की भावनाओं का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। छात्र, शिक्षा तभी ग्रहण कर सकते हैं और शिक्षक, अध्ययन- कार्य में तभी रुचि ले सकते हैं, जब दोनों सुन्दर सम्बन्ध के सूत्र से आबद्ध हो। यह सत्य है कि आज के छात्र और शिक्षक प्राचीन युग के आदर्श पर नहीं पहुँच सकते हैं, पर फिर भी दृढ निश्चय से उसकी ओर अग्रसर होकर बहुत कुछ सफलता प्राप्त की जा सकती है। अत छात्रों और शिक्षकों का उस आदर्श की दिशा में अग्रसर होना केवल वांछनीय ही नहीं वरन् अत्यन्त आवश्यक भी है। पर यह तभी सम्भव हो सकता है, जब छात्र-गुरु-शिष्य सम्बन्धी वैदिक आदर्श के प्रति निष्ठावान बने और शिक्षक उस आदर्श के अनुसार सरस्वती साधना में लीन होकर सरल जीवन व्यतीत करें।

3. शान्त वातावरण

प्राचीन काल की सभी शिक्षा- शालायें नगर के कोलाहल और विषाक्त वातावरण से दूर किसी शान्त और रमणीक स्थान में स्थित थीं। आधुनिक युग में नगरीकरण के प्रभाव के कारण सभी व्यक्तियों में नगरों में निवास करने की प्रवृत्ति सबल हो गई है। ऐसी दशा में आज की शिक्षा-संस्थाओं की नगरों में पृथकता सम्भव नहीं है पर फिर भी, उनका निर्माण नगरों के कोलाहल और गन्दगी से दूर किसी शान्त, स्वच्छ, स्वास्थ्यकर और प्राकृतिक वातावरण में किया जा सकता है।

इस प्रकार की शिक्षा-संस्थाएँ न केवल छात्रों के शारीरिक और मानसिक विकास में योग देंगी, वरन् उनकी नगरों के दिन-प्रतिदिन के झगड़ों, राजनैतिक कुचक्रों और अवांछनीय प्रवृत्तियों से रक्षा भी करेगी।

4. अध्ययन के विषय 

आधुनिक भारतीय शिक्षा में अनेक विषयों को स्थान दिया गया है, पर संस्कृत की प्रायः पूर्ण उपेक्षा की गई है। वस्तुतः संस्कृत भाषा और साहित्य में शान्ति मानवता और विश्व भ्रातृत्व की ऐसी अमूल्य निधियाँ हैं, जिनको न केवल भारत के पाठ्यक्रम में वरन् सब देशों के पाठ्यक्रमों का अभिन्न अंग होना चाहिए। इसके अतिरिक्त वैदिक पाठ्यक्रम से ऐसे अनेक तत्त्व ग्रहण किये जा सकते हैं, जो आधुनिक भारत के नैतिक, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक उत्कर्ष में अद्वितीय योग दे सकते हैं। डॉ० महेशचन्द्र सिंघल का मत है-"यदि इन बातों की अपेक्षा की जाती है, तो भारतीय शिक्षा, पश्चिम का थोथा अनुकरण मात्र रह जायेगी, जिसमें मौलिकता की झलक नहीं मिल सकेगी।"

5. शिक्षण विधि व शिक्षा-सिद्धान्त 

प्राचीन भारत की शिक्षण-विधि में श्रवण, मनन, चिन्तन, स्मरण, प्रवचन, प्रश्नोत्तर व्याख्यान, वाद-विवाद आदि का प्रयोग किया जाता था। अतः यह शिक्षण विधि आज भी विभिन्न विषयों के पठन-पाठन में प्रयोग किये जाने के योग्य है और उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

प्राचीन काल के अनेक सिद्धान्त आज भी उतने ही उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है, जितने कि वे प्राचीन काल में थे। इस प्रकार के कुछ सिद्धान्त है, छोटी कक्षाएँ. व्यस्त दिनचर्या, व्यक्तिगत ध्यान और अच्छी आदतों का निर्माण ।

6. छात्रों का सरल जीवन  

वैदिक कालीन भारत के छात्र सदा, सरल और संयमी जीवन व्यतीत करते थे। आधुनिक भारत में उनका जीवन भले ही अक्षरश: अनुकरणीय न हो, पर ग्रहणीय अवश्य है। आज के छात्रों के जीवन में आमूल परिवर्तन हो गया है। उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य, शिक्षा प्राप्त करना नहीं है, अपितु सिनेमा देखना, हड़ताल करना, अश्लील साहित्य पढ़ना, नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करना हो गया है।

ऐसी परिस्थिति में प्राचीन काल के छात्रों के उदाहरण को आज के छात्रों के समक्ष रखकर उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन किया जाना अनिवार्य है। डॉ० महेशचन्द्र सिंघल के शब्दों में- "सिद्धान्त रूप में हमें इतना तो मानना ही चाहिए कि आज भले ही सिर मुँड़ने, लंगोटी बाँधने तथा स्त्री जाति के सदस्यों के दर्शन मात्र से बचकर रहने की तो आवश्यकता नहीं है, लेकिन सादा और संयमी जीवन, नियमित दिनचर्या तथा दुर्व्यसनों से बचकर रहना वांछनीय है। "

7. प्रौद्योगिकी


आधुनिक शिक्षा में प्रौद्योगिकी एक महत्वपूर्ण तत्त्व है। अब शिक्षार्थियों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का सही उपयोग करना सिखाया जाता है, जिससे उनकी शिक्षा को और अधिक अवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता मिलती है। प्रौद्योगिकी माध्यम से शिक्षा सामग्री, वीडियो, ऑडियो, ग्राफिक्स, और अन्य संसाधनों को आसानी से उपलब्ध कराने के साथ-साथ, दूरस्थ शिक्षा और वीडियो कन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा सकती है।


8. सतर्कता और नवाचार


आधुनिक शिक्षा में, शिक्षकों को छात्रों की सतर्कता को बढ़ाने के लिए नवीनतम नवाचारों का उपयोग करना चाहिए। यह मानव संसाधन, संगठन और प्रबंधन, संचार, बुद्धिमत्ता विकास, सोशल न्याय, और सामाजिक परिवर्तन जैसे अन्य क्षेत्रों में नवाचारिक विचारों का समर्थन कर सकता है। यह शिक्षार्थियों को सोचने, समस्याओं को हल करने, और नए और व्यापक सोच को प्रोत्साहित करता है।


9. उद्यमिता और उद्योगशीलता

आधुनिक शिक्षा उद्यमिता और उद्योगशीलता को समर्थित करने की दिशा में है। शिक्षा के माध्यम से छात्रों को यह सिखाना चाहिए कि वे स्वयं को स्वतंत्र रूप से निर्माण कर सकते हैं, नए विचारों और आविष्कारों को प्रोत्साहित करने के लिए सामरिक और सहयोगी तरीकों का उपयोग कर सकते हैं, और अपने व्यक्तिगत और पेशेवर लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उद्यमिता का उपयोग कर सकते हैं।


10. सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता


आधुनिक शिक्षा में छात्रों को सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता को समझाने और समर्थित करने का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। वे अन्य संसाधनों के साथ मिलकर काम करते हैं, सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता विकसित करते हैं, सामाजिक न्याय के बारे में सोचते हैं, और विविधता और समरसता को समझते हैं।


11. स्वतंत्र और सक्रिय शिक्षार्थी


आधुनिक शिक्षा के लिए अन्य महत्वपूर्ण तत्त्व में से एक स्वतंत्र और सक्रिय शिक्षार्थी हैं। शिक्षार्थी को आपसी सहयोग, स्वतंत्रता, स्वाधीनता, स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अवसर, स्वयंनियंत्रण, और निरंतर नवीनता और अभियांत्रिकी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होती है।


यह सभी तत्त्व आधुनिक शिक्षा को यथार्थ, सकारात्मक और संपूर्ण विकास के प्रति समर्पित बनाते हैं। इन तत्त्वों का सही आवेदन शिक्षा प्रक्रिया में छात्रों को नवीनता, संवेदनशीलता, और समस्या-समाधान कौशल में सुधार करने में मदद कर सकता है।


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