स्थायीभाव का अर्थ
मैक्डूगल के अनुसार- "व्यक्ति अनेक मूलप्रवृत्तियाँ लेकर संसार में आता है। इन मूलप्रवृत्तियों का सम्बन्ध विभिन्न प्रकार के संवेगों से होता है। ये संवेग ही स्थायी भाव का निर्माण करते हैं. उदाहरणार्थ, मॉं में अपने बच्चों के प्रति दया, गर्व, आनन्द, सहानुभूति, वात्सल्य आदि के संवेग होते हैं।
स्थायीभावों की परिभाषाएं
"स्थायीभाव" के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं, यथा-
रॉस के अनुसार - स्थायीभाव मानसिक ढाँचे में अर्जित प्रवृत्तियों का संगठन है।"
रैक्स व नाइट के अनुसार - "स्थायीभाव किसी वस्तु के प्रति अर्जित संवेगात्मक प्रवृत्ति या ऐसी प्रवृत्तियों का संगठन है। "
वेलेन्टाइन के अनुसार - “स्थायीभाव किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति संवेगात्मक प्रवृत्तियों और भावनाओं का बहुत-कुछ स्थायी और संगठित स्वरूप है।"
नन के अनुसार- "स्थायीभाव, भावना की एकाकी दशा नहीं है, वरन् भावनाओं का संगठन है, जो किसी वस्तु-विशेष के सम्बन्ध में संगठित होती है और जिनमें स्थायित्व की पर्याप्त मात्रा होती है।"
स्थायीभावों के स्वरूप
साधारण स्थायीभाव (Simple Sentiment)
इस स्थायीभाव में किसी के प्रति केवल एक भावना या संवेग होता है. जैसे- बालिका में अपनी गुड़ियों के प्रति प्रेम का स्थायीभाव या बालक में कठोर शिक्षक के प्रति भय का स्थायीभाव।
जटिल स्थायीभाव (Complex Sentiment)
इस स्थायीभाव में एक से अधिक भावनाएँ या संवेग होते हैं, जैसे- बालक के कठोर शिक्षक के प्रति घृणा का स्थायीभाव होता है। यदि शिक्षक उसे छोटी-छोटी बातों पर दण्ड देता है, तो उसे शिक्षक पर क्रोध आता है। धीरे-धीरे उसे शिक्षक से अरुचि हो जाती है। सम्भवतः वह उससे प्रतिशोध लेने की भावना भी रखने लगता है। फलस्वरूप, उसमें शिक्षक के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है। यह घृणा एक जटिल स्थायीभाव है, जिसका निर्माण- भय, क्रोध, अरुचि और प्रतिशोध की संवेगों और भावनाओं से हुआ है।
मूर्त स्थायीभाव (Concrete Sentiment)
इस स्थायीभाव का सम्बन्ध किसी मूर्त या स्थूल वस्तु से होता है, जैसे- व्यक्ति, पशु, पुस्तक, निवास स्थान आदि।
अमूर्त स्थायीभाव (Abstract Sentiment)
इस स्थायीभाव का सम्बन्ध अमूर्त या सूक्ष्म वस्तुओं से होता है, जैसे- भक्ति, विचार, सत्य, आदर्श, अहिंसा, सम्मान, स्वच्छता, देश-प्रेम आदि।
नैतिक स्थायीभाव (Moral Sentiment)
यह स्थायीभाव नैतिक चरित्र का वास्तविक अंग है। और साधारणत परम्परागत होता है, जैसे- न्याय या सत्य के प्रति प्रेम, क्रूरता या बेईमानी के प्रति घृणा ।
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स्थायीभावों की विशेषताएँ
स्थायीभाव, मानव द्वारा अर्जित परिवर्तन है। इस व्यवहार परिवर्तन का मुख्य कारण है- संवेगों तथा मूलप्रवृत्तियों में शोधन तथा प्रशिक्षण इसलिये स्थायीभावों की विशेषताओं को इस प्रकार समझा जा सकता है-
1. स्थायीभाव, जन्मजात न होकर, अर्जित होते हैं।
2. स्थायीभाव, मानसिक प्रक्रिया न होकर, मानसिक रचना होते है।
3. स्थायीभाव मूर्त और अमूर्त- दोनों प्रकार की वस्तुओं के प्रति होते हैं, अर्थात् व्यक्ति, वस्तु, गुण, अवगुण, आदर्श, विचार, स्थान आदि किसी के प्रति हो सकते हैं।
4. स्थायीभाव, व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व के आधार होते हैं।
5. स्थायीभाव, व्यक्ति के व्यवहार को प्रेरित और नियन्त्रित करते हैं।
6. स्थायीभावों का निर्माण साधारणतः एक से अधिक संवेग से होता है।
7. स्थायीभावों में विचारों, इच्छाओं, भावनाओं और अनुभवों का समावेश रहता है।
8. जलोटा (Jalota) के अनुसार- "स्थायीभाव, मानसिक रचना का अंग होने के कारण हममें सदैव विद्यमान रहते हैं।"
9. स्टर्ट तथा ओकडन (Sturt and Oakden) के अनुसार- "स्थायीभाव में मानव अनुभवों के साथ-साथ परिवर्तन होते रहते हैं।"
भावना ग्रन्थि
आमतौर पर व्यक्ति के मन में किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के प्रति भावना ग्रन्थि बन जाती है। संवेगों का संगठन जब उचित ढंग से नहीं होता, तब भावना ग्रन्थि बन जाती है। इसे विकृत स्थायी भाव भी कहते है। जब हमारी इच्छाओं की पूर्ति स्वाभाविक ढंग से नहीं होती तो ये संवेग प्रच्छन्न रूप से मस्तिष्क पर कब्जा कर लेते हैं और अचेतन मन में बैठकर व्यवहार में उपद्रव उत्पन्न करते हैं।
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, "भावना ग्रन्थि आंशिक या सम्पूर्ण रूप से दिखाई गई भावनाओं का समूह है जिस पर संवेगों का रंग होता है।"
भावना ग्रन्थियाँ अचेतन में घर बनाती हैं। उपद्रव के समय ये अनायास ही उभरती है। फ्रायड के अनुसार, "चेतन द्वारा तिरस्कृत विचार और अनुभव अचेतन मन के विषय होते हैं।" हम अनजाने में ऐसे कार्य कर बैठते हैं जिनका हमें आभास नहीं होता।
भावना ग्रन्थियों को सुलझाना व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। विशेषज्ञों तथा मनोविश्लेषणों के द्वारा ही इन्हें सुलझाया जा सकता है। शब्द साहचर्य, स्वप्न विश्लेषण, संकेत आदि के माध्यम से भावना ग्रन्थियों का पता लगाया जाता है। उपचारक इन विधियों द्वारा भावना ग्रन्थियों का इलाज करता है।
1. ग्रन्थियों के कारणों को दूर करना।
2. आत्म प्रकाशन के अवसर देना।
3. सद्व्यवहार।
4. स्वाभाविक कार्यों में स्वतन्त्रता ।
5. मार्गान्तरीकरण तथा शोधन।
स्थायीभावों का शिक्षा में महत्त्व
शिक्षा में स्थायीभावों के महत्त्व का वर्णन करते हुए, स्टर्ट तथा ओकडन (Sturt and Oakden) ने लिखा है-"स्थायीभाव हमारे जीवन में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। वे मानसिक और संवेगात्मक संगठन की इकाइयाँ हैं एवं तुलनात्मक रूप में स्थायी होते हैं। अतः शैक्षिक, दृष्टिकोण से स्थायीभाव बहुत महत्त्वपूर्ण है।"
शैक्षिक दृष्टिकोण में महत्त्वपूर्ण होने के कारण बालकों में अच्छे स्थायीभावों का निर्माण करना शिक्षक का सर्वप्रथम कर्तव्य हो जाता है। वह ऐसा किस प्रकार कर सकता है और इससे बालकों को क्या लाभ हो सकता है. इस पर हम नीचे की पंक्तियों में दृष्टिपात कर रहे हैं-
1. शिक्षक, बालकों को अपने देश के महान वीरों की कहानियाँ सुनाकर उनमें देश-प्रेम के स्थायीभाव का निर्माण कर सकता है।
2. शिक्षक, बालकों में नैतिक स्थायीभावों का विकास करके उनमें नैतिक गुणों का विकास कर सकता है और इस प्रकार उनके नैतिक उत्थान में योग दे सकता है।
3. शिक्षक, बालकों में घृणा के स्थायीभाव को प्रबल बनाकर उनमें हिंसा, असत्य, बेईमानी आदि दुर्गुणों से संघर्ष करने की क्षमता उत्पन्न कर सकता है।
4. शिक्षक, बालकों में प्रेम का स्थायीभाव उत्पन्न करके उनकी खेल, कविता, संगीत, साहित्य आदि में विशेष रुचि जाग्रत कर सकता है। इस प्रकार वह उनके व्यक्तित्व के विकास में सहायता दे सकता है।
5. रॉस (Ross) के अनुसार- "शिक्षक बालको में आत्म-सम्मान का स्थायीभाव (Self-regarding Sentiment) विकसित करके, उनके मानसिक जीवन को एकता प्रदान कर सकता है।"
6. रॉस (Ross) के अनुसार- "स्थायीभाव, आदशों का निर्माण करके चरित्र के निर्माण में सहायता देते हैं। अत: शिक्षक को बालकों में उत्तम स्थायीभावों का निर्माण करना चाहिए।"
7. मैक्डूगल (McDougall) के अनुसार- "आत्म सम्मान का स्थायीभाव, चरित्र है और नैतिक स्थायीभावों में सर्वश्रेष्ठ है। अतः शिक्षक को बालकों में इस स्थायीभाव को पूर्णरूप से विकसित करना चाहिए।"
8. शिक्षक को बालकों में अच्छे स्थायीभावों का निर्माण करने के लिए अनलिखित कार्य करने चाहिए-
(1) उच्च आदर्शों और लक्ष्यों के लिए प्रेरणा देना,
(2) महान् व्यक्तियों के विचारों और आदर्शों से परिचित कराना,
(3) प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, श्रेष्ठ साहित्यकारों आदि की जीवनियाँ सुनाना,
(4) कार्य और सिद्धान्त के उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करना आदि।
अन्त में, हम स्टर्ट व ओकडन के शब्दों में कह सकते हैं-"इस बात की ओर ध्यान देना शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य होना चाहिए कि बालक द्वारा जिन स्थायीभावों का निर्माण किया जाय, ये समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल हों।"
स्थायीभावों को विकसित करना शिक्षा का प्रमुख कार्य है। इनसे नई पीढ़ी में भविष्य के प्रति आदर्शों का निर्माण होता है। मानसिक बोध तथा संवेगों के संगठन से स्थायीभावों का विकास संभव है।