अभिप्रेरणा के सिद्धान्त
शिक्षा मनोविज्ञान में अभिप्रेरणा का अधिक महत्व है। अभिप्रेरणा की अनेक मान्यताएँ हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अभिप्रेरणा के सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं। ये सिद्धान्त अपने तरह से अभिप्रेरणा की व्याख्या करते हैं।
उद्दीपक प्रतिक्रिया सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के प्रतिपादक व्यवहारवादी हैं। इसे सीखने के सिद्धान्त का ही एक रूप कहा जा सकता है। इस सिद्धान्त की मान्यता यह है कि मनुष्य का समस्त व्यवहार शरीर के द्वारा उद्दोपन के परिणामस्वरूप होने वाली प्रतिक्रिया है। इस मत के अनुसार, मानसिकता का कोई प्रश्न नहीं है। इस सिद्धान्त की मान्यता यह है कि अचेतन-किसी भी दशा में अभिप्रेरणा सम्भव नहीं है। मानव व्यवहार ही स्वयं में एक विशिष्ट प्रतिक्रिया है।
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
अभिप्रेरणा के इस सिद्धान्त के प्रतिपादक फ्रायड (Frued) है। फ्रायड का कथन है कि मानव व्यवहार को अचेतन और अर्ध-चेतन में छिपी इच्छाएँ ही अभिप्रेरित करती हैं। परन्तु इस प्रक्रिया में मूल प्रवृत्तियाँ अपना योग देती है। इस सिद्धान्त को सुखवादी सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सिद्धान्त की मान्यता यह है कि मनुष्य वही कार्य करता है जिससे उसे सुख या सन्तोष मिलता है।
शारीरिक सिद्धान्त
इस सिद्धान्त की मान्यता के अनुसार व्यक्ति के शरीर में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते रहते हैं। कुछ विशेष कारणों से मनुष्य के शरीर में प्रतिक्रियाएँ होती रहती है। अभिप्रेरणा के कारण ही शरीर में विभिन्न प्रतिक्रियाएँ होती है।
ऐच्छिक सिद्धान्त
इस मत के अनुसार किसी व्यक्ति का व्यवहार उसकी व्यक्तिगत इच्छ से संचालित होता है। अभिप्रेरणा के कारण व्यक्ति की संकल्प शक्ति विकसित होती है। यहाँ पर यह स्मरण रखना चाहिए कि संवेग और सहज क्रिया (Reflexes) का सम्बन्ध मनुष्य की इच्छा से नहीं होता है।
लेविन का सिद्धान्त
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन कुर्ट लेविन (Kurt Levin) ने किया था। इसका कथन है कि अभिप्रेरणा के कारण ही अधिगम का विकास होता है। उनका यह विश्वास अभिप्रेरणा की साक्षी पृष्ठभूमि पर आधारित है।
अभिप्रेरणा की विधियाँ या स्रोत
व्यवहार में अभिप्रेरणा की निम्नलिखित विधियों प्रयोग में लायी जाती है-
उद्देश्यों के स्पष्टीकरण द्वारा अभिप्रेरणा
कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने का यह सबसे सरल तरीका है। प्रबन्धकों को चाहिए कि वे संगठन के सभी व्यक्तियों को संस्था के लक्ष्यों व उद्देश्यों की जानकारी प्रदान करें और यह भी बताएँ कि उनका व्यक्तिगत हित संस्था के हित से अलग नहीं है। संस्था के लक्ष्यों की पूर्ति में ही उनके लक्ष्यों की पूर्ति निहित है।
स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा द्वारा अभिप्रेरणा
जिस प्रकार 'खेल' में जीतने की भावना को लेकर सभी खिलाड़ी मन से एवं निष्ठापूर्वक खेलते हैं, उसी प्रकार प्रबन्धक अन्य संस्थाओं के साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की भावना पैदा करके संस्था के सभी कर्मचारियों को अभिप्रेरित कर सकते है, जिससे वे एक साथ मिलकर प्रतिस्पर्द्धा में विजय पाने के लिए जुट जाएँ।
कुशल नेतृत्व द्वारा अभिप्रेरणा
प्रबन्धकों को चाहिए कि वे सच्चे प्रतिनिधि व कुशल नेता के रूप में कर्मचारियों की कठिनाइयों को सुनें एवं उन्हें दूर करने का प्रयास करें। ऐसे नेतृत्व में वे कर्मचारियों के विश्वासपात्र बन जाएंगे तथा अभिप्रेरित होकर निष्ठापूर्वक काम करेंगे।
मानवीय व्यवहार द्वारा अभिप्रेरणा
कर्मचारियों के साथ मानवीय व्यवहार करके भी उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है। एल्टन मेयो का यही तरीका था। प्रबन्धकों को चाहिए कि वे अपने अधीनस्थों के साथ मानवीय व्यवहार करें। उन्हें इस बात पर सदैव ध्यान देना चाहिए कि कर्मचारी पहले मानव है और बाद में कर्मचारी। वह अपने श्रम को बेचता है, स्वयं को नहीं। अतः उसके साथ मानवीय व्यवहार करके उसे अभिप्रेरित करना चाहिए।
सहकारिता द्वारा अभिप्रेरणा
जैसा अनेक बार संकेत दिया जा चुका है, कर्मचारियों को प्रबन्ध व निर्णयन में भागीदार बनाकर भी उनको अभिप्रेरित किया जा सकता है। सहभागिता कर्मचारियों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता की सन्तुष्टि करती है, जो उन्हें धन से प्राप्त नहीं हो सकती।
मैक्ग्रेगर के अभिप्रेरणा के एक्स तथा वाई सिद्धान्त
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मैक् ग्रेगर ने किया। उन्होंने प्रबन्ध सम्बन्धी विचारों को निम्न दो भागों में बाँटा है- (अ) एक्स - सिद्धान्त (X Theory ) निराशावादी दृष्टिकोण, तथा
(ब) वाई - सिद्धान्त (Y Theory) आशावादी दृष्टिकोण।
अतः इन सिद्धान्तों का विवेचन निम्न प्रकार है-
(अ) एक्स सिद्धान्त (X Theory)
यह सिद्धान्त परम्परागत सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से कार्य नहीं करना चाहता। अतः उनसे कार्य लेने के लिए उन्हें डराना, मकाना एवं भय दिखाना आवश्यक है। कठोर अनुशासन, भय तथा डण्डे के बल पर भी व्यक्ति से कार्य लिया जा सकता है। इस सिद्धान्त की प्रमुख बातें निम्न प्रकार हैं-
उत्तरदायित्व से बचना- इस सिद्धान्त की यह एक प्रमुख मान्यता है कि व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व से बचना चाहता है।
स्वेच्छा से कार्य न करना- यह सिद्धान्त इस मान्यता को लेकर भी आगे बढ़ता है कि कोई भी कर्मचारी अपनी इच्छा से कार्य नहीं करना चाहता।
कार्य के प्रति अरुचि - इस सिद्धान्त की यह भी मान्यता है कि कर्मचारियों में हमेशा कार्य के प्रति अरुचि रहती है।
कठोर अनुशासन एवं भय- कर्मचारियों से काम तभी कराया जा सकता है। जबकि उन पर कठोर अनुशासन रखा जाये एवं उन्हें भय दिखाया जाये।
सुरक्षा को अधिक महत्व - कर्मचारी महत्वाकांक्षी नहीं होते अथवा अपनी सेवा सुरक्षा पर अधिक ध्यान देते हैं।
वित्तीय प्रेरणा- कर्मचारी तभी अच्छा कार्य करते हैं जबकि उन्हें किसी प्रकार की वित्तीय प्रेरणा दी जाए।
कार्य करने का परम्परागत ढंग- व्यक्ति हमेशा परम्परागत ढंग का कार्य करता है।
सिद्धान्त का मूल्यांकन
अभिप्रेरणा का X सिद्धान्त पुरानी मान्यताओं पर आधारित है। यह सिद्धान्त निराशावादी एवं अमानवीय है। यह सिद्धान्त मनुष्य एवं मशीन में कोई अन्तर नहीं करता। आधुनिक युग में इस सिद्धान्त का कोई स्थान नहीं रह गया है। यदि हम कर्मचारी को निरन्तर भय के वातावरण में रखें। तो वह कभी भी विद्रोह कर सकता है। चूँकि मनुष्य स्वतन्त्र समाज में रहता है और शिक्षा और रहन-सहन के स्तर में सुधार होता रहता है अंतः प्रबन्धकों को कर्मचारियों से अच्छा व्यवहार करना चाहिए। मानव को मशीन का एक पुर्जा समझना गलत है।
(ब) वाई सिद्धान्त (Y Theory)
श्री मैक ग्रेगर ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। यह सिद्धान्त आशावादी दृष्टिकोण एवं मानवीय आधार पर आधारित है। इस सिद्धान्त की मान्यता है कि व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा से कार्य करना चाहता है एवं उसमें सृजनात्मक प्रवृत्ति होती है। सिद्धान्त को प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं-
अपने उत्तरदायित्व को स्वयं समझना- यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व को स्वयं समझता है। व्यक्ति को भय दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। व्यक्ति को कठोर अनुशासन में रखने की कोई जरूरत नहीं होती वरन् वह स्वयं निर्देशित एवं नियन्त्रित होता है।
स्वेच्छा से कार्य करना- प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा से कार्य करना चाहता है।
कार्य के प्रति हमेशा अरुचि की भावना न होना- व्यक्ति में हमेशा कार्य के प्रति अरुचि की भावना नहीं होती।
अवित्तीय प्रेरणाओं से भी प्रेरणा- यह सिद्धान्त इस मान्यता को लेकर आगे बढ़ता है कि व्यक्ति को अवित्तीय प्रेरणाओं से भी कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।।
प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर आधारित- यह सिद्धान्त प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर आधारित है।
व्यक्ति में चतुरता, विवेक शक्ति एवं सूचनात्मकता का गुण होना- इस सिद्धान्त के अनुसार सभी लोगों में संगठन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करने के लिए चतुरता, विवेक, शक्ति एवं सृजनात्मकता का गुण पाया जाता है।
कर्मचारियों की सन्तुष्टि पर जोर यह सिद्धान्त कर्मचारियों की सन्तुष्टि पर अधिक जोर देता है।
सिद्धान्त का मूल्यांकन
अभिप्रेरणा के सिद्धान्तों में यह सिद्धान्त सबसे अधिक व्यावहारिक एवं लोकप्रिय सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त से कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है एवं मानवीयता का पालन होता है। इस सिद्धान्त के परिपालन से कर्मचारियों को सन्तुष्टि मिलती है एवं उनका जीवन स्तर ऊँचा उठता है। श्रम प्रबन्ध सम्बन्धों में सुधार होता है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वाई सिद्धान्त मानवीय मूल्यों पर आधारित है जो एक आशावादी दृष्टिकोण को ध्यान में रखता है। इस सिद्धान्त को लागू करने से जहाँ एक तरफ श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि होती है वहीं दूसरी तरफ उनकी आय में भी वृद्धि होती है। वाई सिद्धान्त के अनुसार कर्मचारी के लिए आन्तरिक अभिप्रेरणा ही वास्तविक प्रेरणा स्रोत है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रबन्धकों को कर्मचारियों से विचार-विमर्श करके ही निर्णय लेना चाहिए।