पर्यटन के विकास के कारण, पर्यटन के प्रकार एवं दिल्ली के दर्शनीय स्थल

पर्यटन के विकास के कारण

भारतीय पर्यटन के विकास के कारण निम्नलिखित हैं-

आनन्द के लिए  

(1) दैनिक जीवन की व्यस्तता और नियमित क्रिया से ऊबकर व्यक्ति यह चाहता है कि इस लीक से हटकर अपने थके दिमाग को विश्राम दे सकेँ।

(2) घर के वातावरण में रोज-रोज की उलझन, मानसिक तनाव, चिन्ता समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कुछ समय शान्ति, मनोरंजन और विनोद को प्राप्त कर सकें। 

(3) नई समस्याओं और उनकी अनुभूतियों की प्राप्ति के लिए।

(4) कुछ क्षीण जीवन में सुख खरीदने के लिए जिससे अपनी रुचि के अनुसार आवास, भोजन और क्रियाएँ की जा सकें।

(5) सौन्दर्य प्राकृतिक स्थलों में आनन्द लूटने के लिए।

(6) भौगोलिक प्राकृतिक स्थलों ताल, तलैया, मरुभूमि, वन, समुद्रतट आदि को देखना ।

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शिक्षा हेतु  

(1) दूसरे स्थानों में अपने ज्ञान के प्रसार के लिए। 

(2) दूसरों के ज्ञान से अपने को लाभान्वित करने के लिए इसमें विद्वानों से मिलना, पुस्तकालयों में जाना, प्रयोगशाला और संग्रहालयों को देखना आदि सम्मिलित है। 

(3) यह जानने के लिए कि दूसरे स्थान के लोग किस प्रकार जीवन चलाते हैं, उसकी क्रियाएँ क्या है।

(4) शैक्षणिक गोष्ठियों में भाग लेने के लिए।

(5) ज्ञान के विशिष्टीकरण के युग से जहाँ जिस विशिष्ट ज्ञान की शाखा में अधिक विकास हुआ है वहाँ जाकर उसको सीखने के लिए। 

(6) प्राविधिक और औद्योगिक शिक्षा के उपयुक्त स्थानों में जाकर नई-नई जानकारी प्राप्त करने के लिए।

सांस्कृतिक कारण 

(1) उत्सव और त्यौहारों को देखना तथा अपने देश की परम्पराओं को उसमें जोड़ना जैसे- अभी भारत में हुआ था रूस महोत्सव और रूस में भारत महोत्सव। इसी उद्देश्य से अब भारत ने तीन बार विदेशों में अपना महोत्सव मनाया है।

(2) सांस्कृतिक केन्द्रों, उत्खनन, स्थलों, मन्दिरों, भवनों, मर्तियों, कला के प्रकारों को देखना, परम्परागत नृत्य, संगीत ।

(3) लोक परम्पराओं और लोक संस्कृति और कला की ओर आकर्षित होकर जैसे- जनजातीय नृत्य, दक्षिण का शृंगार परम्परा, आदिवासियों के गायन आदि । 

रक्त सम्बन्धी कारण 

(1) अपने पूर्वज के आवास स्थलों को देखना।

(2) दूर रहने वाले कुल तथा सम्बन्धियों से मिलना।

(3) मित्रों एवं परिचित की ओर आकृष्ट होना।

अन्य कारण

(1) लोगों के बीच डींग हाँकना कि मैंने अमुक-अमुक स्थानों की यात्राएँ की है।

(2) स्वास्थ्य में सुधार के लिए अस्वस्थ लोग पर्यटन केन्द्रों में जाते हैं। जैसे- टी. बी. के मरीज पहले भारत में मसूरी, नैनीताल जाते थे। आज उपचार के लिए बड़े शहरों में मेडिकल कॉलेजों, मिशनरी अस्पतालों तथा विदेशों में जाते हैं। 

(3) ऋतु परिवर्तन हेतु ऋतुओं की विभीषका से बचने के लिए पर्यटन किया जाता है। गर्मी में ठण्डे स्थानों में चले जाते हैं।

(4) खेल-कूद में भाग लेने के लिए अपने घर से बाहर देश-विदेश का परिभ्रमण करते हैं।

(5) साहसिक वृत्ति को प्रदर्शित करने के लिए भी यात्राएँ की जाती है; जैसे- पहाड़ पर चढ़ना, समुद्र में घूमना आदि। 

(6) उन स्थानों पर जाना जहाँ घर की अपेक्षा जीवन अधिक सस्ता और सरल हो।

(7) कुछ लोग आजकल धमाचौकड़ी से ऊबकर सैलानी का जीवन व्यतीत करने के लिए निकल पड़ते हैं। हिप्पी समुदाय जो विश्व में सर्वव्याप्त है इसका जीता-जागता नमूना है। भ्रमण ही उनके जीवन का मूल अंग बन जाता है।

(8) बाहर के देशों में उद्योग-धन्धा लगाने के लिए साहसी व्यक्तियों द्वारा यात्राएँ की जाती हैं।

(9) अवकाश का समय बिताने के लिए तथा सरकार की भ्रमण योजना के अन्तर्गत प्राप्त धन के उपयोग के लिए। प्रायः प्रत्येक देश की सरकारों ने काम के साथ अवकाश के समय को बढ़ाया है इससे कार्यक्षमता बढ़ती है। इसके लिए LTCC (नजीव ट्रैण्ड कन्सेशन) दिया जाता है।

पर्यटन के प्रकार 

पर्यटक कभी अपने देश में घूमता है, कभी भी विदेश में, कभी अकेला घूमता है, कभी समूह में। इस दृष्टिकोण से पर्यटक के सम्बन्ध में अध्ययन करने पर हमें विभिन्न प्रकार के पर्यटकों का ज्ञान प्राप्त होता है। अतः पर्यटक को निम्न प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है-

घरेलू अथवा विदेशी पर्यटन

बाहर यात्रा करने की अपेक्षा पास-पड़ोस तथा देश में यात्रा करने वालों को संख्या स्वाभाविक रूप से अधिक होती है। इसका कारण है कि अपने देश में यात्रा करना अनेक दृष्टियों से सरल होता है। इसमें निभाषात की, न मुद्रा की, न रहन-सहन की भिन्नता, न परम्पराओं की, न पारपत्र की कठिनाइयाँ आड़े आती हैं। यह सब कुछ स्वयं समझ जाता है या व्यवस्था कर लेता है। यदि कठिनाई आती है तो समाधान का माध्यम मिल जाता है। जब ऐसा पर्यटक अपने देश में विभिन्न स्थानों पर पर्यटन हेतु जाता है तो उसे घरेलू, स्वदेशी या आन्तरिक पर्यटन कहते हैं पर जब वह दूसरे देश पर्यटन हेतु जाता है तो उसे विदेशी या अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन कहते हैं।

व्यक्तिगत या सामुदायिक पर्यटन

कभी पर्यटक अकेले पर्यटन पर निकलता है और कभी समुदाय में अतः इसके दो प्रकार हुए। इनको क्रमशः स्वतन्त्र तथा संगठित पर्यटन भी कहा जाता है। स्वतन्त्र पर्यटन सारी तैयारी, ठहराव, भोजन, स्थान, निर्णय, परिवहन अकेले ही अपनी रुचि के अनुसार करता है पर संगठित में ये सभी व्यवस्थाएँ सम्मिलित भावना पर निर्भर होती हैं। प्रायः संस्थाओं या एजेंसियों द्वारा आयोजित पर्यटन से होते हैं।

समूह पर्यटन 

विकसित देशों में पैसा पर्याप्त होता है तथा छुट्टियों के दिन भी अधिक होते हैं। इनको आनन्द से बिताना वहाँ के लोगों के जीवन का आवश्यक अंग बन गया है। अत: वहाँ के लोग एक साथ बड़ी संख्या में पर्यटन के लिए निकल पड़ते हैं। इसे ही सामूहिक पर्यटन कहा जाता है। अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, जापान, कनाडा आदि देशों में विशेष रूप से इसका चलन है। भारतवासियों के पास आज इतना पैसा नहीं है कि वे सामूहिक पर्यटन पर उसे व्यय कर सकें। साथ ही सामूहिक परिवार प्रणाली, परम्पराओं से होने वाले आवश्यक व्यय की अधिकता इस दिशा में सबसे अधिक है। अतः न तो यह वर्तमान में इनके लिए सम्भव है और न ही निकट भविष्य में।

सामाजिक पर्यटन

कुछ देशों में सीमित साधन वाले लोगों को पर्यटन हेतु राज्य की और से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इसमें राज्य ही यह निर्णय करता है कि पर्यटकों का समूह कहाँ, कब तथा कितने समय के लिए जाएगा। वह व्यवस्था पूर्वी यूरोपीय देशों में अधिक प्रचलित है। भारत में हाल ही में ऐसी योजना बनाई गई है, कि प्रतिवर्ष बाहर सीखने के लिए तथा सम्पर्क के लिए राजकीय व्यय पर कृषकों का दल विदेश यात्रा पर भेजा जाए। ऐसे कई दल विदेश जा चुके हैं। रूस आदि देशों से भी भ्रमणार्थी भारत आये थे। ऐसी यात्राएं इसी श्रेणी में परिगणित की जा सकती हैं। इनका मुख्य उद्देश्य सामाजिक सम्पर्क होता है।

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दिल्ली के दर्शनीय स्थल  

कुतुबमीनार  

पत्थरों से बनी भारत की इस सबसे ऊँची मीनार का निर्माण अपनी विजय के और साथ ही उससे जुड़ी मस्जिद में नमाज के लिए अजान देने के वास्ते कुतुबद्दीन ऐबक ने शुरू किया था। ऊपर की ओर संकरी होती गई पाँच मंजिल की यह मीनार 72.5 मीटर ऊँची है। इससे लगी हुई कुब्बते-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण 27 हिन्दू और जैन मन्दिरों को गिराकर उनके पत्थरों और स्तम्भों से किया गया। मूल रूप से भगवान विष्णु का विष्णुध्वज रहा लौह स्तम्भ इस मस्जिद के आँगन में खड़ा है।

तुगलकाबाद 

यह 14वीं सदी की ग्यासुद्दीन तुगलक की दिल्ली है। इस विशाल किले में कई महल और ग्यासुद्दीन तुगलक का मकबरा है। 

शक्ती तालाब और राजमहल 

फूल वालों की सैर नामक उत्सव का स्थल तालाब और उत्तरी का निर्माण 1230 ईस्वी में हुआ। 

हौजखास और हरिण (डीअर) पार्क

वहाँ फिरोजशाह की दरगाह है। हौजखास नामक तालाब अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाया था, जिसके नाम पर यह जगह हौजखास कहलाई तथा तालाब अब नहीं है। 

सफदरगंज का मकबरा

नबाव सुजाउद्दौला (1753-54 ई.) के द्वारा 18वीं सदी में बनवाया गया यह मकबरा मुगल वास्तुकला का आखिरी नमूना है। 

राष्ट्रपति भवन 

रायसीन की पहाड़ी पर इस आलीशान इमारत का निर्माण राज के दिनों में ब्रिटिश सरकार ने भारत के वायसराय के निवास के लिए किया था। अब यह भारत के राष्ट्रपति का राजकीय निवास है। इस इमारत के चारों ओर 330 एकड़ क्षेत्रफल खुला इलाका है।

इण्डिया गेट

42 मीटर ऊँचा यह मेहराबदार द्वारा पहले महायुद्ध में शहीद हुए भारतीय सेना के जवानों की स्मृति में बनाया गया है। अब यहाँ एक अनाम सैनिक के सम्मान में अमर शहीद ज्योति प्रज्वलित रहती है।

जंतर-मंतर  

इमारती गणना यन्त्रों से सज्जित इस अद्वितीय वेधशाला का निर्माण जयपुर के नक्षत्रविद् राजा सवाई जयसिंह ने 1724 ई. में किया था।

लक्ष्मी नारायण मन्दिर 

उड़ीसा की वास्तुशैली में बना यह मन्दिर आधुनिक भारती मन्दिर वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण है।

लाल किला  

लाल बलुआहे पत्थरों से बने इस किले का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ ने कराया था। वह अपनी राजधानी आगरा से उठाकर दिल्ली आया। इसका निर्माण 1638 में हुआ, और यह मुगल काल की उन इमारतें में से है जो अब भी उम्दा हालत में है। इस किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मोती मस्जिद, रानी महल और हम्मायम की इमारतें दर्शनीय है। 

जामा मस्जिद 

भारत की इस सबसे बड़ी मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ ने कराया था। इसमें बीस हजार नमाजी एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं। मस्जिद का आँगन खम्भों वाले बरामद और गुम्बद के नीचे मंडप से घिरा है।

फिरोजशाह कोटला 

फिरोजशाह तुगलक के द्वारा 1353 ई. में बसाए गए नगर के खण्डहर। 

चिड़िया घर 

देश के सबसे अच्छे चिड़ियाघरों में से एक। इसमें विशाल खुले घेरों में देश-विदेश के विभिन्न प्राणी देखे जा सकते हैं। इनमें सफेद शेर भी काफी तादाद में हैं।

पुराना किला  

यह किला यमुना नदी के किनारे टीले पर अफगान शासक शेरशाह सूरी (1538-1545 ई.) ने बनवाया। किले में पुरातत्व की खुदाई में ईसा से एक हजार साल पहले यहाँ बस्ती होने के प्रमाण मिले हैं। पुराने किले में दिल्ली पर्यटन हर दिन शाम को ध्वनि प्रकाश का प्रदर्शन करता है, जिसमें दिल्ली के इतिहास को साकार किया जाता है। यह प्रदर्शन इन्दप्रस्थ के वर्णन से आरम्भ होता है और इसका समाधान 1947 में भारत की आजादी मिलने की घटना से होता है। 

हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह

संगमरमर का यह मकबरा सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया का स्मारक है।

हुमायूँ का मकबरा 

भारत में मुगल वंश के दूसरे बादशाह हुमायूँ का यह मकबरा उसकी विधवा बेगम ने बनवाया। यह मुगल वास्तुकलां का पहला उल्लेखनीय निर्माण है और ऐसा माना जाता है कि ताजमहल का वास्तु विन्यास इस मकबरे से प्रेरित है। 

लोदी मकबरा 

लोदी वंश के सुल्तानों के मकबरे लोदी गार्डन नामक खूबसूरत बगीचे है।

लोट्स टेम्बल

खिले हुए कमल के फूल के आकार यह यह दुग्ध-धवल संगमरमर का मन्दिर बहाई पंथ के अनुयायियों ने बनवाया है। मन्दिर ईश्वर की शुद्धता और व्यापकता व सभी धर्मों की समानता का प्रतीक है।

भलेस्वा झील

भलेस्वा झील दिल्ली पर्यटन के द्वारा संचालित जलक्रीड़ा और मनोरंजन का क्षेत्र है। यहाँ दस एकड़ क्षेत्र में फैली एक प्राकृतिक झील है। यह स्थान जहाँगीर पुरी के पास काटरी रिंग रोड पर (अन्तर्राष्ट्रीय बस अड्डे से 12 किलोमीटर) स्थित है। भलेस्वा झील का परिसर 1200 मीटर लम्बा और 200 मीटर चौड़ा है। दिल्ली पर्यटन की ओर से यहाँ पानी के खेलों के शौकीनों को कायाकिंग केनोइंग सिरकने की व्यवस्था है। यहाँ अन्य मनोरंजन सुविधाओं के अतिरिक्त पैरों से चलने वाली नावें, वाटर स्कूटर, स्पीड बोट और हूबर क्राफ्ट भी उपलब्ध है।

आजाद हिन्द ग्राम

आजाद हिन्द ग्राम का पर्यटन टीकरीकला ग्राम के पास स्थित है। इसे दिल्ली पर्यटन ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की स्मृति में विकसित किया है। यहाँ नागरिकों के लिए आराम और सुख-सुविधा का उच्चकोटि का बन्दोबस्त है। यह परिसर राष्ट्रीय राजमार्ग पर हरियाणा की सीमा से मात्र दो किलोमीटर दूर है। स्मारक और संग्रहालय की इमारतों पर आकर्षक गुम्बद है। यहाँ बड़ा चौक और प्रेक्षास्थल है। इसके अलावा पर्यटन सूचना केन्द्र, उद्यान, रेस्त्र, पेयजल, सार्वजनिक टेलीफोन, जनसुविधाएँ और भोजन की गुमटियाँ भी है।

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