पर्यावरण एक व्यापक शब्द है, जिसका अभिप्राय प्रकृतिप्रदत्त भौतिक एवं सामाजिक वातावरण से है। पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है- परि+आवरण परि का अर्थ चारों ओर से है, जबकि आवरण से तात्पर्य ढके रहने से है। इस सन्दर्भ में मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, "भौगोलिक पर्यावरण उन सभी दशाओं से मिलकर बना है, जो प्रकृति ने मानव को प्रदान की है।" प्राचीन काल में व्यक्ति अधिक स्वस्थ तथा निरोगी होते थे।
पर्यावरण का अर्थ
पर्यावरण से आशय- पर्यावरण शब्द 'परि' और 'आवरण' दो शब्दों के योग से बना है, जिसमें 'परि' का अर्थ चारों ओर तथा 'आवरण' का अर्थ ढके रहने वाली पर्त से है अर्थात् हमें चारों ओर से ढके रखने वाली पर्त जल तथा वायु का प्राकृतिक वातावरण कहलाता है।
पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ, परिभाषा, कारण, प्रकार एवं प्रभाव
पर्यावरण की परिभाषा
पर्यावरण को विभिन्न वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है जिनमें से प्रमुख परिभाषाओं का अवलोकन करना यहाँ आवश्यक है जो निम्न प्रकार है-
मैकाइवर तथा पेज के अनुसार- "भौगोलिक पर्यावरण उन समस्त दशाओं से बना है, जो प्रकृति ने मनुष्य को प्रदान की हैं।"
सोरोकिन के अनुसार- "भौगोलिक पर्यावरण का सम्बन्ध ऐसी प्राकृतिक दशाओं से है, जो मनुष्य से प्रभावित हुए बिना अपना कार्य करती हैं तथा जो मनुष्य के अस्तित्व एवं कार्यों से स्वतन्त्र रहते हुए स्वयं परिवर्तित रहती हैं।"
इन सबमें हम पाते हैं कि हमारे पर्यावरण के अन्तर्गत जलवायु, वातावरण का तापक्रम, जंगल, मौसम, पहाड़, नदी, समुद्र, रेगिस्तान, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा आदि की दशा, वनस्पति तथा पशु-पक्षी इत्यादि आते हैं। सरल और स्वस्थ जीवन के लिए इन सभी में सन्तुलन होना परमावश्यक है। जब इनका सन्तुलन बिगड़ जाता है, तभी जीवन कठिन हो जाता है। इसके सन्तुलन को ही पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है।
पर्यावरण के प्रकार
(1) भौगोलिक या प्राकृतिक पर्यावरण
(2) सामाजिक पर्यावरण
(3) सांस्कृतिक पर्यावरण।
भौगोलिक या प्राकृतिक पर्यावरण
मनुष्य के आस-पास पायी जाने वाली विभिन्न प्राकृतिक शक्तियाँ व कारक ही मनुष्य के लिए भौगोलिक या प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण करती हैं। पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और मौसम आदि सम्मिलित रूप से प्राकृतिक पर्यावरण कहलाते हैं। यह पर्यावरण मनुष्य के नियन्त्रण में नहीं है।
सामाजिक पर्यावरण
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अपने स्वभाव एवं प्रकृति से वह समाज का निर्माण करता है। प्रत्येक व्यक्ति समाज का सदस्य होता है। समाज से व्यक्ति प्रभावित होता है। अब समाज सम्बन्धी सभी कारक सम्मिलित हो जाते हैं, तो सामाजिक पर्यावरण का निर्माण होता है। समाज का सम्पूर्ण ढाँचा ही सामाजिक पर्यावरण है। परिवार पास-पड़ोस, समुदाय, खेल तथा विद्यालय के साथी आदि सभी व्यक्ति समाज के अंग हैं तथा सामाजिक पर्यावरण में सम्मिलित होते हैं। हमारे जीवन पर सामाजिक पर्यावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।
सांस्कृतिक पर्यावरण
सांस्कृतिक पर्यावरण में हमारी संस्कृति, परम्पराएँ, धर्म, भाषा, रीति-रिवाज, रूढ़ियाँ, प्रणाएँ प्रचलनों आदि को शामिल किया जाता है। इसमें मनुष्य द्वारा निर्मित भौतिक पदार्थों को भी रखा जाता है। जैसे- आवास, उपकरण, वस्तुएँ, मशीनें, संस्थान आदि। ये पर्यावरण मनुष्य के नियन्त्रण में रहता है।
पर्यावरण का जन-जीवन पर प्रभाव अथवा पर्यावरण से लाभ
उपर्युक्त विवेचना से यह पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है कि पर्यावरण मानव जाति की ही नहीं, वरन् सभी जीव-जन्तुओं के जीवन की समस्त आवश्यकताओं को प्रभावित करता है तथा अनेक रूप से लाभकारी सिद्ध होता है; अतः पर्यावरण के लाभों को संक्षेप में जानना आवश्यक है। पर्यावरण से निम्नलिखित लाभ है-
(1) मनुष्य के शारीरिक विकास के लिए स्वच्छ वातावरण तथा शुद्ध वायु की आवश्यकता होती है। साँस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन हमें स्वच्छ पर्यावरण से ही प्राप्त हो सकती है।
(2) शुद्ध जल, जो कि प्राणियों के जीवन का मुख्य आधार है, इसकी प्राप्ति भी शुद्ध पर्यावरण पर ही निर्भर करती है।
(3) वनों तथा पहाड़ों से विभिन्न प्रकार की औषधियों, जड़ी-बूटियाँ ईंधन तथा फर्नीचर के लिए उपयोगी लकड़ी हमें पर्यावरण से ही प्राप्त होती है।
(4) उचित पर्यावरण वातावरण में आवश्यक नमी बनाये रखने के लिए आवश्यक है।
(5) उचित पर्यावरण से ही भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाये रखा जा सकता है।
(6) वन तथा पहाड़ पर्याप्त वर्षा कराने व भूमि के कटाव को रोकने और मिट्टी के संरक्षण के लिए पर्यावरण बहुत आवश्यक है।
(7) समुचित पर्यावरण के अभाव में अनेक वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु तथा जंगली जानवर समाप्त होते जा रहे हैं, इसलिए ऐसी लुप्त हो रही वनस्पतियों व जीव-जन्तुओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है जो कि पर्यावरण संरक्षण द्वारा ही सम्भव है।
पर्यावरण प्रदूषण
प्रदूषण शब्द अंग्रेजी के Pollution का हिन्दी रूपान्तरण है। पोल्यूशन का अर्थ होता है 'खराब हो जाना' अतः प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ हुआ 'दूषित या खराब हो जाना।' प्रकृति ने हमें प्राकृतिक संसाधन तो प्रचुर तथा सन्तुलित मात्रा में प्रदान किये हैं, परन्तु मानव ने उसका दुरुपयोग करके पर्यावरण सम्बन्धी अनेक असन्तुलन की समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं जिसे ही प्रदूषण कहते हैं। औद्योगिकीकरण और जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि से मानव ने छेड़-छाड़ करके प्राकृतिक व्यवस्था का सन्तुलन बिगाड़ दिया है।
औद्योगिकीकरण तथा मकान बनाने के लिए बनों के पेड़ काट दिये, जिसके फलस्वरूप वर्षा न होने से मानव व जीव-जन्तुओं के लिए पेयजल की प्राप्ति दुर्लभ हो गयी। साथ ही पशुओं के लिए चारे का अभाव हो गया। कहीं सूखा पड़ता है तो कहीं नदियों में बाढ़ आने से अपार जल व धन की हानि होती है। पेड़ों के कटने से मानव को शुद्ध वायु भी नहीं मिल पाती। दूषित वायु से अनेक रोगों को कष्ट भोगना पड़ता है।
रासायनिक खाद व कीड़े मारने की ओषधियों के प्रयोग से खाद्य पदार्थ भी बहुधा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इस प्रकार दूषित वायु, दूषित जल और विषैले खाद्य पदार्थों तथा अनेक अन्य आधुनिकीकरण प्रदत्त साधनों ने पर्यावरण को जीवन रक्षक के स्थान पर जीवन-संहारक बना दिया है।
जब पर्यावरण में कहीं भौतिक, रासायनिक, जैविक अथवा अन्य किसी भी प्रकार के परिवर्तन के कारण जैव समुदाय के जीवन प्रक्रम में कोई विघ्न उत्पन्न होता है अथवा अवांछनीय परिवर्तन होता है तो प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। इस प्रकार के परिवर्तन को पर्यावरणीय प्रदूषण कहते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण
पर्यावरण-प्रदूषण के अनेक कारण हैं, जिनमें निम्न प्रमुख हैं-
(1) जब से वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति और औद्योगिकीकरण के विकास के कारण पेड़ काट-काटकर भिन्न-भिन्न प्रकार के कारखाने स्थापित किये जाने लगे हैं, जंगलों के पेड़ काटने से देश की जलवायु पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। पेड़-विहीन क्षेत्रों में वर्ष की कमी से सूखा पड़ने लगा है। कारखानों व मकानों के लिए जब लकड़ी की आवश्यकता हुई, तो पहाड़ों के पेड़ काटे गये, जिससे वर्षा का सम्पूर्ण पानी बिना रुकावट के वेग से नदियों में बहने लगा। नदियों में प्रतिवर्ष बाढ़ों के आने का यह मुख्य कारण है।
(2) कारखाने के हानिकारक अवशिष्ट व रासायनिक पदार्थ नदियों में बहा दिये जाते हैं। इस कारण भी जल दूषित हो जाता है।
(3) कारखानों की चिमनियाँ, बिजली घरों तथा रेलगाड़ियों से निकला धुआँ व गैसें वातावरण को दूषित करने में काफी प्रभावशाली भूमिका निभाती हैं। छोटे नगरों व देहाती क्षेत्रों के चूल्हों का धुआँ भी वातावरण को प्रदूषित करता है।
(4) शहरों में कूड़े-करकट के ढेर पर्यावरण को दूषित करते हैं। उनसे मच्छर-मक्खियों खूब पनपती है।
(5) मानव व पशुओं आदि के मल-मूत्र के निस्तारण की उपयुक्त व्यवस्था का न होना भी पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य कारण है।
(6) जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होने से भारतीय जन-जीवन की आवश्यकताएं बढ़ती जाती हैं, जिनकी पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधन (वायु, जल, भूमि आदि) पर्याप्त नहीं रहे। मकान बनाने के लिए जंगलों के पेड़ काटकर भूमि और लकड़ी उपलब्ध की जाती है। इस प्रकार ऐसे क्षेत्रों में वायु के शुद्धीकरण की प्रक्रिया पूर्णतः सम्भव नहीं।
(7) आधुनिक मशीनों, विमानों, रेलगाड़ियों, मोटरकारों, बसों, ट्रकों व जेनरेटरों का शोर भी वातावरण में ध्वनि प्रदूषण पैदा करता है। रेडियो, दूरदर्शन व वीडियो आदि अब जोर से बजाये जाते हैं, तो कानों को हानि पहुँचती है। साथ ही मस्तिष्क व हृदय पर भी कुप्रभाव पड़ता है।
(8) खाद्य पदार्थों को अधिक मात्रा में पैदा करने के लिए रासायनिक खादों व जहरीली दवाओं का प्रयोग किया जाता है, जिसका भूमि व खाद्य पदार्थों दोनों को प्रदूषण का फल भुगतना पड़ता है।
पर्यावरण प्रदूषण दूर करने के उपाय
वातावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए-
1. प्रदूषण के कारणों का पता करके उनको नष्ट किया जाना चाहिए।
2. अनेक अपमार्जक पदार्थो विषैले पदार्थों, दवाओं, मुल-मूत्र आदि को किसी भी जलस्रोत या जल के साधन में मिलाये जाने से पहले शुद्ध कर लेना चाहिए। इनका भौतिक तथा जैविक दोनों प्रकार का शुद्धीकरण आवश्यक है।
3.अशुद्ध जल को यदि नदियों आदि में डालना ही पड़े, तो आबादी वाले स्थानों से काफी आगे ले जाकर डालना चाहिए अथवा इसे ऐसे तालाबों, जलाशयों, झीलों आदि में डालना चाहिए, जिसका जल किसी काम में न लाया जाता हो।
4. कूड़ा-करकट, गोवर आदि को कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए गहों में एकत्र किया जाना चाहिए, ताकि प्रदूषण न हो सके। आजकल इन पदार्थों से बायो गैस बनाई जाने लगी है।
5. निवास स्थानों को सड़क से दूर बनाया जाना चाहिए, ताकि स्वतः बल निर्वातकों आदि के धुएँ, धूल आदि से बचा जा सके।
6. कारखाने की चिमनियों आदि को काफी ऊंचा बनाया जाना चाहिए। इन पर प्रदूषण को कम करने के लिए उपकरण आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
7. परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। यदि ऐसा आवश्यक हो, तो ऐसी तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे रेडियोधर्मी विकिरण का प्रभाव न फैल सके।