विनियोग क्या है || अर्थ, परिभाषा, महत्व, प्रकार, तत्व एवं भारत में विनियोग निर्धारण

    विनियोग

    विनियोग अर्थतन्त्र का एक महत्वपूर्ण सूचक है। बचत का जो भाग पास किया वह पूँजी कोष को बढ़ाता है, उसे विनियोग कहते हैं। आय का जो भाग नये कारखानों की स्थापना, क्षमता वृद्धि, भवन, परिवहन और अन्य संरचनात्मक विकास में लगाया जाता है और इससे पूँजीगत वस्तुओं में वृद्धि होती है, उसे विनियोग कहा जाता है।

    विनियोग का अर्थ 

    सामान्य भाषा में विनियोग का आशय अंशों, अंश अधिपत्रों, ऋणपत्रों एवं प्रतिभूतियों को क्रय करना है, जो प्रारम्भ से ही पूँजी बाजार में विद्यमान हों। अन्य शब्दों में, ऐसा विनियोग जिसके फलस्वरूप साधनों की माँग तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है, वास्तविक विनियोग कहलाता है। वर्तमान समय में संरचनात्मक क्षेत्र के विनियोग इस तरह के विनियोग में आते हैं।

    यह भी पढ़ें- 

    विनियोग की परिभाषाएँ

    विनियोग को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-

    (1) पीटरसन के अनुसार- "विनियोग व्यय का अर्थ उत्पादकों के स्थायी वस्तुओं, नये भवनों तथा वस्तुओं के भण्डार में परिवर्तन से है। " 

    (2) श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार- "विनियोग से आशय वस्तुओं के वर्तमान भण्डार में वृद्धि करने से है।''

    (3) प्रो. कीन्स के अनुसार- "विनियोग से अभिप्राय पूँजीगत वस्तुओं में होने वाली वृद्धि से है।'' 

    (4) डडले डिलार्ड के अनुसार- "वास्तविक पूँजीगत परिसम्पत्तियों के वर्तमान स्टॉक में वृद्धि विनियोग है।"

    उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि आय के कुछ भाग को अधिक आय अर्जित करने हेतु सम्पत्तियों में लगाना विनियोग कहलाता है। बचत की भाँति विनियोग भी व्यक्तिगत तथा सामाजिक होते हैं। जब विनियोगों का लाभ किसी व्यक्ति और परिवार को मिलता है तो उसे व्यक्तिगत और जब उसका लाभ सामूहिक रूप से समाज को अथवा राष्ट्र को मिलता है तो उसे सामाजिक या राष्ट्रीय विनियोग कहते हैं।

    यह भी पढ़ें-

    विनियोगों का महत्व 

    आर्थिक विकास में पूँजी की भूमिका ने विनियोगों के महत्व को पर्याप्त सीमा तक बढ़ा दिया है, जो निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है- 

    (1) भुगतान सन्तुलन की समस्या का हल 

    विनियोग में वृद्धि से निर्मित पूँजी निर्यातों को प्रोत्साहित करती है तथा भुगतान सन्तुलन की समस्या का हल निकल आता है क्योंकि राष्ट्र में स्थानीय पूँजी से आयात प्रतिस्थापन सम्भव होते हैं।

    (2) उत्पादन एवं रोजगार वृद्धि में सहयोग 

    विनियोग से देश में उत्पादन तथा रोजगार वृद्धि का वातावरण निर्मित होता है। 

    (3) बाजार का विस्तार 

    पूँजी निर्माण से बाजार का विस्तार होता है तथा औद्योगीकरण को गति मिलती है। 

    (4) संसाधनों का उपयोग 

    विनियोग से संसाधनों के उपयोग के अवसर बढ़ते हैं, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। 

    (5) पूँजी निर्माण में सहयोग 

    विनियोग अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के लिए पूँजी निर्माण का कार्य करता है।

    इसे भी पढ़ें-

    विनियोग के प्रकार

    गणना, प्रकृति और स्वरूप के अनुसार विनियोग निम्न प्रकार के होते हैं- 

    (1) कुल तथा शुद्ध विनियोग 

    विनियोग का यह स्वरूप विनियोग की मात्रात्मक वृद्धि को प्रदर्शित करता है। कुल विनियोग से आशय एक निश्चित समय में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में वास्तविक विनियोग से होता है, जबकि शुद्ध विनियोग कुल विनियोग का वह भाग होता है, जो अर्थव्यवस्था की कुल विद्यमान उत्पादन क्षमता में शुद्ध वृद्धि को प्रकट करता है।

    (2) वित्तीय विनियोग 

    वित्तीय विनियोग व्यक्तिगत विनियोग का स्वरूप है। जब कोई व्यक्ति अपनी आय में बचत का अंश किन्हीं वर्तमान कम्पनियों के अंश, ऋणपत्र, सरकारी प्रतिभूतियों या बॉण्डों को क्रय करने में लगाता है तो ऐसे विनियोग को वित्तीय विनियोग कहते हैं।

    (3) वास्तविक विनियोग 

    यह भी व्यक्तिगत विनियोग का ही स्वरूप है। जब कोई व्यक्ति अपनी बचतों को नये कारखानों की स्थापना या भवन आदि के निर्माण में लगाता है तो इसे वास्तविक विनियोग कहा जाता है। वित्तीय विनियोगों से समाज में पूँजी की मात्रा में वृद्धि होती है। यह राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि में सहायक होती हैं।

    (4) प्रेरित एवं स्वायत्त विनियोग 

    जब समाज में आय बढ़ने के साथ-साथ व्यय की प्रकृति विकसित होती है तो बाजार में माँग का सृजन होता है। इस बढ़ती माँग को पूरा कर लाभ अर्जित करने के लिए उद्योगपति और व्यवसायी विनियोग के लिए प्रेरित होते हैं, तब इसे प्रेरित विनियोग कहते हैं। जब विनियोग भावी माँग या सम्भावनाओं और आविष्कार आदि से सम्बन्धित होते है तब इन्हें स्वायत्त विनियोग कहते हैं।

    (5) योजनाबद्ध तथा गैर-योजनाबद्ध विनियोग 

    जब भावी लाभ को ध्यान में रखकर योजनाबद्ध तरीके से सोच-विचार कर पूँजीगत सम्पत्तियों में धन लगाया जाता है तब उसे योजनाबद्ध विनियोग कहा जाता है। कई बार माँग में कमी जैसी परिस्थितियों के कारण विनियोग अनुपयोगी पड़ा रहता है या विनियोग करने के पीछे केवल बचतों का उपयोग करना ही लक्ष्य हो तब उसे गैर-योजनाबद्ध विनियोग कहते हैं।

    उपर्युक्त प्रकारों के अतिरिक्त तात्कालिक कारणों या उद्देश्यों से भी विनियोग निर्णय प्रभावित होते हैं। एक अर्थव्यवस्था में सामूहिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से इन सभी प्रकार के विनियोगों का मिश्रण देखने को मिलता है। इस मिश्रण के स्तर पर ही अर्थव्यवस्था की प्रगति की दिशा व स्वरूप निर्भर करता है।

    विनियोगों को प्रभावित करने वाले तत्व

    बचतें विनियोग में परिवर्तित हो इस हेतु अनेक तत्व प्रभावित करते हैं। प्रतिफल विनियोग को प्रभावित करने वाला सर्वाधिक सशक्त कारण है। विनियोगों से मिलने वाला प्रतिफल चाहे ब्याज के रूप में हो, चाहे लाभ के रूप में, विनियोग की महत्वपूर्ण प्रेरणा होती है। इसके अतिरिक्त अन्य अप्रत्यक्ष कारण भी विनियोग को प्रभावित करते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

    (1) पूँजी की सीमान्त क्षमता 

    उत्पत्ति के प्रत्येक साधन से मिलने वाला प्रतिफल उस साधन के सीमान्त उत्पादकता पर निर्भर करता है। उत्पादन प्रक्रिया में साधनों की विनियोजन मात्र से प्रतिफल मिलना सुनिश्चित नहीं होता। एक उत्पादक तब तक साधनों की मात्रा बढ़ाने का निर्णय नहीं लेता है, जब तक उस साधन से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता शून्य न हो जाये। पूँजी के प्रत्येक साधन का विनियोजन भी उसकी सीमान्त क्षमता बढ़ती हुई प्राप्त होती है तब तक विनियोग की मात्रा बढ़ाना उपयुक्त होता है।

    (2) सरकारी नीतियाँ 

    सरकार की उद्योग, व्यापार, वित्त सम्बन्धी अनेक नीतियाँ होती है। ये नीतियाँ भी विनियोग को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण घटक होती हैं। यदि इन नीतियों से उत्पादक या व्यवसायी को उद्यम लगाने को प्रोत्साहन मिलता है तो बचतें विनियोग की ओर अग्रसर होती हैं अन्यथा व्यावसायिक गतिविधियों शिथिल होने लगती है।

    (3) ब्याज और लाभ की दर 

    ब्याज और लाभ की दर विनियोगों को प्रभावित करने वाला प्राथमिक तत्व है। जब व्याज दर में कमी होती है तो विनियोगों की लागत कम हो जाती है जिससे विनियोग की मात्रा बढ़ जाती है। सरकार विनियोगों को घटाने के लिए बैंक दर कम कर देती है। वर्तमान में ब्याज दर कम होने की प्रवृत्ति दिखायी देती है। इससे जिन उद्यमों में लाभ की दर अधिक होती है उन उद्योगों में विनियोग बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है।

    (4) शान्तिपूर्ण वातावरण 

    शान्तिपूर्ण वातावरण विनियोग के लिए आदर्श होता है। यदि किसी क्षेत्र में युद्ध, आतंकवाद या अन्य किसी प्रकार के सामाजिक राजनैतिक संकट से शान्तिपूर्ण वातावरण नहीं है तो वहाँ विनियोग की मात्रा कम होगी। भारत में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और पूर्वोत्तर राज्यों में नक्सली समस्या के कारण विनियोग की मात्रा कम है।

    (5) तकनीकी कारण 

    आधुनिक आर्थिक क्रियाओं में तकनीकी का विशिष्ट महत्व है। यदि किसी क्षेत्र में पिछड़ी एवं कालातीत तकनीक से कार्य हो रहा है तो उसमें विनियोग की सम्भावनाएँ कम होंगी। आधुनिक तकनीक के प्रयोग से उत्पादित माल कम लागत और उच्च गुणवत्ता के साथ निर्मित होता है, जिससे इस पर लाभ की निश्चितता होती है, अतः यदि आधुनिक तकनीक का प्रयोग होगा तो विनियोग की मात्रा बढ़ेगी। 

    (6) अन्य तत्व 

    उक्त कारणों के अतिरिक्त उद्यमी तथा व्यवसायी की व्यक्तिगत रुचि, स्वभाव, भावी परिस्थितियाँ, राजनैतिक प्रेरणा, शिक्षा का स्तर, विशेषज्ञों की उपलब्धता आदि भी ऐसे तत्व हैं, जो विनियोग की मात्रा को प्रभावित करते हैं।

    (7) विनियोग सुविधाएँ 

    विनियोग के लिए बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार और अन्य सुविधाएँ भी प्रेरक का कार्य करती हैं। यदि ये सुविधाएँ अच्छी एवं बहुतायत में उपलब्ध हैं तो उन क्षेत्रों में विनियोग आकर्षित होगा। मध्य प्रदेश में पंजाब तथा महाराष्ट्र जैसे राज्यों की तुलना में कम सुविधाएँ होने के कारण कम विनियोग होता है।

    विनियोग का निर्धारण

    आय स्तर, आय में परिवर्तन, उपभोग प्रवृत्ति, अचल सम्पत्ति का स्टॉक आदि आन्तरिक तत्वों द्वारा प्रेरित विनियोग प्रभावित होता है। जबकि स्वायत्त विनियोग बाह्य तत्वों से प्रभावित होता है। नियोजित एवं युद्धकालीन अर्थव्यवस्था में स्वायत्त विनियोग को मात्रा लाभ प्राप्ति की आशा से प्रभावित नहीं होती बल्कि कुल विनियोग व स्वायत्त विनियोग के योग पर इसकी मात्रा आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार के तत्वों से प्रभावित एवं निर्धारित होती है। 

    अर्थव्यवस्था में विनियोग को दर को दो शक्तियाँ निर्धारित करती हैं- ब्याज दर एवं पूँजी की सीमान्त क्षमता। कीन्स का मत है कि विनियोग व्याज सापेक्ष नहीं है और ब्याज दर में कमी करके विनियोग को नहीं बढ़ाया जा सकता है। पूँजी की सीमान्त क्षमता ही महत्वपूर्ण है और इसमें व्यावसायिक संस्थाओं का स्थान बड़ा महत्वपूर्ण है। अल्पकालीन संस्थाएँ लाभ, माँग, मूल्य, वेतन, ब्याज दर आदि आन्तरिक तत्वों को प्रभावित करती हैं। दीर्घकालीन संस्थाओं पर जनसंख्या में वृद्धि, नवीन प्रक्रिया, विदेशी व्यापार, राजनैतिक परिस्थितियाँ आदि अनेक कारणों का प्रभाव पड़ता है।

    भारत में विनियोग प्रवृत्ति 

    सकल घरेलू विनियोग (पूँजी निर्माण में) क्षेत्रीय विभिन्नताओं की प्रवृत्तियाँ 

    भारत में सकल घरेलू विनियोग की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को नीचे सारणी में दर्शाया गया है- 

    सारणी : भारत में सकल घरेलू विनियोग में (पूँजी निर्माण में) क्षेत्रीय विभिन्नताओं की प्रवृत्तियाँ ( प्रतिशत में)

     

    2008-09

    2009-10

    2010-11

    2011-12

    2012-13

    2013-14

    (1).सकल घरेलु पूंजी निर्माण (निवेश)

    * सरकारी क्षेत्र

    * निजी क्षेत्र  

     

    34.3%

     

     

    9.4%

     

    24.8%

     

    36.5%

     

     

    9.2%

     

    25.4%

     

    36.5%

     

     

    8.4%

     

    26.0%

     

    38.2%

     

     

    7.6%

     

    28.4%

     

    36.6%

     

     

    7.2%

     

    26.3%

     

    32.3%

     

     

    8.0%

     

    23.3%

    उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट होता है कि वर्ष 2008-09 में सकल घरेलू पूँजी निर्माण 34.3 प्रतिशत था जिसमें सरकारी क्षेत्र व निजी क्षेत्र का योगदान क्रमश: 9.4% तथा 24.8% था। यही अंक 2013-14 के लिये क्रमश: 8.0% और 23.3% था।

    शुद्ध पूँजी प्रवाह 

    शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण तथा घरेलू बचत का अन्तर शुद्ध पूँजी प्रवाह कहलाता है। अन्य शब्दों में, शुद्ध घरेलू बचत में विदेशों से पूँजी के शुद्ध अन्तर्वाह को जोड़ने पर सकल घरेलू पूँजी निर्माण की मात्रा भी प्राप्त होती है।

    शुद्ध पूँजी प्रवाह (Net Capital Inflow) को राष्ट्रीय आय के प्रतिशत के रूप में अथवा बचत तथा विनियोग की दर के अन्तर के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।

    यदि विनियोग की दर घरेलू बचत की दर से अधिक (I>s) है तो शुद्ध पूँजी प्रवाह धनात्मक होगा। इसके विपरीत विनियोग की दर बचत की दर से कम (I<S) होने पर शुद्ध पूँजी प्रवाह ऋणात्मक होगा। 

    जैसा कि हम स्पष्ट कर चुके हैं योजनाकाल में बचत और निवेश दोनों ही की दरों में वृद्धि हुई है किन्तु निवेश के अन्तर को पूरा करने के लिये विदेशी पूँजी का अन्तर्वाह करना पड़ा।

    भारत में विनियोग की धीमी दर के कारण

    भारत में पूँजी के निर्माण की दर व विनियोग की निम्न दर के अनेक कारण हैं। निम्नलिखित प्रमुख बिन्दुओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारत में विनियोग दर में वृद्धि क्यों नहीं हो पा रही हैं-

    (1) बाजार का छोटा आकार। 

    (2) उद्यमशीलता का अभाव।

    (3) कम आय।

    (4) बचत प्रवृत्ति की कमी।

    (5) जनसंख्या का बड़ा आकार।

    (6) आधारभूत सेवाओं का अभाव।

    (7) आर्थिक पिछड़ापन ।

    (8) शिक्षा का पिछड़ापन।

    (9) ग्रामीण अर्थव्यवस्था।

    (10) तकनीकी ज्ञान का अभाव।

    उपर्युक्त कारणों से भारतवर्ष में विनियोग की दर अत्यल्प है, जिससे पूँजी निर्माण विपरीत रूप से प्रभावित होता है, फलत: हमें विदेशी पूँजी के सहयोग पर निर्भर रहना आवश्यक हो जाता है।

    यह भी पढ़ें-


    Post a Comment

    Previous Post Next Post