उदारीकरण में राज्य की भूमिका समाप्त नहीं होती है, बल्कि विकेन्द्रीकरण पर बल देते हुए मानवीय मूल्यों तथा कल्याण को बढ़ावा दिया जाता है। उदारीकरण में परम्परागत अनुज्ञापत्र अभ्यंश परमिट शासन की समाप्ति तथा पारदर्शिता, आधुनिकीकरण, मितव्ययता, कुशलता एवं मित्रतायुक्त प्रशासन की स्थापना की जाती है।
उदारीकरण का अर्थ
उदारीकरण शब्द दो शब्दों उदारी और करण से मिलकर बना है। जिसमें उदारी शब्द का अर्थ सरल, सीधा एवं श्रेष्ठ से होता है तथा करण शब्द का अर्थ औजार, साधन या दस्तावेज से है। इस प्रकार उदारीकरण से आशय प्रतिबन्ध और नियन्त्रण रहित सीधे, सरल, दस्तावेज या साधन से है।
अन्य शब्दों में उदारीकरण का तात्पर्य ऐसे नियन्त्रण में ढील देना या उन्हें हटा देना है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले। उदारीकरण में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिनके द्वारा किसी देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करने वाली आर्थिक नीतियों, नियमों, प्रशासकीय नियन्त्रणों तथा प्रक्रियाओं आदि को समाप्त किया जाता है या उनमें ढील दी जाती है। इसमें आर्थिक विकास में सहायक क्रियाओं को प्रोत्साहित किया जाता है।
उदारीकरण की परिभाषाएँ
उदारीकरण को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है
(1) एम. धनुजा के अनुसार- "उदारीकरण से आशय अर्थव्यवस्था की उस स्थिति से है, जिसके प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से नियमनों तथा नियन्त्रणों को समाप्त कर दिया जाता है।"
(2) डॉ. एस. सी. सक्सेना के शब्दों में- "उदारीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें देश के शासन तन्त्र द्वारा देश के आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए अपनाये जा रहे अनुज्ञाकरण नियन्त्रण, कोटा प्रशुल्क आदि प्रशासकीय अवरोधों को कम किया जाता है। "
(3) प्रो. मधु दण्डवते के अनुसार- "आर्थिक उदारीकरण से आशय उन प्रयासों से है, जिनके द्वारा आर्थिक व्यवस्था को उसकी लोचहीनताओं तथा नौकरशाही के उन स्वेच्छाचारी नियन्त्रणों एवं प्रक्रियाओं से मुक्ति प्रदान की जाती है, जो विलम्ब, भ्रष्टाचार एवं अकुशलता को जन्म देती है तथा उत्पादन को घटाती है।"
अतः उपर्युक्त परिभाषाओं के निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि उदारीकरण एक आर्थिक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत व्यावसायिक क्रियाओं पर लगाये गये विभिन्न नियन्त्रण हटाकर या शिथिल करके देश की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जाता है और देश-विदेश में आर्थिक इकाइयों की प्रतियोगिता क्षमता को प्रोत्साहित किया जाता है।
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उदारीकरण की मान्यताएँ या विशेषताएँ
भारत में आर्थिक उदारीकरण का संकुचित अर्थ लगाते हुए प्रसार माध्यमों एवं कुछ राजनैतिक दलों द्वारा इसे वैश्वीकरण तथा निजीकरण का पर्याय मानकर कुप्रचारित कर दिया गया है। वस्तुतः उदारीकरण की मान्यताएँ या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
आत्मनिर्भरता का लक्ष्य
कार्यकुशल, प्रतिस्पर्धी एवं आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा सुखी सम्पन्न समाज इसका अन्तिम लक्ष्य है।
निजी क्षेत्रों का विशिष्टीकरण
यह विचारधारा मानती है। कि सरकार को आधारभूत संरचना, सामाजिक कल्याण तथा नियामकीय कार्यों पर अधिक ध्यान देते हुए अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र निजी उद्यमियों के लिए छोड़ देने चाहिए।
तार्किक नियमावली
सरकारी मशीनरी, राजकोषीय व्ययों तथा। नियमों को तार्किकता की कसौटी पर कसना इस दृष्टिकोण की मान्यता है।
नियमों में नम्यता
वैश्वीकरण निजीकरण, विनिवेश तथा इसके उद्देश्यों की प्राप्ति के मार्ग या उपाय हैं।
नियन्त्रणों को ढीला करना
अर्थव्यवस्था पर लगे हुए बाध्यकारी तथा नियन्त्रणकारी प्रावधान यथासम्भव कम कर दिये जाने चाहिए क्योंकि नियन्त्रणों का दुष्परिणाम हमेशा चोरी के रास्ते ढूंढने के रूप में निकलता है, जिससे भ्रष्टाचार भी पनपता है।
शासन का जनकल्याण से विस्थापन
यह दृष्टिकोण सरकारी भूमिका को समाप्त नहीं करना चाहता बल्कि जनहित एवं राष्ट्रहित में अधिक कुशल बनाना चाहता है।
उदारवादी प्रयास
उदारीकरण एक दृष्टिकोण या विचारधारा है, जो उदारवादी प्रयासों को बढ़ावा देता है।
राज्य एवं शासन
यह राज्य अर्थात् सरकार की परम्परागत भूमिका को पुनः परिभाषित करने की अवधारणा है।
आधुनिकीकरण एवं कुशलता
कुशलता तथा आधुनिकीकरण उदारीकरण के प्रमुख आधार हैं।
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उदारीकरण के उद्देश्य
उदारीकरण का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में सुधार लाना होता है। भारत में उदारीकरण की जो प्रक्रिया प्रारम्भ हुई है उसका आर्थिक शब्दावली में नाम ढाँचागत समायोजन कार्यक्रम है। उदारीकरण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) कृषि क्षेत्र का विकास करना।
(2) प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग को बढ़ावा देना।
(3) आर्थिक विकास की रुकावट को दूर करना।
(4) बाजार की शक्तियों को स्वतन्त्रता प्रदान करना।
(5) व्यवसाय के क्षेत्र में सरकारी तथा नौकरशाही हस्तक्षेप को कम करना।
(6) सूचना एवं ज्ञान का आदान-प्रदान करना।
(7) उत्पादकता में सुधार लाना।
(8) देश के संसाधनों का कुशलतम उपयोग करना।
(9) अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण करना।
(10) देशी बाजारों का विकास करना।
(11) प्रबन्धकीय कार्यक्षमता एवं निष्पादन में सुधार लाना।
(12) देश का व्यापार सन्तुलन बनाये रखना।
(13) आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना।
(14) संसाधनों के विश्वव्यापी आधार पर स्वतन्त्र बहाव को प्रोत्साहित करना।
(15) आर्थिक कल्याण में वृद्धि करना।
(16) प्रतिबन्धों को हटाने के परिणामस्वरूप सरकारी आय में आने वाली कमी को दूर करना।
(17) सार्वजनिक क्षेत्र के अनावश्यक एकाधिकार को समाप्त करना।
(18) बीमार सार्वजनिक क्षेत्र में गतिशीलता और कुशलता लाना।
(19) लालफीताशाही, अक्षमता तथा संसाधनों के अपव्यय को रोकना।
(20) संसाधनों के विश्वव्यापी आधार पर स्वतन्त्र बहाव को प्रोत्साहित करना।
उदारीकरण की आवश्यकता
भारत में औद्योगिक विकास हेतु उदारीकरण की नीति अपनाने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है-
जीवन स्तर में सुधार
भूमण्डलीकरण एवं प्रतिबन्धों की समाप्ति से जनता को अच्छी एवं सस्ती वस्तुएँ मिलने लगती हैं। बाजार का क्षेत्र बढ़ने से आय एवं रोजगार में भी वृद्धि होती है। इससे लोगों के जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार होने लगते हैं।
तीव्र औद्योगिक विकास
भारत के पास वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति सहित अर्थव्यवस्था में अब पर्याप्त बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है। इसलिए यदि उपयुक्त रूप से निजी पहल तथा उद्यम को बढ़ावा दिया जाये तो औद्योगिक विकास में तीव्रगति से वृद्धि होने लगेगी।
अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण
आर्थिक उदारीकरण को अपनाकर देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था से जोड़ा जा सकता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा के योग्य बन जाती है। इस प्रकार उदारीकरण द्वारा देश की अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण होता है।
संसाधनों के अपव्यय पर रोक
योजनाओं से जो निवेश की प्रवृति उभरी है उसने निवेश की प्रणाली और अर्थव्यवस्था की माँग के ढाँचे में सही तालमेल कायम नहीं किया है। इसके फलस्वरूप कुछ उद्योगों में क्षमता मन्द पड़ गयी है और जब तक हम उन्हें और अधिक मुक्त भाव से बाजार उपलब्ध नहीं करायेंगे तब तक इस प्रकार के कुप्रबन्ध में संसाधनों की बर्बादी बनी रहेगी।
प्रतिस्पर्द्धात्मक औद्योगिक पर्यावरण
विनियमन और नियन्त्रण ने फर्मों के प्रवेश तथा निर्गमन पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसके कारण देश में कम प्रतियोगी औद्योगिक वातावरण बन पाया है। अतः उदारीकरण की नीति से प्रतिस्पर्द्धात्मक और औद्योगिक वातावरण बन सकेगा।
रोजगार में वृद्धि
उदारीकरण की प्रवृत्ति से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तथा बढ़ती हुई बेरोजगारी पर नियन्त्रण पाया जा सकेगा। अतः तीव्र औद्योगिक विकास के फलस्वरूप आय एवं रोजगार में भी वृद्धि होगी।
सस्ती और श्रेष्ठ वस्तुओं की उपलब्धता
उदारीकरण की नीति के परिणामस्वरूप वही उत्पादक बाजार में अस्तित्व बनाये रख सकेंगे, जो सस्ती एवं श्रेष्ठ वस्तुओं का उत्पादन करने में सक्षम होंगे।
मुद्रा प्रसार पर नियन्त्रण
उदारीकरण के फलस्वरूप देश में औद्योगिक, पूँजीगत एवं उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे मुद्रा-प्रसार पर नियन्त्रण करने में सहायता मिलेगी।
अनावश्यक नीतियों तथा नियमों को हटाना
तीव्र आर्थिक विकास किसी देश की प्रथम आवश्यकता है। इसके लिए आर्थिक नियम एवं नीतियाँ बनायी जाती हैं। जब कभी ये नियम, नीतियाँ, नियन्त्रण एवं सन्नियम इतने अधिक कठोर हो जाते हैं कि वे आर्थिक विकास में सहायक होने के स्थान पर बाधक बन जाते हैं तो इनको हटाना आवश्यक हो जाता है। इसके लिए आर्थिक उदारीकरण आवश्यक होता है, जिससे विकास में बाधक तत्वों को हटाया जा सके या उनमें ढील दी जा सके।
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भारत में उदारीकरण के लाभ
भारत में उदारीकरण से अनेक सैद्धान्तिक और व्यावहारिक लाभ प्राप्त हुए जिन्हें निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि
विगत एक दशक में विदेशी मुद्रा भण्डार में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। सितम्बर, 2014 के अन्त में विदेशी मुद्रा भण्डार 313.8 दशक बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
मुद्रा एवं पूंजी बाजार का विकास
वित्तीय क्षेत्र में आधारभूत सुधारों के माध्यम से पूँजी एवं मुद्रा बाजार का विकास हो रहा है।
(3) विनियोग प्रतिस्पर्द्धा
वर्तमान में विदेशी विनियोक्ताओं में भारत मैं अधिकतम राशि का विनियोग करने को प्रबल प्रतिस्पद्धी लगी हुई है।
मुद्रा स्फीति दर में कमी
भारत में अगस्त 1991 में मुद्रा स्फीति की दर 17 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी, वह अब घटकर 7.8 प्रतिशत रह गयी है।
वैश्विक प्रतिद्वन्द्विता
अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
राजकोषीय घाटे में कमी
उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारत के राजकोषीय घाटे में भारी कमी आयी है।
निर्यातों में वृद्धि
उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारत में निर्यातों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। वर्ष 1991-92 में भारत के निर्यात 44,041 करोड़ रुपये के थे, जो 2013-14 में बढ़कर 19,05,011 करोड़ रुपये के हो गये।
विकास दर में वृद्धि
विकास की दर उदारीकरण के कारण बढ़ी है। यह वर्तमान में 7.4 प्रतिशत है।
उद्योगों के पुनर्निर्माण पर ध्यान
भारत के उद्योगपतियों ने उदारीकरण के परिणामस्वरूप अपने उद्योगों के पुनर्निर्माण पर ध्यान देना प्रारम्भ कर दिया है।
पुनर्गठन, संविलयन और एकीकरण
भारतीय आर्थिक इकाइयाँ पुनर्गठन, संविलियन एवं एकीकरण द्वारा अपनी प्रतियोगी क्षमता में वृद्धि कर रही है।
अनुज्ञाकरण स्वचालन
उदारीकरण के परिणामस्वरूप अनुज्ञाकरण स्वचालन की स्थिति निर्मित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
उत्तम वस्तुओं की प्राप्ति
उदारीकरण के फलस्वरूप भारतीय उपभोक्ताओं को सस्ती, सुन्दर और टिकाऊ वस्तुओं को प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है।
पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन
पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन मिल रहा है। अतः इन क्षेत्रों में नये-नये उद्योग स्थापित किये जा रहे हैं।
जीवन स्तर में सुधार
उदारीकरण के फलस्वरूप जनसाधारण के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है।
उदारीकरण की हानि
उदारीकरण की नीति से सबसे बड़ी हानि देश के कुटीर एवं लघु उद्योगों को हुई है। इसके प्रमुख दोष या हानियाँ निम्नलिखित हैं-
सुधार की धीमी गति
उदारीकरण द्वारा सुधार की गति अत्यन्त धीमी हुयी है।
आर्थिक असमानता
उदारीकरण का लाभ देश के साधन सम्पन्न वर्ग को मिलेगा और स्वचालन से श्रमिक बेकार होंगे। अतः इससे आर्थिक असमानता बढ़ेगी।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का प्रभाव बढ़ा
उदारीकरण से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर बढ़ेगा और स्वदेशी एवं स्वावलम्बन महत्वहीन हो जायेगा।
कृषि नीति में सुधार पर ध्यान नहीं
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का केन्द्र बिन्दु है, अतः कृषिगत अर्थव्यवस्था को विशेष ध्यान देना चाहिए। कृषि के लिए उदारीकरण में नवीन नीति न अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
उदारीकरण से स्थायित्व पर विपरीत प्रभाव
उदारीकरण से स्थायित्व पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ा आघात पहुँच सकता है।
विलासिता की वस्तुओं का आयात
उदारीकरण के परिणाम स्वरूप विलासिता की वस्तुओं के आयात में वृद्धि होना अच्छा संकेत नहीं है।
लाभदेयता में कमी
उदारीकरण के फलस्वरूप भारतीय उद्योगों की लाभदेयता में कमी आयी है।
विदेशी ऋणों में वृद्धि
भारत की आर्थिक नीतियों के निर्धारण में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और ऋणदाता देशों का प्रभाव बढ़ा एवं विदेशी ऋणों में वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है।
बढ़ती बेरोजगारी
भारतीय समस्याओं में मुख्य समस्या बेरोजगारी है। उदारीकरण में इस समस्या को हल करने का कोई प्रावधान नहीं है।
उपभोक्ता सामान उत्पादन पर बल
पूँजीगत सामान की तुलना में उपभोक्ता सामानों के उत्पादन पर बल दिया जा रहा है।
लघु उद्योगों पर विपरीत प्रभाव
अत्यधिक मूल्य और उत्तम किस्म के माल के अभाव में लघु एवं कुटीर उद्योग बन्द हो रहे हैं।
गैर-प्राथमिक उद्योगों को बल
उदारीकरण से गैर-प्राथमिक उद्योगों के विकास को बल मिल रहा है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
भारत में आर्थिक उदारीकरण के अनेक प्रयास हुए हैं, जिसमें विनिवेश, निजीकरण, प्रतिबन्धों की समाप्ति इत्यादि प्रमुख हैं। किन्तु नौकरशाही राज अभी भी समाप्त नहीं हुआ है, इसलिए उदारीकरण के सुपरिणाम तेजी से सामने नहीं आ रहे हैं।
अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा से कुछ कम्पनियाँ बेमौत मारी जायेंगी लेकिन यह समस्या केवल उदारीकरण के कारण नहीं बल्कि परिवर्तित परिस्थितियों में स्वयं को परिवर्तित न कर पाने के कारण उत्पन्न होती है। उदारीकरण के एक दशक में भारत ने अच्छे एवं खराब दोनों प्रकार के अनुभव प्राप्त किये हैं।
दूसरी ओर विगत एक दशक में औद्योगिक प्रगति दर उत्साहजनक नहीं रही है तथा बेरोजगारी पर भी प्रभावी नियन्त्रण नहीं हो सका है। बहुत से छोटे एवं कुटीर उद्योग बन्द भी हुए हैं। उदारीकरण प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए सन् 1979 से प्रवर्तित फेरा के स्थान पर 1 जून, 2000 से नया कानून फेमा प्रभावी हो गया है। इसे उदारीकृत वित्तीय कानून कहा जा रहा है।
अतः पूर्व के कानून में विदेशी मुद्रा नियमों का उल्लंघन करने पर मुकदमा दर्ज होता था। अब फेना कानून के अन्तर्गत कैद की सजा नहीं बल्कि आर्थिक दण्ड दिया जायेगा। इस कानून से विदेशी मुद्रा पर सरकारी नियन्त्रण पूर्णतया समाप्त नहीं बल्कि तार्किक हो गया है। 1 अप्रैल, 2001 से आयातों पर लगे सभी मात्रात्मक प्रतिबन्ध भी समाप्त कर दिये गये हैं तथा भारतीय अर्थव्यवस्था बाजार मैत्रीपूर्ण अर्थव्यवस्था की ओर उन्मुख हो चुकी है। उदारीकरण के इस दौर में पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचाने वाले उत्पादों को 'इकोमार्क' भी दिया जाने लगा है।