समाजवाद का अर्थ
समाजवाद आर्थिक प्रणाली का वह रूप है, जिसमें उत्पत्ति एवं वितरण के प्रमुख साधनों पर सरकार का स्वामित्व एवं नियन्त्रण होता है और सहकारिता के आधार पर इन साधनों का प्रयोग अधिकतम सामाजिक लाभ के लिए किया जाता है।
समाजवाद की परिभाषा
यद्यपि समाजवाद के अभिप्राय को लेकर विद्वानों के मतों में भिन्नता पायी जाती है, फिर भी निम्नलिखित परिभाषाओं को समाजवाद की उपयुक्त परिभाषाओं की संज्ञा दी जा सकती है-
प्रो. मोरीसन के अनुसार- "समाजवाद में सभी बड़े-बड़े उद्योगों एवं भूमि पर सार्वजनिक स्वामित्व होता है तथा उनका प्रयोग एक राष्ट्रीय आर्थिक नियोजन के द्वारा निजी लाभ के लिए नहीं वरन् सामान्य हितों के लिए किया जाता है।"
मॉरिस डाब के अनुसार- "समाजवाद की आधारभूत विशेषता यह है कि इसमें सम्पन्न वर्ग को सम्पत्ति का अधिग्रहण तथा भूमि एवं पूँजी का समाजीकरण करके उन वर्ग सम्बन्धों को समाप्त कर दिया जाता है, जो पूँजीवादी उत्पादन का आधार है।"
प्रो. हॉम के अनुसार- "निरंकुश समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के समस्त साधनों पर राज्य का स्वामित्व होता है। उत्पादन के उद्देश्य सरकार द्वारा निर्धारित होते हैं तथा एक सर्वव्यापी योजना पायी जाती है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि इस आर्थिक प्रणाली में उत्पत्ति के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व न होकर सामाजिक स्वामित्व होता है। इसके साथ ही इन उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग किसी एक व्यक्ति के हित के लिए नहीं किया जाता, बल्कि सामाजिक एवं सामूहिक हित में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय का न्यायोचित वितरण किया जाता है, जिससे मानव द्वारा मानव का शोषण नहीं हो पाता है।
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समाजवाद की विशेषताएँ
एक विशुद्ध साम्यवादी या समाजवादी अर्थव्यवस्था पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से बिल्कुल भिन्न निम्नलिखित विशेषताओं से ओत-प्रोत होती है-
- (1) शोषण का समापन,
- (2) प्रतियोगिता का समापन,
- (3) अनार्जित आय का अन्त,
- (4) कीमत संयन्त्र की भूमिका,
- (5) आर्थिक नियोजन,
- (6) निजी सम्पत्ति अधिकार,
- (7) केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता,
- (8) उत्पादन एवं वितरण क्रियाएँ द्वारा सम्पादित।
(1) शोषण का समापन
साम्यवाद एवं समाजवाद में शोषण का अन्त हो जाता है क्योंकि अर्थव्यवस्था का संचालन सरकार द्वारा निजी लाभ के स्थान पर अधिकतम सामाजिक लाभ एवं कल्याण की दृष्टि से किया जाता है। अतः साम्यवाद एवं समाजवाद में श्रमिकों, उपभोक्ताओं एवं बच्चों के शोषण का अन्त हो जाता है।
(2) प्रतियोगिता का समापन
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं वितरण दोनों पर सरकार का अधिकार एवं नियन्त्रण होने के कारण पारस्परिक प्रतियोगिता की कोई सम्भावना नहीं रहती है। सरकार द्वारा स्वयं उत्पादन का क्षेत्र, उत्पादन की मात्रा तथा वस्तु की कीमत निर्धारित किये जाने के कारण समाजवाद में प्रतियोगिता उत्पन्न नहीं हो पाती, जिसके कारण प्रतियोगिता पर होने वाला अत्यधिक व्यय समाजवाद में समाप्त हो जाता है।
(3) अनार्जित आय का अन्त
समाजवाद में अनार्जित आय का अन्त हो जाता है क्योंकि बिना काम के आय नहीं मिलती। प्रत्येक को कार्य करना आवश्यक है, जबकि पूँजीवाद में उत्तराधिकार के कारण धनवान लोगों को अनार्जित आय का अवसर मिलता है। इस आर्थिक प्रणाली में श्रम सर्वोपरि होता है और प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करके आय अर्जित करता है।
(4) कीमत संयन्त्र की भूमिका
पूँजीवाद की तरह ही समाजवाद में कीमतों का निर्धारण कीमत संयन्त्र द्वारा नहीं किया जाता है, बल्कि सरकार स्वयं अपने अनुभव के आधार पर कीमत निर्धारित करती है। आर्थिक क्रियाओं के लिए लेखा कीमतों का प्रयोग किया जाता है, जिसका निर्धारण सरकार स्वयं उत्पादन लागत एवं सामाजिक हित को ध्यान में रखकर करती है।
(5) आर्थिक नियोजन
समाजवादी आर्थिक प्रणाली सामूहिक शक्तिशाली एक सामाजिक एवं पूर्णत: नियोजित प्रणाली होती है। समाजवाद में केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता समाज में उपलब्ध उत्पत्ति के साधनों का अनुकूलतम प्रयोग करने के लिए एवं अधिकतम सामाजिक कल्याण की प्राप्ति के लिए नियोजन का सहारा लेती है। नियोजन की इस प्रक्रिया में केन्द्रीय नियोजन सत्ता, उपभोग, उत्पादन, वितरण, विनियोग, पूँजी निर्माण आदि सभी से सम्बन्धित फैसले लेती है।
(6) निजी सम्पत्ति का अति-सीमित अधिकार
समाजवादी अर्थव्यवस्था में निजी सम्पत्ति के अधिकार का सीमित अस्तित्व तो होता है किन्तु इस सम्पत्ति का प्रयोग धनोपार्जन के लिए नहीं किया जा सकता है।
(7) केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में आर्थिक क्रियाओं का संचालन करने के लिए एक केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता गठित की जाती है। यह केन्द्रीकृत सत्ता उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी महत्वपूर्ण फैसले, अधिकांशतः सामाजिक कल्याण की भावना के आधार पर करती है।
(8) उत्पादन एवं वितरण क्रियाएँ राज्य द्वारा सम्पादित
समाजवाद की प्रमुख विशेषता उत्पादन के सभी साधनों पर सरकारी स्वामित्व होना है। निजी सम्पत्ति एवं निजी उत्पादन साधनों का राष्ट्रीयकरण कर उन्हें सरकारी स्वामित्व में ले लिया जाता है और उनका उपयोग अधिकतम सामाजिक लाभ की दृष्टि से सरकार द्वारा योजनाबद्ध ढंग से किया जाता है। निजी सम्पत्ति एवं निजी साधनों का लोप हो जाता है और प्रत्येक नागरिक सम्पत्तिहीन एवं साधनहीन होकर सरकारी नौकर के रूप में कार्य करता है।
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समाजवाद के लाभ या गुण
समाजवादी अर्थव्यवस्था में कई ऐसे गुण हैं, जिसके कारण ये अर्थव्यवस्था पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से श्रेष्ठतर मानी जाती है। इस दृष्टि से समाजवादी आर्थिक प्रणाली के प्रमुख गुण या लाभ निम्नांकित है-
- (1) वर्ग संघर्ष का समापन,
- (2) शोषण का अन्त,
- (3) आर्थिक समानता,
- (4) बेकारी का अन्त,
- (5) एकाधिकारी शक्तियों की समाप्ति,
- (6) प्रतियोगिता का अन्त,
- (7) व्यापार चक्रों की समाप्ति,
- (8) सामाजिक परजीविता की समाप्ति,
- (9) उत्पत्ति के साधनों का अनुकूलतम प्रयोग सम्भव ।
(1) वर्ग संघर्ष का समापन
समाजवाद में उत्पत्ति के साधनों एवं उत्पादन क्रियाओं पर सरकारी स्वामित्व होने के कारण धन के आधार पर समाज का विभाजन सम्भव नहीं होता है। समाज में प्रत्येक व्यक्ति एक श्रमिक होता है, जिसे अपनी योग्यतानुसार कार्य एवं मजदूरी प्राप्त होती है। इस प्रकार समाजवाद में केवल एक ही वर्ग होता है, जिसके कारण समाज में द्वेष एवं वर्ग संघर्ष की कोई भी सम्भावना नहीं रहती है।
(2) शोषण का अन्त
समाजवाद के अन्तर्गत साधनों का उपयोग अधिकतम सामाजिक लाभ के लिए होता है, जिसके फलस्वरूप समाज में दो वर्ग- धनी एवं निर्धन में विभाजन नहीं होता है। इसके साथ ही वितरण व्यवस्था पर सरकार का स्वामित्व होता है, जिसके कारण शोषण की सम्भावना समाप्त हो जाती है।
(3) आर्थिक समानता
समाजवाद में उत्पत्ति के साधनों पर सामूहिक सामाजिक स्वामित्व होने के कारण आय एवं सम्पत्ति के वितरण में विषमताएँ नहीं पायी जाती हैं। समाजवाद में उत्तराधिकार के नियम की अनुपस्थिति होने के कारण समाज के सभी वर्गों को अपनी योग्यतानुसार कार्य करने के समान अवसर प्राप्त होते हैं। इस प्रकार समाजवाद में आर्थिक समानता स्वतः ही उपस्थित हो जाती है।
(4) बेकारी का अन्त
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में नियोजन केन्द्रीय बिन्दु होता है, जिसके कारण समाज में कार्य करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति एक समान अवसर प्राप्त करता है। सरकार अधिकतम सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखकर विभिन्न उत्पादन क्रियाएँ सम्पादित करती हैं, जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार कार्य कर पाता है और बेकारी की समस्या उत्पन्न नहीं होती है।
(5) एकाधिकारी शक्तियों की समाप्ति
समाजवाद में सभी उत्पत्ति के साधनों एवं आर्थिक क्रियाओं पर सरकारी स्वामित्व होने के कारण समाज में धन एवं सम्पत्ति का किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष के हाथों में केन्द्रीकरण नहीं हो पाता, जिसके कारण समाज में एकाधिकारी शक्तियाँ नहीं पनप पातीं ।
(6) प्रतियोगिता का अन्त
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं वितरण दोनों पर सरकार का स्वामित्व होने से पारस्परिक प्रतियोगिता की सम्भावना नहीं रहती है क्योंकि सरकार द्वारा स्वयं उत्पादन के क्षेत्र, उत्पादन की मात्रा एवं वस्तु की कीमत निर्धारित की जाती है, जिसके कारण समाजवाद में प्रतियोगिता उत्पन्न नहीं हो पाती।
(7) व्यापार चकों की समाप्ति
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में केन्द्रीय नियोजन के कारण एवं उपभोग तथा उत्पादन क्षेत्र के पारस्परिक समन्वय के कारण अर्थव्यवस्था में अधिक उत्पादन एवं कम उत्पादन की कोई सम्भावना नहीं होती, जिसके कारण अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थायी तत्व बन जाता है।
(8) सामाजिक परजीविता की समाप्ति
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्तराधिकार के नियम की उपस्थिति के कारण धनी एवं सम्पन्न व्यक्तियों के उत्तराधिकारियों को अनार्जित आय प्राप्त होती है, जिससे वह निर्धन एवं विपन्न लोगों का शोषण करते थे किन्तु समाजवाद में अनार्जित आय का कोई स्थान नहीं है। समाजवादी आर्थिक प्रणाली में आय अर्जन का मुख्य स्रोत श्रमिकों की स्वयं की मजदूरी है जो वह अपनी योग्यतानुसार प्राप्त करता है। इस प्रकार समाजवाद में परजीविता के लिए कोई स्थान नहीं है अर्थात् इसकी समाप्ति हो जाती है।
(9) उत्पत्ति के साधनों का अनुकूलतम प्रयोग सम्भव
समाजवादी आर्थिक प्रणाली का मुख्य आधार केन्द्रीकृत नियोजन होने के कारण उत्पत्ति के साधनों का श्रेष्ठतम प्रयोग सम्भव हो पाता है। इसके साथ ही नियोजन द्वारा संसाधनों को कम उत्पादकता तथा वांछनीयता वाले क्षेत्र से निकालकर अधिक उत्पादकता वाले एवं अधिक सामाजिक हित वाले क्षेत्रों में स्थानान्तरित करके संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करना सम्भव हो पाता है।
समाजवादी अर्थव्यवस्था के दोष या अवगुण
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में निम्नलिखित कमियाँ एवं दोष परिलक्षित होते हैं-
- (1) कुशलता एवं उत्पादकता में कमी,
- (2) दासता का मार्ग,
- (3) पूँजी निर्माण की प्रक्रिया हतोत्साहित,
- (4) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अभाव,
- (5) प्रेरणा का अभाव,
- (6) लालफीताशाही एवं नौकरशाही,
- (7) उपभोक्ता की प्रभुता की समाप्ति।
(1) कुशलता एवं उत्पादकता में कमी
समाजवादी अर्थव्यवस्था में अभाव के कारण श्रमिकों की कुशलता एवं उत्पादकता हतोत्साहित होती है। समाजवाद में श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी का निर्धारण उसको उत्पादकता के आधार पर नहीं होता, बल्कि सरकार स्वयं न्यूनतम आवश्यकता के आधार पर मजदूरी निर्धारित करती है। इस प्रकार श्रमिकों में आर्थिक प्रेरणा एवं प्रोत्साहन का अभाव उनकी कुशलता एवं उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव डालता है।
(2) दासता का मार्ग
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, व्यावसायिक स्वतन्त्रता एवं उपभोक्ता की प्रभुता समाप्त हो जाती है और व्यक्ति अपने जीवनयापन एवं आजीविका के लिए सरकार पर आश्रित होकर रह जाता है। इस तरह उनकी दासता का मार्ग प्रशस्त होता है।
(3) पूँजी निर्माण की प्रक्रिया हतोत्साहित
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में पूँजी निर्माण की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि सभी संसाधनों पर सरकारी लोगों का अधिकार होने के साथ-साथ सरकार न तो पूँजी निर्माण की अनुमति देती है न ही व्यक्ति प्रेरणा की अनुपस्थिति पूँजी निर्माण में सहयोग कर पाते हैं। इस प्रकार समाजवादी आर्थिक प्रणाली में पूँजी निर्माण की दर अपेक्षाकृत बहुत कम होती है ।
(4) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अभाव
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में केन्द्रीय नियोजन होने के कारण उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग सरकार पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करती है और इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक क्रियाओं का संचालन योजना के अनुसार कार्य करना पड़ता है, जिसमें व्यक्ति के चयन की कोई स्वतन्त्रता नहीं होती है तथा उसे मजबूर होकर सरकार द्वारा आवंटित कार्य को सम्पादित करना पड़ता है।
(5) प्रेरणा का अभाव
समाजवादी अर्थव्यवस्था सरकार द्वारा निर्देशित होती है, जिससे आर्थिक शक्तियों का सरकार के हाथों में केन्द्रीकरण हो जाता है। अधिक उत्पादकता से अर्जित लाभ में श्रमिक की भागीदारी न होने के कारण अधिक कार्य करने की भावना समाप्त हो जाती है। इस प्रकार समाजवादी अर्थव्यवस्था में प्रेरणा का अभाव होता है।
(6) लालफीताशाही एवं नौकरशाही
समाजवाद का सबसे बड़ा दोष उसमें नौकरशाही की प्रधानता का होना है। केन्द्रीय आर्थिक सत्ता के लिए निर्णयों को लागू करने पर बड़ी संख्या में सरकारी लोग लगते हैं, जिन्हें कोई निजी स्वार्थ नहीं होता और उनकी पदोन्नति भी कार्य पर निर्भर न होकर वरिष्ठता पर निर्भर करती है। अतः भ्रष्टाचार फैलता है। नौकरशाही में नवीन जोखिमों की प्रेरणा नहीं होती है और न वे अधिक कर्तव्यपरायण होते हैं। सरकारी कार्य में लालफीताशाही भी प्रबल होती है। इस प्रकार सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था नौकरशाही के फन्दे में फँस जाती है तथा आर्थिक विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
(7) उपभोक्ता की प्रभुता की समाप्ति
समाजवादी आर्थिक प्रणाली में आर्थिक शक्तियाँ सरकारी हाथों में केन्द्रीकृत होने के कारण उत्पादन सम्बन्धी सभी निर्णय सरकार स्वयं लेती है तथा उपभोक्ता को चयन की स्वतन्त्रता से वंचित होना पड़ता है। इस तरह इस प्रणाली में सरकार द्वारा जिन वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण किया जाता है, उपभोक्ता को विवश होकर उन्हीं वस्तुओं का उपभोग करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता की प्रभुता समाप्त होकर रह जाती है।
उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि समाजवादी आर्थिक प्रणाली अनेक गुणों से सम्पन्न एवं फलीभूत हुए भी दोषमुक्त नहीं है। समाजवाद के अन्तर्गत सामाजिक हित की दृष्टि से व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को नियन्त्रित किया जाता है। सरकार द्वारा आर्थिक सत्ता के केन्द्रीकरण तथा अत्यधिक नियन्त्रण के कारण उपभोक्ताओं की प्रभुसत्ता को छीना जाता है। इससे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन होता है। इससे आर्थिक प्रेरणाओं को भी ठेस पहुँचती है। अत्यधिक नौकरशाही से भ्रष्टाचार पनपता है तथा अकुशलताएं बढ़ती है। इसी कारण समाजवादी अर्थव्यवस्थाओं में अब सीमित व्यक्तिगत स्वतन्त्रता आर्थिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण तथा विकास की प्रेरणाओं की प्रवृत्ति प्रबल है।