राष्ट्रीय आय क्या है
आर्थिक पद्धति के अनुरूप जिन आर्थिक नीतियों का अवलम्बन एक राष्ट्र करता है, उनसे जो आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित होती हैं वे किसी न किसी रूप में आय और उत्पादन से सम्बन्धित होती है। अलग-अलग विचारधाराओं पर आधारित आर्थिक नीतियों की सफलता अथवा उपादेयता के अनेक मानदण्ड हो सकते हैं, इनमें राष्ट्रीय आय प्रमुख है। राष्ट्रीय आय या राष्ट्रीय लाभांश के द्वारा ही समाज के आर्थिक विकास का स्तर, आर्थिक संवृद्धि की प्रवृत्तियाँ तथा भावी सम्भावनाओं का अनुमान लगाया जा सकता है। राष्ट्रीय आय वास्तव में सभी आर्थिक क्रियाओं का फलित है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था एवं व्यवसाय के स्वरूप तथा गतिविधियों की जानकारी वहाँ के राष्ट्रीय आय के आँकड़ों द्वारा भी देखी जा सकती है। राष्ट्रीय आय से आशय उस देश की अर्थव्यवस्था में चालू वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के कुल मौद्रिक रूप से है। राष्ट्रीय आय में सभी प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार मूल्य को लिया जाता है। राष्ट्रीय आय की सहायता से प्रति व्यक्ति आय, सकल घरेलू उत्पाद एवं विकास दर आदि का अनुमान लगाया जा सकता है। राष्ट्रीय आय की सहायता से विभिन्न राष्ट्रों की विकास दरों की तुलना कर सकते हैं।
राष्ट्रीय आय का अर्थ
सामान्यतः राष्ट्रीय आय से आशय किसी देश में एक वर्ष में जिन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, के मौद्रिक मूल्य से है। दूसरे शब्दों में, एक वर्ष में जिन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, के मौद्रिक मूल्य से है। दूसरे शब्दों में, उत्पत्ति के साधनों यथा-भूमि, अम, पूँजी, साहस एवं संगठन के द्वारा एक वर्ष में जो उत्पादन होता है, के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। राष्ट्रीय आय को इस प्रकार से परिभाषित किया जाता है कि उत्पत्ति के सभी साधनों को एक वर्ष में जो पारिश्रमिक प्राप्त होता है, के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है।
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राष्ट्रीय आय की परिभाषा
राष्ट्रीय को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-
प्रो. मार्शल के अनुसार- "देश का श्रम एवं पूँजी उसके प्राकृतिक साधनों पर क्रियाशील होकर प्रति वर्ष भौतिक एवं अभौतिक वस्तुओं के शुद्ध योग का, जिसमें सभी प्रकार की सेवाएँ सम्मिलित होती है, उत्पादन करते हैं। यही देश का वास्तविक शुद्ध आय या राष्ट्रीय लाभांश कहलाता है।"
प्रो. पीगू के शब्दों में- "राष्ट्रीय लाभांश समाज की भौतिक या वस्तुगत आय का, जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित की जाती है, वह भाग जिसको मुद्रा में मापा जा सके। "
प्रो. साइमन कुजनेट्स के अनुसार- "किसी देश की उत्पादन व्यवस्था से एक वर्ष में प्रवाहित होकर अन्तिम उपभोक्ताओं के हाथों में पहुँचने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं अथवा पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि को राष्ट्रीय आय कहते हैं। "
प्रो. कोलिन क्लार्क के मतानुसार- "किसी विशेष समयावधि में राष्ट्रीय आय को उन वस्तुओं एवं सेवाओं के मौदिक मूल्य में व्यक्त करते हैं, जो उस अवधि में उपभोग के लिए उपलब्ध रहती हैं। वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य उनको प्रचलित विक्रय कीमतों पर निकाला जाता है।"
संक्षेप में, "किसी देश की राष्ट्रीय आय साधारणतः वहाँ एक वर्ष में उत्पादित समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का योग होती है, जिसमें से वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन हेतु प्रयोग की गयी मशीनों एवं पूँजी की घिसावट को घटा दिया जाता है तथा विदेशों से प्राप्त विशुद्ध आय को जोड़ दिया जाता है।"
अतः इस परिभाषा से स्पष्ट है कि-
(i) राष्ट्रीय आय किसी देश की एक वर्ष या निश्चित समयावधि की राष्ट्रीय आय है।
(ii) यह वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों के द्राव्यिक मूल्य का योग है।
(iii) इसमें से पूँजी की घिसावट को घटा दिया जाता है।
(iv) इसमें विदेशों से प्राप्त विशुद्ध आय को जोड़ दिया जाता है।
इस प्रकार राष्ट्रीय आय में उपभोग व्यय (C), कुल विनियोग (I), सरकारी व्यय (G) तथा विदेशों से प्राप्त विशुद्ध आय जुड़ी होती है। यदि निर्यातों के लिए X का तथा आयातों के लिए M का प्रयोग करें तो राष्ट्रीय आय को निम्न रूप से दिखा सकते हैं-
राष्ट्रीय आय (NI) = C + I + G - D + (X-M)
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राष्ट्रीय आय सम्बन्धी विभिन्न धारणाएँ
सामान्यतः किसी भी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को राष्ट्रीय आय की संज्ञा दी जाती है। सांख्यिकीय विधियों के विकास से राष्ट्रीय आय की गणना अनेक प्रकार से की जाने लगी है। राष्ट्रीय आय की विभिन्न धारणाएँ एवं उनकी संरचना का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से है-
(1) सकल घरेलू उत्पाद
किसी देश में वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल उत्पादन का सर्वाधिक माप सकल घरेलू उत्पाद है। सकल घरेलू उत्पाद से आशय किसी देश में एक वर्ष में कुल उपभोग, कुल निवेश सरकार द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय तथा शुद्ध निर्यात के मौद्रिक मूल्य से है। दूसरे शब्दों में कुल घरेलू उत्पाद एक वर्ष में किसी देश की भौगोलिक सीमाओं के अन्दर उत्पादित समस्त वस्तुओं तथा सेवाओं का द्राव्यिक मूल्य होता है। यदि इस घरेलू उत्पाद में विदेशों से प्राप्त आय को जोड़ दिया जाये तथा विदेशियों द्वारा हमारे देश में अर्जित आय को घटा दिया जाये तो कुल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त हो जाता है।
इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त कर सकते हैं-
कुल राष्ट्रीय उत्पाद = कुल घरेलू उत्पाद + निर्यात - आयात
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि बन्द अर्थव्यवस्था में कुल राष्ट्रीय उत्पादन तथा कुल घरेलू उत्पादन बराबर होता है क्योंकि ऐसी अर्थव्यवस्था का बाह्य जगत् से कोई सम्बन्ध न रहने के कारण इसकी आयात व निर्यात की राशि शून्य होती है। सकल घरेलू उत्पादन को समझने के लिए इसको मापने की विधियों को समझना आवश्यक है, जो कि निम्न प्रकार है-
किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित कुल उत्पत्ति जिसे GDP के रूप में मापा जाता है तथा प्राप्त की गयी कुल आय जिसे GNP के रूप में मापा जाता है, में अन्तर यह है कि GNP में विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय को जोड़ा जाता है।
(2) सकल राष्ट्रीय उत्पाद
सकल राष्ट्रीय उत्पाद से आशय "किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में जितनी भी अन्तिम वस्तुएँ एवं सेवाएँ उत्पादित की जाती हैं, उन सभी के बाजार मूल्य के कुल योग को राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।" प्रायः सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना दो विधियों से की जाती है, प्रथम बाजार मूल्य पर राष्ट्रीय उत्पाद इसमें परोक्ष कर तथा सब्सिडी जैसे गैर-साधन भुगतान को शामिल किया जाता है। द्वितीय साधन लागत पर राष्ट्रीय उत्पाद इसमें साधनों के हिस्से को दर्शाया जाता है जो कि उनके पास आय के रूप में जाते हैं।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि यदि बाजार मूल्य पर प्राप्त सकल राष्ट्रीय उत्पाद में से अप्रत्यक्ष करों को घटाया एवं सब्सिडी को जोड़ा जाता है तो प्राप्त योग को साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसे निम्न सूत्र के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
साधन लागत पर GNP = बाजार मूल्य पर GNP - अप्रत्यक्ष कर + अनुदान या सब्सिडी
(3) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
उत्पादन की प्रक्रिया में मशीनों में घिसावट होती है तथा कुछ मशीनें पुरानी पड़ जाने के कारण उन्हें बदलना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यदि कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से मूल्य ह्रास या घिसावट को घटा दिया जाता है तो जो शेष बचता है, उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, "यदि किसी देश में से मशीनों के मूल्यह्रास को निकाल दिया जाता है तथा जो शेष बचता है, उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि NNP की गणना बाजार कीमतों पर की जाती है। अतः इसे बाजार कीमतों पर राष्ट्रीय आय भी कहा जाता है।"
NNPmp = GNP - Depreciation (मूल्य ह्रास)
जैसे मान लीजिए कि एक देश में एक वर्ष की अवधि में बाजार मूल्य पर GNP 1500 करोड़ रुपये है तथा मूल्य ह्रास लगभग 500 करोड़ रुपये है। इस स्थिति में NNPmp होगी-
NNPmp = GNP - Depreciation
= 1500 - 500 = 1000 करोड़ रुपये
(4) राष्ट्रीय आय अथवा साधन लागत पर राष्ट्रीय आय
उत्पत्ति के साधन अपनी आय का उपार्जन वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन के माध्यम से करते हैं किन्तु जब बाजार मूल्यों पर शुद्ध उत्पादन या राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाया जाता है तो उसमें अप्रत्यक्ष करों की राशि भी सम्मिलित रहती है परन्तु जो आय उत्पत्ति के साधनों को प्राप्त होती है, उसमें सरकार द्वारा लगाये गये अप्रत्यक्ष कर शामिल नहीं होते। फलतः साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए बाजार मूल्यों पर विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में से अप्रत्यक्ष करों की राशि घटा दी जाती है।
इसके साथ ही सरकार कुछ उद्योगों या कुछ उत्पादित वस्तुओं पर अनुदान देती है। इस अनुदान के कारण बाजार में वस्तु को कम मूल्य पर बेचा जाता है, जबकि उत्पत्ति के साधनों को प्राप्त होने वाली आय अथवा साधनों की लागत में कोई कमी नहीं होती। चूँकि अनुदान बाजार कीमत का अंग नहीं होता है, अत: इसे NNP में शामिल नहीं किया जाता किन्तु अनुदान राष्ट्रीय आय का एक अंग है, इसलिए राष्ट्रीय आय की गणना करते समय अनुदान की राशि को NNP में जोड़ा जाता है। अतः
National Income FC (NNPfc) = NNPmp - Indirect Taxes + Subsidies
(5) वैयक्तिक आय
वैयक्तिक आय से आशय उस आय से है, जो कि व्यक्तियों अथवा परिवारों को एक वर्ष की अवधि में वास्तव में प्राप्त होती है। सैद्धान्तिक आधार पर वर्ष भर में जो राष्ट्रीय आय होती है, वह उत्पत्ति के साधनों द्वारा प्राप्त की गयी आय का योग होता है किन्तु वास्तविकता यह है कि अर्जित लाभ का कुछ भाग उत्पत्ति के साधनों, व्यक्तियों अथवा परिवारों को मौद्रिक आय के रूप में प्राप्त नहीं होती है। इस प्रकार की मदें जो कि वैयक्तिक आय में सम्मिलित नहीं होतीं, निम्नलिखित है-
(i) सामाजिक सुरक्षा अंशदान- यह नियोजनकर्ता द्वारा मजदूरी में से सीधा काट लिया जाता है।
(ii) निगम कर- निगम कर जिसे कम्पनियों का आयकर भी कहा जाता है, को कम्पनियाँ अपनी आय में से सरकार को जमा कर देती हैं।
(iii) अविभाजित लाभ- कम्पनियाँ अपने कुल लाभ में से एक लाभ अंशधारियों को नहीं बाँटती।
इसके साथ ही कुछ व्यक्तियों तथा परिवारों को ऐसी मौद्रिक आय प्राप्त होती है, जिसके लिए उन्होंने कोई उत्पादन कार्य नहीं किया है।
उदाहरणार्थ- बेरोजगारी भत्ता, वृद्धों को पेंशन तथा अनेक प्रकार के सहायता भुगतान आदि। सामूहिक रूप में इन्हें हस्तान्तरण भुगतान कहा जाता है। वैयक्तिक आय को ज्ञात करने के लिए इन भुगतानों को जोड़ दिया जाता है। इसे निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं-
वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय - सामाजिक सुरक्षा - अनुदान कम्पनियों पर आयकर - कम्पनियों के अविभाजित लाभ + हस्तान्तरण भुगतान
(6) व्यय-योग्य आय
सामान्यतः व्यक्तियों तथा परिवारों को जो वैयक्तिक आय प्राप्त होती है वह सारी की सारी उपभोग पर व्यय नहीं की जा सकती। इसका कारण यह है कि वैयक्तिक आय का एक भाग व्यक्तियों एवं परिवारों को प्रत्यक्ष करों के रूप में सरकार को चुकाना पड़ता है। अतः वैयक्तिक आय में से सरकार द्वारा लगाये गये प्रत्यक्ष करों को घटा देने के बाद जो शेष बचता है, उसे व्यय योग्य या उपभोग्य आय कहते हैं। व्यक्ति या परिवार द्वारा इसी आय का उपयोग उपभोग पर किया जाता है। सूत्र के रूप में इसे निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
राष्ट्रीय आय (NI) = C + I + G - D+ (X-M)
व्यय योग्य आय = वैयक्तिक आय - प्रत्यक्ष कर
व्यक्तियों को प्राप्त कुल व्यय योग्य आय का उपयोग दो प्रकार से किया जा सकता है; यथा एक उपभोग और दो बचत। सूत्र के रूप में इसे निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
व्यय योग्य आय = उपभोग + बचत
(7) प्रति व्यक्ति आय
किसी भी देश की आर्थिक स्थिति की जानकारी के लिए केवल राष्ट्रीय आय के आकार का पता होना ही पर्याप्त नहीं होता है। साथ ही यह भी जानना आवश्यक होता है कि यह राष्ट्रीय आय कितनी जनसंख्या से सम्बन्धित है? उदाहरणार्थ- एक देश की राष्ट्रीय आय का आकार अधिक है परन्तु साथ ही जनसंख्या भी बहुत अधिक है। इसके विपरीत, दूसरे देश में राष्ट्रीय आय का आकार पहले देश की तुलना में कम है परन्तु इस देश में जनसंख्या भी पहले देश की तुलना में बहुत कम है। ऐसी स्थिति में यह जानने के लिए कि इनमें से किस देश में लोगों की आर्थिक स्थिति अधिक अच्छी है, हमें प्रति व्यक्ति आय की गणना करनी होगी। प्रति व्यक्ति आय से आशय उस देश के एक व्यक्ति को प्राप्त होने वाली औसत आय से है। अतः यदि किसी एक वर्ष की राष्ट्रीय आय में, उस वर्ष की जनसंख्या का भाग दे दिया जाये तो जो भागफल प्राप्त होता है, उसे वर्ष की प्रति व्यक्ति आय कहा जाता है। इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
वर्ष 2014 की प्रति व्यक्ति आय = वर्ष 2014 की राष्ट्रीय आय / वर्ष 2014 की जनसंख्या
यहाँ पर भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जनसंख्या के आकार की माप जनगणना द्वारा की जाती है किन्तु जनगणना प्रतिवर्ष नहीं होती है। भारत में जनगणना 10 वर्ष बाद होती है। अतः प्रति व्यक्ति आय की गणना के लिए वार्षिक जनसंख्या की गणना की जाती है। यहाँ यह भी समझ लेना चाहिए कि प्रति व्यक्ति आय एक औसत मात्र है। इससे वास्तविक स्थिति की पूरी जानकारी नहीं मिलती है। कारण यह है कि प्रति व्यक्ति आय से यह पता नहीं चलता कि राष्ट्रीय आय का विभिन्न व्यक्तियों एवं वर्गों के मध्य वितरण किस प्रकार का है ? देश में जीवन स्तर और आर्थिक कल्याण की माप के लिए राष्ट्रीय आय के वितरण का विशेष महत्व होता है।
(8) वास्तविक आय
राष्ट्रीय आय की गणना चालू मूल्यों पर की जाती है, जिससे मूल्यों में होने वाली वृद्धि एवं कमी का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह सम्भव है कि किसी वर्ष में, पिछले वर्ष की तुलना में उत्पादन कम हुआ हो किन्तु मूल्यों में वृद्धि हो जाने के कारण राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो जाये। इस दोष को दूर करने के लिए वास्तविक आय की गणना की जाती है।
वास्तविक आय की गणना के लिए एक सामान्य वर्ष को आधार वर्ष माना जाता है तथा इस वर्ष के मूल्यों के आधार पर आगे के वर्षों की राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है। भारत में वर्तमान में वर्ष 2011-12 को आधार वर्ष माना जाता है और इस वर्ष के मूल्यों पर देश की वास्तविक आय की गणना की जाती है। इस प्रकार, यदि किसी वर्ष को आधार वर्ष मानकर उस वर्ष के मूल्यों के आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है तो उसे वास्तविक आय कहा जाता है।