राष्ट्रीय आय को मापने की विधियां क्या हैं ?

राष्ट्रीय आय मापन की विधियाँ

राष्ट्रीय आय के मापन की विधियां इसकी विचारधाराओं के अनुरूप ही विकसित हुई हैं। प्रत्येक विधि की विशेषताएँ और सीमाएँ हैं। इनमें से उपयुक्त विधि का चुनाव राष्ट्रीय आय मापन के उद्देश्य पर निर्भर करता है राष्ट्रीय आय को अग्रांकित विधियों से ज्ञात किया जा सकता है-

(1) आय विधि (Income Method) 

राष्ट्रीय आप को मापने के लिए आय को भी आधार बनाया जा सकता है। इस विधि के अन्तर्गत एक वर्ष में उत्पत्ति के विभिन्न साधनों से प्राप्त होने वाली आय का योग कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। इस विधि में कुल राष्ट्रीय आय ज्ञात करने के लिए कर्मचारियों और मजदूरों को मिलने वाला वेतन, मजदूरी, बोनस, सामाजिक सुरक्षा, सम्पत्ति मालिकों को लगान या अन्य रूप से मिलने वाली आय, पूँजी के बदले मिलने वाला ब्याज, व्यवसाय के लाभ, विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय, प्रत्यक्ष कर, मूल्य ह्रास अथवा पूंजी उपभोक्ता भत्ता आदि का योग लगाया जाता है। यदि मूल्य ह्रास को नहीं जोड़ा जाये तो सकल राष्ट्रीय आय के स्थान पर शुद्ध राष्ट्रीय आय ज्ञात होती है।

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(2) उत्पादन गणना विधि (Census or Production Method) 

इस विधि से राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध मूल्य ज्ञात किया जाता है। इस विधि में अर्थव्यवस्था के विभिन्न भागों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों में बाँट लिया जाता है। प्राथमिक क्षेत्र में कृषि तथा उससे सम्बन्धित क्षेत्र और खनन उद्योग शामिल किये जाते हैं। द्वितीयक क्षेत्र में निर्माण उद्योग, गैस, बिजली आपूर्ति को और तृतीयक क्षेत्र में विभिन्न सेवाओं जैसे व्यापार, परिवहन, बैंकिंग, संचार, बीमा और प्रशासनिक सेवाओं को शामिल किया जाता है।

इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र के उत्पादन और सेवाओं में एक वर्ष की अवधि में हुई वृद्धि का मूल्य निकालकर इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय को जोड़ दिया जाता है। यह योग देश का कुल राष्ट्रीय उत्पादन होता है। इनमें से सम्पत्तियों पर होने वाले ह्रास को घटाकर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात किया जाता है। राष्ट्रीय आय की उत्पादन गणना विधि में दोहरी गणना की सम्भावना रहती है। इस संकट से बचने के लिये मध्यवर्ती वस्तुओं को शामिल न कर अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया जाता है। इसकी सफलता तभी सम्भव है, जब सभी क्षेत्रों में उत्पादन के व्यवस्थित आँकड़े उपलब्ध हों।

(3) सामाजिक लेखांकन विधि (Social Accounting Method) 

सन् 1930 की विश्वव्यापी मंदी ने अनेक अर्थशास्त्रियों को आर्थिक क्षेत्र में नयी विचारधारा विकसित करने को प्रेरित किया। इसलिए राष्ट्रीय आय के मापन की ऐसी विधि विकसित करने की आवश्यकता अनुभव की गयी जो राष्ट्रीय आय के साथ-साथ सम्पूर्ण आर्थिक संरचना, उसके विभिन्न तत्वों के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की व्यवस्था कर सके और समूची आर्थिक क्रियाओं का विस्तृत चित्र प्रस्तुत कर सके। 

अतः इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रिचर्ड स्टोन, जे. आर. हिक्स और एलन पिकॉक आदि ने राष्ट्रीय आय की सामाजिक लेखांकन विधि प्रतिपादित की। इस विधि के अनुसार देश की जनसंख्या को आय के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँट लिया जाता है। इसके पश्चात् प्रत्येक वर्ग में शामिल कुछ लोगों का औसत ज्ञात किया जाता है। राष्ट्रीय प्राप्त करने के लिए प्रत्येक वर्ग के आय औसत को उस वर्ग की जनसंख्या से गुणा कर योग किया जाता है। यह विधि भी तभी प्रभावशाली परिणाम दे सकती है, जब विभिन्न वर्गों में शामिल व्यक्ति और संस्थाएँ आय की सही जानकारी प्रदान करें।

वर्णित विधियों के अतिरिक्त भी अर्थशास्त्रियों ने राष्ट्रीय आय की गणना करने की कुछ विधियाँ सुझायी है। इनमें व्यावसायिक गणना विधि, वस्तु सेवा विधि, आय प्राप्त विधि, उपभोग बचत विधि आदि भी हैं। ये सभी विधियाँ भी उपर्युक्त उत्पादन और आय विधि का हो मिश्रित रूप है।

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(4) व्यय विधि (Expenditure Method)

इस विधि के अनुसार राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए एक वर्ष की अवधि में उस देश के नागरिकों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर किये गये व्ययों के योग को आधार बनाया जाता है। इसके अनुसार किसी देश की कुल राष्ट्रीय आय देश के व्यक्तियों या परिवारों का निजी उपभोग पर किये गये व्यय, सरकारी तथा गैर-सरकारी उद्यमों और व्यवसायों का कुल विनियोग व्यय, सरकारी तथा गैर-सरकारी उद्यमों और व्यवसायों का कुल विनियोग व्यय, सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग व्यय और देश के निर्यातों का उसके आयातों पर आधिक्य तथा विदेशों से प्राप्त आय का भुगतान व्यय पर आधिक्य का योग होता है। इस विधि से राष्ट्रीय आय की गणना में पुरानी वस्तुओं के क्रय पर किया गया व्यय, हस्तान्तरण भुगतानों और शेयर तथा बॉण्डों की खरीद का व्यय शामिल नहीं किया जाता। 

संक्षेप में, इस विधि में दिन योगों को शामिल किया जाता है, उन्हें निम्नलिखित रूप से भी प्रस्तुत किया जा सकता है-

शुद्ध घरेलू आय = उपभोग व्यय + शुद्ध आन्तरिक विनियोग 

शुद्ध राष्ट्रीय आय = उपभोग व्यय + शुद्ध आन्तरिक विनियोग + शुद्ध विदेशी विनियोग 

कुल राष्ट्रीय = आय उपभोग व्यय + शुद्ध आन्तरिक विनियोग + शुद्ध विदेशी विनियोग + प्रतिस्थापन व्यय 

इस विधि के अनुसार भी राष्ट्रीय आय का अनुमान तभी शुद्धता के निकट हो सकता है, जब कुल व्ययों, बचतों और विनियोगों के विश्वसनीय आँकड़े उपलब्ध हों।

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