गरीबी || सापेक्ष और निरपेक्ष निर्धनता || भारत में निर्धनता की प्रवत्ति

    भारत में करोड़ों व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। योजना आयोग द्वारा नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2011-12 में 21.9 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह कर रही थी। शहरी क्षेत्र में 13.7 प्रतिशत एवं ग्रामीण क्षेत्रों में 25.7 प्रतिशत थी। इस प्रकार नवीनतम जनगणना के अनुसार देश की 121.08 करोड़ की जनसंख्या में 26.9 करोड़ व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह कर रहे हैं। प्रान्तीय आधार पर भी गरीबी के मामले में बिहार प्रथम, ओडशा द्वितीय तथा मध्य प्रदेश का स्थान तृतीय है।

    गरीबी || सापेक्ष और निरपेक्ष निर्धनता || भारत में निर्धनता की प्रवत्ति

    निर्धनता का अर्थ 

    वस्तुतः निर्धन तथा निर्धनता को पहचानना सरल है, किन्तु इसे परिभाषित करना कठिन है फिर भी प्रत्येक देश में निर्धनता को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है और भिन्न-भिन्न संस्थाओं व अर्थशास्त्रियों ने निर्धनता को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। मोटे तौर पर निर्धनता से तात्पर्य उस अवस्था से है "जब समाज का एक वर्ग अपने जीवन, स्वास्थ्य एवं कार्य कुशलता के लिये आवश्यक न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं को पूरा करने में अपने को असमर्थ पाता है।"

    संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम (UNDP) ने : क्षमता निर्धनता माप (Capacity Poverty Matrix) का एक नया मापदण्ड प्रस्तुत किया है, क्योंकि यू.एन.डी.पी. का मानना है कि वास्तव में निर्धनता एक बहुआयामी (Multidimensional) संकल्पना है। इसे केवल आय के आधार पर नहीं निकाला जा सकता अर्थात् आय निर्धनता (Income Poverty) अपने आप में पूर्ण नहीं है बल्कि उसके लिये अन्य मानकों को भी ध्यान में रखना होगा।

    स्वास्थ्य व पोषाहार की क्षमता, जिसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों का जितना प्रतिशत भाग कुपोषण का शिकार है या मानक भार से नीचे है। विश्व बैंक ने प्रतिदिन 1.25 डॉलर से कम व्यय करने वाली जनसंख्या को गरीब माना है।

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    सापेक्ष और निरपेक्ष निर्धनता

    निर्धनता की निम्नलिखित दो धारणाएँ हैं-

    सापेक्ष निर्धनता

    सापेक्षिक निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न वर्ग के लोगों में. प्रदेशों या दूसरे देशों की तुलना में पाई जाने वाली निर्धनता से है। जिस देश/राज्य/वर्ग का जीवन-स्तर दूसरे देश/राज्य/वर्ग से नीचा पाया जाता है, वे सापेक्ष रूप से निर्धन माने जाते हैं। दूसरे शब्दों में, सापेक्ष निर्धनता आय में पाई जाने वाली असमानता को प्रकट करती है। भारत में खेतिहर मजदूर; ग्रामीण दस्तकार, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लोग, घरेलू नौकर, दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिक आदि निर्धन लोगों की श्रेणी में आते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, वे राष्ट्र सापेक्ष रूप से गरीब माने जाते हैं जिनकी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की आय 1 डॉलर से कम है।

    नोट : [ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ आम तौर पर एक डॉलर तथा दो डॉलर प्रतिदिन को आधार बनाकर निर्धनता रेखा की परिभाषा देती हैं। “जिनकी आय 2 डॉलर प्रतिदिन से कम है, वे निर्धन व्यक्ति है तथा जिनकी आय एक डॉलर प्रतिदिन से कम है, वे अति निर्धन हैं।" ("People whose income below two dollars a day are poor and people whose income below one dollar are very poor.)। इस तरह निर्धनता रेखा एक डॉलर प्रतिदिन आय अर्थात् 365 डॉलर प्रति वर्ष आय पर आधारित होकर खींची जा सकती है।]

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    निरपेक्ष निर्धनता 

    निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है। अधिकतर देशों के प्रति व्यक्ति उपयोग की जाने वाली कैलोरी तथा न्यूनतम उपभोग स्तर द्वारा निर्धनता को मापने का प्रयत्न किया गया है। भारत में निरपेक्ष निर्धनता का अध्ययन निम्नलिखित दो आधारों पर किया जाता है-

    (i) कैलोरी मापदण्ड 

    एक व्यक्ति एक दिन में जितना भोजन करता है उससे प्राप्त शक्ति (Energy) को कैलोरी द्वारा मापा जाता है। योजना आयोग के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी प्रतिदिन प्राप्त होनी चाहिये।

    (ii) न्यूनतम उपभोग व्यय मापदण्ड 

    योजना आयोग द्वारा नियुक्त विशेष समिति (Expert Committee) ने निर्धनता रेखा अपनाने के लिये न्यूनतम उपभोग व्यय मापदण्ड अपनाया है। इस कमेटी के अनुसार निर्धनता रेखा से नीचे वे व्यक्ति मारे जायेंगे जिनका प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय गाँवों में रु. 816 प्रतिमाह से कम है तथा शहरों में रु. 1000 प्रतिमाह से कम है। ये उपभोग व्यय राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे संगठन (NSSO) द्वारा निश्चित किये गये हैं। जिन लोगों का प्रति माह उपयोग व्यय इससे कम है उन्हें निरपेक्ष रूप में निर्धन माना गया है।

    निर्धनता रेखा वितरण रेखा पर कटाव बिन्दु है जो जनसंख्या को निर्धनों तथा गैर-निर्धन में विभाजित की है। इस रेखा के नीचे लोगों को निर्धन माना जाता है और रेखा के ऊपर के लोगों को गैर-निर्धन (Non-poor) माना जाता है। मान लो, दस व्यक्ति हैं जिनकी वार्षिक आय रु.500 रु.1,000, रु.2,000, रु.4,000, रु.5,000, रु.7,000, रु.8,000, रु.9,000, रु.10,000, रु.12,000 है। मान लो निर्धनता रेखा रु. 5,000 है। इससे स्पष्ट है कि 5 व्यक्ति निर्धनता रेखा के नीचे हैं। दूसरे शब्दों में, 50 प्रतिशत लोग निर्धनता रेखा से नीचे हैं।

    भारत में निर्धनता की प्रवृत्ति

    भारत में निर्धनता की प्रवृत्ति का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-

    निर्धनता के नवीनतम आँकड़े

    गरीबी के नवीनतम अनुमान वर्ष 2011-12 हेतु उपलब्ध हैं। इन अनुमानों को तेन्दुलकर समिति की पद्धति का अनुसरण करते हुए तैयार किया गया है जिसमें एनएसएसओ द्वारा अपने 68वें दौर (2011-12) में संकलित परिवार उपभोग व्यय सर्वेक्षण के आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। सात वर्षों की अवधि में, गरीबी का विस्तार समग्र देश में 37.2 प्रतिशत से कम होकर वर्ष 2011-12 में 21.9 प्रतिशत रह गया है और इसमें ग्रामीण निर्धनों की संख्या में अधिक तीव्र गिरावट देखी गयी है।

    भारत में निर्धनता अनुपात व निर्धनों की संख्या

     

     

    निर्धनता अनुपात (प्रतिशत में)

    निर्धनों की संख्या (करोड़ में)

    वर्ष

    अखिल भारत

    ग्रामीण क्षेत्र

    शहरी क्षेत्र

    सम्पूर्ण भारत

    ग्रामीण क्षेत्र

    शहरी क्षेत्र

    2004-05

    37.2

    41.8

    25.7

    4071

    3263

    808

    2011-12

    21.9

    25.7

    13.7

    2693

    2165

    528

    उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि -
    निर्धनता के अखिल भारतीय जनसंख्या प्रतिशत से आबादी अनुपात (एच. सी. आर.) वर्ष 2004-05 के 37.2% से वर्ष 2011-12 में गिरकर 21.9% रह गया। ग्रामीण गरीबी 41.8% से कम होकर 25.7% रह गई है और शहरी गरीबी 25.7% से कम होकर 13.7% रह गई है।

    निर्धनता में क्षेत्रीय विभिन्नताएँ

    भारत में सबसे अधिक गरीबी बिहार राज्य में है जहाँ की 33.7 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है। इसके बाद ओडिशा का स्थान है जहाँ पर यह 32.6 प्रतिशत है। तीसरा स्थान मध्य प्रदेश राज्य का है जहाँ गरीबी का प्रतिशत 31.7 है। अन्य राज्यों का प्रतिशत इस प्रकार है- उत्तर प्रदेश 29.4, तमिलनाडु 11.3, कर्नाटक 20.9. महाराष्ट्र 17.4, पश्चिम बंगाल 20.0 एवं राजस्थान 14.71।

    गरीबी रेखा के नीचे रह रही जनसंख्या का तुलनात्मक विवरण आगे तालिका में दर्शाया गया है- 

    तालिका 

    राज्यों में गरीबी रेखा के नीचे रह रही जनसंख्या (2011-12)

     

    क्र.सं.

    राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश

    निर्धनता अनुपात प्रतिशत में

    1.

    2.

    3.

    4.

    5.

    6.

    7.

    8.

    9.

    10.

    11.

    12.

    13.

    14.

    15.

    16.

    आन्ध्र प्रदेश

    उत्तर प्रदेश

    असम

    बिहार

    गुजरात

    हिमांचल प्रदेश

    कर्नाटक

    मध्य प्रदेश

    पश्चिम बंगाल

    ओडिशा

    राजस्थान

    तमिलनाडु

    हरियाणा

    केरल

    पंजाब

    महाराष्ट्र

    9.2

    29.4

    32.0

    33.7

    16.6

    8.1

    20.9

    31.7

    20.0

    32.6

    14.7

    11.3

    11.2

    7.1

    8.3

    17.4


    सामाजिक समूहों के लिये निर्धनता अनुपात

    अलग-अलग सामाजिक समूहों के लिये जो निर्धनता अनुपात योजना आयोग के आँकड़ों में दर्शाया गया है, उनके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति में निर्धनता अनुपात सर्वोच्च 47.4 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जाति में यह 42.3 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जाति में यह 31.9 प्रतिशत है। शहरी क्षेत्रों में सर्वोच्च 34.1 प्रतिशत निर्धनता अनुपात अनुसूचित जाति में पाया गया है। उसके बाद अनुसूचित जन जाति में 30.4 प्रतिशत और अन्य पिछड़े वर्ग में 24.3 प्रतिशत पाया गया है।

    धार्मिक समूहों के लिये निर्धनता अनुपात 

    धार्मिक समूहों में ग्रामीण क्षेत्रों में सिखों में निर्धनता अनुपात सबसे कम 11.9 प्रतिशत है, जबकि शहरी क्षेत्रों में सबसे कम 12.9 प्रतिशत निर्धनता अनुपात ईसाइयों में पाया गया है। शहरी क्षेत्रों में अखिल भारतीय स्तर पर मुसलमानों में निर्धनता अनुपात 33.9 प्रतिशत पाया गया है। शहरी क्षेत्रों में मुसलमानों में निर्धनता अनुपात राजस्थान में 29.5 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 49.5 प्रतिशत, गुजरात में 42.4 प्रतिशत, बिहार में 56.5 प्रतिशत, और पश्चिम बंगाल में 34.7 प्रतिशत पाया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक 53.6 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 44.4 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 34.4 प्रतिशत और गुजरात में 31.4 प्रतिशत पाया गया है। 

    बहुआयामी निर्धनता

    भारत में निर्धनता अनुपात में लगातार कमी के दावों के बावजूद देश में निर्धनता की स्थिति चिन्ताजनक है। निर्धनता की जाँच के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के आधार पर यह पाया गया है कि-

    (i) भारत के 8 राज्यों में निर्धनों की कुल संख्या अफ्रीका के 26 निर्धनतम देशों में निर्धनों की कुल संख्या से अधिक है।

    (ii) बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल इन 8 राज्यों में शामिल हैं, जहाँ निर्धनों की कुल जनसंख्या 42.1 करोड़ है, जबकि अफ्रीका के 26 निर्धनतम देशों में कुल मिलाकर यह जनसंख्या 41 करोड़ ही है। 

    (iii) बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (MPI) के आधार पर भारत में दो-दो सर्वाधिक तथा न्यूनतम निर्धन राज्य क्रमश: बिहार (81%), झारखण्ड (77%) और दिल्ली (14%), केरल (16%) हैं। उल्लेखनीय है कि इस आधार पर भारत में 55%, पाकिस्तान में 56%, बांग्लादेश में 58% तथा नेपाल में 65% जनसंख्या निर्धनता से ग्रस्त है।

    निर्धनता की अन्तर्राष्ट्रीय तुलना 

    अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी निर्धनता के प्रतिशत विभिन्न देशों में काफी अन्तर है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2011 में विश्व में, औसतन 22.7 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता रेखा से अर्थात् 1.25 अमरीकन डॉलर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपभोग व्यय से कम था जबकि यही प्रतिशत बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान में क्रमश: 43.3 प्रतिशत, 32.2% और 21.0% था।

    विश्व में सर्वाधिक निर्धन भारत में 

    इसमें सन्देह नहीं कि भारत में निर्धनता की प्रतिशतता में कमी दर्ज की गई है। परन्तु वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत को निर्धन आबादी अभी एक चुनौती बनी हुई है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 1981 में विश्व के 22 प्रतिशत निर्धन भारत में रहते थे। वह संख्या बढ़कर अब 21.9% हो गई है। निर्धनता को दूर करने के सन्दर्भ में भारत के नीति-निर्माताओं को अपने पड़ोसी देश चीन से सबक लेना चाहिये। उल्लेखनीय है कि चीन में वर्ष 1981 में वहाँ को 84% जनसंख्या निर्धनता रेखा के नीचे जीवन यापन करती थी, जबकि यह आँकड़े अब मात्र 12 प्रतिशत पर आ चुका है।

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