भाषा, बोली, लिपि और व्याकरण

     भाषा (Language)

    क्या आप जानते हैं कि मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है क्योंकि वह अपने मन के भावों को दूसरों तक पहुंचा सकता है और दूसरों के विचारों को समझ सकता है। अपने विचारों और मनोभावों को किसी अन्य व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए वह अनेक संकेतों का प्रयोग करता है।

    जैसे- गूंगे व्यक्ति तरह-तरह की आवाजें निकालकर अपना मनोभाव दूसरों तक पहुँचाते हैं या फिर संकेत (इशारा ) करते हैं। बस के कंडक्टर तरह-तरह की आवाजों या सीटियों से ड्राइवर को अपना मनोभाव बताकर चलने या रुकने को कहते हैं। सड़क पर लगी लाल बत्तियाँ भी वाहन चालकों को कुछ संकेत देती हैं। रेल के ड्राइवर को गार्ड हरी झंडी दिखाकर चलने को कहते हैं। इतना कुछ होने पर भी इन संकेतों तथा अस्पष्ट ध्वनियों को तकनीकी दृष्टि से 'भाषा' नहीं कहा जाता। शब्दों द्वारा विचारों के आदान-प्रदान को भाषा कहा जाता है।

    'भाषा' शब्द संस्कृत की भाष' धातु से बना है। इसका अर्थ होता है बोलना। अतः मनुष्य बोलने के लिए जिन ध्वनियों का प्रयोग करता है, उसे भाषा कहते हैं। मुँह से उच्चारित ध्वनियों का एक निश्चित क्रम होता है, तभी वे भिन्न-भिन्न शब्दों का निर्माण कर पाती है और विचारों के आदान-प्रदान में सक्षम होती हैं। अतः हम भाषा की परिभाषा के रूप में कह सकते हैं कि-

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    भाषा की परिभाषा 

    भाषा वह माध्यम है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने मनोभावों एवं विचारों को बोलकर तथा लिखकर प्रकट करता है तथा दूसरों के विचारों को पढ़कर अथवा सुनकर ग्रहण करता है।

    भाषा के रूप (Kinds of Language)

    भाषा के मुख्यतः दो रूप होते हैं-

    1. मौखिक भाषा

    2. लिखित भाषा

    1. मौखिक भाषा (Oral Language)

    जब मनोभावों को किसी अन्य तक पहुँचाने के लिए मुँह से बोलना पडे,जैसे- भाषण देना, बातचीत करना, वाद-विवाद आदि में जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, उसे मौखिक भाषा कहते हैं।

    2. लिखित भाषा (Written Language)

    जब मनोभावों को किसी अन्य तक पहुँचाने के लिए लिखकर व्यक्त करते हैं; जैसे- पत्र लिखकर लेख के द्वारा आदि, तो इसे लिखित भाषा कहते हैं।

    वैसे भाषा का मूल रूप मौखिक ही होता है। भाषा का यह रूप बिना प्रयत्न किए ही स्वाभाविक रूप से सीख लेते हैं परंतु भाषा का लिखित रूप सीखने के लिए प्रयत्नपूर्वक सीखना पड़ता है। भाषा का लिखित रूप स्थायी होता है। हम 'भाषा' के इस रूप को चिरकाल तक सुरक्षित रख सकते हैं।

    भाषा के अन्य रूप (Other Parts of Language) 

    मौखिक भाषा के अलावा भी कुछ अन्य भाषा रूप होते हैं-

    1. मातृभाषा

    हम बचपन में अपने घर से जिस भाषा को बोलना सीखते हैं, उसे मातृभाषा कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की मातृभाषा अलग हो सकती है। जैसे गुजरात में जन्मे व्यक्ति की मातृभाषा गुजराती होगी। बंगाल में जन्मे व्यक्ति की मातृभाषा बंगाली होगी आदि।

    2. राष्ट्रभाषा 

    जिस भाषा को किसी देश के अधिकांश निवासी बोलते या लिखते हैं. वह उस देश की राष्ट्रभाषा कहलाती है। जैसे चीन की चीनी व जापान को जापानी भारत में हिंदी राष्ट्रभाषा मानी जाती है क्योंकि इसे अधिकतर भारतीय व्यवहार में लाते हैं।

    3. राजभाषा 

    देश के सभी कार्यालयों तथा प्रशासन के कार्यों में जो भाषा प्रयोग में लाई जाती है, उसे राजभाषा हि कहते हैं। भारत में हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रशासनिक कार्य होते हैं।

    4. मानक भाषा 

    भाषा में एकरूपता लाने के लिए भाषा का मूल रूप मानक भाषा कहलाता है। पुस्तकों, दूरदर्शन, रेडियो आदि में प्रयुक्त तथा विद्वानों द्वारा स्वीकृत भाषा रूप मानक भाषा' कहलाता है। 

    बोली (Dialect)

    बोली' का अभिप्राय स्थानीय तथा घरेलू बोली से है। यह किसी स्थान विशेष में अपनाई जाती है तथा इसका सीमित क्षेत्र होता है।

    अतः "किसी क्षेत्र विशेष में बोली जाने वाली भाषा को बोली कहते हैं।"

    लिपि (Script) 

    अपने भावों को स्थिर तथा स्थायी आकार प्रदान करने के लिए लिपि का उद्भव हुआ। भाषा के लिखने के ढंग को लिपि कहते हैं।

    "मौखिक भाषा को लिखित रूप में प्रकट करने के लिए निश्चित चिह्नों (Graphic signs) को लिपि कहते हैं।"

    निम्नलिखित तालिका में कुछ भाषा तथा उसकी लिपियाँ हैं, इन्हें पढ़ें।

    भाषा

    लिपि

    हिन्दी

    देवनागरी

    संस्कृत

    देवनागरी

    नेपाली

    देवनागरी

    कोंकणी

    देवनागरी

    उर्दू

    अरबी,फारसी

    पंजाबी

    गुरमुखी

    अंग्रेजी,जर्मन

    रोमन

    मराठी

    देवनागरी

    बंगाली

    बांग्ला

     व्याकरण (Grammar)

    भाषा के विभिन्न अंगों, वर्ण, शब्द, वाक्य, चिह्नों में नियमबद्ध तथा निश्चित संबंध होते हैं। इन्हीं संबंधों को योजनाबद्ध जानकारी देने वाला शास्त्र व्याकरण कहलाता है। प्रत्येक भाषा का अपना व्याकरण होता है, जो भाषा को व्यवस्थित आकार प्रदान करता है। यही कारण है कि भाषा चिरस्थायी रूप में विद्यमान रहती है। व्याकरण के नियमों के आधार पर ही भाषा का शुद्ध रूप निर्धारित होता है।

    "व्याकरण वह शास्त्र है, जिसके अध्ययन से हमें किसी भाषा को शुद्ध बोलने, लिखने तथा पढ़ने के नियमों का ज्ञान प्राप्त होता है।"

    व्याकरण के अंग (Parts of Grammar)

    1. वर्ण विचार (Phonology) 

    इसके अंतर्गत वर्णों के उच्चारण, वर्गीकरण तथा उनके मेल से बनने वाले शब्द के नियम आदि का उल्लेख किया जाता है।

    2. शब्द-विचार (Morphology) 

    इस विभाग में शब्दों के भेद, व्युत्पत्ति, उत्पत्ति, रचना आदि का विवेचन किया जाता है।

    3. पद-विचार 

    इसके अंतर्गत संज्ञा, सर्वनाम आदि पदों के स्वरूप व प्रयोग पर विचार किया जाता है।

    4. वाक्य विचार (Syntax) 

    इस विभाग में वाक्य के स्वरूप, विश्लेषण, भेद, संश्लेषण, रचना आदि का विवेचन किया जाता है। 

    हिंदी भाषा का महत्व (Importance of Hindi Language

    प्रत्येक भाषा की अपनी अलग प्रवृत्ति होती है। प्रत्येक देश की अपनी राजभाषा, राष्ट्रभाषा होती है। विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। इसका शब्द भंडार एक करोड़ से अधिक है। यह 1950 से हिंदी भारत की राजभाषा है। विशेष बात है कि इसमें जैसा बोला जाता है वैसा लिखा जाता है। प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में हिंदी भाषियों का तीसरा स्थान है।

    महत्वपूर्ण बिन्दु 

    * भाषा मन के विचारों व भावों की अभिव्यक्ति है।

    * भाषा के दो रूप हैं- मौखिक व लिखित।

    * भाषा के अन्य रूपों में राजभाषा, राष्ट्रभाषा, मातृभाषा सम्मिलित हैं।

    * क्षेत्र विशेष में बोली जाने वाली भाषा बोली है।

    * भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान कराने वाला शास्त्र व्याकरण है।


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