भारत में गरीबी के कारण
पिछड़े एवं विकासशील देशों में पूँजी के अभाव के कारण उपलब्ध जनशक्ति को उत्पादक कार्यों में लगाना सम्भव नहीं होता, इससे बेरोजगारी की समस्या पैदा होती है। बेरोजगारी के कारण श्रमिकों की आय कम हो जाती है और उन्हें गरीबी की जिन्दगी जीने के लिए विवश होना पड़ता है। बढ़ती हुई जनसंख्या ने इस समस्या को और अधिक जटिल बना दिया है। संक्षेप में, भारत में गरीबी के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-
जनसंख्या में वृद्धि
सन् 1921 के बाद देश में जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। चूँकि जनसंख्या का 68.8 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या का बढ़ता हुआ दबाव गरीबी का मुख्य कारण माना गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि जनसंख्या के बढ़ने से श्रम-शक्ति बढ़ती है जिससे रोजगार की माँग बढ़ती है तथा खाद्यान्न, वस्त्र, मकान, जल, शिक्षा, दवा, मनोरंजन आदि की माँग बढ़ती है। जिनकी पूर्ति के अभाव में गरीबी का बढ़ना स्वाभाविक है।
भारत की विद्यमान सामाजिक राजनैतिक परिस्थितियाँ
भारत की विद्यमान सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों में न तो कृषि सम्बन्धों में क्रान्तिकारी परिवर्तनों की आशा की जा सकती है और न ही जनसंख्या की वृद्धि दर कम होने की उम्मीद है। इन सीमाओं को ध्यान में रखते हुए यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है कि दो परस्पर सम्बन्धित गत्यात्मक शक्तियाँ (dynamic forces) कृषि में तकनीकी परिवर्तन तथा परिवर्तनशील खाद्य मूल्यों पर अपेक्षाकृत अधिक जोर दिया जा रहा है जो अभी तक अक्षुण्य थे।
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ग्रामीण गरीबी
गरीबी का मूल आधार ग्रामीण क्षेत्रों में है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि गरीबी की समस्या का समाधान करने के लिए अधिकतर कदम इन्हीं क्षेत्रों में उठाये गये हैं। भारत में ग्रामीण गरीबी का मूल कारण कृषि में अर्द्ध-सामंती (Semi-feudal) उत्पादन सम्बन्धों का होना है।
अपर्याप्त भूमि सुधार प्रयास
स्वतन्त्रता के बाद भूमि सुधारों के लिए उठाये गये कदम अपर्याप्त थे और वे उत्पादन सम्बन्धों में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं ला सके, इसलिए लगभग सभी ग्रामीण मजदूरों के परिवार, पर्याप्त संख्या में छोटे व सीमान्त किसान तथा भूमिहीन गैर-कृषि क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के परिवार गरीब हैं।
भूमि का असमान वितरण
कीथ ग्रिफिन के अनुसार : ऐसी कृषि व्यवस्था में जहाँ भूमि का अत्यन्त असमान वितरण हो तथा वित्त व अन्य कृषि लागतों पर कुछ व्यक्तियों का अपेक्षाकृत मजबूत अधिकार हो, वहाँ नयी कृषि तकनीकों को अपनाने से न केवल आय असमानताएँ बढ़ती है अपितु अत्यन्त निर्धन व्यक्तियों के अनुपात में भी वृद्धि होती है।
कृषि के बाहर कम रोजगार
भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि पर निर्भर है। इस कारण अन्यत्र कार्यों के ज्ञान के अभाव से रोजगार के अवसर कम उपलब्ध रहते हैं।
मूल्यों में वृद्धि
धर्म नारायण ने भारत के दीर्घकालीन आँकड़ों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला था कि बढते हुए कृषि उत्पादन और खाद्यान्नों के गिरते हुए मूल्यों से गरीबों में कमी होती है। उनके अध्ययन लागत कम करने वाली नयी तकनीक को अपनाने से गरीबी की मात्रा में वृद्धि हो जाये।
औद्योगीकरण का अभाव
औद्योगीकरण गतिशील न होने के कारण भी भारत में गरीबी है। यहाँ बड़े उद्योगों के अभाव के कारण उपभोक्ता भी जागरूक एवं स्तरीय नहीं है।
जाति प्रथा
जातिवाद जैसी परम्परावादी दृष्टिकोण के कारण उद्योगों के विकास मैं अवरोध पैदा होते हैं एवं कार्य का एकरूपीय समन्वयात्मक वातावरण नहीं बन पाता।
शिक्षा का स्तर
भारत में शिक्षा का स्तर पर्याप्त पिछड़ा है जिससे नवाचारों एवं अनुसन्धानों का लाभ हम नहीं उठा पाते एवं गरीबी बढ़ रही है।
लाल फीताशाही
भारत में बढ़ती लाल फीताशाही के कारण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का लाभ उचित व्यक्ति को नहीं मिल पाता।
कार्यक्रम क्रियान्वयन में देरी
भारत में कार्य के क्रियान्वयन में देरी होने से गरीबी को लाभ नहीं मिलता व गरीबी बढ़ती जाती है।
गरीबी निवारण के उपाय
गरीबी की समस्या को हल करने का मुख्य उपाय उनकी आय में वृद्धि करना है। अतः गरीबी हटाने के उपायों के अन्तर्गत गरीब लोगों को उचित मजदूरी पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है। यह तभी सम्भव है। जब आर्थिक विकास की दर में वृद्धि के साथ-साथ श्रम-प्रधान तकनीकी का उपयोग किया जाये। संक्षेप में, गरीबी की समस्या को दूर करने के उपाय निम्नलिखित है-
सन्तुलित विकास
इस नीति के आधार पर उपलब्ध पूँजी का विस्तृत उपयोग किया जाये अर्थात् अधिक-से-अधिक उद्योगों में पूंजी का विनियोग करना चाहिए। इसका लाभ यह होता है कि विभिन्न उद्योग एक-दूसरे के लिए परस्पर माँग उत्पन्न करते हैं। फलस्वरूप बाजार की अपूर्णताएँ समाप्त होती है।
शिक्षा का प्रसार और सामाजिक व संस्थागत ढांचे में परिवर्तन
निर्धनता को जन्मजात वरदान न समझकर, उसे दूर करने के लिए एकमत होकर शिक्षा प्रसार एवं सामाजिक व संस्थागत संरचना में परिवर्तन हेतु प्रयत्नशील होना चाहिए।
उत्पत्ति के साधनों का समुचित उपयोग
विशेषकर श्रम व प्राकृतिक साधनों का सर्वोपयुक्त ढंग से तथा पूर्ण उपयोग सम्भव करना उत्पत्ति के साधनों के समुचित उपयोग से ही होता है।
विकसित तकनीक
कुछ क्षेत्रों में विकसित तकनीकी लागू करना परम्परागत तकनीक में यथासम्भव सुधार करना भी आवश्यक है।
सहकारी क्षेत्रों को बढ़ाना
उद्यमशीलता की कमी के कारण सहकारी क्षेत्र को बढ़ावा देना आवश्यक है, तभी गरीबी से मुक्ति सम्भव है।
मौद्रिक उपाय
विकास वित्त के लिए करारोपण होनार्थ प्रबन्धन, बैंकिंग व्यवस्था का विकास, सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना, विदेशी पूँजी और अपसंचित साधनों का उपयोग आदि मौदिक उपायों का भी अपना एक विशेष महत्व है।
पूँजी निर्माण की गतिशीलता
घरेलू क्षेत्र में पूँजी निर्माण को गति प्रदान करने हेतु निम्नांकित प्रयत्न किये जाने चाहिए-
(1) वास्तविक बचत दर में वृद्धि करना,
(2) बचतों को गतिशील बनाना,
(3) बचतों का सही निर्देशन, तथा
(4) उपलब्ध पूँजी का श्रेष्ठतम उपयोग करना।
अन्य उपाय
अन्य उपायों के लिए निम्नलिखित उपाय आते हैं-
(i) एक विस्तृत राष्ट्रीय रोजगार कार्यक्रम को चलाया जाना चाहिये, जिसमें मजदूरी पर नियमित रोजगार की व्यवस्था हो सके। प्रत्येक जिले व विकास खण्ड में सबल व सुदृढ़ परियोजनाओं का चयन करके व्यापक रोजगार कार्यक्रम निर्धारित करके विशाल जन संगठनों के माध्यम से उनकी मजदूरी, रोजगार के आधार पर चलाया जाना चाहिए।
(ii) ग्रामीण मजदूरों के लाभ से सम्बन्धित सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था होनी चाहिये। न्यूनतम मजदूरी कानून, 1948 तथा बंधुआ श्रम व्यवस्था (समाप्ति) कानून, 1976 को व्यवहार में कड़ाई से लागू करना चाहिये। इससे भी ग्रामीण निर्धनता को कम करने में मदद मिलेगी।
(iii) ग्रामोत्थान की एक व्यापक योजना बनानी चाहिये, जिसमें ग्रामीण विकास के विभिन्न कार्यक्रमों का एकीकरण किया जा सकता है। सरकार ने एन. आर. ई. पी. तथा आर. एल. ई. जी. पी. का एकत्रीकरण करके इस दिशा में उचित कदम उठाया है।
(iv) पंचायती राज, लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण, सहकारी अर्थव्यवस्था आदि को अधिक साकार रूप दिया जाना चाहिये ताकि ये भावी विकास के स्रोत बन सकें, न कि मात्र दिखावे की वस्तुएँ। इसके लिये राजनीतिक इच्छा-शक्ति का विकास करना आवश्यक है।
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गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
गरीबी एक ऐसी समस्या है जो देश में चारों ओर फैली हुई है। इस समस्या को कम करने के लिए सरकार समय-समय पर अनेक कार्यक्रम चलाती रहती है। वर्तमान में रोजगार सृजन तथा गरीबी उन्मूलन से सम्बन्धित कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-
आम आदमी बीमा योजना
निर्धनता रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन परिवारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से यह योजना 2 अक्टूबर, 2007 से प्रारम्भ की गई है। ग्रामीण भूमिहीन परिवार का मुखिया या परिवार का रोजगार करने वाला एक सदस्य, जिसकी उम्र 18-59 वर्ष के मध्य हो, इस योजना के अन्तर्गत बीमा पा सकता है। इसके अन्तर्गत दो बच्चों को एड-ऑन बेनेफिट छात्रवृत्ति के रूप में 100 रुपए प्रतिमाह प्रदान किया जाता है।
राजीव ऋण योजना
यह योजना देश के सभी शहरी क्षेत्रों में प्रयोज्य है और इसके अन्तर्गत अपना घर बनाने या मौजूदा मकान का विस्तार करने के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और निम्न आय समूहों को दिए गए ऋणों पर 5% ब्याज (500 आधार बिन्दु) सब्सिडी प्रदान की जाती है।
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम यह कार्यक्रम
15 अगस्त, 1995 से लागू किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत स्कीमें गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्तियों के लिए सामाजिक सुरक्षा/कल्याण की स्कीमें हैं। इसके अन्तर्गत ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में बीपीएल परिवारों को सहायता दी जाती है। इस कार्यक्रम में तीन योजनाएँ-इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना और राष्ट्रीय प्रसव लाभ योजना शामिल है।
अन्त्योदय अन्न योजना
इस योजना के अन्तर्गत देश के एक करोड़ निर्धनतम परिवारों को प्रति माह 35 किग्रा (1 अप्रैल, 2002 से) अनाज विशेष रियायती मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है। इस योजना के अन्तर्गत जारी किए जाने वाले गेहूं व चावल का केन्द्रीय निर्गम मूल्य क्रमश: रु. 2. व रु. 3 प्रति किग्रा है।
अन्य योजनाएँ
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन,
- राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन,
- प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम को सहायता,
- प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन कार्यक्रम
- महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना ।