भारत में बेरोजगारी के कारण और बेरोजगारी कम करने के उपाय

    भारत में बेरोजगारी के कारण

    भारत में बेरोजगारी की समस्या को अत्यधिक उग्र बनाने वाले प्रमुख कारण निम्नांकित है-

    जनसंख्या में वृद्धि 

    राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम के पश्चात् भी भारत में जन्म दर में कमी बहुत ही सीमित हुई है, जबकि मृत्यु दर तेजी से घटी है। इसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में प्रतिवर्ष लगभग 1.6 प्रतिशत से वृद्धि हो रही है। इससे श्रम शक्ति में तेजी से वृद्धि हुई किन्तु रोजगार के अवसर अनुपात में नहीं बढ़े। अतः बेरोजगारी की भयावह स्थिति का निर्माण होना स्वाभाविक है।

    राष्ट्रीय रोजगार नीति का अभाव 

    भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में बेरोजगारी दूर करने की कोई विशेष नीति निर्धारित नहीं की गयी। सन् 1989 में प्रथम बार सरकार ने रोजगार के अधिकारों की चर्चा की थी और इसे संविधान में सम्मिलित करने की बात कही थी किन्तु अभी तक रोजगार की कोई स्पष्ट नीति नहीं बनायी जा सकी। इसी के परिणामस्वरूप देश में बेरोजगारी एवं अदृश्य बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है।

    दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली  

    भारत में शिक्षित बेरोजगारी का मुख्य कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है, जो कि देश को अंग्रेजों से विरासत में मिली है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली सामान्य एवं साहित्यिक शिक्षा देती है जिसमें व्यावहारिकता का अभाव रहता है। इसमें देश की मानवशक्ति के सामूहिक उपयोग एवं आर्थिक विकास के अनुरूप जनशक्ति के निर्माण पर ध्यान नहीं दिया गया।

    कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों का अभाव 

    पुराने समय में कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों के विकास के कारण हमारे यहाँ बेरोजगारी नहीं थी किन्तु मशीनों से बनी वस्तुओं से ये उद्योग प्रतियोगिता नहीं कर सके और धीरे-धीरे समाप्त हो गये। इससे लाखों की संख्या में हस्तकला एवं शिल्पकला में लगा हुआ भारत का श्रमिक बेरोजगार हो गया। वर्तमान युग में यद्यपि भारत सरकार की ओर से कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन दिया जा रहा है तथापि बड़े उद्योगों से प्रतियोगिता के कारण इन उद्योगों का पर्याप्त विकास नहीं हो सका है।

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    श्रमिकों में गतिशीलता का अभाव

    भारत के श्रमिकों में गतिशीलता कम पायी जाती है और बेरोजगार के लिए गाँवों को छोड़ना नहीं चाहते हैं। अतः गतिशीलता, के अभाव के लिए अशिक्षा, परिवार का मोह, जमीन का आकर्षण तथा अन्य सामाजिक कारण उत्तरदायी हैं। यह श्रमिकों की बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है।

    परम्परागत कृषि  

    जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि पर जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है। कृषि की पिछड़ी हुई दशा के कारण जहाँ गरीबी का दुष्चक्र क्रियाशील है, वहीं उन्नत तकनीक को अपनाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। सिंचाई के सीमित स्रोत, उन्नत बीज एवं उर्वरकों का अभाव तथा वित्तीय स्रोतों की कमी आदि के कारण देश में प्रति हैक्टेयर उत्पादन बहुत कम है।

    अर्थव्यवस्था की धीमी वृद्धि 

    अर्थव्यवस्था ही काम चाहने बालों को रोजगार उपलब्ध कराती है। पाँच दशकों के विकास के बावजूद भी भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत वृद्धि दर अधिक नहीं रही है। कार्यशील जनसंख्या का दो-तिहाई भाग अभी भी कृषि पर ही निर्भर है। द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र का सीमित विकास होने के कारण जनसंख्या का दबाव कृषि पर निरन्तर बढ़ रहा है। इसके कारण बेरोजगारी की समस्या ने जटिल रूप धारण कर लिया है।

    निजी क्षेत्र के प्रति सरकार की नीति 

    उदारीकरण की नीति अपनाने के बावजूद भी भारत में निजी क्षेत्र के उद्योगों को अनेक प्रकार के सरकारी हस्तक्षेपों का सामना करना पड़ रहा है। यही कारण है कि निजी क्षेत्र का विस्तार तीव्र गति से नहीं हो रहा है। इसके अतिरिक्त करारोपण की दर भी बहुत अधिक है।

    बुनियादी सुविधाओं का अभाव 

    पाँच वर्षों के नियोजित विकास के बावजूद भारत में बुनियादी सुविधाओं, जैसे-विद्युत, यातायात के साधन, जल, संचार साधन आदि के अभाव के कारण देश में द्वितीयक एवं सेवा क्षेत्र का पर्याप्त विकास नहीं हुआ। विद्युत की कमी के कारण अनेक उद्योग अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। सड़कों की कमी के कारण उत्पादित वस्तुओं का बाजार सीमित बना हुआ है। सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण कृषि वर्षा पर निर्भर है। इस प्रकार बुनियादी सुविधाओं का पर्याप्त मात्रा में विस्तार न होने के कारण देश में रोजगार के अवसरों में भी आशा के अनुकूल विस्तार नहीं हुआ। 

    पूँजी गहन तकनीकी पर बल

    भारत की द्वितीय पंचवर्षीय योजना से औद्योगिक विकास को महत्व दिया गया। यह औद्योगिक विकास पूँजी-गहन तकनीकी पर आधारित रहा तथा इसके परिणामस्वरूप रोजगार के अवसरों में आवश्यकता के अनुसार वृद्धि नहीं हुई।

    भारत में बेरोजगारी कम करने के लिए अपनाये गये सरकारी कार्यक्रम या उपाय  

    सरकार ने प्रथम तीन पंचवर्षीय योजनाओं में रोजगार वृद्धि के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रयास नहीं किये। सरकार का मानना था कि योजनाओं के अन्तर्गत क्रियान्वित विभिन्न कार्यक्रम से रोजगार के अवसरों में स्वतः वृद्धि होगी किन्तु बेरोजगारी व्यक्तियों की बढ़ती हुई संख्या के कारण चतुर्थ योजना से रोजगार के विशेष कार्यक्रम सम्पूर्ण देश में क्रियान्वित किये गये। वर्तमान में संचालित कार्यक्रमों को संक्षेप में निम्न प्रकार से विवेचित किया जा सकता है-

    राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)

    1 अप्रैल, 2012 से स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना' को 'राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन' के रूप में चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य सभी ग्रामीण निर्धन परिवारों को संगठित करना और उनकी तब तक निरन्तर सहायता एवं पोषण करना है जब तक उनकी निर्धनता दूर नहीं हो जाती है। यह कार्य प्रत्येक परिवार की एक महिला सदस्य को निकटवर्ती स्थान पर रोजगार देकर किया जाता है।

    राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) 

    स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना' जिसे पुनर्गठित करके राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन बनाया गया है, का उद्देश्य शहरी निर्धन लोगों को स्व-सहायता समूहों में संगठित करना, शहरी गरीबों को रोजगार के लिए कौशल प्रशिक्षण देना और सब्सिडी ब्याज दरों पर ऋण देकर स्वरोजगार चलाने के लिए उनकी सहायता करना है। इसके अतिरिक्त, इस मिशन के अन्तर्गत शहरी क्षेत्रों में बिना घरों वाले लोगों के लिए आश्रय स्थल बनाने और स्ट्रीट वेंडरों को बुनियादी सुविधाएँ देने का कार्य भी किया जाता है।

    प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम को सहायता

    इस स्कीम का उद्देश्य 16 वर्ष और उससे अधिक आयु समूह की महिलाओं को रोजगार हेतु कौशल प्रशिक्षण देकर उन्हें लाभान्वित करना है। 

    प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन कार्यक्रम

    स्वरोजगार के अधिकाधिक अवसर सृजित करने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम 15 अगस्त, 2008 से प्रारम्भ किया गया। पूर्व में संचालित दो रोजगार कार्यक्रमों- प्रधानमन्त्री की रोजगार योजना व ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम का विलय इस नए कार्यक्रम में कर दिया गया है। 

    महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (MNREGA) 

    1 अप्रैल, 2008 से इस योजना को सम्पूर्ण देश में लागू कर दिया गया है। इस योजना के अन्तर्गत होने वाले कुछ व्ययों का बहन केन्द्र एवं राज्य सरकारें क्रमश: 90 : 10 के अनुपात में करती है। 2 अक्टूबर, 2009 को गाँधी जयन्ती के अवसर पर इस योजना का नाम 'महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी अधिनियम' कर दिया गया। काम के बदले 'अनाज योजना''सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना' का विलय अब इस नई योजना में कर दिया गया है।

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     मनरेगा की विशेषताएँ 

    (i) ग्रामीण इलाकों में निर्धनता से नीचे रह रहे प्रत्येक परिवार के कम से कम एक वयस्क सदस्य को कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारण्टी का अधिकार है। 

    (ii) योजना के अन्तर्गत 33 प्रतिशत लाभ भोगी महिलाएँ होंगी।

    (iii) इस योजना के अन्तर्गत कम से कम रु. 60 प्रतिदिन व्यक्ति को मजदूरी दी जायेगी।

    (iv) ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादक सम्पत्तियों का निर्माण करने के लिये रोजगार अवसर उपलब्ध करवाये जायेंगे। जैसे- सड़कें बनाना, सिंचाई परियोजना आदि।

    (v) माँग करने के 15 दिनों के अन्दर रोजगार उपलब्ध करवाया जायेगा। 

    (vi) यदि निर्धारित 15 दिनों तक रोजगार न उपलब्ध कराया गया, तो न्यूनतम मजदूरी का एक-तिहाई हिस्सा बेरोजगारी भत्ते के रूप में दिया जायेगा।

    (vii) ग्रामीण परिवार के सभी वयस्क सदस्य जो अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हों, वे पंजीकरण के लिये लिखित या मौखिक रूप से ग्राम पंचायत को आवेदन कर सकते हैं। 

    (viii) आवेदन के सत्यापन के पश्चात् ग्राम पंचायत परिवार को 'जॉब कार्ड' जारी करेगी। इसमें परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के फोटो होंगे तथा इसे निःशुल्क उपलब्ध कराया जायेगा। 

    (ix) जॉब कार्ड धारक परिवार एक सादे कागज पर आवेदन कर कार्य की माँग कर सकता है। आवेदन ग्राम पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी को सम्बोधित कर लिया गया हो जिसमें वांछित कार्य का समय एवं उसकी अवधि का उल्लेख हो।

    (x) मजदूरी एवं सामग्री के बीच 60 : 40 का अनुपात रखा जायेगा, जिससे मजदूरों को विस्थापित करने वाली मशीनरी का उपयोग न हो सके। 

    (xi) जवाबदेही एवं कार्यान्वयन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये शिकायत निवारण तन्त्र स्थापित किया जायेगा तथा ग्राम सभा द्वारा सामाजिक लेखा परीक्षा की जायेगी। 

    (xii) पारदर्शिता हेतु किसी व्यक्ति द्वारा सूचना की माँग किये जाने पर उसे सभी लेखों एवं अभिलेखों की प्रति उपलब्ध कराई जायेगी।

    मनरेगा के गुण व महत्व

    मनरेगा ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों तथा मजदूरी की दरों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संक्षेप में, मनरेगा के गुण व महत्व निम्नलिखित हैं- 

    1. इसके माध्यम से कार्मिकों को रोजगार की माँग करने का कानूनी अधिकार प्राप्त होता है, जो सरकार को समयबद्ध रूप से रोजगार उपलब्ध कराने के लिये जबावदेह बनाता है। 

    2. यह रोजगार विकल्पों में कमी या अपर्याप्तता की स्थिति में रोजगार उपलब्ध कराता है, जिससे वंचितों को एक प्रकार से सामाजिक सुरक्षा तन्त्र प्राप्त होता है। 

    3. मनरेगा द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन को प्राथमिकता देने तथा टिकाऊ सम्पत्तियों (सड़क, नहर इत्यादि) के सृजन के कारण यह भारतीय अर्थव्यवस्था के सतत विकास के लिये एक विकासात्मक साधन बन गया है।

    4. अत्यन्त सुदृढ़ विकेन्द्रीकरण तथा पंचायती राजव्यवस्था पर आधारित होने के कारण इसमें जवाबदेही एवं पारदर्शिता प्रशासन के निचले स्तर तक होती है।

    मनरेगा के दोष 

    गरीबी, बेरोजगारी और पलायन से त्रस्त ग्रामीण भारत में राहत का संदेश लेकर आये महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून में पाँच साल तो पूरे कर लिये परन्तु अभी तक सरकार इसमें अपारदर्शिता एवं खामियों को दूर नहीं कर सकी। संक्षेप में, मनरेगा की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं-

    1. मनरेगा के अन्तर्गत पाँच करोड़ लोगों को सरकार द्वारा 2009-10 में काम उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया था। परन्तु अगर तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश को छोड़ दिया जाये तो यह सुचारु रूप से पूरे देश में लागू नहीं हो पा रहा है।

    2. इस योजना में पंचायती राजव्यवस्था द्वारा सोशल ऑडिट करने की व्यवस्था है परन्तु वास्तव में सोशल ऑडिट के नाम पर केवल खानापूर्ति हो की जा रही है। 

    3. इस योजना में भ्रष्टाचार काफी अधिक है जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। जैसे-कहीं जॉब कार्ड बन जाने पर भी काम न मिलने की शिकायत, तो कहीं हाजिरी रजिस्टर में हेराफेरी की। इसके अतिरिक्त कागजों में फर्जी मशीनों का उपयोग तथा फर्जी कामगारों को दिखाकर फर्जी बिल बनाये जाने के मामले भी सामने आये हैं।

    रोजगार कार्यालयों की स्थापना 

    युवाओं को रोजगार की समुचित जानकारी देने के लिए सम्पूर्ण देश में रोजगार कार्यालयों की स्थापना की गयी है। वर्तमान में इनकी संख्या 977 है। ये कार्यालय रोजगार चाहने वालों का पंजीकरण करते हैं और उन्हें व्यवसाय सम्बन्धी सूचना के साथ-साथ मार्गदर्शन भी देते हैं। रोजगार कार्यालयों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में रोजगार सूचना एवं मार्गदर्शन केन्द्र भी कार्यरत हैं।

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