व्यापारिक या व्यावसायिक पत्र के गुण तथा विभिन्न तत्व क्या हैं

    सामान्यतः व्यावसायिक या व्यापारिक पत्र को यदि किसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए लिखा जाये तो उस निर्धारित उद्देश्य को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है।

    शर्त यह है कि व्यापारिक पत्रों के गुणों पर दृष्टिपात किया जाये। व्यापारिक पत्र लेखन ऐसी कला है जो सम्प्रेषणीयता एवं उद्देश्यवाहकता, प्रौढ़ भाषा ज्ञान निरन्तर अभ्यास से प्राप्त होता है। व्यापारिक पत्रों के गुणों को उसकी प्रगति के आधार पर निम्नांकित दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

    (क) व्यापारिक पत्रों के बाह्य तत्व  

    व्यापारिक पत्रों के बाह्य तत्व से तात्पर्य उसके बाहरी स्वरूप अथवा कलेवर (Structure) से होता है जिसका तत्काल प्रत्यक्ष प्रभाव प्राप्तकर्ता के अन्तर पटल पर होता है तथा वह एकाएक इनके प्रति आकर्षित होता है। पत्रों का बाह्य स्वरूप जितना आकर्षक एवं प्रभावी होगा, वह प्राप्तकर्ता को उतना ही प्रभावित करेगा। अतः श्रेष्ठ व्यापारिक संस्थाओं एवं कम्पनियों के द्वारा इन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। वर्तमान व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में व्यापारिक पत्रों के द्वारा इन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। वर्तमान व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में व्यापारिक पत्रों के इस गुण पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। व्यापारिक पत्रों के बाह्य तत्वों के अन्तर्गत निम्नांकित महत्वपूर्ण बातों का समावेश किया जाता है-

    1. श्रेष्ठ किस्म के कागज का प्रयोग

    सामान्यतः पत्रों के लिए सर्वप्रथम कागज की आवश्यकता होती है। इसके लिए व्यापारिक व्यक्ति एवं संस्थान श्रेष्ठ एवं उच्च किस्म के कागज का चुनाव करते हैं। स्वच्छ, अनुकूल आकार एवं प्रकार के कागज का तत्काल प्रभाव पडता है तथा ये तत्काल प्राप्तकर्ता के ध्यान को आकर्षित करते हैं जो व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। इसके विपरीत यदि कागज खराब, मैला एवं अनुकूल न हो तो यह व्यवसाय को प्रतिकूल परिणाम देता है। वर्तमान व्यावसायिक प्रतिस्पद्धां के इस दौर में जब प्रत्येक व्यापारिक वैज्ञानिक एवं व्यावसायिक कलाओं को दृष्टिगत रखता है तो इस बात पर वह विशेष ध्यान देता है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यवसायी अपने व्यावसायिक कार्यों हेतु नाम, पते समेत अन्यान्य महत्वपूर्ण आवश्यक जानकारी से सम्बद्ध लेटरपैड का प्रयोग करते हैं।

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    2. आकर्षक लिफाफों का प्रयोग

    सामान्यतः लिफाफों का प्रयोग पत्र की सुरक्षा एवं गोपनीयता हेतु अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं आवश्यक होता है। यदि लिफाफे विशिष्टता से युक्त एवं आकर्षक हैं तो इनका भी प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है जो व्यावसायिक दृष्टिकोण से अत्यन्त लाभकारी होता है। इसलिए व्यापारी एवं संस्थाएँ तथा विभिन्न कम्पनियाँ नाम, पते समेत विशिष्ट चिह्नों (मुद्राओं) से युक्त लिफाफ का प्रयोग करती हैं तथा वर्तमान समय में इन्हें तैयार करने में इनसे सम्बन्धित विशिष्ट एवं योग्य व्यक्तियों की सेवाएँ ली जाती हैं। लिफाफों का विशिष्ट एवं आकर्षक स्वरूप प्रत्येक प्राप्तकर्ता को न केवल तत्काल आकर्षित करता है बल्कि उसके मस्तिष्क पर दीर्घकालीन छवि अंकित करता है।

    3. प्राप्तकर्ता का सम्पूर्ण विवरण 

    लिफाफे के मुद्रण के दौरान उसके ऊपरी भाग पर प्रेषक का नाम, पता, दूरभाष समेत अन्य जानकारी होती है जो आकर्षक एवं स्वच्छ होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त प्राप्तकर्ता का नाम, पता, पिन कोड का उल्लेख होने से न केवल शीघ्रता से पहुँचते हैं, बल्कि इससे प्राप्तकर्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तथा लाभपूर्ण परिस्थितियों का निर्माण करता है। अस्पष्ट, अस्वच्छ, कटा-पिटा पत्र न केवल व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है बल्कि निर्धारित स्थान पर पहुँचने में विलम्ब का कारण भी बनता है।

    4. लिपि 

    व्यापारिक पत्रों के लेखन में बाह्य तत्वों के अन्तर्गत लिपि तथा विशेष रूप से उसकी स्वच्छता एवं सुन्दरता को सम्मिलित किया जाता है। प्रथम दृष्टि इनका प्रत्यक्ष प्रभाव होता है तथा प्राप्तकर्ता तत्काल आकर्षित होता है। हस्तलिखित पत्रों में सामान्यतः यह गुण नहीं आ पाता है। अतः वर्तमान समय में मुद्रित लिफाफों का प्रयोग किया जाता है जो निरन्तर अपनी लोकप्रियता बनाते जा रहे हैं।

    (ख) व्यापारिक पत्रों के आन्तरिक तत्व 

    व्यापारिक पत्र से सम्बन्धित भीतरी गुण को आन्तरिक तत्व कहा जाता है जो ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। यदि इन चों को व्यक्ति का शरीर (Body) कहा जाये तो आन्तरिक तत्वों को शरीर में स्थित आत्मा (Soul) कहा जायेगा जिसके बिना बाह्य तत्वों का कोई महत्व नहीं होता है। सामान्यतः व्यापारिक पत्रों का बाह्य स्वरूप प्रथम दृष्टि से प्राप्तकर्ता को प्रभावित करता है तो आन्तरिक गुण प्राप्तकर्ता के भीतर प्रेषक की स्पष्ट छवि अंकित करता है तथा प्राप्तकर्ता इस आधार पर पत्र भेजने वाले के विषय में अवधारणा निर्धारित करता है। पत्र के आन्तरिक गुण के दीर्घकालीन हितों को प्रभावित करते हैं। इसके अन्तर्गत निम्नांकित गुणों का समावेश किया जाता है-

    1. स्पष्टता होना 

    सामान्यतः व्यापारिक पत्र निश्चित ध्येय तथा उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए लिखे जाते हैं। अतः आवश्यक है कि व्यापारिक पत्रों के लेखन के दौरान सन्दर्भित उद्देश्य का स्पष्ट निर्देश तथा उसकी अपेक्षित परिणाम में व्याख्या का स्पष्टीकरण दिया जाना अनिवार्य होता है। उद्देश्य को पत्र के कलेवर में इस ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि प्राप्तकर्ता प्रेषक के आशय को तत्काल तात्विक रूप से ग्रहण करे एवं उसके अनुरूप आवश्यक कार्यवाही करे।

    2. नम्रता होनी चाहिए

    सामान्य आचरण में शिष्टता तथा व्यवहार में नम्रता व्यावसायिक सफलता के आवश्यक गुण माने जाते हैं। इसी के अनुरूप व्यावसायिक पत्रों में शिष्टाचारपूर्वक एवं विनम्र भाव प्रकट करने वाली भाषा का प्रयोग किया जाना व्यावहारिक एवं ठीक होता है। यदि इसके विपरीत व्यापारी अशिष्ट भाषा का प्रयोग करता है तो यह बात उसके व्यवसाय के लिए अहितकर होती है।

    3. सरलता होनी चाहिए 

    व्यापारी को व्यावसायिक पत्रों के लेखन के दौरान अभिव्यक्ति की सरलता पर विशेष तौर पर ध्यान देना चाहिए। व्यवसाय में मुहावरेदार भाषा का प्रयोग, क्लिष्ट शब्दों की बहुतायत एवं व्यंग्यपूर्ण शब्द उचित नहीं होते हैं। व्यावसायिक पत्र लेखन में ऐसे शब्दों का प्रयोग वर्जनीय होता है जो बहुअर्थी होते हैं। व्यापारी को ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। 

    4. स्वच्छता होनी चाहिए

    व्यापारिक पत्रों को लिखते समय स्वच्छता पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए अर्थात् पत्र लिखते समय पत्र में अनावश्यक काट-छाँट, स्थानाभाव के कारण पंक्ति का दोहरीकरण नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त पत्र में कहीं भी (प्रारम्भ, मध्य एवं अन्त में) दाग एवं नहीं होने चाहिए।

    5. सत्यता होनी चाहिए 

    व्यवसायी को पत्र लेखन के दौरान सत्यता पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। पत्र में वास्तविक तथा तथ्यपूर्ण बातों को समावेशित किया जाना चाहिए तथा मिथ्यात्मक ( गलत बातों के उल्लेख से बचा जाना चाहिए। अतः विषय-वस्तु समेत सम्पूर्ण तथ्यों को पूर्ण सत्यता एवं निष्ठा के साथ उल्लेखित किया जाना आवश्यक है। इसीलिए कहा जाता है कि सत्य व्यवसाय को पूँजी एवं आधार होता है।

    6. संक्षिप्तता पर ध्यान देना

    किसी एक व्यवसायी के व्यावसायिक पत्रों का संक्षिप्त एवं सारगर्भित स्वरूप श्रेष्ठ माना जाता है। सामान्यतः व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में समय अत्यन्त महत्वपूर्ण तत्व होता है जो व्यावसायिक सफलता के लिए आवश्यक होता है। अतएव पत्र लेखन के दौरान संक्षिप्तता पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि अत्यन्त लम्बे पत्र न केवल स्वयं के लिए बल्कि प्राप्तकर्ता को भी कष्टप्रद होते हैं तथा उसे सार ग्रहण करने में समय विलम्ब होता है तथा प्रतिस्पर्द्धात्मक युग में इतना समय व्यवसायी के पास नहीं होता कि वह लम्बे पत्रों को पढ़े एवं उसमें से अर्थपूर्ण बात को ग्रहण करे। अनावश्यक रूप से लम्बे पत्र व्यावसायिक दृष्टि से अहितकर एवं सामान्यतः रद्दी की शोभा बन जाते हैं।

    7. प्रभावी होना चाहिए

    पत्र का प्रभावी होना व्यावसायिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं आवश्यक होता है, परन्तु इसके लिए भाषा अत्यन्त सरल हो तो ज्यादा बेहतर होगा। सामान्यतः अनेक व्यक्ति एवं व्यवसायी पत्रों को प्रभावी बनाने के लिए भाषा को अत्यन्त क्लिष्ट एवं मुहावरेदार कर देते हैं। इससे प्रभाव के स्थान पर दुष्प्रभाव होता है जो व्यवसाय की दृष्टि से अहितकर होता है।

    8. सम्बद्धता होनी चाहिए

    प्रत्येक व्यवसायी को व्यापारिक पत्रों के लेखन के दौरान इस तथ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि पत्रों के लेखन के दौरान विषय-वस्तुओं की परस्पर सम्बद्धता को दृष्टिगत रखते हुए ऐसी भाषा एवं तथ्यों को प्रयोग किया जाये कि तारतम्यता बनी रहे एवं प्राप्तकर्ता प्रत्येक भावार्थ को सरलता से ग्रहण करे क्योंकि सम्बद्धता के अभाव में कही जाने वाली बात प्राप्तकर्ता समझ नहीं सकेगा। ऐसी दशा में व्यावसायिक पत्र अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

    9. सन्तुष्टता होनी चाहिए 

    व्यावसायिक पत्रों के लेखन के पश्चात् व्यवसायी को उसे स्वयं पढ़कर जाँच कर लेनी चाहिए कि जिस व्यापक उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए पत्र लिखा गया है, उसका आशय स्पष्ट होता है अथवा नहीं? यदि व्यवसायी सन्तुष्ट है तो निश्चित तौर पर इसका अनुकूल प्रभाव होगा, परन्तु व्यवसायी महसूस करता है कि पत्र ठीक नहीं है, सन्तुष्टता प्रदान नहीं करता है तो पुनः बार-बार संशोधन करते हुए, तब तक ऐसा किया जाना चाहिए, जब तक वह पूर्ण सन्तुष्ट न हो जाये क्योंकि व्यावसायिक पत्रों में सन्तुष्टता पर प्रयोजन की सफलता अथवा विफलता निर्भर करती है। 

    10. सम्पूर्णता होनी चाहिए

    व्यवसायी को पत्र लेखन के पश्चात् इस बात को देखना चाहिए कि उसके द्वारा लिखित पत्र में सम्पूर्ण तथ्यों का उल्लेख है अथवा नहीं? जब व्यवसायी स्वयं सन्तुष्ट हो जाये तो इसके पश्चात् उसे अन्तिम रूप से हस्ताक्षर करते हुए सील (मुहर) का प्रयोग करना चाहिए।

    प्रभावी व्यावसायिक पत्र के अनिवार्य तत्व 

    वर्तमान प्रतिस्पर्द्धात्मक युग में व्यावसायिक पत्रों की आवश्यकता एवं महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। एक प्रभावी व्यावसायिक पत्र व्यवसाय को सफलता का निश्चित सोपान माना जाता है अतः आवश्यकता है कि व्यावसायिक पत्रों की प्रभावशीलता का अध्ययन किया जाये। सामान्यतः व्यावसायिक पत्र की श्रेष्ठता या प्रभावशीलता अथवा अनिवार्यता दो तत्वों पर निर्भर करती है। इन्हें दो वर्गों में सुविधा की दृष्टि से विभाजित किया जा सकता है-

    (1) पत्र का बाहरी रूप (Physical Appearance of the Letter), तथा 

    (2) पत्र को विषय सामग्री (Subject matter of the Letter)।

    उपरोक्त वर्गों के आधार पर व्यावसायिक पत्रों की प्रभावशीलता का अध्ययन किया जायेगा।

    व्यावसायिक /व्यापारिक पत्र के गुण
           

    (1) पत्र का बाहरी स्वरूप 

    किसी भी पत्र के प्राप्त होते ही उसके बाह्य स्वरूप का पत्र प्राप्तकर्ता पर प्रत्यक्ष एवं सीधा प्रभाव पड़ता है जो पत्र प्राप्तकर्ता को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। अतः यदि बाह्य स्वरूप आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण है तो यह व्यवसायी के हितों के अनुकूल होता है। इसीलिए कहा जाता है कि "पहला प्रभाव, अन्तिम प्रभाव होता है।"

    1. आलेखन सामग्री 

    व्यावसायिक पत्रों के बाह्य स्वरूप के अन्तर्गत आलेखन सामग्री को सम्मिलित किया जाता है। व्यापारिक पत्रों को लिखने के लिए जिस सामग्री का प्रयोग किया जाये, वह व्यापार के प्रकार, प्रगति एवं आर्थिक स्तर के अनुकूल होनी चाहिए। जिस कागज का प्रयोग किया जाये, वह श्रेष्ठ, चिकना एवं आकर्षक होना चाहिए। जो कागज प्रयोग किया जाना है, वह अत्यधिक महँगा भी न हो तथा जहाँ तक सम्भव हो, कागज सफेद होना चाहिए प्रयुक्त कागज पर लगने वाला रिबन एवं स्याही भी उससे मिलते-जुलते होने चाहिए। राइटिंग पैड वाले कागज पर प्रेषक के नाम का शीर्षक भी मुद्रित होना चाहिए। सामान्यतः छोटे पत्र की बड़े कागज में भेजना एवं लिखना व्यावहारिक नहीं होता है। इससे व्यवसायी के प्रति नकारात्मक सोच उत्पन्न होती है।

    2. कागज का रंग 

    प्रत्येक व्यवसायी एवं प्रतिष्ठान सामान्य रूप से पत्र के लिए सफेद कागज का प्रयोग करते हैं। कुछ प्रतिष्ठान या व्यापारी रंगीन कागजों का भी प्रयोग करते हैं। यदि व्यापारी द्वारा रंगीन कागज का प्रयोग किया जाये तो उसे उससे मिलते-जुलते रिबन एवं स्याही एवं प्रयोग करना आवश्यक होता है, ताकि दोनों में सामंजस्य बना रहे।

    3. कागज का आकार

    अधिकांशतः व्यापारिक संस्थानों/कार्यालयों में लैटरपैड के दो आकार ज्यादा प्रचलित हैं-

    (अ) 10" x 8" तथा 5.1/2 x , 8x1/2"। कभी-कभी 8.3/4 , x 11.1/ 4"अथवा 6" x 8.1/4" आकार वाले कागजों का प्रयोग किया जाता है। सामान्य रूप से आकार के सम्बन्ध में निश्चित नियम नहीं होते हैं। व्यवसायी तथा व्यवसाय की आवश्यकता के अनुसार कागज का आकार छोटा अथवा बड़ा हो सकता है। बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों एवं कार्यालयों में प्रायः सभी प्रकार के कागजों का प्रयोग किया जाता है।

    4. टाइप करना 

    यदि किसी व्यवसायी द्वारा किसी दूसरे व्यापारी को पत्र टाइप करके भेजा जा रहा है तो ऐसी दशा में निम्नांकित महत्वपूर्ण बातों को दृष्टिगत रखा जायेगा।

    (i) सजावट -  पत्र को अत्यन्त सावधानीपूर्वक सजावट के साथ टाइप किया जाना चाहिए। इसके अन्तर्गत पत्र के दायें-बायें, ऊपर-नीचे पर्याप्त जगह छोड़नी चाहिए तथा लाइनों के मध्य जगह (स्पेस) 'डबल' होने चाहिए, परन्तु यदि विषय-सामग्री ज्यादा है अथवा पत्र लम्बा है तो 'सिंगल' (स्पेस) में पत्र को टाइप करना ज्यादा ठोंक होगा। सामान्यत: व्यापारिक पत्रों को 'ट्रिपल' (स्पेस) में टाइप नहीं किया जाता है। इस प्रकार पत्र की सजावट टाइप पत्र का प्रथम महत्वपूर्ण तत्व होता है।

     (ii) हाशिया देना- सामान्यतः पत्रों के बाय और प्रायः 3/4 x 1.1/4" तक का मार्जिन दिया जाता है,परन्तु पत्र के दायीं ओर का मार्जिन इससे आधा रखा जाता है। दायीं ओर के मार्जिन के लिए टाइपिंग के दौरान नशीन की बजने वाली घण्टी का ध्यान रखना जरूरी होता है।

    (iii) पैराग्राफ- पैराग्राफ के सन्दर्भ में व्यापारिक पत्रों को टाइप करते समय दो विधियों का प्रयोग किया जाता है- पहला, इंग्लिश तथा दूसरा, अमेरिकन इंग्लिश विधि के अनुसार 5 से 10 डिग्री तक की स्पेस नया पैश के लिए छोड़ना आवश्यक होता है, जबकि इसके विपरीत अमेरिकन विधि के अन्तर्गत प्रत्येक नया पैरा मार्जिन जो निर्धारित है, उसी के आधार पर प्रारम्भ होता है, परन्तु इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है कि एक पैराग्राफ समाप्त होने के बाद नया पैराग्राफ शुरू होने के पहले डबल अथवा ट्रिपल स्पेस देते हैं, ताकि दोनों पैराग्राफ में अन्तर दिखे। 

    (iv) शुद्धता-  पत्र को टाइप करने वाले व्यक्ति को शुद्धता पर आवश्यक एवं विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। पत्र में गलतियाँ एवं ओवर राइटिंग न हो तो ज्यादा प्रभावी होते हैं। रबर के प्रयोग से भी अनावश्यक रूप से बचा जाना चाहिए।

    (v) रेखांकन- यदि पत्र कुछ अथवा अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों को उल्लिखित कर रहा है तो आवश्यक है कि पत्र टाइप करते समय इन्हें विशेष रूप से रेखांकित किया जाये, ताकि प्राप्तकर्ता का ध्यान इन लिखित महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर स्वमेव आकर्षित हो।

    5. लिफाफा, कार्बन एवं रिबन

     व्यापारिक कार्यालयों एवं संस्थानों में सामान्य रूप से आयताकार लिफाफों का प्रयोग किया जाता है, चौकोर लिफाफों का प्रयोग नहीं किया जाता है। सामान्यतः 3.1/4" x 6" से 3.1/2" x 6.3/4  आकार के लिफाफे अधिकांशतः प्रयोग किये जाते हैं। यदि  व्यापारिक पत्रों के साथ प्रलेखों को नत्थी करना हो तो इस हेतु 4.1/4" x 9.1/4"  से 5" x 11" के आकार वाले लिफाफे प्रयोग किये जाते हैं। लिफाफे के बायीं और प्रेषक का नाम एवं पता लिखा जाता है। कुछ व्यापारिक संस्थान, जैसे, एल.आई.सी., यू.टी.आई. एवं अन्य वित्तीय संस्थाएँ पारदर्शी लिफाफों (Window Envelopes) का प्रयोग करती हैं तथा पत्रों के ऊपर आवश्यकता एवं महत्व के अनुसार स्थानीय (Secret or Confidential), व्यक्तिगत (Personal), रजिस्टर्ड (Registered), अति आवश्यक (Urgent), हवाई डाक ( Air Mail) जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो पत्र की आवश्यकता एवं महत्ता को स्पष्ट करते हैं।

    6. पत्रों को मोड़ना एवं लिफाफे में रखना 

    पत्रों को टाइप करने के पश्चात् अत्यन्त सावधानी से मोड़ना चाहिए, ताकि एकरूपता की स्थिति बनी रहे। इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि पत्र अनावश्यक रूप से मुड़े नहीं। सामान्यतः प्रतिष्ठित एवं व्यावसायिक घराने इसके लिए फोल्डिंग मशीनों की सहायता लेते हैं।

    7. मुद्रांकन

    पत्र लेखन की सम्पूर्ण प्रक्रिया के पश्चात् उस पर पर्याप्त एवं उचित मुद्रांकन आवश्यक होता है। जिन कार्यालयों में फ्रैंकिंग मशीन' (Franking Machine) का प्रयोग किया जाता है, वहाँ पत्रों पर टिकट लगाने की आवश्यकता नहीं होती है।

    (2) पत्रों की विषय-सामग्री 

    व्यावसायिक पत्रों के अन्तर्गत एक प्रभावी पत्र में विषय सामग्री में निम्न तत्वों को समावेशित किया जाता है-

    1. पूर्णता सम्बन्धी घटक 

    व्यापारिक पत्रों में समस्त आवश्यक बातों को समावेशित करना चाहिए। की भी बात छूटनी नहीं चाहिए अन्यथा इस सन्दर्भ में पुनः पत्राचार करना होगा। इससे धन एवं समय दोनों का अपव्यय होता है। अतः व्यवसायी को पत्र में समस्त बातों का उल्लेख करना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यापारी को माल सम्बन्धी आदेश देना है तो वस्तु की किस्म, वस्तु की मात्रा, वस्तु की कीमत, पैकिंग का तरीका, सुपुर्दगी का समय एवं प्रकार, भुगतान की विधि समेत समस्त बातों का उल्लेख करने से व्यापक सुविधा होती है जो सामान्यतः दोनों पक्षों के लिए बेहतर होता है।

    2. नम्रता सम्बन्धी घटक 

    व्यापारिक पत्रों में प्रयुक्त भाषा अत्यधिक संयमित एवं शिष्टतापूर्ण होनी चाहिए। इसके लिए पत्रों के भीतर कृपया (Please), धन्यवाद (Thanks) जैसे अनुकूल शब्दों का चयन करना चाहिए। इस प्रकार विनम्रता का प्रयोग अन्ततः व्यापक व्यावसायिक सफलता प्रदान करता है। इसलिए कहा जाता है कि नम्रता का प्रदर्शन हमें अन्य लोगों की श्रद्धा एवं सहानुभूति दिला देती। है जबकि हमें इसके लिए देना कुछ नहीं पड़ता नम्रता का प्रयोग न केवल नम्र भाषा के प्रयोग द्वारा बल्कि शीघ्रातिशीघ्र प्रति उत्तर देकर भी किया जा सकता है। सामान्य रूप से भाषा की क्लिष्टता एवं अशिष्ट भाषा के प्रयोग से बचा जाना चाहिए। शिकायती एवं भुगतान सम्बन्धी पत्रों में विशेष रूप से सजगता आवश्यक है।

    3. शुद्धता सम्बन्धी घटक 

    व्यापारिक पत्रों की विषय-सामग्री के अन्तर्गत शुद्धता पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। सामान्यतः इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि पत्र ई असत्य एवं मिथ्या तथ्यों के लेखन से बचा जाये। इससे भविष्य में अनावश्यक रूप से असुविधा एवं भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न होती है। अतः आवश्यक है कि समस्त तथ्य एवं आँकड़े जो वस्तु की शर्तों एवं निर्णय समेत अन्य बातों से सम्बन्धित हों, पूर्णतः शुद्ध होने चाहिए। अतः आवश्यक है कि बिल, प्रोनोट, हुण्डी, बीजक, खाता विवरण आदि महत्वपूर्ण प्रलेखों को अत्यधिक सावधानी से तैयार किया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण बात यह कही जाती है कि मिथ्या एवं गलत बातों के उल्लेख से व्यापार को अत्यधिक कीमत चुकानी पड़ती है। इससे व्यापार में एक और अनावश्यक पत्राचार बढ़ता है तो दूसरी ओर, व्यापार में व्यापक हानि भी उठानी पड़ती है। एक व्यापारी के लिए पत्र-व्यवहार में शुद्धता अनिवार्य है।"

    4. स्पष्टता सम्बन्धी घटक

    व्यापारिक पत्रों के सन्दर्भ में यथासम्भव इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए जिससे उसका सही अर्थ जाना जा सके। व्यापारिक पत्रों में असुविधाजनक, कड़े एवं भ्रमपूर्ण वाक्यांशों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में कहा जाता है कि "व्यापारिक पत्रों का प्रत्येक शब्द ऐसा होना चाहिए कि सामान्य से सामान्य बुद्धि वाला अक्ति भी इसे आसानी से समझ सके तथा पत्र को बार-बार पढ़ने की आवश्यकता न हो।" स्पष्टता के घटक के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक शब्द, वाक्य एवं शैली में सरलता का तत्व होना चाहिए।

    5. संक्षिप्तता सम्बन्धी घटक 

    व्यापारिक पत्रों के अन्तर्गत आवश्यक है कि इन्हें लिखते समय अनावश्यक शब्दों एवं विषयों से बचा जाये। एक ही शब्द एवं वाक्यांश को बार-बार दोहराना नहीं चाहिए। इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। व्यापारिक पत्र अनावश्यक रूप से लम्बा नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसे पत्रों को व्यापारी समयाभाव के कारण पढ़ते भी नहीं हैं, परन्तु इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय बात यह है कि संक्षिप्तता का मतलब यह नहीं है कि पत्र का विषय ही पूर्ण न किया जाये अथवा शुद्धता को छोड़ दिया जाये या शिष्टाचार को भूला जाये।

    6. प्रभावपूर्णता सम्बन्धी घटक 

    व्यापारिक पत्रों की विषय-सामग्री में प्रभावपूर्ण घटक भी महत्वपूर्ण होता है अर्थात् पत्र की भाषा अत्यधिक प्रभावपूर्ण होनी चाहिए, ताकि उसे पढ़ने वाला उससे प्रभावित हो और साथ ही ऐसी तर्क शैली अपनायी जाये जो प्राप्तकर्ता को पत्र के निर्धारित उद्देश्य पर सोचने को बाध्य करे। प्रभावपूर्णता का तात्पर्य है कि लेख व्यापारी जिसने पत्र लिखा; जिस उद्देश्य एवं कारण से लिखा; उस पर सोचने को प्राप्तकर्ता बाध्य हो भाषा स्वाभाविक होनी चाहिए। इसका प्रत्यक्ष एवं सीधा प्रभाव पड़ता है। पत्र की समाप्ति के पश्चात् हस्ताक्षर के उपरान्त शुभकामनाओं सहित, धन्यवाद, कष्ट के लिए क्षमा जैसे शब्दों का प्रयोग करना विशेष प्रभाव छोड़ता है।

    7. सरलता सम्बन्धी घटक 

    व्यापारिक पत्र की भाषा सरल एवं सुबोध होनी चाहिए। व्यापारिक पत्रों में लिखते समय व्यवसायी को मुहावरेदार, क्लिष्ट एवं उच्चकोटि की शैली के प्रयोग से बचना चाहिए। जो भी लिखा जाये, वह उद्देश्यपूर्ण एवं सरल तथा स्पष्ट हो तो ज्यादा अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण होगा।

    8. चातुर्यपूर्ण घटक 

    व्यापारिक पत्रों में व्यवसायी को इस तत्व का विशेष ध्यान रखना चाहिए। चातुर्य अथवा चतुरता से तात्पर्य यह नहीं है कि व्यवसायी अपनी बात को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करे। इसके बाद में व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः स्पष्टता, सरलता, शुद्धता, नम्रता के साथ गुणों के सामूहिक रूप को चातुर्य कहा जाता है। चातुर्य को 'कूटनीति' नहीं कहा जा सकता है। 

    9. पाठकों की आवश्यकता का ध्यान

    व्यापारिक पत्रों की विषय-सामग्री में लेखन के दौरान इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाये कि पत्र का प्राप्तकर्ता आपसे किस बात की अपेक्षा करता है। जहाँ तक सम्भव हो सके, उसकी आवश्यकताओं को पूर्ण करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

    10. सन्तुष्टता सम्बन्धी घटक

    व्यापारिक पत्रों के लिखने का ढंग ऐसा होना चाहिए कि पत्र प्राप्तकर्ता इसे प्राप्त करते ही सन्तुष्ट हो जाये अर्थात् पत्र व्यापक सन्दर्भों समेत प्रत्येक महत्वपूर्ण तत्व के सम्मिश्रण से ओत-प्रोत होना चाहिए। यथासम्भव प्रथम बार में सभी बातों को सम्मिलित करने से प्राप्तकर्ता को शंका अथवा प्रतिप्रश्न करने की आवश्यकता नहीं होती है।।

    11. मौलिकता सम्बन्धी घटक 

    पत्र में बनावटी शब्दों के प्रयोग से बचा जाना चाहिए बल्कि इसके विपरीत भाषा पूर्णतः मौलिक रहने से प्राप्तकर्ता पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है। पत्र लिखने की मौलिक विधियाँ व्यवहार एवं विक्रय दोनों को बढ़ाती हैं। अपनत्व सम्बन्धी घटक (Personal touch) मे 'मौलिकता में वृद्धि होती है।

    12. ऐक्यता सम्बन्धी घटक

    व्यापारिक पत्रों को लिखते समय दो बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए- पहला, प्रत्येक विचार को क्रम के अनुसार उचित स्थान पर प्रकट किया जाये तथा दूसरा, प्रत्येक विचार तर्कपूर्ण एवं एक-दूसरे से सम्बन्धित होना चाहिए।

    13. आकर्षण सम्बन्धी घटक

    व्यापारिक पत्रों की विषय-सामग्री में आकर्षण सम्बन्धी तत्व भी महत्वपूर्ण होता है। व्यापारिक पत्रों को भाषा-शैली एवं प्रस्तुतीकरण ऐसी होनी चाहिए जिससे प्राप्तकर्ता उसे मिलने के बाद उसे बार-बार पढ़ने को बाध्य हो ऐसा न हो कि वह पत्र को रद्दी की टोकरी में फेंक दे।

    14. उपयुक्त योजना

    पत्र को लिखने के पूर्व व्यापारी को अपने मस्तिष्क में उपयुक्त योजना को बना लेना चाहिए। इस सन्दर्भ में यह कथन महत्वपूर्ण है कि "Plan the work, then work the plan." अर्थात् पत्र को लिखने के पूर्व विचार कर लेना चाहिए कि पत्र में क्या-क्या लिखना है? पत्र लेखन के पूर्व उसकी विषय-सामग्री, भाषा, पत्र लिखने का उचित समय, सम्पूर्ण जानकारी के बाद पत्र लिखा जाये तो बेहतर होगा। इसलिए कहा जाता है कि "ऋण वसूली के लिए लिखे गये पाँच पत्र, शीघ्रता से लिखे गये। पचास पत्रों की अपेक्षा ज्यादा सफल होते हैं।"

    15. रुचिपूर्णता सम्बन्धी घटक 

    व्यापारिक पत्रों की  विषय सामग्री में रुचिपूर्णता भी महत्वपूर्ण होती है। यदि पत्र में रोचकता नहीं है तो प्राप्तकर्ता इससे आकर्षित नहीं होता तथा पत्र लिखने का उद्देश्य व्यर्थ हो जाता है। ई.एल. फ्रेली (E.I.. Fralee) ने पत्र को रुचिपूर्ण बनाने के लिए निम्नांकित सुझाव दिये हैं-

    (i) पत्र का प्रारम्भ बातचीत की भाषा में किया जाना चाहिए।

    (ii) पत्र स्वाभाविकता से परिपूर्ण होना चाहिए। 

    (iii) पत्र में अशिष्टता के प्रयोग से यथासम्भव बचा जाना चाहिए।

    (iv) पाठक को एक या दो बार उसके नाम के पत्रों में सम्बोधित करने से ज्यादा प्रभाव पड़ता है। 

    (v) पत्र का प्रारम्भ 'आप' शब्द से होना चाहिए तथा प्रथम पुरुष शब्द का प्रयोग कम से कम होना चाहिए।

    (vi) पत्र में परम्परागत घिसी-पिटी भाषा के स्थान पर रोचक, यथार्थ शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

    (vii) पाठक के मनोविज्ञान को समझने का प्रयास होना चाहिए। उस पर अपनी मान्यताओं को थोपने का कदापि प्रयास नहीं होना चाहिए।

    (viii) पत्र पाठक के व्यक्तित्व के अनुकूल होना चाहिए।

    (ix) पत्र में प्रसन्नता का भाव प्रकट होना चाहिए।

    (x) पत्र में बन्धुत्व एवं मित्रता का स्पष्ट भाव होना चाहिए।

    इस प्रकार व्यापारिक पत्र में यदि उपरोक्त बाह्य एवं आन्तरिक तत्वों को सम्मिलित किया जाये तो इसका व्यवसायी पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है जो अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों दृष्टियों से सकारात्मक प्रभाव डालते है। इन्हें व्यापारिक पत्रों के अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण घटक भी कहा जा सकता है।


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