एक व्यवसायी में सम्प्रेषण कुशलता में दक्ष होना आवश्यक है। यद्यपि व्यावसायिक जीवन में मानसिक के अतिरिक्त शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है और व्यावसायिक सफलता इस बात पर निर्भर होती है कि आप अपने ज्ञान, विचारों व अनुभवों को अन्य लोगों तक समूह चर्चा, साक्षात्कार, संगोष्ठियों, अधिवेशनों व अपने व्याख्यानों भाषणों इत्यादि सम्प्रेषण के माध्यमों से किस सीमा तक प्रभावित करते हैं।
प्रस्तुतीकरण का आशय
'प्रस्तुतीकरण' से अभिप्राय श्रोताओं के एक छोटे समूह अर्थात् थोड़े से श्रोताओं के लिए पहले से हो तैयार किये गये भाषण से है। यह श्रोताओं एवं सम्बन्धित विषय के उद्देश्यों के अनुकूल होती है। इसका श्रोताओं के उपयुक्त होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह श्रोताओं को प्रकृति व परिस्थितियों से प्रभावित होती है, इसलिए प्रयुक्त सामग्री का प्रस्तुतीकरण प्रभावपूर्ण ढंग से लेना अत्यन्त अनिवार्य है। इस प्रकार प्रस्तुतीकरण मौखिक सम्प्रेषण एक रूप है, जिसमें पूर्व निर्धारित विषय पर श्रोता या श्रोता समूह को मौखिक निर्देश दिये जाते हैं।
प्रस्तुतीकरण के ढंग
प्रस्तुतिकरण के ढंग को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है-
1. व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण (Individual Presentation),
2. सामूहिक प्रस्तुतीकरण (Group Presentation)।
1. व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण
व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण से अभिप्राय केवल एक वक्ता द्वारा एक निर्धारित विषय से सम्बन्धित एक श्रोता या श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत किये गये। विचारों से है। व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण निम्न दो प्रकार का हो सकता है-
(i) जब एक वक्ता एवं एक श्रोता हो।
(ii) जब एक वक्ता एवं श्रोताओं का एक छोटा समूह हो।
2. सामूहिक प्रस्तुतीकरण
सामूहिक प्रस्तुतीकरण से अभिप्राय एक ही विषय पर कई वक्ताओं द्वारा श्रोताओं के सम्मुख अपने-अपने विचारों को प्रस्तुति से है। समूह के सभी सदस्य एक- निर्धारित विषय के विभिन्न पहलुओं को प्रकाशित करने के लिए आपस में परस्पर बँटवारा कर लेते हैं। समूह का एक नेता होता है जो सम्पूर्ण प्रस्तुतीकरण का संचालन करता है।
सामूहिक प्रस्तुतीकरण की अग्रलिखित विशेषताएँ होती हैं-
1. सामूहिक प्रस्तुतीकरण की योजना को निर्मित करने में विशेष रखनी होती है यद्यपि इसमें कई चक्ता सम्मिलित होते हैं। अतः प्रस्तुतीकरण के क्रम का निर्धारण अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है।
2. सामूहिक प्रस्तुतीकरण में इस बात पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है कि विभिन्न वक्ताओं के वक्तव्यों में सामंजस्य तथा समरसता हो। समूह की योग्यता/ व्यावसायिकता एवं क्षमता/कुशलता को प्रकट करने के लिए विभिन्न वक्ताओं द्वारा लिखित नोट/नवीनतम शैली का प्रयोग श्रेयस्कर होता है।
3. सामूहिक प्रस्तुतीकरण में समूह के विभिन्न सदस्यों को उनके क्रम के साथ-साथ विषय से सम्बद्ध दृश्य सामग्री के प्रस्तुतीकरण का ज्ञान होना आवश्यक है। मंच पर बैठने/खड़े होने एवं प्रवेश करने / छोड़ने का तरीका भी ज्ञात होना आवश्यक है।
4. सामूहिक प्रस्तुतीकरण में समापन का अपना विशेष महत्व होता है, अत: समापन का समय व समापन किस सदस्य द्वारा किया जायेगा व किस प्रकार किया जायेगा, इसका निर्धारण अत्यन्त ही आवश्यक है। जैसे, यदि समापन में सारांश प्रस्तुति की जाती है तो समूह के सदस्यों/श्रोताओं को विषय के महत्व एवं योगदान पर जानकारी देनी चाहिए और यदि समापन प्रश्नोत्तर सत्र को आयोजित करके किया जाता है तो इसकी योजना पूर्व में ही बनाना लाभप्रद होगा अर्थात् प्रश्न पूछने के लिए कौन आमन्त्रित करेगा ? उत्तर देने के लिए क्या दिशा-निर्देश होंगे ? समापन का एक मुख्य अंश धन्यवाद ज्ञापन होता है। समूह के सदस्यों को भी इस प्रकार प्रदर्शन करना चाहिए कि वे धन्यवाद ज्ञापन के समर्थक हैं।
5. सामूहिक प्रस्तुतीकरण का एक महत्वपूर्ण पक्ष समूह को पूर्वाभ्यास के लिए समय होता है अर्थात् सम्पूर्ण सामूहिक प्रस्तुतीकरण का पूर्वाभ्यास कई बार करना, एक-दूसरे का आलोचनात्मक मूल्यांकन व सुधार हेतु सुझाव देना, पूर्वाभ्यास के लिए गैर सदस्यों को आमन्त्रित कर उनकी राय/अभिमत लेकर उचित मूल्यांकन करना लाभप्रद होता है। अतः पूर्वाभ्यास की आमन्त्रित योजना सामूहिक प्रस्तुतीकरण का एक महत्वपूर्ण अंश है।
प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य
प्रस्तुतीकरण मुख्यतः नये उत्पाद को बाजारों में लाने / नये पाठ्यक्रम का प्रारम्भ करने/नयी अवधारणा से अवगत कराने / एक बैठक में योगदान / व्यवसाय के विकेन्द्रीकरण अर्थात् विस्तार के उद्देश्य से की जाती है। एक प्रस्तुतीकरण के निम्न उद्देश्य होते हैं-
1. एक वस्तु / सेवा/प्रणाली का प्रदर्शन करना (Presenting New Goods / Services/System)।
2. एक मॉडल / आकृति / रणनीति का निर्माण करना (Construct Model/ Layout/Policy)।
3. सहभागियों/सहयोगियों/अन्य व्यक्तियों/श्रोताओं का मनोरंजन करना (Entertainment of Participants/Audience and others)
4. एक वस्तु / सेवा / अवधारणा / विचार का विक्रय करना (Selling Goods / Services/Concept /Thoughts)।
5. एक समूह/विभाग का प्रतिनिधित्व करना (Represent a Group / Department)।
6. किसी समस्या के समाधान या किसी नवीन अवधारणा के सम्बन्ध में सुझाव को प्रस्तुत करना (Suggestions about any Solution or Problem/New Concept)
प्रस्तुतीकरण के प्रकार
प्रस्तुतीकरण के उद्देश्यों के अनुसार इसे निम्नलिखित प्रकारों में विभक्त किया जा सकता।
1. सूचनात्मक प्रस्तुतीकरण (Informative Presentation),
2. प्रेरणात्मक प्रस्तुतीकरण (Persuasive Presentation),
3. सद्भावनात्मक प्रस्तुतीकरण (Goodwill Presentation)।
1. सूचनात्मक प्रस्तुतीकरण
सूचनात्मक प्रस्तुतीकरण से अभिप्राय श्रोताओं को किसी विषय के बारे में स्पष्ट सूचना दे देने से है। एक संगठन में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम इसका व्यावहारिक उदाहरण है। इसके अन्तर्गत कर्मचारियों को कार्य करने का तरीका सिखाया जाता है एवं नये कर्मचारियों को संस्था की कार्य विधि से परिचय कराया जाता है।
2. प्रेरणात्मक प्रस्तुतीकरण
प्रेरणात्मक प्रस्तुतीकरण से अभिप्राय श्रोताओं को किसी विशेष कार्य को करने या एक विशेष आचरण/व्यवहार को ग्रहण/स्वीकार / अपनाने के लिए प्रेरित करने से है। इस प्रकार का प्रस्तुतोकरण श्रोताओं से सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसमें सूचनाओं को सत्य प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
3. सदभावनात्मक प्रस्तुतीकरण
एक प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण के प्रमुख चरण
एक प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण के निम्न प्रमुख चरण होते हैं—
1. उद्देश्य निर्धारण।
2. प्रस्तुतीकरण नियोजन ।
3. प्रस्तुतीकरण सामग्री की तैयारी
4. प्रस्तुतीकरण का अभ्यास।
5. प्रस्तुतीकरण के नियत दिन व तिथि के प्रति सचेतना ।
प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण के आवश्यक तत्व
एक प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण के नियोजन में निम्न बातें महत्वपूर्ण होती हैं-
1. श्रोताओं की पृष्ठभूमि।
2. श्रोताओं के ज्ञान का स्तर।
3. श्रोताओं की अच्छाइयाँ-बुराइयाँ।
4. प्रस्तुत अवधारणा से श्रोताओं को होने वाले लाभ-हानि।
5. प्रस्तुतीकरण का तरीका या ढंग ।
6. प्रस्तुतकर्ता का स्तर।
7. श्रोताओं पर डालने वाले प्रभाव का प्रकार।
8. प्रस्तुतकर्ता व श्रोताओं के मध्य समानता / असमानता ।
9. प्रस्तुत अवधारणा के सम्पूर्ण मुख्य बिन्दुओं के समझ की सम्भावना।
10. प्रस्तुतीकरण के महत्वपूर्ण बिन्दु ।
11. श्रोताओं की सम्भावित आपत्तियाँ।
12. प्रस्तुतीकरण का स्थान/दिन/समय।
13. श्रोताओं की सम्भावित संख्या।
14. सम्पूर्ण प्रस्तुतीकरण में आपकी स्थिति।
15. प्रयुक्त होने वाले दृश्य-श्रव्य सामग्री के सम्बन्ध में जानकारी।
16. प्रस्तुत अवधारणा से सम्बन्धित सामग्री का वितरण।
एक प्रस्तुतीकरण में समय का विभाजन
एक प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण में समय का स्थान अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। एक प्रस्तुतकर्ता को प्रस्तुतीकरण की समयावधि अर्थात् समय-सीमा की जानकारी होना नितान्त आवश्यक है। एक प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण के लिए पूर्व में हो समय-सीमा का विभाजन कर लेना अधिक उपयुक्त होता है। उदाहरणस्वरूप, एक प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण का समय विभाजन निम्न स्वरूप में किया जा सकता है-
1. परिचय में एक प्रस्तुतीकरण प्रभावपूर्ण उसी स्थिति में होगा जब प्रस्तुतीकरण के प्रथम चरण संक्षेप व श्रोताओं को आकर्षित करने वाला होना चाहिए। इसके लिए प्रस्तुतकर्ता कुल समय का एक प्रतिशत हिस्से का प्रयोग करे। यह वह समय है जब प्रस्तुतकर्ता श्रोताओं के मध्य अपनी साख की स्थापना करने का सफल प्रयास करता है।
2. प्रस्तुतीकरण के द्वितीय चरण में प्रस्तुतकर्ता श्रोताओं को मुख्य विषय से परिचित कराता है। इसके लिये प्रस्तुतकर्ता कुल प्रस्तुतीकरण के समय का 20 प्रतिशत हिस्से का प्रयोग करता है।
3. प्रस्तुतीकरण के तृतीय चरण में प्रस्तुतकर्ता श्रोताओं के समक्ष अपनी मुख्य अवधारणा / विषय को व्यवस्थित क्रम में प्रस्तुत करता है व प्रस्तुतीकरण के विभिन्न पहलुओं के मध्य सन्तुलन सम्बन्ध स्थापित करते हुए समरसता लाता है। इस हेतु वह सम्पूर्ण प्रस्तुतीकरण के अधिकांशतः अंश अर्थात् 40% हिस्से का प्रयोग करता है।
4. प्रस्तुतिकरण के चतुर्थ चरण में प्रस्तुतकर्ता विषय से सम्बन्धित समस्त मुख्य बिन्दुओं को समेकित करता है। इस क्रिया में किसी नये तथ्य का प्रस्तुतीकरण नहीं किया जाता। इस हेतु समस्त समय का 20% हिस्सा प्रयोग में लाया जाता है।
5. प्रस्तुतीकरण के अन्तिम चरण में प्रस्तुतकर्ता मुख्य सन्देश श्रोताओं को प्रेषित करता है मुख्य बिन्दुओं का संक्षेपण करते हुए वह समापन की ओर अग्रसर होता है। अन्त में श्रोताओं को धन्यवाद ज्ञापित करता है। प्रस्तुतकर्ता श्रोताओं को उनके धैर्य व संयम की सराहना कर अपने प्रस्तुतीकरण को अन्तिम स्वरूप प्रदान करता है। इस हेतु प्रस्तुतकर्ता सम्पूर्ण प्रस्तुतीकरण हेतु निर्धारित समय का 10% हिस्सा प्रयोग में लाता है।