विकास क्रम
प्राचीन समय में, जब व्यापार का क्षेत्र अत्यधिक सीमित था तथा धन एवं उत्पादन भी कम पैमाने पर किया जाता था, उस समय अधिकांश उत्पादन स्वयं के उपभोग के लिए किया जाता था |
क्योंकि उस दौरान व्यापार अत्यन्त सीमित था। इसके अतिरिक्त यह व्यापारिक प्रक्रिया परिचित या जानकारी व्यक्तियों के माध्यम से सम्पन्न होती थी जो परिचित व्यक्ति तक ही सीमित थी। विकास को उस प्रारम्भिक अवस्था में परिवहन के साधन अविकसित थे तथा संरचनात्मक ढाँचा लगभग शून्य था। ऐसी परिस्थितियों मैं किसी उपयुक्त आदर्श साधन की महती आवश्यकता प्रतिपादित की गयी तथा इस कारण से साधनों की खोज का क्रम प्रारम्भ हुआ।
धीरे-धीरे विज्ञान एवं तकनीक के विकास के क्रम के साथ-साथ परिस्थितियों में आमूल-चूल परिवर्तन ने व्यक्तियों की आवश्यकताओं में वृद्धि को प्रोत्साहित किया। फलस्वरूप आवश्यकताओं की वृद्धि तथा इनकी पूर्ति के लिए आवश्यक प्रणाली ने परिवहन एवं सन्देशवाहन के साधनों के आवश्यकता की महसूस किया तथा इनका विकास प्रारम्भ हुआ।
18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप देश-विदेश समेत सम्पूर्ण विश्व में उद्योग-धन्धों की स्थापना एवं निर्माण के साथ-साथ विकास की प्रक्रिया तेजी से प्रारम्भ हुई तथा व्यापार-व्यवसाय अब ग्राम स्तर तक सीमित न होकर प्रान्तीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप ग्रहण करने लगा।
इस व्यापारिक विकास क्रम में व्यापारिक पत्रों की आवश्यकता का अनुभव किया गया एवं इनका प्रादुर्भाव हुआ। कच्चे माल की आवश्यकता, निर्मित माल के विक्रय, निर्मित वस्तु के विज्ञापन तथा उसके विक्रय के लिए 'पत्र-व्यवहार' व्यवसाय का अनिवार्य अंग बन गया।
वर्तमान प्रतिस्पर्द्धात्मक औद्योगिक जगत् में इनका प्रयोग निरन्तर बढ़ रहा है। वस्तु के उत्पादन से लेकर उसके विक्रय एवं उसके पश्चात् तक पत्र-व्यवहार आवश्यक हो गया है। वस्तुओं के क्रय-विक्रय के सम्बन्ध में इनके भावों के सम्बन्ध में पूछताछ करना, तत्सम्बन्ध में निर्ख (Quotations) देना, आदेश को भेजना, क्रय-विक्रय किये गये माल के हेतु भुगतान चैक (Cheque), ड्राफ्ट (Draft) अथवा हुण्डी भेजना, रुपयों की बसूली हेतु तकादे के पत्र (During Letters) लिखना, माल के क्रय-विक्रय के पश्चात् उसमें खराबी अथवा त्रुटि होने पर सम्बन्धित पक्ष को इसकी जानकारी हेतु शिकायती पत्र देना, क्षतिपूर्ति की माँग करना।
इसके अतिरिक्त अन्य कार्यों, यथा, व्यापारिक एजेण्ट हेतु पत्र लिखना, बैंकिंग एवं बीमा कम्पनियों, रेलवे, पोस्ट ऑफिस आदि से आवश्यक पत्र-व्यवहार करना। इस प्रकार अनेकानेक कारणों से पत्र-व्यवहार आवश्यक एवं अनिवार्य हो गया है। पत्रों के महत्व को ध्यान में रखते हुए आवश्यक हो गया है कि पत्र बहुत गम्भीरता से तथा सोच-समझकर लिखा जाना चाहिए।
चूँकि पत्रों का सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक एवं कानूनी महत्व होता है, अतः इनके लेखन में व्यापक सावधानी आवश्यक है। यदि इसे सावधानीपूर्वक लिखा जाये तो इससे व्यापार एवं व्यापारी दोनों लाभान्वित होते हैं, परन्तु इसके विपरीत इसे लिखने में चूक (असावधानी ) हो जाये तो इससे आर्थिक हानि स कानूनी परेशानियाँ भी उठानी पड़ सकती है।
आर्थिक विकास तथा संवृद्धि को व्यवस्था ने वर्तमान समय में भ्रम को व्यापक गतिशीलता प्रदान की है। इसके फलस्वरूप न केवल व्यापारी अति परिचित मित्र, रिश्तेदार समेत अनेक व्यक्तियों को दूरियों में व्याप अन्तर तत्पन्न हुआ है।
इसका परिणाम यह हुआ कि महीनों एवं वर्षों के अन्तराल के बाद व्यक्ति, तथा सम्बन्धियों का मिलना सम्भव हो पाता है। अत: इस समय अन्तराल तथा दूरी के अन्तर के कारण जिस साधन का प्रयोग इसे कम करने के लिए किया जाता है, उसे 'पत्र-व्यवहार' कहा जाता है। इससे न केवल दूरियों का अन्तराल समाप्त हो है बल्कि सम्बन्धों में निरन्तरता, आवश्यक जानकारियों का आदान-प्रदान में व्यापक सुविधा होती है।
व्यापारिक पत्र-व्यवहार का अर्थ
जब दो व्यक्ति अथथा दो व्यापारी जो एक दूसरे से काफी दूर रहकर व्यापार का संचालन करते हैं अपने व्यापार को बढ़ाने का प्रयास करते हैं तो इस सन्दर्भ में वे आपस में पत्र-व्यवहार को साधन के रूप में प्रयोग करते हैं। जब व्यापारिक जानकारियों, गतिविधियों के सम्बन्ध में दो व्यापारी आपस में पत्र-व्यवहार करते हैं तो इस पत्र-व्यवहार की प्रक्रिया की 'व्यापारिक पत्र-व्यवहार' कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में व्यापारिक पत्र वे पत्र होते हैं। जी व्यापार के विभिन्न कार्यों से सम्बन्धित होते हैं। ऐसे पत्र सामान्यतः पूछताछ, निर्ख, तगादे, आदेश, शिकायत विज्ञापन, भुगतान अथवा अन्य किसी व्यापारिक कारण से सम्बन्धित हो सकते हैं। वर्तमान समय में व्यापारिक पत्र को व्यवसाय की सफलता का कारण माना जाता है।
व्यापारिक पत्र-व्यवहार का महत्व
व्यापारिक पत्रों के महत्व के सम्बन्ध में एच. एन. कैसन (H. N. Casson) ने लिखा है कि "श्रेष्ठ व्यापारिक पत्र ऐसी कुंजी है, जो सफलता के द्वार खोलता है। यह आपके व्यवसाय को वस्तुओं या सेवाओं के लिए मार्ग खोलता है। यह व्यवसाय के वास्तविक चरित्र की कहानी कहता है। व्यापारिक पत्रों के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. व्यक्तिगत सम्पर्क की तुलना में ज्यादा प्रभावशाली होना
सामान्यत: व्यक्तिगत सम्पर्क की तुलना में पत्र-व्यवहार ज्यादा महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि व्यक्तिगत सम्पर्क के दौरान सम्भव है कि कुछ ऐसी बात हो जाये जो विवाद को उत्पन्न करे तथा व्यावसायिक दृष्टि से हानिप्रद हो।
इन परिस्थितियों से बचाव एवं सुरक्षा की दृष्टि से पत्र-व्यवहार ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी बातें भी है जो व्यक्तिगत सम्पर्क में सम्भव नहीं है। जैसे, कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें व्यक्तिगत रूप से कहने का साहस नहीं होता, किन्तु इसे पत्र के माध्यम से बिना किसी संकोच के व्यक्त किया जा सकता है। इसके अलावा लिये गये पूर्व वार्ता के निर्णयों को सम्पुष्टि पत्र-व्यवहार में सम्भव हो जाती है।
इसके अलावा विभिन्न व्यापारी जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहते हैं. व्यक्तिगत सम्पर्क सम्भव नहीं होने के कारण अथवा प्रत्येक स्थान पर जाना अत्यन्त व्ययपूर्ण होने के कारण पत्र-व्यवहार ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। इन्हीं तमाम कारणों से कहा जाता है कि "जिह्वा की तुलना में कलम या पत्र-व्यवहार ज्यादा महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली होता है।"
2. साक्ष्य (प्रमाण) के रूप में अत्यधिक महत्वपूर्ण होना
सामान्यत: पत्र-व्यवहार विवाद अथवा अन्य परिस्थितियों में ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं तथा इन्हें न्यायालय में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इससे सामान्यतः उस व्यक्ति/संस्था को लाभ प्राप्त होता है है जिसके पास लिखित प्रमाण होता है।
3. लिखित विवरण ज्यादा महत्वपूर्ण
सामान्यत: व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो तथा उसको स्मरण शक्ति कितनी भी तेज हो, परन्तु प्रत्येक बात को लम्बे समय तक ध्यान में रखना सम्भव नहीं होता है। अतः उस दशा में मात्र पत्र-व्यवहार ही उसकी सुरक्षा का एक उपाय है। जो व्यापारी प्रतिदिन सैकड़ों व्यक्तियों से सम्पर्क एवं लेन-देन करता हो, उसके लिए लिखित रखना ज्यादा जरूरी होता है तथा समय आने पर सम्बन्धित दस्तावेज (बही) में देखकर वह अग्रिम कार्यवाही कर सकता है।
4. पत्र-व्यवहार ज्यादा महत्वपूर्ण होता है
सम्पर्क के अन्य साधन सामान्यतः अधिक व्ययपूर्ण होते हैं। जिस व्यापारी अथवा व्यक्ति का सम्पर्क अनेक व्यक्तियों, संस्थाओं से होता है, इसके लिए सम्भव नहीं होता है कि वह प्रत्येक से सामान्य से लेकर विशिष्ट जानकारी दूरभाष, फैक्स, ई. मेल से प्राप्त करे। इसमें ज्यादा खर्चपूर्ण स्थितियाँ उत्पन्न होती है। अतः पत्र-व्यवहार ऐसा साधन है जो कम खर्च पर ज्यादा व्यक्तियों से सम्पर्क का माध्यम बन जाता है।
5. शिकायतों का समाधान होना
व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के इस युग में व्यापारियों के मध्य सामान्यतः आपसी विवाद की स्थितियाँ उत्पन्न होती रहती हैं जो लेन-देन अथवा किसी अन्य कारण से सम्बन्धित हो सकती हैं। प्रायः प्रत्येक समस्या का निराकरण दूरभाष से सम्भव नहीं होता है |
क्योंकि इससे व्यय भार भी बढ़ता है तथा अल्प समय में अपनी बात कहना सम्भव भी नहीं हो पाता है। ऐसी दशा मैं पत्र-व्यवहार ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पत्र के माध्यम से सम्बन्धित शिकायत अथवा जानकारी को विस्तृत रूप से व्यक्त किया जा सकता है। इसके अलावा इसमें विनम्र भाषा का प्रयोग होने से सम्बन्धित पक्ष पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
6. व्यवसाय के विस्तार में सहायक
वर्तमान व्यावसायिक परिस्थितियों में प्रत्येक व्यापारी को प्रतिस्पद्धात्मक स्थितियों का सामना करना पड़ता है। चूँकि प्रत्येक व्यापारी या उत्पादक अपने माल को अधिक से अधिक मात्रा में बेचने का प्रयास करता है, अतः इसके लिए वह विक्रय कला के माध्यम 'विज्ञापन' का सहारा होता है। इससे उसके अनेक व्यक्तियों से न केवल सम्बन्ध बनते हैं बल्कि उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग में भी वृद्धि होती है एवं व्यापारी के व्यवसाय का भी विस्तार होता है।
7. पुराने सम्बन्धों में दृढ़ता
सामान्यतः व्यापारियों के आपस में सम्बन्ध बनते हैं एवं बिगड़ते हैं। कुछ नये सम्बन्ध सृजित होते हैं तो कुछ पुराने खत्म होते हैं। व्यवसायी की समय व्यस्तता के कारण ऐसे सम्बन्धों की निरन्तरता में व्यवधान होता है, लेकिन पत्र-व्यवहार ऐसा सशक्त माध्यम है जो नवीन सम्बन्धों में दृढ़ता समेत पुराने सम्बन्धों को और ज्यादा मजबूती प्रदान करता है।
8. अप्रिय एवं गलत निर्णयों को सरलता से अस्वीकार करना
सामान्यतः व्यवसाय के अन्तर्गत आपसी लेन-देन के दौरान कुछ अप्रिय एवं विषम स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है। प्रत्यक्षतः व्यवसायी इन स्थितियों के सम्बन्ध में सीधे अथवा प्रत्यक्ष रूप से कुछ कहना नहीं चाहता है क्योंकि इन प्रत्यक्ष बातों से व्यवसाय समेत देखने वाले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अतः प्रत्येक समझदार व्यवसायी इन स्थितियों से बचना चाहता है। ऐसी परिस्थिति में व्यापारिक पत्र उसकी सहायता करते हैं क्योंकि ऐसे अप्रिय या गलत निर्णयों को पत्र के माध्यम से सरलतापूर्वक अस्वीकार किया जा सकता है।
9. साख-निर्माण में व्यापक रूप से सहायक
व्यापारिक पत्र व्यवसायी की साख निर्माण में व्यापक रूप से सहायता करते हैं। ऐसे पत्रों की निरन्तरता व्यापारी को भविष्य में आदेश देने हेतु प्रेरित करती रहती है जो व्यवसाय के लिए अत्यधिक अनुकूल बात है।
10. ऋणों की वसूली में सहायक
वर्तमान व्यावसायिक जगत् में उधार लेन-देन वृहद् रूप में व्यवसाय का अंग है तथा उधार प्रक्रिया व्यवसाय का अनिवार्य अंग बन गयी है किन्तु उधार देने के बाद ऐसे ऋणों की वसूली समस्या बन गयी है तथा ऐसे अशोध्य ऋणों की वसूली में व्यापक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। व्यापारिक पत्र इस कार्य में भी व्यवसायी की मदद करते हैं। इनके माध्यम से अशोध्य ऋणों की वसूली में सरलता होती है।
11. अधिक प्रभावी होना
सामान्य किन्तु महत्वपूर्ण कथन है कि "जिहा तुलना में कलम ज्यादा प्रभावी एवं सशक्त होती है।" जो बात कहने में संकोच पैदा करे अथवा कहने के बाद कौ उसके प्रतिकूल परिणाम प्राप्त हों, ऐसी दशा में बचने के लिए कलम (पत्र) ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं तथा इन माध्यम से ज्यादा प्रभावी एवं सशक्त रूप से तथ्यों, जानकारियों एवं बातों को रखा जा सकता है।
इस प्रकार उपरोक्त आधारों पर हम कह सकते हैं कि व्यापारिक पत्र व्यवसाय का नाड़ी तन्त्र है जिसके बिना वर्तमान व्यवसाय की परिकल्पना सम्भव नहीं है।
व्यापारिक पत्र का ढाँचा/संरचना
सामान्यतः व्यापारिक पत्र इस प्रकार से लिखना चाहिए जिससे प्राप्तकर्ता उस पर प्रथम दृष्टि के साथ प्रभावित हो तथा वह यह जानने का प्रयास करें कि सम्बन्धित पत्र किसने लिखा है, किस विषय से सम्बन्धित है इत्यादि । सामान्य रूप से लेखन के प्रचलित ढंग को परिवर्तित नहीं करना चाहिए। श्री एल. के. फ्रेली ने स्पष्ट करते हुए कहा कि "पत्र के ढाँचे को मनुष्य के अस्थिपंजर के समान समझना चाहिए जिसके ऊपर माँस, चर्म अथवा अन्य बातें अलग-अलग होने के कारण रूप परिवर्तित दिखलाई देता है, परन्तु सभी मनुष्यों के अस्थि-पंजर एक से होते हैं।"
व्यापारिक पत्रों के अंग
व्यापारिक पत्र विभिन्न भागों में बँटा होता है। इसके प्रत्येक भाग का अपना अलग महत्व होता है। जिस प्रकार शरीर के प्रत्येक अंग का अलग महत्व एवं क्रियाशीलता होती है, वही स्थिति व्यापारिक पत्रों के विभिन्न भागों की होती है। जिस प्रकार शरीर के प्रत्येक भाग का एक-दूसरे से सम्बन्ध एवं तारतम्य होता है, उसी प्रकार से व्यापारिक पत्र के विभिन्न भागों का आपस में होता है। एक के बिना दूसरा अधूरा होता है। वर्तमान प्रचलित
पद्धति के अनुसार व्यापारिक पत्र के मुख्य भाग निम्नलिखित हैं-
(1) शीर्षक (Heading),
(2) दिनांक (Date),
(3) पाने वाले का नाम एवं पता (Inside Address),
(4) अभिवादन (Salutation),
(5) विषय शीर्षक (Subject-heading),
(6) पत्र का मुख्य भाग (Body of the Letter),
(7) प्रशंसात्मक वाक्य (Complimentary Clause),
(8) हस्ताक्षर (Signature),
(9) पद (Designation),
(10) संलग्न (Enclosure),
(11) पुनश्च (Post Script or P.S.),
(12) टाइप लिपिक के हस्ताक्षर (Initial of the Typist) |
व्यापारिक पत्र का प्रारूप
(1) शीर्षक
व्यापारिक पत्र के शीर्षक के अन्तर्गत निम्नांकित बातों का समावेश किया जाता है—
(i) फर्म का नाम (Name of the firm ),
(ii) व्यापार की प्रकृति (Nature of the business),
(iii) पता (Address),
(iv) तार का पता (Address of telegram),
(v) टेलीफोन नम्बर (Telephone number),
(vi) मोबाइल नम्बर (Mobile number),
(vii) ई-मेल (E-mail)।
(viii) कोड का नाम एवं अन्य बातें जो कि पत्र-व्यवहार की दृष्टि से देना आवश्यक होता है। चूँकि उपरोक्त कारणों को प्रत्येक पत्र के साथ देना आवश्यक होता है, अतः व्यवसायी इन्हें अपने लेटरपैड में कलात्मक रूप से मुद्रित करा लेते हैं। फर्म का नाम पत्र के मध्य में ऊपरी भाग में दिया जाता है। तार का पता, टेलीफोन, मोबाइल एवं ई-मेल नम्बर तथा कोड का नाम प्रायः इसके नीचे हाथ की ओर छपाया जाता है, जबकि इसके विपरीत दुकान का नम्बर, मुहल्ला एवं शहर का नाम दाहिने हाथ की ओर छपाये जाते हैं।
सामान्यतः शीर्षक के सम्बन्ध में निम्नांकित महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना आवश्यक होता है-
1. बायें हाथ की ओर दी जाने वाली सूचनाएँ मार्जिन से एक समान दूरी से प्रारम्भ की जानी चाहिए। इनमें से प्रत्येक के साथ कोलन (:) लगा देना चाहिए। इसके पश्चात् नाम एवं संख्या दी जाये।
2. फर्म के नाम के बाद 'कोमा' अथवा 'फुल स्टॉप' नहीं लगाना चाहिये।
3. बायें हाथ की ओर प्रत्येक सूचना, परती सूचना से 5 'स्पेस' (Space) हटाकर दी जाये।
उदाहरण 1.
पुस्तक प्रकाशक एवं विक्रेता
तार का पता : 'बुक'
टेलीफ़ोन : ...............................................
कोड : एक्स .वाई.जेड. 25,माल रोड,
(द्वतीय संस्करण ) कानपुर
संदर्भ संख्या : .................................................
(2) दिनांक
प्रत्येक पत्र के साथ दिनांक का होना आवश्यक एवं अनिवार्य होता है तथा यह भी आवश्यक होता है कि दिनांक पूरा लिखा जाये। कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर दिन कानूनी कार्य में अत्यन्त मददगार होते हैं। दिनांक दाहिने हाथ को और शहर (City) के नीचे लिखा जाता है। अब पत्र के मध्य में दिनांक लिखना लोकप्रिय होता जा रहा है। सामान्यतः दिनांक का उल्लेख विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है-
(i) 14.07.2014 अथवा 14.07.2014 या 14-7/14
(ii) जुलाई 14, 2014 (अमेरिकन तरीका)
(iii) 14 जुलाई 2014 (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तरीका)
सामान्यतः प्रथम तरीका अब प्रयोग नहीं किया जाता तथा व्यापारिक पत्रों में इसका प्रयोग नहीं करना
चाहिए दिनांक लिखने सम्बन्धी उदाहरण निम्नार्थ है-
(3) पाने वाले का नाम एवं पता
सामान्यत: इसे भीतरी पता (Inside Address) भी कहा जाता है। इसमें पत्र पाने वाले का पूर्ण पता दिया। जाता है जिसके आधार पर कार्यालय का लिपिक (डिस्पेच) लिफाफे पर पता लिख सके। पूर्ण पता होने से महत्वपूर्ण लाभ यह होता है कि वैधानिक कार्यवाही करने पर सम्बन्धित व्यक्ति को 'पहचान' (Identity) प्रमाणित की जा सकती हैं। पत्रों में डिग्री एवं पदवियों/ उपाधियाँ भी लिखी जानी चाहिए लेकिन यदि इनकी संख्या ज्यादा हो तो प्रमुख डिग्रियों एवं उपाधियों को उल्लेखित करना चाहिए।
समस्त पत्र-व्यवहार में आदरसूचक शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए, यथा, श्रयुत, माननीय, आदरनीय, मिस्टर, श्रीमान: इसके अलावा पत्र में नाम के पश्चात् 'जो' (Esq.) भी लिखा जा सकता है लेकिन 'मिस्टर' एवं 'एक्वायर (Mr. & Esq.) दोनों एक साथ नहीं लिखे जा सकते हैं स्त्रियों से पत्र-व्यवहार के दौरान यदि आववाहित है तो नाम के पूर्व 'कुमारी' (Miss) तथा विवाहितों के नाम के पूर्व ' श्रीमती' (Mrs.) का प्रयोग किया जा सकता है।
अन्दर का पता लिखने का तरीका-
अमेरिकन तरीका- जबलपुर एक्सरे पैथी सेण्टर,
टेलीग्राफ गेट नं. 2.
राइट टाउन,
जबलपुर 482002
अंग्रेजी तरीका- जबलपुर एक्स-रे पैथों सेण्टर
टेलीग्राफ गेट नं. 2
राइट टाउन,
जबलपुर 482002
विभिन्न स्थितियों में अन्दर के पंते - सामान्यतः व्यापारिक पत्र निम्न को लिखे जा सकते हैं-
(i) एक व्यक्ति (Individual),
(ii) एक फर्म (Firm),
(iii) एक लिमिटेड कम्पनी (Limited) Company),
(iv) एक सोसाइटी (Society),
(v) एक सरकारी विभाग (Government Department)।
उपरोक्त सन्दर्भों को निम्नांकित उदाहरणों से सरलता से समझा जा सकता है-
(i) व्यक्ति
'व्यक्ति' एक व्यावसायिक व्यक्ति, निजी व्यक्ति (जैसे-डॉक्टर, प्रोफेसर, वकील इत्यादि) हो सकता है। एक स्त्री विवाहित या अविवाहित हो सकती है।
(ii) फर्म
एक फर्म अपना व्यापार वैयक्तिक अथवा अवैयक्तिक नाम से चला सकती है अथवा उसका नाम अंशत: वैयक्तिक तथा अंशत: अवैयक्तिक हो सकता है। वैयक्तिक नामों के लिए सर्वश्री (Messrs, Mister या Mr. का बहुवचन) अथवा सर्व श्रीमती (Mesdames-Madam का बहुवचन) और अवैयक्तिक नामों के लिए 'दि' लिखा जाता है। (हिन्दी में पत्र-व्यवहार करते समय दि) (The) का प्रयोग नहीं किया जाता।
(iii) एवं (iv) लिमिटेड कम्पनियाँ एवं सोसाइटियाँ
इन संस्थाओं का वैयक्तिक नाम होने की दशा में सर्वश्री (Messrs) का प्रयोग किया जाता है। अवैयक्तिक नाम होने की दशा में 'दि' (The) का प्रयोग करते हैं। यदि नाम के साथ पदवी या उपाधि सम्मिलित हो तो 'सर्वश्री' अथवा 'दि' का प्रयोग नहीं किया जाता |
प्रायः कम्पनियों एवं सोसाइटियों को भेजे जाने वाले पत्र उनके मुख्य अधिकारियों को (जैसे, प्रबन्ध संचालक, सेक्रेटरी, मैनेजर इत्यादि) को सम्बोधित कर लिखे जाते हैं। ऐसी दशा में इस अधिकारी का पद 'दि' (The) का प्रयोग करते हुए अन्दर के पते में देना चाहिए |
(v) सरकारी विभाग
किसी भी विभाग को भेजे जाने वाले पत्र उस विभाग के अध्यक्ष को सम्बोधित किये जाते हैं। अतः अन्दर के पते में उसका सरकारी पद भी विभागीय नाम के साथ देना चाहिए,किन्तु अधिकारी का व्यक्तिगत नाम नहीं देना चाहिए|
(4) अभिवादन
सामान्यः दो व्यक्तियों के द्वारा आपस में भेंट करने पर वे एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। यह वार्ता प्रारम्भ करने के पूर्व कुछ निश्चित वाक्यांशों से किया जाता है, यथा, नमस्कार, गुड मॉर्निंग, जय श्री राम इत्यादि । इस प्रकार के शिष्टाचारपूर्ण शब्दों को' अभिवादन' कहा जाता है। इस सन्दर्भ में विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसके प्रयोग पर भले ही सम्बन्धित व्यक्ति का ध्यान न हो लेकिन यदि अभिवादन न किया जाये तो ध्यान आकृष्ट होता है तथा ऐसे व्यक्ति के प्रति प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
चूँकि व्यापारिक पत्रों को लिखने का तरीका निजी पत्रों को अपेक्षा भिन्न होता है, इसलिए उनमें प्रयोग किया जाने वाला अभिवादन का ढंग निजी पत्रों से भिन्न होता है। व्यापारिक पत्रों को लिखते समय अभिवादन पाने वाले के नाम एवं पते नीचे दिया जाता है तथा इसका रूप लिखने वाले एवं प्राप्तकर्ता के वैयक्तिक सम्बन्धों पर निर्भर करता है। व्यापारिक पत्रों में प्रयुक्त अभिवादन के विभिन्न स्वरूपों को उल्लिखित किया जा रहा है, यथा-
(अ) व्यक्तियों को पत्र लिखते समय
Dear Sir (प्रिय महोदय)
Dear Madam (प्रिय महोदया) या मात्र (महोदया )
Sir (श्रीमान) जब पत्र सरकारी अधिकारी अथवा सम्पादक को लिखा जाये।
My Dear Sir (मेरे प्रिय श्री) (जब पत्र पाने वाले के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध हो)
(ब) एक फर्म अथवा कम्पनी को पत्र लिखते समय
Dear Sir (प्रिय महोदय)
Dear Madam (प्रिय महोदया) (जबकि फर्म की सभी साझेदार स्त्रियाँ हों।)
My Dear Sirs (मेरे प्रिय श्री) (अत्यधिक निकटता / घनिष्ठता की स्थिति में)
Gentlemen (महोदय, श्रीमान)
Sir अथवा Madam शब्द का प्रयोग बहुत औपचारिक होने के कारण सरकारी पत्रों में अधिक प्रयोग किये जाते हैं, व्यापारिक पत्रों में नहीं बिक्री पत्रों में कभी-कभी Dear Customer (प्रिय ग्राहक) या Dear Subscriber (प्रिय धनदाता / चन्दादाता) का भी प्रयोग होता है। सामान्यतः प्रत्येक अभिवादन के पश्चात् कॉमा (Comma) लगा देना चाहिए।
(5) विषय शीर्षक
कभी-कभी अभिवादन के पश्चात् कुछ फर्मों पत्र का संक्षिप्त विषय अभिवादन के नीचे मध्य भाग में दे देती है। इसे ' विषय शीर्षक' कहा जाता है। इससे सामान्यतः पढ़ने वाले का ध्यान आकृष्ट होता है तथा वह विषय को शीघ्रता से समझ लेता है। इसके अतिरिक्त पत्रों को प्रारम्भ करना ज्यादा सुविधाजनक हो जाता है इस सन्दर्भ में निम्नांकित उदाहरण प्रमुख है-
प्रिय महोदय,
विषय- मारुती 800 कार के सम्बन्ध में पूछताछ विषयक।
Dear Sir,
Ref.: Enquiry for Maruti 800 Car.
(6) पत्र का विषय
यह पत्र का मुख्य भाग होता है तथा इसमें भेजा जाने वाला सन्देश लिखा जाता है। इसे अत्यधिक सावधानीपूर्वक समस्त तत्वों को ध्यान में रखते हुए लिखा जाना चाहिए। प्रायः पत्र की विषय-सामग्री को तीन भागों में विभक्त किया जाता है-
(1) प्रारम्भिक - यह पत्र का परिचयात्मक भाग होता है और इसकी स्थिति के कारण इसका विशेष महत्व होता है। इसका प्रत्यक्ष एवं सीधा प्रभाव पढ़ने वाले के मस्तिष्क पर पड़ता है तथा वह व्यक्ति को आने वाली बातों के लिए तैयार करता है। इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण कथन है कि "यदि आरम्भ अच्छा है तो आधी सफलता मिली समझिए।" (Well begun is half done)। अतः पत्र का प्रारम्भिक पैरा ऐसा होना चाहिए जो व्यक्ति को आकर्षित करे एवं कौतूहल पैदा करे। बाद के पैराग्राफों का काम उस रुचि को कायम रखना एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रेरित करना है। प्रारम्भिक पैराग्राफ को महत्ता के बाद भी प्रायः इसके लेखन में सावधानी नहीं रखी जाती है। फलस्वरूप जो प्रभाव होना चाहिए, वह नहीं पड़ता है। प्रारम्भिक पैराग्राफ संक्षिप्त एवं प्रभावशाली होना अत्यन्त आवश्यक है।
सामान्यतः जब पत्र किसी नये विषय पर लिखा जाता है तो प्रारम्भिक पैराग्राफ लिखने में कुछ कठिनाई होती है। अतः प्रत्येक पत्र को लेखन व्यवस्था अलग-अलग परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग होती है। प्रारम्भिक दशग्राफ के सन्दर्भ में कुछ उदाहरण निम्नानुसार हैं-
(i) "आपके शहर के सर्वश्री अग्रवाल एण्ड ब्रदर्स ने आपका नाम हमें हवाले के रूप में दिया है।"
(ii) "आपका नाम हमें 'हिन्दू शाश्वत गर्जना' पत्रिका के सम्पादक द्वारा इस विश्वास से दिया गया है कि हमारे अत्यन्त लोकप्रिय समाचार पत्र 'महाकौशल की हुंकार' की बिक्री में रुचि लेंगे।"
(iii) "क्या हम आपका ध्यान इस वर्ष बी. कॉम. परीक्षा के लिए बनाये गये 'सांख्यिकीय' विषयक पत्र की और दिला सकते हैं जो बहुत कठिन था।"
(iv) "हमें सूचना देते हुए अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है कि हमारे उत्पाद सम्बन्धी समस्त योजना पूर्ण हो चुकी है तथा हमारे नये मॉडल के टी.वी. (एल.जी.) का निर्माण प्रारम्भ हो गया है।"
प्रारम्भिक पैराग्राफ का उद्देश्य पिछले पत्र-व्यवहार के साथ प्रस्तुत पत्र का सम्बन्ध जोड़ना होता है। अधिकांश पत्र पिछले पत्रों के उत्तर में लिखे जाते हैं। ऐसे पत्रों में जिस पत्र के साथ सम्बन्ध जोड़ना हो, उसकी क्रम संख्या एवं तिथि का स्पष्ट उल्लेख होता है। इससे प्राप्तकर्ता को अपनी प्रति प्राप्त करने में अत्यधिक सुविधा होती है। यदि प्राप्तकर्ता के हवाले की क्रम संख्या भी भेजने वाले के साथ दे दी गयी है तो प्रारम्भिक पैराग्राफ में हवाले को क्रम संख्या (Reference Number) देना आवश्यक नहीं है। कुछ व्यापारी पूर्व पत्रों का सारांश भी देते हैं। यदि सारांश देना ही हो तो अत्यन्त संक्षिप्त होना चाहिए। यदि अभिवादन के पश्चात् नीचे विषय शीर्षक दे दिया गया हो तो प्रारम्भिक पैरा देने की आवश्यकता औचित्यहीन है। इस प्रकार के प्रारम्भिक पैराग्राफ के कुछ नमूने निम्नानुसार हैं-
(क) हमें आपका पत्र दिनांक 22 सितम्बर, 2014 को प्राप्त हुआ।
(ख) 29 सितम्बर, 2014 को आपकी पूछताछ के लिए धन्यवाद।
(ग) 14 जुलाई, 2014 को मैंने आपकी जानकारी के बारे में लिखा था।
(घ) 11 दिसम्बर, 2013 को आपका पत्र प्राप्त हुआ जिसमें आपने यह सूचित किया था कि इस वर्ष एवं अगले वर्ष के लिए आपको आयात का लाइसेन्स मिलने की आशा है।
विशेष- कभी-कभी दिनांक सूचित करने के लिए कुछ संक्षिप्त रूप प्रयोग किये जाते हैं। यदि किसी ऐसे दिन का सन्दर्भ देना है जो उसी माह आया था जिसमें कि प्रस्तुत पत्र लिखा जा रहा है तो “Inst” (पूर्णरूप- Instant) शब्द का महीना एवं सन् के स्थान में प्रयोग करते हैं, यथा-
With reference to your letter, dated the 14th inst.................
इसी माह की 14 तारीख के आपके पत्र के सन्दर्भ में.....................
यदि पिछले माह की किसी तिथि का हवाला (सन्दर्भ) देना हो तो ult. (पूर्ण रूप Ultimo) शब्द का प्रयोग किया जाता है, यथा-
With reference to your letter of the 14th ult,
विगत माह की 14 तारीख के आपके पत्र के उत्तर में यदि किसी आने वाले माह की तिथि का हवाला देना हो तो Prox. (पूर्णरूप- Proximo) शब्द का प्रयोग किया जाता है यथा-
Our Salesman is expeelied to meet you on the 21sth prox.
हमारा सेल्समैन आपसे आगामी माह की 21 तारीख को मिलेगा।
(2) मुख्य विषय - पत्र के इस भाग में वास्तविक सन्देश लिखा जाता है जिसकी सूचना प्राप्तकर्ता को देनी है। यदि सन्देश संक्षिप्त है तो इसे एक पैराग्राफ में लिखा जा सकता है तथा यदि लम्बा है तो स्वभाव के आधार पर अनेक पैराग्राफ बनाये जा सकते हैं। प्रत्येक नई बात के लिए पृथक् पैरा ज्यादा प्रभावशाली होता है। यदि ऐसा लगता है कि सम्बन्धित विषय कठिन है तथा इसे समझने में कठिनाई का अनुभव होगा तो लेखक को इसके साथ शीर्षक दे देना चाहिए। यथासम्भव प्रत्येक बात संक्षिप्त एवं पैरा छोटा होना चाहिए, परन्तु यदि विषय लम्बा है तो उस दशा में पैराग्राफ बड़ा भी रखा जाता है।
यदि पत्र में दो अथवा दो से ज्यादा पृष्ठ हो तो कोरे कागज या विशेष रूप से छपाये गये अनुकृति पत्रों (Continuation Sheets) का प्रयोग करना चाहिए जिसका कागज लैटर पैड के समान हो। एक पैराग्राफ की कम से कम तीन लाइनें प्रथम सीट के अन्त में दी जानी चाहिए तथा उसे इसके बाद नये पृष्ठ में लाया जाये तो उचित होगा। यदि पृष्ठ में कुछ 'कुटेशन' देनी हो, जैसे किसी तार अथवा दूरभाष के सन्देश का सन्दर्भ देना हो तो वह अत्यधिक छोटे शब्दों में लिखा जा सकता अथवा 'सिंगल स्पेस' में टाइप किया जा सकता है (सामान्यतः विषय को डबल स्पेस में टाइप किया जाता है)।
सामान्यतः एक पत्र एक विषय विशेष से ही सम्बन्धित होना चाहिए। यदि अनेक विषय हैं तो सम्बन्धित प्रत्येक विषय का पृथक् पत्र होना चाहिए क्योंकि बड़े व्यापारियों के कार्यालयों में अलग-अलग विषय के अलग-अलग विभाग एवं इनके पृथक् अधिकारी होते हैं। यदि एक पत्र में सभी विषयों के उत्तर हैं तो इससे प्राप्तकर्ता को व्यापक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
(3) सारांश - सामान्यतः किसी पत्र को समाप्त करना उतना ही कठिन होता है जितना कि उसे प्रारम्भ करना। पत्र के अन्तिम भाग का मूल उद्देश्य सन्देश को संक्षेप में पुनः दुहराकर प्राप्तकर्ता को कार्य के लिए प्रेरित करना होता है। अतः पत्र की अन्तिम स्थिति अत्यन्त प्रभावशाली, विशिष्टता से युक्त एवं प्रेरणात्मक होनी चाहिए। यदि अन्तिम पैरा उत्साहवर्धक एवं प्रेरणात्मक नहीं है तो सब कुछ व्यर्थ होता है। वर्तमान व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के इस युग में पत्र के इस अन्तिम भाग को लिखने में विशेष ध्यान दिया जाता है।
इस सन्दर्भ में दो बातें उल्लेखनीय हैं। प्रथम, प्रायः अपूर्ण वाक्य इस भाग में लिखे जाते हैं जो अनुचित है क्योंकि इन्हें पूरा करने के लिए 'अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य' में अतिरिक्त शब्द बढ़ाने पड़ते हैं, जैसे-
विश्वास करते हुए कि यह पत्र आपको यथा मिल जायेगा,
हम हैं, प्रिय महोदय
आपके शुभचिन्तक ।
अतः अन्तिम पैराग्राफ को यथासम्भव पूर्ण वाक्य से ही समाप्त करना चाहिए। इसके अतिरिक्त एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी पत्र में कार्य होने के पहले धन्यवाद देना व्यावहारिक नहीं होता है। इसी प्रकार से व्यापारिक पत्र को निम्नांकित वाक्यांशों से समाप्त करना भी उचित नहीं होता है-
शुभ भावनाओं के साथ - With Good Wishes,
अत्यन्त सादर के साथ - With Kind Regards
उपरोक्त वाक्यांश निजी पत्रों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, परन्तु व्यापारिक पत्रों के लिए नहीं। अन्तिम वाक्यों के सन्दर्भ में कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण निम्नानुसार हैं-
(1) हम आपके इस माह के अन्त तक उत्तर की आशा रखते हैं।
(We expect to hear from you by the close of this month.)
(2) क्या आप ऐसे सुअवसर को खोना पसन्द कर सकते हैं?
(Can you afford to let this opportunity slip by ?)
(3) यदि आप हमारे प्रस्ताव को स्वीकार करने का निर्णय करते हैं तो कृपया शीघ्र लिखिए।
(If you decide to accept our offer, write to us at once.)
(4) क्या मैं आपसे शीघ्र उत्तर पाने की आशा कर सकता हूँ?
(May I took forward to hear from you soon ?)
(7) अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य
जिस प्रकार से मौखिक वार्ता की समाप्ति के पश्चात् विदा लेते समय दो व्यक्ति परस्पर 'नमस्कार' कहते हैं अथवा अन्य वाक्यांशों का प्रयोग करते हैं, उसी प्रकार से व्यापारिक पत्रों में पत्र का विषय समाप्त होने पर विदासूचक कुछ शिष्टाचारपूर्ण शब्द लिखे जाते हैं। इन अन्तिम शब्दों को प्रशंसात्मक वाक्य कहा जाता है। यह शाक्य पत्र के विषय की अन्तिम दो या तीन स्पेस नीचे लिखा जाता है तथा दाहिने एवं बायें हाथ के मार्जिनों के मध्य इस प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है कि सम्पूर्ण पत्र के साथ इसका सामान्य रूप हो जाये।
अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य के अनेक प्रकार हैं, किन्तु प्रयोगकर्ता को ऐसे वाक्यांशों का प्रयोग करना चाहिए जो उसके अभिवादन के रूप में मेल खाता हो। इस सन्दर्भ में निम्न प्रकार महत्वपूर्ण हैं-
(1) प्रिय महोदय ,
Dear Sir or Dear Sirs
(2) प्रिय श्री..
Dear Mr.
(3) मेरे प्रिय श्री
My Dear Mr.
(4) आपका शुभचिन्तक
Yours Faithfully
(5) आपका विश्वासी / सद्भावी
Yours Truely
(6) आपका अत्यन्त विश्वासी।
Yours Very Truly
सामान्यत: 'Yours Sincerely' का प्रयोग निजी पत्र लिखते समय होता है। 'Yours Obediently’ "Yours Obedient Servant' अथवा 'Yours Respectfully' का प्रयोग सरकारी विभागों द्वारा किया जाता है।
अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य समाप्त होने पर कॉमा (,) अवश्य लगाना चाहिए। यदि पत्र के विषय वाले अन्तिम पैराग्राफ को अपूर्ण वाक्य लिखकर समाप्त कर दिया गया है तो अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य लिखने के पूर्व उपरोक्त वाक्य को पूर्ण करने वाले शब्दों का प्रयोग किया जाना अत्यन्त आवश्यक होता है, यथा-
हम हैं,
आपके शुभचिन्तक
We are,
Yours Faithfully.
(8) तथा (9) हस्ताक्षर एवं पद
अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य के पश्चात् उससे थोड़ा नीचे दाहिने हाथ की ओर हस्ताक्षर इस प्रकार आता है कि हाथ के मार्जिन तक समाप्त हो जाये। पत्र उस समय समाप्त मान लिया जाता है, जब उस पर लेखक अपने सीधे हस्ताक्षर (Signature) कर देता है। हस्ताक्षर के साथ पत्र की जिम्मेदारी तय की जाती है। हस्ताक्षर के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति का नाम एवं संस्था का नाम भी लिखा जाता है। अथवा व्यवसायी इसके अतिरिक्त पद को भी उल्लिखित किया जाता है।
हस्ताक्षर के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बातें (तथ्य)
1. स्पष्ट हस्ताक्षर होना
सामान्य रूप से किये जाने वाले हस्ताक्षर पूर्ण एवं स्पष्ट होने चाहिए, क्योंकि कभी-कभी हस्ताक्षर इतने अस्पष्ट एवं बुरे होते हैं कि यह ज्ञात करना असम्भव होता है कि सम्बन्धित हस्ताक्षर किसके हैं एवं किसने इन्हें भेजा है। अतः न केवल हस्ताक्षर स्पष्ट हो बल्कि हस्ताक्षर के ठीक नीचे हस्ताक्षर से सम्बन्धित व्यक्ति का नाम स्पष्ट रूप से अंकित होना चाहिए।
2. मुख्य नाम होना
हस्ताक्षरों के सम्बन्ध में दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें केवल मुख्य नाम को उल्लिखित किया जाना चाहिए। इसमें श्री, डॉक्टर, प्रोफेसर इत्यादि का प्रयोग वर्जित है।
3. हस्ताक्षर लिखित हों
हस्ताक्षर सदैव लिखित होने चाहिए। रबर स्टाम्प (Rubber Stamp) का प्रयोग सर्वथा अनुचित होता है। यदि व्यक्ति से सम्बन्धित कोई 'डिग्री ' है तो उसे हस्ताक्षर के ठीक नीचे उल्लिखित किया जाता है।
4. हस्ताक्षर में एकरूपता होना
हस्ताक्षर सदैव एक-से होने चाहिए। इन्हें यदि कुछ समयोपरान्त बदला जाये तो इससे प्रामाणिकता पर न केवल प्रभाव पड़ता है बल्कि कानूनी समय में व्यापक असुविधा का सामना करना पड़ता है।
5. स्थिति सम्बन्धी सूचना
व्यापारिक पत्र यदि किसी महिला द्वारा किसी अपरिचित व्यक्ति को लिखे जाते हैं तो 'नाम' के पूर्व अथवा बाद में स्पष्ट कर देना चाहिए कि वह 'विवाहित' अथवा ' अविवाहित' है।
प्रायः व्यापारिक संस्था का स्वामी ही व्यापारिक के पत्रों पर हस्ताक्षर करता है। सामान्यतः बड़े कार्यालयों एवं प्रतिष्ठानों में हस्ताक्षर सम्बन्धी कार्य कुछ जिम्मेदार अधिकारियों के सुपुर्द होता है। ऐसी दशा में ये अधिकारी, संस्था के प्रतिनिधि के बतौर पत्र पर हस्ताक्षर करते हैं, परन्तु इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बात यह है कि हस्ताक्षर के पूर्व संस्था की सोल अथवा मोहर लगाई जाये अथवा टाइप करा दिया जाये जिस संस्था का वे प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसके पश्चात् हस्ताक्षर करना ज्यादा उचित होगा अन्यथा वे पत्र के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होंगे तथा संस्था पर कोई जिम्मेदारी नहीं आयेगी।
हस्ताक्षर सम्बन्धी अधिकार दो प्रकार से सौंपा जाता है-
(1) विधिपूर्वक दस्तावेज लिखकर तथा
(2) साधारण अथवा मौखिक रूप से।
द्वितीय दशा में हस्ताक्षर करने वाले को संस्था के नाम 'के लिए' (For) और प्रथम अवस्था में 'की ओर से ' (Per Procuration) शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। द्वितीय प्रकार से हस्ताक्षर करने का अधिकार साधारण कर्मचारियों को साधारण-पत्रों के सम्बन्ध में सौंपा जाता है तथा प्रथम प्रकार के हस्ताक्षर का अधिकार जिम्मेदार/व्यक्तियों को सौंपा जाता है जो प्रायः महत्वपूर्ण पत्रों पर हस्ताक्षर करते हैं। हस्ताक्षर के सम्बन्ध में निम्न नमूने (Samplea) महत्वपूर्ण हैं -
(1) आपको शुभचिन्तिका,
हथकरघा उद्योग,
(श्रीमती अर्चना गोस्वामी)
स्वामिनी।
(2) आपका शुभचिन्तक,
गोपालपुरी एण्ड कम्पनी की ओर से,
गोपालपुरी
मैनेजर
(3) वास्ते दीपक एण्ड ब्रदर्स,
दीपक,
पार्टनर
(4) हरियाणा हथकरघा लि. के लिए,
गंगा शर्मा,
प्रबन्धक
इस प्रकार हस्ताक्षर के सन्दर्भ में उपरोक्त नमूने के आधार पर इन्हें सुविधाजनक ढंग से समझा जा सकता है।
(10) संलग्न
व्यापारिक पत्रों के साथ कभी-कभी कुछ अन्य आवश्यक एवं महत्वपूर्ण कागजात संलग्न किये जाते हैं, जैसे, चैक, बिल्टी, पुराने पत्रों की प्रतिलिपियाँ, प्रलेख, खाता विवरण इत्यादि। अतः इनका सन्दर्भ पत्र समाप्ति के पश्चात् बायें हाथ की ओर नीचे दिया जाता है। यदि अत्यन्त महत्वपूर्ण पत्र संलग्न किये जा रहे हैं तो इनका उल्लेख पृथक्-पृथक् होना चाहिए तथा साथ-साथ क्रमांक का भी उल्लेख कर देने से प्राप्तकर्ता को सुविधा एवं सरलता हो जाती है। यथा-
आपका शुभचिन्तक,
एक्स, वाई, जेड कम्पनी लि. की ओर से,
अशोक मिश्रा ,
चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट
संलग्न पत्र- (1) क्रम संख्या 221059
दिनांक 22-10-2014
(2) बीजक रु.10,000 के लिए।
(11) पुनश्चः
सामान्यत पत्रों में पुनश्चः के प्रयोग से यथासम्भव बचा जाना चाहिए क्योंकि इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पाठक यह मानता है कि पत्र लेखक ने लिखने के दौरान सावधानी का प्रयोग नहीं किया। यदि पत्र लेखन के पश्चात् कोई घटना घटित हो अथवा कोई विशिष्ट बात जानकारी में आये तथा इसका उल्लेख आवश्यक है तो पत्र के नीचे 'पुनश्च:' (Post-script, P.S.) का प्रयोग करते हुए सम्बन्धित जानकारी को प्रदर्शित करना चाहिए। इसे निम्नांकित उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
आपका शुभचिन्तक ,
नोबल चिल्ड्रन एकेडमी ,
अशोक मिश्रा,
संचालक
संलग्न पत्र - 4
पुनश्च – आपके पुत्र को अनेक बार समझाने के बाद भी अपेक्षित सुधार न होने से, उन्हें विद्यालय में रखना सम्भव नहीं है।
(12) टाइप लिपिक के हस्ताक्षर
सामान्यत: व्यापारिक पत्र को टाइप करने वाला लिपिक पत्र के बायें हाथ के निचले कोने में अपने संक्षिप्त हस्ताक्षर कर देता है। प्रायः बड़े कार्यालयों या प्रतिष्ठानों में कई टाइपिस्ट होते हैं। अतः पत्र के टाइप करने में त्रुटि हेतु किसे जिम्मेदार माना जाये, किये जाने वाले हस्ताक्षर इसका निर्धारण करते हैं।
इस प्रकार व्यापारिक पत्रों के अंगों के अन्तर्गत उपरोक्त को शामिल किया जाता है तथा उपरोक्त आधार पर पत्रों को लिखा जाता है।