विक्रय प्रस्तुतीकरण
यह एक प्रकार का वार्तालाप है। विक्रय प्रस्तुतीकरण वार्तालाप का स्वरूप उस स्थिति में ग्रहण करता है जब एक विक्रेता अपने क्रेताओं को दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग करते हुए विषय-वस्तु के परिप्रेक्ष्य में पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देता है।
1. अनुनेय प्रस्तुतीकरण (Presuasive Presentation),
2. साख प्रस्तुतीकरण (Goodwill Presentation)।
अनुनेय प्रस्तुतीकरण क्रेताओं को किसी विचार/ युक्ति/उत्पाद के प्रति विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है। इसका प्रमुख उद्देश्य किसी निर्णय/निष्कर्ष तक पहुँचना होता है। साख प्रस्तुतीकरण सामान्यतया क्रेताओं की सद्भावना प्राप्ति या श्रोताओं के मनोरंजन के लिये किये जाते हैं।
विक्रय प्रस्तुतीकरण के चरण
एक विक्रय प्रस्तुतीकरण निम्न चरणों में सम्पन्न किया जाता है-
(i) विषय-प्रवेश
इसके अन्तर्गत विक्रेता किसी विचार/ युक्ति/उत्पाद के परिचय द्वारा क्रेताओं को उन्हें क्रय करने के लिए प्रेरित करता/उकसाता है। विषय-प्रवेश में क्रेता/श्रोता का ध्यानाकर्षण किया जाता है।
विषय-प्रवेश के निम्न तीन तत्व होते हैं- (i) आरम्भ, (ii) उद्देश्य / सोद्देश्य, (iii) प्रारूप।
आरम्भ प्रारम्भिक भाषण से होता है जिसमें क्रेताओं/श्रोताओं का अभिवादन किया जाता है। उद्देश्य में भाषण के कारण को स्पष्ट किया जाता है व इसमें विक्रेता अपनी इच्छा को क्रेताओं/श्रोताओं के बोच रखता है। प्रारूप में क्रेताओं/श्रोताओं को विक्रय प्रस्तुति के मुख्य बिन्दुओं से अवगत कराया जाता है।
(ii) उद्धरण
उद्धरण से अभिप्राय वाद-विवाद / वार्तालाप से है। प्रस्तुतीकरण के इस हिस्से में केन्द्रीय विचार को स्थापित करने के लिए प्रमाण प्रस्तुत किये जाते हैं।
एक वक्तव्य की समस्या मूलतः समय से सम्बद्ध होती है। इस समस्या के हल के लिए प्रस्तुतकर्ता को अपने संचालित सन्देश को कम से कम बिन्दुओं में निर्धारित करना चाहिए।
एक व्यक्ति सामान्य रूप से दो प्रकार के निवेदन/ आग्रह के प्रति अपनी अभिव्यक्ति करता है-
(i) संवेगात्मक निवेदन, (ii) बुद्धिसंगत निवेदन।
संवेगात्मक निवेदन से अभिप्राय किसी वस्तु को अनुभव करने/देखने/सूँघने/सुनने के लिए इन्द्रियों के सक्रिय होने से हैं, जबकि बुद्धिसंगत निवेदन का अभिप्राय बचत करने/अच्छे कार्य करने/समय व ऊर्जा शक्ति के बचाने/पर्यावरण की रक्षा करने/एक स्तर के बनाये रखने व उत्पाद के अधिकतम लाभ प्राप्ति से होता है। इसके अतिरिक्त भी व्यक्तियों के कई संवेगात्मक व बुद्धि-संगत निवेदन हो सकते हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का किसी वस्तु के प्रति नजरिया अलग-अलग होता है। जैसे, व्यक्तिगत सुरक्षा/ आर्थिक लाभ/प्रशंसा/अच्छा भविष्य/बोनस / उपहार इत्यादि।
(iii) दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रभावी नियोजन व प्रयोग
क्रेताओं/श्रोताओं में रुचि जाग्रत करने के लिए दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रभावी नियोजन व नियन्त्रण करना श्रेयस्कर होता है क्योंकि ये सामग्री प्रस्तुति को व्यावसायिक स्वरूप प्रदान करते हैं, साथ ही साथ एक प्रस्तुतकर्ता को अपने विचारों/ युक्तियों के प्रति श्रोताओं/ क्रेताओं को आसानी से सहमत करा सकता है। इसके द्वारा व्यक्तियों द्वारा अतिरिक्त प्रश्नों की संख्या को कम किया जा सकता है।
(iv) निष्कर्ष
एक विक्रय प्रस्तुतीकरण का निष्कर्ष प्रस्तुतीकरण के आरम्भ से समान हो प्रभावशाली होना चाहिए। इस हेतु मुख्य बिन्दुओं की पुनरावृत्ति व प्रारम्भिक वक्तव्य को सन्दर्भित करना, एक सकारात्मक टिप्पणी के साथ समापन व उत्पाद को क्यों व कैसे किया जाये इत्यादि बातों का जिक्र करना चाहिए।
प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण
प्रशिक्षण प्रस्तुति से अभिप्राय श्रोताओं को सूचना देने/शिक्षित करने/प्रशिक्षण प्रदान करने से होता है। इसका स्वरूप पूर्णत: अनौपचारिक होता है। यद्यपि एक व्यावसायिक संगठन में प्रशिक्षण का स्वरूप सामान्यतः सूचनात्मक होता है। इसके अन्तर्गत श्रोताओं/व्यक्तियों/विक्रेताओं को इस बात से अवगत कराया जाता है कि वे किसी भी कार्य को करने के लिए संगठन प्रक्रिया को अपनायें अर्थात् वे स्वयं द्वारा निर्मित किसी प्रक्रिया का अनुसरण न करें।
ई. बी. फिलिप्पो के अनुसार- “प्रशिक्षण किसी विशेष कार्य को करने के लिए कर्मचारी के ज्ञान व कौशल को बढ़ाने की एक क्रिया है।"
डेल एस. बीच (Dale S. Beach) के अनुसार- "प्रशिक्षण एक ऐसी संगठित कार्य-विधि के ज्ञान कौशल को बढ़ाने की एक क्रिया है।"
प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण के अवयव
(i) उद्देश्यों को स्पष्ट करना
प्रस्तुति के प्रथम चरण में प्रशिक्षण के उद्देश्य क्या है? क्यों है? व प्रशिक्षण के लिए किस नीति का प्रयोग किया जायेगा इत्यादि स्पष्ट करना होते हैं।
(ii) कसौटियों का विकास
प्रशिक्षण प्रस्तुति के इस चरण में निम्न बातें आती है-. कार्यक्रम के मापने की विधि, वर्तमान ज्ञान शिक्षा को भविष्य की कार्यक्षमता से जोड़ने का तरीका.. कार्यक्षमता को मापने के गुणात्मक तकनीकों के विकास का तरीका, सुधरी हुई कार्यक्षमता पर दिया जाने वाला पुरस्कार आदि।
(iii) विषय-सूची का निर्माण
प्रशिक्षण प्रस्तुति के इस चरण में निम्न बातें समाहित हैं-
मुख्य श्रोता कौन? प्रशिक्षार्थियों का स्तर व उनके सीखने का अनुभव एवं सीखने का दृष्टिकोण, प्रशिक्षण प्रस्तुति के मुख्य विषय/तत्व, प्रशिक्षण कार्यक्रम को समय-सीमा ।
(iv) प्रशिक्षण विधि व सामग्री
इसमें निम्न बातें आती हैं-
उद्देश्य प्राप्ति का तरीका, प्रशिक्षण हेतु प्रयुक्त विधि का प्रकार, प्रशिक्षार्थियों की पसंदीदा विधि, प्रशिक्षण हेतु प्रयुक्त सामग्री का प्रभार, प्रशिक्षकों की प्रभावशीलता का स्तर आदि ।
(v) प्रशिक्षण कार्यक्रम
इसमें प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रारूप का निर्माण व प्रशिक्षण अवधि क्या होगी, इसका निर्धारण किया जाता है।
(vi) प्रशिक्षार्थी
इसके अन्तर्गत ऐसे व्यक्तियों की पहचान जिन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता है, की जाती है, साथ ही साथ यह भी ज्ञात करना कि उन्हें अभी प्रशिक्षण की आवश्यकता क्यों है, पता लगाया जाता है।
(vii) पुनर्प्रवेश
इसके अन्तर्गत प्रशिक्षण उपरान्त प्रशिक्षुओं के कार्य पर्यावरण में प्रवेश के अवलोकन के तरीके से है, साथ हो प्रयोग किये जाने वाले सहयोगी उपकरणों के तरीके से है। इस हेतु प्रशिक्षुओं को स्वविवेक पर छोड़ना उचित होगा या नहीं उनका परीक्षण करना उचित है, इस बात का चिन्तन भी आवश्यक है।
(viii) प्रतिपुष्टि
यह प्रशिक्षण प्रस्तुति का अन्तिम अवयव है। इससे अभिप्राय व्यक्तियों के प्रशिक्षण के उपरान्त कार्य के आधार पर प्रतिक्रिया देने से है। प्रशिक्षण की प्रतिक्रिया भी इसका अहम् हिस्सा है।