सम्प्रेषण से सम्बन्धित अध्ययन इस बात को स्पष्ट करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति बोलने से अधिक सुनता है, लिखने से अधिक पढ़ता है और सन्देश भेजने की अपेक्षाकृत अधिकाधिक सन्देश प्राप्त करने में अधिक समय व्यय करता है। यह सत्य है कि व्यक्ति वास्तव में सुनने में अधिक समय खर्च करता है, परन्तु प्रायः वह श्रव कुशलता को बढ़ाने के बारे में बहुत कम विचार कर पाता है।
प्रभावपूर्ण श्रवणता से अभिप्राय
श्रवणता को हम उसकी अनुभूति या समझ की यथार्थता के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। यह निश्चित हो सकती है, परन्तु कभी भी 100 प्रतिशत नहीं होती क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की अनुभूति अलग-अलग होती है। वास्तव में, श्रवणता को जैसा सोचा या समझा जाता है, यह क्रिया इतनी सरल नहीं है। अधिकांश व्यक्ति इस बारे में सक्षम होते हैं क्योंकि वे सुनने व सोचने के बारे में सावधानी नहीं रखते। अतः वे जितना सुनते हैं, उससे कुछ कम ही याद रख पाते हैं। अन्य शब्दों में, अधिकाधिक व्यक्ति अधिकतर अप्रभावी तरीके से सुनते हैं। यद्यपि श्रवणता सम्प्रेषण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। बिना श्रवणता के सम्प्रेषण सम्भव नहीं है अर्थात् प्रभावी श्रवणता के बिना प्रभावी सम्प्रेषण असम्भव है।
प्रबन्धकों के लिए श्रवण करने की क्षमता एक अनिवार्य कुशलता है, क्योंकि इस क्षमता की उपस्थिति उन्हें अपने कर्तव्य, दायित्व को प्रभावी तरीके से सम्पन्न करने में सहायक होती है और इस हेतु उन्हें अधिकाधिक सूचनाओं की आवश्यकता होती है।
परिभाषायें
फ्लोड जे. जेम्स (Floyd J. James) के अनुसार- " श्रवण क्षमता की न्यूनता प्रत्येक स्तर पर हमारे कार्य से सम्बन्धित समस्याओं की उत्पत्ति का मुख्य स्रोत है।"
फिलिप्स मोरगन और एच. केन्ट बेकर महोदय - ने यह प्रमाणित किया कि "औसत व्यक्ति पिछले 10 मिनट से किये गये वार्तालाप का आधा हिस्सा ही याद रख पाने में समर्थ रहते हैं, जबकि आधा हिस्सा वे 48 घण्टे के अन्दर भूल जाते हैं। यहाँ पर यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि अधिकांश व्यक्तियों को उनकी श्रवण क्षमता बेहतर करने की आवश्यकता है।"
यद्यपि इस समय विभाजन में प्रबन्धक / प्रशासक अपनी सम्प्रेषण प्रक्रिया में अधिकाधिक समय (45%) सुनने में व्यतीत करता है। यहाँ पर सुनने से अभिप्राय यह नहीं कि केवल वक्ता के शब्दों को सुनना बल्कि उसके कहे गये शब्दों के सम्पूर्ण अर्थ को समझने से है।
श्रवण प्रक्रिया
श्रवण एक प्रक्रिया है। इसमें निम्नलिखित पाँच क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं-
1. अनुभूति या बोध (Sensing),
2. निर्वाचन (व्याख्या) (Interpreting),
3. मूल्यांकन (Evaluating),
4. स्मरण (Remembering),
5 अनुक्रिया या प्रतिक्रिया (Responding)।
1. अनुभूति (Sensing)-
श्रवण करते समय हमें सन्देश को लिख लेना चाहिए क्योंकि सन्देश की प्राप्ति में शोर, दुर्बल श्रवण शक्ति व असावधानी व उपेक्षा बाधा पहुँचाते हैं। इन अवरोधों को दूर कर हमें सन्देश को ग्रहण करने में ध्यान लगाना चाहिए।
2. निर्वचन (Interpreting)
यदि बोलने वाले का सन्दर्भ कुछ अलग है तो हमें उसका विश्लेषण कर यह जानना आवश्यक है कि सोचने वाले की बात का वास्तविक अर्थ क्या है। इसके लिए हमें उसकी अभाषित गतिविधियों (Non verbal Activities) पर ध्यान देना होगा। यह हमारी अनुभूति की क्षमता को बढ़ाती है। साथ ही साथ ग्राह्यता व अवकूटन में सहायक होती है।
3. मूल्यांकन (Evaluating)
इसका अभिप्राय सन्देश के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करने से है। वक्ता द्वारा दिये गये संकेतों को जो आवश्यक है, उस पर विचार करना। जो सुझाव अप्रभावी है, उन्हें पृथक् करना । ये सब गतिविधियाँ मूल्यांकन के अन्तर्गत आती हैं।
4. स्मरण (Remembering)
सन्देशों को भविष्य के सन्दर्भ के लिए स्टॉक कर लिया जाता है। वक्ता द्वारा दिये गये मुख्य बिन्दुओं को अनिवार्य रूप से लिख लेना या उसको अपने मस्तिष्क में उतारना इसके अन्तर्गत आता है।
5. अनुक्रिया (Responding)
वक्ता द्वारा दिये गये सन्देश को ग्रहण कर उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना इसमें सम्मिलित है। श्रवणता में भौतिक व मानसिक क्रियाओं की आवश्यकता होती है और यह भौतिक व मानसिक बाधाओं का विषय है।
श्रवणता के प्रकार
विभिन्न स्थितियाँ ही भिन्न-भिन्न श्रवण क्षमता को जन्म देती है। थिल एवं बोबी के अनुसार श्रवणता निम्न चार प्रकार की होती है-
1. विषयागत श्रवणता (Content Listening)
इसमें सन्देश को समझने की सामर्थ्य होती है य सन्देश को सुरक्षित रखा जाता है।
2. समीक्षात्मक श्रवणता (Critical Listening)
इसमें सूचना को मूल्यांकित करने की समर्थता होती है |
3. तदनुभूतिक श्रवणता (Empathic Listening)
इसमें सन्देश को अन्य व्यक्ति को बताने की समर्थता होती है।
4. सक्रिय श्रवणता (Active Listening)
इसमें अन्य व्यक्तियों के विचार व विघटित मानसिक अन्तर्द्वन्द्र समाहित होते हैं।
इसके अतिरिक्त श्रवणता के अन्य प्रकार भी हैं-
1. दिखावटी या मिथ्या श्रवणता (Pretending Listening)
इसमें चेहरे के हाव-भाव द्वारा यह प्रदर्शित किया जाता है कि सम्प्रेषित सन्देश श्रवणित कर लिया गया है। यहाँ पर श्रवणता अनुपस्थित रहती है केवल सन्देश को सुना जाता है।
2. चयनित श्रवणता (Selective Listening)
इसका तात्पर्य यह है कि इसमें सन्देश को यथावत श्रवणित नहीं किया जाता। आवश्यक हिस्से को श्रवण किया जाता है। अनावश्यक हिस्से को श्रवण नहीं किया जाता।
3. एकाग्र श्रवणता (Attentive Listening)
इसके अन्तर्गत सम्प्रेषक के एक-एक शब्द को बहुत ध्यान से तथा दिमाग को एकाग्र करके सुना और समझा जाता है।
4. अन्तः प्रज्ञात्मक श्रवणता (Intuitive Listening)
जब सहज बोधगम्यतावश सन्देश को ग्रहण किया जाता है, तब अन्य विचार इसके समानान्तर दिमाग में आते रहते हैं। यह स्थिति सन्देश के सम्पूर्ण अर्थ को समझने में सहायक होती है।
एक अच्छे श्रोता के मुख्य तत्व
एक अच्छे श्रवणता के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं--
1. अनुकूल व्यवहार (Positive Attitude)
प्रत्येक व्यक्ति एक अच्छा श्रोता नहीं होता। एक अच्छी प्रभावी श्रवणता के लिए अनुकूल व्यवहार का होना अति आवश्यक है। यदि श्रवण क्रिया में श्रोता प्रतिकूल व्यवहार दर्शाता है तो श्रवणता का उद्देश्य पूरा नहीं होता।
2. केन्द्रित करने की क्षमता (Ability to Concentrate)
एक अच्छे श्रोता में केन्द्रित करने को क्षमता होना अनिवार्य है। मस्तिष्क में एक से अधिक दिशाओं में सोचने व समझने की अद्भुत क्षमता होती है। एक व्यक्ति में बोलने की क्षमता लगभग 180 से 250 शब्द प्रति मिनट होती है व ग्राह्य क्षमता लगभग 400 से 600 शब्द प्रति मिनट होती है। श्रवण प्रक्रिया में सम्प्रेषक या प्राप्तकर्ता की ओर से थोड़ा-सा विचलन श्रवणता । में विभ्रम पैदा करता है। इस स्थिति को 'Miscommunication' कहा जाता है। यदि श्रोता में अनुशासन व एकाग्रता है तो वह इसके द्वारा सम्प्रेषण में विभ्रम को न्यून कर सकता है।
3. प्रश्नोत्तर काल में (सहभागिता) प्रवेश (Enter into Question Answer Sessions)
जब मस्तिष्क व मन की एकाग्रता भंग होने लगती है तो ऐसी स्थिति में प्रश्नोत्तर काल में प्रवेश करना उचित होता है। प्राप्तकर्ता या (सुनने वाला) श्रोता प्रश्न पूछता है। इस स्थिति में सम्प्रेषक या वक्ता प्रश्नकर्ता की ओर देखता है और उसका जवाब देता है। सम्प्रेषक के लगातार घूरने से मस्तिष्क को विचलित होने से नहीं रोका जा सकता । यदि सम्प्रेषक द्वारा श्रोता पर बराबर नजर रखी जाती है तो श्रोता के लिए विचलित होना आसान नहीं होता और न ही वह धोखाधड़ी कर पाता है।
4. सहायक शारीरिक मुद्रा (Conductive Body Posture)
श्रवणता के समय शारीरिक भाषा सम्प्रेषण प्रक्रिया में सहायक होती है। पीछे होकर बैठना या कुर्सी में भैंसकर बैठना इस बात को दर्शाता है कि श्रोता स्वयं को सम्प्रेषक से दूर रखना चाहता है।
प्रभावी श्रवणता के उद्देश्य तथा लाभ
यह समझना आवश्यक है कि प्रभावी श्रवणता के क्या लाभ व उद्देश्य होते हैं। प्रभावी श्रवणता के निम्न उद्देश्य व लाभ होते हैं.-
1. श्रवणता सम्पूर्ण क्षमता को बढ़ाती है। यदि (प्राप्तकर्ता) श्रोता अच्छे से श्रवण करता है तो गलतियाँ या भ्रम कम होते हैं, कार्य की पुनरावृत्ति कम होती है, कार्य करने का समय व्यर्थ नहीं जाता, उत्पादकता बढ़ जाती है अर्थात् श्रोता की सम्पूर्ण क्षमता बढ़ जाती है।
2. श्रवणता संगठन के प्रति जागरूकता की भावना को बढ़ाती है।
3. प्रभावी श्रवणता सम्प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश के वास्तविक अर्थ को प्राप्त करने में सहायक होती है। यह अच्छे व सफल निर्णय लेने में सहायक होती है, क्योंकि प्राप्त सूचना अच्छी गुणवत्ता की होती है।
4. अच्छी श्रवणता मानवीय समस्याओं को निर्विघ्नतापूर्वक दूर कर सकती है। अधोगामी सम्प्रेषण (Downward Communication) के कई उद्देश्यों को श्रवणता के द्वारा प्राप्त किया जाता है।
5. एकाग्र श्रवणता संगठन के कर्मचारियों में शान्तिपूर्ण वातावरण निर्मित करने में सहायक है। धीरज व सहानुभूतिपूर्ण श्रवणता क्रोध व उग्रता को कम करने में सहायक है।
6. यदि संगठन के कर्मचारी यह पाते हैं कि उनकी माँगों व शिकायतों, विचारों को उनके अधिकारी एकाग्रता व सहानुभूतिपूर्वक सुन रहे हैं तो वे अधिक सहयोगी व जिम्मेदार हो जाते हैं।
7. श्रवणता संवेदनशील क्षेत्रों, जो विस्फोटक हो सकते हैं, उनको नियन्त्रित करने में सहायक होती है।
8. अच्छी श्रवणता अन्य व्यक्तियों को श्रवण हेतु प्रभावित करती है।
9. प्रभावी श्रवणता अन्य लोगों में महत्व, प्रशंसक, सराहनात्मक भावनाएँ उत्पन्न करती हैं।
10. श्रवणता संगठन व व्यवसाय की श्रेष्ठ नीति निर्धारण में सहायक होती है। यदि हम अपने अधीनस्थों, सहकर्मियों के विचारों, उपायों को ध्यानपूर्वक सुनें तो हमें इस बात का संकेत प्राप्त होगा कि हमारे संगठन के लिए किस प्रकार की नीति उपयुक्त होगी।
प्रभावी श्रवणता एक असाधारण कला है। इसके लिए चैतन्यता, आवेग या उत्साह, धीरज व अभ्यास को आवश्यकता होती है। प्रशिक्षण से श्रोता की 25 प्रतिशत से अधिक श्रवणता में वृद्धि हो सकती है। एक व्यक्ति जो लगभग 100 से 200 शब्द प्रति मिनट बोल रहा है और यदि श्रोता इससे अधिक शब्द ग्रहण करने की स्थिति में है तो उसे एक अच्छा श्रोता कहा जायेगा, क्योंकि वह सन्देश को केन्द्रित होकर ग्रहण कर रहा है। एक अच्छा श्रोता सम्प्रेषक के उद्देश्य को समझने में अपने समय का सदुपयोग करता है, उसके सन्देश के बारे में चिन्तन, मनन करता है व अर्थ को समझता है एवं अध्ययन व विश्लेषण करता है।
व्यावसायिक सम्प्रेषण में श्रवणता की आवश्यकता
1. श्रवणता सम्प्रेषण प्रक्रिया की एक महत्वपूर्ण घटना है। मानवीय सम्प्रेषण का 1/3 हिस्सा बोलने, लिखने व पढ़ने में निकल जाता है। एक कुशल अधिकारी अपने सम्प्रेषण का 50 प्रतिशत हिस्सा श्रवणता पर व्यतीत करता है।
2. श्रवणता जनरल मैनेजर, सेल्समेन, पर्सनल मैनेजर इत्यादि की सफलता के लिए मुख्य भूमिका निभाती है। एक मैनेजर यदि अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की आवश्यकताओं, कठिनाइयों व विचारों को एकाग्रता से सुनता है व समझता है तो ऐसा करने से उनमें जोश उतना ही जगाता है और उनकी कार्य निष्पादन पद्धति को पहले से बेहतर बनाता है।
3. प्रभावी श्रवणता के लिए सचेतन मस्तिष्क व हृदय (चित्त) की आवश्यकता होती है। यह प्रतिकूल संवेदनाओं, जैसे, ईर्ष्या, द्वेष, फोम इत्यादि से मुक्त होना चाहिए, क्योंकि उनकी उपस्थिति निर्व श्रवणता को जन्म देती है।
4. उचित श्रवणता वक्ता को इस बात का संकेत देती है कि श्रोता निश्छल है व उस पर विश्वास कर रह है। इस स्थिति में स्वतन्त्र सम्प्रेषण का मार्ग प्रशस्त हो जाता है और अन्तः:व्यक्तिगत प्रभाव त्वरित होता है।
5. सीखने की जिज्ञासा का श्रवणता से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। हमारा मस्तिष्क सदैव कुछ नये विचारों, उपायों को सीखने व ग्रहण करने हेतु उत्सुक रहता है, यदि हम अपनी श्रवणता की आदत पर थोड़ा ध्यान देते रहें।
प्रभावी श्रवणता के अवरोधक तत्व
प्रभावी श्रवणता में निम्न बाधक तत्व होते हैं-
1. सुनने सम्बन्धी समस्याएँ (Problems related with Hearing)
सुनने की अक्षमता श्रवणता मैं बाधक होती है, परन्तु यह समस्या शारीरिक होती है, न कि अभिकल्पित, यद्यपि संगठन में इस प्रकार के बहुत कम व्यक्ति होते हैं। इनकी समस्या को संगठन डॉक्टर की सहायता से इलाज देकर दूर कर सकता है।
2. दुत विचार (Acute Thoughts)
यदि वक्ता लगभग 125 शब्द प्रति मिनट की रफ्तार से सम्प्रेषण कर रहा है और श्रोता में 500 शब्द प्रति मिनट सुनने की क्षमता है, यह स्थिति श्रोता को वक्ता के सन्देश के सम्बन्ध में सोचने-समझने व विश्लेषण करने के लिए आदर्श है। इस अवस्था में श्रोता के मस्तिष्क में सन्देश से सम्बन्धित नये विचार तेजी से जन्म लेते हैं। हम धीमी गति से बोलने वाले व्यक्तियों से अत्यधिक बोरियत महसूस करते हैं।
3. सन्देश का अतिभार (Overloading of Messages)
यदि मस्तिष्क पर सन्देश का अतिभार होता है तो मस्तिष्क सन्देश को सरलतापूर्वक ग्रहण करने, समझने में अशक्त होता है और यदि सन्देश लम्बा अतार्किक व क्रमबद्ध नहीं होता तो मस्तिष्क के लिए यह स्थिति दुःखदायी होती है। इस स्थिति में श्रवणता अप्रभावी होती है।
4. अहंकार (Proudness)
अहंकारी व आत्म-केन्द्रित व्यक्तित्व श्रवणता का एक सामान्य अवरोधक है। "मैं सदैव सही हूँ और अन्य सब गलत" यह व्यवहार श्रवणता के लिए अवरोधक है। श्रवणता के लिए स्वच्छन्द मस्तिष्क व हृदय जो प्रतिकूल संवेदनाओं से मुक्त हो, की आवश्यकता होती है।
5. अनुभूति (Feelings)
हमारी अनुभूति चयनित व सीमित होनी चाहिए। ऐसा होने पर श्रोता चयनित श्रवण करेगा और सन्देश के आवश्यक हिस्से को ग्रहण करेगा व अनावश्यक हिस्से पर ध्यान नहीं देगा। हमें अन्य क्या कह रहे हैं, उसे नहीं सुनना चाहिए, बल्कि हमें क्या सुनना है, इस पर ध्यान देना चाहिए। कभी-कभी प्रतिकूल संवेदनाएँ, यथा, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध आदि सन्देश की अनुकूलता को प्रतिकूलता में परिवर्तित कर देती हैं।
6. सांस्कृतिक विविधताएँ (Cultural Diversity)
आधुनिक व्यावसायिक संगठन को क्रिया स्थानीय व क्षेत्रीय सीमाओं में निहित होती हैं। इन संगठनों में देश के विभिन्न समुदाय व संस्कृति के व्यक्ति कार्यरत होते हैं। यह एक सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं, परन्तु उनके उच्चारण या लय अलग होती हैं। यह प्रवृत्ति अन्य संस्कृति के व्यक्तियों की श्रवणता में बाधा उत्पन्न करती है।
7. प्रशिक्षण की कमी (Lack of Training)
श्रवणता प्रायः खाने, साँस लेने व सोने की क्रिया जैसे सम्पन्न की जाती है, परन्तु प्रभावी सम्प्रेषण में प्रभावी श्रवणता अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए कठिन परिश्रम, संयम, एकाग्रता की आवश्यकता होती है। हमारे शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों द्वारा प्रभावी पढ़ने, लिखने व सुनने का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के द्वारा हम श्रवणता को प्रभावी बना सकते हैं।
8. गलत धारणाएँ (Wrong Assumptions)
कुछ गलत धारणाएँ श्रवणता को निर्बल करती है-
(1) यह धारणा है कि यह केवल सम्प्रेषक की जिम्मेदारी है कि वह प्रभावी सम्प्रेषण करे।
(2) यह माना जाता है कि श्रवणता एक अनुकूल क्रिया है जिसे प्राप्तकर्ता या श्रोता शान्तिपूर्वक सम्प्रेषक के विचारों को सुनें।
(3) श्रवणता को निर्बलता व शक्तिहीनता के साथ-साथ वक्ता प्रत्येक व्यक्ति की एकाग्रता पर ध्यान रखेगा, इस बात से जोड़ा जाता है। यह भी धारणा है कि वक्ता की प्रवृत्ति नीचा दिखाने की होती है, जबकि व्यक्ति अपनी गतिविधियों से अन्य को प्रभावित करता है, साथ ही साथ अन्यों से अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित भी होता है।
श्रवणता को प्रभावी बनाने के तरीके
1. श्रवणता के समय बोलना बन्द करें (Stop talking during listening)।
2. सम्प्रेषक को स्वतन्त्रता दें (Provide liberty to transmitter)।
3. श्रवण करने की इच्छा व एकाग्रता लायें (Keep desire and of listening)
4. श्रवणता के समय बातचीत, अवरोध तत्वों, हिचक इत्यादि की उपेक्षा करें (Avoid talking, disturbance and hesitation during listening)
5. पूर्ण संयम बरतें (Keep control on yourself).।
6. स्वयं को सम्प्रेषक की स्थिति में रखें (Keep yourself m state of the communicator)।
7. सम्प्रेषक को सुनें, अपने फैसले न दें (Listen transmitter, don't give self-decision)।
8. सम्पूर्ण श्रवणता के उपरान्त अपने प्रश्नों का हल सम्प्रेषक से लें (After total listening take solution of your questions from transmitter) ।