शिक्षा मनोविज्ञान विधायक (Positive) तथा व्यावहारिक (Applied) विषय होने के कारण व्यक्ति तथा समाज, दोनों के लिये उपयोगी है। इसकी उपयोगिता के विषय में स्किनर ने कहा है कि - "संस्कृति को समझने के लिए शिक्षकों के द्वारा छात्रों को समझने की आवश्यकता है और उन्हें छात्रों के पथ-प्रदर्शकों के रूप में अपने को समझने की आवश्यकता है। इस प्रकार के अवबोध में मनोविज्ञान बहुत योग दे सकता है।"
शिक्षक के लिए मनोविज्ञान की उपयोगिता
शिक्षक के लिए मनोविज्ञान की क्या उपयोगिता है ? वह इसका प्रयोग किस प्रकार कर सकता है? उसको इससे किस प्रकार सहायता मिल सकती है ? हम इन और इनसे सम्बन्धित अन्य प्रश्नों पर निम्नांकित पंक्तियों में अपने विचारों को व्यक्त कर रहे हैं-
स्वयं का ज्ञान व तैयारी :
व्यक्ति किसी कार्य को करने में तभी सफल होता है, तब उसमें उस कार्य को करने की योग्यता होती है। शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से अध्यापक अपने में निहित स्वभाव, बुद्धि स्तर व्यवहार, योग्यता आदि का ज्ञान प्राप्त करता है। यह ज्ञान उसे शिक्षण कार्य में सफल बनने में सहायता देता है और इस प्रकार उसकी व्यावसायिक तैयारी में अत्यधिक योग देता है।
स्किनर के अनुसार -“शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों की तैयारी की आधारशिला है।"
बाल विकास का ज्ञान :
मनोविज्ञान के अध्ययन से शिक्षक को बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान हो जाता है। वह इन अवस्थाओं में बालकों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि विशेषताओं से परिचित हो जाता है। वह इन विशेषताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न अवस्थाओं के बालकों के लिए पाठ्य-विषयों और क्रियाओं का चुनाव करने में सफलता प्राप्त करता है।
बाल-स्वभाव व व्यवहार का ज्ञान :
शिक्षा मनोविज्ञान, अध्यापक को बालक के स्वभाव और व्यवहार से अवगत कराता है। इन दोनों बातों के आधार की मूल-प्रवृत्तियां और संवेग होते हैं। अध्यापक विभिन्न अवस्थाओं के बालकों की मूल प्रवृत्तियों और संवेगों से परिचित होने के कारण उनका अधिक उत्तम शिक्षण और निर्देशन करने में सफल होता है ।
रायबर्न का मत है- "हमें बाल-स्वभाव और व्यवहार का जितना अधिक ज्ञान होता है, उतना ही अधिक प्रभावपूर्ण बालक से हमारा सम्बन्ध होता है। मनोविज्ञान हमें यह ज्ञान प्राप्त करने में सहायता दे सकता है।"
बालकों का चरित्र निर्माण :
शिक्षा मनोविज्ञान, बालकों के चरित्र-निर्माण में सहायता देता है। यह शिक्षक को उन विधियों को बताता है, जिनका प्रयोग करके वह अपने छात्रों में नैतिक गुणों का विकास कर सकता है।
बालकों का ज्ञान :
शिक्षक अपने कर्तव्यों का कुशलता से पालन तभी कर सकता है, तब उसे अपने छात्रों का पूर्ण ज्ञान हो। वह भले ही अपने विषय और अपने शिक्षण में अद्वितीय योग्यता रखता हो, पर यदि उसे अपने छात्रों का ज्ञान नहीं है, तो उसे पग-पग पर निराशा को अपनी सहचरी बनाना पड़ता है। किसी विषय और उसके शिक्षण में योग्यता होना एक बात है। पर उनको छात्रों की रुचियों और क्षमताओं के अनुकूल बनाना दूसरी बात है.।
अतः डगलस एवं हॉलैण्ड का मत है कि- "शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध छात्रों के अध्ययन से है, अतः यह उन व्यक्तियों के ज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंग होता है, जो शिक्षण कार्य करना चाहते हैं। "
बालकों की आवश्यकता का ज्ञान :
विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बालकों की कुछ आवश्यकताएँ होती है, जैसे-प्रेम, आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और किये जाने वाले कार्यों की स्वीकृति की आवश्यकता यदि उनकी ये आवश्यकताएँ पूर्ण कर दी जाती हैं, तो वे सन्तुष्ट हो जाते हैं और फलस्वरूप, उनका विकास स्वाभाविक ढंग से होता है। शिक्षा मनोविज्ञान, अध्यापक को बालकों की इन आवश्यकताओं से अवगत कराता है।
स्किनर (Skinner) के शब्दों में- "अध्यापक, शिक्षा-मनोविज्ञान से प्रत्येक छात्र की अनोखी आवश्यकताओं के बारे में बहुत-कुछ सीख सकते हैं।"
बालक की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान :
मनोविज्ञान की खोजों ने सिद्ध कर दिया है कि बालको की रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं आदि में अन्तर होता है। शिक्षक को कक्षा में ऐसे ही बालकों को शिक्षा देनी पड़ती है। वह अपने इस कार्य में तभी सफल हो सकता है. जब वह मनोविज्ञान का अध्ययन करके उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं से पूर्णरूपेण परिचित हो जाय।
बालकों की मूल प्रवृत्तियों का ज्ञान :
मैक्डूगल के अनुसार- "मूल प्रवृत्तियाँ सम्पूर्ण मानव-व्यवहार की चालक है।"
अतः शिक्षा मनोविज्ञान, अध्यापक को बताता है कि मूल प्रवृत्तियाँ विभिन्न आयु के बालकों में किस प्रकार के व्यवहार का कारण होती है। यह ज्ञान शिक्षक के लिए बहुत लाभदायक होता है, क्योंकि शिक्षक, बालकों के व्यवहार के कारणों को समझकर उसमे वांछित परिवर्तन कर सकता है। इस प्रकार वह उनका समाज का विद्यालय का सभी का हित कर सकता है।
बालकों के व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास :
शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बालकों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति में शिक्षा मनोविज्ञान अतिशय योग देता है। यह शिक्षक को उन विधियों की जानकारी प्रदान करता है जिनका प्रयोग करने से बालकों के व्यक्तित्व का चतुर्मुखी विकास किया जा सकता है।
कक्षा की समस्याओं का समाधान :
कक्षा-कक्ष की मुख्य समस्याएं है- अनुशासनहीनता, बाल- अपराध, समस्या-बालक, छात्रों का पिछडापन आदि। शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षक को इन समस्याओं के कारणों को खोजने और इनको दूर करने में सहायता देता है। और आज स्थिति यह है कि कक्षागत शिक्षण एवं व्यवहार दोनों का अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा होता है।
प्रो. सुरेश भटनागर के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक की कक्षागत समस्याओं के मूल कारण समझने तथा समस्या समाधान के अवसर प्रदान करता है।"
अनुशासन में सहायता :
शिक्षा मनोविज्ञान, अध्यापक को अनुशासन स्थापित करने और रखने की अनेक नवीन विधियों को बताता है। इस सम्बन्ध में मेलवी (Melvi) ने लिखा है- जो शिक्षक अपने छात्रों की रुचि के अनुसार शिक्षा देते हैं, उनके सामने अनुशासन की कठिनाइयाँ बहुत कम आती हैं। जब हम पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधियों और शिक्षण सामग्री में सुधार करते हैं, तब हम अनुशासन की समस्याओं का पर्याप्त समाधान कर देते हैं या उनका अन्त कर देते हैं।
उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण :
विकास की विभिन्न समस्याओं में बालकों की रुचियाँ प्रवृत्तियों और आवश्यकताएँ विभिन्न होती है। मनोविज्ञान इन बातों का ज्ञान प्रदान करके अध्यापक को विभिन्न अवस्थाओं के बालकों के लिए उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण करने में सहायता देता है।
स्किनर ने लिखा है-"उपयोगी पाठ्यक्रम बालकों के विकास, व्यक्तिगत विभिन्नताओं, प्रेरणा मूल्यों और सीखने के सिद्धान्तों के अनुसार मनोविज्ञान पर आधारित होना आवश्यक है।"
उचित शिक्षण-विधियों का प्रयोग :
शिक्षा-मनोविज्ञान, अध्यापक को बताता है कि विभिन्न परिस्थितियों में बालकों को सरलतापूर्वक सिखाने के लिए कौन-सी शिक्षण विधियां सबसे अधिक उचित और उपयोगी हो सकती है।
स्किनर का कथन है- "शिक्षा मनोविज्ञान, अध्यापक को शिक्षण विधियों का चुनाव करने में सहायता देने के लिए सीखने के अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत करता है।"
मूल्यांकन की नई विधियों का प्रयोग :
मूल्यांकन, छात्र और अध्यापक, दोनों के लिए आवश्यक है। छात्र यह जानना चाहता है कि उसने कितना ज्ञान प्राप्त किया है। शिक्षक यह जानना चाहता है कि वह छात्र को ज्ञान प्रदान करने में किस सीमा तक सफल हुआ है। शिक्षा मनोविज्ञान मूल्यांकन की ऐसी अनेक विधियों को बताता है, जिनका प्रयोग करने से छात्र अपनी प्रगति का और शिक्षक, छात्र की प्रगति का अनुमान लगा सकता है। शिक्षक को होने वाले एक अन्य लाभ के बारे में स्किनर ने लिखा है कि - "शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान, शिक्षक को शिक्षक के रूप में अपनी स्वयं की कुशलता का मूल्यांकन करने में सहायता देता है।"
उपसंहार
मनोविज्ञान का ज्ञान ही शिक्षक की सफलता का रहस्य है। इस ज्ञान का आश्रय लिये बिना उसे अकुशलता और असफलता के बीच से गुजर कर अपने व्यावसायिक जीवन की यात्रा समाप्त करनी पड़ती है। हमारा अकाट्य तर्क यह है कि मनोविज्ञान उसे अपने कर्तव्यों और दायित्वों का पालन करने में हर घडी सहायता और मार्ग प्रदर्शन करता है। इस तर्क के कुछ समर्थकों के विचार निम्नलिखित हैं-
कुप्पूस्वामी के अनुसार - "मनोविज्ञान, शिक्षक को अनेक धारणाएँ और सिद्धान्त प्रदान करके उसकी उन्नति में योग दे देता है।"
कोलेसनिक के अनुसार - "शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षक- विशेष को यह निर्णय करने में सहायता कर सकता है कि वह विशिष्ट परिस्थितियों में भी अपनी विशिष्ट समस्याओं का समाधान किस प्रकार करे।"
ब्लेयर के अनुसार - "मनोवैज्ञानिक निरूपण की विधियों में अप्रशिक्षित कोई भी व्यक्ति सम्भवतः उन कार्यों और कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकता है, जिनका उत्तरदायित्व शिक्षकों पर है।"
गैरिसन व अन्य के अनुसार -"यदि हम मनोवैज्ञानिक हैं, तो हमको इस बात को पहले ही ज्ञान हो जाता है कि कुछ शिक्षण विधियां गलत होंगी। इस प्रकार, हमारा मनोविज्ञान, त्रुटियों से हमारी रक्षा करता है।"
अतः इस प्रकार से शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षक का मार्ग न केवल कक्षागत शिक्षण के लिये प्रशस्त किया है, अपितु उसने शिक्षकों, अभिभावकों, छात्रों एवं समाज में व्याप्त शैक्षिक समस्याओं की पहचान कर उनके समाधान करने के लिए भी जागरूक किया है, उसने समायोजन की क्षमता विकसित की है, कार्य कुशलता का विकास किया है और नयी पीढ़ी के निर्माण में शिक्षक की भूमिका को सक्षम बनाया है।