शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, उद्देश्य व क्षेत्र

शिक्षा मनोविज्ञान का इतिहास

ज्ञान-विज्ञान तथा सांस्कृतिक कार्यों की प्राचीनतम धरोहर भारत में है। प्राचीनतम शिक्षा तथा शिक्षण व्यवस्था का जन्म भारत में ही हुआ। प्राचीन जैन ग्रंथों में शिक्षा तथा मनोविज्ञान के अनेक तत्त्वों का वर्णन मिलता है। मांडा भूमि, खिड्डा भूमि, विमांसा भूमि जुगुत भूमि, शेखा भूमि तथा पुत्र भूमि मानव ज्ञान विकास के विभिन्न सोपान रहे हैं।

    महाभारत में मानव के विकास को दस अवस्थाओं- भूपा, जन्म, शैशव, बाल्यकाल, लड़कपन, पूर्व कैशोर्य, कैशोर्य, मध्य, बुढ़ापा तथा मृत्यु में विभक्त किया गया है। पुराणों.-स्मृतियों, दर्शन में मनोविज्ञान पर आधारित अनेक शिक्षण विधियों का उल्लेख है। मानव स्वभाव को अभिव्यक्त करने वाले संवेग तथा मूल प्रवृत्तियों का विस्तार से प्राचीन ग्रंथों में पूर्ण व्याख्या के साथ वर्णन किया गया है। प्राचीन काल में आचार्य, मानव के व्यवहार की समस्याओं से पूर्ण परिचित थे। शिक्षा के द्वारा वे उन व्यावहारिक समस्याओं को हल करते थे।

    सच यह है कि शिक्षा, मनोविज्ञान से कभी पृथक नहीं रही है। मनोविज्ञान चाहे दर्शन के रूप में रहा हो, उसने शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति का विकास करने में सहायता दी है।

    शिक्षा-मनोविज्ञान के आरम्भ के विषय में लेखकों में कुछ मतभेद हैं। कोलेसनिक ने इस विज्ञान का आरम्भ ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी के यूनानी दार्शनिकों से माना है और उनमें प्लेटो को भी स्थान दिया है। कोलेसनिक के शब्दों में:"मनोविज्ञान और शिक्षा के सर्वप्रथम व्यवस्थित सिद्धान्तों में एक सिद्धान्त प्लेटो का भी था।"

    कोलेसनिक के विपरीत स्किनर  ने शिक्षा मनोविज्ञान का आरम्भ प्लेटो के शिष्य. अरस्तू के समय से मानते हुए लिखा है-कि “शिक्षा मनोविज्ञान का आरम्भ अरस्तू के समय से माना जा सकता है। पर शिक्षा मनोविज्ञान के विज्ञान की उत्पत्ति यूरोप में पेस्टॉलॉजी, हरबार्ट और फ्रॉबेल के कार्यों से हुई, जिन्होंने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक बनाने का प्रयास किया।" 

    वास्तव में, इन महान् शिक्षा-दार्शनिकों को अपने कार्य की प्रेरणा रूसो से प्राप्त हुई जिसने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करके शिक्षा में मनोवैज्ञानिक आन्दोलन का सूत्रपात किया। उस आन्दोलन को आधुनिक युग की महान् शिक्षिका मॉण्टेसरी से बहुत बल प्राप्त हुआ। मॉण्टेसरी ने शिक्षा में प्रयोगात्मक मनोविज्ञान की उपयोगिता पर बल देते हुए कहा है कि "शिक्षक को प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का जितना अधिक ज्ञान होता है, उतना ही अधिक वह जानता है कि कैसे पढ़ाया जाय।"

    मनोविज्ञान की शाखा के रूप में शिक्षा मनोविज्ञान की उत्पत्ति सन् 1900 ई. में मानी जाती है। अमरीका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों- थार्नडाइक, जुड, टर्मन, स्टेनले हाल आदि के अनवरत प्रयासों के फलस्वरूप शिक्षा मनोविज्ञान ने सन् 1920 में स्पष्ट और निश्चित स्वरूप धारण किया। उनके इस कार्य को 1940 में 'American Psychological Association' और 1947 में अमरीका की 'National Society of College Teachers of Education' ने आगे बढ़ाया। फलस्वरूप, स्किनर के शब्दों में शिक्षाविदों द्वारा यह स्वीकार किया जाने लगा- "शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिसका सम्बन्ध पढ़ाने व सीखने से है।" 

     शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ

    शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग है। स्किनर के शब्दों मे: "शिक्षा मनोविज्ञान उन खोजों को शैक्षिक परिस्थितियों में प्रयोग करता है जो कि विशेषतया मानव प्राणियों के अनुभव और व्यवहार से सम्बन्धित है। "

    शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों के योग से बना है- शिक्षा' और 'मनोविज्ञान' । अतः इसका शाब्दिक अर्थ है- शिक्षा सम्बन्धी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।

    अतः हम स्किनर के शब्दों में कह सकते है- "शिक्षा मनोविज्ञान अपना अर्थ शिक्षा से, जो सामाजिक प्रक्रिया है और मनोविज्ञान से, जो व्यवहार सम्बन्धी विज्ञान है, ग्रहण करता है।"

    शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ का विश्लेषण करने के लिए स्किनर ने अधोलिखित तथ्यों की ओर संकेत किया है-

    1. शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्र, मानव-व्यवहार है।

    2. शिक्षा मनोविज्ञान, खोज और निरीक्षण से प्राप्त किए गए तथ्यों का संग्रह है।

    3. शिक्षा मनोविज्ञान में संग्रहीत ज्ञान को सिद्धान्तों का रूप प्रदान किया जा सकता है।

    4. शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा की समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी स्वयं की पद्धतियों 

    5. शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्त और पद्धतियों शैक्षिक सिद्धान्तों और प्रयोगों को आधार प्रदान का प्रतिपादन किया है। करते हैं।

    शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएँ

    शिक्षा-मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का शिक्षा में प्रयोग ही नहीं करता अपितु शिक्षा की समस्याओं को हल करने में योग देता है। इसलिये शिक्षाविदों ने शिक्षा की समस्याओं के अध्ययन, विश्लेषण, विवेचन तथा समाधान के लिये इसकी परिभाषायें इस प्रकार दी है।

    1. स्किनर के अनुसार-  “शिक्षा-मनोविज्ञान के अन्तर्गत शिक्षा से सम्बन्धित सम्पूर्ण व्यवहार और व्यक्तित्व आ जाता है।"

    2.क्रो व क्रो के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्ति के जन्म से वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।"

    3. नॉल व अन्य के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान मुख्य रूप से शिक्षा की सामाजिक प्रक्रिया से परिवर्तित या निर्देशित होने वाले मानव-व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित है। 

    4. एलिस क्रो के अनुसार - "शिक्षा मनोविज्ञान, वैज्ञानिक विधि से प्राप्त किए जाने वाले मानव प्रतिक्रियाओं के उन सिद्धान्तों के प्रयोग को प्रस्तुत करता है, जो शिक्षण और अधिगम को प्रभावित करते हैं।"

    5. सॉरे व टेलफोर्ड के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध सीखने से है। यह मनोविज्ञान का वह अंग है, जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज से विशेष रूप से सम्बन्धित है।" 

    शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति

    सभी शिक्षा-मर्मज्ञों ने शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति को वैज्ञानिक माना है। उनका कथन है कि यह विज्ञान अपनी विभिन्न खोजों के लिए वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करता है। तदुपरान्त यह उनसे प्राप्त होने वाले निष्कर्षो के आधार पर शिक्षा की समस्याओं का समाधान करता है और छात्रों की उपलब्धियों के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करता है। जिस प्रकार वैज्ञानिक विभिन्न तथ्यों का निरीक्षण और परीक्षण करके उनके सम्बन्ध में अपने निष्कर्ष निकालकर किसी सामान्य नियम का प्रतिपादन करता है, उसी प्रकार शिक्षक, कक्षा की किसी विशेष या तात्कालिक समस्या का अध्ययन और विश्लेषण करके उसका समाधान करने का उपाय निर्धारित करता है। इस प्रकार, अपनी खोजों में वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करने के कारण शिक्षा मनोविज्ञान को विज्ञानों की श्रेणी में रखा गया है। हम अपने कथन के समर्थन में दो विद्वानों के विचारों को लेखबद्ध कर रहे है यथा- 

    1. सारे एवं टेलफोर्ड के अनुसार-"शिक्षा मनोविज्ञान, अपनी खोज के प्रमुख उपकरणों के रूप में विज्ञान की विधियों का प्रयोग करता है।" 

    2. क्रो एवं क्रो के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान को व्यावहारिक विज्ञान माना जा सकता है, क्योंकि यह मानव-व्यवहार के सम्बन्ध में वैज्ञानिक विधि से निश्चित किए गए सिद्धान्तों और तथ्यों के अनुसार सीखने की व्याख्या करने का प्रयास करता है।" 

    शिक्षा मनोविज्ञान एक ओर कार्य तथा कारण के सम्बन्धों पर बल देता है. इसलिये यह निष्कर्षों के प्रयोग को व्यावहारिक रूप प्रदान कर मानव जीवन को सुखी बनाने के लिये प्रयास करने के कारण कला की श्रेणी में आता है।

    शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य

    शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य लगभग वही है, जो शिक्षा के हैं। फिर भी लेखकों ने अपने विचारों के अनुसार उनके लिए विभिन्न प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया है, यथा- 

    1. गैरिसन तथा अन्य के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान उद्देश्य है, व्यवहार का ज्ञान, भविष्यवाणी और नियंत्रण।"

    2. कुप्पूस्वामी के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य मनोविज्ञान के सिद्धान्तों को उत्तम शिक्षण और उत्तम अधिगम (सीखना) के हितों में प्रयोग करना है।" 

    3. कोलेसनिक के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य है- शिक्षक, उन समस्याओं का समाधान करने में सहायता देना है, जिनका सम्बन्ध प्रेरणा, मूल्यांकन, कक्षा-प्रबन्ध  शिक्षण-विधियों, छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं, उनके मानसिक स्वास्थ्य और उनके चरित्र-निर्माण से होता है।"

    4. कैली (Kelly) के अनुसार- कैली ने शिक्षा मनोविज्ञान के 9 उद्देश्य बताये हैं- 

    (1) बालक स्वभाव का ज्ञान प्रदान करना, 

    (2) बालक की वृद्धि और विकास का ज्ञान प्रदान करना, 

    (3) बालक अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने में सहायता देना, 

    (4) शिक्षा के स्वरूप, उद्देश्यों और प्रयोजनों से परिचित कराना, 

    (5) सीखने और सिखाने के सिद्धान्तों और विधियों से अवगत कराना,  

    (6) संवेगों के नियन्त्रण और शैक्षिक महत्त्व का अध्ययन करना,

    (7) चरित्र-निर्माण की विधियों और सिद्धांतों से अवगत कराना, 

    (8) विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विषयों में छात्र की योग्यताओं का माप करने की कायों में प्रशिक्षण देना, 

    (9) शिक्षा मनोविज्ञान के तथ्यों और सिद्धान्तों की जानकारी के लिए प्रयोग की ज वाली वैज्ञानिक विधियों का ज्ञान प्रदान करना।

    5. स्किनर के अनुसार- स्किनर ने शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्यों को भागों में विभाजित किया है- 

    (अ) सामान्य उद्देश्य, (ब) विशिष्ट उद्देश्य ।

    (अ) सामान्य उद्देश्य

    स्किनर ने शिक्षा मनोविज्ञान का सामान्य उद्देश्य के एक मानते हुए लिखा है-"शिक्षा मनोविज्ञान का सामान्य उद्देश्य है- संगठित तथ्यों और सामान नियमों का एक ऐसा संग्रह प्रदान करना, जिसकी सहायता से शिक्षक सांस्कृतिक और व्यावसायिक लक्ष्यों को अधिक-से-अधिक प्राप्त कर सके।"

    शिक्षा मनोविज्ञान के सामान्य उद्देश्य इस प्रकार- 

    1. सिद्धान्तों की खोज तथा तथ्यों का संग्रह हैं।

    2. बालक के व्यक्तित्व का विकास।

    3. शिक्षण कार्य में सहायता प्रदान करना।

    4. शिक्षण विधि में सुधार।

    5. शिक्षा उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की पूर्ति।

    (ब) विशिष्ट उद्देश्य

    शिक्षा मनोविज्ञान, केवल व्यक्ति के सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति ही नहीं करता, अपितु वह उसके विशिष्ट लक्ष्यों की पूर्ति में भी सहायक होता है। यह व्यक्ति की उसकी योग्यता, क्षमता तथा कुशलता को पहचानने में योग देता है। शिक्षक छात्रों की सीखने की सीमाओं को पहचानता है। स्किनर ने शिक्षा मनोविज्ञान के 8 विशिष्ट उद्देश्य बताये हैं-

    (1) बालकों की बुद्धि, ज्ञान और व्यवहार में उन्नति किए जाने के विश्वास को दृढ़ बनाना।

    (2) बालकों के प्रति निष्पक्ष और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण का विकास करने में सहायता देना।

    (3) बालकों के वांछनीय व्यवहार के अनुरूप शिक्षा के स्तरों और उद्देश्यों को निश्चित करने में सहायता देना।

    (4) सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूप और महत्त्व को अधिक अच्छी प्रकार समझने में सहायता देना।

    (5) शिक्षण की समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले तथ्यों और सिद्धान्तों का ज्ञान प्रदान करना।

    (6) शिक्षक को अपने और दूसरे से शिक्षण के परिणामों को जताने में सहायता देना।

    (7) शिक्षक को छात्रों के व्यवहार की व्याख्या करने के लिए आवश्यक तथ्य और सिद्धान्त प्रदान करना।

    (8) प्रगतिशील शिक्षण विधियों, निर्देशन-कार्यक्रमों एवं विद्यालय संगठन और प्रशासन के स्वरूपों को निश्चित करने में सहायता देना।

    शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ अपने में स्पष्ट है। शिक्षा में मनोविज्ञान का प्रयोग ही शिक्षा मनोविज्ञान है।  शिक्षा मनोविज्ञान विद्यार्थी तथा सीखने की क्रियाओं के मध्य शिक्षक तथा छात्र का व्यवहार है। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा से अर्थ ग्रहण करता है, मनोविज्ञान से सामाजिक प्रक्रिया ग्रहण करता है और बालक में वांछित व्यवहार परिवर्तन द्वारा उसे सर्वांगस्वरूप प्रदान करता है। शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध मानवीय क्रियाओं से है, इसलिये 

    (i) यह मानव व्यवहार पर केन्द्रित है

    (ii) निरीक्षण तथा खोज द्वारा प्राप्त तथ्यों तथा सूचनाओं का भण्डार है 

    (ii) इस ज्ञान भण्डार से नियम तथा सिद्धान्तों का निरूपण होता है

    (iv) यह ज्ञान की खोज की एक पद्धति है 

    (v) इससे शिक्षा की समस्याओं का समाधान होता है

    (vi) समस्त प्राप्त ज्ञान, नियम तथा सिद्धान्त शैक्षिक व्यवहार को आधार प्रदान करते हैं।

    शिक्षा मनोविज्ञान एक व्यावसायिक विषय के रूप में विकसित हुआ है। शिक्षक बनने वाले व्यक्ति के व्यवहार में भी परिवर्तन की आवश्यकता है, अतः शिक्षा मनोविज्ञान का अध्ययन नवशिक्षक के लिये अपरिहार्य है। कुल मिलाकर शिक्षा मनोविज्ञान अपने अर्थ, प्रकृति तथा क्षेत्र में स्पष्ट है और इसका उद्देश्य मंगलकारी है। यह एक ओर शिक्षा की प्रक्रिया के नियोजन में दिशा-निर्देश करता है तो दूसरी ओर कक्षागत परिस्थितियों में आनुभविक आधार प्रदान कर नई पीढ़ी के नवनिर्माण में योग देता है।

    शिक्षा-मनोविज्ञान का क्षेत्र 

    वर्तमान शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जन्म लेने के कारण शिक्षा मनोविज्ञान अपनी शैशवावस्था में है। यही कारण है कि उसके क्षेत्र की सीमाएँ अभी तक निर्धारित नहीं हो पाई है। परिणामतः शिक्षा मनोविज्ञान की पुस्तकों की सामग्री में एकरूपता के दर्शन दुर्लभ हैं। आर्चर का यह कथन अक्षरशः सत्य है- “यह बात उल्लेखनीय है कि जब हम शिक्षा मनोविज्ञान की नवीन पाठ्य-पुस्तक खोलते हैं, तब हम यह नहीं जानते हैं कि उसकी विषय-सामग्री सम्भवतः क्या होगी ?"

    शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री को इस अनिश्चित परिस्थिति से निश्चित परिस्थिति में लाने का अनेक शिक्षा-विशारदों द्वारा उद्योग किया गया है। उनमें से कुछ के विचारों का अवलोकन कीजिए- 

    1. क्रो एवं क्रो के अनुसार- “शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री का सम्बन्ध सीखने को प्रभावित करने वाली दशाओं से है।"

    2. डगलस व हॉलैण्ड के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री शिक्षा की प्रक्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्ति की प्रकृति, मानसिक जीवन और व्यवहार है।"

    3. गैरिसन व अन्य के अनुसार- "शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री का नियोजन दो दृष्टिकोणों से किया जाता है- (1) छात्रों के जीवन को समृद्ध और विकसित करना, एवं (2) शिक्षकों को अपने शिक्षण में गुणात्मक उन्नति करने में सहायता देने के लिए ज्ञान प्रदान करना।"

    उपरिलिखित दोनों दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर शिक्षा मनोविज्ञान में निम्नांकित बातों अध्ययन किया जाता है-

    1. बालक की विशेष योग्यताओं का अध्ययन ।

    2. बालक की रुचियों और अरुचियों का अध्ययन।

    3. बालक के वंशानुक्रम और वातावरण का अध्ययन ।

    4. बालक की प्रेरणाओं और मूल प्रवृत्तियों का अध्ययन । 

    5. बालक के विकास की अवस्थाओं का अध्ययन।

    6. बालक की शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक क्रियाओं का अध्ययन । 

    7. बालक के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक, सामाजिक, संवेगात्मक और सौंदर्यात्मक विकास का अध्ययन।

    8. बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का अध्ययन ।

    9. अपराधी,असाधारण और मानसिक रोगों से ग्रस्त बालकों का अध्ययन। 

    10. शिक्षण विधियों की उपयोगिता और अनुपयोगिता का अध्ययन।

    11. सीखने की क्रियाओं का अध्ययन।

    12. शिक्षा की समस्याओं का अध्ययन।

    13. शिक्षा के उद्देश्यों और उनको प्राप्त करने की विधियों का अध्ययन ।

    14. अनुशासन सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन । 

    15. पाठ्यक्रम निर्माण से सम्बन्धित अध्ययन।

    "शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र के विषय में हैरिस डब्ल्यू. चेस्टर ने कहा है-शिक्षा मनोविज्ञान क सम्बन्ध सीखने के मानवीय तत्त्व से है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें प्रयोग सिद्ध मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त का विनियोग शिक्षा के क्षेत्र में किया जाता है। लेकिन यह ऐसा क्षेत्र भी है जिसमें ऐसे प्रत्ययों की शिक्षा व्यवहार की परीक्षा तथा शिक्षकों की रुचि के निर्धारण के लिये प्रयोगात्मक कार्य किये जाते है। सीखने तथा सिखाने की प्रक्रिया तथा सीखने वाले को अधिकतम सुरक्षा तथा संतोष के साथ समाज से तादात्म्य स्थापित करने में सहायता देने हेतु निर्देशित कार्यों का अध्ययन करना है।"- एनसाइक्लोपीडिया ऑफ एजूकेशनल रिसर्च, 1960, p. 403

    निष्कर्ष रूप में, हम स्किनर के शब्दों में कह सकते हैं-"शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में वह सब ज्ञान और विधियाँ सम्मिलित हैं, जो सीखने की प्रक्रिया से अधिक अच्छी प्रकार समझने और अधिक कुशलता से निर्देशित करने के लिए आवश्यक हैं।"

    शिक्षा मनोविज्ञान ने एक विधायक (Positive) विज्ञान का स्वरूप धारण किया है, इसकी वैज्ञानिक प्रकृति ने अनेक वैज्ञानिक विधियों विकसित की है। आज यह मनोविज्ञान पर आधारित होते हुए भी स्वतंत्र रूप से विकसित हो रहा है।



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