प्रस्ताव का आशय, आवश्यकता, उद्देश्य, स्वरूप, योजना एवं संरचना

    किसी विशेष कार्य एवं योजना को स्वीकृति दिलाने के लिए प्रस्तुत किये गये विचार प्रस्ताव कहलाते हैं। प्रस्ताव में दी गयी सूचना स्पष्ट एवं समझने योग्य होनी चाहिए। प्रत्येक व्यावसायिक संस्थान को अपनी व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए प्रस्ताव की आवश्यकता होती है अतः एक व्यवसाय की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसने अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिए अपने प्रस्ताव में किस प्रकार के लेखन का प्रयोग किया है। प्रस्ताव के माध्यम से कोई भी संस्था / व्यक्ति अपने कार्य से सम्बन्धित प्रत्येक सूचना को स्पष्ट व सूक्ष्म लेखन के माध्यम से संगठन /संस्था के अन्दर अथवा अन्य संस्थानों या ग्राहकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं।

    प्रस्ताव किसी कार्य को प्रारम्भ करने अथवा पूर्ण करने की ओर उन्मुख होता है। इसका स्वरूप लिखित व मौखिक हो सकता है। प्रस्ताव के अन्तर्गत कोई भी संगठन/संस्था/व्यक्ति किसी कार्य को सम्पन्न करने के विभिन्न आकर्षक पद्धतियों एवं अपने पक्ष की बातों का जिक्र करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि प्रस्ताव के प्रस्तुतीकरण के पूर्व गहन विचार-विमर्श किया जाए।

    किसी विषय के संक्षिप्त विचारों को जब हम विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुत करते हैं तो उसको प्रस्ताव कहते । अन्य शब्दों में "किसी संगठन/संस्था/व्यक्ति द्वारा विशिष्ट विषय के स्पष्ट व संक्षिप्त विचारों को विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुतीकरण ही प्रस्ताव (Proposal) कहलाता है।" उदाहरण के लिए-हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड द्वारा अपने समस्त उत्पादों की बिक्री के लिए संघनन वृहद स्वरूप में विज्ञापन नीति का प्रस्ताव अथवा ऑलविन कम्पनी का बी.पी.एल. कम्पनी में विलय का प्रस्ताव इस प्रकार प्रस्ताव से आशय किसी भी विषय के सम्बन्ध में कोई भी सूचना दूसरे पक्ष के सम्मुख प्रस्तुत करता है।

    प्रस्ताव की आवश्यकता व उद्देश्य

    सामान्य रूप से प्रस्ताव किसी विशिष्ट कार्य अथवा योजना की स्वीकृति प्राप्ति के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं। इस हेतु आवश्यक है कि बैठक में सभा के समस्त सदस्यों को प्रस्ताव में प्रस्तुत विशिष्ट विषय अथवा समस्या निराकरण के समाधान व प्रस्ताव की लाभ व हानियों से स्पष्ट रूप से पूर्व परिचित करा दिया जाये ताकि प्रस्ताव हेतु आम सहमति का माहौल पैदा हो सके। यद्यपि प्रस्ताव एक विशिष्ट विचारधारा को प्रकट करने का एक सशक्त  स्वरूप है इसलिए इसमें एक विशिष्ट उद्देश्य निहित रहता है अर्थात् प्रस्ताव को आवश्यकता में एक विशिष्ट उद्देश्य निहित रहता है। 

    सामान्यतः प्रस्ताव को प्रस्तुति निम्नलिखित उद्देश्यों हेतु की जा सकती है-

    1. किसी कम्पनी क्रय अथवा विक्रय नीति में परिवर्तन का प्रस्ताव।

    2. किसी कम्पनी के शेयर सम्बन्धी लाभांश के लिए प्रस्ताव।

    3. किसी कम्पनी को सम्पत्ति के क्रम अथवा विक्रय या भवन निर्माण का प्रस्ताव।

    4. किसी कम्पनी को कार्य नीति अथवा कार्य कौशल क्षमता में सुधार का प्रस्ताव।

    5. किसी कम्पनी की सम्प्रेषण प्रक्रिया या क्षमता में सुधार का प्रस्ताव इत्यादि

    प्रस्ताव के स्वरूप

    किसी व्यावसायिक संगठन/संस्था अथवा व्यक्ति के प्रस्ताव के निम्नलिखित स्वरूप सम्भावित है-

    1. अनुसन्धान प्रस्ताव (Research Proposal),

    2. व्यावसायिक प्रस्ताव (Business Proposal) 

    1.अनुसंधान प्रस्ताव 

    अनुसन्धान प्रस्ताव से अभिप्राय किसी संगठन/संस्था/व्यक्ति द्वारा अपने विशिष्ट विलय को विचारधारा को अनुसन्धान की ओर उन्मुख होने से है। 

    2. व्यावसायिक प्रस्ताव 

    व्यावसायिक प्रस्ताव का सम्बन्ध संगठन / संस्था द्वारा वस्तुओं / सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा व उसके क्रय-विक्रय से होता है। 

    व्यावसायिक प्रस्ताव निम्नलिखित दो प्रकार का होता है—

    (i) प्रार्थित प्रस्ताव (Solicited Proposals), 

    (ii) अप्रार्थित प्रस्ताव (Unsolicited Proposals) ।

    प्रार्थित प्रस्ताव से अभिप्राय एक व्यावसायिक संस्था द्वारा अन्य व्यावसायिक संस्था द्वारा प्रार्थना द्वारा माँगे जाने से है इस प्रकार के प्रस्ताव में प्रतिस्पर्धा की भावना निहित होती है, क्योंकि इस प्रकार के प्रस्ताव को किसी फर्म द्वारा निविदा स्वरूप माँगे जाते हैं तदुपरान्त फर्म द्वारा सर्वोत्तम प्रस्ताव को चयनित किया जाता है इसलिए आवश्यक है इसे अत्यन्त सावधानी पूर्वक तैयार किया जाये।

    अप्रार्थित प्रस्ताव से अभिप्राय सामान्यतः विक्रय पत्र (Sales letters) से होता है, क्योंकि इस प्रकार के प्रस्ताव का प्रमुख उद्देश्य किसी फर्म के उत्पाद को अधिकाधिक बिक्री से होता है।

    प्रस्ताव योजना अथवा संरचना

    प्रस्ताव में निवेदन व प्रेरणिक भाव निहित है इसलिए इसे लिखते या तैयार करते समय योजनाबद्ध रणनीति अनिवार्य है। प्रस्ताव, अनुसन्धानिक, व्यावसायिक यथा प्रार्थित व अप्रार्थित होते हैं तथा इसमें प्रार्थना, इच्छा व विचार प्रभाव तत्व है एवं बिक्री बढ़ाना ही इनका एक मात्र उद्देश्य है अतः बिक्री पत्र की भाँति प्रस्ताव को संरचना AIDA सूत्रानुसार विश्लेषित की जा सकती है। प्रस्ताव का नियोजन निम्न तीन चरण में विभाजित किया जा सकता है।

    प्रथम चरण 

    प्रस्ताव लेखन के पहले लेखक के मन मस्तिष्क में निम्न बातें उठती है-

    1. प्रस्ताव उद्देश्य,
    2. श्रोता विश्लेषण एवं उसकी आवश्यकता,
    3. श्रोता का ध्यानाकर्षण,
    4. श्रोता को प्राप्त लाभ की सम्भावनाएँ,
    5. प्रस्ताव सदैव श्रोता के उद्देश्य के अनुरूप होना चाहिए। प्रस्ताव का उद्देश्य श्रोता की आवश्यकता के अनुरूप होने से लेखक श्रोता का ध्यान आकर्षित कर सकता है अर्थात् प्रस्ताव के प्रारूप के मुताबिक उसमें संक्षिप्त उद्देश्य, दृष्टिकोण व श्रोता के लाभ की सम्भावनाओं का समावेश होना चाहिए।

    द्वितीय चरण 

    प्रस्ताव के द्वितीय चरण में प्रमुख बातों को सम्मिलित किया जाता है। सामान्यतः संगठनों/संस्था के पास एक मुद्रित खाका होता है इसी खाके के अनुरूप ही प्रस्ताव का मुख्य भाग तैयार होता है इस मुख्य भाग में निम्न बातें समाहित होती है-

    1. विशिष्ट विषय अथवा विचार की पृष्ठभूमि प्रकट समस्या का विवरण
    2. समस्या के निराकरण का तरीका
    3. खोज का तरीका
    4. प्रस्तावित (विषय/विचार) कार्य करने के लिए सम्भावित व्यय व समय यद्यपि सामान्यतः प्रस्ताव के लेखन के लिए तैयार मुद्रित खाका होता है साथ ही साथ इसमें उपयुक्त शीर्ष होते हैं जिससे श्रोता/पाठक इसे सरलता व सहजता से समझ सकते हैं। प्रस्ताव के मुद्रित खाके को श्रोता / पाठक को आवश्यकता अनुरूप परिवर्तित किया जा सकता है। खाका निर्माण करते समय लेखक को प्रस्ताव में सरल भाषा का प्रयोग करते हुए विचारों की तर्कपूर्ण प्रस्तुति की जानी चाहिए साथ ही साथ तकनीकी तथ्यों का न्यूनतम श्रोता/पाठक के अनुरूप की जानी चाहिए साथ ही साथ तकनीकी तथ्यों का न्यूनतम प्रयोग कर प्रस्ताव की लम्बाई भी न्यूनतम होनी चाहिए।

    तृतीय चरण

    प्रस्ताव नियोजन का तृतीय व अन्तिम चरण सर्वेक्षण से सम्बद्ध होता है जिसमें लेखक श्रोता/पाठक को अपने विषय / विचार को स्थापित कर चुका होता है और इस बात की आशा करता है कि उसका विषय/विचार बिक जायेगा। अर्थात् इस अन्तिम चरण में लेखक या प्रस्तावक श्रोता / पाठक की समस्त स्थितियों का पुनरीक्षक करते हुए इस बात को स्थापित करता है प्रस्ताव आशावादी है। इस हेतु लेखक के लिए आवश्यक है कि वह अपने प्रस्तुत विचार का निरीक्षण कर उसमें व्याकरण व अक्षरों की अशुद्धियों का निराकरण करे। इससे लेखक की विश्वसनीयता बढ़ती है और पाठक/श्रोता को प्रस्ताव की विषय-सामग्री ग्रहण करने में आसानी होती है।

    निष्कर्षत: प्रस्ताव के नियोजन में विशेषज्ञ की भूमिका महत्वपूर्ण होती है विशेषज्ञों की सहायता से प्रस्ताव को प्रामाणिक विश्वसनीय स्वरूप प्रदान किया जा सकता है। आज के प्रतियोगी युग में प्रस्ताव का प्रभावपूर्ण होना नितान्त आवश्यक है।


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