प्रभावी सम्प्रेषण किसी भी व्यवसाय के लिए जीवन रक्त है क्योंकि एक सम्प्रेषण प्रक्रिया जब एक सन्देश/सूचना सम्प्रेषक से प्राप्तकर्ता की ओर प्रवाहित संचारित होती है तो इसके प्रवाह में सम्प्रेषक का व्यवहार का अंश भी प्रवाहित होता है।
प्रभावी सम्प्रेषण के सिद्धान्त
किसी भी व्यावसायिक संगठन को अपने उद्देश्यों व लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ संचार व्यवस्था की अपनाना श्रेयस्कर होता है। व्यापक बाजार, गलाकाट प्रतियोगिता की स्थिति में एक प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण व्यवस्था अनिवार्य हो जाती है। सम्प्रेषण या संचार को प्रभावी बनाने के लिए कुछ सिद्धान्तों का प्रयोग करना आवश्यक है। प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण के इन सिद्धान्तों को सूक्ष्म में सात सी ((Seven 'C') के नाम से जाना जाता है।
इन्हें निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) स्पष्टता (Clarity)
संचार व्यवस्था का प्रत्येक हिस्सा पूर्ण रूप से स्पष्ट होना चाहिए जिससे सम्बन्धित व्यक्ति सन्देश को उसी रूप व अर्थ में समझे जिस रूप व अर्थ में सन्देश को प्रसारित किया गया है। स्पष्टता के अन्तर्गत सम्प्रेषण व्यवस्था में निम्न बातें आवश्यक होती है-
(i) विचारों की स्पष्टता-
सन्देश देने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में जब विचार आता है, उसी स्थिति में सन्देशकर्ता को स्वयं सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि-
1. सम्प्रेषण का उद्देश्य क्या है ?
2. सम्प्रेषण की सामग्री क्या है ?
3. सम्प्रेषण के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचार का कौन-सा माध्यम उपयुक्त होगा ?
उदाहरण- यदि किसी गोदाम में ज्वलनशील पदार्थ हैं, तो उस स्थिति में सम्प्रेषण का उद्देश्य चेतावनी "धूम्रपान न करें" होना चाहिए।
(ii) अभिव्यक्ति की स्पष्टता-
सन्देशग्राही को स्पष्ट होना चाहिए कि सन्देशप्रेषक से किस प्रकार का सन्देश लिया जाये। सेना में कोड शब्द प्रचलित होते हैं। दोनों पक्षों को कोड स्पष्ट होना चाहिए। शब्दों के चयन में निम्न बातें ध्यान रखनी चाहिए।
1. सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
2. स्पष्ट एवं निश्चित अभिव्यक्ति का प्रयोग होना चाहिए।
3. निवारक रूप को प्राथमिकता देनी चाहिए।
उदाहरण- आपके प्रयत्नों की हम सबने प्रशंसा की है- अनिवारक ।
हम सब आपके प्रशंसक हैं- निवारक ।
(iii) अपरिमित रूप का प्रयोग न करना-
अपरिमित रूप का प्रयोग सन्देश को अवैयक्तिक या औपचारिक बना देता है।
जैसे-कैशियर का कर्तव्य है कि वेतन भुगतान करे- अपरिमित ।
कैशियर वेतन भुगतान करता है- उपयुक्त।
(iv) निरर्थक शब्दों का प्रयोग न करना-
निरर्थक शब्द अर्थहीन हो जाते हैं क्योंकि इन शब्दों का अर्थ स्पष्ट नहीं होता।
अतः ऐसे शब्दों का प्रयोग उचित नहीं है। जैसे- We beg to, this is to acknowledge, at all time, at the present time.
(v) सन्देहात्मक शब्दों का प्रयोग न करना-
यदि किसी सन्देश का अर्थ स्पष्ट नहीं है तो इस स्थिति में सन्देश का प्रयोग करना उचित न होगा।
जैसे- "रोको मत जाने दो" इसके दो अर्थ निकलते हैं-
1. रोको, मत जाने दो।
2. रोको मत, जाने दो।
(vi) छोटे वाक्यों का प्रयोग-
छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि बड़े वाक्य जटिल व अस्पष्ट होते हैं।
(2) पूर्णता (Completeness)
यह सम्प्रेषण का द्वितीय महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। व्यावसायिक संचार सदैव अपने आप में पूर्ण होना चाहिए पूर्णता में निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
1. सन्देश किसको जा रहा है ?
2. सन्देश क्या है ?
3. सन्देश किस स्थान पर जायेगा ?
4. सन्देश कब तक पहुँचना है और कब भेजा गया ?
5. सन्देश का कारण क्या है ?
उपर्युक्त सभी बातें स्पष्ट होना अनिवार्य है।
(3) संक्षिप्तता (Conciseness)
सन्देश संक्षिप्त होना चाहिए। इसमें अनावश्यक भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। इससे सन्देशप्रेषक व सन्देशग्राही दोनों का ही समय बचता है। प्रयत्न यह होना चाहिए कि छोटे सन्देश में सभी बातों का समावेश होना चाहिए अर्थात् कम से कम शब्दों में अधिक बातों का समावेश होना चाहिए।
उदाहरण-
1. Attached here with-Attached.
2. It is desired that we receive We want.
3. In the case of-If.
4. In point of fact-In fact.
(4) प्रतिफल (Consideration)
सन्देशग्राही को यह स्पष्ट होना चाहिए कि सन्देश के प्रत्युत्तर में वह क्या भेजना चाहता है ? प्रतिपुष्टि में निम्न बातों का होना आवश्यक है-
1. 'आप' पर विशेष ध्यान दें। सन्देश प्रभावपूर्ण होना चाहिए। सन्देशग्राही तभी प्रत्युत्तर देगा जब उसे उसके पक्ष की स्पष्ट नौति की जानकारी हो। 'मैं' व 'हम' शब्दों का कम से कम प्रयोग हो, जबकि 'आप' शब्द का प्रयोग किया जाये।
2. सकारात्मक व सुखदायक तथ्यों का अधिक महत्व हो। व्यावसायिक तथ्यों का अधिक महत्व हो। व्यावसायिक सन्देशों में 'नहीं', 'क्षमा' व 'मतभेद' इस प्रकार के स्थान पर सुन्दर व सकारात्मक भाषा का प्रयोग उत्तम होगा।
3. सन्देश में विश्वसनीयता होना अनिवार्य है क्योंकि इससे व्यक्ति के चरित्र व विश्वास का अधिक प्रभाव पड़ता है। इससे सन्देश की प्रामाणिकता बढ़ती है।
(5) विशिष्टता (Concreteness)
प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण का यह महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इसके अनुसार सम्प्रेषण करते समय विशिष्ट, स्पष्ट एवं निश्चित सूचना का प्रयोग करना चाहिए। अतः सम्प्रेषण में विशिष्टता लाने के लिए निम्न बातों का पालन करना चाहिए।
1. सम्प्रेषण में विशिष्ट तथ्यों एवं आँकड़ों का प्रयोग करना चाहिए।
2. सम्प्रेषण में पहले से उपलब्ध विश्वसनीय आँकड़ों को शामिल करना चाहिए।
3. सम्प्रेषण में तुलनात्मक सूचनाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि विचार अधिक स्पष्ट हो।
(6) नम्रता या शिष्टता (Courtesy)
व्यावसायिक सन्देश की भाषा जितनी नम्र होगी, उतना ही अनुकूल प्रभाव सन्देशग्राही पर पड़ता है। नम्र व्यवहार से ही व्यवहार में नम्रता या शिष्टता प्राप्त होती है। नम्रता में वृद्धि के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए-
1. सन्देश का उत्तर शीघ्र देना चाहिए।
2. किसी भी प्रकार की उत्तेजनीय अभिव्यक्ति नहीं होनी चाहिए।
3. किसी भी त्रुटि की शीघ्र क्षमा माँगना या खेद प्रकट करना लाभप्रद होगा।
4. किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा कार्य करने पर धन्यवाद अवश्य देना चाहिए।
उदाहरण-
1. मुझे खेद है कि आप समय पर बैग प्राप्त नहीं कर पाये।
2. आपके पत्र दिनांक 5 अगस्त, 2014 का बहुत-बहुत धन्यवाद।
(7) शुद्धता (Correctness)
सन्देश में असत्य या अनावश्यक तथ्यों का प्रयोग उचित नहीं होता। सन्देश की शुद्धता के सन्दर्भ में निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. सही तथ्य देना-
सन्देशप्रेषक के लिए यह सुनिश्चित हो कि उसकी भाषा सही है।
2. सही समय पर सन्देश भेजना-
कार्य पूर्ण होने के उपरान्त सन्देश निरर्थक हो जाता है। अतः सही व उचित समय पर सन्देश भेजना उचित होगा।
3. सन्देश सही स्थिति में भेजना-
सन्देश इस प्रकार प्रेषित किया जाये कि सन्देशग्राही को किसी प्रकार की कठिनाई न हो।
आज के व्यावसायिक वातावरण में व्यावसायिक सम्प्रेषण अत्यधिक महंगे हो गये हैं एवं अत्यन्त व्यस्त व्यावसायिक माहौल भी निर्मित हो गया है। अतः एक सन्देशप्रेषक को उपर्युक्त बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है।
(8) समग्रता (Integrity)
संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सम्प्रेषण प्रबन्धकों व कर्मचारियों के मध्य सहकारिता, सहयोग व सुरक्षा की भावना बढ़ाने का एक यन्त्र है। इस हेतु समग्रता का होना आवश्यक है। यदि संगठन के उद्देश्यों में समग्रता की निश्चितता हो तो संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करना आसान होता है। किसी भी सन्देश को विभिन्न सोपानों से होकर गुजरना होता है। एक संगठन में प्रबन्धन के विभिन्न स्तर होते हैं, जैसे-
1. महाप्रबन्धक (General Manager)
2. उप महाप्रबन्धक (Dy. General Manager) ।
3. विभागीय प्रबन्धक (Departmental Manager)
4. वरिष्ठ अधिकारी (Senior Officer)।
5. पर्यवेक्षक (Supervisor)।
यहाँ पर सर्वप्रथम महाप्रबन्धक किसी सन्देश को प्राप्त करता है और वह आदेश उप-महाप्रबन्धक के जरिए पर्यवेक्षक के पास पहुँचता है। यह प्रक्रिया गलत है। चूँकि कोई भी आदेश उप महाप्रबन्धक से होते हुए विभागीय प्रबन्धक, वरिष्ठ अधिकारी से होकर पर्यवेक्षक के पास पहुँचना चाहिए। यदि हम अपने प्रबन्धन के अन्य अधिकारियों को अनदेखा करेंगे तो यह संगठन के लिए हानिकारक होगा।
उपर्युक्त सिद्धान्तों की व्याख्या करने के पश्चात् यह स्पष्ट होता है कि सम्प्रेषण व्यवस्था में ईमानदारी, सद्भाव, यथार्थता, शुद्धता, नम्रता, स्पष्टता, समग्रता तथा पूर्णता का भाव होना अनिवार्य है। जिस सम्प्रेषण प्रणाली में उपर्युक्त गुण नहीं पाये जाते, वहाँ सम्प्रेषण व्यवस्था दोषपूर्ण व अप्रभावी होती है।