लेखांकन का उद्गम एवं विकास
पुस्तपालन एवं लेखाकर्म का इतिहास धन के इतिहास से सम्बन्धित है। इस तथ्य के प्रमाण उपलब्ध है कि बेबीलोनियन तथा वैदिक सभ्यता काल में वित्तीय लेखाकर्म किसी न किसी रूप में था, पर दोहरा लेखा प्रणाली वाला लेखाकर्म सर्वप्रथम इटली में प्रारम्भ हुआ। ध्यातव्य है कि भारत में लेखांकन का प्रचलन 2300 शताब्दी पूर्व कौटिल्य के समय से माना जाता है जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य में एक मन्त्री था तथा जिसने 'अर्थशास्त्र' के नाम से एक पुस्तक लिखी थी जिसमें लेखाकन अभिलेखों को कैसे रखा जाये, का वर्णन किया गया था। चीन एवं इजिप्ट में भी सरकारी खजाने के राजस्व सम्बन्धी अभिलेखों को रखने के लिए लेखांकन रखा जाता था।
लूकास पेसियोली (Lucas Pacioli) को पुस्तपालन (Book-Keeping) का जन्मदाता कहा जाता है। 1494 ई. में इटली के वेनिस नगर में इनकी पुस्तक सुमा-डे-अरिथमट्रिका, जयो मेट्रिका, प्रपोरशनलिटी पर प्रोपोरशन प्रकाशित हुई। इस पुस्तक को द्विअंकन पुस्तपालन की प्रथम पुस्तक माना जाता है। यह गणित की पुस्तक थी और इसके एक खण्ड में उस समय के पुस्तपालन की एक विधि का वर्णन किया गया था। इस पुस्तक में आज के लेखांकन के सर्वप्रचलित शब्द डेबिट (Dr.) तथा क्रेडिट (Cr.) का उपयोग किया गया था। उसने मेमोरैण्डम, जर्नल, लेजर तथा विशिष्ट लेखांकन प्रविधियों का विस्तार से वर्णन किया था। द्वि-अंकन प्रणाली को समझाते हुए पेसियोली ने लिखा था कि सभी प्रविष्टियों दो बार अंकित किया जाता है अर्थात् यदि आप एक लेनदार बनाते है तो आपको एक देनदार बनाना होगा। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद हग ओल्ड कैसल (Hugh Old Cassel) ने सन् 1543 में किया। इस पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व दोहरा लेखा प्रणाली बिखरे हुए रूप में प्रचलित थी। इटलियन प्रणाली के पूर्व जो पुस्तपालन प्रणाली प्रचलित थी, उसे एजेन्सी बुक-कीपिंग (Agency Book keeping) कहा जाता था। इटैलियन प्रणाली का जब इग्लैण्ड में प्रवेश हुआ तो एजेन्सी बुक-कीपिंग की जगह इसे ही प्रयोग किया जाने लगा। बाद में विशेषकर सोलहवी शताब्दी में पुस्तपालन की कई पुस्तकें प्रकाशित हुई।
कालान्तर में इस प्रणाली में अनेक परिवर्तन हुए। 17वी शताब्दी में बुक-कीपिंग की इटैलियन प्रणाली में कई सुधार हुए। जर्नल एवं लेजर में प्रयोग होने वाले शब्दों में भी परिवर्तन हुए। उदाहरण के लिए, De dare या Shall या Give के स्थान पर लेजर खाते के बाये पक्ष के लिए Dr. अर्थात् Debtor का प्रयोग किया गया। सन् 1795 में एडवर्ड जोन्स (Edward Janes) ने बहीखाता की अंग्रेजी प्रणाली (English System of Book Keeping) पर एक पुस्तक की रचना की। 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति हुई। इसके फलस्वरूप बुक-कीपिंग को एकाउण्टेन्सी (Accountancy) के रूप में विकसित होने का अवसर मिला। बाद में लागत लेखाकर्म (Cost Accountancy), प्रबन्धकीय लेखाविधि (Management Accounting), मानव संसाधन लेखांकन (Human Resource Accounting) आदि का जन्म हुआ। फिर बाह्य अंकेक्षण (External Auditing) प्रारम्भ हुआ।
अतः इस प्रकार इनके विकास का क्रम निम्न प्रकार रखा जा सकता है-
पुस्तपालन----- लेखाकर्म------- अंकेक्षण
आज दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) विश्वभर में प्रचलित है और इसे पुस्तपालन की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली माना जाता है।
लेखांकन का अर्थ एवं परिभाषा
आधुनिक युग में व्यवसाय के आकार में वृद्धि के साथ-साथ व्यवसाय की जटिलताओं में भी वृद्धि हुई है। व्यवसाय का सम्बन्ध अनेक ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं तथा कर्मचारियों से रहता है और इसलिए व्यावसायिक जगत में सैकड़ों, हजारों या लाखों लेन-देन हुआ करते हैं। सभी लेन-देनों को मौखिक रूप से याद रखना कठिन और असम्भव है। हम व्यवसाय का लाभ जानना चाहते है और यह भी जानना चाहते हैं कि उसकी संपत्तियां कितनी है, उसकी देनदारियों या देवताएँ (Liabilities) कितनी है और उसकी पूंजी (Capital) कितनी है आदि-आदि। इन समस्त बातों की जानकारी के लिए लेखांकन (Accounting) की आवश्यकता पड़ती है।
सरल शब्दों में, लेखाकन का आशय वित्तीय स्वभाव के सौदों (या लेन-देनों) को क्रमबद्ध रूप में लेखाबद्ध करने, उनका वर्गीकरण करने, सारांश तैयार करने एवं उनको इस प्रकार प्रस्तुत करने से है जिससे उनका विश्लेषण (Analysia) व निर्वचन Interpretation) हो सके लेखांकन में सारांश का अर्थ तलपट (Trial Balance) बनाने से है और विश्लेषण व निर्वचन का आधार अन्तिम खाता (Final Accounts) से होता है जिसके अन्तर्गत व्यापार खाता, लाभ-हानि स्थिति विवरण या तुलना (Balance Sheet) तैयार किये जाते है।
अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक एकाउण्टेण्ट्स (AICPA) ने 1961 में लेखांकन की परिभाषा इस प्रकार दी थी-
"लेखांकन सौदों एवं घटनाओं को, जो आंशिक रूप में अथवा कम-से-कम वित्तीय प्रवृत्ति के होते हैं, प्रभावपूर्ण विधि से एवं मौद्रिक रूप में लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने तथा उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।"
इस परिभाषा में लेखाकन के कार्य क्षेत्र पर पूर्ण प्रकाश डाला गया है, इसमें केवल लेखे तैयार करना ही लेखांकन का कार्य नही माना गया वरन लेखों का श्रेणीयन, विश्लेषण एवं व्याख्या पर भी बल दिया गया है। इस परिभाषा में लेखांकन से प्राप्त होने वाले सभी लाभों की स्पष्ट झलक मिलती है।
अमेरिकन एकाउण्टिंग प्रिन्सिपल्स बोर्ड (AAPB) ने लेखांकन की परिभाषा निम्न शब्दों में दी है-
इस परिभाषा के अनुसार लेखांकन एक सेवा क्रियाकलाप है। इसका कार्य आर्थिक इकाइयों के सम्बन्ध में परिमाणात्मक सूचनाएँ, मुख्यतः वित्तीय प्रकृति की, जो आर्थिक निर्णयों व वैकल्पिक उपायों में से सुविचारित चयन के लिए उपयोगी है, को प्रदान करना है।
स्मिथ एवं एशबर्न के अनुसार- "लेखांकन मुख्यतः वित्तीय स्वभाव वाले व्यावसायिक व्यवहारों और घटनाओं के लिखने एवं वर्गीकरण करने का विज्ञान है और इन व्यवहारों व घटनाओं का महत्वपूर्ण सारांश बनाने,विश्लेषण करने, उनकी व्याख्या और परिणामों को उन व्यक्तियों तक पहुँचाने की कला है जिन्हें उनके आधार पर निर्णय लेने हैं।
इस परिभाषा में लेखांकन को विज्ञान और कला दोनो ही माना गया है। इसमें लेखांकन के क्षेत्र को, लेखों के आधार पर परिणाम निकालकर इन्हें सम्बन्धित व्यक्तियों तक पहुंचाना शामिल करके विस्तृत कर दिया गया है
पुस्तपालन का अर्थ
पुस्तपालन का अर्थ समझने के लिए पहले हम अंग्रेजी भाषा के Book-kooping शब्द पर विचार करेंगें Book keeping दो शब्दों (i) Book तथा (ii) Keeping के योग से बना है। Book शब्द का अर्थ 'पुस्तक' तथा Keeping शब्द का अर्थ 'रखना' या 'पालन' होता है।
पुस्तपालन या बुक-कीपिंग वह कला व विज्ञान है जिसके अनुसार समस्त व्यापारिक लेन-देनों का लेखा नियमानुसार स्पष्ट तथा नियमित रूप से उचित पुस्तको में किया जाता है इसे बहीखाता भी कहा जाता है।
आर. एन. कार्टर के अनुसार- "पुस्तपालन हिसाब की पुस्तकों में मुद्रा अथवा माल के हस्तान्तरण से सम्बन्धित सभी व्यापारिक सौदों के अभिलेखन की कला व विज्ञान है।"
लेखांकन की विशेषताएँ
लेखांकन की परिभाषाओं के अवलोकन से इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती है-
(1) लेखांकन व्यावसायिक सौदों के लिखने और वर्गीकृत करने की कला है।
(2) ये लेन-देन पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तीय प्रकृति के होते हैं।
(3) सौदे मुद्रा में व्यक्त किये जाते हैं।
(4) यह सारांश लिखने, विश्लेषण और निर्वचन करने की कला है।
(5) विश्लेषण एवं निर्वचन को सूचना उन व्यक्तियों को दी जानी चाहिए जिन्हें इनके आधार पर निष्कर्ष या परिणाम निकालने है या निर्णय लेने हैं।
लेखांकन के उद्देश्य
व्यावसायिक लेन-देनों का नियमित एवं सुव्यवस्थित ढंग से पूर्ण लेखा करना
लेखांकन का प्रथम उद्देश्य सभी व्यावसायिक लेन-देनों का पूर्ण एवं व्यवस्थित रूप से लेखा करना है। सुव्यवस्थित ढंग से लेखा करने से भूल की सम्भावना नहीं रहती है और परिणाम शुद्ध प्राप्त होता है।
शुद्ध लाभ-हानि का निर्धारण करना
लेखांकन का दूसरा उद्देश्य एक निश्चित अवधि का लाभ-हानि ज्ञात करना है। लाभ-हानि ज्ञात करने के लिए व्यापारी लाभ-हानि खाता (Profit and Loss Account) या आय विवरणी (Income Statement) तैयार करता है।
व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का ज्ञान करना
लेखांकन का एक उद्देश्य संस्था की वित्तीय स्थिति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक स्थिति विवरण तैयार किया जाता है जिसमें बाई ओर पूँजी एवं दायित्वों (Capital and Liabilities) को दिखाया जाता है और दाई ओर संपत्तियों (Assets and properties)को दिखाया जाता है। स्थिति विवरणों को आर्थिक चिट्टा (Balance Sheet) कहा जाता है। यदि सम्पतियों से देयताएं पूंजी एवं दायित्व कम रहती है, तो व्यापार की स्थिति सुदृढ मानी जाती है और यदि देयताएँ अधिक हो तो यह खराब आर्थिक स्थिति की सूचक होती है।
आर्थिक निर्णयों के लिए सूचना प्रदान करना
लेखाकन का एक कार्य वित्तीय प्रकृति वाली सूचनाएं प्रदान करना है जिससे निर्णय लेने में सुविधा हो, साथ ही सही निर्णय लिये जा सकें। इसके लिए वैकल्पिक उपाय भी लेखांकन उपलब्ध कराता है।
व्यवसाय में हित रखने वाले पक्षों को सूचनाएँ देना
व्यवसाय में कई पक्षों के हित होते हैं, जैसे, स्वामी, कर्मचारी वर्ग, पवनाक (Managers), लेनदार (Creditors), विनियोजक (Investors) आदि। व्यवसाय में हित रखने वाले विभिन्न पक्षों को उनसे सम्बन्धित सूचनाएं उपलब्ध कराना भी लेखांकन का एक उद्देश्य है।
कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करना
लेखांकन का एक उद्देश्य विभिन्न वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी है। लेखांकन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों के लिए रिटर्न दाखिल करने के लिए सबसे अच्छा आधार प्रस्तुत करता है।
लेखांकन की प्रक्रिया
जिस प्रकार ऋतुएं कई प्रकार की होती है और ऋतुओं का चक्र पूरे वर्ष भर चलता है उसी प्रकार लेखांकन प्रक्रिया भी एक सतत प्रक्रिया है जिसकी कई अवस्थाएँ होती है। लेखांकन प्रक्रिया को समझने के लिए हमें सर्वप्रथम लेखांकन की परिभाषा एवं लेखांकन प्रक्रिया पर ध्यान देना अतिआवश्यक होगा।
लेखांकन की परिभाषा से स्पष्ट है कि लेखांकन वित्तीय स्वभाव वाले व्यवहारों और घटनाओं के लिखने एवं वर्गीकरण करने, सारांश करने उनकी व्याख्या करने तथा परिणामों को उन व्यक्तियों तक पहुंचाने की कला व विज्ञान है जिन्हें इनके आधार पर निर्णय लेने है। इस प्रकार लेखाकन कार्यवधि या प्रक्रिया वित्तीय व्यवहारों की पहचान से प्रारम्भ होता है और जर्नल लेजर, तलपट, आर्थिक चिट्टे के निर्माण, विश्लेषण, विवेचन एवं निर्वचन तथा सूचनाओं की रिपोर्टिंग तक एक चक्र का रूप ग्रहण करती है। निश्चय ही अन्तिम लक्ष्य तक पहुंचने में लेखांकन को कई अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। संक्षेप में, लेखांकन प्रक्रिया को निम्न अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है-
1. वित्तीय लेन-देनों की पहचान
2. लेन-देनों का अभिलेखन अर्थात् प्रारम्भिक लेखा-जर्नल
3. लेन-देनों का वर्गीकरण अर्थात् खाताबही
4. शेष या बाकी निकालना
5. सारांश प्रस्तुत करना अर्थात् तलपट एवं अन्तिम खाते का निर्माण
6. विश्लेषण-विवेचन तथा निर्वचन
7. परिणामों का सम्प्रेषण ।
इस प्रकार लेखांकन चक्र को लेखाकन संरचना या लेखांकन प्रक्रिया भी कहा जाता है।
लेखांकन की प्रकृति
लेखांकन एक विज्ञान है और साथ ही साथ यह एक कला भी है। लेखांकन की प्रकृति के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य महत्त्वपूर्ण है-
लेखाकन एक कला है
लेखांकन को 'कला' माना गया है।
A. I..C.P.A. के अनुसार- "लेखांकन व्यवसायं के लेखे एवं घटनाओं को, जो पूर्णतः या आंशिक रूप से वित्त सम्बन्धी होते हैं, मुद्रा में प्रभावपूर्ण विधि से लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने एवं उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।"
लेखांकन एक विज्ञान है
लेखांकन एक विज्ञान है क्योंकि इसमें विषय-वस्तु का क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। लेखांकन के अपने सिद्धान्न व नियम है। यद्यपि लेखांकन के सिद्धान्त प्राकृतिक विज्ञानों के नियमों के समान दृढ एवं सर्वमान्य (Universal) नहीं है परन्तु वे सामान्यतः स्वीकृत अवश्य है। लेखाकन के सिद्धांत परम्परा, परिपाटी, अनुभव व तर्क पर आधारित है।
लेखांकन एक बौद्धिक विषय है
लेखांकन को एक बौद्धिक विषय मानकर अध्ययन किया जाता है क्योंकि इसमें वित्तीय व्यवहारों का विवेचन, विश्लेषण एवं उनकी व्याख्या की जाती है जिससे सम्बंधित व्यक्तियों को निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
लेखांकन एक पेसा है
वर्तमान युग की एक मान्य विचारधारा है कि लेखांकन एक पेशा है। पेशा वह कार्य है जिसमें वह व्यक्ति अपने विशिष्ट ज्ञान, चातुर्य, प्रशिक्षण एवं अनुभव के आधार पर अन्य व्यक्तियों को व्यक्तिगत सेवा प्रदान कर पारिश्रमिक प्राप्त करता है, जैसे, वकील, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट आदि। इसी प्रकार आज लेखापाल (Accountant) भी विधिवत् अध्ययन एवं प्रशिक्षण के माध्यम से अर्जित अपने कौशल, चातुर्य एवं सेवाएं देकर पारिश्रमिक प्राप्त करता है। अतः लेखांकन एक पेशा है।
लेखांकन एक सामाजिक शक्ति है
प्राचीन काल में लेखांकन अपने स्वामियों के प्रति उत्तरदायी था, परन्तु वर्तमान युग में लेखांकन सम्पूर्ण समाज के लिए उतना ही उत्तरदायी माना जाने लगा है जितना वह स्वामियों के प्रति उत्तरदायी होता है। आज जनहित की समस्याओं को सुलझाने के लिए लेखांकन की सूचनाओं को प्रयोग में लाया जाता है, जैसे- मूल्य निर्धारण, मूल्य नियन्त्रण, करारोपण आदि।
लेखांकन एक सेवा कार्य है
लेखाकन एक सेवा कार्य है। इसका उद्देश्य व्यावसायिक क्रियाओं के सम्बन्ध में परिमाणात्मक वित्तीय सूचनाएं प्रदान करना है। यह उन लोगों को लेखांकन सूचनाएँ उपलब्ध कराता है जो इसके आधार पर महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहते है।
लेखांकन के कार्य
लेखात्मक कार्य
लेखांकन का यह आधारभूत कार्य है। इस कार्य के अन्तर्गत व्यवसाय को प्रारम्भिक पुस्तकों (जर्नल और उसकी सहायक बहियों) में क्रमबद्ध लेखे करना, उनको उपयुक्त खातों में वर्गीकृत करना अर्थात् उनसे खाते तैयार करना और तलपट (Trial Balance) बनाने के कार्य शामिल है। इनके आधार पर वित्तीय विवरणियों , जैसे, लाभ-हानि खाता/आय विवरणी तथा चिट्टे को तैयार किया जाता है।
व्याख्यात्मक कार्य
इस कार्य के अन्तर्गत लेखांकन सूचनाओं में हित रखने वाले पक्षी के लिए वित्तीय विवरण व प्रतिवेदन (Report), विश्लेषण व व्याख्या शामिल हैं। तृतीय पक्ष एवं प्रबन्धकों की दृष्टि से लेखांकन का यह कार्य महत्वपूर्ण माना गया है। किसी व्यवसाय का तुलनात्मक विवरण, प्रवृत्ति विश्लेषण (Trend Analysis), अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis) करना तथा रोकड़ प्रवाह (Cash Flow) व कोष प्रवाह (Fund Flow) विवरण तैयार करना आदि कार्य वित्तीय विवरणों की व्याख्या के अन्तर्गत आते है।
वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना
विभिन्न कानूनो/विधानों, जैसे- कम्पनी अधिनियम, आयकर अधिनियम, बिक्री कर अधिनियम आदि द्वारा विभिन्न प्रकार के विवरणों को जमा करने पर बल दिया जाता है, जैसे- वार्षिक खाते, आयकर रिटर्न, विक्रीकर रिटर्न आदि। ये तभी जमा किये जा सकते है यदि जब लेखांकन ठीक से रखा जाये।
व्यवसाय की सम्पत्तियों की रक्षा करना
लेखांकन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य व्यवसाय की सम्पत्तियों की रक्षा करना है। यह तभी सम्भव है, जबकि विभिन्न सम्पत्तियों का उचित लेखा रखा जाये।
परीक्षात्मक कार्य
इसके अन्तर्गत वित्तीय विवरणों और प्रतिवेदनों की शुद्धता, सत्यता और वैधानिकता की जाँच करने से सम्बन्धित कार्य आते हैं। छोटे व्यापारों में व्यापार का स्वामी स्वयं भी इस कार्य को कर सकता है लेकिन बड़े व्यवसाय में इस कार्य के लिए लेखा परीक्षकोण अर्थात् अंकेक्षकों (Auditors) की सेवाएं प्राप्त की जाती है।
वित्तीय परिणामों की सूचना देना
लेखांकन को व्यवसाय की भाषा कहा गया है। जिस प्रकार भाषा का मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण के साधन के रूप में कार्य करना है क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति भाषा ही करता है, ठीक उसी प्रकार लेखांकन व्यवसाय को वित्तीय स्थिति व अन्य सूचनाएं जैसे- शुद्ध लाभ सम्पति व दायित्व आदि उन सभी पक्षकारों को प्रदान करता है जिनके लिए ये आवश्यक है।
उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त लेखा प्रबन्धकों संस्था के नियन्त्रण कार्य में पर्याप्त सहायता प्रदान करता है। यह सहायता विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को उपलब्ध कराकर ही की जाती है। जैसे-
- हस्तस्थ रोकड़ कितनी है ?
- बैंक शेष स्थिति क्या है ?
- सामग्रियों या स्टॉक (Inventories) की स्थिति क्या है ?
- ग्राहको के पास कितना है ?
- लेनदारों को कितना देना है ?
- विभिन्न सम्पत्तियों को स्थिति क्या है, और उनका उपयोग किस प्रकार से रहा है ?
इन सूचनाओं के आधार पर ही संस्था के स्वामी या प्रबन्धक यह देखते हैं कि किसी सम्पत्ति की बर्बादी तो नहीं हो रही है।
लेखांकन की शाखाएँ
विभिन्न उद्देश्यों को पूर्ति हेतु अलग-अलग प्रकार की लेखांकन पद्धतियाँ विकसित हुई है। इन्हें लेखांकन के प्रकार या लेखांकन की शाखाएं कहा जाता है।
लेखांकन मुख्यतः निम्न प्रकार के होते है
(1) वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting),
(2) लागत लेखांकन (Cost Accounting),
(3) प्रबन्ध लेखांकन (Management Accounting),
(4) कर लेखांकन (Tax Accounting),
(5) सरकारी-राजकीय लेखांकन (Government Accounting),
(6) सामाजिक लेखांकन (Social Accounting);
(7) मुद्रा-स्फीति लेखांकन (Inflation Accounting).
(8) मानव संसाधन लेखांकन (Human Resource Accounting)
(1) वित्तीय लेखांकन
वित्तीय लेखांकन वह लेखांकन है जिसके अन्तर्गत वित्तीय प्रकृति वाले सौदों को लेखाबद्ध किया जाता है। इन्हें सामान्य लेखाकर्म भी कहते हैं और इन लेखों के आधार पर लाभ-हानि या आय विवरण तथा चिट्ठा (तुलन-पत्र) तैयार किया जाता है।
व्यवसायी वर्ष के अन्त में अपने कारोबार का लाभ-हानि जानना चाहते हैं और यह भी जानना चाहते हैं कि उनके व्यापार की आर्थिक स्थिति क्या है, इसलिए वे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वित्तीय लेखांकन का सहारा लेते है। इसी प्रकार विनियोजक, लेनदार (Creditors) और अन्य पक्ष, जिनका व्यावसायिक संस्था में हित रहता है, व्यावसायिक उपक्रम के लाभ-हानि व आर्थिक स्थिति से अवगत होना चाहते हैं। इस दृष्टि से भी वित्तीय लेखांकन आवश्यक माना गया है।
इस प्रकार वित्तीय लेखांकन के निम्नलिखित मुख्य कार्य है-
- व्यवसाय या संस्था से सम्बन्धित लेन-देनों को उपयुक्त बही में लिखना;
- आवश्यक खाते, लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा तैयार करना;
- एक निश्चित अवधि के व्यावसायिक परिणामों से व्यवसाय के स्वामी या सम्बन्धित पक्षकारों को अवगत कराना।
(2) लागत लेखांकन
लागत लेखांकन वित्तीय लेखा पद्धति की सहायक (Subsidiary) है। लागत लेखांकन किसी वस्तु या सेवा की लागत का व्यवस्थित व वैज्ञानिक विधि से लेखा करने की प्रणाली है। इसके द्वारा वस्तु या सेवा की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत का सही अनुमान लगाया जा सकता है, इसके द्वारा लागत पर नियन्त्रण भी किया जाता है। लागत लेखाकन के अन्तर्गत प्रत्येक कार्य या आदेश, ठेका, विधि, सेवा या इकाई की लागत का निर्धारण सम्मिलित रहता है। यह उत्पादन, विक्रय एवं वितरण की लागत भी बताता है।
(3) प्रवन्ध लेखांकन
यह लेखांकन की आधुनिक कड़ी है। जब कोई लेखा विधि प्रबन्ध की आवश्यकताओं के लिए आवश्यक सूचनाएं प्रदान करती है, तब इसे प्रबन्धकीय लेखा विधि कहा जाता है।
रॉबर्ट एन्थोनी के अनुसार- "प्रवन्ध लेखांकन का सम्बन्ध उन लेखांकन सूचनाओं से है, जो प्रबन्ध के लिए उपयोगी हैं।
प्रबन्ध की आवश्यकताएँ मुख्यतः नियोजन , संगठन तथा नियन्त्रण से सम्बन्धित होती है। अतः प्रबन्धकीय लेखांकन के अन्तर्गत वित्तीय विवरणों का विश्लेषण, अनुपात विश्लेषण , बजटरी नियन्त्रण , प्रमाप लागत , सीमान्त लागत सम-विच्छेद बिन्दु विश्लेषण , रोकड़ प्रवाह विवरण , कोष प्रवाह विवरण, संवहन एवं रिपोर्टिग सम्मिलित है।
(4) कर लेखांकन
भारत और अन्य देशों में सरकारी काम-काज के लिए कई प्रकार के कर लगाये जाते है, जैसे- आय कर, सम्पदा कर बिक्री कर, उपहार कर मृत्यु कर आदि। कर व्यवस्थाओं के लिए विशेष प्रकार की लेखांकन पद्धति अपनायी जाती है। कर व्यवस्थाओं के अनुसार रखे जाने वाले लेखांकन को कर लेखांकन कहा जाता है।
(5) सरकारी/राजकीय लेखांकन
केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार एवं स्थानीय सत्ताएँ (जैसे- नगर निगम, नगरपालिका, जिला बोर्ड आदि) जो लेखांकन पद्धति अपनाती है, उसे सरकारी लेखांकन कहा जाता है। सरकार का उद्देश्य प्रशासन करना और विभिन्न विभागों के कार्यों को अच्छी प्रकार चलाना होता है। सरकार अपने आय-व्यय के लिए बजट बनाती है। सरकारी लेखों में लेन-देनों का वर्गीकरण प्रशासनिक क्रियाओं और लेन-देनों की प्रकृति के वर्गीकरण के आधार पर किया जाता है। अधिकांश सरकारी लेखे इकहरी लेखा प्रणाली के आधार पर रखे जाते हैं और लेखों का बहुत कम भाग ही दोहरा लेखा प्रणाली के आधार पर रखा जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य उन खातों के शेष निकालना होता है, जिनमें सरकार बैंकर, ऋणदाता या ऋणी की हैसियत में होती है।
वस्तुतः सरकार के कुछ विभागों में लेखांकन के लिए रोकड़ प्रणाली (Cash System) अपनायी जाती है, और जिन विभागों का कार्य व्यावसायिक प्रकृति का होता है, उनमें सामान्य सरकारी खातों के अतिरिक्त ये खाते विवरण के आधार पर तैयार किये जाते हैं जिनमें वास्तविक भुगतान दर्शाये जाते हैं, और उपार्जन आधार (Accrual Basis) पर बाद में समायोजन किये जाते हैं।
(6) सामाजिक लेखांकन
किसी राष्ट्र की आर्थिक क्रियाओं को उचित ढंग से क्रमबद्ध करना ही सामाजिक लेखांकन कहलाता है। ये क्रियाएं विभिन्न कार्य सम्बन्धी वर्गों में बाँटी जाती है। लेखांकन की यह विधि किसी राष्ट्र में निर्धारित अवधि में हुए सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों को वृहत् रूप में प्रकट करती है, इसे राष्ट्रीय लेखांकन भी कहा जाता है।
(7) मुद्रा-स्फीति लेखांकन
बीते हुए समय की दीर्घावधि की मूल्य स्थिति को देखा जाये तो एक बात सर्वमान्य रूप से स्पष्ट होती है, कि संसार भर में प्रत्येक वस्तु के मूल्यों में वृद्धि हुई है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद तो मूल्य सूचकांकों में परिवर्तन की गति बेहद तीव्र हुई है और मुद्रा-स्फीति की इस स्थिति ने व्यावसायिक जगत् के आर्थिक परिणामों की तुलनीयता को निरर्थक बना दिया है। मुद्रा-स्फीति के इस दुष्परिणाम का प्रभाव शून्य कर वास्तविक परिणामों को जानकारी करने के लिए मुद्रा मूल्य सूचकांकों की सहायता से लाभ-हानि खाते को समायोजित किया जाता है और इसी प्रकार से चिट्टे में स्थायी सम्पत्तियों के मूल्यों को समायोजित किया जाता है। पुनर्मूल्यांकन द्वारा भी अन्तिम खातों को तैयार किया जाता है।
तथा वर्तमान में इस लेखांकन की दो विधियां हैं-
- वर्तमान लागत लेखांकन (Current Cost Accounting CCA)
- वर्तमान क्रय शक्ति लेखांकन (Current Purchasing Power Accounting-CPPA) जो प्रचलन में आने लगी है।
(8) मानव संसाधन लेखांकन
किसी भी उपक्रम की स्थिरता, विकास और लाभदायकता सुनिश्चित करने के लिए उसकी मानव सम्पति से अधिक महत्वपूर्ण अन्य कोई घटक नहीं है। इसकी महत्ता तब आसानी से समझी जा सकती है, जब उत्पादन के अन्य साधन पूँजी, सामग्री, मशीने आदि सब उपलब्ध हो और श्रमिक वर्ग हड़ताल पर होता है। इसी प्रकार एक पेशेवर संस्था, जैसे अच्छे डॉक्टरों की क्लीनिक, वकीलो, इन्जीनियरों, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स की फर्म की जीवन शक्ति एवं लाभदायकता मानव सम्पत्ति पर ही निर्भर करती है लेकिन इस महत्वपूर्ण सम्पत्ति का लेखांकन एवं मूल्यांकन आर्थिक चिट्ठे में किसी भी प्रकार परिलक्षित नहीं होता है। परिणामस्वरूप दो फर्मों के आर्थिक परिणामों को केवल विनियोजित पूंजी पर प्रत्याय आदि के आधार पर तुलना अपूर्ण एवं कभी-कभी तो भ्रमपूर्ण होती है। एक औद्योगिक फर्म एवं पेशेवर फार्म के आर्थिक परिणामों की तुलना तो मात्र इस घटक के कारण ही असम्भव होती है। इस कमी को दूर करने के लिए लेखांकन जगत में मानव शक्ति के मूल्यांकन एवं लेखों में दर्ज कर वित्तीय परिणामों के प्रदर्शित करने की एक नयी प्रणाली विकसित होने लगती है जिसे मानव संसाधन लेखांकन कहा जाता है।
अमेरिकन एकाउण्टिंग एसोसिएशन की मानव संसाधन लेखांकन समिति के अनुसार- "मानव संसाधन लेखांकन मानव साधनों को पहचानने, इनका आँकड़ों में मापन करने और इस सूचना को सम्बन्धित पक्षों तक संवहित करने की प्रक्रिया है।"