लेखन कौशल लिखित सम्प्रेषण का एक महत्वपूर्ण अंश है। यह आधुनिक व्यवसाय के लिए, यथा, पत्रों, ज्ञापन (मेमो) प्रतिवेदन, भाषण लेखन व अन्य प्रकार की लेखन क्रियाओं हेतु महत्वपूर्ण है।
लेखन कुशलता का लाभ यह है कि इसके द्वारा एक स्थायी दस्तावेज (Record) उपलब्ध होता है और अन्य लोग इसे समय-समय पर मूल दस्तावेज से सम्बन्धित सन्देश को प्राप्त कर सकते हैं तथा एक मूल दस्तावेज प्रमाण के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
यद्यपि व्यावसायिक लेखन, यथा, पत्र, रिपोर्ट व भाषण लेखन इत्यादि कार्य देखने में अत्यन्त सरल व सहज दिखते हैं, परन्तु वास्तव में यह कार्य इतना सरल व सहज नहीं है। यह निरन्तर कड़े परिश्रम, अभ्यास तथा सावधानी व गहन एकाग्रता का कार्य है। लेखन कुशलता वास्तव में उचित नियोजन, दक्षता व कठिन परिश्रम पर निर्भर करती है।
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लेखन कुशलता या दक्षता के चरण
लेखन कुशलता अथवा किसी व्यावसायिक पत्र के नियोजन के निम्नलिखित चार चरण होते हैं-
1. नियोजन (Planning),
2. प्रथम प्रारूप लेखन (First Drafting)
3. संशोधन (Amendment),
4. सम्पादन (Editing)।
1. नियोजन (Planning)-
लेखन कुशलता के प्रथम चरण अर्थात् नियोजन में सन्देश के मूल तत्वों के बारे में गहन विचार किया जाता है, यथा, उद्देश्यों, श्रोताओं व माध्यमों इत्यादि। साथ ही साथ इस चरण में विचारों की एक व्यवस्थित श्रृंखला (क्रम) शैली पर भी विचार किया जाता है अर्थात् नियोजन के अन्तर्गत निम्न पाँच बातें समाहित होती है-
(i) उद्देश्य (Objectives),
(ii) श्रोता- विश्लेषण (Audience Analysis),
(iii) विचारों का चयन (Selection of Thoughts),
(iv) विचारों के अनुकूल आँकड़ों व तथ्यों का एकत्रीकरण (Collection of Data and Facts According to Thoughts), तथा
(v) सन्देश का व्यवस्थित क्रम प्रदान करना (To make Proper Sequence to Messages)
2. प्रथम प्रारूप लेखन (First Drafting )-
लेखन कुशलता के द्वितीय चरण अर्थात् प्रथम प्रारूप लेखन में प्रथम ड्राफ्ट लिखा जाता है। इसके अन्तर्गत विचारों को शब्द का रूप प्रदान कर वाक्यों व पैराग्राफ का निर्माण किया जाता है। मुख्य विचार के समर्थन व उससे सम्बन्धित अनुकूल तथ्यों व उदाहरणों का चयन किया "जाता है, भले ही लेखन औपचारिक हो या अनौपचारिक प्रथम प्रारूप लेखन की निम्न दो शैलियाँ होती है-
(i) रेखीय (Linear), एवं (ii) चक्रीय (Circular) |
रेखीय शैली में एक तथ्य के पश्चात् दूसरा तथ्य क्रमशः प्रस्तुत किया जाता है जबकि चक्रीय शैली में विचारों की प्रस्तुति व व्यवस्था अत्यधिक लचीली होती है। प्रथम ड्राफ्टिंग में सर्वप्रथम मुख्य सूचना को प्रथमतः कागज पर लिखा जाता है जोकि सम्पूर्ण सन्देश का एक प्रमुख अंश होता है।
3. संशोधन (Amendment)
4. सम्पादन (Editing) -
चतुर्थ व अन्तिम चरण अर्थात् सम्पादन में वाक्य संरचना, उच्चारण व व्याकरण आदि में सुधार किया जाता है। इस चरण में लेखन को सतही जाँच के जरिए सम्पूर्ण सन्देश में मुख्य परिवर्तन किये जाते हैं अर्थात् सम्पादन के जरिए सन्देश को अत्यन्त ही प्रभावशाली स्वरूप प्रदान किया जाता है। सम्पादन लेखन कुशलता का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि कभी-कभी लेखन में प्रूफ रीडिंग के समय छोटी-सी त्रुटि सम्पूर्ण सन्देश के अर्थ को बदल देती है।
एक प्रभावशाली व्यावसायिक लेखन के लिए आवश्यक बातें
1. एक प्रभावशाली लेखन के लिए निम्न प्रश्नों का समाधान आवश्यक है-
(i) क्यों लिखें ? (Why to write ?)
(ii) किसके लिए लिखें ? (For whom to write ?)
(iii) क्या लिखें ? (What to write ?)
(iv) कहाँ लिखें ? (Where to write ?)
(v) कब लिखें ? (When to write?)
(vi) कैसे लिखें ? (How to write ?)
इन समस्त प्रश्नों का हल एक प्रभावशाली लेखन के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
2. लेखन में सदैव लघु शब्दों का प्रयोग करें क्योंकि लघु शब्द अधिक स्पष्ट व अध्ययन की दृष्टि से आसान होते हैं। साथ ही साथ विचारों का आदान-प्रदान भी सहज होता है। उदाहरण के लिए' खेती के लिए मिट्टी की खुदाई की जगह 'जुताई' शब्द का प्रयोग।
3. लेखन सदैव संक्षिप्त हो (Writings should always be brief)
4. लेखन विषयानुसार व उसके अनुकूल हो (Writing should be according to the subject)।
5. लेखन यथार्थ व विश्वसनीय हो (Writing should be real and trustable)
6. लेखन व्यावहारिक हो (Writing should be practical)। कोई भी श्रोता या व्यक्ति अकड़ पा उपदेश को पसन्द नहीं करता, अतः लेखन में मानवीयता का समावेश होना चाहिए।
7. लेखन में प्रयुक्त वाक्यों में एक विचार' होना चाहिए, साथ ही साथ तार्किक रूप से पूर्व लिखित वाक्यों का अनुसरण करना चाहिए व निम्नलिखित वाक्यों का अनुसरण व नेतृत्व भी होना चाहिए। साथ ही साथ वाक्य छोटे होने चाहिए।
8. लेखन में उत्कृष्ट सर्वोत्तम विचार-विनिमय के लिए प्रचलित शब्दों का प्रयोग करें, किन्तु इस बात का ध्यान रखें कि जो शब्द आपके लिए प्रचलित हैं, वे अन्य के लिए अप्रचलित न हों।
9. लेखन में प्रबल / सबल शब्दों का प्रयोग करें अर्थात् लेखन सन्देश में 'संज्ञा' व क्रिया का प्रयोग अधिकाधिक रूप में करें किन्तु विशेषण व क्रिया-विशेषण का प्रयोग मितव्ययिता से करें क्योंकि ये विषयगत होते हैं जबकि व्यावसायिक सम्प्रेषण वस्तुगत होता है। यद्यपि किसी वाक्य में क्रिया में क्रिया ही अत्यधिक सबल होती है और यह कार्य का बोध कराती है अर्थात् क्रिया जितनी सबल व गत्यात्मक होगी, लेखन (सन्देश) उतना ही प्रभावशाली होगा।
10. लेखन में अनावश्यक वाक्यों के प्रयोग से बचें। यदि लेखन में जटिल वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। तो सरल, संयुक्त व जटिल वाक्यों के मध्य उचित समन्वय अत्यन्त आवश्यक है।
11. लेखन में अप्रचलित शब्दाडम्बर व अत्यधिक उत्साही भाषा का प्रयोग न करें।
12. सम्पूर्ण लेखन में पैराग्राफ को छोटा रखें। यद्यपि एक पैराग्राफ एक समान विचारों का समूह होता है अर्थात् यह विचार की एक इकाई है एवं विचार श्रृंखला का मूल सेतु है। अतः लेखन को आकर्षक बनाने के लिए अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से प्रत्येक पैराग्राफ एक ही विचार पर केन्द्रित व आकार में छोटा होना चाहिए।