भाषण (speeches) क्या है - in hindi

    भाषण एक सामाजिक आवश्यकता है। समाज में कई ऐसे औपचारिक व अनौपचारिक अवसर आते हैं जब हमें व्याख्यान या भाषण देने की आवश्यकता महसूस होती है। उदाहरण के लिए, उदघाटन समारोह, संगोष्ठियाँ, कम्पनी की बैठकें, परिचर्चा इत्यादि ऐसे अवसर होते हैं जब हमें प्रमुख अतिथियों के स्वागतस्वरूप कुछ उद्बोधन देने होते हैं। ये उद्बोधन इस अवसर पर अर्थपूर्ण, आकर्षक व उचित होने चाहिए। इस अवसर पर श्रोता अधिक या कम हो सकते हैं जो विशेष सूचना अथवा आमन्त्रणस्वरूप या सदस्यता / अहर्ताओं/ कसौटियों के आधार पर एकत्रित होते हैं। यद्यपि एक व्याख्यान लम्बा अथवा छोटा तथ्यपूर्ण, उचित उदाहरण सहित व सुझाव वाला हो सकता है।

    एक राजनीतिज्ञ जनता को कैसे प्रभावित करता है? उत्तर होगा अपने भाषण / व्याख्यान के द्वारा वास्तव मैं प्रत्येक वक्ता/राजनीतिज्ञ को अपने जीवन के प्रारम्भिक काल में इस व्याख्यान / भाषण सम्बन्धी स्थितियों से साक्षात्कार होता है। जो इस स्थिति से उबर जाते हैं, वे ही एक सफल वक्ता हो जाते हैं। इस व्याख्यान कला को उम्र के जितने प्रारम्भिक दौर से प्रारम्भ किया जाता है, उसका व्याख्यान उतना ही प्रभावपूर्ण व आकर्षक होता है, क्योंकि निरन्तर अभ्यास से व्यक्ति श्रोताओं के छोटे-बड़े समूहों के मध्य अपने आत्मविश्वास में वृद्धि कर लेते हैं, परन्तु कुछ व्यक्ति श्रोताओं के बीच इतने अधीर हो जाते हैं कि वे अपने व्याख्यान में 'धन्यवाद' शब्द का प्रयोग कर सकने में भी अक्षम होते हैं। 

    यद्यपि 'धन्यवाद' शब्द का प्रयोग किसी व्याख्यान में व्यक्ति के 'साहस' को इंगित करता है क्योंकि कोई व्यक्ति जब किसी प्रतियोगिता/शैक्षणिक गतिविधियों में कोई स्थान पाता है तो उसे कुछ शब्द कहने के लिए आमन्त्रित किया जाता है। जब एक बच्ची/बच्चा किसी प्रतियोगिता में इनाम पाता है तो वह इनाम ग्रहण करते समय व्यक्तियों व श्रोताओं के सम्मुख 'धन्यवाद' शब्द का प्रयोग करता है। यही वह है जब समय उस बच्चे के व्याख्यान का प्रारम्भिक उदय होता है।

    आज के आधुनिक व्यावसायिक विश्व में एक विक्रय प्रतिनिधि अपनी वस्तु को बेचने के लिए समस्त प्रभावी स्रोतों का प्रयोग करता है। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण वस्तु की विशेषताओं से सम्बन्धित व्याख्यान होता है। एक प्रबन्धक, उद्योगपति, अध्यक्ष, प्रबन्ध निदेशक किसी समारोह, सम्मेलनों व कम्पनी को बैठकों में व्याख्यान का प्रयोग करते हैं।

    स्पष्ट है कि प्रत्येक व्याख्यान पूर्व निर्धारित होता है व विभिन्न अवसरों पर विभिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न होता है।

    भाषण की तैयारी के लिए निर्देश 

    एक व्यक्ति जो सम्पूर्ण सम्बन्धित तथ्यों से अवगत होता है, वह सदैव श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध व प्रभावित करता है। हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बोले गये शब्द एक बन्दूक से छूटी हुई गोली की तरह होते हैं जो कभी वापस नहीं आती। अतः हमें व्याख्यान देते समय अत्यन्त सावधान रहना चाहिए। हमें श्रोताओं की (लोगों की) भावनाओं/संवेदनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। साथ ही साथ वक्ता को अपने संगठन के प्रभाव में बुद्धि के लिए अपने व्याख्यान में सम्भावित प्रयास करना चाहिए। एक व्याख्यान से किसी भी प्रकार का भ्रम पैदा नहीं होना चाहिए। साथ ही साथ एक व्याख्यान / भाषण अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए क्योंकि लम्बा व्याख्यान/ भाषण. उबाऊ होता है अतः एक भाषण / व्याख्यान की तैयारी में हमें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

    1. रूडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) के अनुसार-  हमें  भाषण को तैयार करते समय निम्न प्रश्नों को ध्यान में रखना चाहिए-

    (i) क्या ? (What ?)-  हम क्या सम्प्रेषित करना चाहते हैं ?

    (ii) क्यों? (Why ?)-  हमें भाषण का उद्देश्य मालूम होना चाहिए अर्थात् हमें श्रोता क्यों सुनें और हमने उनका चयन क्यों किया है ?

    (iii) कहाँ (Where ? ) - हमें अपना व्याख्यान कहाँ देना है ? क्या चयनित स्थान श्रोताओं की  दृष्टि से उचित है ? 

    (iv) कब ? (When ? )-  क्या हमने अपने व्याख्यान में समय का ध्यान रखा है ? आपका किस समय व कितने समय तक बोलना उचित है ? 

    (v) कैसे ? (How ?) - हम अपने सन्देश को कितनी अच्छी तरह से सम्प्रेषित करें ? अतः अपने व्याख्यान/ भाषण को प्रभावशील कैसे बनायें ?

    (vi) कौन? (Who ?)-  हम किसके लिए भाषण दे रहे हैं? उनकी संख्या क्या है ? एक व्यक्ति के लिए या बहुत से व्यक्तियों के लिए साथ ही साथ  हमें यह ध्यान होना चाहिए कि श्रोताओं की रुचि व आशाएँ क्या है ?

    2. यदि हमने उपर्युक्त प्रश्नों के प्रति सावधानी को है तो हमारा  भाषण स्वयं स्पष्ट व प्रभावशाली होगा। यद्यपि स्पष्टता का गुण प्रत्येक भाषण के प्राण होता है। हमें सदैव इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि सम्पूर्ण श्रोता शिक्षित हैं। मुख्यतः व्यावसायिक विश्व में प्रत्येक प्रभावशाली वक्ता 'Be Clear' सिद्धान्त का अनुपालन करते हैं।

    3 स्पष्टता के पश्चात् एक भाषण / व्याख्यान में सरलता का गुण अनिवार्य रूप से होना चाहिए। एक प्रभावशाली वक्ता जटिल से जटिल बातों को बड़े ही सरल शब्दों में स्पष्ट कर देता है। यदि भाषण / व्याख्यान में सरल भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता तो श्रोता ऊबने लगता है और उसका ध्यान बँट जाता है।

    4. भाषण/ व्याख्यान में स्पष्टता / सरलता के उपरान्त जीवन्तता एवं सजीवता होना अनिवार्य है। व्याख्यान उपयुक्त व वास्तविक अनुभव पर आधारित होना चाहिए क्योंकि उपयुक्त / उचित व वास्तविक घटनाएँ/अनुभव श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करती है। इससे व्याख्यान/ भाषण में सजीवता / जीवन्तता आती हैं।

    5. भाषण देते समय हमें श्रोताओं की तरफ ध्यान देना चाहिए। भौतिक अवरोधों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। व्याख्यान देते समय चेहरे पर मुस्कान व शरीर सीधा (Square) होना चाहिए। व्याख्या स्वाभाविक प्रकृति में देनी चाहिए।

    6. एक वक्ता को समस्त सूचनाओं की जानकारी होनी चाहिए, चाहे वह साहित्य, दर्शन, आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक, तकनीकी व विज्ञान से सम्बन्धित क्यों न हो। इस स्थिति में एक वक्ता का भाषण अत्यधिक रुचिकर व प्रभावशाली हो जाता है।

    7. सम्पूर्ण क्षेत्रों के विषयों की सामान्य जानकारी होने का तात्पर्य यह नहीं कि हम अपने व्याख्यान में अनावश्यक बातों का समावेश कर लें बल्कि इसका अर्थ यह है कि हमारे व्याख्यान/ भाषण में सूचनाओं की मात्रा के साथ-साथ उसमें गुणवत्ता भी आये। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने कहा है कि “Time is money." इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक शब्द महत्वपूर्ण है अर्थात् व्याख्यान में कम से कम शब्दों का प्रयोग अधिकाधिक अर्थ को स्पष्ट करे।

    8. यद्यपि प्रत्येक समारोह औपचारिक होता है, परन्तु वक्ता को व्याख्यान देते समय अनौपचारिक होना चाहिए। अनौपचारिकता श्रोताओं को नजदीक लाती है।

    9. वक्ता व्याख्यान / भाषण देकर अपनी ड्यूटी अर्थात् मात्र अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करता है। अतः उसके व्याख्यान/ भाषण में जोश होना अनिवार्य है क्योंकि कोई भी श्रोता सुस्त/ नीरस वक्ता को पसन्द नहीं करता।

    10. हमें अपने भाषण / व्याख्यान में अशाब्दिक सम्प्रेषण विधि का प्रयोग प्रभावपूर्ण ढंग से करना चाहिए. क्योंकि शारीरिक भाषा, भाषा प्रतिरूप इत्यादि का प्रभावशाली प्रयोग व्याख्यान को मन्त्रमुग्ध रुचिकर बनाता है।

    11. व्याख्यान/भाषण में तथ्य व आकृति ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि महत्वपूर्ण होता है इनका प्रभावशाली भाषा द्वारा उचित प्रयोग यदि भाषा पर वक्ता का नियन्त्रण नहीं है तो ये यन्त्र अप्रभावी हो जाते हैं। 

    12. वक्ता को अपना भाषण देते समय संवेदनाओं / भावनाओं को नियन्त्रण में रखना चाहिए। यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति संवेदनाओं से परिपूर्ण है। अतः एक प्रभावशाली वक्ता को व्याख्यान में अपनी संवेदनाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए बल्कि श्रोताओं की भावनाओं व संवेदनाओं को दृष्टिगत रख कर व्याख्यान देना चाहिए क्योंकि एक वक्ता का कार्य मात्र सूचना को सम्प्रेषित करना नहीं होता बल्कि व्याख्यान में निहित तथ्यों के प्रति श्रोताओं को सहमति व उन पर प्रभाव डालना होता है।

    13. एक वक्ता को श्रोताओं की सुविधाओं का ध्यान भी रखना चाहिए।

    अध्यक्षीय उद्बोधन/ भाषण

    एक संगठन, संस्था, परिषद्, कम्पनी की वार्षिक व्यापक सभाओं में अध्यक्षीय उद्बोधन/ भाषण का अपना एक विशेष महत्व होता है। इसका स्वरूप मुद्रित होता है तथा इसे सभा में उपस्थित समस्त सदस्यों में वितरित भी किया जाता है। कुछ संगठन या कम्पनियाँ इसका प्रकाशन अपनी वार्षिक प्रतिवेदन अथवा समाचार-पत्रों में भी करती हैं।

    एक अध्यक्षीय उद्बोधन में संगठन, संस्था, परिषद्, कम्पनी की वार्षिक कार्यों की प्रगति तथा भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है। इसके अतिरिक्त इस उद्बोधन में इनकी वार्षिक सफलताओं तथा असफलताओं पर प्रकाश डाला जाता है। आजकल एक राष्ट्र के आर्थिक विकास में कम्पनी के योगदान व सरकारी नीतियों का कम्पनी पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख अध्यक्षीय उद्बोधन में होने लगा है।

    एक प्रभावशाली अध्यक्षीय उद्बोधन में निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है

    1. सहभागी सदस्यों का स्वागत,

    2. संगठन संस्था, परिषद्, कम्पनी को वर्तमान स्थिति, 

    3. राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में संगठन, संस्था, परिषद्, कम्पनी की भूमिका व स्थिति ,

    4. यदि कम्पनी की वार्षिक सभा हो तो श्रम सम्बन्धों की दशा का उल्लेख

    5. ग्राहकों को सन्तुष्टि के लिए उठाये गये कदम ,

    6. कम्पनी के द्वारा (प्रारम्भ) उत्पादित नवीन उत्पाद,

    7. अनुसन्धान व विक्रय सम्बर्द्धन सम्बन्धी योजनाएँ,

    8. संगठन, संस्था, परिषद्, कम्पनी की विशेष उपलब्धियाँ या असफलताएँ व उनके प्रमुख कारण,

    9. भावी विकास योजनाएँ,

    10. धन्यवाद ज्ञापन।

    उपर्युक्त प्रभावशाली अध्यक्षीय उद्बोधन के प्रमुख तत्वों से स्पष्ट है कि एक संगठन, संस्था, परिषद, कम्पनी की सफल बैठकें उसके अध्यक्ष को प्रभावशीलता पर निर्भर होती है। एक सफल प्रभावशील अध्यक्ष में उक्त तत्वों की उपस्थिति उसके उद्बोधन को अधिक प्रभावशाली बनाती है।
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    उदाहरण 1.
    अध्यक्षीय भाषण का नमूना
    (SPECIMEN OF CHAIRMAN'S SPEECH)
    अध्यक्ष का भाषण
    दि यश मिल्स लिमिटेड
    अध्यक्ष- डॉ. आर. के. मिश्रा

    सदस्यगण,

                 आपकी कम्पनी की 25वीं साधारण सभा के अवसर पर आप सबका स्वागत करते हुए मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होती है। संचालकों की रिपोर्ट तथा 24 मई, 2014 को समाप्त होने वाले वर्ष के कम्पनी का अंकेक्षित लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा आपके पास कुछ समय से रहा है और उन्हें मैं आपकी अनुमति से पढ़ रहा हूँ।

    इस वर्ष कम्पनी ने पर्याप्त उन्नति के आयाम रख दिये हैं। जिस क्षेत्र में इतनी अधिक उन्नति या विकास हुआ है, उसकी ओर में आपका ध्यान आकृष्ट कराना अपना कर्तव्य समझता हूँ। वह विशेष क्षेत्र है विदेशी व्यापार। आपकी कम्पनी ने रु.10,00,00,000 का माल विभिन्न देशों को निर्यात किया जिससे हमारी कम्पनी को पर्याप्त विदेशी विनिमय (मुद्राएँ) प्राप्त हुई हैं तथा यही कारण है कि निर्यात वृद्धि योजना के अन्तर्गत हमारी कम्पनी को कच्ची सामग्री, जैसे, सूत आयात करने सम्बन्धी लाइसेन्स भी प्राप्त हुए हैं। 

    भारत सरकार को वर्तमान आयात एवं निर्यात नीति से हमारी कम्पनी को काफी विशिष्ट सुविधाएँ प्राप्त हुई। हैं। आपके संचालकों ने काफी दूरदर्शिता एवं सावधानी का दृष्टिकोण रखा। उन्हें उन समस्त कठिनाइयों, परेशानियों का ज्ञान था जोकि भविष्य में कच्चे माल की कमी से उत्पन्न हो सकती थीं। जैसा कि आप सभी को विदित है कि इस समय हमारी कम्पनी के सामने 'सिल्क' की समस्या प्रमुख है तथा यदि हमारी कम्पनी ने समय पर निर्यात को बढ़ाया न होता तो हमारी कम्पनी की आर्थिक स्थिति अत्यधिक प्रतिकूल होती।

    मेरी व्यक्तिगत राय है कि 'सिल्क उद्योग' को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी प्रयासों को उतनी प्राथमिकता देनी चाहिए जितनी कि सरकार अन्य उद्योगों को देती है। इस उद्योग को सरकारी सहायता की व्यापक आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में एक अन्य विशेष बात जो मैं कहना चाहता हूँ, वह यह है कि यदि लाभ की थोड़ी-सी मात्रा का त्याग कर दिया जाये, इससे कम्पनी का उत्पादन काफी बढ़ सकता है।

    मुझे यह कहते हुए अत्यधिक खुशी का अनुभव हो रहा है कि आपकी कम्पनी की वस्तुओं की विदेशों में अत्यधिक माँग है तथा इन्हें अत्यधिक पसन्द किया जाता है जो हम सभी के लिए गौरव की बात है। हमारी वस्तुएँ विदेशों में विशेष रूप से मलेशिया, बर्मा (म्यांमार) श्रीलंका, अफगानिस्तान, इराक-ईरान समेत दक्षिण अफ्रीका के देशों तक पहुँच गयी हैं तथा यह विस्तार आगे भी बढ़ता रहेगा।

    अन्त में, मुझे आपको यह जानकारी देनी पड़ रही है कि अनेक ऐसी समस्याएँ हैं जिनका प्रत्यक्ष एवं परोक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमें सामना करना पड़ रहा है। ये समस्याएँ अभी भी बनी हुई है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण पुरानी  मशीनों, प्लाण्टों के स्थान पर आधुनिक तकनीक से युक्त मशीनों का प्रतिस्थापन करना है। इस सन्दर्भ में हमारे तकनीकी विशेषज्ञों के विशिष्ट प्रयास, खोज एवं व्यापक अनुसन्धान से हमें समस्याओं को जानने का अवसर प्राप्त हुआ। चूँकि हमारे उद्योग को विगत वर्ष विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में विशेष उपलब्धि प्राप्त हुई है, अतः हम सरकार से अपेक्षा करते हैं कि हमें पुरानी मशीनों के स्थान पर नई मशीनों के प्रतिस्थापन में विशेष सहायता मिलेगी। इसके अतिरिक्त भी सरकार विभिन्न पदों हेतु वित्तीय सहायता आवश्यक रूप से उपलब्ध कराकर हमें इस दिशा में प्रोत्साहित करेगी। 

    वर्तमान समय में एक उद्योग-व्यवसाय को संचालित करने के लिए सभी के समन्वित सहयोग की व्यापक आवश्यकता होती है। मुझे यह कहते हुए अत्यधिक प्रसन्नता है कि उद्योग के अन्तर्गत प्रबन्धकों, तकनीकी कर्मचारियों सहित कर्मचारियों आदि का पूर्ण सहयोग है। जहाँ तक श्रमिकों का प्रश्न है, सम्पूर्ण वर्ष शान्तिपूर्ण एवं सहयोगात्मक वातावरण ने हमारी विशेष मदद की है।

    स्थान .....................................                                                                                                भवदीय
    दिनांक ...................................                                                                                            एम. सी. गुप्ता 
                                                                                                                                                    अध्यक्ष

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