अशब्दिक सम्प्रेषण का आशय,प्रकार,कार्य तथा लाभ - IN HINDI

    अशब्दिक सम्प्रेषण

    सम्प्रेषण के अधिकांश मौलिक स्वरूप अशाब्दिक हैं। अशाब्दिक सम्प्रेषण से अभिप्राय सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया का बिना शब्दों के सम्पन्न होना है। यद्यपि अशाब्दिक सम्प्रेषण शाब्दिक सम्प्रेषण की अपेक्षा अधिक प्रभावशील होता है। ये मुख्य रूप से किसी संवाद प्रक्रिया के 93 प्रतिशत अंश को भावनाओं/संवेदनाओं के माध्यम से सम्प्रेषित कर देता है। अधिकांश व्यक्ति शब्दों की अपेक्षा अपनी शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से अधिक सरलतापूर्वक सन्देश / सूचना का सम्प्रेषण करने में सक्षम होते हैं। अशाब्दिक सम्प्रेष प्राप्तकर्ता की दृष्टि से सन्देश के सम्प्रेषण में अधिक कुशल एवं दक्ष होता है।

    अशाब्दिक सम्प्रेषण को कई रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है, परन्तु अध्ययन की दृष्टि से इसे निम्नलिखित चार रूपों में विभाजित किया गया है-

    (I) दैहिक या शारीरिक भाषा (Body Language),

    (II) समीप्य भाषा (Proxemics),

    (III) भाषा प्रतिरूप (पार्श्व भाषा) (Para Language),

    (IV) संकेत भाषा या ध्वनि दृश्य उपकरण (Sign Language or Audio Visual Instruments) |

    शारीरिक भाषा से अभिप्राय शरीर के विभिन्न हिस्सों की गतिशीलता के द्वारा अपनी भावनाओं/संवेदनाओं के माध्यम से सन्देश / सूचना के सम्प्रेषण से है। समीप्य भाषा से अभिप्राय आस-पास के स्थान, जगह, दूरी व अन्तर व विषय-वस्तु के माध्यम से सम्प्रेषण करने से है अर्थात् आस-पास के वातावरण/पर्यावरण के उपयोग से है जबकि भाषा प्रतिरूप का अर्थ स्वर की गुणवत्ता, आवाज व वक्तव्य की गति तथा व्यक्त शब्दों के बोलने के तरीके से है अर्थात् स्वर के लक्षण से है एवं संकेत भाषा का अभिप्राय व्यक्ति की अपनी अनुभूतियों, विचारों, संवेदनाओं को संकेतों, चिह्नों, प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करने से है।

    अशाब्दिक सम्प्रेषण के उपर्युक्त रूपों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है-

    (I) दैहिक या शारीरिक भाषा-(BODY LANGUAGE)

    यह अभाषिक या अशाब्दिक सम्प्रेषण का एक प्रकार है। प्रसिद्ध विद्वान जार्ज आर टेरी ने इसे शारीरिक भाषा (Body Language) की संज्ञा दी है। इसके अन्तर्गत आँखों को घुमाना / चलाना, होठों का चबाना / चलाना, ताली बजाना इत्यादि सम्मिलित हैं। इसे शारीरिक संचालन भाषा/ अंग विन्यास (KINESICS) भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति अपने सन्देश को अन्तर्व्यक्तिगत क्रियाकलापों/गतिविधियों द्वारा अन्य व्यक्तियों या समूहों तक पहुँचाता है।

    जे. फॉस्ट (J. Fast) के अनुसार- "अविश्वास के लिए हमारे द्वारा अपनी भौहों को ऊपर चढ़ाना, घबराहट, परेशानी के लिए नाक को रगड़ना /मलना, स्वयं को संरक्षित करने के लिए अपने हाथों को बांधना, स्वयं को अलग / पृथक् बताने के लिए कंधों को उचकाना, घनिष्ठता बताने के लिए आँख मारना / पलक झपकाना, घबराहट के लिए उँगलियों का थपथपाना, विस्मरण के लिए स्वयं के माथे को थप्पड़ /चांटा मारना इत्यादि क्रियाएँ शारीरिक भाषा कहलाती हैं।" 

    यद्यपि शारीरिक भाषा भाषिक / शाब्दिक सम्प्रेषण की पूरक कहलाती है क्योंकि जब यह शाब्दिक भाषा के भूरक का कार्य करती है, तभी सम्प्रेषक के सन्देश का अर्थ स्पष्ट होता है और वह शाब्दिक भाषा के साथ जुड़ जाती है। अधिकांश विद्वानों का यह मत है कि "किसी सम्प्रेषण क्रिया में शब्द उस सन्देश के 10 प्रतिशत अंश को प्रभावित करते हैं, जबकि 40 प्रतिशत अंश तक आवाज व लय प्रभावित करती है और लगभग 50 प्रतिशत अंश शारीरिक भाषा प्रभावित करती है।" अर्थात् किसी भी सम्प्रेषण प्रक्रिया में लगभग 50 प्रतिशत शारीरिक भाषा के प्रभाव की अनुपस्थिति सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया को अधूरा या अपूर्ण कर देती है।

    दैहिक या शारीरिक भाषा की प्रकृति

    शारीरिक भाषा स्वयं के अभ्यास से प्राप्त होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह पूर्ण रूप से अनियन्त्रित नहीं बल्कि सामाजिक व्यवहार द्वारा नियन्त्रित की जाती है। इसके निम्न लक्षण है-

    1. शारीरिक भाषा को व्यक्ति बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण से प्राप्त करता है। व्यक्ति का भाषा पर आधिपत्य जीवन के कुछ ही वर्षों में हो जाता है, परन्तु व्यक्ति शारीरिक भाषा के सीखने / प्राप्त करने के प्रति जागरूक नहीं होते। वह इसके द्वारा अन्य को प्रभावित करने से भी अनभिज्ञ रहते हैं। यद्यपि शारीरिक भाषा अत्यन्त प्रभावशाली होती है।

    2. शारीरिक भाषा पूर्णत: अनियन्त्रित होती है, परन्तु इसकी अभिव्यक्ति पर सामाजिक नियमों का प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए "किसी की मृत्यु पर मुस्कराना।" शारीरिक भाषा के प्रयोग के सम्बन्ध में व्यक्तिगत व सामूहिक रूप में कई अन्तर होते हैं। कुछ व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की अपेक्षाकृत शारीरिक इशारों को अच्छी तरह से समझते हैं व ग्रहण करने में समर्थ होते हैं। कई शोध इस बात का प्रमाण देते हैं कि महिलाएँ सामान्यतः शारीरिक सम्प्रेषणों को समझने व प्रेषित करने में चतुर या प्रवीण/दक्ष होती हैं।

    दैहिक या शारीरिक भाषा के प्रकार 

    शारीरिक भाषा को निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है

    1. हाव-भाव / मुद्रा / आसन (Postures) 

    इसका अभिप्राय विभिन्न तरीकों से खड़े रहने, बैठने व लेटने व पड़े रहने से है। विभिन्न प्रकार से खड़े रहना, बैठना व लेटना कई प्रकार के अर्थों को व्यक्त करता है। हमारे पैर कई प्रकार के अभाषिक सम्प्रेषण करते हैं। हाव-भाव व उनकी गतिशीलता व्यक्ति की आत्मनिर्भरता, स्थिति व रुचि को व्यक्त करती है।

    उदाहरण के लिए-
    (i) एक श्रोता जो कि वक्ता के वक्तव्य में अत्यन्त रुचि लेता है, वह वक्ता के सम्मुख आगे की ओर झुककर बैठता है जबकि एक श्रोता जो वक्ता के वक्तव्य में रुचि नहीं लेता, वह या तो झपकी लेता है या घड़ी के काँटों की तरफ देखता है।

    (ii) हम जब गहन चिन्तन में होते हैं तो यह भाव हमारे चेहरे पर प्रकट होता है। 

    2. भाव-भंगिमा / अंग विक्षेप (Gestures) 

    यह हमारे हाथों, पैरों, बाजुओं, कुहनियों व सिर, ललाट इत्यादि की हरकतों व गतिशीलता से सम्बन्धित है। हाथ, पैर व सिर की गतिशीलता बिना शब्दों के कई महत्वपूर्ण सन्देश सम्प्रेषित करने में सहायक है।

    उदाहरण के लिए-
    (i) नाखूनों को कुतरना / काटना आन्तरिक तनावों के अवसाद का प्रतीक है।

    (ii) तर्जनी व अँगूठे का गोलाकार होना 'OK' को दर्शाता है। 

    (iii) तर्जनी का सीधा होना सावधानी व किसी दिशा या स्थान को दर्शाता है।

    3. चेहरे की अभिव्यक्ति / मुखाभिव्यक्ति (Facial Expression ) 

    चेहरे की अभिव्यक्ति शारीरिक भाषा का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम किसी चेहरे की तरफ देखकर आशा चिह्न के सम्प्रेषण या शारीरिक भाषा के कई अर्थों को समझ सकते हैं। एक प्रसिद्ध वाक्य है कि 'The face is the index of the heart.' जब हम किसी गहन विचार-मंथन में होते हैं तो यह भाव हमारे चेहरे पर प्रकट होता है। यह किसी भी प्रकार के आमने-सामने की सम्प्रेषण क्रिया के लिए अत्यन्त आवश्यक है। हम बिना कुछ कहे चेहरे के हाव-भाव (Face to Face Communication) के माध्यम से बहुत कुछ कह जाते हैं। चेहरे का हाव-भाव प्रायः खुशी, डर, क्रोध, उदासी इत्यादि क्रियाओं के द्वारा परिलक्षित होता है। मुस्कराना भी इसी श्रेणी में सम्मिलित है। चेहरे को प्रत्येक क्रिया सम्प्रेषण का एक यन्त्र है। चौड़ी या लम्बी मुस्कान अत्यधिक खुशी को दर्शाती है। निचले होंठ व आँखों के आस-पास का हिस्सा खुशी के प्रतीकों को बतलाता है। चेहरे की अभिव्यक्ति का किसी वक्ता के वक्तव्य के अर्थों को स्पष्ट करने की प्रतिपुष्टि (Feedback) में सहायक है।

    4. आँखों का सम्पर्क / नेत्र सम्पर्क (Eye Contact ) 

    यह अशाब्दिक सम्प्रेषण का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। जे. फास्ट के अनुसार, "आँखें अत्यधिक शक्तिशाली सम्प्रेषक हैं।" यह आमने-सामने सम्प्रेषण (Face to Face Communication) क्रिया का महत्वपूर्ण तत्व है। यह सर्वविदित है कि आँखें कुछ पल में ही कई शब्दों के अर्थ को सम्प्रेषित कर देती हैं, जैसे, किसी व्यक्ति को लम्बे समय तक देखना / निहारना इस बात का सूचक है कि उस व्यक्ति में आपकी अत्यधिक रुचि है।

    आँखों का सम्पर्क ईमानदारी का प्रतीक है, परन्तु कई संस्कृतियों व संस्कारों में आँखों का नीचे झुकना श्रेष्ठता व निकृष्टता में अन्तर का प्रतीक है। समाज में निम्न दर्जा प्राप्त व्यक्ति सर्वप्रथम (आमने-सामने की सम्प्रेषण प्रक्रिया में) अपनी नजरें झुकाता है। मुस्लिम समुदाय में महिलाएँ व पुरुष एक-दूसरे से नजरों के मिलाने का समर्थन नहीं करते हैं। यद्यपि ये अन्तर सम्प्रेषण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं।

    5. शारीरिक स्पर्श (Bodily Contact )

    इसके अन्तर्गत टक्कर देना, भिड़ जाना, धक्का देना, पकड़ना / धारण करना, थपथपाना/ठोकना, हाथ मिलाना, आलिंगन करना इत्यादि सम्मिलित है। इनका प्रयोग कई प्रकार के सम्बन्धों में स्थितियों को व्यक्त करता है।

    स्पर्श सम्प्रेषण का प्राथमिक स्वरूप है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में स्पर्श विभिन्न प्रकार के सम्प्रेषण को सम्प्रेषित करते हैं। साथ-साथ स्पर्श क्रिया पर स्थान का भी प्रभाव पड़ता है, जैसे, एक समलिंगी व विपरीत लिंगी व्यक्तियों का सार्वजनिक व निजी स्थानों पर शारीरिक मिलाप । साथ ही साथ कौन व्यक्ति किसको स्पर्श कर रहा है व उनके बीच क्या सम्बन्ध है, ये बातें भी शारीरिक स्पर्श के विभिन्न पहलुओं को जन्म देती है, जैसे, डॉक्टर व मरीज के बीच शारीरिक स्पर्श, पति-पत्नी के बीच शारीरिक स्पर्श, प्रेमी-प्रेमिका के मध्य शारीरिक स्पर्श इत्यादि। 

    जान्स एवं यार्बग ने लगभग 1,500 प्रकार की शारीरिक स्पर्श प्रक्रियाओं के विश्लेषण के आधार पर निम्न पाँच शारीरिक स्पर्श की श्रेणियाँ बतायी है-

    (i) अनुकूल प्रभाव (Positive Effect )- सम्मान, प्रशंसा, लगाव, आश्वासन, प्रशिक्षण या यौन रुचि।

    (ii) सजीवता (Livingness )- परिहास व प्रसन्नता/ जिन्दादिली।

    (iii) नियन्त्रण (Control)- सावधान या अनुपालन। 

    (iv) अनुष्ठानिक (Ritualistic)- संस्कार विधि या धार्मिक आवश्यकताओं के लिए, जैसे, शुभकामनाएँ व मृत्यु/प्रयाण सम्बन्धी ।

    (v) कार्य सम्बन्धी (Professionally Task Related)- नियत कार्य से सम्बन्धित, जैसे, नर्स द्वारा नब्ज का देखना।

    इसके अतिरिक्त प्रतिकूल प्रभाव व आक्रमणशील स्पर्श भी होते हैं, जैसे, क्रोधवश हाथ उठाना, धक्का देना, मुक्का मारना आदि।

    6. बाह्य आकृति (Appearance ) 

    इसके अन्तर्गत पहनावा, बालों की आकृति / प्रकृति, आभूषण, श्रृंगार इत्यादि सम्मिलित हैं। यद्यपि इनका सम्बन्ध प्रत्यक्षतः शारीरिक भाषा से नहीं होता, परन्तु ये व्यक्ति के चेहरे व भाव-भंगिमा से अर्थपूर्ण रूप में सम्बन्धित है। यह व्यक्ति के पेशा, व्यवसाय, उम्र, सामाजिक, आर्थिक स्तर, राष्ट्रीयता से सम्बन्धित है। इसके अतिरिक्त इसमें आस-पास का वातावरण, जैसे, कमरे की आकृति, दीवारों की सजावट, फर्श, खिड़कियाँ व अन्य भी सम्मिलित होते हैं।

    एक प्रसिद्ध लेखक के अनुसार व्यक्ति अपने 'Dress and Address' के द्वारा स्थापित होता है। Dress जो कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहती व Address जिसके द्वारा अन्य व्यक्तियों से पत्र व्यवहार सम्मिलित होता है। 

    7. चुप्पी (Silence ) 

    चुप्पी अर्थात् न बोलना, उत्तर न देना भी सम्प्रेषण का एक माध्यम है। यह सहमति व असहमति के रूप में भी व्यक्त होती है, जैसे, यदि कोई व्यक्ति अन्य व्यक्ति की अत्यधिक प्रशंसा करता है और दूसरा चुप है तो यह सहमति है। दूसरी ओर, यदि कोई भाषण की माँग करे और दूसरा चुप्पी साध जाये तो यह असहमति है।

    अतः स्पष्ट है कि शारीरिक भाषा (Body Language) शाब्दिक सम्प्रेषण की सहायक है। हम कह सकते हैं कि "शारीरिक क्रियाएँ शब्दों की अपेक्षा अधिक तीव्र गति व आवाज से बोल सकती हैं।"

    दैहिक या शारीरिक भाषा के कार्य 

    शारीरिक भाषा के निम्न कार्य है-

    1. शारीरिक भाषा व्यक्ति के अहसास / अभिव्यक्ति या उद्देश्य को स्पष्ट करती है।

    2. शारीरिक भाषा घनिष्ठता को व्यक्त करने में सहायक है। 

    3. शारीरिक भाषा नियन्त्रण व प्रभुत्व को व्यक्त करने में सहायक है।

    4. शारीरिक भाषा किसी उद्देश्य व लक्ष्य को दर्शाने में सहायक है।

    5. शारीरिक भाषा निर्देशों को लागू कराने में सहायक है।

    दैहिक या शारीरिक भाषा के लाभ

    दैहिक या शारीरिक भाषा के प्रमुख गुण या लाभ निम्नलिखित हैं- 

    1. शारीरिक भाषा सम्प्रेषण का बहुत आसानी से दृश्यिक होने वाला पहलू है। यह सन्देश की प्राप्ति व अनुकूटन में सहायक है।

    2. शारीरिक भाषा शाब्दिक सम्प्रेषण की सहायक है। विशिष्ट रूप से देखें तो बिना चेहरे के हाव-भाव, भाव-भंगिमा के आमने-सामने के सम्प्रेषण में किसी भी प्रकार का सम्प्रेषण सम्भव नहीं है। 

    3. शारीरिक भाषा सम्प्रेषण प्रक्रिया को अधिक भाव-प्रवण बनाती है। हाव-भाव, भाव-भंगिमा का उचित व प्रभावी प्रयोग या सम्पर्क के बिना आमने-सामने का सम्प्रेषण अप्रभावी रहता है। 

    4. शारीरिक भाषा का उचित प्रयोग करने वाले व्यक्ति किसी व्यवसाय या संगठन के सम्पूर्ण माहौल को अनुकूल व प्रभावी बनाते हैं। 

    5. शारीरिक भाषा का व्यावहारिक दृष्टि से हमारे वास्तविक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है।

    दैहिक या शारीरिक भाषा की सीमाएँ

    शारीरिक भाषा की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-

    1. अशाब्दिक सम्प्रेषण प्रक्रिया में चेहरे के हाव-भाव, भाव-भंगिमा इत्यादि सदैव विश्वास योग्य व अर्थपूर्ण नहीं होते, जबकि लिखित व मौखिक शब्दों को अधिक गम्भीरतापूर्वक लिया जाता है, परन्तु शारीरिक भाषा को सदैव गम्भीरता से नहीं लिया जाता है।

    2. विभिन्न संस्कृति, रीति-रिवाजों वाले व्यक्तियों के भिन्न-भिन्न शारीरिक संकेत होते हैं। कभी-कभी संकेतों का गलत अर्थ भी लिया जाता है अतः इनके प्रयोग व इनको समझते समय अधिक सावधानी बरतनी पड़ती है।

    3. चेहरे के हाव-भाव, भाव-भंगिमा इत्यादि शारीरिक भाषा का प्रयोग करते समय सुनने या देखने वाला अरुचि दिखाता है तो यह प्रभावी नहीं होती। अतः इनका प्रयोग करते समय व सही तथा उचित सम्प्रेषण के लिए हमें अधिक सतर्कता रखनी चाहिए। 

    4. शारीरिक भाषा का प्रयोग बड़े समुदाय या समूहों में अप्रभावी रहता है। यह केवल आमने-सामने के सम्प्रेषण में अथवा दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच अधिक प्रभावी होता है।

    दैहिक या शारीरिक भाषा का प्रभावी प्रयोग

    शारीरिक भाषा के प्रयोग में या शारीरिक भाषा को अधिक प्रभावी बनाने में निम्नलिखित बातें महत्वपूर्ण होती हैं-

    1. हमें प्रतिदिन की सम्प्रेषण प्रक्रिया में बोलने के लहजे, भाव-भंगिमा इत्यादि गतिविधियों पर ध्यान रखना होता है। हम जब खड़े रहते हैं तो हमें अपने कंधों को सीधा, शरीर स्वतन्त्र तथा अपने शरीर के वजन को दोनों पैरों पर सन्तुलित करना हमारे विचारों में दृढ़ता को दर्शाता है। हम तनाव से ग्रसित व्यक्ति को आसानी से पहचान सकते हैं क्योंकि जब वह तनाव में रहता है तो वह अपने सिर के बालों में छल्ले बनाता है या अपने हाथ में पेन को लेकर हिलाता है। एक व्यक्ति का कुर्सी पर सुव्यवस्थित बैठना, जब पैर जमीन के तल पर व कन्धे सीधे हो तो यह व्यक्ति के विश्वास व सक्रियता को स्थिति को दर्शाता है।

    2. आधुनिक व्यावसायिक जगत् में हाथ मिलाना (Hand Shake) अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह मिलने बाले व्यक्ति को शक्ति ऊर्जा व स्थिति को दर्शाता है। कलाई को मोड़कर केवल अँगुलियों को पकड़कर हाथ मिलाना एक गलत संकेत देता है। 

    ३. किसी व्यक्ति पर व्यक्तिगत प्रभाव के लिए आँखें महत्वपूर्ण व शक्तिशाली तत्व हैं। यदि आप किसी व्यक्ति की बातों को गम्भीरतापूर्वक सुन रहे हों तो हमें सामने वाले व्यक्ति की आँखों से सीधा सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

    4. शारीरिक भाषा में हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि हम किस स्तर पर किस वर्ग के व्यक्ति में सम्प्रेषण कर रहे हैं। जैसे, हम किसी बच्चे से बात कर रहे होते हैं तो हम झुक जाते हैं जिससे हम उसकी आँखों में देख सकें। जब हम किसी बुजुर्ग व्यक्ति से बात कर रहे होते हैं तो हम किसी दीवार या कोने के सहारे, वजन को एक पैर पर लाकर व हाथों को बाजू में लाकर खड़े होते हैं। अपने उच्च अधिकारी से सम्प्रेषण की स्थिति में सीधी मुद्रा में खड़े रहना आदर व सम्मान का प्रतीक है।

    5. शालीन व विश्वासपूर्ण मुद्रा हमारे व्यवसाय व संगठन के माहौल को बेहतर बनाती है। 

    6. अशाब्दिक सन्देश आपके अभ्यन्तर अर्थात् आपकी चेतना व आत्म-बल से उठती है। यदि आपको अपनी शारीरिक भाषा को बेहतर व प्रभावी बनाना है तो हमें कार्य को अपने अभ्यन्तर से प्रारम्भ करना चाहिए।

    भारत में शारीरिक भाषा

    भारतीय परिप्रेक्ष्य में शारीरिक भाषा के स्वरूप के कुछ उदाहरण निम्न हैं- 

    1. भारत में आदर-सत्कार के लिए 'नमस्ते' शब्द का प्रचलन है। अपने दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में सटाकर प्रार्थना की स्थिति में छाती के सामने धीमे रूप में लाना भारतीय परम्परा में आदर-सत्कार व ढेर सारी शुभकामनाओं का प्रतीक है। इसका प्रयोग किसी व्यक्ति के जाने व विदा करने के समय भी किया जाता है। यह भारतीय संस्कृति व संस्कार का परिचायक है।

    2. रीति-रिवाजों के अनुसार किसी पुरुष का किसी स्त्री को स्पर्श करना औपचारिक व अनौपचारिक दोनों ही स्थितियों में वर्जित है।

    3. भारतीय प्रायः बायें हाथ का प्रयोग किसी गिफ्ट या अन्य वस्तुओं को देने के लिए करते हैं, जबकि दायें हाथ का प्रयोग भोजन करने या किसी बात की अथवा वस्तु की ओर संकेत करने के करते हैं।

    4. सार्वजनिक स्थानों पर सीटी बजाना अभद्रता व अशिष्टता का परिचायक है। 

    5. भारतीयों द्वारा शरीर के पृष्ठ भाग पर गर्मीले / जोशीले अन्दाज में चपत लगाना दोस्ती व सहयोग का है।

    6. किसी भारतीय का अपने सिर को झटककर मुस्कराना 'हाँ' का प्रतीक है। 

    7. भारतीय परिवेश में व्यक्ति के जूतों का स्पर्श उचित नहीं माना जाता है।'

    8. सिगरेट, सिगार इत्यादि के प्रयोग से पहले उपस्थित व्यक्ति की इजाजत भारतीय परम्परा का प्रतीक है।

    (II) समीप्य भाषा (PROXEMICS)

    हमारे आस-पास का स्थान, जगह, दूरी अन्तर व आस-पास की विषय-वस्तु सम्प्रेषण की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। समीप्य भाषा (Proxemics) के अन्तर्गत हम अपने आस-पास के स्थान, जगह, दूरी अन्तर व आस-पास की विषय-वस्तु के माध्यम से किस प्रकार सम्प्रेषण प्रक्रिया सम्पन्न करते हैं, समाहित होता है। यदि हम गम्भीरतापूर्वक विचार करें तो आप यह पायेंगे या इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि हमारे आस-पास की स्थिति, जगह, दूरी-अन्त व आस-पास की विषय-वस्तु सम्प्रेषण किया करती है। यह आपके मस्तिष्क या अन्य के मस्तिष्क में अपने एक अर्थ को स्पष्ट करती है। समीप्य भाषा में हम इस बात का अध्ययन करते हैं कि एक व्यक्ति अपने आस-पास की विषय-वस्तु व स्थान अन्तर को किस प्रकार व्यवस्थित कर सम्प्रेषण क्रिया सम्पन्न करता है। अन्य शब्दों में, समीप्य भाषा (Proxemics) एक व्यक्तिगत अन्तर भाषा (Personal Space Language) है, जैसे कि 'Kinesics' शारीरिक भाषा (Body Language) कहलाती है।

    उदाहरण के लिए, स्थान, जगह, अन्तर, दूरी को समझने के लिए हम अपने आस-पास लगभग 12 से 4 फीट की एक परिधि की कल्पना करें। इस परिधि / सीमा के अन्तर्गत हम पूर्व में बतायी गयी अपनी समस्त शारीरिक गतिविधियों को उत्पन्न (निर्माण) करेंगे। इस बात का हमें सदैव स्मरण रहे कि आप सदैव उक्त स्थान ( निर्मित क्षेत्र (Space) 13½ x 4 ft. ) के साथ कहीं भी गतिशील रहेंगे। आप इस परिधि/ क्षेत्र में प्रवेश के लिए किसे इजाजत देंगे? क्या अभिन्न (जिगरी) दोस्त? अन्य को चयनित करेंगे ? या केवल विशिष्ट लोगों को ही इस परिधि में प्रवेश लेने देंगे? इस परिधि में केवल कानाफूसी या अत्यन्त मन्द गति के शब्दों का प्रयोग किया जायेगा। इस परिधि में केवल विशेष परिस्थितियों में ही अन्य व्यक्ति प्रवेश कर सकता है। हाथ मिलाना या पीठ थपथपाना इत्यादि औपचारिक गतिविधियाँ इस क्षेत्र / परिधि में सम्पन्न की जाती है।

    समीप्य भाषा को व्यक्तिगत अन्तर भाषा (Personal Space Language), समय भाषा (Time Language) व परिवेश (Surrounding) के रूप में भी जाना जाता है अर्थात् समीप्य भाषा के निम्नलिखित तीन प्रारूप या प्रकार होते हैं-

    (i) अन्तर (स्थान, दूरी, जगह) भाषा (Space Language),

    (ii) समय भाषा (Time Language), 

    (iii) परिवेश, वातावरण, माहौल (Surroundings) ।

    (i) स्थान अन्तर भाषा (Space Language) 

    एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से दूरी उनके मध्य सम्बन्ध व सम्प्रेषण की प्रकृति को स्पष्ट करती है। एडवर्ड टी. हॉल ने इस क्षेत्र में अत्यन्त हो रुचिकर व उपयोगी कार्य किया है। एक व्यक्ति अपने को स्थान के केन्द्र में स्थित कर अपने आस-पास के क्षेत्र, स्थान, जगह को निम्न प्रकार के संकेन्द्रित चक्रीय रूप में पाता है।

    अशब्दिक सम्प्रेषण

     समीप्य भाषा 

    अन्तर भाषा निम्न दो रूपों में सम्प्रेषित की जाती है

    (a) समीप्यता (Proxemity), 

    (b) उन्मुखीकरण (Orientation)।

    समीप्यता में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता के मध्य एक विश्रामगृह में लगभग 5.5 फीट की दूरी होती है जबकि उन्मुखी व्यक्तियों के बैठने व खड़े रहने को स्थिति को दर्शाता है। व्यक्तियों का आमने-सामने बैठना, बाजू से यह स्थितियाँ व्यक्तियों के मध्य सम्बन्ध को स्पष्ट करती है। जैसे, सहयोगी व्यक्ति सदैव टेबिल के सामने या बाजू से बैठता है अर्थात् व्यक्ति एक-दूसरे के बीच दूरी के आधार पर विभिन्न चार प्रकार की अन्तर भाषाओं का निर्माण करता है-

    (a) प्रगाढ़ अन्तर भाषा (Intimate Space Language), 

    (b) व्यक्तिगत अन्तर भाषा (Personal Space Language), 

    (c) सामाजिक अन्तर भाषा (Social Space Language), एवं 

    (d) सार्वजनिक अन्तर भाषा (Public Space Language) |

    (a) प्रगाढ़ अन्तर भाषा में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता के बीच लगभग 18 इंच की दूरी होती है अर्थात् व्यक्ति की (सम्प्रेषक) की समस्त शारीरिक गतिविधियों 18 इंच के घेरे में सम्पन्न की जायेंगी। भाषा का यह प्रकार शारीरिक स्पर्श की सम्भावना को व्यक्त करता है। सामान्यतः इस घेरे में परिवार के सदस्य, नजदीकी दोस्त व विशिष्ट व्यक्ति हो आते हैं। उदाहरण के लिए, इस मेरे में हाथ मिलाना, पीठ थपथपाना इत्यादि शारीरिक स्पर्श क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं।

    (b) व्यक्तिगत अन्तर भाषा में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता के बीच लगभग 18 इंच से 4 फीट की दूरी होती सम्प्रेषण के इस घेरे में सामान्यतः स्वैच्छिक / स्वाभाविक अनियोजित सम्प्रेषण, मित्रवत् वार्तालाप सम्मिलित होते हैं। उदाहरण के लिए, विभिन्न संस्कृतियों में समान उम्र व लिंग के व्यक्तियों में विविध उम्र या विविध लिंगीय समूहों की तुलना में व्यक्तिगत अन्तर कम होता है।

    (c) सामाजिक अन्तर भाषा में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता में 4 फीट से 12 फीट तक का अन्तर होता है। इस प्रकार की भाषा का प्रयोग प्रायः औपचारिक उद्देश्य के लिए होता है। यह राष्ट्रीय व्यवहार की स्पष्ट करता है। इसका प्रयोग प्रायः व्यावसायिक वार्तालापों में होता है।

    (d) सार्वजनिक अन्तर भाषा में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता के बीच 12 फीट से अधिक दूरी होती है। यह सम्प्रेषक ग्राही के सुनने व देखने की सीमा में होती है। यह सम्प्रेषण की औपचारिकता को व्यक्त करती है। इस भाषा का प्रयोग प्रायः तेज आवाज के रूप में होता है।

    (ii) समय भाषा (Time Language) 

    यह समीप्य भाषा का द्वितीय स्वरूप है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने सांस्कृतिक तरीके से अपने समय की सीमाओं के अनुरूप सम्प्रेषण करता है। इसमें हम अधिकांशतः समय के लिए संकेत का प्रयोग करते हैं। समय के महत्व के आधार पर हम संकेत प्रेषित करते हैं। यहाँ पर महत्व शब्द का प्रयोग 'समय प्रबन्धन' से है जो कि सम्पूर्ण प्रबन्धन का एक महत्वपूर्ण अंश है। 21वीं सदी में 'समय प्रबन्धन' सम्पूर्ण प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण अंश है।

    भारतीय परिवेश में संगठन चाहे वह व्यावसायिक हो, सरकारी हो या अशासकीय हो, समय का प्रयोग कलेण्डर व घड़ी के माध्यम से करते हैं। व्यावसायिक समुदाय समय के महत्व की जानता है। हमेशा एक कथन का प्रयोग किया जाता है कि “Time is money' । यह समय की महत्ता व उपयोगिता को दर्शाता या स्पष्ट करता है। उत्तरी अमेरिका के लोग समय के पाबन्द होते हैं, जबकि पूर्व के व्यक्तियों का व्यवहार आरामदेह प्रकृति का होता है।

    (iii) परिवेश (Surroundings) 

    यह समीप्य भाषा का तृतीय स्वरूप है। परिवेश (Surroundings)/ से अभिप्राय आस-पास के भौतिक वातावरण से है। यह स्वयं अपनी भाषा संजोता है अर्थात् इसकी अपनी एक भाषा होती है। परिवेश के कई संघटक है। यहाँ हम दो प्रकार के परिवेश का जिक्र कर रहे हैं-

    (a) रंग (Colour), एवं (b) रूपरेखा व रूपांकन/अभिकल्पना (Layout and Designing)।

    पूर्व में हम चर्चा कर चुके हैं कि विभिन्न रंग विभिन्न व्यवहारों की प्रवृत्ति का रुख व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हैं अर्थात् अमेरिका में मातम के समय काले कपड़े, नव-वधू सफेद रंग के कपड़े धारण करती है। सार्वभौमिक रूप में सफेद रंग शान्ति का प्रतीक है। इसे हम रंगों की भाषा कहते हैं। रंग औपचारिक सम्प्रेषण का एक महत्वपूर्ण अंग है। अत: सफल व प्रभावशील सम्प्रेषण के लिए हमें रंगों के चुनाव में अत्यन्त सावधानी लेनी चाहिए।

    रूपरेखा व रूपांकन भी अभाषिक सम्प्रेषण का एक अंश है। एक दफ्तर का स्थान प्रबन्धक, कारपेण्टिंग, फर्नीचर एवं उसकी डिजाइन सभी एक अर्थ को सम्प्रेषित करती हैं। रूपरेखा व रूपांकन स्वयं एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है। इसका उद्देश्य एक संगठन की रूपरेखा व रूपांकन मूड, व्यक्तित्व, बाह्य आकृति, द्रव्य को दर्शित करना होता है। निष्कर्षत: स्थान, अन्तर, जगह, समय और भौतिक वातावरण सभी अभाषिक सम्प्रेषण के मुख्य तत्व है। समय व अन्तर/स्थान की उपलब्धता मौखिक सम्प्रेषण की पूरक होती है। स्थान/ जगह की अधिकता वक्ता की आवाज को बढ़ाती है। जगह की कमी स्तर का नीचे होना तथा शारीरिक भाषा की सरलता स्थान/ जगह को आसानी / सरलतापूर्वक मौखिक सम्प्रेषण से जोड़ती है। इसी प्रकार से 'समय भाषा' या एक सम्प्रेषक द्वारा समय को दिया महत्व अभाषिक सम्प्रेषण को उपयुक्त व अर्थपूर्ण बनाता है। रूपरेखा व रेखांकन तथा रंग वर्तमान फैशन की दिशा को स्पष्ट रूप से दृश्यित करते हैं। इस हेतु रंग, रूपरेखा व रेखांकन सम्बन्धी भाषा के अवलोकन में सावधानी व उपयुक्त अनुभव व समझ आवश्यक है। अतः इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमें वर्तमान डिजाइन, रूपरेखा व रंगों के संयोजन को प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के सम्पर्क में रहना आवश्यक है।

    (III) भाषा प्रतिरूप (पाश्र्व भाषा) (PARA LANGUAGE)

    'Para Language' दो शब्दों से मिलकर बना है। 'Para' का अर्थ 'समान' या 'प्रतिरूप तथा 'Language' का अर्थ 'सम्प्रेषण की आवृत्ति' या भाषा अर्थात् Para Language भाषा प्रतिरूप का अर्थ है भाषा के समान भाषा प्रतिरूप में एक व्यक्ति किस प्रकार से कहता है अर्थात् उसको अभिव्यक्ति का अध्ययन किया जाता है। अन्य शब्दों में, व्यक्ति किस प्रकार से अपने विचार अभिव्यक्त करता है, उसका क्रमश: अध्ययन सम्मिलित होता है।

    'Para Language' अभाषित सम्प्रेषण का ही एक प्रकार है, परन्तु अन्य अभाषिक सम्प्रेषण (Non- Verbal Communication) की अपेक्षा यह शब्द संकेतों के कारण अत्यन्त निकट है क्योंकि इसमें एक वक्ता अपने शब्दों को किस 'स्वर ध्वनि' के साथ कैसे उद्घोषित करता है, इस बात का इशारा या संकेत प्राप्त होता है। आवाज या स्वरों में यह गुण या विशेषता होनी चाहिए कि उनके स्वराघात, लय, गति व मात्रा अथवा आयाम के द्वारा सन्देश के अर्थ को समझा जा सके। जैसे, उच्च स्वराघात/लय मात्रा वाली आवाज क्रोध, अमर्ष, गुस्से का परिचायक है व कोमल, मृदु, नरम स्वराघात /लय मात्रा वाली आवाज स्नेह, प्रेम, अनुराग, लगाव, चाह का परिचायक है। निम्नलिखित उदाहरण के माध्यम से भाषा प्रतिरूप को समझा जा सकता है-

    (i) I am a good student, मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

    (ii) I am a good student, मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

    (iii) I am a good student, मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

    (iv) I am a good student, मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

    (v) I am a good student, मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

    इस उदाहरण से स्पष्ट है कि प्रत्येक शब्द में जो कि स्वराघात (Stress) को बताता है, यह प्रत्येक उच्चारण में शब्द के अर्थ को बदल देता है। प्रथम शब्द में I पर स्वराघात (/) इस बात को स्पष्ट करता है कि अन्य कोई नहीं, मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ और अन्तिम शब्द में ध्यान दें तो Student पर स्वराघात (/) इस बात को स्पष्ट करता है कि मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ, कोई शिक्षक या वक्ता या सम्प्रेषक नहीं हूँ। यहाँ पर प्रत्येक शब्द का उच्चारण एक अलग स्वर, लय, गति व मात्रा तथा आयाम से सम्बद्ध है। इसलिए प्रत्येक शब्द का उच्चारण करने पर अलग-अलग अर्थ सामने आते हैं।

    एक अन्य उदाहरण की यदि हम कल्पना करें जिसमें स्वराघात, लय, गति, मात्रा व आयाम की विशेषता हो जैसे-

    एक पति-पत्नी के बीच शब्दों का आदान-प्रदान- 

    “You're back." "तुम वापस आ गये।"

    इस वाक्य से मिलने वाले सन्देशों पर भावों की निम्न सीमाओं के अन्तर्गत विचार कीजिए-

    परम आनन्द की अनुभूति से घृणा तक - उदासीनता, भावहीनता, व्याकुलता, राहत, आराम के माध्यम से। यद्यपि उपर्युक्त अनुभूतियों को शब्दों के स्वर ध्वनि व शारीरिक भाषा द्वारा विश्लेषित किया जाता है, परन्तु भाषा प्रतिरूप 'Para Language' में 'ah's' 'आह', 'oh's', 'ओह !' I see' इत्यादि अभिव्यक्तियाँ अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।

    आवाज/स्वर सम्प्रेषण का बहुत शक्तिशाली माध्यम है क्योंकि इसकी सहायता से हम अपनी विभिन्न अनुभूतियों को, यथा राहत व्याकुलता क्रोध, घृणा, स्नेह, प्रेम, लगाव को अन्य व्यक्तियों तक सम्प्रेषित करते हैं।

    भाषा प्रतिरूप (पाश्र्व भाषा) के मुख्य तत्व

    भाषा प्रतिरूप के निम्न मुख्य तत्व है-

    (i) आवाज/स्वर (Voice)

    हम स्वर / आवाज के द्वारा प्रथम संकेत प्राप्त करते हैं। स्वर/आवाज अत्यन्त ही महत्वपूर्ण तत्व है क्योंकि इसके माध्यम से वक्ता के लिंग, पृष्ठभूमि, शिक्षा, प्रशिक्षण व स्वभाव के बारे में पता चलता है। स्वर/आवाज कई प्रकार के होते हैं, यथा, साफ, सभ्य, लयबद्ध, कर्कश इत्यादि स्वर या आवाज के साफ होने से सन्देश के अर्थ को प्रभावशाली ढंग से सम्प्रेषित किया जा सकता है। कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जिनमें स्वर या आवाज अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है जैसे, गायन, उद्घोषणा इत्यादि। एक सन्देश को प्रभावशाली तरीके से अन्य श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक है-

    1. पिच (Pitch)- पिच का अर्थ स्वर में उतार-चढ़ाव से है हमें प्रभावी सम्प्रेषण के लिए स्वर के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखना चाहिए श्रोताओं को आकर्षित करने के लिए इसका अत्यधिक ध्यान रखना चाहिए जो वक्ता अपने स्वर में एकरसता / एकरूपता (Monotoneous) रखते हैं, वे श्रोताओं को उबाऊ या नीरस लगते हैं।

    यद्यपि धीमे स्वर या नीरस स्नेह, अनुराग, चाहत को दर्शाते हैं, जबकि ऊँचे स्वर क्रोध व उत्तेजना को दर्शाते है, परन्तु यहाँ श्रोताओं को प्रभावित करने व अपने सन्देश को प्रभावी तरीके से प्रेषित करने के लिए उपयुक्त पिच (Pitch) का होना आवश्यक है।

    2. वक्तव्य की गति (Speaking Speed)- यहाँ पर यह बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि भाषा में प्रवाह व वक्तव्य की गति दोनों अलग-अलग है। विभिन्न अवसरों पर विभिन्न गति के वक्तव्यों से सन्देश के विभिन्न अंशों को श्रोता तक पहुँचाया जाता है। जैसे, सरल सूचनाओं को धीमी गति से प्रेषित करने से क्रोध व चिड़चिड़ापन पैदा होता है और वे अमान्य कर दी जायेंगी। जटिल सूचनाओं को तीव्र गति से प्रेषित करने पर उन्हें समझना कठिन होगा। प्रायः यह देखा जाता है कि जल्दबाजी के समय तीव्र गति से व जब हम आराम या राहत महसूस करते हैं तो वक्तव्य की गति धीमी व आसान होती है अर्थात् एक वक्तव्य का सरल हिस्सा तीव्र गति से व जटिल व कठिन धीमी गति से सम्प्रेषित करते हैं।

    3. अन्तराल या विराम (Pause)- किसी भी वक्तव्य या सन्देश को बिना अन्तराल व विराम के सम्प्रेषित नहीं किया जा सकता। यहाँ पर यह बात ध्यान रखनी होगी कि अन्तराल में विराम सही समय पर होना चाहिए। अन्तराल का गलत प्रयोग सन्देश को बदल देता है।

    4. आवाज की मात्रा (Voice Volume)- थक्ता अपने आस-पास के श्रोताओं को सन्देश सम्प्रेषित करने के लिए जोर से बोल सकता है, परन्तु अत्यधिक जोर से बोलना उसके लिए उचित न होगा। आवाज की मात्रा श्रोताओं की मात्रा पर निर्भर करती है। यह आवाज या स्वर को अधिक प्रभावी बनाने का एक मुख्य तत्व है। 

    (ii) उचित या अनुरूप स्वराघात (Proper Stress ) 

    स्वराघात किसी भी भाषा का एक मुख्य अंग है क्योंकि उचित स्वराघात के द्वारा ही हम सन्देश के अर्थ को सम्प्रेषित कर पाने में सफल होते हैं। यहाँ पर यह बात ध्यान रखने योग्य है कि स्वराधात सन्देश या शब्द के अर्थ को बदल देता है। स्वराघात वाक्य के किसी एक हिस्से को महत्व या ध्यान आकर्षण के लिए किया जाता है।

    (iii) मिश्रित संकेत (Mixed Signals) 

    सन्देश में संकेतों का मिश्रण उसके अर्थ को बदल देता है या फिर सन्देश में विकृति या विभ्रम आ जाता है। इस बात का सदैव ध्यान रहे कि हम क्यों और कैसे अपने वक्तव्य या कथन में समरसता लायें। सम्प्रेषणग्राही या श्रोता को इस बात पर गौर करना चाहिए कि एक सन्देश कैसे प्रेषित किया जाता है और सन्देश में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ क्या है।

    (iv) मौखिक सम्प्रेषण का सम्पूर्ण प्रभाव (Overall Impression of Oral Message ) 

    एक वक्ता के वक्तव्य या व्याख्यान उसके बारे में बहुत कुछ सूचनाएँ देते हैं। भाषा प्रतिरूप पर अध्ययनरत विद्वान यह बताते हैं कि सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता दोनों की कुछ अपेक्षाएँ रहती है। यदि सन्देश प्रभावी रहता है तो ये अपेक्षाएँ पूर्ण हो जाती है। एक श्रोता वक्ता के व्यवसाय, भौतिक बोधगम्यता, उम्र, व्यक्तित्व का भी प्रभाव सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया पर पड़ता है। प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति को अपने स्वर की गुणवत्ता, स्वराघात, स्वर की उत्पत्ति का अपने वक्तव्य में ध्यान रखना चाहिए साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान होना चाहिए कि अन्तराल कहाँ किया जाये।

    भाषा प्रतिरूप (पाश्र्व भाषा) के लाभ 

    इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

    1. भाषा प्रतिरूप भाषा से संलग्न है। अतः कोई भी मौखिक सन्देश बिना इसके पूर्ण नहीं होता।

    2. भाषा प्रतिरूप के द्वारा किसी व्यक्ति का किसी व्यवसाय या संगठन में उसकी स्थिति का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है।

    3. भाषा प्रतिरूप किसी वक्ता के शैक्षणिक परिवेश को स्पष्ट करती है। 

    4. भाषा प्रतिरूप किसी वक्ता को मानसिक दशा को स्पष्ट करने में सहायक है। उसको स्वर गुणवत्ता, बोलने की गति एक श्रोता के सन्देश ग्रहण करने में सहायक होती है।

    5. भाषा प्रतिरूप का उपयोगो शैक्षिक मूल्य है। एक सतर्क/ सचेत श्रोता एक कुशल वक्ता से बहुत कुछ सीखता है।

    भाषा प्रतिरूप (पार्श्व भाषा) की सीमाएँ

    इसकी प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित है-

    1. भाषा प्रतिरूप एक भाषा के समान है, परन्तु भाषा नहीं है। यह सम्प्रेषण का एक अशाब्दिक / अभाष्येत्तर अंश है। इस पर पूर्णरूप से निर्भर नहीं रहा जा सकता। 

    2. वक्ता का स्वर गुणवत्ता व पिच प्राप्तकर्ता या श्रोता को भ्रमित करता है क्योंकि सदैव इस पर ध्यान रखना श्रोता के लिए कठिन व जटिल होता है। इस कारण से भाषा प्रतिरूप कभी-कभी श्रोता को भ्रमित करती है।

    3. चूँकि वक्ता विभिन्न समुदायों से होते हैं, अतः मौखिक सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश की एकरूपता समाप्त हो जाती है।

    (IV) संकेत भाषा या ध्वनि दृश्य उपकरण (SIGN LANGUAGE OR AUDIO-VISUAL INSTRUMENTS) 

    सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश को प्रेषित व ग्रहीत करने के लिए सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता पारस्परिक रूप से कुछ संकेतों, चिह्नों, प्रतीकों का प्रयोग करते हैं। भाषा स्वयं चिह्नों, संकेतों, प्रतीकों का एक क्रमबद्ध समूह है।

    प्राचीनकाल से मनुष्य अपनी अनुभूतियों, विचारों को व्यक्त करने के लिए संकेतों, प्रतीकों का प्रयोग करता आया है। इन चिह्नों, प्रतीकों का प्रयोग कम से कम दो व्यक्तियों या समूहों के लिए विशेषकर आदिम जातियों के बीच रहा है। मैं चिह, संकेत, प्रतीक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-

    (i) दृश्यिक (Visual Sign), एवं 

    (ii) ध्वनि संकेत (Audio Sign) |

    यद्यपि गन्ध व स्पर्श तथा स्वाद भी सम्प्रेषण के यन्त्र हैं क्योंकि संवेदना, अनुभूति व प्रभावशीलता मानव अस्तित्व का एक मुख्य अंग है, परन्तु सबसे प्रबल या प्रभावशील तत्व दृश्यिक यन्त्र है क्योंकि चाइनीज कहावत के अनुसार, "A picture is worth a thousand words. 

    (i) दृश्यिक संकेत (Visual Sign)

    दृश्यिक संकेत व प्रतीक सम्प्रेषण के अत्यन्त प्रभावशील यन्त्र है। उदाहरण के लिए. किसी पुस्तक, यथा, भूगोल, विज्ञान, अर्थशास्त्र व इतिहास विषयों में मानचित्र व विभिन्न प्रकार के चित्र एक अभिन्न अंग हैं। यद्यपि ये मानचित्र व चित्र मात्र एक विशेष वर्ग तक के लिए सीमित हैं, परन्तु ऐसे बहुत दृश्यिक संकेत व प्रतीक है जो सार्वभौमिक होते हैं और इन्हें सभी वर्ग के व्यक्ति समझ सकते हैं अर्थात् इनकी भाषा सार्वभौमिक होती है। जैसे-

    अशब्दिक सम्प्रेषण
    सार्वभौमिक संकेत/प्रतीक (Universal Sign/Singals) 

    इस प्रकार लाल व हरे रंग का प्रकाश (Light) ट्रैफिक, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट तथा लाल रंग का बल्ब आपरेशन थियेटर के बाहर इत्यादि सार्वभौमिक संकेत प्रतीक है एम्बुलेन्स व वी.आई.पी. गाड़ियाँ बगैर शब्दों के अत्यन्त प्रभावी ढंग से अपने उद्देश्य को सम्प्रेषित करती हैं।

    विभिन्न प्रकार के रंगों की सहायता से व्यक्तियों के स्वभाव को इंगित किया जाता है. जैसे-

    लाल (Red) ------------------------उत्तेजित (Excites)

    नारंगी (Orange) -------------------सक्रियता (Cheers)

    हरा (Green) ------------------------स्फूर्ति (Refreshes)

    नीला (Blue) ------------------------शान्त / शीतलता (Cools)

    जामुनी  (Indigo) --------------------हताश / अवसाद (Depresses)

    बैंगनी (Violet) -----------------------प्रेरणा (Stimulates)

    लाल और पीला रंग अत्यधिक ध्यान देने योग्य है क्योंकि लाल रंग आक्रमणशीलता व पीला रंग स्पष्टता या दृश्यता का प्रतीक है। 

    इसी प्रकार झंडे का रंग चाहे वह सफेद हो या काला एवं फूलों के रंग भी सम्प्रेषक की अनुभूतियों को व्यक्त करते हैं।

    अतः स्पष्ट है कि इस श्रेणी में ऐसे साधनों का प्रयोग किया जाता है जिन्हें देखकर सूचना प्राप्त की जाती है। इन संकेतों के माध्यम से या चेहरे के बदलते भावों से सन्देश ग्रहण किया जाता है। जैसे, जलती हुई सिगरेट का चिह इस बात का संकेत है कि सिगरेट नहीं पीनी चाहिए। विद्युत् प्रदाय स्थानों पर लाल रंग से Danger लिखा होने का अर्थ है कि पास नहीं जाना चाहिए। इसमें न बोलने, न हस्ताक्षर करने और 'नहीं' लिखना आवश्यक नहीं होता है। केवल दृश्य प्रदर्शन से ही संचार हो जाता है।

    (ii) ध्वनि संकेत (Audio/ Sound Signals) 

    ध्वनि संकेत हमारी प्राचीन सभ्यता से ही दृश्य संकेतों के साथ-साथ प्रयुक्त किये जाते रहे हैं और व्यावसायिक क्षेत्र ने इसे बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया है। प्राचीन काल में जो मनुष्य जंगल में रहते थे, वे विभिन्न प्रकार के ध्वनि संकेतों, यथा, ढोलक को विभिन्न स्वर की आवाजों (Drumbeats) का प्रयोग करते थे। आज भी जब शिकार के लिए जंगल में प्रवेश किया जाता है तो Drumbeating (ढोलक की थाप) के द्वारा ध्वनि संकेत के द्वारा सन्देश प्रेषित किया जाता है। आज भी विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार की अनुभूतियों को अन्य तक पहुँचाने के लिए ढोलक की विभिन्न प्रकार की आवाजों के माध्यम के द्वारा सम्प्रेषण किया जाता है। आज भी Drumbeating (ढोलक की थाप) कई संस्कृतियों का एक मुख्य हिस्सा है।

    वर्तमान समय में विभिन्न ऑफिसों दफ्तरों में अलार्म संकेतों का प्रयोग किया जाता है, जैसे, Fire Alarms, Accident/Casualty Alarms, Air Raid Alarm, VIP Motor Cade Alarm, Machine Breakdown Alarm इत्यादि। इसके लिए विभिन्न प्रकार के सायरन, सीटियों, हूटर्स (मुंगों) का उपयोग किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य श्रोता को सावधान करना व सही स्थिति में लाना होता है। घड़ी का अलार्म समय के प्रति व अपने प्रोग्राम सूची के प्रति सचेत करता है।

    आज के परिप्रेक्ष्य में कोई भी दफ्तर बर्जर, प्रेस बटन, घण्टी, विद्युत् घण्टी के बगैर अपूर्ण है क्योंकि इनके संकेत सम्बन्धित व्यक्तियों को उनके कार्य के प्रति सचेत करते हैं।

    संकेत भाषा के लाभ

    संकेत भाषा के निम्नलिखित लाभ हैं-

    1. दृश्यिक संकेत, यथा, चित्र, पोस्टर, फोटोग्राफ इत्यादि शाब्दिक सम्प्रेषण की बचते हैं क्योंकि इनके द्वारा अनेक शब्दों को दृश्यिक रूप में सम्प्रेषित किया जाता है। 

    2. रंगीन पेंटिंग्स, फोटोग्राफ, पोस्टर इत्यादि सम्प्रेषण को रुचिकर बनाते हैं और सम्प्रेषण ग्राही को प्रेरित करते हैं। 

    3. यह सम्प्रेषक की मानसिक स्थिति, बुद्धिमता स्तर, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को प्रतिबिम्बित करते हैं।

    4. पोस्टर, पेंटिंग्स इत्यादि के अपने शैक्षणिक मूल्य होते हैं। यदि किसी संगठन में कर्मचारी अनपढ़ हैं तो पोस्टर उन्हें विभिन्न निर्देशों / संकेतों के द्वारा शिक्षा देते हैं कि वे मशीन को कैसे चलायें।

    5. पोस्टर विज्ञापन का एक प्रभावी माध्यम है। यह लोगों का ध्यान तुरन्त अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

    6. ध्वनि संकेत विभिन्न सन्देशों को तीव्रतापूर्वक सम्प्रेषित करते हैं, जैसे, घण्टी का बजना या सायरन का बजना कर्मचारियों को उनके कार्य के प्रति सचेत करते हैं, जैसे, सावधानी लेना या कार्यावधि का खत्म होना। 

    7. समय प्रबन्धन' के लिए ध्वनि संकेत अत्यन्त उपयोगी है। समय संकेतों के आधार पर एक दिन की योजना का निर्माण किया जा सकता है।

    8. बर्जर या अन्य संकेतों के माध्यम से एक संगठन की कार्य प्रणाली को विभाजित किया जा सकता है, जैसे, Visiting Charts, Adequate, Waiting Haul इत्यादि ।

    संकेत भाषा की सीमाएँ

    संकेत भाषा को निम्नलिखित सीमाएँ हैं-

    1. संकेत भाषा में दृश्य या ध्वनि संकेतों का प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा केवल सरल व प्रारम्भिक अनिवार्य सूचनाओं को सम्प्रेषित करना सम्भव होता है। यदि सन्देश या विचारों में कोई जटिलता है तो पोस्टर या चित्रों के माध्यम से इसका सम्प्रेषण अत्यन्त कठिन होता है।

    2. सदैव प्रभावशाली चित्र या पोस्टर बनाना आसान नहीं होता। यह कलाकार की कुशलता पर निर्भर करता है कि उसने सम्बन्धित धारणा या विचार को सही रूप से समझ लिया है या नहीं।

    3. संकेत भाषा शाब्दिक सम्प्रेषण के साथ अत्यधिक प्रभावशाली हो जाती है। 

    4. संकेत भाषा सन्देश प्राप्तकर्ता को समझ पर निर्भर करती है। अतः संकेत को सही रूप में न समझने पर वह भ्रमित हो सकता है। 

    5. संकेत भाषा को दुहराना, उसमें तुरन्त सुधार सम्भव नहीं होता, जबकि शाब्दिक सम्प्रेषण में तात्कालिक सुधार अत्यन्त ही आसानी होता है।


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