अंतरसांस्कृतिक संचार क्या है, और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

    किसी भी संगठन में विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति कार्यरत होते हैं। इसलिए  हम विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों से सम्प्रेषण करने के पूर्व हमें उनकी संस्कृति को समझना आवश्यक होता है। यूरोपीय व्यक्तियों की तुलना में विभिन्न देशों के एशियाई मूल के व्यक्ति अधिक मित्रवत् व्यवहार रखते हैं। तथा एक मिडिल ईस्ट के व्यक्तियों की अपेक्षा यूरोपीय समुदाय के व्यक्तियों का बात करने का परिधान का तरीका अलग  होता है। 

    अतः वर्तमान व्यावसायिक विश्व के लिए अन्तसांस्कृतिक अन्तरों के प्रति जागरूकता अत्यन्त आवश्यक व उपयोगी होती है।

    एक सम्प्रेषण क्रिया की सार्थकता के लिए आवश्यक है कि एक सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश को न केवल प्रेषक के अर्थों में समझे बल्कि प्रेषक की राष्ट्रीय व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को भी समझ सके। 

     अतः लूथन्स कहते हैं कि "सम्प्रेषण एक समझ है जो दृश्यकता का नहीं अपितु अदृश्यकता एवं निहिता का प्रतिफल है। निहित व प्रतीकात्मक तत्व ही सम्प्रेषण प्रक्रिया में दृश्यक आयाम का बोध कराते हैं।"

    लूथन्स की सम्प्रेषण सम्बन्धी उक्त विचारधारा सम्प्रेषण प्रक्रिया में संस्कृति के महत्व को स्पष्ट करती है। आज आधुनिक विश्व का प्रत्येक राष्ट्र बाजार सम्बर्द्धन नीतियों तथा उदारवादी, वैश्वीकरण व निजीकरण को | अलग कर अपने आकार व स्वरूप को एक विस्तृत आयाम दे रहा है। तथा  इस स्थिति में सम्प्रेषण प्रक्रिया में संस्कृति के निहित भाव पक्ष का महत्व अपने आप ही बढ़ जाता है। 

    आधुनिक व्यावसायिक युग में विभिन्न राष्ट्रों के भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति अपने-अपने व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शाब्दिक या अशाब्दिक, मौखिक व लिखित सम्प्रेषण प्रक्रिया का अनुसरण करते हैं। आवश्यकता इस सम्प्रेषण को भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों की आशाओं व आवश्यकताओं के अनुरूप औचित्यपूर्ण व प्रभावी बनाने की  है। 

    संस्कृति से अभिप्राय (Meaning of Culture)

    संस्कृति किसी व्यक्ति या समूह के व्यावहारिक लक्षणों को प्रदर्शित करती है। यह सामाजिक मूल्यों, आदर्शों, प्रमापों, संकेतों तथा आस्था एक पूर्ण तन्त्र है। 'संस्कृति' को स्पष्ट व यथार्थ रूप से परिभाषित कर पाना असम्भव है। विभिन्न अनुसन्धानों से यह ज्ञात हुआ है कि संस्कृति की लगभग 164 परिभाषाएँ हैं परन्तु अध्ययन की दृष्टि से संस्कृति की कम से कम 6 श्रेणियाँ या वर्ग महत्वपूर्ण व प्रभावशील हैं। यहाँ पर हमारा अभिप्राय संस्कृति के व्यावहारिक लक्षणों से है। व्यावहारिक लक्षण से अभिप्राय एक समूह में सम्प्रेषण की यौगिक या अशाब्दिक कृति जो अपने आप में विशिष्ट या अद्वितीय है, से है। यद्यपि संस्कृति का अभिप्राय किसी समाज अथवा राष्ट्र की सामूहिक चेतना से  है।

    थिल व बूवी के अनुसार- "संस्कृति को संकेतों, विश्वासों, अभिवृत्तियों, मूल्यों, आशाओं व व्यावहारिक मान्यताओं के आदान-प्रदान की एक पद्धति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।" 

    विक्टर वार्नयू के अनुसार- "संस्कृति एक विशेष समूह अथवा राष्ट्र के लोगों की जीवन शैली, पद्धति, निश्चित संस्कार व मान्यताएं हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्रदान किये जाते हैं।" 

    अतः स्पष्ट है कि सांस्कृतिक विविधता एक स्वाभाविक स्थिति है जो सामान्यतः प्रत्येक राष्ट्र की एक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि होती है जब विभिन्न संस्कृतियाँ एक-दूसरे के निकट आती है तो स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। तब स्थिति और जटिल हो जाती है जब विभिन्न संस्कृतियाँ एक दूसरे की मान्यताओं / परम्पराओं / इच्छाओं को एक-दूसरे पर थोपने का प्रयत्न करती है।

    सांस्कृतिक चेतना या संवेदनशीलता

    आज के वर्तमान तथा आधुनिक विश्व में इन अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद भी उनको व्यावसायिक कार्यशैली, बाजार व्यवस्थाओं व आर्थिक नीतियों में अनेकता में एकता अर्थात् व्यावसायिक विभिन्नताओं में एकरूपता की एक नई सोच का प्रादुर्भाव हुआ है। विश्व गाँव (Global Village) की अवधारणा ने विभिन्न संस्कृतियों के प्रति वैचारिक व व्यावहारिक जागरूकता के प्रति सचेत किया है। आज विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के मध्य एक-दूसरे की संस्कृति की पहचान व उसके प्रति आदर-सम्मान की भावनाओं का प्रादुर्भाव इसी बात का प्रमाण है। इसे सांस्कृतिक चेतना कहते हैं। सांस्कृतिक चेतना विभिन्न व्यक्तियों के मूल्यों, विश्वास व अभ्यास पर निर्भर करती है।

    अगर हम उदाहरण के लिए देखें कि जापानी व्यक्ति इस बात पर विश्वास करते हैं कि प्रतिस्पर्द्धा विसंगति को जन्म देती है। 

    उत्तरी अमेरिकी के व्यक्तियों के लिए 'निष्पक्षता' (Forness) का अधिक मूल्य होता है। 

    अतः कुछ देशों जैसे भारत में कुछ जाति विशेष वर्ग को समाज में सम्पूर्ण सहभागिता वर्जित है व सफलता को भौतिक व धार्मिक (आध्यात्मिक) प्राप्ति के साथ जोड़ा जाता है।

    यूनाइटेड स्टेट्स में अधिकांश व्यक्ति 'व्यक्तिवादिता' को महत्व देते हैं, जबकि अन्य देशों जैसे भारत में 'परिवार' को अधिक महत्व दिया जाता है। एक कक्षा में भारतीय विद्यार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वह अपना कार्य स्वयं करे। यदि वह किसी अन्य की सहायता से इसे पूरा करता है तो इसे बेईमानी (Cheating) अथवा धोखेबाजी को संज्ञा दी जाती है, जबकि जापान में समूहों द्वारा नियमित रूप से समस्याओं का समाधान किया जाता है।

    संयुक्त राज्य अमेरिका की संस्कृति के अनुसार - 'शान्ति' इस बात का संकेत है कि व्यक्ति कार्य कर रहे हैं. जबकि जापानी बात करते हुए अपना कार्य सम्पन्न करते हैं। मूल्य और विश्वास धर्म द्वारा प्रभावित होते हैं, जैसे- भारतीय संस्कृति के अनुसार साधारण जीवन शैली को ईश्वर से समीपता का परिचायक माना जाता है।

    सांस्कृतिक चेतना या संवेदनशीलता को सीखना

    किसी भी राष्ट्र या संस्कृति के व्यक्तियों के साथ व्यावसायिक / व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने के पूर्व उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि या संस्कृति का अग्रिम रूप से गहन अध्ययन करना लाभप्रद होगा, साथ ही साथ उनके अनुरूप स्वयं को ढालना व्यावसायिक / व्यापारिक दृष्टि से उत्तम होगा। 

    अतः इस हेतु निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

    1. सर्वप्रथम सम्बन्धित राष्ट्र/व्यक्ति की भाषा का अध्ययन उनकी संस्कृति को सीखने की दृष्टि से उपयुक्त होगा। इससे आप उनके रीति-रिवाज व परम्पराओं से परिचित होंगे जिससे सम्बन्धित व्यक्ति से आप की अन्तरंगता बढ़ेगी।

    2. सम्बन्धित राष्ट्र/व्यक्ति की संस्कृति से सम्बन्धित लेखों व पुस्तकों का अध्ययन किया जाना चाहिए, ताकि आप उनके इतिहास, धर्म, जाति, राजनीति व रीति-रिवाजों से परिचित हो सकें, इसके अतिरिक्त आप उनके यहाँ के मौसम, स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाओं, मुद्रा, परिवहन सुविधाओं, सम्प्रेषण के साधनों से परिचित होंगे।

    3. सम्बन्धित देश, राष्ट्र, व्यक्ति की व्यावसायिक संस्कृति के सम्बन्ध में जानकारी अर्जित करना व्यावसायिक/ व्यापारिक दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक है। विशेष तौर पर उनकी उप-संस्कृति व व्यावसायिक उप-संस्कृति के सम्बन्ध में क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र/देश की अपनी व्यावसायिक नीतियाँ, नियम, संलेख (Protocol) होते हैं। कौन निर्णय लेता है? क्या उपहार स्वीकार्य है? व्यावसायिक कार्ड बदलने (विनिमय) का क्या तरीका है? व्यावसायिक बैठक में हिस्सा लेने की विशेष पोशाक क्या है? इत्यादि की जानकारी भी अत्यन्त आवश्यक है।

    उदाहरणस्वरूप, कुछ मुख्य देशों की व्यावसायिक संस्कृतियाँ उप-संस्कृतियाँ निम्न हैं-

    1. स्पेन- 5 से 7 बार तक हाथ मिलाना प्रभावशील माना जाता है। जल्दी हाथ हटाना/खींचना नकारात्मक पहलू का परिचायक है।

    2. अरब- मदिरास्वरूप उपहार बुरा माना जाता है।

    3. इंग्लैण्ड- सूट के सामने की पॉर्किट (जेब) में कोई सख्त वस्तु, जैसे-पेन इत्यादि रखना उचित नहीं माना जाता है। इसे भद्दा या फूहड़पन माना जाता है।

    4. फ्रांस- धीरे व शीघ्रता से हाथ मिलाना प्रभावशील माना जाता है।

    5. पाकिस्तान- किसी सभा/गोष्ठी के बीच से व्यक्ति का उठना गलत माना जाता है विशेष रूप से जब नमाज के लिए पाकिस्तानी बैठते हैं। एक मुस्लिम एक दिन में पाँच बार नमाज पढ़ता है। 

    व्यावसायिक सम्प्रेषण पर सांस्कृतिक चेतना का प्रभाव

    सांस्कृतिक चेतना व्यावसायिक सम्प्रेषण के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करती है, जैसे- आदर व शिष्टता / विनम्रता का प्रदर्शन, प्रेषित सूचना की मात्रा, बात करने का स्वर / आवाज इत्यादि व लिखित सम्प्रेषण में प्रयुक्त पृष्ठ का आकार । उक्त राष्ट्रीय व क्षेत्रीय संस्कृति के अतिरिक्त व्यावसायिक सम्प्रेषण एक संगठन की संस्कृति व व्यक्तिगत संस्कृति, जैसे- लिंग, जाति, वर्ग व राष्ट्रीयता, सामाजिक स्थिति व अन्य बातों से प्रभावित होती है।

    चित्र द्वारा यह विश्लेषित किया जा सकता है कि राष्ट्रीय संस्कृति, संगठन संस्कृति व व्यक्तिगत संस्कृति के अतिव्यापन की स्थिति में किस प्रकार का सम्प्रेषण आवश्यक होगा। कुछ स्थितियों में एक प्रकार की संस्कृति अन्य की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होती है।

    अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्प्रेषण

    उदाहरण के लिए- यूरोप, एशिया व संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के ऐरोस्पेश इंजीनियर्स के सम्बन्ध में जान वेजमाइकल कीने द्वारा किये गये अनुसन्धान से यह निष्कर्ष प्राप्त किया गया कि व्यावसायिक समुदाय की भाषा  राष्ट्रीय संस्कृति की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होती है। अतः एक प्रभावशील व्यावसायिक सम्प्रेषण के लिए सांस्कृतिक चेतना का होना अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है।

    अंतर्सांस्कृतिक सम्प्रेषण

    किसी भी देश की संस्कृति या उप-संस्कृति का सम्प्रेषण पर अधिक प्रभाव पड़ता है। सांस्कृतिक विविधताएँ सूचनाओं/सन्देशों एवं उनकी परख को भिन्न-भिन्न अर्थ देती हैं। उदाहरण के लिए जैसे कि  जापानी लोग सन्देश/ सूचनाओं को शारीरिक भाषा/व्यक्तिगत मिलकर व गर्मजोशी द्वारा अभिव्यक्त करते हैं, जबकि उत्तरी अमेरिका के लोग शब्दों के माध्यम से स्पष्ट संकेत द्वारा सूचनाओं/सन्देशों का सम्प्रेषण करते हैं। वैश्विक सांस्कृतिक विविधता के परिणामस्वरूप विभिन्न राष्ट्रों के व्यक्ति अपरिचितों/अतिथियों के प्रति पृथक् पृथक् दृष्टिकोण रखते या अपनाते हैं। 

    शाब्दिक सम्प्रेषण - (Verbal Communication)

    व्यक्ति की मनोदशा परम्परा व संस्कृति के अनुसार अभिव्यक्ति पाता है। अन्तः सांस्कृतिक विविधता के फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यावसायिक सम्प्रेषण के मौखिक व लिखित सम्प्रेषण में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। जैसे- अमेरिका में अपने सहकर्मियों को उनके नाम के पहले शब्द द्वारा औपचारिक सम्बोधन दिया जाता है, जबकि इटली में अपने सहयोगियों को उनके पद या उपनाम द्वारा औपचारिक सम्बोधन दिया जाता है। वर्तमान में भारत में पहले नाम के औपचारिक सम्बोधन की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। 

    अशाब्दिक सम्प्रेषण - (Non verbal Communication)

    अशब्दिक सम्प्रेषण भी सांस्कृतिक विविधता के प्रभाव से अछूता नहीं है क्योंकि सांस्कृतिक विविधता के माध्यम से शारीरिक भाषा, रंग व कपड़े, आभूषण, अभिवादन का तरीका, हर्षोल्लास व दुःख की अभिव्यक्ति के तरीकों में वैश्विक स्तर पर अत्यधिक भिन्नताएँ हैं।

    इस प्रकार से अमेरिका, जापान, अरब, ऑस्ट्रेलिया, भारतीय मूल के व्यक्तियों को उनकी पोशाक के द्वारा दूर से ही पहचाना जा सकता है, जबकि लैटिन अमेरिकी मूल के व्यक्ति एक-दूसरे को स्पर्श करते हुए बातचीत करते हैं। सम्पूर्ण विश्व में अभिवादन, हाथ मिलाना, शोक व्यक्त करना इत्यादि क्रियाओं के माध्यम से सम्बन्धित व्यक्ति की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को पहचानना अत्यन्त आसान होता है।

    अंतर्सांस्कृतिक सम्प्रेषण के लिए ध्यान रखने योग्य बातें 

    जब हम किसी अन्य संस्कृति को सीखने की इच्छा या आवश्यकता महसूस करते हैं तो हमारे पास दो सुगम मार्ग होते हैं-

    1. हमें अधिकाधिक रूप से सम्बन्धित संस्कृति की भाषा, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि व इतिहास, सामाजिक नियम व अन्य विशिष्ट संस्कृति जिसकी आप व्यवसाय में आवश्यकता महसूस करते हैं, उसको सीखना। 

    2. किसी संस्कृति को स्वीकार करने में सहायक सामान्य कुशलताओं को विकसित करना।

    प्रथम मार्ग- एक विशिष्ट संस्कृति का गहन ज्ञान बहुत आसान है, परन्तु इसमें दो कमियाँ है-

    1. आप कभी भी किसी अन्य संस्कृति को पूर्णतः समझ नहीं सकते। इसकी चिन्ता करने की आवश्यकता भी नहीं है कि आपने जर्मन संस्कृति का कितना अध्ययन किया है। उदाहरण के लिए अगर हम देखें कि आप जर्मन न कभी थे और न ही आपने जर्मनी के अनुभवों को भी जाना है। यदि आप जर्मन संस्कृति को सम्पूर्ण रूप से समझ भी लेते हैं तो भी जर्मन आपकी इस मान्यता से सहमत नहीं होगा कि आप उसके बारे में सब कुछ जानते-समझते हैं।

    2. इस प्रथम मार्ग की अन्य एक कमी यह है कि किसी विशिष्ट संस्कृति में लीन करना अति सामान्यीकरण के जाल की स्थिति है। किसी व्यक्ति को सांस्कृतिक दृष्टि से देखना होगा, न कि उसके अद्वितीय लक्षणों के व्यक्तिगत रूप में।

    द्वितीय मार्ग- संस्कृति को सीखने सम्बन्धी सामान्य अंतर्सांस्कृतिक कुशलताओं को सीखना। तथा यह विशिष्ट- रूप में उपयोगी है कि जब आप एक संस्कृति/उप-संस्कृति से परिपूरित व्यक्ति से संवाद करते हैं तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्सांस्कृतिक सम्प्रेषण करते समय हमें निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

    1. सम्प्रेषण दायित्व स्वीकार करना (Take Responsibility for Communication)

    हमें यह नहीं मानना चाहिए कि आपके साथ सम्प्रेषण करना किसी अन्य व्यक्ति की जिम्मेदारी है। इसका दायित्व स्वयं को स्वीकार करना चाहिए। 

    2. निर्णय स्थान (Decision Making) 

    सम्पूर्ण सन्देश को सुनना तथा अन्य सन्देशों में अन्तर को सहज स्वीकार करना चाहिए। 

    3. आदर प्रदर्शन ( Show Respect ) 

    सम्प्रेषण के प्रति भावों, आँखों के सम्पर्क व अन्य संस्कृतियों के प्रति आदर प्रदर्शित करना चाहिए। 

    4. लचीलापन (Be Elastic )

    हमें अपने स्वभाव, रुचि, आदतों व नजरिये में परिवर्तन के प्रति सदैव तैयार रहना चाहिए। 

    5. धैर्य रखना (Be Patient) 

    किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए धैर्यवान होना अत्यन्त आवश्यक है।

    6. स्पष्ट सन्देश (Clear Message ) 

    हमें अपने लिखित मौखिक सन्देश को स्पष्टता प्रदान करनी चाहिए। 

    7. सांस्कृतिक संवेदनशीलता को बढ़ाना (Encourage Cultural Sensitivity ) 

    सम्प्रेषण के भौतिक चलन के प्रति पूर्ण संवेदनशीलता का होना आवश्यक है। दोषयुक्त सम्प्रेषण से बचना चाहिए।

    8. बाह्य अवसरों के अतिरिक्त सोचना (Think about others Opportunity) 

    हमें अपनी विचार श्रृंखला को मात्र वेशभूषा, पर्यावरणीय असुविधाओं तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि इससे आगे भी सोचना चाहिए।

    9. दोहरापन छोड़ना (Ignore Repetition ) 

    विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी कुण्ठाओं पर नियन्त्रण व दोहरापन रोकना चाहिए। 

    10. अन्य के दृष्टिकोणों व विचारों को समझना (Understand others Views and Thoughts)

    सन्देश को ध्यानपूर्वक सुनना व सम्प्रेषण के भावों व दृष्टिकोणों को हमें समझना चाहिए। 

    एक प्रभावशील अंतर्सांस्कृतिक सम्प्रेषण के तत्व 

    वैश्विक स्तर पर अन्य सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के साथ सम्प्रेषण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न तत्वों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है-

    1. अन्य सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों से सम्प्रेषण करते समय उनकी संस्कृति की पृष्ठभूमि व संस्कृति को अपने स्वयं के दृष्टिकोण से देखना-परखना उचित होता है ।

    2. सम्प्रेषण सम्बन्धी अपनी स्वयं की कमियों को चिह्नित करके उन्हें दूर करना चाहिए। 

    3. किसी व्यक्ति की संस्कृति/भाषा के बारे में बातचीत करते समय आप उससे मानसिक स्तर पर जुड़कर लाभ अर्जित कर सकते हैं।

    4. यदि आप अन्य संस्कृति के प्रति आदर-सम्मान रखेंगे तो आप स्वयं भी निश्चित ही सम्मान के हकदार होंगे।

    5.आप अपने सम्प्रेषण में आप अपनी संस्कृति सम्बन्धी विचारों को व्यक्त करने में जल्दबाजी न करें। एवं अन्य के विचारों व दृष्टिकोणों को सुनने के पश्चात् ही अपने विचार व दृष्टिकोण रखें।

     महत्वपूर्ण बिन्दु-IMPORTANT POINTS

    *  संस्कृति दो प्रकार की होती है-

    (i) व्यक्त संस्कृति (ii) अव्यक्त संस्कृति

    * अन्तः सांस्कृतिक सम्प्रेषण के द्वारा हमें दूसरे व्यक्तियों की संस्कृति का ज्ञान होता है अथवा दूसरे व्यक्तियों की संस्कृति का अध्ययन किया जाता है, जो व्यवसाय को समुचित रूप से चलाने में सहायता करती है।

    * अन्तः सांस्कृतिक कारक दो प्रकार के होते हैं-

    (i) राष्ट्रीय सांस्कृतिक कारक (ii) व्यक्तिगत सांस्कृतिक कारक।


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