आधुनिक सम्प्रेषण के स्वरुप से क्या आशय है- in hindi

आधुनिक सम्प्रेषण के स्वरुप 

यदि हम सम्प्रेषण क्षेत्र के अतीत में जायें तो पायेंगे कि इस क्षेत्र का कायाकल्प हो चुका है। इस कायाकल्प में लगभग 50 वर्ष लगे। एक समय था जब हमारे पास सम्प्रेषण सुविधाओं का अभाव था। मानव एक स्थान से दूसरे स्थान तक अपना सन्देश पहुँचाने के लिए आवाज देता था परन्तु आज सम्प्रेषण के क्षेत्र में इतनी प्रगति हुई है कि हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते। 

सम्प्रेषण की एक वैज्ञानिक प्रगति को सूचना क्रान्ति के युग के रूप में परिभाषित किया जाता है। सम्प्रेषण की इस अकल्पनीय प्रगति का व्यवसाय, उद्योग, वाणिज्य इत्यादि क्षेत्र के विकास में अत्यन्त ही गहरा अन्तर्सम्बन्ध है क्योंकि जैसे-जैसे व्यावसायिक क्षेत्र का विकास होता है, उसी के अनुरूप सम्प्रेषण माध्यमों के नवीन स्वरूपों की खोज/अनुसन्धान व उनका विस्तार होता जाता है। आधुनिक विश्व आज सम्प्रेषण विकास व व्यावसायिक विकास को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देख रहा है।

सम्प्रेषण के आधुनिक स्वरूपों ने इलेक्ट्रॉनिक सम्प्रेषण यन्त्रों को विस्तारित रूप प्रदान किया है। उन्नीसवीं  शताब्दी के प्रारम्भ में बहुप्रतिलिपिकरण, फोटोकॉपी, रेडियो, टेलीविजन आदि सम्प्रेषण के साधनों का प्रयोग होता था किन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक सम्प्रेषण के नये स्वरूप, यथा-इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल एवं अन्य तकनीकें विकसित हुईं। इलेक्ट्रॉनिक 'टाइपराइटर', टेलेक्स, वर्ल्ड प्रोसेसर, कम्प्यूटर, ऑफसेट इत्यादि संचार के साधनों ने सम्प्रेषण को अत्यधिक शक्तिशाली स्वरूप प्रदान किया है।

आज कम्प्यूटर, इण्टरनेट, उपग्रह सम्प्रेषण इत्यादि स्वरूपों के कारण सम्प्रेषण अत्यन्त ही लोकप्रिय व दैनिक जीवन का एक अनिवार्य अंग बन गया है। 21 वीं सदी के अग्रणी व्यवसायियों के लिए ब्रह्म अस्त्र स्वरूप सूचना प्रौद्योगिकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सफल होने का एक अत्याधुनिक माध्यम है।

आल्विन टफलर द्वारा सम्प्रेषण की ऐतिहासिक प्रगति को निम्न तीन तरंगों के रूप में स्पष्ट किया गया है- 

प्रथम तरंग (First Wave)  

छोटे समूहों में आमने-सामने मौखिक सम्प्रेषण या अधिकांशतः सम्प्रेषण को मुख से कान तक पहुँचता था। उस समय का विश्व समाचार-पत्रों, रेडियो या टी.वी. रहित था। वास्तव में, यह अवस्था केवल बोलने और सुनने तक सीमित थी। सम्प्रेषण का एकमात्र वृहत् माध्यम वक्ता को सुनने के लिए भीड़ (जमघट) एकत्रित करना था।

द्वितीय तरंग (Second Wave ) 

धन / सम्पत्ति को निर्माण से पहचाना जाता है। इसमें अधिकतम उत्पादन व अधिकतम दूरी तक सम्प्रेषण का उद्देश्य समाहित था। इसमें मौखिक सम्प्रेषण के अतिरिक्त लिखित सम्प्रेषण, डाक, टेलीग्राफ, टेलीफोन, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, चलचित्र व टेलीविजन का प्रयोग किया जाने लगा अर्थात् सम्प्रेषण के मुख्य माध्यम समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, चलचित्र, रेडियो, टी.वी., डाक, टेलीग्राफ, टेलीफोन के जरिए सूचनाओं को सम्प्रेषित किया जाता था।

तृतीय तरंग (Third Wave ) 

कम्प्यूटर क्रान्ति, इण्टरनेट, ई-मेल, उपग्रह संचार, ऑडियो/वीडियो काम्पैक्ट डिस्क, कम्प्यूटर फ्लॉपी अर्थात् तार व कागज रहित सम्प्रेषण युग के नाम से जाना जाता है। इस तरंग युग ने ही सम्पूर्ण विश्व को एक विश्व गाँव (Global Village) की संज्ञा दी एवं एक बृहत् विश्वव्यापी सम्प्रेषण तन्त्र का विकास किया।

आज सम्प्रेषण को अत्याधुनिक तकनीकों ने व्यावसायिक क्षेत्र में एक प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली को जन्म दिया है जिसमें सम्प्रेषण पद्धति को अधिक प्रभावशील व उपयोगी बनाने के लिए व्यूह प्रबन्धन व उपभोक्ता हित सम्बन्धी दृष्टिकोणों को अपनाकर निरन्तर सूचनाओं का संग्रहण व प्रसारण किया जाता है।

सम्प्रेषण के आधुनिक साधन (Modern Forms of Communication ) 

अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित सम्प्रेषण के मुख्य साधन निम्न हैं-

1. सेल्युलर फोन्स (Cellular Phones),

2. पेजर्स (Pagers),

3. वीडियो कॉन्फ्रेसिंग (Video Conferencing),

4. फैक्स (Pax),

5. इलेक्ट्रॉनिक मेल अथवा ई-मेल (Electronic Mail or E-mail), 

6. उपग्रह सम्प्रेषण (Satellite Communication),

7. सीटीजन बैण्ड रेडियो (Citizen Band Radio),

8. इण्टरनेट (Internet),

9. सुबोध तन्त्र (Intelligent Network), 

10. इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड (Electronic Bulletin Board)।




Post a Comment

Previous Post Next Post