व्यावसायिक सम्प्रेषण क्या हैं?उपयुक्त साधन एवं प्रकार

प्रत्येक व्यावसायिक संस्था समय-समय पर अनेकों सन्देशों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर एवं एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आदान-प्रदान करती है। 

छोटे व्यवसायों में आमने-सामने सन्देशों का आदान-प्रदान होता है, किन्तु जैसे-जैसे संस्था का आकार बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे सम्प्रेषण का रूप बदलता जाता है। यद्यपि व्यावसायिक सम्प्रेषण का स्पष्ट विभाजन काफी जटिल कार्य है, फिर भी व्यावसायिक सम्प्रेषण को निम्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है-

(I) अभिव्यक्ति के आधार पर

 आज के वैज्ञानिक युग में सन्देश सम्प्रेषण के कई साधन विकसित हो रहे हैं परन्तु मुख्यतः सम्प्रेषण को भाषा के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

1. भाषिक सम्प्रेषण (Verbal), तथा 2. भाष्येत्तर या अशब्दिक सम्प्रेषण (Non verbal)।

1. भाषिक या शाब्दिक सम्प्रेषण 

भाषिक सम्प्रेषण के अन्तर्गत किसी भी भाषा के माध्यम से होने वाले सम्प्रेषण को भाषिक सम्प्रेषण कहा जाता है। भाषा से अभिप्राय भाषा के उस आधारभूत रूप से है जिसका कार्य वक्ता के भाव या विचारों को स्रोतों तक पहुँचाना है, वह भाषा जिसका प्रयोग एक समाज में होता है जिसमें एक व्यवस्था होती है।

भाषिक सम्प्रेषण निम्न दो प्रकार का होता है-

(i) मौखिक सम्प्रेषण एवं (ii) लिखित सम्प्रेषण

2. भाष्येत्तर या अशाब्दिक सम्प्रेषण

भाष्येत्तर सम्प्रेषण के अन्तर्गत भाव मुद्राओं, संकेतों, कूटों, चेष्टाओं, व्यवहार, दृश्य संकेत, ध्वनि संकेत आदि सभी माध्यम आ जाते। है जिनका भाषा से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता यद्यपि इनका अपना अलग महत्व होते हुए भी अधिकांशतः ये माध्यम भाषिक सम्प्रेषण के पूरक का कार्य करते हैं।

अशाब्दिक सम्प्रेषण को निम्न चार रूपों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) शारीरिक भाषा (Body Language), 

(ii) समीप्य भाषा (Proxemics),

(iii) भाषा प्रतिरूप (Para Language), 

(iv) संकेत भाषा (Sign Language)।

(II) प्रवाह के आधार पर

व्यावसायिक सम्प्रेषण का प्रवाह अनेक प्रकार से हो सकता है, जैसे- सन्देश का प्रवाह ऊपर से नीचे की और अथवा नीचे से ऊपर की ओर हो सकता है। अतः प्रवाह के आधार पर सम्प्रेषण को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है- 

1. ऊर्ध्वाधर सम्प्रेषण, 2. क्षैतिज सम्प्रेषण एवं 3. आरेखी सम्प्रेषण

1. ऊर्ध्वाधर सम्प्रेषण

ऊर्ध्वाधर सम्प्रेषण प्रबन्धन व उनके अधीनस्थ कर्मचारियों के मध्य होता है। इसकी दिशा प्रबन्धन से कर्मचारी या कर्मचारी से प्रबन्धन को और होती है। जब यह निचले कर्मचारियों से प्रबन्धक की ओर होता है तो इसे अवरोहो और जब प्रबन्धक से निचले कर्मचारियों की ओर होता है तो इसे आरोही सम्प्रेषण कहते हैं। यह एक औपचारिक सम्प्रेषण है। 

2. आरेखी या कर्णीय सम्प्रेषण 

 इस सम्प्रेषण के अन्तर्गत सम्प्रेषक के क्षैतिज प्रवाह के अतिरिक्त संगठन के विभिन्न स्तर के व्यक्तियों के मध्य सम्प्रेषण को सम्मिलित किया जाता है जिनमें कोई प्रत्यक्ष सम्प्रेषण सम्बन्ध नहीं होता। इस प्रकार का सम्प्रेषण एक संगठन के उद्देश्य व लक्ष्यों को प्राप्त करने के अतिरिक्त सम्प्रेषण के प्रवाह में गति सहकारिता को बढ़ावा देता है।

3. क्षैतिज या समतल सम्प्रेषण

 क्षैतिज सम्प्रेषण सहकारिता व सामूहिक कार्य की भावना को जन्म देता है। यह संगठन के समान वर्ग के अधिकारियों या कर्मचारियों के मध्य होता है। प्रभावी क्षैतिज सम्प्रेषण आपसी समझ की भावना को बढ़ाता है।

 उदाहरण के लिए, संगठन के विपणन प्रबन्धक व उत्पादन प्रबन्धक के मध्य सम्प्रेषण अथवा सेल्समेन का अन्य दूसरे सेल्समेन के मध्य सम्प्रेषण।

(III) संगठन के सम्बन्धों के आधार पर 

यहाँ पर व्यावसायिक संगठन के सम्बन्धों के आधार पर सम्प्रेषण के निम्न रूप होते हैं-

1. औपचारिक, एवं 2. अनौपचारिक

1. औपचारिक सम्प्रेषण 

 यह सम्प्रेषण सामान्यतः एक संगठन में कार्यरत प्रबन्धकों या उस संगठन के समान (बराबर) पदाधिकारियों के मध्य होता है। इसमें फैसले, स्मरण-पत्र इत्यादि सम्मिलित होते हैं। उदाहरण के लिए, एक 'A' प्रबन्धक ने जो संगठन का उच्च अधिकारी है, अपने तत्कालिक अधीनस्थ कर्मचारी 'B' को आदेश दिया। इस अधीनस्थ कर्मचारी ने अन्य 'C' को आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित किया। इस प्रकार से यह एक औपचारिक मार्ग है।

2. अनौपचारिक सम्प्रेषण

मनुष्य सम्प्रेषण के लिए सदैव अनौपचारिक सम्प्रेषण का प्रयोग नहीं करता है। अनौपचारिक सम्प्रेषण औपचारिक सम्प्रेषण के साथ-साथ होता है। यह कोई निर्धारित पद्धति से नहीं किया जाता। जब व्यक्ति अपने दफ्तर में कार्य पर आता है तो वह अपने मित्र से कुछ औपचारिक वार्तालाप करता है। वह अपने पर, परिवार, विद्युत् समस्या, वर्ल्ड कप क्रिकेट प्रतियोगिता, फिल्में व संगठन के अन्य व्यक्तियों के सम्बन्ध में चर्चा करता है, यद्यपि ये सब चर्चाएँ उनकी व्यक्तिगत होती है अर्थात् अधिकांश सम्प्रेषण अनौपचारिक सम्प्रेषण के द्वारा होते हैं जो कि सुनियोजित जान-बूझकर निर्मित मार्ग द्वारा किये जाते हैं। यह अन्य औपचारिकताओं से मुक्त होता है। इस अनौपचारिक सम्प्रेषण को अफवाह या अपुष्ट सम्प्रेषण भी कहते हैं।

मौखिक एवं लिखित सम्प्रेषण

शाब्दिक रूप में विचारों या सूचनाओं की अभिव्यक्ति काफी सरल, सुगम एवं बोधगम्य रहती है। अतः व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा सन्देशों को शाब्दिक रूप से ही प्रसारित किया जाता है। शाब्दिक रूप में सन्देश दो रूपों में हो सकते हैं, एक मौखिक (Oral) एवं दूसरा लिखित (Written) इनको निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है.-

(1) मौखिक सम्प्रेषण 

इस सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता दोनों आमने-सामने होते हैं और विचारों का मौखिक रूप में आदान-प्रदान होता है अर्थात् शब्दों व वाक्यों के सहारे जब सम्प्रेषण किया जाता है तो इसे मौखिक सम्प्रेषण कहते हैं। इसके अन्तर्गत बातचीत सम्वाद, बैठकें, सम्मेलन, सभाएँ, साक्षात्कार, व्याख्यान, उद्घोषणाएँ, रेडियो वार्ताएँ, टेलीफोन पर बातचीत, कहानी कथन, पौराणिक आख्यानों का प्रस्तुतीकरण, वाद-विवाद या वक्तव्य प्रतियोगिताएँ, अदालती मुकदमे, संसदीय बहसें आदि आती हैं।

मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपने मुखावयवों से विभिन्न ध्वनियों, ध्वनि प्रतीकों का निर्माण या सृजन कर अनेक रूपों में मौखिक सम्प्रेषण कर सकता है। 

अन्य प्राणी सीमित ध्वनियों का सृजन कर सकते हैं। मौखिक सम्प्रेषण को सफल व प्रभावी बनाने के लिए वक्ता में कच्य, विचारों की स्पष्टता, उनके अनुरूप शब्द, आगिक चेष्टाएँ, उच्चारण शैली, श्रोता में दोष रहित श्रवण क्षमता और अशाब्दिक प्रतीकों की अवलोकन शक्ति व प्राप्त प्रतीकों को संघटित कर विचारों में रूपान्तरण की क्षमता अत्यन्त आवश्यक है। मौखिक सम्प्रेषण की प्रभावी बनाने के लिए निम्न गुणों का होना अनिवार्य है-

1. उचित व स्पष्ट उच्चारण (Proper and Clear Pronounciation),

2. शब्द समृद्धि (Word Power),

3. संक्षिप्तता (Conciseness),

4. उचित लहजा (Proper Way),

5. ध्वनि का समुचित उतार-चढ़ाव (Proper Fluctuations of Sound),

6. उचित भाषा शैली (Proper Language Style)। 

एक सफल व प्रभावी मौखिक सम्प्रेषण में सात 'सी' (7C) का भी स्मरण किया जाता है-

1. सरल (Candid ), 

2. स्पष्ट (Clear), 

3. सम्पूर्ण (Complete), 

4. संक्षिप्तता (Concise),

5. निश्चित (Concrete).

 6. सही (Correct), 

7. विशिष्टतापूर्ण (Courte-rous) ।

 उपर्युक्त गुणों की उपस्थिति से ही कोई मौखिक सम्प्रेषण हमें रोचक, कर्णप्रिय व मन्त्रमुग्ध करता है।

मौखिक सम्प्रेषण के ढंग (Method of Oral Communication) मौखिक सम्प्रेषण के ढंगों या विधियों को अग्र प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-

व्यावसायिक सम्प्रेषण

(I) पारस्परिक वार्तालाप 

पारस्परिक वार्तालाप मौखिक सम्प्रेषण का सबसे सरल एवं सुविधाजनक ढंग है क्योंकि इसमें दोनों पक्ष आमने-सामने बैठकर अपनी सभी समस्याओं या विवादों पर विचार-विमर्श करके अपने भावों को व्यक्त करते हैं। पारस्परिक वार्तालाप के अन्तर्गत निम्न तरीके शामिल किये जाते हैं-

1. व्यक्तिगत वार्तालाप (Personal Conversation)

 2. सामूहिक चर्चा (Group Discussions)

3. विभागीय सभा (Departmental Meeting)

4. अन्तर्विभागीय सभा (Inter-departmental Meeting)

5. साक्षात्कार (Interview)

6. प्रशिक्षण (Training)

7. भाषण (Speeches)

(II) यन्त्रचालित उपकरण 

वर्तमान समय में मौखिक सम्प्रेषण के लिए कुछ यन्त्रचालित उपकरणों का भी प्रयोग किया जाता है। जिन्हें निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. रेडियो एवं टेलीविजन (Radio and Television)

2. टेलीफोन एवं आन्तरिक टेलीफोन (Telephone and Internal Telephone)

3. मोबाइल (Mobile),

4. वीडियो कॉन्फ्रेसिंग (Video Conferencing )

गुण या लाभ 

मौखिक सम्प्रेषण के निम्नलिखित गुण हैं-

1. इस सम्प्रेषण में समय एवं धन की बचत होती है।

2. इस माध्यम से अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर अधिक नियन्त्रण किया जा सकता है।

3. इस माध्यम में अन्य माध्यमों की अपेक्षा अधिक प्रभाव होता है।

4. इस सम्प्रेषण में हाव-भाव, ध्वनि, संकेत, इशारे को देखा जा सकता है जो अन्य माध्यमों में दृष्टिगत नहीं होता है। इस सम्प्रेषण में तुरन्त प्रतिपुष्टि (Feedback) प्राप्त होती है।

5. यह सम्प्रेषण अधिक स्पष्ट होता है। यदि सम्प्रेषणग्राहो सन्देश अच्छे से समझ नहीं पाता तो वह अविलम्ब स्पष्टीकरण ले सकता है।

6. यह सम्प्रेषण सभाओं, संगोष्ठियों हेतु अत्यन्त उपयोगी है।

 7. यह सम्प्रेषण आपसी सम्बन्धों को मजबूती प्रदान करता है।

8. इस सम्प्रेषण से एक संगठन में स्वस्थ माहौल विकसित करने में सहायता प्राप्त होती है। 

सीमाएँ या दोष

 मौखिक संचार की सीमाएँ या दोष अपलिखित हैं-

1. यह सम्प्रेषण उस स्थिति में सम्भव नहीं है जब प्रेषक व सम्प्रेषणग्राही के मध्य दूरी हो या मौखिक संचार व्यवस्था उपलब्ध न हो।

2. मौखिक सम्प्रेषण में प्रेषित किये गये सन्देशों का कोई लिखित प्रमाण नहीं रहता है। अतः इस सम्प्रेषण में उत्तरदायित्व की पुष्टि करना कठिन होता है।

3. यह सम्प्रेषण छोटे व सरल सन्देशों के लिए उपयुक्त है जटिल व बड़े सन्देशों की दृष्टि से अनुपयुक्त है।

4. इस सम्प्रेषण में बिना पुष्टि के कोई वैधानिकता नहीं होती।

5. यह सम्प्रेषण रिकॉर्ड के अभाव में अधिक दिनों तक याद नहीं रखे जा सकते। अतः अधिकांश अधिकारी अपने अधीनस्थों को लिखित में ही आदेश एवं निर्देश देना उपयुक्त समझते हैं।

6. यह सम्प्रेषण प्रत्येक स्थिति में समय व धन की बचत नहीं कर सकते। कई बैठकें, सभाएँ, सेमीनार बिना किसी अनुबन्ध व परिणाम के होते हैं। इस स्थिति में धन व समय दोनों का ही अपव्यय होता है।

 7. वह सम्प्रेषण सदैव प्रभावी नहीं होता। यह कुछ दशाओं पर निर्भर करता है जिनके न होने पर यह अप्रभावी हो जाता है। यह सदैव सम्प्रेषण के व्यवहार व सम्प्रेषणग्राही की सन्देश ग्राह्यता पर निर्भर करता है। जो सूचनाएँ व्यवसाय के भावी सन्दर्भ के लिए आवश्यक होती है, उनके लिए मौखिक सम्प्रेषण सर्वथा अप्रभावी रहता है।

8. मौखिक सम्प्रेषण सदैव भ्रम को बढ़ावा देते हैं। यदि वक्ता अपने विचारों को चतुराई-पूर्वक संगठित कर प्रस्तुत नहीं करता या सम्प्रेषणग्राही सुनने वाला सम्प्रेषण को नहीं सुन पाता।

 (2) लिखित सम्प्रेषण

लिखित सम्प्रेषण से आशय ऐसे सम्प्रेषण से है, जिसमें सूचनाओं या विचारों का आदान-प्रदान लिखित या मुद्रित रूप में किया जाता है। दूसरे शब्दों में जब सन्देश या विचारों के सम्प्रेषण में पत्र, गश्ती पत्र प्रतिवेदन, कार्यवाही विवरण, कार्यक्रम प्रपत्र, बुलेटिन, पत्र-पत्रिकाएँ, राजकीय प्रकाशन, गजट, संगठन पत्रिकाएँ, अनुसूचियों व परियोजनाओं को सम्मिलित किया जाता है यो प्रयोग किया जाता है तो इसे लिखित सम्प्रेषण कहते हैं। इस सम्प्रेषण में सोच-समझकर या चिन्तन-मनन करके प्रारूपण की सुविधा है। प्रारूपण (Drafting) एक कला है जिसमें प्रारूपणकर्ता को विषय से सम्बद्ध सूझबूझ, परिपक्वता, दूरदर्शिता, भाषा को सूक्ष्मतम जानकारी मिलती है।

व्यावसायिक सम्प्रेषण

लिखित सम्प्रेषण के ढंग

लिखित सम्प्रेषण के दंगों या विधियों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-

(I) व्यक्तिगत लिखित सम्प्रेषण 

इसके अन्तर्गत विचारों या सूचनाओं का आदान-प्रदान दो व्यक्तियों के मध्य लिखकर किया जाता है। इसके लिए निम्न दंगों या तरीकों अथवा विधियों का प्रयोग किया जाता है-

1. आपसी मामलों पर एक-दूसरे को पत्र लिखना ।

2. स्मरण-पत्र या नोट लिखना।

3. कर्मचारियों की शिकायतों को जानने हेतु शिकायत पेटिका का उपयोग।

4. संस्था की भलाई से सम्बन्धित सुझाव आमन्त्रित करने हेतु शिकायत पेटिका का उपयोग।

(II) सामूहिक लिखित सम्प्रेषण 

इसके अन्तर्गत आवश्यक सूचनाएँ संस्था में कार्य करने वाले सभी कर्मचारियों को लिखित रूप में दी जाती। हैं। इसके लिए निम्न ढंगों या विधियों का उपयोग किया जाता है-

1. कर्मचारी निर्देशिका एवं नियमावली

2. गृह-पत्रिकाएँ एवं बुलेटिन

3. सूचना पट (Notice Board)

 4. प्रतिवेदन (Reports)

गुण या लाभ 

 लिखित व्यावसायिक सम्प्रेषण के गुण या लाभ निम्नलिखित हैं-

 1. यह सम्प्रेषण एक स्थायी दस्तावेज या रिकॉर्ड होता है, क्योंकि लिखित सूचना सदैव महत्वपूर्ण रिकॉर्ड में परिवर्तित हो जाती है और इसे भविष्य में सन्दर्भ हेतु सुरक्षित रखा जा सकता है।

2. यह सम्प्रेषण एक कानूनी प्रपत्र होता है। यह एक फाइल में दो पक्षों के मध्य लिखे गये निर्णय की स्पष्ट करता है जोकि भविष्य के विवादों को निपटाने की क्षमता रखता है।

 3. यह सम्प्रेषण सही व स्पष्ट होता है। इसमें शुद्धता व यथार्थता का गुण होता है। यह सोच-समझकर निर्णय करने हेतु बाध्य करता है।

 4. इसे बार बार पढ़ा, देखा व दोहराया जा सकता है।

5. यह उत्तरदायित्वों को सौंपने के कार्य को सुविधाजनक बनाता है। इसमें उत्तरदायित्व का बोध होता है।

 6. यह सम्प्रेषण दूरी पर निर्भर नहीं करता। यदि सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता के बीच दूरी हो तो ऐसी स्थिति में लिखित सम्प्रेषण उपयोगी होता है।

 7. यह सम्प्रेषण एक संगठन के सफल संचालन व क्रियाशीलता के लिए अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि यह एक सार्वभौमिक नोति व प्रक्रिया को सदैव बढ़ावा देता है।

8. इस सम्प्रेषण में सन्देश को असीमित व्यक्तियों तक पहुँचाने की क्षमता होती है। किसी दोपहिए वाहन का बाजार में प्रवेश हो अथवा यदि कोई बैंक अपनी कोई निवेश/बचत नीति से व्यक्तियों को परिचित कराना चाह रहा हो तो लिखित सम्प्रेषण अत्यन्त उपयोगी होता है।

9. एक अच्छा प्रभावी लिखित सम्प्रेषण एक संगठन की प्रसिद्धि या अद्वितीय छवि निर्मित करता है।

10. लिखित सम्प्रेषण में जिम्मेदारों की भावना विकसित करने का गुण होता है, क्योंकि संगठन में कर्मचारियों, प्रबन्धकों के मध्य जिम्मेदारी को भावना मौखिक की अपेक्षा लिखित सम्प्रेषण से अधिक जाग्रत होती है।

सीमायें या दोष 

 लिखित सम्प्रेषण सदैव दोषरहित नहीं होता। कई गुण होने के बावजूद इसकी अपनी कुछ सीमाएँ हैं-

 1. यह महँगी प्रणाली है, क्योंकि सम्प्रेषण को रिकॉर्ड रूप में रखने के लिए फाइल, फाइल कैबिनेट, टाइपराइटर, रिकॉर्ड कीपर व डाक व्यय लगता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में सूचनाओं का संग्रहण कम्प्यूटर में रखा जाता है जो अत्यन्त महँगा साधन है।

2. पत्रों के आवागमन में अधिक समय लगता है।

3. किसी भ्रम या शंका के निवारण में अधिक समय लगता है। यदि वाद-विवाद या सन्देश अस्पष्ट होता है तो इसे स्पष्ट करने में अधिक समय लगता है।

4. यह सम्प्रेषण उस स्थिति में अप्रभावी हो सकता है जब एक व्यक्ति अपने कार्य के प्रति ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ हों, परन्तु अभिव्यक्ति में कमजोर हो।

5. लिखित सम्प्रेषण अविलम्ब प्रतिपुष्टि की दशा में विकलांगता महसूस करता है, क्योंकि यदि सन्देश के कूटन व सम्प्रेषण में अधिक समय लगता है तो यह एक समय व्यय करने वाली प्रक्रिया का रूप ले लेता है।

सम्प्रेषण के लिए उपयुक्त माध्यम/साधन का चयन

एक व्यवसाय/संगठन को सम्प्रेषण के उचित माध्यम/साधन का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

1. शुद्धता 

सन्देश के प्रेषण के लिये ऐसे साधन / माध्यम का चुनाव करना चाहिए जिसमें सन्देश को शुद्धता बनी रहे अर्थात् सन्देश का मौलिक स्वरूप बरकरार रहे व सन्देश में किसी प्रकार का क्षय न हो।

2. उपयुक्तता

 सम्प्रेषण के माध्यम का चुनाव व्यवसाय/संगठन की आवश्यकतानुरूप होना चाहिए, क्योंकि सम्प्रेषण का प्रत्येक साधन सभी व्यावसायिक संस्थाओं के लिये सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकता। उदाहरणार्थ, ऐसी संस्थाएँ जिनका कार्यक्षेत्र विस्तृत होता है उन्हें टेलीफोन व टैलेक्स का प्रयोग श्रेयस्कर होगा, जबकि एक ही स्थान तक सीमित कार्यक्षेत्र वाले व्यवसाय के लिये यह माध्यम उचित नहीं होंगे।

3. गोपनीयता

किसी भी संगठन / व्यवसाय की सफलता का आधार गोपनीयता है। प्रेषित सन्देश हेतु ऐसे माध्यम का चुनाव श्रेयस्कर होगा जिसमें सन्देश सम्बन्धित व्यक्तियों तक ही सीमित हो । अनावश्यक रूप से सन्देश का प्रचार-प्रसार सदैव संस्था/संगठन के हित में नहीं होता।

4. प्रभावपूर्ण

 सम्प्रेषण हेतु ऐसे माध्यम का चुनाव होना चाहिए जिसमें सन्देश को अत्यन्त हो प्रभावपूर्ण तरीके से प्रेषित किया जा सके जिससे प्राप्तकर्ता पर उसका अनुकूल व अच्छा प्रभाव पड़े।

5. अनुकूल गति

 सम्प्रेषण का माध्यम / साधन ऐसा होना चाहिए जिसमें आवश्यकतानुरूप उसकी गति को नियन्त्रित किया जा सके अर्थात् यदि सन्देश का तीव्र प्रसारण करना आवश्यक हो तो उसमें शीघ्रताशीघ्र सन्देश भेजने की सुविधा विद्यमान हो।

6. सुविधाजनक

 सम्प्रेषण के साधन / माध्यम प्रयोगकर्ता के लिये सुविधाजनक हो जिससे सन्देश के विरूपण की समस्याएँ पैदा न हों।

7. अनुकूल लागत 

 सम्प्रेषण के माध्यम / साधन ऐसे हों कि उसे आसानी से स्थापित किया जा सके व चलाया जा सके अर्थात् उसकी लागत संगठन के सामर्थ्य के अनुरूप हो। साधन / माध्यम पर किये गये व्यय की अपेक्षाकृत उपयोगिता अधिक प्राप्त हो। 

8. लेखीकृत 

संगठन के विभिन्न कार्यालयों/विभागों में प्रेषित सन्देश यदि लिखित हों तो यह प्रमाण के तौर पर एक दस्तावेज का कार्य करते हैं ताकि आवश्यकता पड़ने पर इन्हें उपयोग किया जा सके।


Post a Comment

Previous Post Next Post