व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रकार एवं क्षेत्र

 micro economics: आर्थिक व्यवस्था का अध्ययन दो दृष्टिकोणों से किया जाता है- (अ) विशिष्ट अथवा सूक्ष्म विश्लेषण (Micro Analysis) और (ब) व्यापक विश्लेषण (Macro Analysis) । विश्लेषण की इन दो रीतियों के आधार पर अर्थशास्त्र को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-विशिष्ट अर्थशास्त्र और व्यापक अर्थशास्त्र । इन ने शब्दों का प्रयोग सर्वप्रथम रैगनर फ्रीश (Ranger Frish) ने किया था परन्तु आर्थिक समस्याओं के कार्य- पद्धति-विषयक मार्गों के रूप में क्रमशः एडम स्मिथ तथा वाणिज्यवादियों के साथ उनका उद्भव हुआ।

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र अर्थ  

माइक्रो' शब्द प्रीक भाषा के मिक्रोस' (Mikros) शब्द से बना है जिसका अर्थ छोटा (Small) होता है। इस प्रकार माइलो छोटी इकाइयों से सम्बन्धित है। व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में किसी अर्थ-व्यवस्था को भिन्न-भिन्न छोटी-छोटी इकाइयों की आर्थिक क्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है। दूसरे शब्दों में व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विशेष व्यक्तियों, परिवार, फर्मों, उद्योगों, विशेष श्रमिक आदि का विश्लेषण किया जाता है। 

उदाहरण के लिए, एक उपभोक्ता अपनी आय तथा व्यय में किस प्रकार सन्तुलन स्थापित करता है। एक उत्पादक अपनी फैक्ट्री में उत्पादन का प्रबन्ध किस प्रकार करता है, किसी एक वस्तु, जैसे- गेहूँ या घी की कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है आदि ऐसी अनेक आर्थिक समस्याएं हैं जिनका अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में किया जाता है। 

इसमें उदाहरणार्थ हेतु निम्न प्रकार के प्रश्नों का अध्ययन किया जाता है- एक उपभोक्ता दी हुई कीमतों एवं दो हुई आमदनी से किस प्रकार अधिकतम सन्तोष प्राप्त करता है ?, एक फर्म दी हुई कीमत पर कितना उत्पादन करेगी ?, एक उद्योग में वस्तु की कीमत कैसे निर्धारित होगी ? उत्पादन के साधनों के पारितोषण का निर्धारण कैसे होगा ?, विभिन्न उद्योगों में उत्पादन के साधनों का आवंटन किस प्रकार होगा ?

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं :

(1) प्रो. बोल्डिंग ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'आर्थिक विश्लेषण' में लिखा है कि "व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विशेष फर्मों, विशेष परिवारों, वैयक्तिक कीमतों, मजदूरियों, आयों आदि वस्तुओं का अध्ययन किया जाता. है।" एक अन्य पुस्तक में प्रो. बोल्डिंग ने लिखा है कि "व्यष्टिगत अर्थशास्त्र विशिष्ट आर्थिक घटकों एवं उनकी पारस्परिक प्रतिक्रिया और इसमें विशिष्ट आर्थिक मात्राओं तथा उनका निर्धारण भी सम्मिलित है, का अध्ययन है। 

 (2) हैण्डर्सन क्वाट के शब्दों में व्यति अर्थशास्त्र व्यक्तियों के सुपरिभाषित समूहों के आर्थिक कार्यों का अध्ययन है। " 

(3) प्रो. मेहता ने व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को क्रूसो की अर्थव्यवस्था की संज्ञा दी है क्योंकि सम्बन्ध मुख्य रूप से वैयक्तिक इकाइयों से रहता है।

(4) गार्डनर एकले की मान्यता के अनुसार, "व्यष्टिगत अर्थशास्त्र उद्योगों, उत्पादनों एवं फर्मों में कुछ है उत्पादन के विभाजन तथा प्रतिस्पर्द्धा उपभोग के लिए साधनों के वितरण का अध्ययन करता है। यह आय वितरण समर का अगगन करता है। विशेष वस्तुओं और सेवाओं के सापेक्षिक मूल्यों में इनकी रुचि रहती है।" (5) प्रो. चेम्बरलेन के शब्दों में, "व्यष्टिगत अर्थशास्त्र पूर्णतया व्यक्तिगत व्याख्या पर आधारित है तथा इसका सम्बन्ध अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों से भी होता है।"

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किसी एक इकाई से होता है, सभी इकाइयों से नहीं । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में भी यद्यपि योगों का अध्ययन किया जाता है किन्तु ये योग सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित नहीं होते । संक्षेप में, जैसा विलियम फैलनर ने कहा है कि "व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत निर्णय निर्माता इकाइयों से है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र आर्थिक विश्लेषण की वह शाखा है जो विशिष्ट आर्थिक इकाइयों तथा अर्थव्यवस्था के छोटे भागों, उनके व्यवहार तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करती है। व्यष्टिगत आर्थिक इकाइयों और अर्थव्यवस्था के छोटे अंगों को 'सूक्ष्म चरों (Micro-variables) या सूक्ष्म मात्राएँ (Micro-quantities) भी कहते हैं। अतः व्यष्टिगत अर्थशास्त्र सूक्ष्म मात्राओं व सूक्ष्म चरों के व्यवहार का अध्ययन करता है।

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को कीमत सिद्धान्त' (Price Theory) भी कहा जाता है। 18वीं-19वीं शताब्दी में इसको मूल्य का सिद्धान्त (Theory of Value) कहा जाता था। व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को कभी-कभी 'सामान्य सन्तुलन विश्लेषण' (General Equilibrium Analysis) भी कहा जाता है। कुछ अर्थशास्त्री व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को कीमत तथा उत्पादन का सिद्धान्त' (Theory of Pricing and Production) भी कहते हैं। व्यष्टिगत अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था को बहुत छोटे टुकड़ों या भागों में बांटकर अध्ययन करता है, इसलिए व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को कभी-कभी 'काँबे या कतले करने की रीति, स्लाइसिंग की रीति' (Method of Slicing) भी कहा जाता है। 

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की विशेषताएँ 

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

 (1) व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन 

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र व्यक्तिगत आय, व्यक्तिगत उत्पादन और व्यक्तिगत उपभोग की व्याख्या में सहायता करता है। इसका सम्बन्ध समूहों या व्यापारिक स्थितियों से नहीं है।

(2) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का अभाव 

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में एक इकाई का रूप इतना छोटा होता है कि इसके द्वारा किये गये परिवर्तन का सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

 (3) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को स्थिर मान लेना 

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में किसी एक इकाई के आर्थिक व्यवहार की जांच और विश्लेषण करते समय देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित बातों, जैसे- राष्ट्रीय आय, कीमतों का स्तर, देश का कुल पूँजी विनियोग, कुल बचत तथा सरकार की आर्थिक नीति आदि को स्थिर मान लिया जाता है।

(4) कीमत सिद्धान्त 

 कुछ अर्थशास्त्री इसे कीमत सिद्धान्त का नाम देकर बताते हैं। कि इसके अन्तर्गत माँग एवं पूर्ति द्वारा विभिन्न वस्तुओं के व्यक्तिगत मूल्य निर्धारित किये जाते हैं। 

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के प्रकार

 व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(1) व्यष्टिगत स्थैतिक 

व्यष्टिगत स्थैतिक यह मानते हुए कि समय विशेष में साम्य की स्थिति रहती है, एक दिये हुए समय पर व्यष्टिगत चरों के सम्बन्धों का साम्य की स्थिति में अध्ययन करता है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की कीमत एक बाजार में उस वस्तु को माँग और पूर्ति के साम्य द्वारा निर्धारित होती है। व्यष्टिगत स्थैतिक दिये हुए समय पर इस वस्तु की साम्य या सन्तुलन कीमत का अध्ययन करेगी और पूर्ति की शक्तियों को स्थिर मान लेगी। संक्षेप में व्यष्टिगत स्थैतिक केवल विशिष्ट चरों के सम्बन्ध के 'स्थिर या शान्त चित्रों' का अध्ययन करती है। यह रीति आंशिक साम्य विश्लेषण से सम्बन्धित होती है।

(2) तुलनात्मक व्यष्टिगत स्थैतिक

 तुलनात्मक व्यष्टिगत स्थैतिक व्यष्टिगत चरों के सम्बन्धों की साम्य स्थितियों की तुलना करती है। विश्लेषण की यह विधि सन्तुलन की दो स्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन करती है परन्तु इस तथ्य पर प्रकाश नहीं डालती कि व्यष्टिगत सन्तुलन की एक स्थिति से दूसरी स्थिति तक किस प्रकार पहुंचा गया है।

(3) व्यष्टिगत प्रावैगिक 

व्यष्टिगत प्रावैगिक विश्लेषण उस समायोजन की प्रक्रिया का अध्ययन करती है जिसके द्वारा विशिष्ट चरों के सम्बन्धों की एक सन्तुलन स्थिति से दूसरी सन्तुलन की स्थिति तक पहुँचा जाता है । उदाहरण के लिए, एक बाजार में एक वस्तु की कीमत मांग और पूर्ति के सन्तुलन का परिणाम है। यदि माँग में वृद्धि हो जाती है तो उस वस्तु के बाजार में असन्तुलन उत्पन्न हो जायेगा और असन्तुलनों की एक श्रृंखला द्वारा उस वस्तु के बाजार में कीमत की अन्तिम सन्तुलन स्थिति में पहुंचा जायेगा। व्यष्टिगत प्रावैगिक समायोजन की इसी प्रक्रिया का अध्ययन करता है अर्थात् अन्तिम सन्तुलन की स्थिति तक पहुँचने के लिए असन्तुलनों की शृंखलाओं का अध्ययन करता है।

 व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का क्षेत्र 

ऐक्ले (Ackley) के शब्दों में, "कीमत और मूल्य सिद्धान्त, परिवार, फर्म एवं उद्योग का सिद्धान्त, अधिकतम उत्पादन और कल्याण सिद्धान्त व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के क्षेत्र हैं।"

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का अध्ययन किया जाता है:

(I) वस्तुओं का कीमत निर्धारण (Product Pricing) |

 (II) साधन का कीमत-निर्धारण या वितरण का सिद्धान्त (Factor Pricing or Theory of Distribution) |

 ((III) साधनों के आवंटन की कुशलता (Efficiency of Allocation of Resources) |

(I) वस्तुओं का कीमत-निर्धारण

इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित दो बातों का अध्ययन किया जाता है:

(अ) उपभोक्ता के सन्तुलन निर्धारण की समस्या 

उपभोक्ता सन्तुलन की स्थिति में वहाँ होगा जहाँ वह अपने सीमित साधनों को विभिन्न आवश्यकताओं के बीच इस प्रकार बाँटे जिससे उसे मिलने वाली सन्तुष्टि अधिकतम हो (मार्शल) या वह (जैसे हम आगे देखेंगे) उच्चतम तटस्थता वक्र पर हो (हिक्स)। न केवल उपभोक्ता के सन्दर्भ में सीमित साधनों के अनुकूलतम आबंटन का अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है बल्कि इसी का अध्ययन उत्पादन के सन्दर्भ में किया जाता है।

(ब) वस्तुओं की कीमत निर्धारण 

 इसके अन्तर्गत यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न वस्तुओं, जैसे-चावल, चाय, दूध, घी, पंखे, स्कूटर हजारों अन्य वस्तुओं की सापेक्ष कीमतें किस प्रकार निर्धारित होती हैं।

(II) साधन का कीमत-निर्धारण या वितरण का सिद्धान्त 

इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि लगान (भूमि की उपयोगिता की कीमत), ब्याज (पूंजी के उपयोग की कीमत), लाभ (साहसी का पारितोषण) का निर्धारण किस प्रकार होता है। 

चूंकि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में यह अध्ययन किया जाता है कि किसी वस्तु या सेवा की कीमत किस प्रकार निर्धारित की जाती है, इसलिए इसे कीमत सिद्धान्त भी कहते हैं।

(III) साधनों के आवंटन की कुशलता 

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र यह भी अध्ययन करता है कि अर्थव्यवस्था में कितनी कुशलता के साथ विभिन्न साधनों का व्यक्तिगत उपभोक्ताओं और उत्पादकों के मध्य विभाजन होता है। साधनों के आवंटन में कुशलता को तब प्राप्त किया जाता है जबकि विभिन्न साधनों का आबंटन इस प्रकार से किया जाये कि व्यक्तियों को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो इस आर्थिक कुशलता में तीन कुशलताएँ सम्मिलित होती हैं- उपभोग में कुशलता, उत्पादन में कुशलता और उपभोग और उत्पादन में परिपूर्ण कुशलता।

 उपभोग और उत्पादन कुशलताओं का सम्बन्ध व्यक्तिगत कल्याण से होता है तथा परिपूर्ण कुशलता का सम्बन्ध सामाजिक कल्याण से है। व्यष्टिगत अर्थशास्त्र से यह पता चलता है। कि इन कुशलताओं को किन दशाओं में प्राप्त किया जा सकता है। इन कुशलताओं के प्राप्त न होने पर व्यक्तियों को प्राप्त होने वाली सन्तुष्टियों में किस प्रकार कमी हो जाती है।

 उत्पादन में कुशलता का तात्पर्य यह है कि निश्चित साधनों से विभिन्न वस्तुओं की अधिकतम मात्रा का उत्पादन किया जाये। एक व्यक्तिगत उत्पादक, उत्पादन में कुशलता तब प्राप्त करता है जब विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं में पुनराबंटन करके, बिना किसी वस्तु के उत्पादन में कमी किये, किसी अन्य वस्तु के उत्पादन में और वृद्धि करना सम्भव नहीं होता।

 इसी प्रकार उपभोग में कुशलता से तात्पर्य है कि समाज में उपभोक्ताओं में वस्तुओं और सेवाओं का वितरण इस प्रकार से किया जाये कि समाज की कुल सन्तुष्टि अधिकतम हो। परिपूर्ण (Overall) कुशलता जो सामाजिक कल्याण पैरोटी अनुकूलतम भी कहलाती है, समाज की आर्थिक कुशलता के परिपूर्ण सुधार से सम्बन्धित होती है। एक बार इस स्थिति को प्राप्त कर लेने के बाद यदि साधनों का पुनर्विभाजन किया जाये और कुछ वस्तुएं कम व अधिक उत्पादित की जायें तो इससे सन्तुष्टि या कुशलता में गिरावट आ जायेगी।


वस्तुतः आर्थिक कुशलता की समस्या सैद्धान्तिक कल्याणवादी अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री है जो व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की एक महत्वपूर्ण शाखा है। प्रो. लर्नर ने उपयुक्त हो लिखा है, "व्यष्टिगत अर्थशास्त्र कुशलताओं की दशाओं को बताता है और उनको प्राप्त करने के सम्बन्ध में सुझाव देता है।"





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