शैक्षिक तकनीकी का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप अनेक मशीनों का आविष्कार हुआ लेकिन शिक्षा की समस्त रूपरेखा सरल तथा सीमितही रही। किन्तु बाद में धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में भी परिवर्तन और प्रयोग होने लगे।
लम्सडेन (Lumsdain), ग्लेजर (Glaser) आदि व्यक्तियाँ ने सन् 1930-40 के मध्य विशिष्ट प्रकार की पुस्तकों, कार्डों और बोर्डों (Scrambled Books, Cards & Boards) का प्रयोग किया। फिर भी सन् 1900 से 1950 तक यह विज्ञान शिक्षा को विशेष प्रभावित नहीं कर सका।
सन् 1950 में बी० एफ० स्किनर (B. F. Skinner) ने प्रोग्राम्ड लर्निंग (Programmed Learning) पद्धति का विकास किया। इसी वर्ष बाइनमोर (Brynmor) ने 'शैक्षिक तकनीकी शब्द का प्रयोग प्रथम बार किया। स्टेनली एडवर्ड (Stanley Edward) तथा स्किनर के प्रयासों के फलस्वरूप प्रोग्राम्ड लर्निंग मैटीरियल के प्रयोगों में विभिन्न राष्ट्रों में रुचि ली जाने लगी।
फलस्वरूप तकनीकी स्वयं ही शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ने लगी और एक समय ऐसा आया कि प्रोग्राम्ड लर्निंग तथा 'श्रव्य-दृश्य-सामग्री' को ही शैक्षिक तकनीकी का पर्याय माना जाने लगा। क्रमशः शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकी उपकरणों के माध्यम से व्यवहार तकनीकी, अनुदेशन तकनीकी तथा शिक्षण तकनीकी आदि के क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के शिक्षण-प्रतिमानो (Teaching Models) आदि का प्रतिपादन होने लगा।
इस प्रकार धीरे-धीरे शैक्षिक तकनीकी शिक्षण प्रक्रिया को अधिक ठोस, व्यावहारिक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में स्वयं को अधिक सक्षम रूप में प्रस्तुत करने में समर्थ होती गयी।
भारत में शैक्षिक तकनीकी
भारत में शिक्षा के विभिन्न अंगों को सबल और सक्षम बनाने का कार्य राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, नई दिल्ली का है। इस परिषद् के अन्तर्गत एक विभाग शैक्षिक तकनीकी केन्द्र के नाम से कार्यरत है। यह विभाग शोध एवं प्रशिक्षण के साथ-साथ शैक्षिक तकनीकी पर विशिष्ट सामग्री भी विकसित करने में संलग्न है। इस केन्द्र की परामर्शदाता प्रो० स्नेह शुक्ला तथा प्राचार्य श्रीमती विजय मुले आदि रहे है। इन लोगों के प्रयासों के फलस्वरूप यह विभाग शैक्षिक तकनीकी । चेतना का विकास पूर्ण जोर-शोर के साथ कर रहा है।
सन् 1960-70 के दशकों में अनेक शोध अध्ययन, सेमीनार सिम्पोजियम आदि अभिक्रमित अध्ययन के क्षेत्र में किये गये अनेक विषयों में अभिक्रमित सामग्री विकसित की गयी। इस क्षेत्र में शाह, कुलकर्णी, के० पी० पाण्डे, प्रेम प्रकाश, कपाडिया तथा कुलश्रेष्ठ ने काफी कार्य किया। शैक्षिक लक्ष्यों के क्षेत्र में डॉ० दवे तथा उनका RCEM System उल्लेखनीय है। शैक्षिक नियन्त्रण के क्षेत्र में CASE Baroda, I.I.T. खडगपुर, ईविंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद तथा NCERT, नई दिल्ली ने काफी कार्य किया।
क्रियानुसंधान के क्षेत्र में डॉ० शेरी, वर्मा, अहलूवालिया, कुलश्रेष्ठ तथा भार्गव आदि के नाम उल्लेखनीय है। Micro Teaching के क्षेत्र में डॉ० एल० सी० सिंह, डॉ० दास, डॉ० पासी, डॉ० जंगीरा तथा डॉ० अजीत सिंह आदि ने काफी कार्य किया है। NCERT ने इस क्षेत्र में इन्दौर यूनीवर्सिटी के साथ कई National Research Projects पूर्ण किये हैं। मिनी टीचिंग तथा इण्टीग्रेशन ऑफ टीचिंग स्किल्स के क्षेत्र में डॉ० एस० पी० कुलश्रेष्ठ तथा डॉ० एन० के० जंगीरा का काफी कार्य है।
आज शैक्षिक तकनीकी विज्ञान भारत में अनेक विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों के शिक्षक-प्रशिक्षण के पाठ्यक्रमों में समावेशित किया जा रहा है। हिमाचल, मेरठ, पंजाब, गढ़वाल, इन्दौर के विश्वविद्यालयो तथा रीजनल कॉलेज ऑफ एजूकेशन ने इस विषय को अपने पाठयक्रमों में समावेशित करने में पहल की है।
इस विषय की पुस्तकों के प्रणयन के सम्बन्ध में डॉ० रुहेला, डॉ० ए० आर० शर्मा, डॉ० ए० पी० शर्मा, डॉ० आर० ए० शर्मा, डॉ० एस० पी० कुलश्रेष्ठ, श्री सुरेश भटनागर, श्री गुलाटी तथा श्री एन० आर० स्वरूप सक्सेना का नाम स्वयं ही आ जाता है। इन लोगों ने शिक्षण तकनीकी पर लिखकर अध्यापकों तथा छात्राध्यापकों की जो सेवा की है, वह अविस्मरणीय है। बड़ौदा के डॉ० एम० एस० यादव तथा डॉ० गोविन्दा ने भी इस विषय पर पिटमैन की 'Aspects of Educational Technology के विभिन्न वॉल्यूम्स में आधिकारिक शोध-प्रपत्र प्रकाशित कराये हैं।
शैक्षिक तकनीकी की परिभाषाएँ तथा प्रकृति
(A) एकांगी परिभाषाएँ-
शैक्षिक तकनीकी की विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषायें दी हैं। कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ नीचे उदधृत की जा रही है। ये परिभाषाएँ शैक्षिक तकनीकी के अर्थ एवं स्वरूप को समझने में सहायता प्रदान करती है।
(1) जैकोटा ब्लूमर (Jacquetta Bloomer. 1973)– "शैक्षिक तकनीकी को व्यावहारिक अधिगम की परिस्थितियों में वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान का विनियोग कहा जाता है।"
(2) रिचमण्ड (Richmand 1970)- "शैक्षिक तकनीकी सीखने की उन परिस्थितियों की समुचित व्यवस्था के प्रस्तुत करने से सम्बन्धित है जो शिक्षण एवं परीक्षण के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर अनुदेशन को सीखने का उत्तम साधन बनाती है।"
(3) रॉबर्ट ए० कॉक्स (Robert A Cox. 1970)- "मानव की सीखने की परिस्थितियों में वैज्ञानिक प्रक्रिया के प्रयोग को शैक्षिक तकनीकी कहा जाता है।"
(4) डीसीको (Dececco) - "सीखने के मनोविज्ञान का व्यावहारिक शैक्षिक समस्याओं पर गहन विनियोग शैक्षिक तकनीकी है।"
(5) रॉबर्ट एम० गेने (Robert M. Gagne) - शैक्षिक तकनीकी से तात्पर्य है कि व्यावहारिक ज्ञान की सहायता से सुनियोजित प्रविधियों का विकास करना, जिससे विद्यालयों की शैक्षिक प्रणाली के परीक्षण तथा शिक्षा कार्य की व्यवस्था की जा सके।"
(6) एस० एस० कुलकर्णी (5.S. Kulkarni, 1966 ) - 'तकनीकी तथा विज्ञान के आविष्कारों तथा नियमों का शिक्षा की प्रक्रिया में प्रयोग को ही शैक्षिक तकनीकी कहा जाता है।"
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं की विवेचना करने पर स्पष्ट होता है कि ये सभी परिभाषायें एकांगी है। कोई परिभाषा शैक्षिक तकनीकी के किसी पहलू पर प्रकाश डालती है और कोई परिभाषण किसी दूसरे पहलू को उजागर करती है। अतः इन परिभाषाओं में व्यापकता (Comprehensiveness) के गुण का अभाव है।
(B) शैक्षिक तकनीकी की ग्राह्य परिभाषाएँ-
इस श्रेणी में लीथ, साकामातो तथा शिव के० मित्रा की परिभाषाएँ वर्गीकृत की जा सकती हैं-.
(1) जी० ओ० एम० लीथ (G.O. M. Leith) - "शैक्षिक तकनीकी सीखने और सिखाने की दिशाओं में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग है, जिसके द्वारा शिक्षण एवं प्रशिक्षण की प्रक्रिया की प्रभावपूर्णता एव दक्षता का विकास कर उसमें सुधार लाया जाता है।"
(2) तक्शी साकामाटो (Takshi Sakamato, 1971 )- "शैक्षिक तकनीकी वह व्यावहारिक या प्रयोगात्मक अध्ययन है जिसका उद्देश्य कुछ आवश्यक तत्वों, जैसे- शैक्षिक उद्देश्य पाठ्य वस्तु शिक्षण सामग्री शिक्षण विधि, वातावरण, विद्यार्थियों व निर्देशकों का व्यवहार तथा उनके मध्य होने वाली अन्तः प्रक्रिया को नियन्त्रित करके अधिकतम शैक्षिक प्रभाव उत्पन्न करना है।"
(3) शिव के० मित्रा (Shiv K. Mitra)-"शैक्षिक तकनीकी को उन पद्धतियों तथा प्रविधियों का विज्ञान माना जा सकता है जिनके द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।"
(C) शैक्षिक तकनीकी की कार्यात्मक परिभाषा-
हेडान (E.E. Hadden) की परिभाषा कार्यात्मक परिभाषा कही जाती है। इसमें शैक्षिक तकनीकी के सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों ही पक्षों को समावेशित किया गया है। हेडान के अनुसार शैक्षिक तकनीकी, शैक्षिक सिद्धान्त एवं व्यवहार की वह शाखा है जो मुख्यतः सूचनाओं के उपयोग एवं योजनाओं से सम्बन्धित होती है और सीखने की प्रक्रिया पर नियन्त्रण रखती है।
(Educational Technology is that branch of educational theory and practice concerned primarily with the design and use of message which control the learning process.)
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम निम्नांकित निष्कर्षो पर पहुँचते है-
(1) विज्ञान, शैक्षिक तकनीकी का आधारभूत विषय है।
(2) शैक्षिक तकनीकी, शिक्षा पर विज्ञान तथा तकनीकी के प्रभाव का अध्ययन करती है।
(3) शैक्षिक तकनीकी में व्यावहारिक पक्ष को महत्त्व दिया जाता है।
(4) शैक्षिक तकनीकी निरन्तर विकासशील विषय है।
(5) इसका उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया में विकास करना है।
(6) यह मनोविज्ञान, इन्जीनियरिंग आदि विज्ञानों से सहायता लेती है।
(7) इसमें क्रमबद्ध उपागम (Systematic Approach) को प्रधानता दी जाती है।
(8) इसमें शिक्षक, छात्र तथा तकनीकी प्रक्रियायें एक साथ समावेशित रहती है।
(9) शैक्षिक-तकनीकी के विकास के फलस्वरूप शिक्षण में नवीन शिक्षण विधियों तथा नव शिक्षण- तकनीकियों का प्रवेश हो रहा है।
(10) यह शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अधिगम परिस्थितियों में आवश्यक परिवर्तन लाने में समर्थ है।
(11)शैक्षिक -तकनीकी,शैक्षिक,आर्थिक ,सामजिक तथा तकनीकी आवश्यकताओं के अनुरूप उपकरणों के निर्माण में सहायता प्रदान करती है।
उपर्युक्त परिभाषाओं तथा विशेषताओं के आधार पर यह स्पष्ट है कि शैक्षिक तकनीकी अति विस्तृत शब्द है। इसका तात्पर्य सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया को योजनाबद्ध कर, कार्यान्वित करने में वैज्ञानिक सिद्धान्तों को प्रयोग में लाना है। डॉ० आनन्द (1996) के शब्दों में इसमें वह बात शामिल है। जिसकी सहायता से शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सुधार लाने का प्रयास किया जाता है। शैक्षिक तकनीकी. शिक्षण, प्रशिक्षण तथा शिक्षा की लगभग सभी महत्त्वपूर्ण क्रियाओं से सम्बन्धित है-जैसे अनुदेशात्मक उद्देश्यों को निर्धारित करना, अधिगम सम्बन्धी वातावरण की योजना बनाना, शिक्षण एवं अधिगम सामग्री को तैयार करना, शिक्षण हेतु उपयुक्त युक्तियों तथा अधिगम के माध्यमों का चयन करना एवं शिक्षण तथा अधिगम प्रणालियों का मूल्यांकन करना, इत्यादि ।
एक समय था जब शैक्षिक तकनीकी का अर्थ केवल श्रव्य दृश्य साधनों के शिक्षण से समझा जाता था। आज के युग में शैक्षिक तकनीकी अत्यन्त विस्तृत धारणा युक्त हो गयी है। अब शैक्षिक तकनीकी की धारणा का प्रयोग उन सभी विधियों, प्राविधियों व्यूह रचनाओं तथा यान्त्रिक उपकरणों की अभिव्यक्ति हेतु किया जा रहा है जिनका प्रयोग शिक्षण एवं अधिगम की प्रभावशीलता में वृद्धि करने के लिये किया जाता है। शैक्षिक तकनीकी, शैक्षिक एवं शैक्षणिक प्रक्रियाओं को नियोजित करने, संगठित करने, अग्रसारित करने तथा उनके प्रभावों को भली-भाँति नियन्त्रित करने के लिये एक सुव्यवस्थित तथा वैज्ञानिक प्रयास कहलाता है।
शैक्षिक तकनीकी की उपर्युक्त विवेचना के आधार पर लेखक ने अपनी परिभाषा इस प्रकार दी है-“शैक्षिक तकनीकी, विज्ञान पर आधारित एक ऐसा विषय है जिसका उद्देश्य शिक्षक, शिक्षण तथा छात्रों के कार्य को निरन्तर सरल बनाना है। जिससे कि शिक्षा के ये तीनों अंग मिलकर भली-भाँति समायोजित रहे और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में क्रमबद्ध उपागमों के माध्यम से सक्षम और समर्थ रहें। इस विषय के अन्तर्गत शिक्षा के अदा, प्रदा तथा प्रक्रिया (Input, Output and Process) तीनों ही पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए।"(Kulshrestha, S. P., 1980)