सम्प्रेषण के सिद्धांत,और सूचना के सिद्धान्त व आवश्यकता

सम्प्रेषण सन्देश के माध्यम से मनुष्य को एक-दूसरे से जोड़ता है। सम्प्रेषण को किसी भी सीमा में बाँधना असम्भव है बल्कि इसे कुछ मापदण्डों के आधार पर सम्प्रेषित किया जा सकता है। सम्प्रेषण के मापदण्ड या सिद्धान्त से क्या आशय है ? इसकी परिभाषा व परिधि क्या है और ये मापदण्ड क्यों अनिवार्य है ? इसे जानना हमारे लिए अत्यन्त अनिवार्य है।

सम्प्रेषण सिद्धान्त 

सम्प्रेषण को जिन मान्यताओं, सीमाओं व परिवेश में सर्वहित में सम्प्रेषित किया जाता है, उसे सम्प्रेषण सिद्धान्त कहते है अर्थात् सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश में आदर्श मूल्यों की रक्षा च स्थापना हेतु सार्वभौमिक समुदाय के लिए निर्धारित सीमा में किया गया सम्प्रेषण ही सम्प्रेषण सिद्धान्त है। सम्प्रेषण के अध्ययन से यह विदित होता है कि विश्व में सम्प्रेषण के सिद्धान्त विद्यमान हैं जो निम्नलिखित हैं-

1. कम्युनिस्ट सम्प्रेषण सिद्धान्त ।

2. चायनीज सम्प्रेषण सिद्धान्त।

3. क्रिश्चियन सम्प्रेषण सिद्धान्त।

4. इस्लामिक सम्प्रेषण सिद्धान्त।

5. कन्जरवेटिव सम्प्रेषण सिद्धान्त ।

 6. लिबरल सम्प्रेषण सिद्धान्त।

7. वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त।

1. कम्युनिस्ट सम्प्रेषण सिद्धान्त

यह सम्प्रेषण का अत्यधिक सशक्त व पृथक सिद्धान्त है। 1917 को सफल क्रान्ति के पश्चात् सोवियत संघ मैं इसे लागू किया गया था। यह सिद्धान्त निम्न बातों पर आधारित है-

 (i) इसके अन्तर्गत मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के खिलाफ सम्प्रेषण किया जायेगा।

(ii) कहीं भी मजदूरों पर हो रहे अत्याचार व उनको आवाज को प्रमुखता से लिया जायेगा।

(iii) जनतन्त्र के लिए एक आचार संहिता है कि देश में सर्वोपरि कोई बात नहीं होगी।

(iv) देश के निर्माण में जनतन्त्र की प्रत्यक्ष भूमिका होगी।

इस सिद्धान्त का प्रभाव इतना साफ था कि महान सम्प्रेषक लेनिन की आवाज को न केवल सोवियत संघ बल्कि भारत, चीन व संसार के कई दूर-दूर स्थिति देशों में सुना गया। यह सिद्धान्त आज भी क्यूबा जैसे देश का आधार है। यह सिद्धान्त अपरिवर्तन व वैश्विक घटनाओं से जनतन्त्र को दूर रखना व परम्परागत तरीकों मे जीवनयापन करने का समर्थक है अर्थात् क्रान्तिकारी परिवर्तनों के लिए इसका कोई विकल्प नहीं है, अतः संकीर्णता के कारणवश यह सिद्धान्त अधिक प्रसिद्ध नहीं हो पाया।

2. चाइनीज सम्प्रेषण सिद्धान्त 

विश्व में चौन अपनी सम्प्रेषण नीति के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहाँ कम्युनिस्ट प्रणाली है, साथ ही साथ यह एक अलग सोच-समझ वाला देश है। अतः इनके सम्प्रेषण सिद्धान्त को चाइनीज सिद्धान्त कहा जाता है। इसने कम्युनिस्ट सम्प्रेषण सिद्धान्त की भाँति क्रान्ति को नहीं बल्कि शान्ति की बात कही है।

 इस देश की संचार व्यवस्था में बौद्ध के विचारों की बाहुल्यता है। बड़ों का आदर, सम्मान देना व सम्मान लेना, देश के प्रति वफादारी इत्यादि इस सिद्धान्त को विशेषताएँ हैं। चीन की सम्प्रेषण पद्धति पंचशील सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त में सरकारी आदेशों, स्थापित मान्यताओं और लोकप्रिय परम्पराओं का निर्वहन सम्मिलित हैं।

चाइनीज सम्प्रेषण सिद्धान्त को प्रमुख बातें निम्न हैं- 

(i) इस सिद्धान्त में साम्यवाद एवं बौद्ध धर्म का प्रभुत्व है।

(ii) यह सिद्धान्त भारत के पंचशील सिद्धान्त पर आधारित है।

(iii) यह बड़ों का आदर, सम्मान एवं देश के प्रति वफादारी पर जोर देता है।

3. क्रिश्चियन सम्प्रेषण सिद्धान्त

यह सिद्धान्त मनुष्य को संवेदना, कोमल हृदय, सेवाभाव आदि पहलुओं पर आधारित है। इसमें स्वतन्त्र विचार, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता व ईश्वर (प्रभु) के प्रति समर्पणता इसकी मुख्य बातें हैं। यूरोप के अधिकांश देशों की सम्प्रेषण व्यवस्था का आधार यह सिद्धान्त है।

 यह एक प्रोग्रेसिव सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त में अवरोधों का कोई स्थान नहीं है, नयी से नयी वस्तु मानव कल्याण हित में अविलम्ब व्यक्तियों तक पहुँचा दी जाती है। अतः यह सिद्धान्त अत्यधिक लोकप्रिय व प्रसिद्ध है। इस सिद्धान्त की मुख्य विशेषता व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का क्षेत्र है।

 भारत में प्रारम्भ में यह सिद्धान्त अपनाया गया, परन्तु भारतीय संस्कृति पर क्रिश्चियन संस्कृति के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए यह सिद्धान्त बदल दिया गया।

यह सिद्धान्त अत्यधिक लोकप्रिय इसलिए भी है कि ब्रिटेन ने अधिकांश देशों पर शासन किया है और यही सिद्धान्त ब्रिटेन की सम्प्रेषण प्रक्रिया का आधार है।

4. इस्लामिक सम्प्रेषण सिद्धान्त

इस सिद्धान्त का प्रमुख आधार पवित्र कुरान व हदीस है। इसमें धर्म के प्रचार की बात कही गई है। यह कठोर, कट्टरवाद और मोहम्मद साहब के बनाये गये कानूनों पर आधारित है। इसे विस्तारवादी सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धान्त में पुरुष को ही ऊँचा स्थान दिया गया है। इस सिद्धान्त के दो भाग है-

एक भाग जो शुद्ध इस्लामिक सिद्धान्त है, यह अत्यन्त मानवीय, वैज्ञानिक व स्नेही है, परन्तु दूसरा भाग जिसे कठमुल्लाओं, धर्म के ठेकेदारों व मौलवियों ने अपनी जुबान से लिखा है, वह अत्यन्त ही कठोर, निर्दयी व अरुचिकर है। यह सिद्धान्त इस्लामिक देशों में युवाओं को दिशा-भ्रमित करता है इसलिए इस्लामिक देशों में अधिकतर जातीय दंगे होते हैं।

 अधिकतर पावन्दियाँ औरतों पर ही हैं। पुरुष भगवान् के समतुल्य हैं। ये दोनों सिद्धान्त के हिस्से केवल इस्लामिक देशों में ही प्रचलित हैं। इस सिद्धान्त में तलाक एक प्रमुख हिस्सा है। पुरुष प्रधान इस सम्प्रेषण प्रणाली में यह तक कहा जाता है कि जिसे यह सिद्धान्त पसन्द नहीं, वह इस्लाम छोड़ दे। यह सिद्धान्त अत्यन्त ही संकीर्ण है।

5. कन्जरवेटिव सम्प्रेषण सिद्धान्त

जब बिना किसी कारण से अचानक धर्म व जाति के नाम पर पाबन्दियाँ लगाकर सम्प्रेषण को एक तरफ कर दिया जाता है तो जनता दम घुटने जैसा महसूस करती है। इस प्रकार के सम्षण सिद्धान्त को कन्जरवेटिव सम्प्रेषण सिद्धान्त कहते हैं।

 सम्प्रेषण में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं जब सम्प्रेषण को रोकना पड़ता है। कुछ पाबन्दियाँ समाज के रहन-सहन, उठने-बैठने, लिखने-पढ़ने आदि पर लगाई जाती हैं। शासन की सतत् निगरानी रखो जाती है। इस स्थिति में स्वच्छ व सरल सम्प्रेषण की कल्पना व्यर्थ होती है।

 टी. बी. व रेडियो पर महिलाओं की हिस्सेदारी पर पाबन्दी लगा दो जाती है। जब यह सिद्धान्त असफल हो जाता है तो उदारवादी सिद्धान्त को लागू कर दिया जाता है। बर्मा (म्यांमार, थाईलैण्ड, नेपाल व भूटान तथा चीन व पाकिस्तान कन्जरवेटिव सिद्धान्त की बुनियाद है।

6. लिबरल सम्प्रेषण सिद्धान्त 

यह सम्प्रेषण का सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त है। सम्प्रेषण की समस्त सर्वश्रेष्ठ बातों को इसमें सम्मिलित किया गया। है। इसमें सम्प्रेषण के लिए दैनिक आवश्यकता व कठिनाइयों को सुलझाने, समझने, सामाजिक शिक्षा जैसे आदि विषयों को चयनित किया गया है। इस सिद्धान्त के अन्तर्गत समाज/सरकार के विरुद्ध सोच-समझ सम्बन्धी समाचारों, विचारों को उदारतापूर्ण सम्प्रेषित किया जाता है इसलिए इसे उदारवादी सिद्धान्त कहा जाता है।

7. वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त 

यह विश्व का अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त है। यह "जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरियसी" के सिद्धान्त पर लागू है। यह भावना इस सिद्धान्त का सशक्त पहलू है। यह सिद्धान्त किसी समय विशेष से नहीं बँधा है। वैदिक सम्प्रेषण में हजारों वर्ष पूर्व तक केवल मौखिक स्वर सम्प्रेषित होता रहा था। अध्यापक व शिष्य परम्परा में अन्तः व्यक्तिगत सम्प्रेषण (Inter-personal Communication) के उदाहरण मिलते हैं। प्रभु और राजा में कोई अन्तर नहीं होता था। ज्येष्ठ सर्वश्रेष्ठ होता था यह सिद्धान्त भारतीय सम्प्रेषण प्रक्रिया का आधार है, परन्तु ब्रिटिश शासन ने भारतीय पद्धति को प्रभावित किया और आज ब्रिटिश सिद्धान्त की झलक भारतीय सम्प्रेषण प्रक्रिया में देखने को मिलती है।

वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त को प्रमुख बातें निम्न हैं-

(i) वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त विश्व का सबसे प्राचीन सिद्धान्त है।

(ii) वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त गुरु-शिष्य शिक्षा पद्धति पर आधारित है।

 (iii) वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं को ही आधार मानता है।

(iv) वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त भारतीय सम्प्रेषण प्रक्रिया का आधार है।

सूचना के सिद्धान्त 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः वह एक चिन्तनशील प्राणी भी है। इस गुण के कारण उसके मस्तिष्क में समय-समय पर विचार आते रहते हैं। इन विचारों को हम सूचना कहते हैं। इस शब्द का प्रयोग जानकारी, समझ, बुद्धि, ज्ञान व तथ्य के लिए किया जाता है। Information शब्द Formation अर्थात् Forme से बना है। ये दोनों शब्द किसी वस्तु को एक आकार व स्वरूप प्रदान करने के अभिप्राय की अभिव्यक्ति करते हैं।

 जे. बेकर के अनुसार, "किसी विषय से सम्बन्धित तथ्यों को सूचना कहते हैं।' एन. नेल्किन के अनुसार, "सूचना उसे कहते हैं जिसमें आकार को परिवर्तित करने की क्षमता होती है।

ई. हाफ्टमेन के अनुसार- "वक्तव्यों या तथ्यों अथवा संख्याओं को सम्पूर्णता को सूचना कहते हैं जो बौद्धिक, तर्कपूर्ण, विचारधारा अथवा किसी अन्य मानसिक कार्य-पद्धति के अनुसार धारणात्मक ढंग से आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होती है। उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सूचना हमारे लक्ष्य, ज्ञान के उस अंश, विवरण, तथ्य व अभिप्राय पर आधारित उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होती है।

सूचना के लक्षण 

सूचना के अन्तर्गत निम्न बातों का समावेश होता है-

 1. सूचना सारपूर्ण व उद्देश्यपूर्ण होती है।

2. सूचना गतिशील होती है।

 3. सूचना मूल्यांकन योग्य होती है।

4. सूचना व्याख्यात्मक होती है ।

5. सूचना एक समुचित संरचना में होती है। 

6. सूचना का विश्लेषण सम्भव है।

7. सूचना का सार निष्कर्ष व संक्षिप्तीकरण सम्भव है।

8. सूचना का अनुवाद सम्भव है।

 9. सूचना की प्रतिनियुक्ति सम्भव है।

10. सूचना का परिवर्तन अन्य माध्यमों में सम्भव है।

 11. सूचना स्मरण योग्य हस्तान्तरण योग्य, प्रसारण योग्य व नष्ट होने वाली हो सकती है। 

12. सूचना का गलत प्रयोग सम्भव है।

 सूचना की आवश्यकता 

आज के वैज्ञानिक व्यावसायिक युग में सूचना एक साधन बन चुकी है। प्रत्येक व्यक्ति, संगठन को अपनी आवश्यकतानुरूप समाज की आवश्यकता होती है जिन्हें निम्न बिन्दुओं में दर्शाया गया है- 

1. व्यावसायिक दृष्टिकोण

एक संगठन को अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए सूचना की आवश्यकता होती है। यदि संगठन नित नई परिवर्तनशील सूचनाओं से अनभिज्ञ होता है तो उसका संगठन व विकास रुक जाता है क्योंकि प्रबन्धन को उचित निर्णय लेने में सूचना अनिवार्य भूमिका निभाती है।

 एक वकील, डॉक्टर, इंजीनियर को अपने व्यवसाय में आगे बढ़ने के लिए सूचना की आवश्यकता होती है। एक डॉक्टर आयुर्विज्ञान में हो रहे नवीन आविष्कारों से परिचित होना चाहता है। एक वकील को भी अपने व्यवसाय की उन्नति के लिए व निश्पक्ष न्याय की स्थापना के लिए नवीन प्रकरणों के बारे में नये न्यायाधीशों के निर्णयों से अवगत रहना आवश्यक है। इंजीनियर व तकनीशियनों को भी नित नई तकनीकी समस्याओं के समाधान हेतु सूचना की आवश्यकता होती है।

 2. शिक्षा व अनुसन्धान 

किसी भी देश की उन्नति व विकास अनुसन्धान पर निर्भर होता है जो प्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध सूचना पर आधारित होता है। अनुसन्धानकर्ता व शिक्षाविद एक प्रकार से सूचना के सृजनकर्ता व उपयोगकर्ता दोनों होते हैं।।

3. जनसंख्या में वृद्धि 

आज पूरा विश्व जनसंख्या वृद्धि की समस्या से ग्रसित है। इस समस्या के कारण खाद्य व व निवास आदि पर तीव्र प्रभाव पड़ता है। सीमित साधन बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असफल हो जाते हैं। इसकी पूर्ति के लिए हमें अप्राकृतिक वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है अतः इस हेतु हमें अनुसन्धान करना होता है जिसके लिए उपयुक्त सूचना की आवश्यकता होती है। अतः जनसंख्या वृद्धि ने सूचना की आवश्यकता को जन्म दिया है।

4. जीवन स्तर 

 नित नये अनुसन्धानों ने व्यक्तियों के जीवन स्तर में उन्नति के अवसर प्रदान किये है क्योंकि इनकी सहायता से उत्कृष्ट श्रेणी का उत्पादन किया जाना सम्भव हुआ है।

5. राष्ट्रीय उन्नति 

 सूचना ने प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों के जीवन स्तर मैं वृद्धि की है। अतः सूचना ही एक ऐसा स्रोत है जिसके द्वारा व्यक्तियों की सोच-समझ को परिवर्तित किया जा सकता है। निरन्तर साक्षरता में वृद्धि होना इसका एक उदाहरण है जो किसी राष्ट्र की प्रगति में सहायक है।



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