सम्प्रेषण का क्षेत्र, कार्य, महत्व, भारत में संप्रेषण का महत्व

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
सम्प्रेषण का क्षेत्र, कार्य, महत्व, भारत में संप्रेषण का महत्व

सम्प्रेषण का क्षेत्र अथवा कार्य

सम्प्रेषणका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। यह एक अन्तर्विषयक प्रक्रिया है जो अनेक कारकों का मिश्रण होतो. है। सम्प्रेषण के क्षेत्र अथवा कार्यों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट होता है-

    1. सूचनाओं की साझेदारी 

    सम्प्रेषण का प्रमुख उद्देश्य सूचना को स्रोत से लक्षित व्यक्ति या समूह तक संचारित करना होता है। एक संगठन में कई प्रकार की सूचनाओं का संचारण होता है, जैसे-नीतियों/नियमों/परिवर्तनों/विकास से सम्बन्धित सूचनाएँ। इसके साथ-साथ एक संगठन में कुछ विशिष्ट सूचनाओं यथा विशिष्ट लाभ/ उपाधियाँ/ संघों के साथ साम्य व संगठन में प्रमुख परिवर्तन आदि का तीव्र प्रसारण आवश्यक होता है।

    2. प्रतिपुष्टि

    एक संगठन में उच्चवर्गीय प्रबन्ध के लक्ष्यों / समस्याओं के निराकरण/कर्मचारियों के लक्ष्यों/विभागों के प्रदर्शन के लिए/ सही उपायों व आवश्यक समायोजनों के लिए प्रतिपुष्टि अत्यन्त आवश्यक है। सम्प्रेषण में प्रतिपुष्टि द्वारा व्यक्तियों को चुनौतीपूर्ण व वास्तविक योजनाओं से निर्मित करने के लिए अभिप्रेरित किया जाता है। 

    3. नियन्त्रण का आधार

     एक संगठन में प्रबन्धन सूचना प्रणाली को नियन्त्रण कार्य विधि के नाम से जाना जाता है। सूचना योजना के मौलिक प्रारूप के अनुरूप संचारित की जाती है। सम्प्रेषक इस प्रकार के नियन्त्रण को निश्चित या निर्धारित करने में सहायता करता है।

    4. प्रभाव

     सूचना शक्ति है। सम्प्रेषण का एक अन्य उद्देश्य व्यक्तियों को प्रभावित करना होता है। एक प्रबन्धक संगठन में अनुकूल वातावरण/ मनोवृत्ति / ज्ञानात्मक कार्यशील सम्बन्धों के निर्माण के लिए सम्प्रेषण करता है। ये समस्त बातें प्रभाव से सम्बद्ध होती हैं।

    5. समस्या का समाधान

    अधिकांश मामलों में सम्प्रेषण का उद्देश्य समस्या का समाधान करना होता है। एक संगठन में प्रबन्ध व संघों के बीच सम्प्रेषण का उद्देश्य समस्या के समाधान की प्राप्ति से होता है।

    6. निर्णयन क्षमता का विकास 

     किसी संगठन में निर्णयन के लिए विभिन्न प्रकार के सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है, जैसे, सूचनाओं का विनिमय (आदान-प्रदान) / विचारों की उपलब्धता आदि। अतः निर्णयन प्रक्रिया में सम्प्रेषण का महत्वपूर्ण स्थान है। 

    7. सकारात्मक परिवर्तन में सहायक 

     किसी संगठन में किये गये परिवर्तनों की प्रभावशीलता सम्प्रेषण की स्पष्टता व सहजता पर निर्भर होती है। एक संगठन में प्रबन्ध व कार्मिकों के बीच सम्प्रेषक के द्वारा ही उनकी कठिनाइयों को ज्ञात कर योजनाओं में वांछित परिवर्तन के द्वारा अनुकूल कदम उठाये जाते हैं।

    8. समूह रचना

     सम्प्रेषण सम्बन्धों की रचना में सहायक होता है। यदि समूह में सम्प्रेषण सम्बन्ध टूट जाता है तो समूह भी असंगठित हो जाते हैं। अतः एक समूह के अनुकूल क्रियाशीलता के लिए सम्प्रेषण अत्यन्त उपयोगी है।

    9. शेष विश्व से सम्पर्क

    सम्प्रेषण संगठन का शेष विश्व से सम्पर्क स्थापित करने में सहायक है। एक संगठन अपनी प्रभावशीलता में वृद्धि के लिए अपने आस-पास के वातावरण का प्रयोग कर सकता है।

    10. मनोरंजन

    मनुष्य दैनिक जीवन के क्रियाकलापों के पश्चात् मनोरंजन चाहता है। अतः मनोरंजन या मन बहलाव की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके द्वारा मनुष्य जीवन में बहुत-सी शिक्षाएँ भी ग्रहण कर लेता है।

    11. निर्देशन 

    यह सम्प्रेषण का एक महत्वपूर्ण कार्य है, अतः सम्प्रेषण समाज के सदस्यों को निर्देशित / शिक्षित/समाजीकृत करता है। ये सभी कार्य मनुष्य के प्रारम्भिक काल से प्रारम्भ होते हैं। अतः स्पष्ट है कि सम्प्रेषण ज्ञान/निपुणता/आकर्षण शक्ति का विकास करता है, साथ ही साथ यह व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय भागीदारी के लिए निर्देशन व अवसर प्रदान करता है।

    12. अनुनेय क्षमता का विकास 

    सम्प्रेषण व्यक्ति में अन्य व्यक्तियों को समझाने-बुझाने की क्षमता विकसित करता है, क्योंकि अनुभव निर्वचन में सहायक होता है जिससे नियन्त्रण व शासन सम्भव होता है।

    13. वाद-विवाद / परिचर्चा में सहायक

     सम्प्रेषण के माध्यम से ही वाद-विवाद / परिचर्चा के रूप में व्यक्तियों/श्रोताओं की रुचिकर बातों को स्पष्ट करना सम्भव होता है। अतः वाद-विवाद/परिचर्चा सम्प्रेषण के कारण ही सम्भव है।

    14. सांस्कृतिक प्रोत्साहन

     सम्प्रेषण संस्कृति को सोखने व प्रोत्साहित करने का अवसर प्रदान करता है। आज के व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के युग में अन्य देशों/प्रदेशों की संस्कृति को सीखकर ही व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ाना सम्भव है।

    सम्प्रेषण का महत्व

    सम्प्रेषण किसी भी व्यवसाय की जीवन धारा है। कोई भी व्यवसाय सम्प्रेषण के बगैर सम्भव नहीं है। कीथ डेविस के शब्दों में, "संगठनों का सम्प्रेषण के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। अतः यह कहना उचित है कि एक व्यवसाय के लिए सम्प्रेषण का उतना ही महत्व है जितना कि व्यक्ति के लिए रक्त संचार का है। व्यवसाय में सम्प्रेषण निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है।

    1. व्यवसाय के सुचारु व कुशल संचालन हेतु आवश्यक

    सम्प्रेषण किसी संगठन की सुचारु व कुशल रूप से क्रियाशीलता हेतु आवश्यक है। यह एक व्यवसाय को प्रभावी व गतिशील बनाता है, क्योंकि उपक्रम को विभिन्न विभागों में समन्वय व उत्पादन के सतत् विक्रय को प्रत्येक स्तर पर प्रभावी सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है, अतः बिना सम्प्रेषण के व्यवसाय सदैव असफल होगा।

    2. प्रभावपूर्ण नेतृत्व हेतु आवश्यक

     सम्प्रेषण कुशलता किसी नेतृत्व शक्ति की पूर्व अनिवार्य शर्त है। यह प्रभाव उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया है। एक सम्प्रेषण में दक्ष प्रबन्धक अपने कर्मचारियों का असली नेता होता है।

     एक अच्छे सम्प्रेषण निकाय में व्यक्ति एक-दूसरे के अत्यन्त निकट होता है और उनकी आपसी गलतफहमियाँ दूर हो जाती है। सम्प्रेषण जितना अधिक प्रभावपूर्ण व शीघ्र होगा नेता उतना ही प्रभावशाली व अच्छे तरीके से अपने निर्णयों, भावनाओं व विचारों तथा सुझावों को अपने कर्मचारियों तक पहुँचाने में सफल होता है।

    3. समन्वय क्षमता का विकास 

     सम्प्रेषण व्यक्तियों में सहयोग व समन्वय क्षमता का विकास करता है, आपस में सूचनाओं व विचारों का आदान-प्रदान करता है व उनकी एकता व क्रियाशीलता को बढ़ाता है, क्योंकि एक उपक्रम में विभिन्न विभाग होते हैं जो अपनी-अपनी विशिष्ट क्रियाएँ अपने विभाग में संचालित करते हैं। प्रत्येक विभाग अपने सभी विभागीय कार्य के लिए स्वतन्त्र होता है व उच्च प्रबन्ध के निर्देश में समस्त विभागों के मध्य समन्वय स्थापित करता है। सम्प्रेषण के बिना एकता व क्रियाशीलता का होना असम्भव है।

    4. प्रबन्धन क्षमता बढ़ाने में सहायक

    सम्प्रेषण त्वरित व व्यक्तिगत निष्पादन प्रबन्धक के लिए अनिवार्य है, क्योंकि सम्प्रेषण के द्वारा ही प्रबन्धन अपने लक्ष्यों, उद्देश्यों व दिशा-निर्देशों, रोजगार व जिम्मेदारियों के निर्वहन की व्यवस्था के साथ अपने कर्मचारियों के व्यवहार का निरीक्षण व मूल्यांकन करता है। आज सम्प्रेषण एक सफल प्रबन्धन का आवश्यक तत्व बन गया है।

    5. योजना में सहायक 

    एक प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण सदैव एक संगठन की योजना व क्रियाशीलता में सहायक होता है। किसी योजना को क्रियाशील करने व योजना के निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों को प्राप्त करने में सम्प्रेषण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    6. जनसम्पर्क में सहायक 

     आज प्रत्येक व्यावसायिक संगठन के लिए यह आवश्यक है कि वह समाज में अपना स्थान बनाये। समय के बदलाव के साथ-साथ जनसम्पर्क के अर्थों में भी बदलाव आया है। निगम, अर्द्धशासी संस्थान या उपक्रम, उद्योग में जनसम्पर्क के महत्व को समझा जा रहा है। आज जनसम्पर्क कार्यकर्ता प्रत्येक विभागों में देखे जा सकते हैं। स्पष्ट है सम्प्रेषण इस हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    7. प्रतियोगी सूचना प्राप्ति में सहायक 

    आधुनिक व्यवसाय प्रकृति से प्रतिस्पद्ध है। प्रतिस्पद्धों की चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक-से-अधिक सूचनाओं की प्राप्ति अनिवार्य है। अतः आवश्यक है कि उपयोगी सूचनाओं को प्राप्त कर न केवल सम्बन्धित व्यक्ति तक पहुँचाया हो जाये, बल्कि प्रतिस्पर्द्धा की चुनौतियों से निपटने के लिए सही कदम उठाया जाये।

    8. व्यवसाय सन्तुष्टि द्वारा उच्च उत्पादकता की प्राप्ति 

     सम्प्रेषण के माध्यम से व्यवसाय सन्तुष्टि की भावना विकसित होती है, जिसका परिणाम संगठन के कर्मियों द्वारा उच्च उत्पादकता के परिणाम के रूप में परिलक्षित होता है, क्योंकि सम्पेषण के माध्यम से ही व्यक्ति अपने व्यवसाय, भूमिका और प्रवणता व सम्भावनाओं के बारे में बता सकते हैं। यदि सम्प्रेषण असफल होता है तो एक संगठन कर्मियों की सन्तुष्टि का स्तर गिरता है जिससे उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है।

    9. भारार्पण व विकेन्द्रीकरण 

     वृहद् व्यापक संगठन में उच्च प्रबन्धक समस्त कार्यों को स्वयं नहीं कर सकते इसलिये उन्हें भारार्पण व विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है तथा प्रभावी सम्प्रेषण की सहायता से ही भारार्पण व विकेन्द्रीकरण सफल हो सकता है।

    10. प्रजातान्त्रिक प्रबन्ध व्यवस्था

     किसी व्यवसाय में कार्यरत प्रत्येक व्यक्ति प्रबन्ध में भागीदारी चाहता है व एक कुशल प्रबन्धक ही अपने अधीनस्थों के लिये इस प्रकार का वातावरण निर्मित करता है जिससे वे अधिकाधिक रूप से प्रबन्धकीय निर्णयों में भागीदार हों। इसमें प्रभावी सम्प्रेषण की अहम भूमिका होती है जिससे कर्मचारी व प्रबन्धक के मध्य निरन्तर सम्पर्क बना रहता है।

    अतः स्पष्ट है कि "सम्प्रेषण की परिवर्तन प्रक्रिया में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि संगठन की कर्मचारी अनुकूल वास्तविक सूचनाओं से परिपूर्ण होते हैं तो उनमें आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न होती है। अतः अनुकूल सम्प्रेषण और कर्मियों का अनुकूल व्यवहार एक संगठन की सफलता का एकमात्र यन्त्र है। अतः उचित व प्रभावी सम्प्रेषण की प्राप्ति संगठन की प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।" 

    सम्प्रेषण का प्रबन्धकों के लिए महत्व

    सम्प्रेषण का एक प्रबन्धक के लिए अधिक महत्व है, यद्यपि एक प्रबन्धक के समस्त प्रबन्धकीय कार्य सम्प्रेषण के द्वारा ही सम्पन्न किये जाते हैं। एक प्रबन्धक की निम्न पाँच मुख्य गतिविधियाँ हैं-

    1. उद्देश्य को प्राप्त करना
    2. संगठित करना 
    3. प्रोत्साहन व सम्प्रेषित करना 
    4. कार्य की माप
    5. व्यक्ति का विकास।

    उपर्युक्त गतिविधियाँ प्रत्येक प्रबन्धक को सम्पन्न करनी होती हैं। एक प्रबन्धक के उत्तरदायित्वों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने हेतु सम्प्रेषण एक मुख्य यन्त्र की भूमिका निभाता है। अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए वह जो भी बोलता है या लिखता है अर्थात् वह जो भी सूचना या सन्देश देता है, वह केवल सम्प्रेषण क्रिया पर ही निर्भर है। उनकी सफलता का मुख्य पहलू यह है कि वह कितने प्रभावी ढंग से सम्प्रेषण करता है। एक प्रबन्धक के सुनने, लिखने, पढ़ने, सोचने की दक्षता एक प्रभावी प्रबन्धक के रूप में स्थापित करती है।

    चूँकि सम्प्रेषण में किसी व्यक्ति, समूहों के विचारों भावनाओं को एक व्यक्ति या समूहों में पहुँचाने की क्षमता होती है। आज व्यावसायिक पर्यावरण बदल चुका है। प्रबन्धन की अवधारणा भी बदलती जा रही है। इसमें नित नये आयाम जुड़ते जा रहे हैं।

     अतः प्रबन्धक के लिए यह अनिवार्य है कि वह समय पर यदि उचित सूचनाओं को संग्रहीत (जैसे, नये उत्पादकों को बाजार में आने से पूर्व वर्तमान बाजार व आवश्यक पूँजी की जानकारी) करे तो वह अपने उद्देश्यों में सफल हो जाता है। एक प्रबन्धक के लिए आवश्यक है कि वह नियन्त्रण के द्वारा ही अपने व्यवसाय को सुचारु रूप से संचालित करे, उत्पाद लक्ष्यों को प्राथमिकता के आधार पर निचले व्यावसायिक खण्डों में सम्प्रेषित किया जाये और उनके परिणामों को प्रबन्धन को पहुँचाया जाये।

     एक अच्छे प्रबन्धक का यह गुण होता है कि वह सम्प्रेषण के माध्यम को उचित और अधिकाधिक जनसम्पर्क बनाये क्योंकि उचित जनसम्पर्क एक उपक्रम के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अतः एक व्यवसाय या प्रबन्धकों के लिए सम्प्रेषण के महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

    1. व्यवसाय का विस्तार,
    2. मानवीय सम्बन्धों का विकास,
    3. संगठनात्मक छवि में सुधार,
    4. प्रबन्धन क्षमता में वृद्धि,
    5. समन्वय की स्थापना,
    6. प्रभावी नेतृत्व की स्थापना, 
    7. निर्णयन में उपयोगी,
    8. प्रभावपूर्ण नियोजन का आधार,
    9. प्रभावशाली नियन्त्रण में सहायक,
    10. कर्मचारियों की कार्य कुशलता में वृद्धि,
    11. कम लागत पर अधिकतम उत्पादन,
    12. औद्योगिक शान्ति को बढ़ावा।

    उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सम्प्रेषण एक प्रबन्धक के लिए बहुत उपयोगी है फलस्वरूप एक प्रबन्धक की सफलता उसके प्रभावी सम्प्रेषण पर निर्भर होती है।

    भारत में सम्प्रेषण का महत्व

    भारत एक लोकतान्त्रिक देश है और लोकतन्त्र में सम्प्रेषण को भूमिका के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि सम्प्रेषण एक देश में स्वस्थ वातावरण, साम्प्रदायिक सद्भाव, खुशहाली व संगठन इत्यादि को उज्ज्वल व गतिशील बनाने के साथ-साथ देश के लोगों व सरकार के बीच सन्तुलन स्थापित कर सम्बन्धों में मधुरता लाता है।

     एक लोकतान्त्रिक देश में सामाजिक संगठन व सम्बन्ध दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, अत: संगठन, समाज एवं व्यक्तियों का आपस में तालमेल और मार्गदर्शन में सम्प्रेषण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अर्थात् सम्प्रेषण सम्बन्धों में मधुरता लाने में, मार्गदर्शन में एवं देश की मुख्य धारा से लोगों को जोड़ने में उपयोग किया जाता है क्योंकि सम्प्रेषण तन्त्र के माध्यम से ही देश के सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले या शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सूचना पहुँचाने का कार्य किया जाता है।

     यद्यपि सम्प्रेषण केवल अच्छे कार्यों को करने के लिए ही किया जाता है, अतः यह लोगों को उचित कार्य करने की प्रेरणा, अपेक्षित दिशा में जनमत का निर्माण व चेतना जागृति, लोगों में समाज और कार्य के प्रति रुचि उत्पन्न करने, ताकि वे अपने अपेक्षित लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकें, के लिए किया जाता है।

     इस प्रकार सम्प्रेषण से देश के शासन-प्रशासन और प्रबन्धन को सक्रिय सहयोग और लाभ की प्राप्ति के साथ-साथ राष्ट्रीय हित व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा व छवि का निर्माण होता है अर्थात् सम्प्रेषण में जनकल्याण की भावना निहित होती है।

    आज देश में तीव्र औद्योगीकरण, नई-नई कृषि वित्त संस्थाएँ व अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के आगमन से प्रतियोगी वातावरण निर्मित हो गया है। इस स्थिति में अपने उत्पाद का प्रचार-प्रसार (विज्ञापन) करना व बाजार में जगह बनाना, साथ ही साथ उद्योग प्रबन्धन व कर्मियों के बीच मधुर सम्बन्धों की स्थापना करना, जनसाधारण में अपनी छवि का निर्माण आवश्यक हो गया है।

     एक सामान्य मान्यता है कि जो संस्थान/उद्योग/ उत्पाद/कम्पनी आदि मीडिया (Media) के सम्पर्क में नहीं रहता तो उसके अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लग जाता है। आज औद्योगीकरण की बढ़ती प्रक्रिया के साथ-साथ हमारा सामाजिक वातावरण भी दूषित हो गया है। हड़ताल, तालाबन्दी, आमरण अनशन आदि द्वारा श्रमिक अपनी माँगों व अधिकारों के लिए प्रबन्ध पर सदैव दबाव बनाये रखते हैं।

     इसके साथ-साथ आपसी कलह, फूट, ट्रेड यूनियन्स के आपसी झगड़े विवाद, औद्योगिक क्षेत्रों के आस-पास गन्दी बस्तियों की बसावट, दूषित जल व निकासी की समस्याएँ पैदा हो गयी हैं।

    साथ ही साथ इन क्षेत्रों में नित नित् बढ़ते प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य का स्तर देश के सम्मुख एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर आ रहा है। इन परिस्थितियों में सम्प्रेषक के लिए सम्प्रेषण का कार्य अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। अतः सम्प्रेषण इन क्षेत्रों में एक स्वस्थ व अनुकूल वातावरण का निर्माण कर सकने में सक्षम है।

    आज सम्प्रेषण को कई नये आयाम प्राप्त हुए हैं, जैसे-(1) जनसम्पर्क के रूप में, (2) भविष्य की नई चुनौतियों के रूप में।

    आज निगम/अर्द्धशासी संस्थान/संगठन/उपक्रम/उद्योग जनसम्पर्क के महत्व को समझ रहे हैं। अतः सम्प्रेषण माध्यमों के बढ़ते विकास के कारण इन संगठनों में जनसम्पर्क कार्यकर्ता देखे जा सकते हैं। प्रबन्ध निर्देशों तथा प्रबन्ध ढाँचे में सम्प्रेषण को आज उचित स्थान दिया जाता है। अतः भारत में सम्प्रेषण का भविष्य उज्ज्वल है।

    आधुनिक भारत के व्यापार में ऐसे कई महत्वपूर्ण पहलू हैं जिनका ध्यान सम्प्रेषक को रखना होगा। अतः सम्प्रेषक को वातावरण में उभरने वाले उन समस्त आन्तरिक / बाह्य पहलुओं पर ध्यान देना होगा की व्यवसाय पर अस्तित्व पर, कुशलता पर लाभ प्राप्ति पर साख को प्रभावित करते हैं। प्रबन्धकीय दृष्टि से यह एक कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। 

    आधुनिक विश्व में कम्पनियों की अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति, दो कम्पनियों का मिलाप, एक कम्पनी का दूसरी कम्पनी पर कब्जा इत्यादि घटनाओं के बढ़ने से सम्प्रेषण सम्बन्धी नयी आवश्यकताओं की उत्पत्ति हुई है।

     भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा व अनियन्त्रण की प्रवृत्ति से उपभोक्तावाद बढ़ रहा है, अतः उपभोक्ता सम्पर्क, उपभोक्ता शिक्षा व उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं, अनुकूल प्रबन्धकीय शिक्षा, उपभोक्ताओं की अपेक्षाएँ इत्यादि मुद्दे महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।

     आज सम्प्रेषण माध्यमों की सुविधाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। आज वित्त व व्यावसायिक सम्प्रेषण माध्यमों की सहायता से अपने कार्य को अत्यन्त सरलतापूर्वक किया जा रहा है। टी. वी. व अन्य दृश्यिक सामग्री सम्बन्धी सम्प्रेषण माध्यमों की उपेक्षा नहीं की जा सकती क्योंकि इन माध्यमों की सहायता से अत्यन्त प्रभावकारी सम्प्रेषण सम्भव होता है।

     आज आधुनिक विज्ञान ने सम्प्रेषण के कई माध्यम उपलब्ध कराये हैं, जैसे-डेस्कटॉप पब्लिशिंग, फैक्स, कम्प्यूटर, उपग्रह संचार, इण्टरनेट, ई-मेल, वीडियो, वीडियो कॉन्फ्रेसिंग, सेल फोन्स आदि । इनके माध्यम से अधिकतम सम्भावित तीव्र सम्प्रेषण सम्भव है। यद्यपि सूचना के क्षेत्र में कई जटिलताएँ हैं फिर भी भारत में सम्प्रेषण का भविष्य उज्जवल है।

    WhatsApp Group Join Now
    Telegram Group Join Now

    Post a Comment

    Previous Post Next Post