परामर्श का अर्थ और परिभाषायें
प्राचीन काल से ही परामर्श मानव समाज में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान रहा है। समय-समय पर अनेक विद्वानों ने इसकी परिभाषा करने का यत्न किया है। वेबस्टर (Webster) ने अपने शब्दकोश में परामर्श का अर्थ पूछताछ, पारस्परिक तर्क-वितर्क या विचारों का पारस्परिक आदान-प्रदान' बताया है। वेबस्टर द्वारा दिये गये उपर्युक्त अर्थ से परामर्श का स्वरूप स्पष्ट नहीं हो पाता।
रॉबिन्सन ने परामर्श के स्वरूप को स्पष्ट करते हुये परामर्श की व्याख्या इस प्रकार की है- "परामर्श -शब्द दो व्यक्तियों के सम्पर्क की उन सभी स्थितियों का समावेश करता है जिनमें एक व्यक्ति को उसके स्वयं के एवं पर्यावरण के बीच अपेक्षाकृत प्रभावी समायोजन प्राप्त करने में सहायता की जाती है।"
कार्ल रोजर्स (Carl Rogers) के अनुसार - "परामर्श एक निश्चित रूप से निर्मित स्वीकृत सम्बन्ध है जो उपयोध्य को अपने को उस सीमा तक समझने में सहायता करता है जिसमे वह अपने ज्ञान के प्रकाश में विद्यात्मक कार्य में अग्रसर हो सके |"
हम्फ्रीज तथा ट्रैक्सलर ने परामर्श की परिभाषा देते हुए कहा है- "परामर्श विद्यालय तथा अन्य संस्थाओं के कर्मचारियों की सेवाओं का व्यक्तियों की समस्याओं के समाधान के लिये किया जाने वाला उपयोग है?"
हम्फ्रीज तथा ट्रेक्सलर की उपर्युक्त परिभाषा का आशय कर्मचारियों के द्वारा उपबोध्य व्यक्तियों (Counsellies) से सम्पर्क स्थापित करने और उनकी समस्याओं के समाधान में सहायता किये जाने से है।
बरनार्ड तथा फुलमर ने परामर्श के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है- परामर्श को उस अन्तर- वैयक्तिक सम्बन्ध के रूप में देखा जा सकता है जिसमें वैयक्तिक तथा सामूहिक परामर्श के साथ-साथ वह कार्य भी सम्मिलित है जो अध्यापको एवं अभिभावकों से सम्बन्धित है और जो विशेष रूप से मानव सम्बन्धों के भावात्मक पक्षों को स्पष्ट करता है।
इस प्रकार बरनार्ड तथा फुलमर परामर्श की व्याख्या मानव सम्बन्धों के सन्दर्भ में करते हैं। इनके अनुसार, "बुनियादी तौर पर परामर्श के अन्तर्गत व्यक्ति को समझना और उसके साथ कार्य करना होता है जिससे कि उसकी अनन्य आवश्यकताओं, अभिप्रेरणाओं और क्षमताओं की जानकारी हो और फिर उसे इनके महत्व को जानने में सहायता दी जाये |"
विली और एण्डू के अनुसार- परामर्श पारस्परिक रूप से सीखने की प्रक्रिया है।
रूथ स्ट्रंग ने लिखा है कि "परामर्श प्रक्रिया एक सम्मिलित प्रयास है। इसमें छात्र का उत्तरदायित्व आत्म-बोध करने, आगे बढ़ने की दिशा निश्चित करने तथा समस्या उत्पन्न होते ही उनके समाधान हेतु आत्मविश्वास पैदा करने का प्रयास करना है। इस प्रक्रिया में परामर्शदाता की भूमिका छात्र की आवश्यकतानुसार सहायता करना है |"
परामर्श के तत्व
परामर्श के तत्वों के बारे में अनेक विद्वानों ने चर्चा की है। यहाँ कुछ विद्वानों द्वारा बनाये परामर्श के तत्व प्रस्तुत है। आर्बकल (Arbuckle) ने परामर्श के तीन तत्व बताये है-
1. परामर्श प्रक्रिया में दो व्यक्ति संलग्न रहते हैं।
2. परामर्श प्रक्रिया का उद्देश्य छात्र को अपनी समस्यायें स्वतन्त्र रूप से हल करने योग्य बनाना है।
3. परामर्श एक प्रशिक्षित व्यक्ति का व्यावसायिक कार्य है।
विलियम कोटल (William Cottle) ने परामर्श में तीन के स्थान पर पाँच तत्व बताये है। ये पाँच तत्व निम्नांकित है-
1 दो व्यक्तियों में पारस्परिक सम्बन्ध आवश्यक है।
2 परामर्शदाता तथा परामर्श प्रार्थी के मध्य विचार-विमर्श के अनेक साधन हो सकते है।
3. प्रत्येक परामर्शदाता अपना काम पूर्ण ज्ञान से करता है।
4 परामर्शप्रार्थी की भावनाओं के अनुसार परामर्श का स्वरूप परिवर्तित होता है।
5. प्रत्येक परामर्श साक्षात्कार-निर्मित होता है।
एक विद्वान ने परामर्श के तत्वों का वर्णन फ्रायडियन सम्बन्धी (Freudian concepts) के आधार पर किया है। इस लेखक के मतानुसार परामर्श में निम्न सात तत्व होते है -
1 संघर्षमय अवस्था का आभास
2. अचेतन की स्वीकृति
3. दमन की भूमिका
4. परलम्बता एवं हस्तान्तरण
5. अन्तर्दृष्टि की उपलब्धि
6. उचित संवेगात्मक अनुभवों पर बल
7. स्वीकारात्मक अभिरुचि
उपर्युक्त परिभाषाओं तथा तत्वों के विश्लेषण के आधार पर परामर्श के बारे में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-
1. परामर्श परामर्शदाता और उपबोध्य के मध्य एक सम्बन्ध है।
2. परामर्श एक प्रक्रिया है उत्पाद नहीं है।
3. परामर्श प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु छात्र की आवश्यकता तथा समस्या होती है।
4. परामर्श व्यक्ति को स्वयं निर्णय लेने के योग्य बनाता है।
5. परामर्श व्यक्ति को स्वयं अपनी समस्या हल करने के योग्य बनाता है।
6. परामर्श विकास चयन में व्यक्ति की सहायता करता है।
7. परामर्श व्यक्तिगत होता है। परामर्श देने का कार्य समूह में सम्भव नहीं है।
परामर्श का स्वरूप
परामर्श के स्वरूप निम्नांकित बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. परामर्श परामर्शदाता और उपबोध्य के मध्य सम्बन्ध होता है
परामर्श वैयक्तिक भिन्नता के सिद्धान्त पर आधारित है। यह प्रत्येक व्यक्ति को स्व-निर्देशित बनाने का प्रयास करता है और उपबोध्य की व्यक्तिगत समस्याओं में अधिक रुचि रखता है। उपबोध्य के द्वारा परामर्शदाता को किस रूप में स्वीकार किया जाता है. यह उपबोध्य के अधिगम से प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है।
2. परामर्श का संचालन सांवेगिक स्तर पर होता है
निर्देशन व्यक्ति को स्वयं निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। इस प्रकार निर्देशन व्यक्ति के बौद्धिक स्तर पर सीमित होता है, जबकि परामर्श में निर्णय लेने का अधिगम संवेगात्मक स्तर पर संचालित होता है।
3. परामर्श सहायता प्रदान करने वाला सम्बन्ध है
परामर्श के स्वरूप का एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु यह है कि यह सहायता प्रदत्त सम्बन्ध को प्रकट करता है। व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के समय अनेक बार द्विविधा वाली स्थिति में पहुँच जाता है। ऐसे समय में सहायता प्रदत्त सम्बन्ध की स्थितियों में मनोवैज्ञानिक समस्याओं के समाधान में सहायता करता है। इस प्रकार का सम्बन्ध प्रायः माँ और बालक छात्र और शिक्षक पति और पत्नी, उपबोधक और उपवोध्य में पाये जाते हैं | सहायता देना या लेने सम्बन्धी सम्बन्ध निरन्तर आदि काल से चले आ रहे है, वही परामर्श का एक महत्त्वपूर्ण तत्व बन गया है। अब यही सम्बन्ध व्यावसायिक स्वरूप धारण करके विशिष्ट कार्य बन गया है।
4. आत्म-स्वायत्तता के स्तर तक पहुँचने में परम सहायक
परामर्श का लक्ष्य उपयोध्यक को स्वयं को समझने में सहायता करना है। इस उद्देश्य के लिये उपयोध्य के व्यवहार और अभिवृत्ति में परिवर्तन करना आवश्यक है। परामर्श व्यवहार परिवर्तन के समय उपयोध्य की भावनाओं पर ध्यान देता है। यह स्वज्ञान, त्त्व निर्देशन और स्वप्रेरणा द्वारा उपबोध्य को आत्म-स्वायत्तता के स्तर पर पहुँचने में सहायता करता है।
5. परामर्श मनोचिकित्सा नहीं है
कुछ विद्वानों के अनुसार मनोचिकित्सा ही व्यावसायिक परामर्श है। ऐसा चिन्तन गलत है क्योंकि मनोचिकित्सा में मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों का उपचार होता है, जबकि परामर्श में सामान्य व्यक्तियों की निर्णय ने में सहायता की जाती है।
परामर्श की आवश्यकता
परामर्श में मूल आवश्यकता आमने-सामने बैठकर समस्याओं को समझने और हल करने की है। इसमें परामर्श प्राप्त करने वाला तथा परामर्श देने वाला दोनों सम्मिलित होते हैं। परामर्श की परिभाषा को और अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिये उसे तीन स्तरों में व्यक्त कर सकते है-
1. अनौपचारिक परामर्श
इसमें किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन यदि परामर्शदाता को प्रशिक्षण दिया जाये तो इस प्रकार के परामर्श को अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।
2. सामान्य परामर्श
व्यावसायिक व्यक्तियों, जैसे डॉक्टरों, अध्यापक और वकीलों के काम का भाग बनाकर प्राप्त किया जा सकता है।
3. व्यावसायिक परामर्श
यह परामर्श पूर्ण रूप से प्रशिक्षित व्यावसायिक व्यक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है। प्रशिक्षित व्यावसायिक परामर्शदाता पूर्ण रूप से व्यावसायिक नीतिशास्त्र को मानने वाला हो तथा उसमें क्षमता हो कि यह दूसरे व्यक्तियों के लिये महत्वपूर्ण निर्णय ले सके।
तात्पर्य यह है कि परामर्शदाता तब तक उपयुक्त परामर्श नहीं दे सकता जब तक कि वह कांउसिली को अच्छी तरह नहीं जानता हो।
अतः स्पष्ट है कि परामर्श का मूल तत्व दो व्यक्तियों के बीच ऐसा सम्पर्क है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को स्वयं को समझने में सहायता देता है परामर्श के दर्शन को समझने में पूर्व हमें दो बातों को ध्यान में रखना चाहिये-
मानवीय सम्बन्ध एवं सहायता
परामर्श में (1) परामर्शदाता (Counsellor) एवं (ii) उपबोध्य (Counsellee) आमने-सामने है तथा परामर्शदाता उपयोध्य की उसकी समस्याओं का समाधान खोजने में सहायता देता है। परामर्श एक ऐसी सेवा है जिसका उद्देश्य मित्र-भित्र आयु के लोगों की समस्याओं के समाधान में सहायता देना है। इस प्रकार एक समस्याग्रस्त व्यक्ति परामर्शदाता के सामने बैठकर अपनी समस्याओं को उसकी सहायता से स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है। परामर्श की आवश्यकता निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है-
1. छात्रों की योग्यताओं और क्षमताओं का ज्ञान उनको कराने और उनका उचित दिशा में विकास करने के लिये परामर्श की आवश्यकता पड़ती है।
2. व्यक्ति के शिक्षा संस्थानों, व्यावसायिक स्थलों में सन्तोषजनक समायोजन में मार्गदर्शन करने के लिये परामर्श की आवश्यकता होती है।
3. व्यक्ति को विद्यालय जीवन से लेकर ग्रहस्थ जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना होता है। इन समस्याओं के कारणों को समझ कर उनके समाधान के लिये परामर्श की आवश्यकता होती है।
4. विद्यालय में पाठ्यक्रम तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं के चयन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं के चयन में परामर्श सहायक होता है।
5. अग्रिम शिक्षा का निर्णय और प्रवेश के लिये उपयुक्त विद्यालय के चयन में परामर्श की भूमिका महत्वपूर्ण है।
6. व्यवसायों के चयन तथा उनमें प्रगति करने में भी परामर्श सहायता आवश्यक है।
7. छात्र को अधिक परिपक्व और अधिक क्रियाशील बनाने में सहायता करना।
मिसबैगडन ने उन परिस्थितियों का उल्लेख किया है. जिनमें परामर्श की आवश्यकता होती है-
1. जब व्यक्ति कठिनाई अनुभव करता हो और उनके निवारण के लिये विश्वसनीय एवं गोपनीय सूचनाओं के विश्लेषण की आवश्यकता हो।
2. कभी-कभी छात्र अपनी समस्याओं के प्रति सचेत नहीं होते हैं तथा समस्या समाधान के उपायों का ज्ञान भी नहीं होता है। ऐसे में समस्या के प्रति उनको सचेत करने एवं उसका समाधान की परिस्थिति में परम आवश्यक है।
3. परामर्शदाता के पास समस्या समाधान की सुविधायें हो तथा परामर्श के इच्छुक व्यक्तियों की उनकी आवश्यकता हो।
4. यदि छात्र किसी समस्या से पीड़ित हो किन्तु वह अपनी समस्या को समझने तथा दूसरों को समझाने में असमर्थ हो तो ऐसी परिस्थिति में परामर्श की आवश्यकता होती है।
5. कुसमायोजन की स्थिति में भी परामर्श आवश्यक है।
उपर्युक्त परिस्थितियों से स्पष्ट है कि जीवन समस्याओं का भण्डार है और उनके निदान तथा समाधान के लिये परामर्श आवश्यक है।
परामर्श का महत्व
1. छात्रों से सम्बन्धित उन सूचनाओं तथा तथ्यों का संग्रह करना जो उनकी समस्याओं के समाधान में सहायक हो सकती है।
2. व्यक्ति को उसकी सफलता के महत्व से अवगत कराना।
3. छात्र को अपनी समस्या के समाधान हेतु योजना बनाने में सहायता करना।
4 छात्र तथा उसके शिक्षको के मध्य पारस्परिक समझ की भावना का विकास करना।
5. छात्रो को शैक्षिक प्रगति के लिये प्रयास करने की प्रेरणा देना।
6. छात्रों को शैक्षिक एवं व्यावसायिक चयन की योजना बनाने में सहायता करना।
7 छात्रों में सही दृष्टिकोण का विकास करना।
8. छात्रों को स्वयं की योग्यताओं, रुचियों, अभिवृत्तियों आदि को समझने और उनके उचित विकास में सहायता करना।
परामर्श के लक्ष्य
परामर्श के लक्ष्यों को सरल रूप में तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है अर्थात् परामर्शदाता के लक्ष्य परामर्शी के लक्ष्य या तात्कालिक लक्ष्य, मध्यवर्ती या चिकित्सा के दीर्घकालीन लक्ष्य कोई परामर्श के लक्ष्यों को किस प्रकार वर्गीकृत करता है, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता क्योंकि यह भी अन्य सभी सार्थक क्रियाओं की भांति लक्ष्य उन्मुख होता है, जिसका एक उद्देश्य होता है या जो एक उद्देश्य प्राप्त करने की चेष्टा करता है। परामर्श के लक्ष्यों को निम्नांकित रूप में वर्णित किया जा सकता है-
1. विकासात्मक लक्ष्य (Developmental Goals) विकासात्मक लक्ष्य वे है जिनमें परामर्शी (client) को प्रत्याशित मानवीय संवृद्धि (growth) और विकास को प्राप्त करने में सहायता प्रदान की जाती है (जैसे, सामाजिक, व्यक्तिगत, संवेगात्मक संज्ञानात्मक, दैहिक आदि)।
2. निरोधक लक्ष्य (Preventive Goals) निरोधक लक्ष्य वह है जिसमें परामर्शदाता. परामर्शी को अवांछित परिणामों को उपेक्षित करने में सहायता देता है।
3. वर्धन लक्ष्य (Enhancement Goals) – यदि परामर्शी में विशेष कौशल (Skill) और योग्यताएँ (Abilities) हैं, तो उन्हें परामर्शदाता की सहायता से पहचाना और विकसित किया जा सकता है।
4. उपचारी लक्ष्य (Remedial Goals) - उपचार का अर्थ है परामर्शी के अवांछित विकास का उपचार करना।
5. खोजात्मक लक्ष्य (Exploratory Goals)- खोजात्मक लक्ष्य ऐसे लक्ष्यों का प्रतिनिधित्व करता है जो उपयुक्त विकल्पों और कौशलों का परीक्षण तथा नवीन भिन्न क्रियाओं, पर्यावरण और सम्बन्धी आदि को जाँचता है।
6. पुनर्बलन लक्ष्य (Reinforcement Goals)—पुनर्बलन का प्रयोग तब किया जाता है जब परामर्शी को जो कुछ वह कर रहा है, सोच रहा है और अनुभव कर रहा है, वह सही है को पहचानने के लिए सहायता की आवश्यकता होती है। 7. संज्ञानात्मक लक्ष्य (Cognitive Goals) --संज्ञान में अधिगम और संज्ञानात्मक कौशल का प्राथमिक आधार प्राप्त करना सन्निहित होता है।
8. शरीर क्रियात्मक लक्ष्य (Physiological Goals) – शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) में प्राथमिक समझ और आदत प्राप्त करना सन्निहित होता है ताकि स्वास्थ्य अच्छा बना रहे।
9. मनोवैज्ञानिक लक्ष्य (Psychological Goals) – मनोविज्ञान, सामाजिक अन्त किया कौशल अधिगम संवेगात्मक नियन्त्रण, सकारात्मक आत्मधारणा विकसित करना आदि में सहायक होता है (Gibson, Mitchell, Basile, 1993)।
परामर्शदाता का लक्ष्य परामर्शी की अभिप्रेरणा और भावनाओं को तथा व्यवहार को समझना होता है। परामर्शदाता का लक्ष्य केवल परामर्शी को समझने तक ही सीमित नहीं होता प्रकार्य के विभिन्न स्तरों पर उसके लक्ष्य भिन्न होते है। तात्कालिक लक्ष्य परामर्शी के लिए आराम (Relief) प्राप्त करना होता है और दीर्घकालिक लक्ष्य उसे पूर्ण कार्यकारी व्यक्ति बनाना होता है। अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों लक्ष्यों की मध्यस्थता (mediate) या प्रक्रिया (Process) को लक्ष्यों के मार यम से प्राप्त किया जाता है।
परामर्श का लक्ष्य परामशी की तात्कालिक समस्या को हल करने में सहायता प्रदान करना और मादी समस्याओं का सामना करने के लिए समर्थ बनाना होता है। नगरीकरण और औधोगीकरण के कारण तीव्र सामाजिक परिवर्तन से अनेक जटिल समस्या उत्पन्न हुई है। इस परिवर्तन की गति के कारण नई परिस्थितियों का सामना करने के कारण समायोजन एक निरन्तर या सतत् प्रक्रिया बन गई है। परामर्श को सार्थक होने के लिए इसे हर परामर्शी के लिए विशिष्ट होना चाहिए क्योंकि इसमें उसकी अद्वितीय समस्याएँ और प्रतिआशाएँ सन्निहित होती है। परामर्श के लक्ष्यों को तात्कालिक, दीर्घकालिक और प्रक्रिया लक्ष्यों के रूप में वर्णित किया जा सकता है। लक्ष्य का कथन न केवल महत्वपूर्ण है वरन् अनिवार्य भी है, क्योंकि यह दिशा और उद्देश्य की भावना प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त यह अपनी उपयोगिता के सार्थक मूल्यांकन के लिए भी आवश्यक है। सार्थकता का यह निर्णय केवल परिभाषित लक्ष्यों के सन्दर्भ में ही सम्भव है अन्यथा किसी भी क्रिया को परामर्श में सम्मिलित किया जा सकता है। यह निर्धारित करता है कि क्या वाजित है? और क्या सम्भव या व्यावहारिक है?
परामर्श के विशिष्ट लक्ष्य परामश के लिए अद्वितीय (unique) है जिसमें परामर्शी की प्रतिआशाएँ और पर्यावरण पक्ष सन्निहित होते हैं। विशिष्ट लक्ष्यों के अतिरिक्त लक्ष्यों के दो अन्य वर्ग भी है जो अधिकांश परामर्श परिस्थितियों में सामान्य होते हैं। ये दीर्घकालिक और प्रक्रिया लक्ष्य है। प्रक्रिया लक्ष्य बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। वे परामर्शी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों और व्यवहार को प्रारूप प्रदान करते हैं। प्रक्रिया लक्ष्य में परामर्श की प्रभावकता को बढ़ाने के लिए प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाना सन्निहित होता है। दीर्घकालिक लक्ष्य दे हैं जो परामर्शदाता के जीवन का दर्शन प्रतिबिम्बित करते है और जिन्हें निम्नांकित रूप में व्यक्त किया जा सकता है-
1. परामर्शदाता को आत्मसिद्ध (self-actualizing) बनाने में परामर्शी को सहायता देना।
2. परामर्शदात्ता को आत्मोपलब्धि (self-realization) प्राप्त करने में परामर्शी को सहायता प्रदान करना।
3. परामर्शदाता को एक पूर्ण प्रकार्यात्मक व्यक्ति बनने में परामर्शी को सहायता प्रदान करना।
परामर्श के तात्कालिक लक्ष्य उन समस्याओं पर ध्यान देते हैं जिनका हल परामर्शी तत्काल यहीं और अभी चाहता है। परामर्शी क्षमताओं को प्रभावी रूप में पूर्णतः उपयोग करने में असफल रहता है अतः प्रभावी रूप में प्रकार्य करने में असफल रहता है। परामर्शी को स्वतः खोज (self- exploration) के माध्यम से पूर्ण आत्म-समझ (self-understanding) प्राप्त करने में सहायता कर उसे अपनी खूबियों और कमियों को समझने के योग्य बनाता है। परामर्शदाता वांछित सूचना प्रदान कर सकता है, पर सूचना कितनी भी पूर्ण क्यों न हो परामर्शी के लिए उस समय तक लाभकारी नहीं होती जब तक कि वह स्वयं की समन्वयी (integrative) समझ और साथ ही व्यक्तिगत संसाधनों तथा वातावरण की बाध्यता और संसाधनों की समझ न रखता हो।
दीर्घकालिक और तात्कालिक लक्ष्य एक-दूसरे से असम्बन्धित नहीं है। दोनों अन्तः सम्बन्ध है क्योंकि दोनों ही प्राप्त करने के लिए प्रक्रिया लक्ष्यों पर निर्भर करते हैं। प्रक्रिया लक्ष्य परामर्श के प्रमुख आयाम है जो परामर्श के लिए अनिवार्य स्थिति है। इसमें तदनुभूतिक (empathic) समझ, उत्साह और मित्रता सम्मिलित होती है जो अन्त व्यक्तिगत अन्वेषण (inter-personal exploration) प्रदान करती है. यह परामर्शी को आत्म-अन्वेषण (self-exploration) और आत्म-समझ प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है तथा अन्ततः दीर्घकालिक लक्ष्य की ओर अग्रसारित करती है यथा, आत्मसिद्धि (self- actualization), आत्मोपलब्धि (self-realization) और आत्म-वर्धन (self-enhancement)। परामर्शी में कुछ वर्जनाएँ और व्यवहार का आत्मघाती प्रारूप हो सकता है जिन्हें विभाजित कर दिया जाता है। या उन पर काबू पा लिया जाता है, जिससे व्यक्ति पूर्ण प्रकार्यात्मक मानव बन जाता है।
परामर्श के लक्ष्यों की विवेचना करते हुए पालोफ (Parioff 1961) ने तात्कालिक और अन्तिम लक्ष्य में विभेद किया है। आपक अनुसार तात्कालिक लक्ष्य परामर्श प्रक्रिया में चरण (steps) और स्तरों (stages) को इंगित करते है जिनसे हमें अन्तिम लक्ष्य का भास होता है। पैटरसन् (Patterson. 1970) लक्ष्यों का तृतीय स्तर सुझाया, यथा, मध्यस्थ (mediating) और अन्तिम लक्ष्य ( ultimate goal) के अतिरिक्त मध्यवर्ती (Intermediate) लक्ष्य अन्तिम लक्ष्य विस्तृत और सामान्य दीर्घकालीन परिणामों को इंगित करता है. जैसे मानसिक स्वास्थ्य। उदाहरणार्थ ड्राइविंग में दक्षता को लक्ष्य के रूप में अन्तिम लक्ष्य नहीं माना जा सकता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रभावकता एक सापेक्षिक प्रत्यय है जब परामर्श के लक्ष्यों को आत्मसिद्धि (self-actualization), आत्मवर्द्धन (self-enhancement), आत्मोपलब्धि (self-realization) के रूप में वर्णित किया जाता है तब उपलब्धि मूल्यांकन की सार्थक और उपयुक्त कसौटी पाना कठिन होता है या यह प्रत्यय अन्तिम लक्ष्य के रूप में सार्थक प्रतीत होते हैं। आत्मसिद्धि (self-actualization) तथा इसी प्रकार के प्रत्ययों को जीवन के सामान्य लक्ष्य के रूप में इंगित किया जाता है। क्योंकि जीवन स्थिर नहीं होता अतः जीवन के लक्ष्य के रूप में आत्म-सिद्धि भी स्थिर नहीं हो सकती। यह एक सतत् प्रक्रिया है।
रोजर (Rogers. 1951) के अनुसार परामर्श का महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि परामर्शी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के सम्बन्ध में कम चिन्तित होता है (Rogers, 1954) आगे कहते हैं कि परामर्श व्यक्तित्व संगठन और व्यवहार परिवर्तन उत्पन्न करता है और यह दोनों ही सापेक्षिक रूप में स्थाई होते है। वे क्षेत्र जिनमें परिवर्तन वांछित होता है. वे अन्य व्यक्तियों से सम्बन्ध, शैक्षिक उपलब्धि, कार्य सन्तुष्टि ( job satisfaction) आदि है। बांछित परिवर्तनों को कुण्ठित परिस्थितियों के प्रति अधिक सकारात्मक अनुक्रियाओं के रूप में समझा जा सकता है। यद्यपि यह अन्य लोगों के प्रति और स्वयं अपने प्रति मित्र मनोवृतियाँ अंगीकृत करना है।
कुछ मुख्य लक्ष्य जो परामर्शदाताओं द्वारा स्वीकार किए गए हैं उनका वर्णन निम्नांकित शीर्षकों में किया गया है-
सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य की उपलब्धि
मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता। कुछ लोगों द्वारा इसे परामर्श के एक महत्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में इंगित किया गया है, इन लोगों का दावा है कि जब कोई सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त कर लेता है तो वह लोगों और परिस्थितियों से अधिक सकारात्मक रूप में समायोजन कर सीखता है। अन्य लोगों का मत है कि संवेगात्मक तनाव, चिन्ताओं, अनिश्चितता तथा ऐसी ही अन्य समस्याओं की रोकथाम परामर्श का महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं। इन लोगों का विश्वास है कि परामर्श से पसन्द किए जाने (being liked) की सकारात्मक भावना उत्पन्न होनी चाहिए। Kell और Mueller (1962) का मानना है कि "Promotion and develop. ment of feelings of being liked, sharing with, and receiving and giving interaction rewards from other human beings is the legitimate goal of counselling."
समस्याओं का विश्लेषण
परामर्श का एक अन्य लक्ष्य परामर्शदाता के सामने लाई गई समस्या का विश्लेषण करना है। सार रूप में यह पूर्व में कथित लक्ष्यों का परिणाम है जिसका अर्थ है सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करना। व्यवहार के सन्दर्भ में व्यवहारपरक लक्ष्य के तीन वर्ग इंगित किए जा सकते हैं यथा, निर्णय लेने की प्रक्रिया को सीखना, अपानुकूलक (maladaptive) व्यवहार में परिवर्तन और समस्याओं का निवारण ( Krumboltze, 1966)। वोल्पे (Wolpe, 1958) का मानना है कि परामर्श का लक्ष्य परामर्शी के दुःखों और अक्षमताओं से राहत दिलाना है।
व्यक्तिगत प्रभावकता को सुधारना
परामर्श का एक और लक्ष्य व्यक्तिगत प्रभावकता को सुधारना है। यह अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना और वांछित व्यवहार परिवर्तन को प्राप्त करने से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। ब्लोचर (Blocher 1966) प्रभावी व्यक्ति को परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि, "वह व्यक्ति जो परियोजनाओं से स्वयं प्रतिबद्ध होता है, जो समय और ऊर्जा व्यय करता है तथा उपयुक्त आर्थिक, मनोवैज्ञानिक तथा दैहिक जोखिम उठाने का इच्छुक हो। जिसे समस्या को पहचानने, परिभाषित और हल करने के समर्थ के रूप में देखा जाए। जिसे मौलिक और भिन्न रूप में चिन्तन करने वाला समझा जाए। अन्त में वह आवेगों को नियन्त्रित करने और कुण्ठाओं, शत्रुता (hostility) और अस्पष्टता के प्रति उपयुक्त अनुक्रिया प्रस्तुत कर सके |
परिवर्तन में सहायता के लिए परामर्श
ब्लोचर (Blocher, 1966 ) ने दो और लक्ष्य जोड़े है। उनके अनुसार प्रथम, परामर्श व्यक्ति को पर्यावरण द्वारा उस पर आरोपित परिस्थितियों में चयन और क्रिया करने के लिए अधिकतम स्वतन्त्रता प्रदान की जानी चाहिए। द्वितीय लक्ष्य परामर्श को पर्यावरण द्वारा विकसित व्यक्ति की अनुक्रियाओं की प्रभावकता को बढ़ाना चाहिए। टाइडमैन (Tiedman, 1964) का मानना है कि परामर्श का लक्ष्य परिवर्तन की क्रियाविधि पर फोकस करना है और परामर्शी को प्रारम्भिक बाल्यकाल और किशोरावस्था जिस आयु में परिवर्तन व्याप्त रहता है, उसकी क्षमताओं को पहचानने में सहायता प्रदान करनी चाहिए। शोबेन (Shoben, 1965) भी परामर्श को व्यक्तिगत विकास के रूप में देखते है।
निर्णय लेना परामर्श के लक्ष्य के रूप में
कुछ परामर्शदाताओं का मत है कि परामर्श द्वारा परामर्शी को निर्णय लेने योग्य बनाना चाहिए। आलोचनात्मक निर्णय लेने की प्रक्रिया द्वारा ही व्यक्ति में संवृद्धि (growth) होती है। रीव्ज और शब्ज (Reaves and Reaves, 1965) ने इंगित क्रिया है कि. “The primary objective of counselling is that of stimulating the individual to evaluate, make, accept and act upon his choices." परामर्श लोगों को यह सीखने में सहायता करता है कि चयन करने में क्या आवश्यक है, जिसके आधार पर व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेना सीखता है। बार-बार इस तथ्य पर बल दिया गया है कि परामर्शदाता को परामर्शी के लिए निर्णय नहीं लेना चाहिए। यदि ऐसा है तो वह परामर्श नहीं है। निर्णय सदैव परामर्शियों का अपना होता है और ये उसके लिए उत्तरदायी है। दूसरे शब्दों में परामशी को ज्ञात होना चाहिए कि उसने कोई निर्णय क्यों लिया है। निर्णय लेने की प्रक्रिया में सूचनाओं की आवश्यकता पड़ती है और परामर्शदाता को यह सूचना प्रदान करनी चाहिए या इसे प्राप्त करने में परामर्शी की सहायता करनी चाहिए। सूचना का स्वष्टीकरण, चयन और विश्लेषण होना चाहिए। परामर्शदाता को इसमें इस प्रकार सहायता करनी चाहिए कि परामर्शी उत्तरदायित्व पूर्ण निर्णय लेने के योग्य हो सके। टाईलर (Tyler 1962) ने भी परामर्श के लक्ष्य को निर्णय लेने के रूप में परिभाषित किया है। परामर्शदाता को उपलब्ध संस्थानों का उपयोग करने में परामर्शी की सहायता करनी चाहिए ताकि वह उन पर आधारित निर्णय ले सके और जीवन की परिस्थितियों का सामना कर सके।
कभी-कभी परामर्शी के लक्ष्य अस्पष्ट होते हैं और उनके आरोपण की प्रशंसा नहीं की जा सकती परामर्शदाता का कदाचित यह प्राथमिक कर्त्तव्य है कि वह परामर्शी के लक्ष्य को स्पष्ट करने में सहायता प्रदान करें। यह परामर्शदाता की पृष्ठभूमि, व्यावसायिक प्रशिक्षण और अनुभव के कारण सन्मय है। प्रायः लक्ष्यों के बहुआयामी भ्रम में सामान्य कारक होता है। कुछ लक्ष्यों में परामर्शदाता की अपनी आत्मगत प्रति आशाएँ प्रतिबिम्बित होती है परामर्शदाता द्वारा विभिन्न लक्ष्यों को जय स्पष्ट किया जाता है तब परामशी को अपनी सीमाओं और क्षमताओं, सम्पत्ति और उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में चेतन होते हुए सुविश और उत्तरदायित्व पूर्ण निर्णय चयन करने की स्वतन्त्रता रहती है।
परामर्श के उद्देश्य की दिशाएँ
1. आत्म-ज्ञान (Knowledge of self)- व्यक्ति को अपने मूल्याकन में सहायता करना परामर्श का लक्ष्य है। व्यक्ति को अपने विषय में जानने अपनी शक्ति और सम्भावनाओं को पहचानने हेतु इस परामर्श की आवश्यकता पड़ती है। परामर्श एक प्रकार से उस ज्योति की तरह है जिसके आलोक में व्यक्ति को अपने अन्तर्बाह्य स्वरूप को पहचानने में सहायता मिलती है। इनमें कोई सन्देह नहीं कि व्यक्ति के आत्मज्ञान के लिये तथा उसके मूल्यांकन के लिये परामर्श की अनेक विधियों का सहारा लेना पड़ता है। परामर्श साक्षात्कार (Counselling interview) अथवा ग्राहक केन्द्रित परामर्श (Client-centered counselling) अथवा अनिदेशात्मक उपबोधन (Non-directive counselling) आदि अनेक प्रकार से व्यक्ति को अपने यथार्थ स्वरूप से परिचित होने में सहायता की जाती है। परामर्श प्रक्रम की सफलता इस मापदण्ड द्वारा श्रींकी जाती है कि कहाँ तक वह उपबोच्य को उसके वास्तविक आत्मज्ञान से अवगत कराने में सहायक रहा है। लियोना टायलर के अनुसार, "हमें परामर्श को एक सहायक प्रक्रम के रूप में प्रयुक्त करना है जिसका उद्देश्य व्यक्ति को बदलना नहीं है अपितु उसको उन स्रोतों के उपयोग में समर्थ बनाना है जो उसके पास इस समय जीवन का सामना करने के लिये मौजूद है। तब हम परामर्श इस उपलब्धि की आशा करेंगे कि उपयोध्य अपनी ओर से कुछ रचनात्मक क्रिया करे |
इस प्रकार परामर्श की प्रक्रिया व्यक्ति को आत्मपरिज्ञान के साथ-साथ उसे अपनी सहायता स्वयं करने योग्य बनाती है अर्थात् वह विभिन्न समस्याओं के प्रति अपनी अन्तर्दृष्टि विकसित कर अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुरूप उसका समाधान खोजने में समर्थ है।
2. आत्म स्वीकृति (Self-acceptance)- परामर्श का दूसरा प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति को आत्म स्वीकृति में सहायता देना है। व्यक्ति का जो व्यक्तित्व अथवा प्रतिमा (Image) होती है उसे वह स्वयं स्वीकार करे। कई बार लोग अपने बारे में उचित दृष्टिकोण नहीं बना पाते. ये दूसरों के द्वारा जैसे स्वीकार किये जाते है उसी रूप में अपने को मान लेते है, किन्तु व्यक्ति का जहाँ एक-दूसरे द्वारा स्वीकृत रूप होता है यहाँ उसको अपने स्वरूप को स्वयं भी स्वीकारना पड़ता है। कोई व्यक्ति यदि बाह्य आकृति से रूपवान नहीं है तो उसे अपने प्रति कुरूप अथवा निषेधात्मक धारणा नहीं बना लेनी चाहिये। अपितु उचित परामर्श द्वारा उसे समझाया जाना चाहिये कि वास्तविक सौन्दर्य हृदय का होता है। यदि कोई व्यक्ति बाहर से अत्यन्त सुन्दर है किन्तु उसका स्वभाव एवं आचरण अच्छा नहीं है तो वह यथार्थतः सुन्दर नहीं होगा। इसी प्रकार कुरूप होते हुये भी व्यक्ति अपने गुणों एवं अच्छे स्वभाव से सुन्दर लगता है और लोग उसकी ओर आकृष्ट होते है। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति अपने यथार्थ मूल्यांकन के रूप में अपने वास्तविक स्वरूप को स्वीकार करे परामर्श इस कार्य में उसकी सहायता कर सकता है।
आत्म स्वीकृति में व्यक्ति को अपने स्वरूप निर्माण में अपनी कमियों, कमजोरियों एवं सीमाओं पर भी दृष्टि रखनी चाहिये। इसके अभाव में वह अपने सम्बन्ध में गलत धारणा बना सकता है और उसे असफलता एवं निराशा का सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार यदि परामर्श व्यक्ति को अपने सही रूप को स्वीकार करने में सहायक होता है तो वह व्यक्ति के विकास के लिये एक दृढ़ आधार प्रदान कर सकता है। अपने स्वरूप के परिज्ञान के आधार पर व्यक्ति जीवन के लक्ष्यों का निर्धारण भी आसानी से कर सकता है तथा उनकी प्राप्ति में सफल हो सकता है।
3. सामाजिक समरसता (Social harmony) – परामर्श का एक लक्ष्य व्यक्ति की सामाजिक समरसता में सहायक होना भी है। व्यक्ति की अनेक समस्यायें उसके समाज के साथ भली प्रकार समायोजन (Adjustment) न कर पाने के कारण उत्पन्न होती है सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक जीवन को समझने एवं लोक व्यवहार के अनुरूप कार्य करने में व्यक्ति को अपने वैयक्तिक स्वार्थी की परिधि से निकलना पड़ता है। ऐसा करने के लिये व्यक्ति में सहिष्णुता, उदारता एवं मित्रता स्थापित कर सकने के गुण अपेक्षित है। परामर्श के द्वारा व्यक्ति को पूर्वाग्रहों व संकीर्ण चिन्तन से मुक्त कर उसे सामाजिक जीवन के साथ समायोजित करने में परामर्श अपना योगदान देता है। परामर्श व्यक्ति से अपेक्षित सामजिक एवं मानवीय गुणों का ज्ञान कराकर उन्हें व्यक्ति को उसके जीवन दृष्टि का अंग बनाने में सहायता करता है। यद्यपि यह कठिन कार्य है, किन्तु व्यक्ति का सामाजिक समंजन इसके विकास एवं सन्तोष के लिये आवश्यक है। अतः परामर्श के लक्ष्यों में सामाजिक समंजन प्राप्त करने में व्यक्ति को सहायता देने का कार्य महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है।
परामर्श का क्षेत्र
परामर्श का क्षेत्र अधिक व्यापक है। इसके क्षेत्र के बारे में एक मिथ्या धारणा यह है कि यह निर्देशन की ऐसी सेवा है जो विद्यालय की सीमाओं तक ही सीमित है। परामर्श निर्देशन का महत्त्वपूर्ण अंग होने से इसका कार्यक्षेत्र व्यापक है। परामर्श के क्षेत्र में निम्नलिखित क्रियायें सम्मिलित है-
1. छात्र सम्बन्धी सूचनायें एकत्रित करना (Collection of information related with student)—छात्र को परामर्श देने के लिये आवश्यक है कि परामर्शदाता छात्र की पृष्ठभूमि से परिचित हो। इसके लिये छात्र की कक्षा की प्रगति परिवार, मित्र, व्यवहार, रुचि, अभिरुचि आदि से सम्बन्धित सभी तथ्यों का संग्रह परामर्श कार्यालय में हो।
2. अग्रिम शिक्षा और विद्यालयों से सम्बन्धित सूचनाओं का संग्रह (Collection of informa on about further education and schools)- शैक्षिक निर्देशन में परामर्श के लिये अग्रिम शिक्षा और विद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया छात्रावास सुविधा शुल्क आदि का होना आवश्यक है।
3. परीक्षण की सुविधा (Facility of tests)- परामर्श में परीक्षण की सुविधा होनी चाहिये। परामर्श कार्यालय सभी प्रकार को परीक्षण होने चाहिये। परामर्श के क्षेत्र में परीक्षणों का प्रशासन, परिणामों का विश्लेषण और परिणामों का छात्रों को ज्ञान कराने सम्बन्धी कार्य सम्मिलित है।
4. व्यवसाय और वृत्तियों की सूचनाओं का संग्रह करना (Collection of informations of occupations and careers) - परामर्श के क्षेत्र में व्यवसायों और मृतियों के बारे में सूचनायें एकत्रित करना भी सम्मिलित है, क्योंकि इनके बिना व्यावसायिक निर्देशन सम्भव नहीं है।
5. साक्षात्कार करना (To conduct interview) कठिनाई से पीड़ित छात्रों के साथ साक्षात्कार करना भी परामर्श के क्षेत्र में सम्मिलित है।
6. समस्याओं के समाधान में सहायता करना (To help in solving problems)- परामर्श के द्वारा व्यक्ति को आत्मानुभूति कराके उसको त्वयं समस्या हल करने के योग्य बनाने का प्रयास किया जाता है |
7. अभिभावक तथा व्यावसायिक संगठनों से सम्पर्क (To establish contact with parents and professional organisations)- छात्र के माता-पिता और व्यावसायिक संगठनों से सम्पर्क साधना परामर्श के क्षेत्र का कार्य है।
8. वार्तालाप या संगोष्ठी का आयोजन करना (To organise talks and seminars) - छात्रों के लिये विशेषज्ञों की वार्ता या संगोष्ठी का आयोजन करना भी परामर्श के क्षेत्र का अंग है।
परामर्श के आधारभूत सिद्धान्त
परामर्श के कुछ आधारभूत सिद्धान्त है, जिनके द्वारा परामर्श प्रक्रिया निर्देशित होती है। यहाँ हैन तथा क्लीन द्वारा वर्णित परामर्श के आधारभूत सिद्धान्तों का विवरण प्रस्तुत है-
1. परामर्श उपबोध्य के आत्मज्ञान व स्व-निर्देशन के लिये समर्पित होता है - परामर्श का पहला सिद्धान्त है कि उपोष्य को उसमें छिपी योग्यताओं और क्षमताओं का ज्ञान कराना चाहिये, ताकि वह स्वयं को समझ सके। इसके साथ ही उसको स्व-निर्देशन के लिये प्रेरित करना चाहिये। स्पष्ट है कि उपयोग को होने पर वह अपनी समस्याओं के समाधान के लिये परामर्शदाता की सहायता पर निर्भर नहीं रहेगा।
2. परामर्श संरचित अधिगम स्थिति है-अधिगम ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है. लेकिन अधिगम के रूप में होता है-एक रूप में व्यक्ति वातावरण से स्वतन्त्र रूप में सीखता है। व्यक्तिए नई समस्याओं का सामना करता है और उनका स्वयं समाधान करके नवीन अनुभव अर्जित करता है। दूसरे रूप से अधिगम के लिये एक व्यवस्थित व्यवस्था की रचना की जाती है। लक्षण रतिकाम उदाहरण है।
3. पर्यावरण व स्वयं के मध्य सम्बन्ध को समझने की अन्तर्दृष्टि पैदा करना (Development of client's insight to understood the relationship between self and enviornment)- और पर्यावरण का घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव पर्यावरण से प्रभावित होता है और आवश्यकता पड़ने पर पर्यावरण को प्रभावित करता है। परामर्श के द्वारा उपबोध्य को उसके तथा पर्यावरण के मध्य सम्बन्ध को समझने की अन्तर्दृष्टि जाग्रत करने का प्रयास किया जाता है। इस सम्बन्ध की अनुभूति कराने का प्रयोजन यह है कि पर्यावरण की मानव के विकास में अहम् भूमिका होती है।
4. परामर्श उपबोध्य के लिये अनिवार्य नहीं होना चाहिये -परामर्श विद्यालय में सभी छात्रों के लिये अनिवार्य न होकर स्वैच्छिक होना चाहिये। जो छात्र परामर्श की आवश्यकता अनुभव करते हैं वे परामर्शदाता से सम्पर्क स्थापित कर सकते है।
5. परामर्श मुख्यतः प्रतिरोधात्मक प्रक्रिया है न कि उपचारात्मक =यद्यपि उपबोध्य परामर्शदाता के पास समस्या पैदा होने पर उसके उपचार अर्थात् समाधान के लिये आते हैं, लेकिन यह सत्य है कि परामर्श द्वारा प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास करना चाहिये ताकि छात्र के समक्ष समस्या पैदा नहीं हो सके।
6. उपबोध की समस्या तथा योग्यतानुसार परामर्श विधियों में मित्रता होनी चाहिये परामर्शदाता द्वारा सदैव ध्यान रखना चाहिये कि सभी छात्रों की आवश्यकतायें और समस्यायें समान नहीं होती है। इसी प्रकार एक छात्र की आवश्यकताओं और समस्याओं में भी भिन्नता पायी जाती है। अतः आवश्यकता के अनुसार तदनुकूल विधियों का प्रयोग करना चाहिये।
7. परामर्श में विद्यालय के सभी सहकर्मियों का सहयोग प्राप्त करना चाहिये (To seek cooperation of all colleagues in the school ) परामर्श ऐसी प्रक्रिया है जिसमें परामर्शदाता अकेले रूप में अपने कार्य में सफल नहीं हो सकता है। उसे इतना व्यवहारकुशल होना चाहिये कि अपने कार्य को कुशलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिये अपने सहकर्मियों का सहयोग प्राप्त कर सके।
अच्छे परामर्श की विशेषतायें
निर्देशन के कार्य में परामर्श को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। बिना परामर्श के निर्देशन सम्बन्धी किसी कार्य का होना सम्भव नहीं है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने निर्देशन देने या लेने में आने वाली समस्याओं का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में किया है। इन समस्याओं के समाधान हेतु उपयोग में आने वाली युक्तियों में परामर्श एक महत्त्वपूर्ण युक्ति है। परामर्श एक प्राचीन शब्द है। परामर्श की प्रक्रिया आदिकाल से चली आ रही है, लेकिन परामर्श की अवधारणा सामाजिक परिवर्तनों के साथ बदलती रही है। आज परामर्श से आशय व्यक्ति में ऐसी अन्तर्दृष्टि पैदा करना है कि वह स्वयं को पहचानकर अपनी समस्या का समाधान स्वयं करने में सक्षम हो जाये। परामर्श एक प्रक्रिया है जिसकी अपनी अनेक विशेषतायें है। एक अच्छे परामर्श में अग्रलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक है-
1. परामर्श दो व्यक्तियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया है जिसमे परामर्शदाता और उपयोध्य सम्मिलित होते है अच्छा परामर्श कभी भी सामूहिक रूप मे सम्पादित नहीं होता है।
2 अच्छे परामर्श में उपबोधक द्वारा अपने निर्णय थोपे नहीं जाते हैं। उपबोधक तो निर्णय लेने में उपयोध्य की सहायता करता है। अन्ततोगत्वा निर्णय उपबोध्य द्वारा ही लिये जाते हैं।
3. अच्छे परामर्श में परामर्शदाता उपबोध्य की स्वयं को समझने में सहायता प्रदान करता है। स्वयं की योग्यता और क्षमताओं का ज्ञान होने पर वह अपनी समस्याओं के समाधान का स्वयं निर्णय लेता है।
4. अच्छा परामर्श वह है जहाँ दो व्यक्ति परस्पर विचार-विमर्श कर रहे हो तो वातावरण सौहार्दपूर्ण और मित्रता से युक्त हो।
5. परामर्श के समय उपबोधक को सहानुभूति और सहयोग की भावना का प्रदर्शन उपबोध्य का विश्वास जीतने के लिये करना चाहिये।
6. अच्छा परामर्श वह है जहाँ उपबोध्य अपने को सामान्य अनुभव करता है तथा उसकी भावनाओं को कोई आघात नहीं पहुँचाया जाता है।
7. परामर्श जिसमें उपबोध्य में समस्या समाधान के लिये आत्मविश्वास पैदा होता है, अच्छा माना जाता है।
8. परामर्श वही अच्छा है जिसमें परामर्श प्रक्रिया उपबोध्य केन्द्रित होती है। उपबोधक को परामर्श में हावी नहीं होना चाहिये।
9. परामर्श में उपबोध्य के बारे में कुछ तथ्य पहले से ही एकत्रित कर लेने चाहिये ताकि उपबोधक यह प्रदर्शित कर सके कि वह उपबोध्य से परिचित है।।
10. परामर्श वही अच्छा है जिसमें सहायता का रूप ऐसा होता है कि उपबोध्य अपनी समस्या का समाधान स्वयं करने का निर्णय लेना सीखता है।
11. अच्छे परामर्श की एक विशेषता उपबोध्य से सम्बन्धित सूचनाओं को गुप्त रखना है। उपबोधन में उपबोधक को अधिकांश गुप्त सूचनायें प्राप्त होती है। इन सूचनाओं को गुप्त रखकर ही वह उपयोध्य का विश्वास जीतने में सफल हो सकता है।
12. परामर्श प्रक्रिया में लचीलापन होना चाहिये। ऐसा होने पर परिस्थिति के अनुसार प्रक्रिया में बदलाव किया जा सकता है।
13. अच्छे परामर्श का समापन इस प्रकार होता है कि उपबोध्य पुनः परामर्श के लिये आतुर रहे।
14. अच्छे परामर्श में उपबोधक उपबोध्य के साथ आत्मीयता स्थापित करना है।
15. अच्छे परामर्श में तनाव तथा हताशा दूर करने के लिये हास्य का प्रयोग किया जाता है।
निर्देशन और परामर्श में अन्तर
परामर्श निर्देशन का एक अन्तरंग भाग है। निर्देशन एक व्यापक अर्थ की ओर संकेत करता है, जबकि परामर्श का क्षेत्र तथा कार्य निर्देशन की अपेक्षा संकीर्ण है। निर्देशन व्यक्ति में अन्तर्दृष्टि का विकास करके उसको अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को समझने में सहायता करता है ताकि वह अपनी कठिनाइयों के निवारण में किसी अन्य पर निर्भर न रहे। होनरिन्स ने ठीक ही लिखा है कि छात्र को उसकी शक्तियों में स्वयं झांकने में सहायता देना निर्देशन है ताकि वह अपनी शक्तियों को स्वयं पहचान सके। परामर्श एक प्रविधि है जो अन्य अनेक प्रविधियों की भाँति इस उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता करती है। प्रायः अनेक विद्वान निर्देशन और परामर्श को समान अर्थी मानते हैं, लेकिन यह उनकी मूल है। निर्देशन ऐसा कार्य है कि जिसके द्वारा व्यक्ति अपना दृष्टिकोण विकसित करता है, स्वयं निर्णय लेने के योग्य बनाता है। यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति अपनी समस्या को लेकर निर्देशन कार्यकर्ता के पास जाये। लेकिन एक प्रकार के साक्षात्कार का रूप है जिसमें बातचीत करना या विचार-विमर्श एक सौहार्द वातावरण में सम्पन्न होता है। परामर्श में परामर्शदाता और उपयोध्य में सम्बन्ध स्थापित होता है। यह एक प्रकार से दो व्यक्तियों के मिलने की प्रक्रिया है जिसमें परामर्शदाता व्यक्ति को इस योग्य बनाता है कि वह अपनी समस्या का समाधान स्वयं कर सके। स्ट्रांग ने ठीक लिखा है कि परामर्श प्रक्रिया एक सम्मिलित प्रयास है। निर्देशन के बारे में डाउनिंग के विचार उपयुक्त लगते हैं। उनके अनुसार निर्देशन विशिष्ट सेवाओं की एक संगठित श्रृंखला है जो विद्यालय के वातावरण की अभिन्न अंग है, जबकि परामर्श निर्देशन की संगठित श्रृंखला की एक सेवा है जो निर्देशन देने में सहायक है।
निर्देशन यद्यपि व्यक्तिगत प्रक्रिया है, लेकिन निर्देशन समूह में भी दिया जाता है, जिसे सामूहिक निर्देशन कहा जाता है। इसके विपरीत रेन के अनुसार परामर्श व्यक्तिगत होता है। परामर्श देने का कार्य समूह में सम्भव नहीं है। सामूहिक परामर्श एक अस्वाभाविक बात है। परामर्श एक प्रकार का साक्षात्कार है और साक्षात्कार समूह में सम्भव नहीं है।
परामर्श में उपबोधक और परामर्शदाता में निकटतम सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास होता है। इस घनिष्ठता के आधार पर परामर्शदाता व्यक्ति का विश्वास जीतकर उसके जीवन के गोपनीय तथ्यों को उगलवाने में सफल होता है। इसके विपरीत निर्देशन में प्रार्थी के साथ इतने घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाते हैं।
निर्देशन और परामर्श में एक समानता है कि दोनों में निर्णय थोपे नहीं जाते हैं, अपितु प्रार्थी को इस योग्य बनाया जाता है कि वह निर्णय स्वयं ले। दोनों में निर्देशक और परामर्शदाता स्वयं किसी का भार नहीं होते हैं, बल्कि प्रार्थी में निहित क्षमताओं का ज्ञान कराकर उसे अपना भार स्वयं ढोने के लिये प्रेरित किया जाता है।
अन्त में कहा जा सकता है कि परामर्श निर्देशन का अभिन्न अंग है। परामर्श निर्देशन की एक प्रविधि है।