एक व्यावसायिक संस्था को अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कई प्रकार के लेखांकन की आवश्यकता पड़ती है | जिन सिद्धांतों के आधार पर किसी व्यवसाय एवं उद्दोग के कार्यकलापों पर लेखा किया जाता है, उन्हें कई भागो में विभाजित किया जाता है |
लेखांकन के बिविध स्वरुप
वित्तीय लेखांकन
वित्तीय लेखांकन का आशय उस लेखाविधि से है, जिसके अंतर्गत व्यवसाय से सम्बंधित आय-व्यय, रोकड़ की प्राप्ति एवं भुगतान, स्टाक आदि शामिल किये जातें हैं | इसे सामान्य लेखांकन भी कहते हैं |इसके अंतर्गत दिन-प्रतिदिन के लेखांकन व्यवहार आतें हैं जिनकी सहायत से संस्था के अंतिम खाते तैयार किये जाते हैं | वित्तीय लेखांकन की सहायता से संस्था द्वारा कमायी गयी आय के बबरे में जानकारी प्राप्त होति है साथ ही विशेष तिथि पर संस्था की वित्तीय स्थिति के सम्बन्ध में भी ज्ञान प्राप्त होता है | अतः प्रबन्धकीय कार्यक्षमता में वृद्धि के लिए भी वित्तीय लेखांकन आधरशिला का कार्य करता है |
लागत लेखांकन
लागत लेखांकन की पद्धति वित्तीय लेखांकन पद्धति की सहायक है, किन्तु स्थानापन्न नहीं लागत लेखांकन में वास्तु उत्पादन से सम्बंधित कच्चे मॉल, श्रम और इन पर होने वाले व्ययों का नियमित रूप से लेखा किया जाता है ताकि कुल उत्पादन की कुल लागत एवं प्रति इकाई की उत्पादन लागत ज्ञात की जा सके | आज के युग में प्रत्येक बड़ी औद्दोगिक संस्था, जंहा बड़े स्तर पर उत्पादन का कार्य किया जाता है वंहा वित्तीय लेखे व लागत लेखे दोनों का ही नियमित प्रयोग किया जाता है |
प्रबन्धकीय लेखांकन
प्रबन्धकीय लेखांकन का विकास प्रबंध के कार्यों को कुशलतापूर्वक पूर्ण करने में सहयता प्रदान करते हैं | मुख्य तौर पर वित्तीय समस्याओं के हल करने के लिए प्रबन्धकीय लेखांकन का निर्माण हुआ | प्रबन्धकीय लेखांकन में वित्तीय लेखांकन से प्राप्त सूचनाओं से विश्लेषण कर व्यवसाय की लाभ कमाने की क्षमता को बढ़ने का प्रयत्न किया जाता है | प्रबन्धकीय लेखांकन का नवीन स्वरुप है |
परिमाणिक लेखांकन
परिमाणिक लेखांकन वस्तुओं के परिणामों से सम्बंधित होता है | इस लेखांकन का मुख्य उद्देश्य क्रय व् विक्रय तथा अन्य व्यवसाय में प्रयुक्त सामग्री के शेषों के सम्बन्ध में सूचनाएँ प्राप्त करना है | परिमाणिक लेखांकन के अंतर्गत केवल मात्रात्मक लेखा किया जाता है | जैसे - क्रय के सम्बन्ध में वस्तु विशेष की 5,000 इकाइयों का लेखा आदि |
मुद्रास्फीति लेखांकन
अभी तक ऐतिहासिक लेखांकन के आधार पर लेखे किये जाते थे अर्थात मुद्रा का मूल्य अपरिवर्तनशील है, इस मान्यता पर लेखे बहियों में किये जाते थे | लेकिन आजकल आर्थिक जगत में मुद्रास्फीति की दशा पायी जाती है जिसमें मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है | मुद्रा का मूल्य अस्थिर है | अब ऐसी दशा में लेखांकन मुद्रा के परिवर्तित मूल्य को ध्यान में रखकर किया जाता है जिसे मुद्रास्फीति लेखांकन कहते हैं |
कर लेखांकन
हमारे देश में अनेक प्रकार के कर लगाये जाते है ; जैसे बिक्री कर, आयकर स्व सम्पत्ति कर आदि | व्यावसायिक द्रष्टि से जो लेखांकन किया जाता है, वह आय-कर की द्रष्टि से सदैव मान्य नहीं होता है | क्यूंकि कुछ व्ययों के लेखांकन के सम्बन्ध में आयकर अधिनियम में अलग से व्यवस्था है लेकिन व्यावसायिक लेखों में इन व्ययों से सम्बंधित व्यवस्थाओं को ध्यान में नही रखा जाता है | अतः आयकर अधिनियम में वर्णित व्यवस्थाओं के अनुसार जो लेखांकन किया जाता है उसे आयकर लेखांकन कहा जाता है |
सरकारी लेखांकन
किसी राष्ट्र की सरकारों द्वारा रखे गये लेखे को सरकारी लेखांकन कहते हैं | इस प्रकार के लेखांकन में संसद द्वारा बनाये गये लेखांकन के सिद्धांतों को भी ध्यान में रखा जाता है |
मानवीय संसाधन लेखांकन
आज के लोकतान्त्रिक जगत में यह धारणा अति तेजी से जोर पकड रही है कि व्यवसाय में मानवीय योगदान भी होता है | अतः एक व्यवसाय के लेखांकन में जिस प्रकार उत्पादन के अन्य साधनों का हिसाब-किताब रखा जाता है उसी तर्ज पर मानवीय साधन के प्रयोग का भी लेखा-जोखा व्यावसायिक लेखांकन में किया जाना चाहिए | अतः ऐसा लेखांकन जिसमें मानवीय तत्व को ध्यान में रखा जाता है मानवीय लेखांकन कहलाता है |
सामजिक लेखांकन
ऐसी लेखाविधि जिसमें एक देश की आर्थिक क्रियाओं का क्रमबद्ध व् उचित ढंग से लेखा किया जाता है सामजिक लेखांकन कहलाती है | इस लेखांकन पद्धति को राष्ट्रीय आय लेखांकन भी कहते हैं |