रूपराम जी बहुत पुराने कवि है तथा उनकी ये बहुत पुरानी कविता है ये मन और ह्रदय को झकझोर देने वाली है जिसमें कबूतर और कबूतरी का प्रसंग है ! कृपया एक बार इसे जरूर पढ़ें -
जगत में जिसका जगत पिता रखवाला !
उसे मारने वाला कोई हमने नहीं निहारा !!
एक बहेलिया अपने घर से ले तीर कमान चला भाई !
चिड़ियों के वध करने के लिए एक जंगल में पहुंचा जाई !!
वहां एक वृक्ष पर बैठे हुए दो पंक्षीन को देखा भाई !
थी एक बिचारी कबूतरी एक कबूतर था भाई !!
आनंद में बैठे थे दोनों थी किसी बात की परवाना /परवाह !
इन्हें देख शिकारी बेदर्दी अपने मन में बे जा ठाना !!
झट तीर निकाला तरकस से दे ध्यान जरा सुनते जाना !
जालिम ने देर करी न जरा वह तीर सरासन पर ताना !!
बाँधन लगा निसान अधर्मी महा नीच हत्यारा !
जगत में जिसका जगत पिता रखवारा !!
अब और सुनो सज्जन आगे कैसी विचित्र हरि की माया !
वह खड़ा है नीचे तीर तान ऊपर से एक गजब छाया !!
अम्बर में चक्कर काट रहा हा शत्रु बाज बे पीर बड़ा !
यह देख कबूतर कबूतरी दोनों का धीरज टूट गया !!
कह रही नर से मादा यों हे नाथ विधाता रूठ गया !
क्षण में नीचे से तीर लगा अरु ऊपर से वे टूट पड़ा !!
अब नही बचे हम तुम दोनों बचना है प्रियतम बहुत कड़ा !
कहें कबूतर हाँ हाँ प्यारी कहना सत्य तुम्हारा !!
जगत में जिसका जगत पिता रखवारा !
दोनों ने मन में समझ लिया सिर काल हमारे आ छाया !
लेकिन ईश्वर की माया का कोई पार किसी ने नहीं पाया !!
विकराल महाकाला जहरी एक सांप कंही से धर धाया !
गया मार लपेटा पैरों पर बे पीर शिकारी डस खाया !!
इक संग तभी वह भभक उठा इसलिए हुआ क्या अब देखो !
चल गया तीर तिरछा उसका अरु बाज में जाय लगा देखो !!
ये इधर मरा वो उधर मरा दोनों से फंद कटा देखो !
बच गये कबूतर कबूतरी परमेश्वर की माया देखो !!
रूपराम शिबिदेव की रक्षा करें सदा प्रभु प्यारा !
जगत में जिसका जगत पिता रखवारा !!
उसे मारने वाला कोई हमने नही पहचाना !
जगत में जिसका जगत पिता रखवारा !!
कवि:- श्री रूपराम जी