दृष्टिकोण का अर्थ ,परिभाषा,प्रकार,कार्य,व्यक्तिगत दृष्टिकोण का विकास

दृष्टिकोण का अर्थ 

मनोवृत्ति/दृष्टिकोण/नजरिया से अभिप्राय किसी एक व्यक्ति, समूह, वस्तु या विचार के विश्लेषण करने की एक मानसिक प्रक्रिया से है। मनोवृत्ति का एक व्यक्ति की पसन्द / नापसन्द एवं उसके व्यवहार के ऊपर अत्यन्त प्रबल प्रभाव होता है अर्थात् दृष्टिकोण एक विषयागत/ भावगत (Subjective) घटना है। एक व्यवसायी को स्वयं के व्यवसाय को सुचारू रूप में चलाने के लिए सकारात्मक मनोवृत्ति की आवश्यकता होती है।

परिभाषायें 

सेकण्ड एवं बैंकमेन (Second and Backman) के अनुसार- "वातावरण के कुछ पहलुओं के प्रति व्यक्ति के भावों/विचारों व अनुक्रिया करने की पूर्व प्रवृत्तियों को मनोवृत्ति कहा जाता है।"

 क्रेच, क्रचफिल्ड व बैलेची (Kretch, Cruchfield and Bullachey) के अनुसार- "किसी एक वस्तु के सम्बन्ध में तीन तत्वों का टिकाऊ तन्त्र मनोवृत्ति कहलाता है। संज्ञात्मक तत्व अर्थात् वस्तु के बारे में विश्वास, भावनात्मक तत्व अर्थात् वस्तु के प्रति भाव / व्यवहार या क्रिया, प्रवृत्ति तत्व अर्थात् उस वस्तु के प्रति क्रिया करने की तत्परता।"

मोरगन एवं आइसिंग (Morgan and Icing) के अनुसार- "दृष्टिकोण किसी व्यक्ति, वस्तु तथा परिस्थिति के लिए सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया को अभिव्यक्त करने की प्रवृत्ति है। इसमें मुख्यतः तीन तत्व होते हैं-ज्ञान, भावना एवं कार्य। "

दृष्टिकोण के तत्व या संघटक

मनोवृत्ति या दृष्टिकोण में निम्न तीन तत्व सम्मिलित हैं- 

1. ज्ञान तत्व (Cognitive Component),

2. भाव तत्व (Feeling Component),

 3. क्रिया तत्व (Action Component) I

1. ज्ञान तत्व (Cognitive Component)

ज्ञान तत्व का अभिप्राय किसी विषय के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के अभिमत से है। यह अभिमत एक वाक्य की स्वीकृति के रूप में होता है। यदि आप किसी व्यक्ति/ वस्तु विचार के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति रखते हैं तो आपका अभिमत भी सकारात्मक होगा और यदि आप किसी व्यक्ति/ वस्तु / विचार के प्रति नकारात्मक मनोवृत्ति रखते हैं तो आपका अभिमत भी नकारात्मक होगा। उदाहरणार्थ, यदि एक उपभोक्ता का यह विचार है कि माँग में वृद्धि, कीमत में कमी का कारण है तो उसको मनोवृत्ति सकारात्मक होगी।

2. भाव तत्व (Feeling Component )

 भाव तत्व का अभिप्राय किसी विषय के प्रति अनुभव से है। यह दृष्टिकोण अत्यधिक महत्वपूर्ण अवयव है।

3. क्रिया तत्व (Action Component )

क्रिया तत्व का अभिप्राय किसी विषय के प्रति किसी राद या भाव के अनुसार कार्य करने को प्रवृत्ति से है। यह व्यक्ति के विश्वास व भाव को प्रतिबिम्बित करता है।

अर्थात् स्पष्ट है कि किसी विषय वस्तु/व्यक्ति के प्रति हमारो मनोवृत्ति सकारात्मक, नकारात्मक व तटस्थ हो सकती है। सकारात्मक मनोवृत्ति किसी विषय का अनुकूल विश्लेषण होता है अर्थात् विषय के लिए पसन्द व अनुकूल व्यवहार की उत्पत्ति की सकारात्मक मनोवृत्ति को दर्शाती है। इसकी उत्पत्ति प्रेरणा के माध्यम से होती है। प्रेरणा द्वारा हो मनोवृत्ति निर्मित होती है, परिवर्तित होती है, पुनर्स्थापित या पुननिर्मित होती है।

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि मनोवृत्ति एक व्यक्ति की मानसिक प्रस्तुति है जो उसके विश्लेषण सत्यापित करती है।

दृष्टिकोण के प्रकार

दृष्टिकोण को प्रमुख रूप से दो वर्गों में रखा जा सकता है-

1. सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive Attitude)

2. नकारात्मक दृष्टिकोण (Negative Attitude)

1. सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive Attitude) 

आशावादी, सकारात्मक अथवा स्वस्थ दृष्टिकोण जीवन की सफलता का प्रथम सोपान है दृढ़ इच्छा शक्ति, आत्मविश्वास, कर्तव्य के प्रति समर्पण, रचनात्मक कार्य एवं विचारों के प्रति निष्ठा सकारात्मक दृष्टिकोण के परिचायक होते हैं। कठिनाइयों अथवा समस्याओं में भी सफलता के लिए सतत् कार्य करते रहना ही सकारात्मक दृष्टिकोण का परिणाम है।

2. नकारात्मक दृष्टिकोण (Negative Attitude)

निराशावादी, नकारात्मक एवं अस्वस्थ दृष्टिकोण अच्छे मित्रों, प्रभावी पदों और सफलताओं से व्यक्ति को दूर कर देते हैं। कार्यों के प्रति अनिच्छा, स्वयं के प्रति डगमगाता आत्मविश्वास, दूसरों की कमियाँ ज्ञात करना, आलस्य करना, विध्वंसात्मक कार्यों में संलग्न रहना और जीवन को अर्थहीन एवं उद्देश्यरहित बना लेना नकारात्मक सोच की परिणति होती है।

दृष्टिकोण को निर्मित करने वाले घटक 

एक व्यक्ति का दृष्टिकोण विभिन्न घटकों से पर्याप्त सीमा तक प्रभावित होता है। दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाले पटक है-

1. पारिवारिक परिवेश (Family Environment)

जिस परिवार में व्यक्ति रहता है उसके अनुसार ही उसका दृष्टिकोण विकसित होता है। व्यक्ति के जीवन के प्रारम्भिक दौर में उसकी स्थिति लगभग तोते के समान होती है और वह केन्द्रित दृष्टिकोण को अपनाता है। जीवन शैली, रुचियाँ, खान-पान, वेशभूषा पारिवारिक दैन है।

2. शिक्षा एवं तार्किक वस्तुनिष्ठा (Education and Objective Reasoning)

दृष्टिकोण एवं विचारधारा का सबसे प्रमुख खोत शिक्षा है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति विवेकपूर्ण विचार एवं तार्किक वस्तुनिष्ठा ग्रहण करता है। प्रारम्भिक शिक्षा का तो विचारधारा एवं दृष्टिकोण के निर्माण में अधिक महत्वपूर्ण स्थान है।

3. सामाजिक स्तर (Social Level)

सामाजिक स्तर भी दृष्टिकोण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सामाजिक स्तर को निम्नलिखित पाँच उपवर्गों में विभाजित करते हैं-

 (i) आर्थिक (Economic)

सामान्य रूप से आर्थिक वर्ग को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है। उच्च मध्यम एवं अल्प आय वर्ग सार्वभौमिक रूप से तीनों आय वर्ग की विचारधारा एवं दृष्टिकोण में स्वाभाविक भिन्नता होती है, जैसे- अल्प आय वर्ग में जो लोग कठिनाइयों में जीवन व्यतीत करते हैं उनमें आपसी सम्बन्ध एवं सौहार्द का दृष्टिकोण अधिक होता है।

(ii) निवासीय (Residence )

व्यक्ति की निवासीय स्थिति भी दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। पहाड़ी क्षेत्रों के निवासियों तथा मैदानी क्षेत्रों के निवासियों के दृष्टिकोण में स्वाभाविक भिन्नता पाई जाती है।

(iii) वंशानुक्रम (Ethnic) 

वर्ण (रंग), जाति (Caste), सम्प्रदाय (Community), राष्ट्रीयता (Nationality), आदि स्वभाविक रूप से जन्म के आधार पर निर्धारित होती है, लेकिन व्यक्ति के दृष्टिकोण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दक्षिण अफ्रीका की वर्ण (रंग-भेद), वैमनस्य भेद तथा भारत में सम्प्रदाय भेद वैमनस्य इसके प्रमुख उदाहरण है।

 (iv) उम्र (Age)

उम्र के आधार पर भी विचारधारा का निर्माण होता है। शैशव, तरुण, वयस्क, बुजुर्ग के दृष्टिकोण में अन्तर होता है। जहाँ तरुण संघर्षो के प्रति जूझने का दृष्टिकोण रखता है वहीं बुजुर्ग समझौते के प्रति अधिक आकर्षण रखते हैं।

(v) लिंग (Sex)

स्त्री एवं पुरुष के दृष्टिकोणों में भिन्नता पाई जाती है, जैसे जहाँ पुरुष तकनीकी एवं राजनीति में अधिक मुख्य अभिव्यक्ति प्रदान करता है, वहीं स्त्रियाँ गृहसज्जा, पाक कला में अधिक सूक्ष्म अभिव्यक्ति प्रदान करती हैं।

4. समूह प्रभाव (Group Effect )

सहयोगी, मित्र समूह, आदि भी व्यक्ति के दृष्टिकोण निर्धारण में सहायक होते हैं। समूह प्रभाव या संगत व्यक्ति के दृष्टिकोण को ही नहीं, बल्कि उसके जीवन के अनेक पक्ष को भी प्रभावित करता है। समूह परिवर्तन के द्वारा व्यक्तित्व परिवर्तन के अनेक उदाहरण मिलते हैं।

5. स्व-हित (Self-Interest)-

बहुत से विषयों पर व्यक्ति का दृष्टिकोण उसके स्वहित अथवा श्रेष्ठ हित (Best Interest) पर निर्भर करता, जैसे अंशदान, सामाजिक गोष्ठी, क्लब को सदस्यता के प्रति हिस्सेदारी इसके उदाहरण हैं।

दृष्टिकोण या मनोवृत्ति के कार्य

मनोवृत्ति के मुख्यतः दो कार्य होते हैं-

1. ज्ञान अर्जन / उद्देश्य विश्लेषण का कार्य,

2. व्यक्तित्व सूचक / सामाजिक पहचान का कार्य ।

1. ज्ञान अर्जन / उद्देश्य विश्लेषण कार्य 

मनोवृत्ति किसी व्यक्ति को वातावरण को समझने में सहायक होती है, जैसे, कोल्ड ड्रिंक तथा अर्थशास्त्र की कक्षा के प्रति विद्यार्थी की मनोवृत्ति निम्न रूप में स्पष्ट होती है -

  • कोल्ड ड्रिंक को पसन्द करना, तथा ,
  • अर्थशास्त्र की कक्षा में गोल मारना / अनुपस्थित रहना।

यद्यपि ये कार्य वस्तुपरक मनोवृत्ति की महत्वपूर्ण विशेषता को स्पष्ट करते हैं, जिससे हम विद्यार्थी के साथ प्रभावपूर्ण तरीके से कुशलतापूर्वक व्यवहार कर सकें।

2. व्यक्तित्व सूचक/सामाजिक पहचान का कार्य

 मनोवृत्ति का यह कार्य व्यक्ति को स्वयं को, स्वयं के विचारों को तथा किसी मामले के पक्ष/विपक्ष में अपने अभिमत को व्यक्त करने में सहायक होता है। यह व्यक्तियों के मध्य सम्बन्ध बनाने में सहायता करता है। एक व्यक्ति को मनोवृत्ति, उस व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समझने में सहायक होती है। 

यद्यपि अधिकांश दृष्टिकोण सीखे जाते हैं अथवा प्राप्त / ग्रहण किये जाते हैं। व्यक्ति एक दृष्टिकोण का प्रयोग कर, उसके बारे में सुनकर या उसके बारे में वार्तालाप / समूह चर्चा/ सत्संग करके सीखता है। मनोवृत्ति का यह पहलू सम्बन्धित विषय से सम्बन्धित ज्ञान अर्जन में सहायक होता है।

एक मनोवृत्ति ज्ञानवर्द्धक एवं किसी विषय के सम्बन्ध में हमारे विश्लेषण की प्रस्तुति के स्वरूप में होता है। इसमें हम स्वयं अन्य मनुष्य, क्रियाशील वस्तुएँ व घटनाएँ, विचार आदि सम्मिलित होते हैं। यद्यपि किसी भी विषय के सम्बन्ध में हमारे दृष्टिकोण की प्रस्तुति सकारात्मक, नकारात्मक व तटस्थ होती है। अतः मुख्य दो घटक होते हैं-

1. सकारात्मक बनाम नकारात्मक प्रभाव,

2. अनुसरण करना बनाम त्याग करना।

सकारात्मक दृष्टिकोण एक विषय का अनुकूल विश्लेषण है। यह किसी विषय के लिए पसन्द एवं उसके लिए अनुकूल व्यवहार उत्पन्न करता है। सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास समझाने एवं बुझाने से होता है। वास्तव में समझाना-बुझाना अथवा प्रेरित करना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दृष्टिकोण बनाये जाते है, परिवर्तित एवं पुनः बनाये जाते हैं।

सम्प्रेषण प्रक्रिया और मनोवृत्ति / नजरिया / दृष्टिकोण 

प्रत्येक संचार प्रक्रिया में संचारक (Communicator) एक मुख्य घटक होता है संचारक का किसी विषय विशेष पर एक निश्चित विचार होता है। इसी विचार को वह अन्य लोगों को अपनाने के लिए अभिप्रेरित करता है। इस कार्य को सम्पादित करने के लिए वह एक पूर्व-निर्धारित संचार प्रक्रिया का अनुसरण करता है। यह प्रक्रिया अन्य लोगों को अपने संचारक के विचारों के अनुरूप परिवर्तित होने के लिए प्रेरित करती है। इस सम्पूर्ण संचार प्रक्रिया में मुख्य तत्व निम्न होते हैं-

(i) स्त्रोत, (ii) सम्प्रेषण, व (iii) वातावरण व परिस्थिति ।

कई बार यह भी सम्भव है कि सम्प्रेषण, श्रोता तक अपने मौलिक रूप में नहीं पहुँच पाता। इसका मुख्य कारण संचार पंक्ति (Line of Communication) की अनुपस्थिति है।

उदाहरणार्थ, भारत के 80 प्रतिशत व्यक्ति फास्ट फूड (Fast Food) से अपरिचित है।

यदि एक बार किसी वस्तु विशेष के सम्बन्ध में जो मनोवृत्ति विकसित हो चुकी है तो वह उस वस्तु की मानसिक प्रस्तुति कही जाती है जैसे- अधिकांश व्यक्ति वनस्पति घी को डालडा के नाम से सम्बोधित करते हैं।

व्यक्तिगत सकारात्मक मनोवृत्ति / नजरिया / दृष्टिकोण का विकास 

एक व्यक्तिगत सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास प्रवर्तक के माध्यम से विकसित होता है। प्रवर्तक से अभिप्राय "सम्प्रेषण के द्वारा दृष्टिकोण का निर्माण, उसमें परिवर्तन तथा उसका पुनर्स्थापन या पुनर्निर्माण से है।" (Persuasion means the process of forming, inforcing or changing attitudes by communication.) यद्यपि यह सम्पूर्ण प्रक्रिया स्वयं संचालित नहीं होती। एक सम्प्रेषणग्राही, सम्प्रेषकों को कितनी गम्भीरता से ग्रहण कर रहा है यह सम्प्रेषण की सफलता व असफलता पर निर्भर करता है। एक व्यक्ति को सूचना उपलब्ध कराना अत्यन्त आसान कार्य है, परन्तु उस व्यक्ति को सूचना के सम्बन्ध में विचार करने या कार्य करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। एक व्यक्ति की सूचनाओं के सम्बन्ध में प्रतिक्रिया के आधार पर प्रवर्तक की प्रभावशीलता को निश्चित किया जाता है। यद्यपि प्रवर्तक निम्न दो प्रकार के हो सकते हैं-

(1) बाह्य प्रवर्तक (2) व्यवस्थित प्रवर्तक।

(1) बाह्य प्रवर्तक (External Persuasion)

बाह्य प्रवर्तक से अभिप्राय एक व्यक्ति के अपने दृष्टिकोण को बाह्य प्रभावों के आधार पर परिवर्तित करने से है। उदाहरण के लिए, श्रोता प्रायः लम्बे सन्देश या हांथों पर आधारित सन्देश देने वाले विशेषज्ञों पर अधिक विश्वास करते हैं।

(2) व्यवस्थित प्रवर्तक (Systematic Persuasion )

व्यवस्थित प्रवर्तक से अभिप्राय एक व्यक्ति को अपने दृष्टिकोण पर अधिकतम ध्यान, तर्क, शक्ति, गुणवत्ता व वार्तालाप की प्रकृति के आधार पर देने से है। श्रोता सन्देश को सुनता है, विषय-सूची को समझता है व अनुकूल प्रतिक्रिया देता है तो यह कहा जा सकता है कि सन्देश, प्रवर्तक है। इन प्रभावपूर्ण सन्देशों के द्वारा परिवर्तन आता है, वह अधिक समय तक स्थायी होता है, जबकि बाह्य प्रवर्तक से आने वाला परिवर्तन कम स्थायी होता है।

प्रवर्तक सम्प्रेषण प्रक्रिया

(1) सन्देश प्राप्ति (Receiving Message)

संचार में तुरन्त आकर्षण का गुण होना आवश्यक है अर्थात् संचार प्राप्तकर्ता का ध्यान सन्देश को सुनने व देखने के लिए विवश करें।

(2) सन्देश ग्रहण (Comprehending Message)

संचार प्रक्रिया का प्रथम कार्य ध्यान आकर्षण करना होता है। ध्यानाकर्षण से अभिप्राय यह नहीं कि हम सन्देश को पूर्ण रूप से समझ चुके हैं। संचार को समझने के लिए सन्देश को सरल रूप में प्रस्तुत करना चाहिए, क्योंकि कई बार जो सूचना व्यक्ति को प्रभावित करने के लिए उपलब्ध करायी जाती है वह अधिकांशतः उसकी समझ से परे होती है। अतः हम उसे समझने में सक्षम होते है। अतः आवश्यक है कि सन्देश सरल रूप में प्रस्तुत किया जाये।

(3) सन्देश प्रतिक्रिया (Reaction Message )

एक संचार प्रक्रिया में व्यक्ति केवल सूचनाओं को एकत्रित नहीं करता अपितु उसका उत्तर भी देता है जिसे प्रतिपुष्टि कहा जाता है। यह प्रतिपुष्टि अनुकूल व प्रतिकूल हो सकती है। एक सम्प्रेषण प्रक्रिया सफल तब मानी जाती है जब व्यक्ति उसे सुनने के साथ-साथ उस पर ध्यान भी दे। एक व्यक्ति सन्देश में निहित निर्देश को स्वीकृत तथा अस्वीकृत भी करता है। स्वीकृति/अस्वीकृति की यह प्रक्रिया हो विस्तार का सृजन करती है। जब प्रतिपुष्टि व्यवस्थित होती है तो संचार को विषय सामग्री के आधार पर विस्तार का सृजन किया जाता है।

(4) सन्देश स्वीकारना (Accepting Message )

एक सुव्यवस्थित सन्देश स्वीकृत विस्तार प्राप्ति के उपरान्त ही एक प्रवर्तक सन्देश का स्वरूप ग्रहण करता है। यदि सन्देश विपरीत प्रतिक्रिया प्राप्त करता है तो वह एक प्रवर्तक सन्देश नहीं कहा जाता। एक सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया में श्रोता की, सन्देश के प्रति प्रतिक्रिया, सन्देश की विषय-वस्तु से अधिक महत्व रखती है।


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