अनुवर्ती सेवा,निर्देशन कार्यक्रम का एक प्रमुख अंग है। कुछ शिक्षाशास्त्री इसे अनुसन्धान व मूल्यांकन सेवा का अंग मानते हैं। यह ठीक है कि अनुवर्ती सेवा विद्यालय के निर्देशन कार्यक्रम को प्रभावशाली बनाने में अत्यधिक सहयोग प्रदान करती है किन्तु इसको मूल्याकन सेवा का अंग मानना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है।
अनुवर्ती सेवा के उद्देश्य
उपर्युक्त विवरण से जैसा कि स्पष्ट है, अनुवर्ती सेवा के मुख्य उद्देश्य छात्रों के व्यक्तिगत समायोजन तथा आनन्दप्रद व्यावसायिक अनुभवों के अर्जन में सहायता प्रदान करना है किन्तु यदि अनुवर्ती सेवा के उद्देश्यों को गहन चिन्तन के आधार पर निश्चित किया जाये तो निम्नलिखित उद्देश्य निष्कर्ष रूप में उपलब्ध होते हैं-
1. विभिन्न कक्षाओं, पाठ्य विषयों एवं पाठ्य सहगामी क्रियाओं में छात्रों की प्रगति एवं स्तर निश्चित करना।
2. सूचनाएं प्राप्त करना जिनका उपयोग ऐसे छात्रों की सहायता करने में किया जा सकता है जो भविष्य के बारे में योजना का निर्माण करते हैं।
3. कुछ छात्र अतिरिक्त समय में किसी जीविका में नियुक्ति प्राप्त कर लेते हैं। अनुवर्ती सेवा का यह भी उद्देश्य है कि इस बात का पता लगाया जाये कि छात्र उस जीविका में सन्तोषप्रद ढंग से कार्यरत है या नहीं।
4. विद्यालय त्यागने के बाद किसी जीविका में प्रवेश प्राप्त करने वाले छात्रों के जीविका स्तर एवं प्रगति को निश्चित करना। यदि कुछ वर्षों तक छात्रों का अनुगमन किया जाये तो छात्रों को उनके व्यावसायिक लक्ष्यों के सम्भावित परिवर्तन और सुधार के लिये सुझाव दिये जा सकते हैं।
5. इस सेवा का एक उद्देश्य उन छात्रों की प्रगति का पता लगाना भी है जो कॉलेज या व्यावसायिक प्रशिक्षण में अध्ययन करते हैं। इनसे प्राप्त सूचनाओं के आधार पर निर्देशन कार्यक्रम की सफलता का मूल्यांकन किया जा सकता है।
6. अनुवर्ती अध्ययन से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर स्कूल कार्यक्रम की कमियों को ज्ञान किया जा सकता है।
7. अनुवर्ती सेवा द्वारा शिक्षक पता लगा सकते हैं कि शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में उनको कितनी सफलता उपलब्ध हुई है।
8. यह विद्यालय बीच में ही छोड़ने वाले छात्रों का और छोड़ने के कारणों का पता लगाने में सहायक है। इससे अपव्यय को रोका जा सकता है।
9. समाज की तात्कालिक आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम में सुधार करने में यह सहायक है।
10. छात्रों की व्यावसायिक रुचियों में परिवर्तन का पता लगाने में यह सेवा सहायक है।
11. छात्रों के लिये समाज में उपलब्ध कृत्य अवसरों का पता लगाने तथा इनके लिये छात्रों को तैयार करने में अनुवर्ती सेवा सहायता करती है।
अनुवर्ती अध्ययन प्रारम्भ करने से पूर्व की प्रक्रिया
रौबर, स्मिथ और इरिक्सन ने अनुवर्ती अध्ययन के संगठन की प्रक्रिया आरम्भ करने से पूर्व परामर्शदाता तथा निर्देशन समिति में पुनरावलोकन के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये हैं-
1. तत्परता
अनुवर्ती अध्ययन किसी एक व्यक्ति पर नहीं छोड़ना चाहिये। यह देखा गया है कि सामान्यतया प्रधानाध्यापक एवं अन्य अध्यापकगण इस कार्य के प्रति उदासीन दृष्टिकोण रखते हैं। इस सेवा को सफल बनाने के लिये आवश्यक है कि सभी में अनुवर्ती अध्ययन के लिये तत्परता पैदा की जाये। इस अध्ययन सेवा से प्रयोजन एवं मूल्यों से सहयोगियों को परिचित करना तत्परता उत्पन्न करने के लिये अति आवश्यक है।
2. नेतृत्व
अनुवर्ती अध्ययन में रुचि रखने वाले सहयोगियों की एक समिति बनानी चाहिये। इस समिति का नेतृत्व भार परामर्शदाता पर डालना चाहिये क्योंकि वह इस क्षेत्र का तकनीकी व्यक्ति होता है।
3. नियोजन प्रक्रिया की जटिलता-
अनुवर्ती अध्ययन की उपयोगिता को प्रभावित करने वाले कारकों की जटिलता पर समिति तथा उसके प्रधान को विचार करना चाहिये। ये कारक जैसे प्रयोजन विधि, कर्मचारी एवं धन आदि है। ये कारक एक-दूसरे पर ऐसे आधारित हैं कि समिति को इन पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिये। क्योंकि प्रभावशाली अनुवर्ती अध्ययन की प्रारम्भिक आवश्यकताएँ स्पष्ट लक्ष्य, भली-भाँति सोची हुई विधि, पर्याप्त कर्मचारी और पर्याप्त धन है।
4. रीतियाँ
भूतपूर्व छात्रों के साथ सम्पर्क स्थापित करने की रीतियाँ ऐसी होनी चाहिये कि अधिक-से-अधिक संख्या में प्रत्युत्तर प्राप्त हो सकें। कुछ दोष-पूर्ण विधियों निम्नलिखित हैं जिनसे प्रत्युत्तर बहुत कम प्राप्त होते हैं-
(अ) लम्बी प्रश्नावली.
(ब) ऐसे प्रश्न जो भूतपूर्व छात्रों से सम्बन्धित नहीं होते हैं,
(स) ऐसे छात्रों से सम्पर्क न स्थापित करना जो प्रश्नावली वापस नहीं लौटाते.
(द) प्रश्नावली के माध्यम से अधिकांश छात्रों से सम्पर्क करने की भावना ।
5. अनुवर्ती क्रिया का आलेख
अनुवर्ती अध्ययन का निर्देशन करने वाले व्यक्ति के लिये यह सीखने की परिस्थिति होती है। इस कार्य को करते हुये सीखे जाने वाले नवीन अनुभव लिखने चाहिये ताकि भविष्य में इसके आधार पर इस सेवा में सुधार किये जा सके।
6. अनुवर्ती अध्ययन की निरन्तरता
अनुवर्ती सेवा को प्रभावशाली बनाने के लिये आवश्यक है कि अनुवर्ती अध्ययन निरन्तर चलते रहे। भूतपूर्व छात्रों का एक बार ही अध्ययन करना पर्याप्त नहीं है बल्कि प्रति वर्ष यह अध्ययन होना चाहिये जिससे छात्रों की प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति ज्ञात हो सके।
अनुवर्ती सेवा की विशेषताएँ
1. अनुवर्ती सेवा एक अनवरत प्रक्रिया है।
2. निर्देशन कार्यकर्ताओं को अपने निर्देशन कार्य का मूल्यांकन करने में सहायता करती है।।
3. यह विद्यालय और छात्रों के उद्देश्यों की पूर्ति में नियोजित और संगठित रूप में कार्य करती है।
4. विद्यालय के सभी छात्रों को इस सेवा में सम्मिलित किया जाता है।
5. सही चयन में परामर्श की उपादेयता का मूल्यांकन करती है।
6. छात्रों का नवीन वातावरण में समायोजन स्थापित करने में सहायक है।
7. इससे निर्देशन, परामर्श, मापन तथा शोध कार्यों के नियोजन में पृष्ठपोषण मिलता है।
8. इससे अनेक परीक्षणों की वैधता ज्ञात होती है।
अनुवर्ती अध्ययन के प्रकार
अनुवर्ती सेवा के उद्देश्यों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यह सेवा विद्यालय में अध्ययन करने वाले छात्रों के साथ-साथ उन छात्रों के लिये भी आवश्यक है जो स्नातक होने से पूर्व विद्यालय त्याग देते हैं या किसी जीविका में प्रवेश प्राप्त कर लेते हैं। छात्रों के इन विभिन्न वर्गों के अनुसार अनुवर्ती अध्ययन के निम्न प्रकार हो सकते हैं-
1. विद्यालय छोड़ने वाले छात्रों की अनुवर्ती सेवाऐं
विद्यालय छोड़ने वाले छात्रों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-एक तो ऐसे छात्र जो स्नातक होने से पूर्व विद्यालय छोड़ देते हैं और दूसरे वे जो अध्ययन की पूर्ण अवधि समाप्त करके विद्यालय छोड़ते हैं। दोनों श्रेणियों के छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन शिक्षा का असंदिग्ध अंग है क्योंकि इस समीक्षा के आधार पर ही विद्यालय अपने पूर्व प्रयत्नों का मूल्यांकन कर पाता है और तात्कालिक छात्रों की योग्यताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली एवं पाठन सामग्री के सम्बन्ध में नियोजन करने में सफल होता है।
भारत में ऐसे छात्रों की संख्या अधिक है जो वैयक्तिक, आर्थिक एवं पारिवारिक कारणों से अनिवार्य शिक्षा की अवधि पूरी कर लेने के पश्चात् विद्यालय छोड़ देते हैं। वे कॉलेज शिक्षा प्राप्त करने की महत्त्वाकांक्षा रखते हुये भी किसी महाविद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाते हैं। ऐसे छात्रों का अध्ययन करना अति आवश्यक है ताकि परामर्शदाता उन सम्भावनाओं का पता लगा सके जिनसे छात्र अपनी शिक्षा जारी रख सकें। ऐसे छात्रों के लिये परामर्शदाता को बहिर्गमन साक्षात्कार की व्यवस्था करनी चाहिये। ऐसा करके वह छात्रों को अपने निर्णयों पर पुनर्विचार के लिये प्रेरित कर सकता है तथा उनकी समस्याओं के नये साधन दे सकता है।
भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन से विद्यालय को लाभ होने के साथ निर्देशन सेवाओं को भी लाभ होता है। निर्देशन कार्यक्रम इस अध्ययन के आधार पर अपनी कमियों एवं त्रुटियों का ज्ञान करके उनके परिष्कार का प्रयत्न कर सकता है। विद्यालय को लाभ होने के साथ ही भूतपूर्व छात्रों को ही इससे लाभ होता है। वे विद्यालय के निर्देशन कार्यक्रम के सम्पर्क में रहते हैं और किसी समस्या के उत्पन्न होने पर परामर्शदाता से उचित परामर्श प्राप्त कर सकते हैं।
2. विद्यालय में अध्ययन कर रहे छात्रों के लिये अनुवर्ती सेवा
एक कक्षा से दूसरी कक्षा में या एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय में जाने वाले छात्रों का निरन्तर अनुवर्ती अध्ययन करने पर विशेष बल देना चाहिये क्योंकि छात्रों को जो शैक्षिक, वैयक्तिक या व्यावसायिक निर्देशन दिया जाता है उसके बारे मे यह पता लगाना आवश्यक है कि वह छात्रों को उपयोगी सिद्ध हुआ या नहीं। अनुवर्ती सेवा प्रदान करते समय परामर्शदाता को निम्नलिखित पर अपनी दृष्टि रखनी चाहिये-
1. वर्तमान विद्यालय में नवीनीकरण की क्रियाएँ नवीन विद्यालय में अधिक-से-अधिक समायोजित होने में कहाँ तक छात्रों को तैयार करती है।
2. छात्र अपनी योग्यता स्तर के अनुसार किस सीमा तक वाचन करते हैं ?
3. अपनी वर्तमान परिस्थिति में छात्र अपने समायोजन में किस सीमा तक सफल हो सके है ?
4. छात्र किस सीमा तक परामर्श सेवा का उपयोग करते हैं ?
5. विद्यालय छोड़ने के छात्र से सम्बन्धित क्या कारण है ?
6. सामूहिक विधियाँ किस सीमा तक अपने लक्ष्यों की उपलब्धि में सफल हो रही है ?
7. उपबोध्य ने परामर्शदाता द्वारा दिये गये सुझावों पर कहाँ तक अमल किया है ?
इन छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन के लिये भी वही विधि प्रयोग में लानी चाहिये। जिसका वर्णन भूतपूर्व छात्रों की अनुवर्ती सेवा में किया गया है। यह आवश्यक है कि समिति के समान सदस्यों में उत्साह हो और वे सहयोग की भावना से ओत-प्रोत हो।
3. परामर्श और अन्य निर्देशन सेवाओं के लिये अनुवर्ती विधि
परामर्श प्रक्रिया की प्रभावशीलता । का मापन करने के लिये अनुवर्ती विधि की आवश्यकता पड़ती है। छात्र परामर्शदाता की सहायता से अपने शैक्षिक, व्यावसायिक या समायोजन लक्ष्य निर्धारित करते हैं। किन्तु जीवन गतिशील है और छात्र अध्ययन करते समय अनेक अनुभव अर्जित करते हैं। परिणामस्वरूप अनेक नवीन चल (Variables) छात्रों द्वारा निश्चित लक्ष्यों की उपलब्धि को प्रभावित कर सकते हैं। अतः छात्रों को अपने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है या उन लक्ष्यों की प्राप्ति की विधि में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है। छात्रों की इन आवश्यकताओं का ज्ञान अनुवर्ती अध्ययन द्वारा ही सम्भव है।
अनुवर्ती अध्ययन के लिये परामर्शदाता को संयोग पर निर्भर नहीं रहना चाहिये। बड़े विद्यालयों में परामर्शदाता को एक नोट बुक रखनी चाहिये जिसमें छात्रों से सम्पर्क स्थापित करने की तिथि अंकित की जा सके। जब कोई छात्र परामर्शदाता से साक्षात्कार निश्चित दिनांक को न कर सके तो परामर्शदाता को कोई अन्य तिथि अनुवर्ती अध्ययन के लिये निश्चित करके अपनी नोट बुक में लिख लेनी चाहिये। दूसरी समस्या व्यवस्थित अनुवर्ती अध्ययन करने की विधि से सम्बन्धित है। इसके लिये परामर्शदाता छात्रों के साथ सम्पर्क स्थापित कर सकता है या उनका अवलोकन कर सकता है। छात्र को पढ़ाने वाले अध्यापकों से सम्पर्क बना सकता है या अध्यापकों से छात्र की प्रगति रिपोर्ट लिखित रूप से प्राप्त कर सकता है।