अनौपचारिक सम्प्रेषण
कोई भी संगठन सम्प्रेषण के मात्र औपचारिक माध्यम का प्रयोग ही नहीं करता, बल्कि इस औपचारिक साथ-साथ उतना ही प्रभावी माध्यम का प्रयोग करता है जिसे अनौपचारिक सम्प्रेषण कहते हैं। यद्दपि इसका प्रचार अवैधानिक तरीके से किया जाता है। इसे अफवाह (Grapevine) की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि यह किसी भी दिशा में प्रसारित हो सकती है। कई संगठन इसे औपचारिक सम्प्रेषण के विकल्प के रूप में भी उपयोग करते हैं। इसके कोई निश्चित नियम, दिशा-निर्देश नहीं होते इसलिए यह किसी भी दिशा में क्षैतिज ऊर्ध्वाधर या आरेखी तेजी से प्रसारित होते हैं।
इसके बारे में कई विद्वानों का मत है कि सम्प्रेषण का यह अनौपचारिक माध्यम किसी संगठन के लिए। सामान्यतः अनुकूल परिणाम देता है। यह अत्यन्त ही तीव्र गति से प्रसारित होता है। इसे अपुष्ट सम्प्रेषण (Grapevine) भी कहा जाता है।
अनौपचारिक सम्प्रेषण के प्रकार
यह प्रमुख रूप से चार प्रकार का होता है-
(i) एकल आधार (Single Stand),
(ii) गपशप (Gossip),
(iii) प्रायिकता (Probability),
(iv) गुच्छा अथवा समूह (Cluster) |
अनौपचारिक सम्प्रेषण के उद्देश्य
1. इस प्रकार के सम्प्रेषण से संस्था के भिन्न-भिन्न स्तरों के बीच समन्वय स्थापित होता है
2. इस प्रकार के सम्प्रेषण में अधीनस्थ अपने उच्च अधिकारियों को रचनात्मक सुझावों से अवगत कराते हैं।।
3. अनौपचारिक सम्प्रेषण द्वारा नवीन नीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है।
4. अनौपचारिक सम्प्रेषण में अधीनस्थ प्रतिवेदन तथा कठिनाइयों के विषय में उच्च प्रबन्ध को जानकारी देते हैं तथा उन समस्याओं का समाधान एवं निवारण किया जाता है।
5. उच्च प्रबन्ध को अधीनस्थ कर्मचारियों की संगठनात्मक नीतियों के प्रति विचार का आसानी से पता लग जाता है।
अनौपचारिक सम्प्रेषण के माध्यम
(1) मौखिक (Oral)-
गोष्ठियाँ, टेलीफोन, आमने-सामने, साक्षात्कार इत्यादि ।
(2) लिखित (Written)-
कर्मचारी संघों के प्रकाशन, सुझाव, व्यक्तिगत पत्र, सर्वेक्षण, शिकायतें, प्रतिवेदन इत्यादि।
अनौपचारिक सम्प्रेषण के लाभ
अनौपचारिक सम्प्रेषण के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
1. औपचारिक सम्प्रेषण की अपेक्षा अनौपचारिक सम्प्रेषण अत्यन्त तेजी से संचारित होता या फैलता है। इसके कारण कुछ औपचारिक सन्देशों की पुष्टि व प्रसारण हो जाता है।
2. अनौपचारिक सम्प्रेषण बहुआयामी होता है। इस कारण से वह किसी भी दिशा व कोण से कभी भी प्रसारित हो सकता है। अतः बड़ी आसानी व बचत द्वारा इसे संगठन के बड़े समूह तक फैलाया जा सकता है।
3. अनौपचारिक सम्प्रेषण संगठन के सामाजिक आयाम को मजबूती प्रदान करता है जिससे कर्मचारियों में संगठन के भीतर व बाहर सामाजिक मेलजोल बढ़ता है।
4. अनौपचारिक सम्प्रेषण संगठन के कर्मचारियों के मध्य प्रतिकूल संवेदनाओं, बातचीत व बैठकों के द्वारा व्यक्तिगत परेशानियों को दूर करके भावोन्नयन में सहायक होता है।
5. अनौपचारिक सम्प्रेषण कभी-कभी कार्यालयीन माध्यमों से सम्प्रेषित होने से संगठन के वातावरण को कम बोझिल व कार्य में लगने वाले समय की बचत करता है।
6. अनौपचारिक सम्प्रेषण, औपचारिक सम्प्रेषण का पूरक होता है। कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें औपचारिक सम्प्रेषण द्वारा प्रसारित करना कठिन होता है, जैसे, कर्मचारियों की संवेदनाएँ चाहे व्यक्तिगत हों या सामान्य, इस सम्प्रेषण से प्राप्त प्रतिपुष्टि को प्रबन्धन अपनी नीति/क्रियाओं के निर्धारण में प्रयोग करता है।
अनौपचारिक सम्प्रेषण की हानियाँ
अनौपचारिक सम्प्रेषण की प्रमुख हानियाँ निम्नलिखित हैं-
1. अनौपचारिक सम्प्रेषण से अविश्वास, अफवाह, गलत व बनावटी कहानियों को बढ़ावा मिलता है, अतः यथार्थता की कमी से ये कर्मचारियों व अधिकारियों को भ्रमित व दिग्भ्रमित करता है।
2. इस सम्प्रेषण में सन्देश का विरूपीकरण कर दिया जाता है, क्योंकि प्राप्त सन्देश को प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी समझ व ज्ञान से कुछ घटा-बढ़ाकर प्रस्तुत करता है। अतः सन्देश की मौलिकता विभिन्न विचारों के कारण लगभग खत्म हो जाती है।
3. अफवाह, विरूपित सन्देश कर्मचारियों के मध्य भ्रम को बढ़ाते हैं जिससे उनके सम्बन्धों पर भी प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी अधिकारी गलत प्रतिपुष्टि से प्रभावित होकर निर्णय ले लेते हैं तो कभी कर्मचारी इन अफवाहों के आधार पर अपने अधिकारियों से प्रतिकूल व्यवहार करते हैं। यह बात कभी-कभी संगठन के लिए अत्यन्त विस्फोटक स्थिति को जन्म देती है।
4. अनौपचारिक सम्प्रेषण के सम्बन्ध में किसी को भी जिम्मेदार नहीं बताया जा सकता, जबकि औपचारिक सम्प्रेषण में विरूपित सन्देशों व अन्य गलत तथ्यों के सम्बन्ध में सम्बन्धित व्यक्ति हो जिम्मेदार होता है।
अनौपचारिक सम्प्रेषण की सीमाएँ
अनौपचारिक सम्प्रेषण की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1. अनौपचारिक सम्प्रेषण में भिन्न-भिन्न स्तरों पर निहित कारणों से सन्देशों का वास्तविक रूप जान-बूझकर बिगाड़ा जा सकता है।
2. इस प्रकार के सम्प्रेषण में अधीनस्थ कर्मचारी अपने निकटतम वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दिये गये। आदेशों की अवहेलना कर सकते हैं तथा उच्च प्रबन्ध अथवा सर्वोच्च अधिकारियों से प्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं जिसके कारण संस्था के आपसी सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं।
3.इस सम्प्रेषण में अधीनस्थ अपनी शिकायतों तथा सुझावों का सम्प्रेषण निडरतापूर्वक नहीं कर पाता। क्योंकि उन्हें इस बात का डर रहता है कि उक्त सम्प्रेषण से सम्बन्धित अधिकारी यदि नाराज हो गये तो उनकी नौकरी छूट सकती है अथवा शोषण किया जा सकता है।
अनौपचारिक सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने वाले तत्व
अनौपचारिक सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने वाले तत्व निम्नलिखित हैं-
1. उच्चाधिकारियों को चाहिए कि वे अनौपचारिक सम्प्रेषण में प्राप्त सन्देश तथा सूचना पर तत्काल विश्लेषणात्मक निर्णय लें।
2. उच्चाधिकारियों द्वारा रचनात्मक कार्यों की तत्काल प्रशंसा करनी चाहिए।
3. इस प्रकार के सम्प्रेषण में अधीनस्थों की 'अधिकारियों के भय' की भावना को दूर किया जाना चाहिए।
4. संगठन संरचना के अन्तर्गत अनौपचारिक सम्प्रेषण के अलग-अलग अवरोधों को समाप्त किया जाना चाहिए।
5. उच्चाधिकारियों को चाहिए कि वे उदारतापूर्वक अधीनस्थों को अनौपचारिक सम्प्रेषण के लिए प्रेरित करें।
अंगूरीलता या अपुष्ट सम्प्रेषण
अनौपचारिक सम्प्रेषण का ही दूसरा रूप अंगूरीलता अथवा अपुष्ट सम्प्रेषण है। सामाजिक मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्य की स्वाभाविक प्रकृति सामाजिक होती है। सामान्यतः ऐसा देखा जाता है कि मनुष्य बातचीत के अवसरों को खोना नहीं चाहता। जब किसी संस्था तथा व्यवसाय में कर्मचारी साथ-साथ कार्य करते हैं तो वह धीरे-धीरे आपस में मिलकर अनौपचारिक तरीके से व्यवसाय से सम्बन्धित सन्देशों तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। यह सम्प्रेषण कई स्थानों पर किया जाता है
जैसे-क्लबों तथा पार्टियों में, सार्वजनिक तथा सामाजिक कार्यक्रमों में और अवकाश अथवा भोजनावकाश में इस प्रकार के सम्प्रेषण में एक ओर तो तथ्यपूर्ण तथा सार्थक विषयों पर वार्तालाप होता है जबकि दूसरी ओर अफवाहें तथा गपशप भी अत्यधिक मात्रा में चलती हैं।
अंगूरीलता सम्प्रेषण की विशेषताएँ
अंगूरीलता सम्प्रेषण की प्रमुख नेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. अपुष्ट सम्प्रेषण अत्यधिक प्राचन प्रणाली है तथा वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में इसका अत्यधिक महत्व है।
2. अपुष्ट सम्प्रेषण आड़ी-तिरछी, क्षैतिज तथा लम्बवत् किसी भी दशा में हो सकता है।
3. अपुष्ट सम्प्रेषण की कोई स्थायी रूपरेखा नहीं होती।
4. अपुष्ट सम्प्रेषण में सुनी सुनायी बातें प्रसारित होती हैं।
5. अधिक व्यक्तियों के बीच से सन्देश गुजरने के कारण सन्देश अधिक विकृत हो जाता है।
6. अपुष्ट सम्प्रेषण में मूल्यवान, व्यर्थ, सामान्य तथा गोपनीय सभी प्रकार की सूचनाएँ सम्प्रेषित होती हैं।
अंगूरीलता सम्प्रेषण की उच्च सक्रियता के कारण
अंगूरीलता सम्प्रेषण की उच्च सक्रियता के प्रमुख कारणों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. अपुष्ट सम्प्रेषण उस समय अधिक सक्रिय होता है जब संगठन में काम करने वाले कर्मचारियों में भावुकता, अन्धविश्वास, अशिक्षा तथा कार्य संस्कृति का अभाव होता है।
2. जब संरचना जटिल होती है तो समान मानसिकता वाले अधीनस्थ अनौपचारिक समूह का निर्माण करते हैं। इस प्रकार विभिन्न समूह में समान तथा असमान स्तर वाले बहुत से अधीनस्थ भी सम्मिलित हो जाते। हैं। उक्त विभिन्न समूह एक-दूसरे से बिना किसी कारण प्रतिस्पर्धा बनाये रखते हैं तथा यह प्रयत्न करते हैं कि किस प्रकार संरचना के निर्णयों को प्रभावित किया जाये।
3. जब कोई व्यावसायिक संगठन किसी समस्या से गुजरता है तो अनिश्चितता तथा दिशा बोध के न होने के कारण जिन कर्मचारियों की समान मानसिकता होती है, उनके समूहों का निर्माण हो जाता है, जिसे अपुष्ट सम्प्रेषण अथवा अंगूरीलता सम्प्रेषण कहा जाता है।
4. अपुष्ट सम्प्रेषण उस स्थिति में अधिक सक्रिय तथा प्रभावी हो जाता है जब संगठन के उच्चाधिकारी अपने पक्ष के व्यक्तियों का अनौपचारिक समूह (कोटारी) बना लेते हैं।
अपुष्ट सम्प्रेषण अथवा अंगूरीलता सम्प्रेषण के प्रकार
कीथ डेविस (Keith Davis) ने अपुष्ट सम्प्रेषण श्रृंखला को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा है-
1. एकाकी धारा श्रृंखला (Single Stand Chain)-
इसमें एक तीर की तरह एक ही दिशा में सम्प्रेषण होता है उदाहरण के लिए A कोई सन्देश B से कहता है, B इसी सन्देश को C से कहता है तथा इसी तरह यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक सम्प्रेषक अपनी इच्छानुसार सन्देश में कुछ न कुछ मिलावट स्वाभाविक रूप से अवश्य करता है।
2. गपशप श्रृंखला (Gossip Chain) -
गपशप श्रृंखला एक गोल पहिये अथवा चक्र की तरह होती है। इसमें सम्प्रेषक की भूमिका धुरी पर या केन्द्र बिन्दु पर स्थित होती है। सम्प्रेषक अपना सम्प्रेषण गपशप द्वारा एक साथ बहुत से व्यक्तियों से करता है जो चक्र के किनारों (Rim) पर स्थित होते हैं।
3. गुच्छा श्रृंखला (Cluster Chain) -
जिस प्रकार अंगूर के गुच्छे में अंगूर आपस में एक-दूसरे से सम्बद्ध होते हुए एक समूह के रूप में दिखायी देते हैं, ठीक उसी प्रकार इस सम्प्रेषण श्रृंखला में भी सम्प्रेषक अन्य व्यक्तियों को सम्प्रेषण करता है, जिनका सम्बन्ध उससे होता है या जो उस पर विश्वास करते हैं। उपरोक्त श्रोता द्वारा उसे आगे सम्प्रेषित किया जाता है। नेटवर्किंग की तरह गुच्छा श्रृंखला द्वारा सतत् रूप में सम्प्रेषण को आगे फैलाया जाता है।
4. सम्भावना श्रृंखला (Probability Chain)-
इसे Random Chain भी कहा जाता है। इसमें अकस्मात हो सम्प्रेषण द्वारा किसी रोचक सन्देश को व्यक्त करते हैं एवं उसके आगे भी अकस्मात सम्प्रेषण द्वारा फैलाव होता रहता है।
अंगूरीलता या अपुष्ट सम्प्रेषण के गुण
अंगूरीलता सम्प्रेषण के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-
1. तीव्र प्रसारण (Speedy Transmission )-
अपुष्ट सम्प्रेषण अत्यन्त तीव्रता से प्रसारित होता है। सभी जानते हैं कि अफवाहें जंगल में आग की तरह फैलती हैं। कर्मचारियों की यह प्रवृत्ति होती है कि जब कोई एक बात जिसे गोपनीय कहा जाता है, उसके प्रति वह अत्यन्त जिज्ञासु होता है और वह इसे प्रथमतः अपने सबसे निकटतम मित्र को बतलाता है और वह मित्र अन्य को इस प्रकार कुछ ही क्षणों में वह बात चारों तरफ फैल जातो है। एक प्रबन्धक सम्प्रेषण को सुनियोजित तरीके से "Just between you and me" रिमार्क द्वारा सम्प्रेषित करता है।
2. प्रतिपुष्टि मूल्य (Feedback Value)-
अपुष्ट सम्प्रेषण की सहायता से प्रबन्धकों को अपने संगठन की नीतियों, निर्णयों इत्यादि के सम्बन्ध में प्रतिपुष्टि प्राप्त होती रहती है। औपचारिक सम्प्रेषण की अपेक्ष अनौपचारिक सम्प्रेषण को सहायता से प्रतिपुष्टि अधिक तीव्रतापूर्वक प्राप्त होती है। अपुष्ट सम्प्रेषण से एक प्रबन्धक को अपने संगठन की दिशा के बारे में पता चलता है।
3. अन्य माध्यमों का सहयोगी (Helpful to other Mediums)-
अपुष्ट सम्प्रेषण सम्प्रेषण का पूरक अथवा समान्तर रूप है। अतः यह औपचारिक सम्प्रेषण के लिए सहयोगी का कार्य करता है।
4. संगठनात्मक शक्ति का विकास (Development of Organizational Power )-
अपुष सम्प्रेषण संगठन के कर्मचारियों को असीम मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि व शक्ति प्रदान करता है। यह उन्हें एक-दूसरे के करीब लाता है। यह एक संगठन को सम्पूर्णता को सामाजिक अस्तित्व के रूप में बनाये रखती है।
अंगूरीलता या अपुष्ट सम्प्रेषण के दोष
अंगूरीलता सम्प्रेषण के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
1. मौखिक रूप से प्रेषित अपुष्ट सन्देश सदैव गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया जाता और यह हमेशा भ्रमात्मक होता है, अतः इन पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।
2. अपुष्ट सम्प्रेषण सदैव सम्पूर्ण सन्देश को समाहित नहीं करता। कानाफूसी के रूप में सन्देश, सम्प्रेषणग्राही को सन्देश का समग्र चित्र या सन्देश देने में असमर्थ रहता है।
3. अपुष्ट सम्प्रेषण सन्देश को विरूपित कर देता है और इससे एक संगठन की छवि को क्षति पहुँचती है।
4. अपुष्ट सम्प्रेषण से संगठन की नीतियों, निष्कर्षो की गोपनीयता भंग होती है। संगठन की छवि के लिए भी हानिकारक है और प्रबन्धक की योजना को चौपट भी कर देती है।
अपुष्ट सम्प्रेषण के प्रभावी प्रयोग
अपुष्ट सम्प्रेषण विकृत व अपूर्ण सूचनाओं का प्रवाह भाग है जो संगठन में कई प्रकार की समस्याओं को जन्म देता है। इसके प्रभावी प्रयोग के लिए निम्न सावधानियाँ लेनी चाहिए-
1. एक प्रबन्धक को जहाँ तक सम्भव हो, खुली द्वार नीति का प्रयोग करना चाहिए। यह नीति उसके संगठन के लिए हितकारी होती है।
2. एक प्रबन्धक को यह स्वीकार करना चाहिए कि अपुष्ट सम्प्रेषण मानवीय संचार का एक हिस्सा है। उसे यह कोशिश करनी चाहिए कि संगठन के लिए हानिकारक अफवाहें रुकें। साथ ही साथ उसे अपुष्ट सम्प्रेषण की सत्यता को जानना व समझना चाहिए।
3. अपुष्ट सम्प्रेषण किसी नये उत्पाद को बाजार में लाने के लिए एक प्रभावी सम्प्रेषण यन्त्र की तरह प्रयोग किया जाना चाहिए क्योंकि इससे नये उत्पाद की सूचना तीव्र गति से चारों और प्रसारित होगी।
4. एक प्रबन्धक को संगठन के नेताओं के विश्वास को जीतकर अपने कर्मियों की नब्ज को पहचानना चाहिए, ताकि हानिकारक अफवाहें नेताओं के जरिए कर्मियों तक न पहुँचें ।
5. अपुष्ट सम्प्रेषण का प्रयोग केवल प्रतिपुष्टि के लिए किया जाना चाहिए। इसे सदैव एक यन्त्र के रूप में प्रयुक्त करना संगठन के लिए हानिकारक होगा।