प्रेम जब जीवन के भीतर, स्वयं के भीतर जला हुआ एक दीया बनता है - रिलेशनशिप नहीं, स्टेट ऑफ मांइड - जब किसी से प्रेम एक संबंध नहीं है, बल्कि मेरा प्रेम स्वभाव बनता है, तब, तब जीवन में प्रेम की घटना घटती है। तब प्रेम का असली सिक्का हाथ में आता है।
प्रेम परमात्मा तक ले जाने का द्वार है। लेकिन जिस प्रेम को हम जानते हैं, वह सिर्फ नरक तक ले जाने का द्वार बनता है। जिस प्रेम को हम जानते हैं, वह पागलखानों तक ले जाने का द्वार बनता है। जिस प्रेम को हम जानते हैं, वह कलह, द्वंद्, संघर्ष, हिंसा, क्रोध, घृणा, इन सबका द्वार बनता है। वह प्रेम झूठा है।
जिस प्रेम की मैं बात कर रहा हूं, वह प्रभु तक ले जाने का मार्ग बनता है, लेकिन वह प्रेम संबंध नहीं है। वह प्रेम स्वयं के चित्त की दशा है, उसका किसी से कोई नाता नहीं, आपसे नाता है। इस प्रेम के संबंध में थोड़ी बात समझ लेनी, और इस प्रेम को जगाने की दिशा में कुछ स्मरणीय बातें समझ लेनी जरूरी है।
पहली बात, जब तक आप प्रेम को एक संबंध समझते रहेंगे, एक रिलेशनशिप, तब तक आप असली प्रेम को उपलब्ध नहीं हो सकेंगे। वह बात ही गलत है। वह प्रेम की परिभाषा ही भ्रांत है।
जब तक मां सोचती है, बेटे से प्रेम, मित्र सोचता है मित्र से प्रेम, पत्नि सोचती है पति से प्रेम, भाई सोचता है बहिन से प्रेम, जब तक संबंध की भाषा में कोई प्रेम को सोचता है, तब तक उसके जीवन में प्रेम का जन्म नहीं हो सकता है।
संबंध की भाषा में नहीं, किससे प्रेम नहीं - मेरा प्रेमपूर्ण होना। मेरा प्रेमपूर्ण होना अकारण, असंबंधित, चौबीस घंटे मेरा प्रेमपूर्ण होना। किसी से बंध कर नहीं, किसी से जुड़ कर नहीं, मेरा अपने आप में प्रेमपूर्ण होना। यह प्रेम मेरा स्वभाव, मेरी श्वास बने। मेरी आत्मा बने लेकिन आज के समय में ऐसा बिलकुल भी नही है जो लोग जिस प्रेम को जानते हैं वो प्रेम हो ही नही सकता वो सिर्फ नरक का द्वार है जिसको लोग बड़े ही प्रेम के साथ स्वीकार करते है वास्तव में वो प्रेम नही है ,सिर्फ प्रेम नाम का पेंट है आजकल लोग सेक्स को ही प्रेम मानते है और जानते है तथा इससे ज्यादा कुछ नही जानते असल में जो असली प्रेम होता है वो परमात्मा तक ले जाने वाला होता है ,
जैसे मीरा का कृष्ण के प्रति प्रेम निश्छल,निष्कपट था |