लेखांकन का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, प्रकृति, आवश्यकता एवं महत्व

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लेखांकन का अर्थ 

लेखांकन का अर्थ वित्तीय प्रकृति के व्यवहारों को लेखा पुस्तकों में लिखने की  ऐसी विधि से है ,जिसके आधार पर उन व्यवहारों कि पहचान ,मापन एवं सम्प्रेषण उन व्यक्तियों को किया जा सके ,जो उसकी व्याख्या एवं संक्षिप्तीकरण कर उसके परिणाम जानना चाहते हैं |

लेखांकन की परिभाषा

स्मिथ एवं एशवर्न के अनुसार - "लेखांकन वित्तीय क्रियाओं के परिणामों के मापन तथा उन्हें व्यक्त करने का साधन है |"

फोके के अनुसार - "लेखा विधि वित्तीय भाषा है ! यह अरबी अंकों में उन क्रियाकलापों तथा मूल्यों को जो प्रतिदिन के व्यवसायिक व्यवहारों को प्रदर्शित करते हैं , लिपिबद्ध करने का साधन है |"

कार्टर के अनुसार - "लेखांकन, ऐसे समस्त व्यवसायिक व्यवहारों को जिनका परिणाम द्रव्य अथवा द्रव्य के मूल्य का हस्तांतरण है , लेखा पुस्तकों में सही ढंग से लिखने की कला एवं विज्ञान है | "

अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक अकौन्टन्स द्वारा नियुक्त परिभाषिक शब्दावली समिति के अनुसार - "लेखांकन एक कला है जिसमें वित्तीय लेंन- देनों एवं घटनाओं को प्रभावपूर्ण ढंग से मौद्रिक रूप में लिखने तथा   वर्गीकृत करने एवं संक्षिप्त करने का कार्य किया जाता है और उनके परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं | "

अमेरिकन एकाउंटिंग एसोसिएशन के अनुसार - "लेखांकन आर्थिक सूचनाओं को पहचानने ,मापने और संप्रेषित करने की प्रक्रिया है जिसके आधार पर सूचनाओं के उपयोगकर्ता तर्क युक्त निर्णय लेने में सक्षम होते हैं |"

उचित परिभाषा - उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि  "लेखांकन एक संस्था की वित्तीय प्रकृति की घटनाओं को जानने ,मापने एवं लिखने की ऐसी प्रक्रिया है ,जिसके आधार पर सम्बंधित सूचनाएं आंकड़े उनके उपयोगकर्ताओं तक संप्रेषित किये जा सके |"

यह भी पढ़ें- वित्तीय प्रबन्ध का अर्थ, परिभाषा, विशेषतायें, महत्व एवं क्षेत्र 

लेखांकन की विशेषताएँ 

लेखांकन की परिभाषाओं के अवलोकन से इसकी निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं-

 (1) लेखांकन व्यावसायिक सौदों के लिखने और वर्गीकृत करने की कला है।

(2) ये लेन-देन पूर्ण या आशिक रूप से वित्तीय प्रकृति के होते हैं। 

(3) सौदे मुद्रा में व्यक्त किये जाते हैं।

(4) यह सारांश लिखने, विश्लेषण और निर्वचन करने की कला है।

(5) विश्लेषण एवं निर्वचन को सूचना उन व्यक्तियों को दी जानी चाहिए जिन्हें इनके आधार पर निष्कर्ष या परिणाम निकालने है या निर्णय लेने हैं।

लेखांकन के उद्देश्य

लेखांकन के निम्नलिखित उद्देश्य है -

(1) व्यावसायिक लेन-देनों का नियमित एवं सुव्यवस्थित ढंग से पूर्ण लेखा करना 

लेखांकन का प्रथम उद्देश्य सभी व्यावसायिक लेन-देनों का पूर्ण एव व्यवस्थित रूप से लेखा करना है। सुव्यवस्थित ढंग से लेखा करने से भूल की सम्भावना नहीं रहती है और परिणाम शुद्ध प्राप्त होता है।

(2) शुद्ध लाभ-हानि का निर्धारण करना 

लेखांकन का दूसरा उद्देश्य एक निश्चित अवधि का लाभ-हानि ज्ञात करना है। लाभ-हानि ज्ञात करने के लिए व्यापारी लाभ-हानि खाता (Profit and Loss Account) या आय विवरणी (Income Statement) तैयार करता है।

(3) व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का ज्ञान करना 

लेखांकन का एक उद्देश्य संस्था की वित्तीय स्थिति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक स्थिति विवरण तैयार किया जाता है जिसमे बांयींओर पूँजी एवं दायित्वों (Capital and Liabilities) को दिखाया जाता है और दाई ओर सम्पत्तियों (Assets and Properties) को दिखाया जाता है। स्थिति विवरणों को आर्थिक चिट्ठा (Balance Sheet) कहा जाता है। यदि सम्पत्तियों से देवताएँ (पूँजी एवं दायित्व) कम रहती है तो व्यापार की स्थिति अच्छी मानी जाती है और यदि देयताएँ अधिक हो तो यह खराब आर्थिक स्थिति की सूचक होती है।

(4) आर्थिक निर्णयों के लिए सूचना प्रदान करना 

लेखांकन का एक कार्य वित्तीय प्रकृति वाली सूचनाएं प्रदान करना है जिससे प्रबन्धकों को निर्णय लेने में सुविधा हो. साथ ही सही निर्णय लिये जा सके। इसके लिए वैकल्पिक उपाय भी लेखाकर उपलब्ध कराता है।

(5) व्यवसाय में हित रखने वाले पक्षों को सूचनाएँ देना 

व्यवसाय में कई पक्षों के हित होते है, जैसे- स्वामी (Proprietor), कर्मचारी वर्ग (Employees), प्रबन्धक (Managers), लेनदार (Creditors), विनियोजक (Investors) आदि। व्यवसाय में हित रखने वाले विभिन्न पक्षों को उनसे सम्बन्धित सूचनाएं उपलब्ध कराना भी लेखांकन का एक उद्देश्य है।

(6) कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करना 

लेखांकन का एक उद्देश्य विभिन्न वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी है। लेखांकन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों के लिए रिटर्न दाखिल करने के लिए सबसे अच्छा आधार प्रस्तुत करता है।

लेखांकन की प्रक्रिया 

जिस प्रकार ऋतुएँ कई प्रकार की होती है और ऋतुओं का चक्र पूरे वर्ष भर चलता है उसी प्रकार लेखांकन प्रक्रिया एक सतत प्रक्रिया है जिसकी कई अवस्थाएं होती है।

लेखांकन प्रक्रिया को समझने के लिए हमें सर्वप्रथम लेखांकन की परिभाषा एवं लेखाकन प्रक्रिया पर ध्यान देना होगा। लेखांकन की परिभाषा से स्पष्ट है कि लेखांकन वित्तीय स्वभाव वाले व्यवहारों (transactions) और घटनाओं (events) के लिखने एवं वर्गीकरण (Recording and Classifying) करने. सारांश करने (Summarising), उनकी व्याख्या करने (Analysing) तथा परिणामों को उन व्यक्तियों तक पहुँचाने की कला व विज्ञान है जिन्हें इनके आधार पर निर्णय लेने है। इस प्रकार लेखांकन कार्यविधि या प्रक्रिया (Accounting Process) वित्तीय व्यवहारों की पहचान से प्रारम्भ होती है और जर्नल लेजर, तलपट, आर्थिक बिट्टे के निर्माण, विश्लेषण, विवेचन एवं निर्वचन तथा सूचनाओं की रिपोर्टिंग तक एक चक्र का रूप ग्रहण करतें है। निश्चय ही अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचने में लेखांकन को कई अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। संक्षेप में, लेखांकन प्रक्रिया को निम्न अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है।

1. वित्तीय लेन-देनों की पहचान 

2. लेन-देनों का अभिलेखन अर्थात् प्रारम्भिक लेखा-जर्नल 

3. लेन-देनों का वर्गीकरण अर्थात् खाताबही 

4. शेष या बाकी निकालना 

5. सारांश प्रस्तुत करना अर्थात् तलपट एवं अन्तिम खातों का निर्माण,

6. विश्लेषण-विवेचन तथा निर्वचन 

7. परिणामों का सम्प्रेषण

लेखांकन चक्र को लेखांकन संरचना  या लेखांकन प्रक्रिया भी कहा जाता है।

लेखांकन की प्रकृति

लेखांकन एक विज्ञान है और साथ ही साथ यह एक कला भी है। लेखांकन की प्रकृति के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य महत्त्वपूर्ण है -

(1) लेखांकन एक कला है 

लेखांकन को 'कला' माना गया है। A. I.C.P.A. के अनुसार- "लेखांकन व्यवसाय  के लेखे एवं घटनाओं को, जो पूर्णतः वा आंशिक रूप से वित्त सम्बन्धी होते हैं. मुद्रा में प्रभावपूर्ण विधि से लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने एवं उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।'' 

(2) लेखांकन एक विज्ञान है 

लेखांकन एक विज्ञान है क्योंकि इसमें विषय-वस्तु का क्रमवद्ध तथा व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। लेखांकन के अपने सिद्धान्त व नियम है। यद्यपि लेखांकन के सिद्धान्त प्राकृतिक विज्ञानी के नियमों के समान दृढ एवं सर्वमान्य (Universal) नहीं है परन्तु वे सामान्यतः स्वीकृत अवश्य है। लेखांकन के सिद्धान्त परम्परा, अनुभव व तर्क पर आधारित है।

(3) लेखांकन एक वौद्धिक विषय है 

लेखांकन को एक बौद्धिक विषय मानकर अध्ययन किया जाता है क्योंकि इसमें वित्तीय व्यवहारों का विवेचन विश्लेषण एवं उनका व्याख्या की जाती है. जिससे सम्बन्धित व्यक्ति को निर्णय लेने में सहायता मिलती है।

(4) लेखांकन एक पेशा है 

वर्तमान युग की एक मान्य विचारधारा है कि लेखांकन एक पेशा है। पेशा वह कार्य है जिसमें वह व्यक्ति अपने विशिष्ट ज्ञान, चातुर्य प्रशिक्षण एवं अनुभव के आधार पर अन्य व्यक्तियों को व्यक्तिगत सेवा प्रदान कर पारिश्रमिक प्राप्त करता है, जैसे, वकील, नार्टर्ड एकाउण्टेण्ट आदि। इसी प्रकार आज लेखापाल (Acceruntant) भी विधिवत् अध्ययन एवं प्रशिक्षण के माध्यम से अर्जित अपने कौशल, चातुर्य एवं सेवाएँ देकर पारिश्रमिक प्राप्त करता है। अतः लेखांकन एक पेशा है। 

(5) लेखांकन एक सामाजिक शक्ति है

प्राचीन काल में लेखाकन अपने स्वामियों के प्रति उत्तरदायी था, परन्तु वर्तमान युग में लेखांकन सम्पूर्ण समाज के लिए उतना ही उत्तरदायी माना जाने लगा है। जितना वह स्वामियों के प्रति उत्तरदायी होता है। आज जनहित की समस्याओं को सुलझाने के लिए लेखांकन की सूचनाओं को प्रयोग में लाया जाता है, जैसे मूल्य निर्धारण, मूल्य नियन्त्रण, करारोपण आदि।

(6) लेखांकन  एक सेवा कार्य है

लेखांकन एक सेवा कार्य है। इसका उद्देश्य व्यावसायिक क्रियाओं के सम्बन्ध में परिमाणात्मक वित्तीय सूचनाएं प्रदान करना है। यह उन लोगों को लेखाकन सूचनाएं उपलब्ध कराता है जो इसके आधार पर महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहते है। 

लेखांकन के कार्य

लेखांकन के छ: कार्य है जिन्हें निम्न चार्ट द्वारा व्यक्त कर सकते है-

लेखांकन

(1) लेखात्मक कार्य 

लेखाकन का यह आधारभूत कार्य है। इस कार्य के अन्तर्गत व्यवसाय की प्रारम्भिक पुस्तकों (जर्नल और उसकी सहायक बहियों) में क्रमबद्ध लेखे करना, उनको उपयुक्त खातों में वर्गीकृत करना अर्थात् उनसे खाते तैयार करना और तलपट (Trial Balance) बनाने के कार्य शामिल है। इनके आधार पर वित्तीय विवरणियो (Financial Statements), जैसे, लाभ-हानि खाता /आय विवरणी तथा चिट्ठे को तैयार किया जाता है। 

(2) व्याख्यात्मक कार्य 

इस कार्य के अन्तर्गत लेखांकन सूचनाओं में हित रखने वाले पक्षों के लिए वित्तीय विवरण व प्रतिवेदन (Report), विश्लेषण व व्याख्या शामिल है। तृतीय पक्ष एवं प्रबन्धकों की दृष्टि से लेखांकन का यह कार्य महत्वपूर्ण माना गया है। किसी व्यवसाय का तुलनात्मक विवरण, प्रवृत्ति विश्लेषण (Trend Analysis), अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis) करना तथा रोकड प्रवाह (Cash Flow) व कोष प्रवाह (Fund Flow) विवरण तैयार करना आदि कार्य वित्तीय विवरणों की व्याख्या के अन्तर्गत आते हैं।

(3) वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना 

विभिन्न कानूनों/विधानों, जैसे- कम्पनी अधिनियम, आयकर अधिनियम बिक्री कर अधिनियम आदि द्वारा विभिन्न प्रकार के विवरणों को जमा करने पर बल दिया जाता है, जैसे, वार्षिक खाते, आयकर रिटर्न, बिक्रीकर रिटर्न आदि। ये सभी जमा किये जा सकते हैं यदि लेखांकन ठीक से रखा जाये। 

(4) व्यवसाय को सम्पत्तियों की रक्षा करना 

लेखांकन का एक महत्वपूर्ण कार्य व्यवसाय को सम्पत्तियों को रक्षा करना है। यह तभी सम्भव है, जबकि विभिन्न सम्पत्तियों का उचित लेखा रखा जाये। 

(5) परीक्षात्मक कार्य 

इसके अन्तर्गत वित्तीय विवरणों और प्रतिवेदनों को शुद्धता, सत्यता और वैधानिकता की जाँच करने से सम्बन्धित कार्य आते है। छोटे व्यापारों में व्यापार का स्वामी स्वयं भी इस कार्य को कर सकता है लेकिन बड़े व्यवसायों में इस कार्य के लिए लेखा परीक्षकों अर्थात् अंकेक्षकों (Auditors) की सेवाएँ प्राप्त की जाती है।

(6) वित्तीय परिणामों को सूचना देना

लेखांकन को व्यवसाय की भाषा कहा गया है।' जिस प्रकार भाषा का मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण के साधन के रूप में कार्य करना है क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति भाषा ही करती है, ठीक उसी प्रकार लेखांकन व्यवसाय की वित्तीय स्थिति व अन्य सूचनाएं (जैसे, शुद्ध लाभ, सम्पति व दायित्व आदि) उन सभी पक्षकारों को प्रदान करता है जिनके लिए ये आवश्यक है। उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त लेखाकन प्रबन्धक को संस्था के नियन्त्रण कार्य में पर्याप्त सहायता प्रदान करता है। यह सहायता विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को उपलब्ध कराकर ही की जाती है। जैसे-

(i) स्वस्थ रोकड़ कितनी है ?

(ii) बैंक शेष की स्थिति क्या है ?

(iii) सामग्रियों या स्टॉक (Inventories) की स्थिति क्या है ?

(iv) ग्राहको पास कितना बकाया है ?

(v) लेनदारों को कितना देना है ?

(vi) विभिन्न सम्पत्तियों की स्थिति क्या है और उनका उपयोग किस प्रकार हो रहा है ? 

इन सूचनाओं के आधार पर ही संस्था के स्वामी या प्रबन्धक यह देखते है कि किसी सम्पत्ति की बर्बादी तो नहीं हो रही है।

लेखांकन की शाखाएँ 

विभिन्न उद्देश्यों को पूर्ति हेतु अलग-अलग प्रकार को लेखांकन पद्धतियाँ विकसित हुई है। इन्हें लेखांकन के प्रकार या लेखांकन की शाखाएं कहा  जाता है।

लेखांकन मुख्यतः निम्न प्रकार के होते हैं

(1) वित्तीय लेखांकन 

(2) लागत लेखांकन

(3) प्रबन्ध लेखांकन

(4) कर लेखांकन

(5) सरकारी / राजकीय लेखांकन 

(6) सामाजिक लेखांकन

(7) मुद्रा-स्फीति लेखांकन

(8) मानव संसाधन लेखांकन

(1) वित्तीय लेखांकन 

वित्तीय लेखांकन वह लेखाकन है जिसके अन्तर्गत वित्तीय प्रकृति वाले सौदों को लेखाबद्ध किया जाता है। इन्हें सामान्य लेखाकर्म भी कहते है और इन लेखों के आधार पर लाभ-हानि या आय विवरण तथा चिट्ठा (तुलन-पत्र) तैयार किया जाता है।

Kohler शब्दकोश के अनुसार-  "Financial accounting is the accounting for revenues, expenses, assets and liabilities that is commonly carried on in general offices of business."

-Kohler's Dictionary for Accountants 

व्यवसायी वर्ष के अन्त में अपने कारोबार का लाभ-हानि जानना चाहते है और यह भी जानना चाहते है कि उनके व्यापार की आर्थिक स्थिति क्या है, इसलिए वे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वित्तीय लेखांकन का सहारा लेते है। इसी प्रकार विनियोजक, लेनदार (Creditors) और अन्य पक्ष, जिनका व्यावसायिक संस्था में हित रहता है, व्यावसायिक उपक्रम के लाभ-हानि व आर्थिक स्थिति से अवगत होना चाहते है। इस दृष्टि से भी वित्तीय लेखांकन आवश्यक माना गया है। 

इस प्रकार वित्तीय लेखांकन के निम्नलिखित मुख्य कार्य है-

(1) व्यवसाय या संस्था से सम्बन्धित लेन-देनों को उपयुक्त बही में लिखना;

(ii) आवश्यक खाते, लाभ-हानि खाता तथा विट्टा तैयार करना;

(iii) एक निश्चित अवधि के व्यावसायिक परिणामों से व्यवसाय के स्वामी या सम्बन्धित पक्षकारों को अवगत कराना।

(2) लागत लेखांकन 

लागत लेखांकन वित्तीय लेखा पद्धति की सहायक (Subsidiary) है। लागत लेखाकन किसी वस्तु या सेवा की लागत का व्यवस्थित व वैज्ञानिक विधि से लेखा करने की प्रणाली है। इसके द्वारा वस्तु या सेवा की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत का सही अनुमान लगाया जा सकता है. इसके द्वारा लागत पर नियन्त्रण भी किया जाता है। लागत लेखाकन के अन्तर्गत प्रत्येक कार्य या आदेश, ठेका, विधि, सेवा या इकाई की लागत का निर्धारण सम्मिलित रहता है। यह उत्पादन, विक्रय एवं वितरण की लागत भी बताता है।

(3) प्रबंध लेखांकन 

यह लेखांकन की आधुनिक कड़ी है। जब कोई लेखा विधि प्रबन्ध की आवश्यकताओं के लिए आवश्यक सूचनाएं प्रदान करता है, तब इसे प्रबन्धकीय लेखा विधि कहा जाता है।

रॉबर्ट एन्थोनी के अनुसार-  "प्रबन्ध लेखांकन का सम्बन्ध उन लेखांकन सूचनाओं से है जो प्रबन्ध के लिए उपयोगी हैं।"

प्रबन्ध की आवश्यकताएँ मुख्यतः नियोजन (Planning), संगठन (Organization) तथा नियन्त्रण (Control) से सम्बन्धित होती है। 

अतः प्रबन्धकीय लेखांकन के अन्तर्गत वित्तीय विवरणों का विश्लेषण (Analysis of Financial Statement), अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis), बजटरी नियन्त्रण (Budgetary Control), प्रमाप लागत (Standard Costing), सीमान्त लागत (Marginal Costing), सम-विच्छेद बिन्दु विश्लेषण (Break even Point Analysis), रोकड़ प्रवाह विवरण (Cash Flow Statement), कोष प्रवाह विवरण (Fund Flow Statement), संवहन एवं रिपोर्टिंग सम्मिलित है।

(4) कर लेखांकन 

भारत और अन्य देशों में सरकारी काम-काज के लिए कई प्रकार के कर लगाये जाते है, जैसे, आय कर, सम्पदा कर, बिक्री कर, उपहार कर मृत्यु कर आदि। कर व्यवस्थाओं के लिए विशेष प्रकार की लेखांकन पद्धति अपनायी जाती है। कर व्यवस्थाओं के अनुसार रखे जाने वाले लेखांकन को कर लेखांकन कहा जाता है।

(5) सरकारी / राजकीय लेखांकन

केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार एवं स्थानीय सत्ताएँ (जैसे, नगर निगम, नगरपालिका, जिला बोर्ड आदि) जो लेखांकन पद्धति अपनाती है, उसे सरकारी लेखांकन कहा जाता है। सरकार का उद्देश्य प्रशासन करना और विभिन्न विभागों के कार्यों को अच्छी प्रकार चलाना होता है। सरकार अपने आय-व्यय के लिए बजट बनाती है। सरकारी लेखों में लेन-देनों का वर्गीकरण प्रशासनिक क्रियाओं और लेन-देनों को प्रकृति के वर्गीकरण के आधार पर किया जाता है। अधिकांश सरकारी लेखे इकहरी लेखा प्रणाली के आधार पर रखे जाते है और लेखों का बहुत कम भाग ही दोहरा लेखा प्रणाली के आधार पर रखा जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य उन खातों के शेष निकालना होता है जिनमें सरकार बैकर, ऋणदाता या ऋणी की हैसियत में होती है।

वस्तुतः सरकार के कुछ विभागों में लेखांकन के लिए रोकड़ प्रणाली (Cash System) अपनायी जाती है और जिन विभागों का कार्य व्यावसायिक प्रकृति का होता है, उनमें सामान्य सरकारी खातों के अतिरिक्त ये खाते विवरण के आधार पर तैयार किये जाते है जिनमें वास्तविक भुगतान दर्शाये जाते हैं और उपार्जन आधार (Accrual Basis) पर बाद में समायोजन किये जाते है। 

(6) सामाजिक लेखांकन 

किसी राष्ट्र की आर्थिक क्रियाओं को उचित ढंग से क्रमबद्ध करना ही सामाजिक लेखांकन कहलाता है। ये क्रियाएं विभिन्न कार्य सम्बन्धी वर्गों में बाँटी जाती है। लेखाकन की यह विधि किसी राष्ट्र में निर्धारित अवधि में हुए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों को वृहत् रूप में प्रकट करती है, इसे राष्ट्रीय लेखांकन भी कहा जाता है।

(7) मुद्रा-स्फीति लेखांकन

बीते हुए समय की दीर्घावधि की मूल्य स्थिति को देखा जाये तो एक बात सर्वमान्य रूप से स्पष्ट होती है कि संसार-भर में प्रत्येक वस्तु के मूल्यों में वृद्धि हुई है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद तो मूल्य सूचकाकों में परिवर्तन की गति बेहद तो हुई है और मुद्रा-स्फीति की इस स्थिति में व्यावसायिक जगत् के आर्थिक परिणामों को तुलनीयता को निरर्थक बना दिया है।

मुद्रा-स्फीति के इस दुष्परिणाम का प्रभाव शून्य कर वास्तविक परिणामों की जानकारी करने के लिए मुद्रा मूल्य सूचकांकों की सहायता से लाभ-हानि खाते को समायोजित किया जाता है और इसी प्रकार से बिट्टे में स्थायी सम्पत्तियों के मूल्यों को समायोजित किया जाता है। पुनर्मूल्याकन द्वारा भी अन्तिम खातों को तैयार किया जाता है। वर्तमान में इस लेखाकर को दो विधियां - वर्तमान लागत लेखांकन (Current Cost Accounting-CCA) तथा वर्तमान क्रए शक्ति लेखांकन (Current Purchasing Power Accounting CPPA) प्रचलन में आने लगी है। 

(8) मानव संसाधन लेखांकन 

किसी भी उपक्रम की स्थिरता, विकास और लाभदायकता सुनिश्चित करने के लिए उसकी मानव सम्पति से अधिक महत्वपूर्ण अन्य कोई घटक नहीं है। इसकी महत्ता तब आसानी से समझी जा सकती है, जब उत्पादन के अन्य साधन पूँजी, सामग्री, मशीने आदि सब उपलब्ध हो और श्रमिक वर्ग हड़ताल पर होता है। इसी प्रकार एक पेशेवर संस्था, जैसे अच्छे डॉक्टरों की क्लीनिक, वकीलों, इन्जीनियरों, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स की फर्म की जीवन शक्ति एवं लाभदायकता मानव सम्पत्ति पर ही निर्भर करती है लेकिन इस महत्वपूर्ण सम्पति का लेखांकन एवं मूल्यांकन आर्थिक चिट्ठे में किसी भी प्रकार परिलक्षित नहीं होता है। 

परिणामस्वरूप दो फर्मों के आर्थिक परिणामों की केवल विनियोजित पूंजी पर प्रत्यय आदि के आधार पर तुलना अपूर्ण एवं कभी-कभी तो भ्रमपूर्ण होती है। एक औद्योगिक फर्म एवं पेशेवर कर्म के आर्थिक परिणामों की तुलना तो मात्र इस घटक के कारण हो असम्भव होती है। इस कमी को दूर करने के लिए लेखांकन जगत् में मानव शक्ति के मूल्यांकन एवं लेखों में दर्ज कर वित्तीय परिणामों के प्रदर्शित करने की एक नयी प्रणाली विकसित होने लगती है जिसे मानव संसाधन लेखांकन कहा जाता है। अमेरिकन एकाउण्टिंग एसोसिएशन की मानव संसाधन लेखांकन समिति के अनुसार, "मानव संसाधन लेखांकन मानव साधनों को पहचानने, इनका आँकड़ों में मापन करने और इस सूचना को सम्बन्धित पक्षों तक संवहित करने की प्रक्रिया है।" 

लेखांकन की आवश्यकता एवं महत्व या लाभ

लेखांकन व्यवसाय की भाषा है - जिस प्रकार भाषा का मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण के माध्यम के साधन के रूप में कार्य करना है, क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति भाषा ही करता है, ठीक उसी प्रकार लेखांकन व्यवसाय को वित्तीय स्थिति व अन्य सूचनाएं (जैसे, शुद्ध लाभ, सम्पत्ति व दायित्व आदि) उन सभी पक्षकारों को प्रदान करता है जिनके लिए ये आवश्यक व उपयोगी है। निश्चय ही आज के युग में लेखांकन या लेखाकर्म (लेखा विधि) का महत्व काफी बढ़ गया है। इस शास्त्र के ज्ञान से न सिर्फ व्यापारी होते है वरन् सरकार एवं अन्य पक्षी को भी लाभ पहुँचता है। लेखांकन के निम्नलिखित लाभ है 

(1) स्मरण शक्ति के अभाव की पूर्ति

कोई भी व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों न हो, सभी बातों को स्मरण नहीं रख सकता है। व्यापार में प्रतिदिन सैकड़ों लेन-देन होते हैं, वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। ये नकद और उधार दोनों हो सकते है। मजदूरी, वेतन, कमीशन आदि के रूप में भुगतान होते हैं। इन सभी को याद रखना कठिन है। लेखांकन इस अभाव को दूर कर देता है। 

(2) व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं का ज्ञान होना

लेखांकन से व्यवसाय से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त होती है। जैसे-

(1) लाभ-हानि की जानकारी होना, 

(ii) सम्पति तथा दायित्व को जानकारी होना

(iii) कितना रुपया लेना है और कितना रुपया देना है; 

(iv) व्यवसाय की आर्थिक स्थिति कैसी है, आदि।

(3) व्यापार का उचित मूल्यांकन 

व्यावसायिक संस्था को बेचते या क्रय करते समय उसके सही मूल्याकन की आवश्यकता होती है। यदि संस्था में सही लेखांकन की व्यवस्था है तो उस संस्था की वित्तीय स्थिति के आधार पर व्यवसाय का उचित मूल्याकन हो सकता है। 

(4) न्यायालय में प्रमाण

अन्य व्यापारियों से झगड़े होने की स्थिति में लेखांकन अभिलेखों को न्यायालय में प्रमाण (साक्ष्य) के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। न्यायालय प्रस्तुत किये गये लेखांकन अभिलेखों को मान्यता प्रदान करता है।

(5) दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही में सहायक होना 

एक व्यापारी दिवालिया तभी घोषित किया जा सकता जबकि उसके दायित्व उसको सम्पत्तियों के मूल्य से अधिक हो। इसी प्रकार जब किसी व्यावसायिक संस्था की ऐसी स्थिति आ जाये, जबकि वह दायित्वों के भुगतान में असमर्थ हो जाये तो उसे दिवालिया घोषित किया जा सकता है। किसी भी न्यायालय को यह ज्ञान बहीखाता  तथा लेखों से ही होता है। अत: दिवालिया घोषित कराने के लिए लेखाकर्म अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है। 

(6) कर निर्धारण में सहायक 

व्यापारियों को कई प्रकार के कर चुकाने पड़ते है जैसे आग-कर, बिक्री कर, सम्पदा-कर, मनोरंजन कर, उत्पादन कर आदि। इन करो के निर्धारण में लेखांकन से बड़ी सहायता मिलती है। यदि व्यापारी आवश्यक पुस्तके न रखें तो सम्बन्धित अधिकारी मनमाने ढंग से कर लगा देंगे।

(7) ऋण लेने में सहायक

व्यवसाय के विस्तार हेतु तथा उसके सफल संचालन के लिए समय-समय पर ऋण को आवश्यकता पड़ती है। यदि हिसाब-किताब ठीक ढंग से रखे गये हो तथा व्यापार की सही आर्थिक स्थिति दर्शाया होगी तो हिसाब-किताब दिखाकर ऋणदाता को सन्तुष्ट किया जा सकता है और इस प्रकार खाता दिखाकर ऋण प्राप्त करने में सुविधा हो जाती है।

(8) साझेदारी में सहायक

लेखांकन साझेदारी में निम्न प्रकार सहायक है-

(1) नये साझेदार को लेखाकर्म को सहायता से फर्म को वित्तीय स्थिति की जानकारी आसानी से हो जाती है।

(ii) नये साझेदार के प्रवेश के समय लेखाकर्म की सहायता से ख्याति (Goodwill) के मूल्यांकन में सुविधा होती है।

(iii) किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने के समय ख्याति के मूल्यांकन में सहायता मिलती है। 

(iv) फर्म की समाप्ति पर साझेदारों में लेन-देन के सम्बन्ध में होने वाले विवादों को सुचारु रूप से रखे जाने वाले खाते बड़ी सीमा तक कम कर देते हैं।

(v) साझेदार के अवकाश ग्रहण करने या मृत्यु पर उसे कितना रुपया देना है या उसके द्वारा फर्म को कितना रुपया देय है, इसकी जानकारी लेखाकर्म द्वारा ही सम्भव है। 

(9) छल-कपट तथा जालसाजी से बचाव

कर्मचारियों के छल-कपट तथा जालसाजी से बहीखाते रक्षा करते हैं। बहीखाता के द्वारा कर्मचारियों की कार्यक्षमता भी ज्ञात की जा सकती है। 

(10) तुलनात्मक अध्ययन 

विभिन्न वर्षों के लेखों की तुलना द्वारा व्यापारी बहुत-सी लाभदायक और आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है। इससे वह भविष्य में उन्नति या विस्तार को योजनाएं बनाकर लाभ में वृद्धि कर सकता है अथवा हानियों से बचने के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है।

(11) महत्वपूर्ण सूचनाओं का ज्ञान

बहीखाता की सहायता से व्यापारी उपयोग आँकड़े इकट्ठे कर सकता है, जैसे- आय-व्यय, क्रय-विक्रय, पूँजी, देयताएँ, सम्पत्ति, ह्रास, स्टॉक, विनियोग इत्यादि के आंकडे इन आंकड़ों से न सिर्फ महत्वपूर्ण सूचनाएं  मिलती है तथा  इनके आधार पर आवश्यक निष्कर्ष भी निकाले जा सकते हैं। इन सूचनाओं के आधार पर नीतियाँ निर्धारित करने में मदद मिलती है। 

(12) कर्मचारियों को लाभ 

वित्तीय लेखों से कर्मचारियों के वेतन, बोनस, भत्ते आदि से सम्बन्धित समस्याओं के निर्धारण में मदद मिलती है।

(13) सरकार को लाभ

लेखांकन से सरकार निम्न प्रकार से लाभान्वित होती है :

(i) लेखों के आधार पर व्यावसायिक संस्था को वित्तीय सहायता दी जा सकती है।

(ii) लेखांकन के आधार पर आय-कर, बिक्री कर एवं अन्य करों के निर्धारण में सुविधा होती है तथा भविष्य के लिए नये लक्ष्य निर्धारित करने में भी सुविधा होती है।

(14) विभिन्न पक्षकारों को लाभ

लेखांकन से विनियोजक, माल उधार देने वाले ऋणदाता आदि को निर्णय लेने में सुविधा होती है तथा यह निर्णय करने में भी सहायता मिलती है कि वे ऐसी संस्था से सम्बन्ध रखे या नहीं। इस प्रकार, "लेखांकन व्यवसाय की भाषा है, साथ ही साथ यह व्यावसायिक क्रियाओं का दर्पण है।'' 


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